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Thursday, August 8, 2019

चर्चा शायद आपको न मालूम हो

 चर्चा शायद आपको न मालूम हो

 

 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
वैज्ञानिक अधिकारी, भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
 फोन : (नि.) 022 2754 9553  (का) 022 25591154   
मो.  09969680093
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,  फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet

किसी का प्रश्न है कि फिर इतने शास्त्र क्यो तंत्र पर।

मैं कहूंगा कि क्योकि यह शक्ति को बांधकर अपने वश में करने का सबसे जल्दी उपलब्ध मार्ग है।

किसी दिन अचानक मन्त्र जप करते करते आपके अंदर आवेग आता है। मन मस्तिष्क सब सुन्न सा हो जाता है। हाथ पैर भीचने से लगते है। मन मे प्राण में हर तरफ यह विचार आने लगता है कि मैं ही ब्रह्म हूँ। शिव हूँ विष्णु हूँ इत्यादि साथ उन देवो की भांति ऐसा लगता है मुख खुल गया। उंगली में चक्र आ गया। हाथ मे त्रिशूल आ गया। वैगेरह वगैरह। और इसके साथ कुछ अनुभूतिया भी होने लगती है। जैसे मेरा आकार बढ़ने लगा है। बोली भी बदल जाती है। मुख से निकलने लगता है कि मैं यह हूँ वह हूँ।।

फिर धीरे धीरे सब शांत हो जाता है।

शिव लोक मिलेगा। मोक्ष नही। शिव एक पद मात्र है।

हर देव के तन्त्र है।

जिससे वह लोके मिल जाता है।

पर मोक्ष निराकार से ही मिलता है। क्योकि तन्त्र साकार है। सगुण है इसीलिए।

वाम मार्गी अहिंसक मार्ग। भक्ति मार्ग है समर्पण का दासत्व भाव का साकार का।

प्रश्न है पर आप तो साकार पर ज्यादा दबाब देते है

दक्षिण मार्ग हिंसक और शक्ति को वश में करने का।

कॉल मार्ग सबका बाप।

क्योकि इसमें आनन्द है। अहंकार की संभावना कम है। दासत्व भाव है। समर्पण है।

हॉ यही है। पर इसके पहले दर्शन जरूरी है या निराकार का कोई अनुभव।

प्रश्न है कि तंत्र में  इछुक साधक को किस मार्ग को चुनना चाइये

सर्वश्रेष्ठ है और सर्वहित है। भक्तिमार्ग। निसमे आनन्द के जीवन मूल्यों का पता चलता है। प्रभु खुद सहायता करते है।

फिर भी आपसे पूछता है एक तंत्र साधक को तंत्र के लिए किस मार्ग का चयन करना चाहिये। बताये सर आपका एक अच्छे मार्गदर्शक भी है ज्ञानी के साथ साथ।

आपसे बोला पहले लेख पढ़ो। mmstm करो। फिर जो अनुभव हो बात करो। हर काम मे जल्दबाजी ठीक नही। आपको तंत्र मार्ग सूट करेगा कि नहीं। यह पता चल जायेगा। वैसे सात्विक और अहिंसंक मार्ग मैं सर्वश्रेष्ठ मानता हूं। अघोर मार्ग समाज से कटा हुआ और अलग है।

जी सर मैं जरूर करूँगा

ढोंग से ही सही। यदि अदीक्षित हो तो जबरदस्ती नाम जप मन्त्र जप करते रहो। पाठ इत्यादि करते रहो। एक नियम बना और पालन करो।

औषधि मरीज को जबरदस्ती देनी पड़ती है। वह फायदा कर जाती है। प्रभु का नाम जप भी औषधि है।


क्रोध को प्रेम से। घृणा को स्नेह से।

पाप को पुण्य से।अंधेरे को प्रकाश से।

लूले को हाथ से। अकेले को साथ से।

सूखे को सींच के। बैरी को भींच के।

जीतना चाहिए। जीतना चाहिए।


सोने को ताप के, शत्रु को भाप के।

अज्ञान को ज्ञान से, स्वामी को प्राण से।

भूखे को अन्न से, प्यासे को जल से।

अकेले को साथ से, हाथों में हाथ से।

जीतना चाहिए, जीतना चाहिए।


पर्व को उल्लास से, प्रेम को विश्वास से।

सुख दुःख बांट के, हठी को डांट के।

लक्ष्य को जान कर, मार्ग पहिचान कर।

गुरु में विस्वास कर, जीवन में आस कर।

जीतना चाहिए, जीतना चाहिए।

लेख को पढ़कर, कविता को लिख कर।

नीति को प्यार कर, अनीति प्रहार कर।।

प्रभु को जान कर, सनातन को मान कर।

आहट को भानकर, गीत को गानकर।।

जीतना चाहिए, जीतना चाहिए।।


इन पंक्तियों में पर्व के भी लेखन हैं।

कृष्ण के संदीपन। बचपन के। कबीर के रामानन्द। रविदास कबीर के गुरुभाई थे। अतः दोनो पूर्ण ज्ञानी थे। क्योकि दोनो ने साकार से निराकार की यात्रा की। जो सनातन कहता है। ईश एक है। उस तक जाने के मार्ग अनन्त। महावीर स्वामी तो गुरु शिष्य परम्परा की जैन दर्शन की पराकाष्ठा थे। वे 24 वे तीर्थयनकर थे। यानी 24 वे शिष्य जो जिन हुए। मतलब जिनकी आराधना से निर्वाण मिल सकता है। बुध्द के दो गुरु थे। दूसरे सनातनी थे। जिनका नाम रुद्ररामदतपुत्त था। पहले अलाराकलाम थे। दूसरे गुरु ने उनको विपश्यना यानी श्वासोश्वास करना सिखाया था। जेसस ने बौद्ध लामाओं से शिक्षा ली थी।

बाकी अपूर्ण ज्ञानी क्योकि सिर्फ एक ही मार्ग की बात की।  क्योकि सनातन कहे पूरा सर्किल सब विधि एक ईश तक जाती है ।

महावीर जैन परम्परा जो सनातन की गुरु शिष्य शाखा। अनीश्वरवादी पर देवो की तरह जिन की पूजा से उद्धार। बौध्द अनीश्वर पर सारे सिद्दांत सनाटन के अष्टकर्म तो पातञ्जलि के। अप्रिमितताये गीता से और उपनिषद से। हा भाषा अलग पाली में सँस्कृत नही।

जेसस वेरी नैरो सिर्फ मेरे पीछे चलो। मोहहमद और नैरो मेरे पीछे आओ नही तो कत्ल हो जाओ।

ग्रुप में कोई विवादास्पक बहस से क्या मिलेगा। सिर्फ ऊर्जा खर्च। ग्रुप खचड़ा बन जायेगा।

क्या मिलेगा बहस से मैं ओशो को व्यक्तिगत रूप से पापी मानता हूँ। महाज्ञानी पापी। तुम उसको महाज्ञानी। इसका नतीजा क्या होगा। न मैं समझा पाऊंगा न तुम समझा पाओगे।

