क्या हिंदू छुआछूत नष्ट कर अपने को बचा पायेगा
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
मेरी बुआ की लडकी यानि मेरी कजिन, जिसका पति युवा अवस्था में कैंसर से मर गया था और जिसका एक मात्र पुत्र जो पूणे बेकरी धमाके में मुस्लिम आतंकवाद का शिकार हुआ। उस बहन से मैं आजतक बात नहीं कर पा रहा हूं। क्या ढाढस दूं। क्या ज्ञान दूं। जिसके जीने का सहारा ही नहीं है कुछ। बस बैंक आफ बडोदा की नौकरी के सहारे जीवित है। इस घटना ने मुझे हिला दिया। जब तक ऐसी घटना किसी अन्य के साथ नहीं होगी वह आतंकवाद को नहीं समझ सकेगा। क्या हम अन्य घटनाओं के होने तक सोते रहें। क्या हिंदूओ के नष्ट होने से यह सब बंद हो जायेगा। अथवा इसका उल्टा होने से।
यही सब उधेडबुन हमें सोंचने को मजबूर करती है। हम हाथ पर हाथ रखकर सेकुलर की झूठी परिभाषा से मूर्ख नहीं बन सकते। हम हिंदूं है हमें जागना होगा। अपने अस्तित्व को बचाने के लिये दलित और सवर्ण को एक होना होगा। इसी को समझाने के लिये कुछ तथ्य और कथन गूगल गुरू से लेकर आप पहुंचाने का अल्प प्रयास कर रहा हूं। यही मेरा प्रयास रहेगा कि भारत माता की आन बान और शान सुरक्षित रहे। चलिये कुछ चर्चा करते हैं।
सेंसस रिपोर्ट के अनुसार भारत में ईसाइयों की जनसंख्या तेजी से बढी है।
प्रलोभन, छल, बलप्रयोग आदि द्वारा भारत में प्रतिवर्ष 20 लाख हिन्दुओं का धर्मान्तरण किया जाता है ।
अरुणालच प्रदेश में ईसाई जनसंख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है। सेंसस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1971 में ईसाई समुदाय की संख्या 1 प्रतिशत थी वो वर्ष 2011 में बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई है। जबकि हिंदू जनसंख्या 2001 में 34.6 प्रतिशत थी जो कि घटकर 2011 में केवल 29 प्रतिशत रह गई। राज्य में #ईसाई #जनसंख्या बढ़कर 100 प्रतिशत से अधिक हो गई है। 2011 की जनगणना के अनुसार, #अरुणाचल प्रदेश की कुल जनसंख्या 1.3 लाख है।
एचटी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ये बदलाव पूर्वोत्तर के एक और राज्य में देखा गया है। मणिपुर में 2.8 लाख जनसंख्या में ईसाईयों की संख्या बढ़ी है।
मणिपुर में ईसाई जनसंख्या जो 1961 में 19 प्रतिशत थी वो 2011 में बढ़कर 41 प्रतिशत से अधिक हो गई है।
वहीं 1961 में कुल जनसंख्या में हिंदुओं का लगभग 62 प्रतिशत हिस्सा था । 2011 में ईसाई और हिंदुओं की लगभग बराबर हिस्सेदारी रही है।
मणिपुर और अरूणाचल प्रदेश में भारत की जनसंख्या का केवल 0.3 प्रतिशत हिस्सा है। दो राज्यों में ईसाइयों की संख्या 27.8 लाख है, जो देश की जनसंख्या का लगभग 2 प्रतिशत है।
मणिपुर राज्य में ईसाईकरण हेतु मिशनरियों ने ईसाई पाठशालाएं आरंभ की हैं। इसके फलस्वरूप मणिपुर में 34 प्रतिशत लोग ईसाई हुए हैं। मइताय जमाती के लोगों ने धर्मपरिवर्तन किया है।
मणिपुरी भाषा के साहित्य में केवल बाईबल तथा ईसाईयों से संबंधित पुस्तकें हैं !
पूर्वोत्तर के राज्यों में इतनी तेजी से जनसंख्या में आ रहे बदलाव को लेकर केंद्रीय मंत्री किरण रिजजू ने कहा था कि, भारत में हिंदू जनसंख्या कम हो रही है क्योंकि वे ‘कभी लोगों का धर्म परिवर्तन’ नहीं कराते जबकि कुछ अन्य देशों के विपरीत हमारे यहां अल्पसंख्यक फल फूल रहे हैं।
वर्ष 1947 में नागालैंड में केवल 200 ईसाई थे। लेकिन अब नागालैंड में केवल 7.7 प्रतिशत हिन्दू शेष बचे हैं ।
मिजोरम का 90 प्रतिशत से अधिक समाज ईसाई बन गया है।
मेघालय राज्य में ईसाईयों की मात्रा 70.3 प्रतिशत है। हिन्दुओं की संख्या अब केवल 13.3 प्रतिशत बची है।
इन राज्यों में ईसाईयों के दबाव के कारण हिन्दुत्व का कार्य प्रकट रूप से करने पर निर्बंध आता है। वहां हुए ईसाईकरण के कारण खुले आम गोहत्या की जाती है। सड़क पर ही खुले में गोमांस का विक्रय किया जाता है। यह बात हिन्दुओं को असहनीय हो रही है; किंतु राजनेता तथा प्रशासन हिन्दुओं की भावनाओं को अनदेखा कर रहे हैं। इस प्रकार की हर बात को शासन अनदेखा कर रहा है। हिन्दुओं को बताया जा रहा है कि आप स्थानीय निवासी (नॉन-ट्रायबल) नहीं हो ! (स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात)
क्या है जनता की आवाज..???