अतः निवेदन है ओशो पर चर्चा न की जाए। मेरी गलती थी। मैने कुछ तर्क जो फेसबुक पर दिए थे। वह यही पर पोस्ट कर दिए।

विपुल जी आपने लिखा है *महाज्ञानी पापी* इसका तात्पर्य???????‬

मतलब ज्ञान था। पर मनगुरु की वाणी से भटक कर सामाजिक पाप कर डाले।

वैसे आपसे अनुरोध है कि पहले ब्लाग पर जाकर कुछ लेख पढ़ ले। जिससे आपके प्रश्न और जिज्ञासाएं शांत हो जाएगी।

साथ ही यदि आप अदीक्षित है तो mmstm यानी सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि अपने घर पर करे। ताकि आपको ईश शक्ति का अनुभव हो सके।

जय माँ काली। जय गुरुदेव।

*सच्चे संत हमेशा यही कहेंगे*

*कि मेरी पूजा मत करना*

*नाही ही मुझसे कूछ ऊम्मीद लगा के रखना की मै कोई चमत्कार करुंगा*...

*दु:ख पैदा तुमने किया है और ऊसे दुर तुम्हे ही करना पडेगा*

*मै सिर्फ तुम्हे मार्ग बता सकता हु क्योंकी मै चला हु ऊस मार्ग पर*

*लेकिन ऊस रास्ते तुम्हे स्वयम ही चलना पडेगा*

सच्ची प्यास है जो लिए, ग्रुप में वो रुक पाय।

जैसे कच्चा हो घडा, जल भरते फुट जाय।।

जिस प्रकार एक चित्र को पूरा होने के लिए। बगीचे को सुंदर होने के लिए रंगों की और विभिन्न पुष्पों की आवश्यकता होती है। फल को निकलने के लिए पौधे को एक निश्चित समय के बाद फलित होने के लिए तैयार होना पड़ता है। जन्म के पूर्व नवमास कष्ट भोगने पड़ते है। कुछ इसी प्रकार ईश कृपा हेतु, गुरू प्राप्ति हेतु एक स्तर तक प्रयास कर जाना होता है। तब तक मनुष्य यह सोंचता है यह सब मैं कर रहा हूँ यह मेरा पुरुषार्थ  है। पर बाद में मालूम पड़ता है। नहीं यह मेरा भरम था। कर्त्ता करण और कारक सिर्फ ईश है। प्रश्न वो ही निर्मित करता है। उत्तर भी वो ही देता है। अंक भी वोही देता है।

अतः कभी भी जल्दबाजी न करे। जब समय आएगा सब हो जाता है। आपके हाथ सिर्फ इतना है कि कर्म रूपी शक्ति को किस दिशा में ले जाये। राम नाम की तरफ या जगत काम की तरफ।

वास्तव में ये भी तब तक है जब तक उसका भान नही होता है। जब हो जाता है तो हर कर्म उसी का हर मर्म और धर्म उसी का लगता है। मैं तो बस निमित्त मात्र।

अब यदि उत्थान चाहते हो तो राम नाम लो। मतलब मन्त्र जप करो सतत। निरन्तर। अखण्ड।

मोक्ष है निराकार कृष्ण यानि सुप्त ऊर्जा में विलीन होना जिसे अल्लह गाड कहते है। इसी को निर्वाण कहते है।

साकार कृष्ण यानि विष्णु लोक की यात्रा। मोक्ष नही। लोको में जाना परम् पद हैं।

अति सुंदर और मौलिक प्रश्न है।

जब प्रथम मानव बना तो ईश के नजदीक था। प्रभु ने उसे कर्म की शक्ति दी। पर सोंच उसको अपनी भी दी। कर्म फल निर्धारित हुए। अब मनुष्य का मन जगत की ओर भागा। उस समय काम सर्वशक्तिमान जगत में था। क्योकि जनसंख्या बढ़ानी थी। उसी काम के उद्देग में मनुष्य लिप्त होता गया। यह कोई पाप न था। पर इसके आनन्द हेतु मर्यादाएं तोड़कर स्त्री को दुःख पहुचकर लिप्त हो गया।

जो पाप हो गया। उसका कर्मफल मनुष्य को नीचे गिराता गया। बाद में सत्ता सुख की लालसा पैदा होने के बाद उससे और गलत कर्म करवाती गई। इस प्रकार मनुष्य गिरता गया।

इसी के आधार पर चारो युग विभाजित हुए। जैसे

सतयुग अच्छे लोग 75 से 100

द्वापर 75 से 50

त्रेता 50 से 25

कलियुग 25 से 0।

मनुष्य को जब नीचे श्रेणी में रहता है तो अहसास नही होता। पर जैसे जैसे उसकी बुद्धि शुद्ध होती जाती है उसकी सोंच और कर्म बदलते है। वह ईश के नजदीक आता जाता है। यहाँ एक बात समझो कर्म चाहे सत्व या दुर्गुणी दोनो की शक्ति ईश की है पर सोंच हमारी। यानी हमारे कर्मफल के अनुसार। जैसे जैसे सोंच सुधरी वैसे वैसे हर कार्य मे प्रभु दिखना आरम्भ। हमारी आंखों का पर्दा हटना चालू हुआ।

तुम यह समझ लो जगत में जो जितना भौतिक शक्तिशाली वह उतने अधिक पुनयकर्मो के बैलेंस से कम हो रहा है।

जो जितना कष्ट में वह अपने दुष्कर्मो को कम कर रहा है क्योंकि भोग रहा है।

क्या आप जानते है मुक्तानन्द के ऊपर श्री विष्णु तीर्थ जी महाराज ने शक्तिपात करदिया था।

गुरु नही ऐसी ही टाइमपास में।

भगवान क्या है? और है भी या नहीं है?

सर, पुरा विवरण बताए ,बड़ी जिज्ञासा है

मित्र ब्लाग पर 104 लेख जो मॉर्च से अब तक लिखे है। कुछ पढ़ लो तुम जो सोंच भी नही सकते वो उत्तर भी मिल जायेंगे।

शक्तिपात से क्या होता है

मित्र ब्लाग पर 104 लेख जो मॉर्च से अब तक लिखे है। कुछ पढ़ लो तुम जो सोंच भी नही सकते वो उत्तर भी मिल जायेंगे।

एक ही बात को कहां तक कितनी बार लिख सकते है।

Freedhyan.blogspot.com

इसकी आवश्यकता नही।

1- वो एक चीज जो हम पाना चाहते है उसके लिए और

2- वो एक चीज जो हम त्यागना चाहते हैं

उन दोनों के प्राप्ति और विषर्जन के लिए अपना पूरी क्षमता से प्रयास करें।


प्रयास साधनात्मक भी...व्यवहारिक भी...

नैतिक भी ...चारित्रिक भी...

आप लिंक के लेख पढ़ें। सबसे पहले ताकि आपकी परेशानियां दूर हो।

तन्द्रिल अवस्था मे लोकान्तर भ्रमण के सम्बन्ध मे मार्गदर्शन करने वाली कौई पुस्तक है ?

जी उजाले की ओर ब्रह्मांड के सभी लोको की यात्रा। स्वामी अमर द्वारा रचित। खोपड़ी आउट हो जाती है।

सर बुक की pdf बना लीजिए

इतना समय नही और न शौक़।

नही उनके लेख नही है। यह सब मेरे लेख है।

माथे पर भी बोहोत खुजली होती है अब तो‬‬

आप यह सब खुद करते है या दीक्षा ली है।

आज बंगलोर से 100 किमी दूर सिद्धार बेट्टा यानी सिद्ध पहाड़ी जो करीबन 3 किमी चढाई और उबड़ खाबड़ पत्थर का मार्ग है । उस पर जाने का सौभाग्य हो गया। कुछ डर रहा था। 110 किलो भार 58 पार की उम्र। पर देवी जी का नाम लेते हुए सकुशल वापिस।

कहते है इस पहाडी से 700 सन्तो ने निर्वाण प्राप्त किया।

आपको इस लेख में सब चक्रो का वर्णन मिल जाएगा।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/04/blog-post_2.html?m=0

आत्मज्ञान क्या है? बुद्धि में जगत के मिथ्यात्व का दृढ़ निश्चय हो जाना ही आत्मज्ञान है।

ध्यान दें, विचार में बड़ा बल है, जैसे आपका देखा गया स्वप्न, आपके ही विचारों से निर्मित है, आपका वर्तमान में देखा जा रहा जाग्रत रूपी स्वप्न भी आपके विचारों से ही निर्मित है। आपका विचार बदलते ही जैसे स्वप्न बदल जाता है, ऐसे ही कोई विचार आप दृढ़ता से पकड़ लें तो आपका जाग्रत भी, बदल जाएगा।

जगत के विचार ने जगत में पहुँचा दिया है, जगदीश का विचार जगदीश तक पहुँचा देता है।

देखो, एक कुम्हार मिट्टी से चिलम बना रहा था। उसके मित्र ने देखा तो पूछा कि चिलम क्यों बना रहे हो? कुम्हार बोला कि आजकल लोग नशा बहुत करते हैं, चिलम खूब बिकेगी।

मित्र बोला कि गर्मी का मौसम है, सुराही बनाओ। अब तो सुराही बिकेगी। कुम्हार ने चिलम बनाना छोड़ा, और उसी मिट्टी से सुराही बनाने लगा।

मिट्टी बोली कि तुमने यह परिवर्तन क्यों कर दिया? कुम्भकार बोला कि मेरा विचार बदल गया।

मिट्टी बोली कि तुम्हारा तो विचार ही बदला, पर मेरा तो जीवन ही बदल गया।

अगर मैं चिलम बनती तो मुझमें आग रखी जाती, स्वयं भी जलती औरों को भी जलाती। पर अब सुराही बन गई हूँ तो पानी भरा जाएगा, खुद भी शीतल रहूँगी औरों को भी शीतल करूँगी।

तो जैसे वहाँ मिट्टी तो वही थी, यहाँ आपका जीवन तो वही है। निर्णय आपको करना है कि इसे जगत से जोड़ना है कि जगदीश से जोड़ना है?

http://freedhyan.blogspot.com/2018/07/16.html?m=0

वह करते क्या है। मतलब ध्यान की कौन सी विधि। मेरे विचार से वह विपश्यना तो नही कर रहे।

यदि नही तो मन्त्र कौन सा।

मेरे विचार से वह मात्र ॐ का जाप कर रहे होंगे।

मैं समझता हूँ। उनको विष्णु मन्त्र जाप के ध्यान लगाने से आराम मिल सकता है। यह ठंडा मन्त्र होता है। विष्णु की जगह कृष्ण भी लगा सकते है। वासुदेवाय सबसे ठंडा है।

बेहतर होगा। एक बार वासुदेवाय मन्त्र से mmstm करे। फिर जाप आरम्भ कर ध्यान करे।

सबसे गर्म मन्त्र नवार्ण

फिर काली

फिर रुद्र

फिर महामृत्युंजय

फिर गायत्री

सबसे ठंडा

सरस्वती। वासुदेवाय। कृष्ण।विष्णु।

कारण यह है कि प्रायः लोग गायत्री आरम्भ करते समय अनुष्ठानिक कर्म भी करते है। पर धीरे धीरे यह समाप्त हो जाता है। जो थोड़ी बहुत क्षणिक परेशानियां पैदा कर सकता है। अतः सबसे अच्छा है कि मन्त्र जप सहज और कर्म हो अनुष्ठान नही। तब मन्त्र अपना अनुष्ठानिके रूप न लेकर बैलेंस बढाता है। मन्त्र जप कभी भी किसी को कम नही करना चाहिए बल्कि और बढा कर उसी मन्त्र से कष्ट दूर होने की प्रार्थना समर्पण भाव से करना चाहिए।

उसको बोले अनुष्ठानिक जप न कर 24 घण्टे जप करे।

Mmstm कर ले फिर जप करे। फोटो गायत्री की ले।

नही मैं नही मानता। मन्त्र जप नुकसान करता है। क्या है हर मन्त्र या इष्ट की अलग अलग कार्य करने की फ्रीकेन्सी होती है। इन को एक दूसरे के सहयोग हेतु उपयुक्त होना चाहिए। अब इन्होंने पढा गायत्री फोटो दुर्गा की। जो आसमान हुई। अतः क्षणिक परेशानी। दूसरे यह निश्चित रूप से करन्यास इत्यादि जरूर करते होंगे जो अनुष्ठान ही होता है।

यह सब अनुष्ठानिक क्रियाये है। जैसे जप विन्यास इत्यादि।

1 यदि आप किसी धार्मिक स्थान पर जाते है और अपनी ओर से अनुभव हेतु प्रयास करते है तो एक तरह से उस धार्मिक स्थान को चुनौती देते है कि भाई मुझे अनुभव कराओ।

2 आप अनजाने में गर्व के शिकार होते है कि हम बहुत महान है हमको तो अनुभव होना ही चाहिए।

3 आप अपनी ऊर्जा नष्ट करते है क्योंकि अनुभव हेतु आप संकल्प लेते है। तो आपकी ऊर्जा खर्च करती है।

4 आप एक चित्त में एक नया संस्कार पैदा कर लेते है। क्योकि फिर आप अनुभव पर सोंचने लगते है औरो से चर्चा करते है।

अतः जो स्वतः हो वह होने दो। अपनी तरफ से कोई भी प्रयास गलत है।

अनुभवों में अधिक मत फँसो। इनके लिए एक अवस्था होती है। हमे उनसे ऊपर उठना है। निर्विकल्प होना है।