मैं ईसाई धर्म को एक अभिशाप मानता हूँ, उसमें आंतरिक विकृति की पराकाष्ठा है । वह द्वेषभाव से भरपूर वृत्ति है । इस भयंकर विष का कोई मारण नहीं । ईसाईत गुलाम, क्षुद्र और चांडाल का पंथ है । - फिलॉसफर नित्शे
धर्म परिवर्तन वह जहर है जो सत्य और व्यक्ति की जड़ों को खोखला कर देता है । हमें गौमांस भक्षण और शराब पीने की छूट देनेवाला ईसाई धर्म नहीं चाहिए । - महात्मा गांधी
दुनिया की सबसे बड़ी बुराई है रोमन कैथोलिक चर्च । - एच.जी.वेल्स
मैंने पचास और साठ वर्षों के बीच बाइबिल का अध्ययन किया तो तब मैंने यह समझा कि यह किसी पागल का प्रलाप मात्र है । - थामस जैफरसन (अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति)
बाइबिल पुराने और दकियानूसी अंधविश्वासों का एक बंडल है । बाइबल को धरती में गाड़ देना चाहिए और प्रार्थना पुस्तक को जला देना चाहिए । - जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
मैंने 40 वर्षों तक विश्व के सभी बडे धर्मो का अध्ययन करके पाया कि हिन्दू धर्म के समान पूर्ण, महान और वैज्ञानिक धर्म कोई नहीं है । - डॉ. एनी बेसेन्ट
हिन्दू समाज में से एक मुस्लिम या ईसाई बने, इसका मतलब यह नहीं कि एक हिन्दू कम हुआ बल्कि हिन्दूसमाज का एक दुश्मन और बढा । -स्वामी विवेकानन्द
ईसाई धर्मांतरण को रोकने के लिए कई हिंदुत्व निष्ठ हस्तियाँ आगे आई लेकिन ईसाई मिशनरियों का देश की राजनीति एवं मीडिया में बढ़ते दब-दबे के कारण कट्टर हिंदुत्वनिष्ठ लोगों को मीडिया द्वारा बदनाम करवाकर झूठे आरोप लगा जेल भिजवाया गया या तो उनकी हत्या करवा दी गई ।
क्या यह सब देखकर हिंदू समाज सवर्ण और निम्न वर्ण की भावनाओं से बाहर आ पायेगा। क्या अपना विनाश देखकर उच्च हिंदू वर्ग किसी दलित को गले लगाने का विचार बनायेगा। यह अभी भी एक यक्ष प्रश्न है। जिसका उत्तर हमें खोजना ही होगा य्दि हम भविष्य देखना चाहते हैं।
उधर भारत में रोहिंग्या मुसलमानों आसरा देने की बात हो रही थी तो एक मौलाना ने फतवा जारी किया की उन्हें अगर कोई भारत से बाहर निकलता है तो भारत का इतिहास उलट देंगे क्योकि वो मेरे भी है ! क्या हुआ हम अल्पसंख्यक है अगर हम 72 है तो भी लाखो की संख्या में लाशें बिछा देंगे ! क्या ऐसे में आपको नही लगता कि हिंदुत्व और हिंदुस्तान दोनों खतरे में है ! उन्हें अगर शरण देना ही है तो पाकिस्तान और बांग्लादेश भी दे सकता है ! क्या वो उनके भाई बहन नही है !
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जमीयत उलेमा ने कहा है की भारत सरकार को युरोपिय संघ समेत विकसित देशो की शरणार्थी नीति का पालन करना चाहिए , लेकिन क्या यहीं प्रश्न जमीयत उलेमा जैसे अन्य भारतीय मुस्लिम संगठनों ने कभी मुस्लिम देशो से भी किया है ! आल इंडिया उलमा मशाईख बोर्ड जमीयत उलेमा-ए-हिन्द और जमाते इस्लामी जैसे मुस्लिम संगठनों ने भारत सरकार , संयुक्त राष्ट्र और अंतरास्ट्रीय मानवाधिकारों आयोग से मदद करने की अपील की ! क्या उन्होंने इस संबंध में वे वैश्विक मुस्लिम समुदाय से भी अपील की , क्या उन्होंने यह पूछा की रोहिंग्या शरणार्थियों को मुस्लिम देशो अरब जगत में आश्रय क्यो नही मिल सकता है ?
खतरा ओविसी जैसे नेताओ से हिंदुत्व और हिंदुस्तान दोनों को है ? इन्ही जैसे लोगो के कारण आज इस्लाम नही हिंदुत्व खतरे में लगने लगी है ! अगर हिंदुत्व और हिंदुस्तान दोनों को बचाना है तो इन जैसे धर्म के ठेकेदारों से बचाओ जो बात बात पर फतवा जारी करते है ! हिन्दूओ एकजुट हो जाओ और हिंदुत्व को इस खतरे बचाओ नही तो हिंदुस्तान को कोई भी सीरिया ओर इराक होने से कोई नही बचा सकता है !
पाकिस्तान के रेलमंत्री शेख रशीद यदि भारत को चेतावनी देते हुए ये कहते हैं कि 'युद्ध हुआ तो भारत के मंदिरों में घंटियां नहीं बजेंगी.' पाकिस्तान के कट्टरपंथी हाफिज सईद और मौलाना मसूद अजहर अकसर ही भारत के खिलाफ जेहाद की बात करते हैं. तो सवाल ये उठता है कि इनमें भारत के खिलाफ इतना जहर क्यों है? और ये आता कहां से है?