जय अम्बे। जय गुरुदेव।

बहिन जी डरने का कोई काम नही। कोई चिंता न करे। आप अपना मन्त्र बिना डर के सतत निरन्तर और निर्बाध करती रहे। किसी प्रकार का बन्धन न ले। यदि मन हो तो mmstm करे और मन्त्र जप करती जाए। वैसे आप mmstm कर रही है यह अच्छी बात है। शिव कल्याणकारी है। कुछ न मांगे न बोले बस मन्त्र जप करती जाए।

आपको शुभकामनाये।

जय महाकाल। भक्त हो सम्भाल। बन जा ढाल।।

देखिये किसी भी कार्य मे जल्दबाजी उचित नही। मन्त्र जप से हमारा शरीर धीरे धीरे शुद्ध होता है। जब आपको और बेहतर अनुभव होंगे। और आवश्यक हुआ तो समर्थ गुरु तक पहुचा दूंगा।

तब तक आप न किसी की सुने न करे। बस अपना इष्ट और मन्त्र साथ रखे।

सर एक जने का कहना है क्या भगवान कभी किसी को परेशान करते हैं

कभी नही। सिर्फ हमारे कर्मफल सामने रख देते है। लोग इसको परीक्षा भी कहते है।

ईश सिर्फ शक्ति जो कर्म करने की क्षमता प्रदान करती है। बाकी हम अपने कर्मो को भोगते है।

हा दैवीय शक्तियां हमको अनुष्ठानिक फल और मनवांक्षित प्रदान कर सकती है।

ईश का अंतिम स्वरूप निराकार निर्गुण ही है। पर मनुष्य ने अपनी शक्तियों से उसे विभिन्न रूप में आने को बाध्य कर रखा है। मनुष्य बेहद शक्तिशाली होता है। पर वह अपनी शक्तियों से अनजान रहता है।

हम इसी साकार के द्वारा निराकार तक जा सकते है। द्वैत से अद्वैत। सगुण से निर्गुण तक जा सकते है।

प्रश्न पूछे। सब नए ही होते है। जब जागो तब ही सवेरा।

जी।

ताराचंद जी बेहतर है आप कुल देवी को आराध्य बनाये। यू तो सब एक है पर एक स्तर के बाद। चुकी कुल देवी पहले से पूजित होती है अतः वह जल्दी सिद्ध होती है।

आप mmstm करे। अपनी कुल देवी के मन्त्र से। फिर बताये।

ममता जी यह ऊर्जा है जो मन्त्र जप से बढ़ती है। आप घबराए नही। कभी कभी चंदन का टीका इत्यादि लगा लिया करे। डरे नही करती रहे।

आप ॐ का जाप न करे।

शिव का करे।

ॐ का बिलकुल नही।

मन्त्र के साथ ॐ ठीक है। अकेले नही।

मत जाए ॐ से। कुछ लगा ले आगे।

मात्र ॐ का जाप ग्रहस्थ्य को नही करना चाहिए। यह तीव्र वैराग्य पैदा करता है जो परिवार में बाधक है।

ॐ सन्यासी ब्रम्हचारी या अकेले को करना चाहिए।

Ok sir लेकिन प्राणायाम में भी ना करें

यह कर सकते है। कुछ बार  लगातार नही।

मतलब निरन्तर नही। अब उद्गीध भृमरी में तो करना ही पड़ता है।

भस्त्रिका, कपालभाति,बाहय,अनुलोम विलोम, भ्रामरी, उद्घगीत, ध्यान। ये  हम करते हैं

करते रहे। बस ॐ नही।

गुरुदेव मैं जब भी पूजा पर बैठता हूँ तो बार -बार जम्हाईयां आती हैं कृपया मार्गदर्शन करें

होता है। चलेगा। ध्यान करते करते सो जाएं।


http://freedhyan.blogspot.com/2018/05/blog-post_3.html?m=0

क्यो खतरनाक है यू ट्यूब की साधनाये।


मेरे पास कुछ ऐसे लोग व्हाट्सएप ग्रुप और व्यक्तिगत भी आते है जो यू ट्यूब को देखकर चक्र साधना, कुण्डलनी जागरण, या क्रिया योग या अन्य कुछ आरंभ करते है। कुछ दिनों बाद अधिकतर लोग आज्ञा चक्र या कनपटी पर तीव्र दर्द, कमर में दर्द, अत्याधिक पसीना, खुजली, दाने इत्यादि की शिकायत करते है। कोई कोई तो अनुभव से भयभीत होकर सलाह मागने लगता है।

चलिए आज इस पर चर्चा की जाए। मेरे खुद के अनुभवों से जो सार निकलता है उस पर विचार रखता हूँ


परमपिता परमेश्वर की कृपा से इस संसार में हर जीव की उत्पत्ति बीज के द्वारा ही होती है चाहे वह पेड़-पौधे हो, कीडे – मकोडे, जानवर या फिर मनुष्य योनी। चित्त में भी कर्मफल बीज के रूप संचित होते हैं। यानी बीज को जीवन की उत्पत्ति का कारक माना गया है। बीज मंत्र भी कुछ इस तरह ही कार्य करते है। हिन्दू धरम में सभी देवी-देवताओं के सम्पूर्ण मन्त्रों के प्रतिनिधित्व करने वाले शब्द को बीज मंत्र कहा गया है।


वस्तुतः बीजमंत्रों के अक्षर उनकी गूढ़ शक्तियों के संकेत होते हैं। इनमें से प्रत्येक की स्वतंत्र एवं दिव्य शक्ति होती है। और यह समग्र शक्ति मिलकर समवेत रूप में किसी एक देवता के स्वरूप का संकेत देती है। जैसे बरगद के बीज को बोने और सींचने के बाद वह वट वृक्ष के रूप में प्रकट हो जाता है, उसी प्रकार बीजमंत्र भी जप एवं अनुष्ठान के बाद अपने देवता का साक्षात्कार करा देता है।


अब आप कुछ समझे होंगे। वास्तव में ध्यान चाहे वह कोई भी विधि हो। त्राटक, विपश्यना, शब्द, नाद, स्पर्श योग या मन्त्र जप या और कुछ। इनके द्वारा हमारी ऊर्जा बढ़ती है। आप जानते है शक्ति मतलब ऊर्जा। अब होता यह है  यदि हमारे शरीर को इस प्रकार की ऊर्जा सहने की आदत नही होती तो हमको रोग या शारीरिक कष्ट हो सकते है।


आप जानते है ऊर्जा मतलब hn h is plank constant n is frequency. इस कारण विभिन्न विधियों और मन्त्रो के अलग अलग ऊर्जा के आयाम अलग आवृत्तियों के कारण हो जाते है।

उदाहरण आपने किसी विशेष चक्र पर उसके बीज मंत्र से ध्यान किया। उस ऊर्जायित आयाम के कारण चक्र के बीज मंत्र उद्देलित हो गए। अब चक्र की एक विशिष्ट ऊर्जा निकली। उस चक्र के ऊपर नीचे का चक्र तो जागृत नही तो यह ऊर्जा कहा से निकलेगी। रास्ता न मिलने पर यह रोग पैदा कर सकता है जो असाध्य भी हो सकता है।