पुलवामा आंतकी हमले के बाद से ही जिस तरह से पाकिस्तान और हिंदुस्तान की नफरत का नया रूप देखा जा रहा है वो सालों से दिल में जमी हुई नफरत का नतीजा है. पाकिस्तान नागरिकों का बचपन भारत, खासकर हिंदुओं के प्रति नफरत को सीखता हुआ गुजरता है. पाकिस्तानी स्कूलों में बच्चों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि हिंदुओं से कैसे नफरत की जाए. पाकिस्तान के बड़े अखबार डान का लेख इस बात की पुष्टि करता है. यह लेख पाकिस्तानी स्कूलों पर की गई एक स्टडी के आधार पर है. इस स्टडी में सामने आया था कि पाकिस्तानी स्कूलों में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के बारे में गलत पढ़ाया जाता है.
स्टडी में जो बातें सामने आईं वो ये बताने के लिए काफी हैं कि पाकिस्तान में कट्टर इस्लाम को किस तरह बच्चों के दिमाग में डाला जा रहा है. शायद ये समझने के लिए काफी है कि क्यों पाकिस्तान में आतंकवादियों को इतना सपोर्ट किया जाता है.
पाकिस्तान, स्कूल, हिंदू, मुस्लिमपाकिस्तानी स्कूलों में जिस तरह बच्चों के दिमाग में नफरत भरी जाती है वो बताता है कि उस देश में क्यों इतने आतंकवादी खुले घूमते हैं.
अगर बच्चों को शुरुआत से ही भेद-भाव पढ़ाया जाएगा तो बच्चे बड़े होकर क्या सीखेंगे यही न कि कैसे कट्टर बना जाता है और कैसे दूसरे धर्मों से नफरत की जाती है.
क्या पढ़ाया जाता है पहली से दसवीं क्लास तक के बच्चों को?
अमेरिकन सरकार के इस अध्ययन में पहली से दसवीं तक के बच्चों की 100 किताबों का निरीक्षण किया गया था. 37 पब्लिक स्कूलों के 277 स्टूडेंट्स, टीचर्स के इंटरव्यू हुए. साथ ही साथ 19 मदरसों में 226 स्टूडेंट्स और टीचर्स से भी बात की गई.
रिपोर्ट में सामने आया कि सभी अल्पसंख्यक खास तौर पर हिंदुओं को पाकिस्तान में बहुत गलत तरह से दिखाया जा रहा है. ईसाई समुदाय के लोगों के लिए भी गलत बातें लिखी हैं, लेकिन हिंदुओं को दुश्मन के तौर पर दिखाया गया है.
किताबों में अल्पसंख्यकों को कमतर दर्जे का या फिर दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है. बच्चों को ये पढ़ाया जाता है कि पाकिस्तानी मुसलमानों द्वारा अन्य धर्मों के नागरिकों को कम अधिकार दिए गए हैं, लेकिन उनके लिए भी उन्हें मुसलमानों का शुक्रगुजार होना चाहिए. ये सोचने वाली बात है कि कैसे इतनी कम उम्र में बच्चों को ये सब सिखाया जाता था.
कक्षा चौथी की एक बुक में लिखा था, 'एंटी-इस्लामिक ताकतें हमेशा दुनिया से इस्लाम का राज खत्म करने की कोशिश करती हैं. इससे इस्लाम की मौजूदगी पर ही खतरा मंडरा रहा है. पाकिस्तान और इस्लाम का बचाव बहुत जरूरी है.' ये किताब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की थी जो पाकिस्तान का सबसे ज्यादा आबादी वाला इलाका है.
इन किताबों में हिंदुओं, सिखों या ईसाइयों द्वारा किए गए अच्छे कामों का तो जिक्र ही नहीं. मतलब अगर कोई अल्पसंख्यक बच्चा इन स्कूलों में पढ़ रहा है तो उसे अपने धर्मों के द्वारा किए गए अच्छे कामों की ही जानकारी नहीं होगी.
हिंदुओं के बारे में लिखी बेहद निराशाजनक बातें-
रिपोर्ट के अनुसार हिंदुओं को हमेशा कट्टर बताया गया था साथ ही उन्हें इस्लाम का दुश्मन कहा जाता है. रिपोर्ट बताती है कि बच्चों के सिलेबस में इस बात को शामिल किया गया है कि हिंदुओं का समाज कट्टर, क्रूर और नाइंसाफी से भरा हुआ है जब्कि इस्लाम हमेशा भाईचारे और अमन की बात करता है. और भाईचारे की सोच भी हिंदुओं के गले नहीं उतरती.
उन किताबों में ईसाई समुदाय के बारे में ज्यादा नहीं लिखा गया है, बस इतनी जानकारी कि बच्चों को पता चल जाए कि ऐसा कोई भी है. ये इसलिए गलत है क्योंकि ईसाई समुदाय पाकिस्तान का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है.
पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या 1% है और ईसाइयों की 2%. बाकी कुछ सिख और बौद्ध धर्म के लोग भी पाकिस्तान में रहते हैं. रिसर्च में ये भी सामने आया कि किताबों में ऐसा लिखा हुआ था कि पाकिस्तान का अस्तित्व हमेशा से खतरे में है. अधिकतर किताबों में इस्लाम की बढ़ाई और अन्य अल्पसंख्यकों की बुराई दिखाई गई है.
कब से शुरू हुआ किताबों का इस्लामीकरण?
किताबों का इस्लामीकरण रिपोर्ट के अनुसार जनरल जिया उल हक के समय से शुरू हुआ जो अपने राज को स्थापित करने के लिए कट्टर इस्लाम की वकालत करते थे. 1970 के दशक से पाकिस्तान एकदम हिंदू विरोधी होता चला गया. हालांकि, 2006 में ये मुहिम जरूर शुरू हुई थी कि किताबों को बदला जाए, लेकिन फिर भी कुछ हुआ नहीं क्योंकि इस्लामिक कट्टर समाज और पाकिस्तान का राइट विंग इसकी इजाजत नहीं दे रहा था और उसके बाद सरकार ने भी उसका कोई हल नहीं निकाला.
1947 में पाकिस्तान के बनने के साथ-साथ ये कहा गया था कि वहां अल्पसंख्यक भी पूरे अधिकारों के साथ जी सकेंगे, लेकिन तीन जंग जो तीनों ही भारत के साथ हुई हैं उसके बाद पाकिस्तान इतना कट्टर होता चला गया कि वहां के लोग अब आतंकवादियों को पनाह देने से भी बाज नहीं आते.
अल्पसंख्यकों को भी पढ़ाया जा रहा इस्लामिक कट्टरपंथ
इस रिसर्च में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई थी. वो कहा गया था कि न सिर्फ मुसलमान बच्चों को बल्कि हिंदुओं और ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों को भी पाकिस्तानी समाज में यही पढ़ाया जा रहा था कि इस्लाम कितना बेहतर है. ये तो पूरी तरह पाकिस्तानी संविधान के ही खिलाफ है जो कहता है कि किसी भी विद्यार्थी को धर्म के आधार पर शिक्षा नहीं मिलनी चाहिए.
रिपोर्ट में सिर्फ यही नहीं सामने आया था. बल्कि पाकिस्तान में तो शिक्षकों की सोच भी वैसी ही है. कट्टर. वहां के शिक्षक भी असहिष्णुता का पाठ ही पढ़ाते हैं. इसमें कोई दोराय नहीं कि अगर शिक्षक ऐसे होंगे तो बच्चे भी ऐसे ही होंगे. 2011 की ही Pew Research Center study के अनुसार पाकिस्तान दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा असहिष्णु देश है.
तो क्या इसीलिए पाकिस्तान में फैली है इतनी नफरत?
इस सवाल का जवाब अब शायद आप समझ ही गए होंगे. भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई बच्चे सभी धर्म के आधार पर नहीं बल्कि सिलेबस के आधार पर शिक्षा लेते हैं. Middle East Media Research ( MEMRI ) की रिपोर्ट जो 2013 में आई थी वो भी कहती है कि पाकिस्तानी स्कूल बुक्स में लिखा गया है कि जिहाद के नाम पर हिंदु, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों का कत्ल भी मंजूर है.
पाकिस्तानी मंत्री कहते हैं कि वहां अल्पसंख्यकों को बेहतर तरीके से रखा जाता है, लेकिन जितनी भी रिपोर्ट्स सामने आई हैं वो सभी पाकिस्तान के खिलाफ ही हैं और इस बात का समर्थन करती हैं कि पाकिस्तान में शुरू से ही बच्चों को नफरत सिखाई जाती है.
कोई धर्म या समुदाय सुरक्षित कब माना जाता है? इस सवाल का उत्तर सभी जानते हैं लेकिन वे अपने-अपने तरीके से देना चाहेंगे। इसका एक जवाब यह हो सकता है कि यदि आपके धर्म का कोई राष्ट्र नहीं है तो आप इंतजार कीजिए अपने अस्तित्व को खोने का।
दूसरा जवाब यह हो सकता है कि यदि आपके धर्म के लोगों की जन्मदर कम होती जा रही है तो निश्चित ही आपके पास लड़ने के लिए सैनिक नहीं होंगे।
तीसरा जवाब यह है कि यदि आपका धर्म आपको अहिंसा और सहिष्णुता सिखा रहा है तो निश्चित ही आप एक दिन खुद को घिरा हुआ पाएंगे।
इसका चौथा जवाब यह हो सकता है कि धर्म से बढ़कर है इंसानियत। खून-खराबे से कभी किसी को कुछ भी हासिल नहीं हुआ है।
इसका पांचवां जवाब यह हो सकता है कि जनसंख्या या राष्ट्र के होने से बढ़कर जरूरी है विकास और तकनीक में उक्त समुदाय का आगे होना।
इसका छठा जवाब आपके पास है। आप किसी भी जवाब को अपना जवाब बना सकते हैं। वामपंथियों के पास सभवत: और भी अद्भुत जवाब हो।
खैर...
दुनिया की आबादी लगभग 7 अरब से ज्यादा है जिसमें से 2.2 अरब ईसाई और सवा अरब मुसलमान हैं और लगभग इतने ही बौद्ध। पूरी दुनिया में ईसाई, मुस्लिम, यहूदी और बौद्ध राष्ट्र अस्तित्व में हैं। हालांकि प्रथम 2 ही धर्म की नीतियों के कारण उनका कई राष्ट्रों और क्षेत्रों पर दबदबा कायम है। उक्त धर्मों की छत्रछाया में कई जगहों पर अल्पसंख्यक अपना अस्तित्व खो चुके हैं या खो रहे हैं तो कुछ जगहों पर उनके अस्तित्व को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अलावा भी ऐसे कई मामले हैं जिसमें उक्त धर्मों के दखल न देने के बावजूद वे धर्म अपना अस्तित्व खो रहे हैं। हालांकि एक अनप्रैक्टिकल लेकिन कथित रूप से समझदार जवाब यह भी हो सकता है कि इसमें धर्मों का कोई रोल नहीं है और ये स्थानीय और आर्थिक समस्या से जुड़े मामले हैं।