यदि आपके चक्र कुण्डलनी जागरण के पश्चात मूलाधार को भेदकर धीरे धीरे ऊपर के चक्रो में आते है तो यह ऊर्जा नीचे के चक्रो से निकल जाती है और शरीर मे रोग नही होता।

अब यदि बिना कुण्डलनी जगे चक्रो के बीज मंत्र उर्जित हो गए तो भगवान मालिक।


वही समर्थ गुरु अपनी ऊर्जा से शिष्य की अधिक ऊर्जा को नियंत्रित कर सकता है।

 अब मैं लीजिए आपने त्राटक किया वह भी बिंदु या रंग और जो निराकार है। तो आपके आज्ञा चक्र की ऊर्जा बढ़ी। यदि वह बाहर नही निकल पाई तो वह आपके मस्तिष्क के न्यूरॉन्स को प्रभावित कर सकती है। ये न्यूरॉन्स बहुत कोमल और याददाश्त को गुत्थियों में संग्रहित करते है। इस कारण आपका मस्तिष्क संतुलन बिगड़ सकता है। आप जिद्दी या कुछ हद तक पागल भी हो सकते है।

इस सबका एक ही उपचार है कि प्रणायाम के द्वारा अपनी अतिरिक्त ऊर्जा को श्वास से बाहर निकाले और आसनों द्वारा शरीर मजबूत करे।

यदि यह नही कर सकते हो किसी साकार मन्त्र का जप करे। यह जाप सुनार के हथौड़े की चोट कर आपके शरीर और चक्रो को कम्पन देकर उन्हें ऊर्जा सहने लायक बनाता है।


समस्या वहाँ अधिक आती है जो निराकार विधियों से ध्यान करता है। क्योंकि निराकार आकार रहित होता है तो आपकी ऊर्जा जो ब्रह्म शक्ति का रुप है वह आपको किस रूप में किस प्रकार सहायता करेगी।

वही साकार मन्त्र जप और विधियाँ उस ब्रह्म शक्ति को उस मन्त्र के सगुण रूप में आने को विवश हो जाती है। सहायता करने के अतिरिक्त वह उस साकार और मन्त्र संकल्पना का रूप धारण कर दर्शन देकर अतिरिक्त ऊर्जा को शारीरिक ऊर्जा में समाहित कर देती है।

आप देखे माउंट आबू में मस्तिष्क रोगी अधिकतर पाए है। जो नही वह किसी हद तक झक्की हो जाते है।

कारण वहाँ जो है वह कुण्डलनी शक्ति मानते नहीं। गुरु मानते नही। लाल प्रकाश जो मूलाधार का रंग है उस प्रकाश पर निराकार त्राटक करवाते है।


लिखने को हर विधि पर हैं पर संक्षेप में आप कोई भी विधि यदि साकार सगुण करते है तो खतरा कम। दूसरे सबसे सरल सहज आसान है मन्त्र जप। नाम जप। आपको जो इष्ट अच्छा लगे उसका मन्त्र जप करे। सघन सतत निरन्तर। यह साकार मन्त्र आपको आपके गुरू से लेकर निराकार तक की यात्राओं के अतिरिक्त ब्रह्म ज्ञान भी दे जाएगा। बस अपने इष्ट को समर्पित होने का प्रयास करो।

सगुण ही पूर्ण ज्ञान दे सकता है। निर्गुण को सगुण का कोई ज्ञान नही पर सगुण को निर्गुण खुद मिल जाता है।

भाई आप दीक्षित है। आपके गुरु ही बता सकते है

प्रभु जी ये चितिशक्ति विलास पुस्तक जोकि स्वामी मुक्तानंद जी महाराज द्वारा लिखित है उसका एक भाग है, मुझे अच्छा लगा तो डाला, मुझे किसी प्रकार का कोई संसय नहीं है ना गुरु पर, ना गुरु मंत्र पर, अपितु ये सब मुझपर संसय कर सकते है जो जिम्मेवारी  गुरुदेव मुझसे आपेक्षित करते है वो हो सकती है या नहीं, प्रभु जी, मेरी कोई कामना नहीं बस चतुर को पूर्ण समर्पण करके अपना किरदार निभाना है

हाँ लेकिन कुछ मार्गदर्शन आप भी तो कर सकते हैं।

ठीक है भाई। आप प्रणायाम करे। ताकि आपकी अतिरिक्त ऊर्जा बाहर निकले।

प्राणायाम कर रहा हू

कौन से

श्वास अंदर खींचकर जितना हो सकता है उतनी देर तक अंदर रोंके रहता हू और ध्यान आज्ञा चक्र पर रहता है। जब तक श्वास रोंके रहता हूँ उसी बीच ध्यान के साथ गुरूमंत्र जप मन ही मन करता हू फिर श्वास बाहर निकाला  और बाहर ही रोके रखता हू । बाहर रोंके रहने के समय भी गुरूमंत्र जप व ध्यान आज्ञा चक्र पर। और फिर पुन: वैसे ही

इसके अलावा भस्तिका और कपाल भाति भी करो।

इससे ध्यान और बहुत गहरा होता जाता है। 5 प्राणायाम पर श्वास दम घुटने जैसे लगता है और 7 पर बेहोशी जैसी हालत और 11 पर पहुचते पहुचते बाहर के शब्द सुनायी देना बंद और गजब की शांति आने लगती है ,मन प्रफुल्लित होने लगता है । ऐसा मन करता है कि इससे बाहर ही न निकलू लेकिन निकलना पड़ता है

तुम वास्तव में क्रिया योग साधना ही करते हो।

इसके बारे मे मुझे नही मालूम । कृपया विस्तार से बतायें

यह क्रिया योग 15 से अधिक एक बार मे नही करते है।

मै 21 बार तक किया हू

21 बार मे मुझे खुद का लगभग न के बराबर पता था। गिनती गिन रहा था इसलिए सिर्फ गिनती याद थी

जैसा प्राणायाम से होता था वैसा गुरूमंत्र जप से सहज ही हो जाता था कभी कभी लेकिन ये सिर्फ कभी कभी होता था। महीने 3-4 दिन बस। अपने आप होता था। मै चाहता था कि प्रतिदिन ऐसा ध्यान लगे लेकिन नही लगता था सिर्फ कभी कभी

तुमको जो दीक्षा मिली वह छोड़कर यह कर रहेहो । यह उचित नही। गुरु आदेश मानो।

प्राणायाम मै अपने मन से करता था।

गुरू आदेश है कि अपना मंत्र किसी भी हालत मे न छोड़ो और सतत जप करते रहो

सरजी भस्तिका और कपालभाति के बारे मे बतायें कैसे करना है?