एक जानकारी के मुताबिक पूरी दुनिया में अब मात्र 13.95 प्रतिशत हिन्दू ही बचे हैं। नेपाल कभी एक हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था लेकिन वामपंथ के वर्चस्व के बाद अब वह भी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। कभी दुनिया के आधे हिस्से पर हिन्दुओं का शासन हुआ करता था, लेकिन आज कहीं भी उनका शासन नहीं है। अब वे एक ऐसे देश में रहते हैं, जहां के कई हिस्सों से ही उन्हें बेदखल किए जाने का क्रम जारी है, साथ ही उन्हीं के उप संप्रदायों को गैरहिन्दू घोषित कर उन्हें आपस में बांटे जाने की साजिश भी जारी है। अब भारत में भी हिन्दू जाति कई क्षेत्रों में अपना अस्तित्व बचाने में लगी हुई है। इसके कई कारण हैं क्योंकि जरूरी नहीं है कि यह एक धार्मिक समस्या ही हो, लेकिन इससे इककार भी नहीं किया जा सकता। आप तर्क द्वारा इसे धार्मिक समस्या से अलग कर सकते हैं।
ऐसे समय में जबकि एक ओर चर्च ने विश्व में ईसाईकरण का बिगुल बजा रखा है तो दूसरी ओर सुन्नी इस्लाम ने आतंक और कट्टरपंथ के जरिए अपने वर्चस्व और कब्जे वाले क्षेत्र से दूसरे धर्मों और समाज के लोगों को खदेड़ना शुरू कर दिया है। ऐसे में भारत में हिन्दू खुद को असुरक्षित महसूस न करने लगे तो क्या करें? यह बात संभवत: ऐसे हिन्दू भी स्वीकार नहीं करेंगे जिनका झुकाव वामपंथ और कथित रूप से कही जाने वाली धर्मनिरपेक्ष पार्टियों की ओर ज्यादा है। लेकिन इस सच से हिन्दू सदियों से ही मुंह चुराता रहा है जिसके परिणाम समय-समय पर देखने को भी मिलते रहे हैं। इस समस्या के प्रति शुतुर्गमुर्ग बनी भारत की राजनीति निश्चित ही हिन्दुओं के लिए पिछले 100 साल में घातक सिद्ध हुई है और अब भी यह घातक ही सिद्ध हो रही है। आओ जानते हैं कि भारत और विश्व में हिन्दुओं की क्या स्थिति है।
पाकिस्तान में हिन्दू :
19वीं सदी के प्रारंभ से 1948 तक भारत का विभाजन चलता रहा। पूर्व के विभाजन न भी मानें तो 1947 के विभाजन ने उस काल की 30 करोड़ आबादी वाले भारत में 1.50 करोड़ हिन्दुओं को दर-ब-दर कर दिया। 75 हजार से 1 लाख महिलाओं का बलात्कार या हत्या के लिए अपहरण हुआ। हजारों बच्चों को कत्ल कर दिया गया। विभाजन की सबसे ज्यादा त्रासदी सिन्धी, पंजाबी और बंगालियों ने झेली। 1947 में अंग्रेजी शासन से आजाद होने के बाद करीब 1.50 करोड़ लोग अपनी जड़ों से उखड़ गए। महीनों तक चले दंगों में कम से कम 10 लाख लोगों की मौत हुई। हिंसा, भारी उपद्रव और अव्यवस्था के बीच पाकिस्तान से सिख और हिन्दू भारत की ओर भागे।
वर्तमान में धर्म के नाम पर अलग हुए पाकिस्तान की 20 करोड़ की आबादी में अब मात्र 1.6 फीसदी हिन्दू ही बचे हैं जबकि आजादी के समय कभी 22 प्रतिशत होते थे। 1941 की जनगणना के मुताबिक भारत में तब हिन्दुओं की संख्या 29.4 करोड़, मुस्लिम 4.3 करोड़ और बाकी लोग दूसरे धर्मों के थे। पाकिस्तान की जनगणना (1951) के मुताबिक पाकिस्तान की कुल आबादी में 22 फीसदी हिन्दू थे, जो 1998 की जनगणना में घटकर 1.6 फीसदी रह गए हैं। 1965 से अब तक लाखों पाकिस्तानी हिन्दुओं ने भारत की तरफ पलायन किया है। देखा जाए तो जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं का प्रतिशत 29.63 से घटकर 28.44 रह गया है।
सिन्धी और पंजाबी हिन्दुओं ने तो अपना प्रांत ही खो दिया। क्या इस पर कभी किसी ने सोचा? सिन्धी भाषा और संस्कृति लुप्त हो रही है और जो सिन्धी मुसलमान है अब वे ऊर्दू बोलते हैं, जो उनकी मात्र भाषा नहीं है। देश की आजादी के 70 साल बाद भी सिन्धी हिन्दू समाज विस्थापितों की तरह जीवन यापन कर रहा है।
अफगानिस्तान में हिन्दू :
अफगानिस्तान पहले एक हिन्दू राष्ट्र था। बाद में बौद्ध वर्चस्व वाला राष्ट्र बना और इसके बाद खलिफाओं के नेतृत्व में इसका इस्लामिकरण हुआ। पठान पख्तून होते हैं। पठान को पहले पक्ता कहा जाता था। ऋग्वेद के चौथे खंड के 44वें श्लोक में भी पख्तूनों का वर्णन 'पक्त्याकय' नाम से मिलता है। इसी तरह तीसरे खंड का 91वें श्लोक आफरीदी कबीले का जिक्र 'आपर्यतय' के नाम से करता है। दरअसल, अंग्रेजी शासन में पिंडारियों के रूप में जो अंग्रेजों से लड़े, वे विशेषकर पठान और जाट ही थे। पठान जाट समुदाय का ही एक वर्ग है।
कभी हिंदू और सिख अफगान समाज का समृद्ध तबका हुआ करता था और देश में उनकी आबादी लगभग 25 प्रतिशत से ज्यादा हुआ करती थी। अब मुट्ठीभर ही बचे हैं। 1992 में काबुल में तख्तापलट के वक्त तक काबुल में कभी 2 लाख 20 हजार हिंदू और सिख परिवार थे। अब 220 रह गए हैं। पूरे अफगानिस्तान में अब लगभग 1350 हिन्दू परिवार रही बचे हैं। कभी ये पूरे अफगानिस्तान में फैले हुए थे लेकिन अब बस नांगरहार, गजनी और काबुल के आसपास ही बचे हैं और वहां से सुरक्षित जगह निकलने का प्रयास कर रहे हैं। अफगान सरकार, यूएनओ और अंतरराष्ट्रीय वर्ग ने कभी इन्हें बचाने या इन अफगानी हिन्दू औ सिखों के अधिकार की बात कभी नहीं की जिसके चलते इनका अस्तित्व लगभग खत्म होने की कगार पर ही है। हालांकि आज जो अफगानी मुस्लिम हैं वे कभी हिन्दू, सिख या बौद्ध ही हुआ करते थे।