यहाँ जो बात बतायी जाती है या या जो आप बताते हैं काफी अच्छा होता है। समझाने का तरीका भी अच्छा होता है

नही यह उचित नही। मैने विधिवत नही सीखा है। मुझे सिर्फ प्रभु नाम लेना ही आता है। शरीर मोटा।

ऐसा करो सुबह रामदेव का प्रसारण देखो।

नही। मुझे बस जानकारी है।

तब बेहतर है नेट पर देख लो। लिखना मुश्किल है।

कट पेस्ट नही। सिर्फ अनुभव या जिज्ञासा। वह भी नही जो नेट से है।

मित्र किताबी ज्ञान बहुत भरा पड़ा है इससे बचो। बेहतर है न दो।

वैसे तो ये जरूरी नहीं है बताना। लेकिन मेरे लिए हर्ष का विषय है इसलिए ग्रुप में बता रहा हूँ।

आज गुरुदेव की कृपा से रायसेन आश्रम में पहुच गया।

इसे गुरुदेव की कृपा ही कहूँगा उन्होंने बुला लिया।


महाराज जी से मिला महाराज जी ने आशीर्वाद के रूप में पुस्तक प्रदान की।

हृदय से धन्यवाद् विपुलजी।

पहले बताओ। दीक्षा का क्या हुआ।

आप योग नही योगासन सिखाती है। अच्छा है लोग स्वस्थ्य रहेगे।

क्या बाबा रामदेवजी योगी हैं???

नहीं तो वह क्या हैं???

मित्र विवादास्पद प्रश्न न करे। मैं तो उनको एक सन्त महापुरुष से ऊपर नही मानता। क्योकि जब वह मुह खोलते हैं तो मालूम पड़ता है कि उन्हें योग नही है। क्षमा करें मित्र।

जिज्ञासा है,जानने की

मित्र निवेदन है। कई बार कितना लिखू। आप ब्लाग लिंक पर लेख देख ले। 343  लेख  कविताएं पोस्ट है।

Freedhyan.blogspot.com

श्री मन यह सब नेट पर गूगल गुरु के पास है।

अनुभव जनित लेख देखे।

यही देख ले।

क्यो क्या हुआ।

नहीं कुछ नहीं बस ऐसे ही पूछ लिया

बैद्धिक विलास के प्रश्न से कुछ न मिलता है। करो आरम्भ करो कुछ तो करो। सबसे सरल मन्त्र जप। सस्ता सुंदर टिकाऊ। जो अच्छा लगे। पहले एक वार mmstm कर लो फिर जुट जाओ मन्त्र जप में। जब ईश शक्ति का अनुभव होगा। तुम्हारी इच्छा होगी। समर्थ गुरु तक पहुचा दूंगा।

सर आपने गुरु जी के पास तो पंहुचा दिया लेकिन अभी दीक्षा नहीं मिली है   इसलिये मैंने प्रसन किया

समाधि खेल नही होता है।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/03/normal-0-false-false-false-en-in-x-none_9.html?m=0

अभी महाराज जी से मिला। चर्चा हुयी महाराज जी बोले कुछ साहित्य आपको दे रहा हूँ। आपको समझ आ जायेगी कई बात। गुरुदेव की जैसी इक्षा होगी वैसा हो जाएगा समय आने पर। जब भी समय मिले आना। हमारे यहाँ नवरात्री में भी कार्यक्रम होगा आप आएं।

महाराज जी ने बताया अमलनेर में आपसे मिले थे। सन्यास दीक्षा के समय।

महाराज जी ने सोपान और चित्त लीला दी है।

बिल्कुल। यह मरने वाले की क्षमता पर निर्भर है।

ऐसा मेरे परिवार मे हो रहा है और परेशान कर रहा है एक वर्ष से अधिक हो गया।


इससे छुटकारा पाने का कोई उपाय बतायें

आप दुर्गा सप्तशती का पाठ करवाये। पूरे घर को देवी कवच कुंडल और कीलक का पाठ करने को बोले। बहन से सामने नवार्ण मन्त्र वैखरी में 11 माला करे। कोई दूसरा गायत्री मंत्र पढ़कर पूरे घर मे घूमता रहे।

आप घर मे महापुरूषो की सिद्ध सन्तो की फोटो लगवाए ।

फोटो नैय्यर जी दे देंगे  स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज और स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज की। हर कमरे में लगवा दे।

सर नवार्ण मंत्र क्या है प्लीज आप बताएंगे

ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै*

मित्र यह निंदनीय और बेहद गलत दुष्टतापूरन कार्य है। पर ग्रुप में डालकर हम मन मे ग्रुप में कलुषता क्यो लाये। फिर इसमें राजनीति भी छुपी है। जिस प्रकार चिढ़ाने के लिए राजनीतिक उद्देश्य हेतु केरल में गौ हत्या और खाया गया। वहाँ की तबाही एक दण्ड है। उसी भांति यह भी भुगतेंगे।

पर ग्रुप में कोई जघन्य कृत न पोस्ट करे।

देखो यह कलियुग है और यकीन मानो कोई अन्य शक्तियां इंसान की रक्षा कर रही है। जब कलियुग पक जाएगा। तब नव युग आएगा। यह कलियुग का अंतिम चरण है। वर्ष 2262 में सृष्टि का विनाश होना है। यह उसकी तैयारी है।

सर मतलब 244 साल बचे है अभी तो फिर तो खुलकर जियो।

नही तुमको मना करने का पूरा अधिकार है।

कोई हमारी प्रशंसा करता है तो वह बहुत अच्छा है कोई हमारी बुराई करता है तो वह बहुत बुरा व्यक्ति है, लोगों द्वारा प्रशंसा सुनकर सुख बुराई सुनकर दुख व अच्छा और बुरा लगने लगता है। यानि अच्छे बुरे की डोर हमने ही लोगों के हाथ में दे रखी है। यही डोर यदि हमारे ही हाथ में है तो सुख ही सुख हमारे इर्दगिर्द रहेगा। जय बाबा महाकाल।

जब तक निंदा सुनकर भी बुरा लगना बन्द न होगा। तब तक तुम आधात्मिक मार्ग पर आगे नही बढ़ सकते। अपमान  सहने की क्षमता हमे पूर्ण योगी बनाती है।

कलियुग में यदि प्रभु न पा सके तो कभी न पा सकोगे। बस कुछ ठान लो। थाम लो। प्रभु प्राप्ति की ठानो। राम नाम को थामो। सबसे सुंदर सस्ता टिकाऊ। मन्त्र जप नाम जप। सतत निरन्तर निर्बाध। बिना लालच के और समर्पण की कोशिश।


*वैदिक रक्षा-सूत्र ( रक्षाबंधन)*

 *वैदिक रक्षाबंधन - प्रतिवर्ष श्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार होता है, इस बार 26 अगस्त 2018 रविवार के दिन है। इस दिन बहनें अपने भाई को रक्षा-सूत्र बांधती हैं । यह रक्षा सूत्र यदि वैदिक रीति से बनाई जाए तो शास्त्रों में उसका बड़ा महत्व है ।*

*वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि*

  *इसके लिए ५ वस्तुओं की आवश्यकता होती है -*

*(१) दूर्वा (घास) (२) अक्षत (चावल) (३) केसर (४) चन्दन (५) सरसों के दाने ।*

  *इन ५ वस्तुओं को रेशम के कपड़े में लेकर उसे बांध दें या सिलाई कर दें, फिर उसे कलावा में पिरो दें, इस प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी ।*

*इन पांच वस्तुओं का महत्त्व*

➡ *(१) दूर्वा - जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेज़ी से फैलता है और हज़ारों की संख्या में उग जाता है, उसी प्रकार मेरे भाई का वंश और उसमें  सदगुणों का विकास तेज़ी से हो । सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बढ़ता जाए । दूर्वा गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में विघ्नों का नाश हो जाए ।*

➡ *(२) अक्षत - हमारी गुरुदेव के प्रति श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत ना हो सदा अक्षत रहे ।*

➡ *(३) केसर - केसर की प्रकृति तेज़ होती है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, वह तेजस्वी हो । उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो ।*

➡ *(४) चन्दन - चन्दन की प्रकृति तेज होती है और यह सुगंध देता है । उसी प्रकार उनके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो । साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे ।*

➡ *(५) सरसों के दाने - सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है अर्थात इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें ।*

 *इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम गुरुदेव के श्री-चित्र पर अर्पित करें । फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे ।*

 *महाभारत में यह रक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बाँधी थी । जब तक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकी रक्षा हुई, धागा टूटने पर अभिमन्यु की मृत्यु हुई ।*

 *इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं हम पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्ष भर सुखी रहते हैं ।*

 *रक्षा सूत्र बांधते समय ये श्लोक बोलें*

 *येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः ।*

*तेन त्वाम रक्ष बध्नामि, रक्षे माचल माचल: ।*

हर समय। मॉनसिक तो टॉयलेट में भी।

हथेली पर सरसो नही जमती।

पहला गुण सब्र है।

शुरुआत में दो को बताई। वह भयंकर क्रिया से ग्रस्त हो गए।

चलो मैसूर के चामुंडेश्वरी मन्दिर भी हो लिए। जय जगदम्बे।

यह मंदिर मैसूर स्टेशन से कुछ किमी दूर पहाड़ी पर है। म्हैसूर से बना मैसूर। यानी महिषासुर मर्दिनी का मंदिर है। कहते है महिषासुर मैसूर का राजा था।

अधिक पशु हत्याओं से आती है आपदाएं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के तीन वैज्ञानिकों प्रोफेसर मदन मोहन बजाज , प्रोफेसर विजयराज और डॉक्टर इब्राहिम ने मिलकर 1995 में रूस में एक रिसर्च present कि जिसमे उन्होंने Prove किया कि भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाएं आने का कारण है , Einstein Pain waves | इसे bis theory नाम भी दिया गया है |

Bhukamp kyu ata h https://youtu.be/6oyurlLeUJY

ये Einstein Pain Waves तब emit होती है जब भी किसी पशु को मारा जाता है |

तब उसकी pain से भी एक wave निकलती है |


इन वैज्ञानिकों के अनुसार जब बहुत अधिक मात्रा में पशुओं को मारा जाता है तब ये waves और ज्यादा intensify हो जाती है |

जिसके कारण ही भूकंप आता है |

लेकिन इन waves का भूकंप आने के पीछे कारण क्या है इसे हम आगे देखेंगे |

सबसे पहले इस Einstein pain wave थ्योरी के बारे में कुछ facts देख लेते हैं –

इस Theory के अनुसार एक बूचड़खाने से निकलने वाली pain wave कि energy लगभग 1040 KW तक होती है |Einstein Pain wave ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचती है |Pro. मदन मोहन बजाज ने इस theory को mathematically भी prove किया है |इन्ही waves के कारण earth crust में radon गैस release होती है |

Einstein ने कभी pain waves के बारे में बात नहीं की लेकिन शायद इस विषय में वे कुछ कार्य करना चाहते थे , सम्भव है इसलिए उनके सम्मान में इसका नाम Einstein pain wave रखा गया हो |

जैसा कि हमने बताया कि भूकंप का कारण Convective Currents है |

इन वैज्ञानिकों के अनुसार Radon गैस रिलीज होने के कारण ही Tectonic Plates टराती हैं |

इसलिए शायद यह सम्भव है कि radon गैस के release होने से इन प्लेट में फिसलन कि गति बढ़ जाती हो , जिस से उनमे टक्कर भी बढ़ जाती है |

कुछ चीन और जापान के वैज्ञानिकों ने रेडॉन गैस के release होने के कारण भूकंप आने को Experimentally भी Verify किया है |

ऐसे में हम मान सकते हैं इन वैज्ञानिकों कि रिसर्च सही दिशा में हो सकती है |


माना जाता है कि ईसा से 2000 से 7000 वर्ष पहले सहारा रेगिस्तान में न सिर्फ पशु , पक्षी और जानवर रहते थे बल्कि वहां इंसानों कि बस्तियां भी थी , यहाँ के लोगो में शिकार खेलने कि प्रवृत्ति ज्यादा थी , और कहा जाता है कि उस समय वहां शिकार खेलना बहुत अधिक बढ़ गया था , सम्भव है कि इस कारण आज यह जगह एक रेगिस्तान में तब्दील हो गयी होयह बात सब जानते हैं कि नेपाल में आये भूकंप से पहले वहां पर एक बहुत बड़ा festival होता था जिसमे बहुत सरे भैसों कि बलि दी जाती थी , कुछ लोगों के द्वारा इसे दुनिया में सबसे बड़ा पशु बलि का festival भी कहा जाया है , , इसका नाम था गढ़ीमाई festival , सम्भव है कि इसके कारण ही नेपाल में भूकंप आया हो |कहा जाता है कि मुगलों के भारत में आने से पहले देश में कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा नहीं आयी , जबकि पिछले 300 सालों में ऐसी आपदाएं लगातार बढ़ी है |


इस रिसर्च के अनुसार यदि माना जाये तब भूकंप का कारण अत्यधिक मात्रा में पशुओं कि हत्या है जिस से भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाएं आती है |

हमने आपको इस बारे में अपनी जानकारी के अनुसार बताया |

हालाँकि इस बारे में अभी और रिसर्च करने कि जरूरत है |


यहाँ पर एक प्रश्न भी उठ सकता है कि यदि भूकंप और प्राकृतिक आपदाएं जानवरो कि बेरहमी से हत्या करने के कारण आती है , यानि उनके दर्द से निकलने वाली pain wave के कारण आती है तब अनेकों मांसाहारी जानवर , हमेशा से शाकाहारी जानवरों को मारकर खाते आये हैं , तब इस हिसाब से पहले भी भूकंप इसी तरह आने चाहिए थे ? लेकिन पहले भूकंप आदि नहीं आते थे |


प्रकृति में हमेशा संतुलन बना रहता है , जैसे हमारे शरीर में कई कोशिकाएं नष्ट होती रहती है और कई कोशिकाएं नयी बनती रहती है , यदि नष्ट होने वाली अधिक बढ़ जाये तो हमारा शरीर पहले ही बूढ़ा दिखने लग जायेगा , इसी तरह जानवरों में यह होने वाला व्यवहार पहले भी होता था और होता रहेगा , लेकिन आज यह व्यवहार हम इंसानों ने भी अपनाकर इसे बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है जिस से संतुलन बिगड़ता है और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं आती है |


प्रोफेसर मदन मोहन बजाज ने अपनी रिसर्च से related चार पुस्तके लिखी hai.