उक्त धर्मों की छत्रछाया में कई जगहों पर अल्पसंख्यक अपना अस्तित्व खो चुके हैं या खो रहे हैं तो कुछ जगहों पर उनके अस्तित्व को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अलावा भी ऐसे कई मामले हैं जिसमें उक्त धर्मों के दखल न देने के बावजूद वे धर्म अपना अस्तित्व खो रहे हैं।
1. पारसी धर्म : पारसी समुदाय मूलत: ईरान का रहने वाला है। ईरान कभी पारसी राष्ट्र हुआ करता था। पारसियों में कई महान राजा, सम्राट और धर्मदूत हुए हैं। लेकिन चूंकि पारसी अब अपना राष्ट्र ही खो चुके हैं तो उसके साथ उनका अधिकतर इतिहास भी खो चुका है। पारसी धर्म ईरान का प्राचीन धर्म है। ईरान के बाहर मिथरेज्म के रूप में रोमन साम्राज्य और ब्रिटेन के विशाल क्षेत्रों में इसका प्रचार-प्रसार हुआ। इसे आर्यों की एक शाखा माना जाता है।
6ठी सदी के पूर्व तक पारसी समुदाय के लोग ईरान में ही रहते थे। 7वीं सदी में खलीफाओं के नेतृत्व में इस्लामिक क्रांति होने के बाद उनके बुरे दिन शुरू हुए। 8वीं शताब्दी में फारस अर्थात ईरान में सख्ती से इस्लामिक कानून लागू किया जाने लगा जिसके चलते बड़े स्तर पर धर्मांतरण और लोगों को सजाएं दी जाने लगीं। ऐसे में लाखों की संख्या में पारसी समुदाय के लोग पूरब की ओर पलायन कर गए।
कहा जाता है कि इस्लामिक अत्याचार से त्रस्त होकर पारसियों का पहला समूह लगभग 766 ईस्वी में दीव (दमण और दीव) पहुंचा। दीव से वे गुजरात में बस गए। गुजरात से कुछ लोग मुंबई में बस गए। भारत में प्रथम पारसी बस्ती का प्रमाण संजाण (सूरत निकट) का अग्नि स्तंभ है, जो अग्निपूजक पारसीधर्मियों ने बनाया। 1941 तक करीब 1.50 लाख की आबादी वाला पारसी समुदाय वर्तमान में 57,264 पर सिमट गया है।
2. यहूदी धर्म : आज से करीब 4,000 साल पुराना यहूदी धर्म वर्तमान में इसराइल का राजधर्म है। एक समय था, जब यहूदी मिस्र से लेकर इसराइल तक संपूर्ण अरब में निवास करते थे। कहते हैं कि मिस्र की नील नदी से लेकर इराक की दजला-फरात नदी के बीच आरंभ हुए यहूदी धर्म का इसराइल सहित अरब के अधिकांश हिस्सों पर राज था। ऐसा माना जाता है कि पहले यहूदी मिस्र के बहुदेववादी इजिप्ट धर्म के राजा फराओ के शासन के अधीन रहते थे। बाद में मूसा के नेतृत्व में वे इसराइल आ गए। ईसा के 1,100 साल पहले जैकब की 12 संतानों के आधार पर अलग-अलग यहूदी कबीले बने थे, जो 2 गुटों में बंट गए। पहला जो 10 कबीलों का बना था, वह इसराइल कहलाया और दूसरा जो बाकी के 2 कबीलों से बना था, वह जुडाया कहलाया।
7वीं सदी में इस्लाम के आगाज के बाद यहूदियों की मुश्किलें और बढ़ गईं। तुर्क और मामलुक शासन के समय यहूदियों को इसराइल से पलायन करना पड़ा। अंतत: यहूदियों के हाथ से अपना राष्ट्र जाता रहा। मई 1948 में इसराइल को फिर से यहूदियों का स्वतंत्र राष्ट्र बनाया गया। दुनियाभर में इधर-उधर बिखरे यहूदी आकर इसराइली क्षेत्रों में बसने लगे। वर्तमान में अरबों और फिलिस्तीनियों के साथ कई युद्धों में उलझा हुआ है एकमात्र यहूदी राष्ट्र इसराइल। अब यहूदियों की संख्या दुनियाभर में 1.4 करोड़ के आसपास सिमट गई है। दुनिया की आबादी में उनकी हिस्सेदारी मात्र 0.20 प्रतिशत है। उल्लेखनीय है कि यहूदी धर्म से ही ईसाई और इस्लाम धर्म की उत्पत्ति मानी गई है।
3. यजीदी : यजीदी धर्म प्राचीन विश्व की प्राचीनतम धार्मिक परंपराओं में से एक है। यजीदियों की गणना के अनुसार अरब में यह परंपरा 6,763 वर्ष पुरानी है अर्थात ईसा के 4,748 वर्ष पूर्व यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों से पहले से यह परंपरा चली आ रही है। मान्यता के अनुसार यजीदी धर्म को हिन्दू धर्म की एक शाखा माना जाता है।
इराक में चरमपंथी संगठन आईएस के कारण अल्पसंख्यक यजीदी समुदाय के लोगों को अपना देश छोड़कर अन्य जगहों पर जाना पड़ा। अपने ही देश को छोड़कर जाने वाले यजीदियों की संख्या करीब 10 लाख बताई जाती है, जबकि इससे ज्यादा इराक में ही दर- बदर होकर घूम रहे हैं या फिर मारे गए हैं। आईएस के लड़ाकों ने सैकड़ों लोगों की हत्या की और उनके सिर कलम कर दिए। सैकड़ों महिलाओं और लड़कियों को वे अपने साथ ले गए और उन्हें अपना सेक्स गुलाम बनाकर रखा है। यजीदी समुदाय ने अपनी आंखों के सामने उनके ही समुदाय के लोगों का जनसंहार देखा है। अब वे शरणार्थी शिविरों में रहकर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं।
4. जैन धर्म : जैन धर्म भारत का सबसे प्राचीन धर्म है। आर्यों के काल में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन भी मिलता है। महाभारतकाल में इस धर्म के प्रमुख नेमिनाथ थे। भगवान बुद्ध के अवतरण के पूर्व तक जैन धर्म देश का दूसरा सबसे बड़ा धर्म था। अशोक के अभिलेखों से यह पता चलता है कि उनके समय में मगध में जैन धर्म प्रमुख धर्म था लेकिन धीरे-धीरे इस धर्म के मानने वालों की संख्या घटते गई। इसके पीछे कई कारण रहे हैं। इस्लामिक काल के दौरान जब दमन चक्र प्रारंभ हुआ तो सबसे ज्यादा जैन और बौद्ध मंदिरों को निशाना बनाया गया था, क्योंकि उक्त धर्म के भारत में सबसे ज्यादा और सुंदर मंदिर हुआ करते थे।
मुगल शासनकाल में हिन्दू, जैन और बौद्ध मंदिरों को आक्रमणकारी मुस्लिमों ने निशाना बनाकर लगभग 70 फीसदी मंदिरों का नामोनिशान मिटा दिया। दहशत के माहौल में धीरे-धीरे जैनियों के मठ टूटने एवं बिखरने लगे लेकिन फिर भी जैन धर्म को समाज के लोगों ने संगठित होकर बचाए रखा। जैन धर्म के लोगों का भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज को विकसित करने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। लेकिन दुख की बात है कि आज उक्त धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या देशभर में लगभग 42 से 43 लाख के आसपास ही है।
5. सिख : 14वीं सदी के मध्य में प्रकट हुआ सिख धर्म भारत का प्रमुख धर्म है। सिख धर्म के कारण ही उत्तर भारतीय हिन्दू जाति को अपने अस्तित्व को बचाए रखने में मदद मिली। पंजाब, सिख धर्म का प्रमुख क्षेत्र है लेकिन विभाजन करने वालों ने पंजाब के 2 टूकड़े करके इस धर्म को धर्मसंकट में डाल दिया। वर्तमान में सिखों की आबादी दुनिया में 2.3 करोड़ के आसपास है।
कहते हैं कि सिख धर्म के गुरु, गुरु नानकदेवजी से ही हिन्दुस्तान को पहली बार 'हिन्दुस्तान' नाम मिला। लगभग 1526 में बाबर द्वारा भारत पर हमला करने के बाद गुरु नानकदेवजी ने कुछ शब्द कहे थे तो उन शब्दों में पहली बार 'हिन्दुस्तान' शब्द का उच्चारण हुआ था- 'खुरासान खसमाना कीआ, हिन्दुस्तान डराईआ।'
6. बहाई धर्म : इस्लामिक कट्टरता के दौर में लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाने के लिए ईरान में बहाई धर्म की स्थापना हुई। बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह ने 18वीं-19वीं शताब्दी में ऐसे समय में, जब मानवता की दशा सोचनीय थी, अपने राजसी परिवार के सुखों व ऐशो-आराम का त्याग कर अपने जीवन में घोर कठिनाइयां सहन कीं और मानवता नवजीवन में संचारित हो सके तथा एकता की राह में आगे बढ़ सके, इसके लिए प्रयास किए, लेकिन उनका समाज कट्टरता का शिकार हो गया। अब बहाई समुदाय के लोग भारत में ही रहते हैं।
1844 में जन्मे बहाई धर्म पर प्रारंभ से ही ईरान में हिंसा व बहाइयों पर अत्याचार होता आ रहा है। सन् 1979 में जब से ईरान में इस्लामिक गणराज्य की स्थापना हुई है, तब से बहाइयों पर हमले तेजी से बढ़े हैं। 1979 और 1988 के बीच करीब 200 बहाई मारे गए, उनकी हत्या कर दी गई या फिर अचानक सरकार द्वारा लापता करार कर दिए गए। लगातार हुए दमनचक्र के चलते अधिकतर बहाइयों ने भारत में शरण ले ली और अब वे यहीं के नागरिक कहलाते हैं। पारसी के बाद बहाई भी ईरानी मूल के हैं। दिल्ली का लोटस टेम्पल बहाई धर्म के विश्व में स्थित 7 मंदिरों में से एक है। आज लगभग 20 लाख बहाई भारत देश की महान विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
7. अहमदिया धर्म : मुसलमानों को कट्टरता के दौर से बाहर निकालने के उद्देश्य से ही अहमदिया संप्रदाय की स्थापना 1889 ई. में पंजाब के गुरदासपुर के कादिया नामक स्थान पर हुई थी। अहमदिया आंदोलन की स्थापना मिर्जा गुलाम अहमद ने की थी। मिर्जा ग़ुलाम अहमद ने अपनी पुस्तक 'बराहीन-ए-अहमदिया' में अपने सिद्धांतों की व्याख्या की है।
विभाजन के बाद अधिकतर अहमदिया पाकिस्तान को अपना मुल्क मानकर वहां चले गए, लेकिन विभाजन के बाद से ही वहां उन पर जुल्म और अत्याचार होने लगे, जो धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंच गए। इस्लामिक विद्वान इस संप्रदाय के लोगों को मुसलमान नहीं मानते। पाकिस्तान में अब इन लोगों का अस्तित्व खतरे में है।
देश के दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय अहमदिया को कानूनी रूप से गैरमुस्लिम करार दिया गया है। उन्हें न केवल काफिर करार दिया गया बल्कि उनसे उनके सारे नागरिक अधिकार भी छीन लिए गए हैं। वे अपनी इबादतगाहों को मस्जिद भी नहीं कह सकते। 28 मई 2010 को जुम्मे की नमाज के दौरान अल्पसंख्यक अहमदिया संप्रदाय की 2 मस्जिदों पर एकसाथ हमले हुए। इस हमले में 82 लोग मारे गए। इसके बाद उन पर लगातार हमले होते रहे हैं। वर्तमान में कुछ अहमदियों का समूह पलायन करके चीन की सीमा पर शरणार्थी बनकर जीवन जी रहा है और बाकी अपने अस्तित्व को खत्म होते देख रहे हैं। पाकिस्तान में लगभग 25 लाख से ज्यादा अहमदिया रहते हैं।
8. दाऊदी बोहरा धर्म : बोहरा समुदाय के 2 पंथ हैं- एक दाऊदी बोहरा और दूसरा सुलेमानी बोहरा। दाऊदी भारत में रहते हैं, तो सुलेमानी यमन में। दाऊदी बोहरा वो कहलाता है, जो इस्माइली शिया फिकह को मानता है और इसी विश्वास पर कायम है। अंतर यह है कि दाऊदी बोहरा 21 इमामों को मानते हैं। बोहरा भारत के पश्चिमी क्षेत्र खासकर गुजरात और महाराष्ट्र में पाए जाते हैं जबकि पाकिस्तान और यमन में भी ये मौजूद हैं।
उल्लेखनीय है कि पूरी दुनिया में बोहरा समाज के नागरिकों की संख्या लगभग 12 लाख 60 हजार है। इनमें से 10 लाख 25 हजार नागरिक भारत में निवास करते हैं। हालांकि दाऊदी बोहरा समाज पर अस्तित्व का कोई संकट नहीं है लेकिन विश्व में उनकी जनसंख्या कम है और वे भारत में सबसे ज्यादा महफूज है।
9. शिंतो : यह धर्म जापान में पाया जाता है, हालांकि इसे मानने वालों की संख्या अब सिर्फ 40 लाख के आसपास है। जापान के शिंतो धर्म की ज्यादातर बातें बौद्ध धर्म से ली गई थीं फिर भी इस धर्म ने अपनी एक अलग पहचान कायम की थी। इस धर्म की मान्यता थी कि जापान का राजपरिवार सूर्य देवी 'अमातिरासु ओमिकामी' से उत्पन्न हुआ है। उक्त देवी शक्ति का वास नदियों, पहाड़ों, चट्टानों, वृक्षों कुछ पशुओं तथा विशेषत: सूर्य और चन्द्रमा आदि किसी में भी हो सकता है।
10. अफ्रीका के पारंपरिक धर्म : अफ्रीका में कई पारंपरिक धर्म अस्तित्व में हैं लेकिन अब इस्लामिक कट्टरता और ईसाई वर्चस्व के दौर के चलते उनका अस्तित्व लगभग खत्म होता जा रहा है। विश्व की आबादी में इस तरह के पृथक धर्म की आबादी लगभग 5.59 फीसदी है अर्थात इनकी संख्या 40 करोड़ के आसपास है, जो कि एक बड़ा आंकड़ा है। इन्हीं धर्मों में सबसे ज्यादा प्रचलित है एक धर्म वुडू।
इसे पूरे अफ्रीका का धर्म माना जा सकता है, लेकिन कैरिबीय द्वीप समूह में आज भी यह जादू की धार्मिक परंपरा जिंदा है। इसे यहां वूडू कहा जाता है। हाल-फिलहाल बनीन देश का उइदा गांव वूडू बहुल क्षेत्र है। यहां सबसे बड़ा वूडू मंदिर है, जहां विचित्र देवताओं के साथ रखी हैं जादू-टोने की वस्तुएं। धन-धान्य, व्यापार और प्रेम में सफलता की कामना लिए अफ्रीका के कोने-कोने से यहां लोग आते हैं। नाम कुछ भी हो, पर इसे आप आदिम धर्म कह सकते हैं। इसे लगभग 6,000 वर्ष से भी ज्यादा पुराना धर्म माना जाता है। ईसाई और इस्लाम धर्म के प्रचार-प्रसार के बाद इसके मानने वालों की संख्या घटती गई और आज यह पश्चिम अफ्रीका के कुछ इलाकों में ही सिमटकर रह गया है।
11. हिन्दू : एक जानकारी के मुताबिक पूरी दुनिया में अब मात्र 13.95 प्रतिशत हिन्दू ही बचे हैं। नेपाल कभी एक हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था लेकिन वामपंथ के वर्चस्व के बाद अब वह भी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। कभी दुनिया के आधे हिस्से पर हिन्दुओं का शासन हुआ करता था, लेकिन आज कहीं भी उनका शासन नहीं है। अब वे एक ऐसे देश में रहते हैं, जहां के कई हिस्सों से ही उन्हें बेदखल किए जाने का क्रम जारी है, साथ ही उन्हीं के उप संप्रदायों को गैर-हिन्दू घोषित कर उन्हें आपस में बांटे जाने का काम भी जारी है। अब भारत में भी यह जाति कई क्षेत्रों में अपना अस्तित्व बचाने में लगी हुई है।
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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