सभी लोग इस पोस्ट को यदि फेसबुक इत्यादि पर शेयर कर दें तो लोगों को इस सत्य का पता चलेगा। ये सत्य लगभग न के बराबर लोगों को पता है।

अधिक पशु हत्याओं से आती है आपदाएं।

ये मुझे किसी ने भेजा था।

मैने भी अापका नाम लिखकर सभी जगह शेयर किया है

मुन्नी बदनाम हुई केवल इस कारण से। मैं अपना नाम खुद लिख देता हूँ।

चीन तो सबसे अधिक प्रभावित होता है। वहाँ तो अक्सर बाढ़ आ जाती है।


MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/


इस ब्लाग पर प्रकाशित साम्रगी अधिकतर इंटरनेट के विभिन्न स्रोतों से साझा किये गये हैं। अथवा मेरे ग्रुप “आत्म अवलोकन और योग” से लिये गये हैं। जो सिर्फ़ सामाजिक बदलाव के चिन्तन हेतु ही हैं। कुलेखन साम्रगी लेखक के निजी अनुभव और विचार हैं। अतः किसी की व्यक्तिगत/धार्मिक भावना को आहत करना, विद्वेष फ़ैलाना हमारा उद्देश्य नहीं है। इसलिये किसी भी पाठक को कोई साम्रगी आपत्तिजनक लगे तो कृपया उसी लेख पर टिप्पणी करें। आपत्ति उचित होने पर साम्रगी सुधार/हटा दिया जायेगा।

ये क्रिप्टो-क्रिस्चियन क्या है???

ये क्रिप्टो-क्रिस्चियन क्या है??? 

 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
वैज्ञानिक अधिकारी, भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
 फोन : (नि.) 022 2754 9553  (का) 022 25591154   
मो.  09969680093
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,  फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet

http://azaadbharat.org के अनुसार भगवान बुध्द के जैसी दिखने वाली एक मूर्ति बनाई गई है जो बच्चा को गोद में लेकर बैठे है, वे वास्तव में मैरी की है जिसे जापान के क्रिप्टो-क्रिस्चियन पूजते थे। ये क्रिप्टो-क्रिस्चियन क्या है? ग्रीक भाषा मे क्रिप्टो शब्द का अर्थ हुआ छुपा हुआ या गुप्त; क्रिप्टो-क्रिस्चियन (crypto-christian) का अर्थ हुआ गुप्त-ईसाई। इसमें महत्वपूर्ण बात ये है कि क्रिप्टो-क्रिस्चियन कोई गाली या नकारात्मक शब्द नहीं हैं।


लखनऊ में कई जगह पर हिंदू रीति रिवाजों यहां तक भगवा वस्त्र पहुंच कर हवन तक नकली करते किंन्तु गले में क्रास लटकाकर भंडारा कर प्रसाद तक बांटा जाता है।


आखिर यह है क्या ??

क्रिप्टो-क्रिस्चियानिटी ईसाई धर्म की एक संस्थागत प्रैक्टिस है। क्रिप्टो-क्रिस्चियनिटी के मूल सिद्धांत के अंर्तगत क्रिस्चियन जिस देश में अल्पसंख्यक होते है वहाँ वे दिखावे के तौर पर तो उस देश के ईश्वर की पूजा करते है, वहाँ का धर्म, रिवाज मानते हैं जो कि उनका छद्मावरण होता है, पर वास्तव में अंदर से वे ईसाई होते हैं और निरंतर ईसाई धर्म का प्रसार करते रहते है। विकीपीडिया के अनुसार : गुप्त इसाइयत या (क्रिप्टो-क्रिश्चियनिटी) ईसाई धर्म का एक गुप्त व्यवहार है। इसमें इसाई जिस देश मे रहते हैं वहाँ वे दिखावे के तौर पर तो उस देश के ईश्वर की पूजा करते हैं, वहाँ का धर्म मानते हैं पर वास्तव में अंदर से वे ईसाई होते हैं और निरंतर ईसाई धर्म का प्रचार करते रहते हैं। अन्य धर्मों के शासकों या समाज द्वारा ईसाई धर्मावलंवियों के लिए खतरा उत्पन्न किए जाने की स्थिति में यह व्यवहार अपनाया गया। जब क्रिप्टो क्रिश्चियन 1 प्रतिशत से कम होते है तब वह उस देश के ईश्वर को अपना कर अपना काम करते रहते हैं। जब वे अधिक संख्या में हो जाते हैं तो प्रकट रूप से ईसाई धर्म को मानने लगते हैं। हॉलिवुड फिल्म 'अगोरा' (2009) में गुप्त इसाइयत को दिखाया गया है।


ग्रीक भाषा मे क्रिप्टो शब्द का अर्थ हुआ छुपा हुआ या गुप्त। क्रिप्टो क्रिश्चियन * का अर्थ हुआ गुप्त-ईसाई। इसमें महत्वपूर्ण बात ये है कि क्रिप्टो-क्रिश्चियन कोई गाली या नकारात्मक शब्द नहीं हैं। क्रिप्टो-क्रिश्चियनिटी ईसाई धर्म की एक संस्थागत प्रैक्टिस है। क्रिप्टो-क्रिश्चियनिटी के मूल सिद्धांत के अंर्तगत क्रिश्चियन जिस देश मे रहतें है वहाँ वे दिखावे के तौर पर तो उस देश के ईश्वर की पूजा करते हैं, वहाँ का धर्म मानतें हैं जो कि उनका छद्मावरण होता है; पर वास्तव में अंदर से वे ईसाई होते हैं और निरंतर ईसाई धर्म का प्रचार करते रहतें है।


क्रिप्टो क्रिश्चियन का सबसे पहला उदाहरण रोमन सामाज्य में मिलता है जब ईसाईयत ने शुरुवाती दौर में रोम में अपने पैर रखे थे। तत्काल महान रोमन सम्राट ट्रॉजन ने ईसाईयत को रोमन संस्कृति के लिए खतरा समझा और जितने रोमन ईसाई बने थे उनके सामने प्रस्ताव रखा कि या तो वे ईसाईयत छोड़ें या मृत्यु-दंड भुगतें। रोमन ईसाईयों ने मृत्यु-दंड से बचने के लिए ईसाई धर्म छोड़ने का नाटक किया और उसके बाद ऊपर से वे रोमन देवी देवताओं की पूजा करते रहे, पर अंदर से ईसाईयत को मानते थे।


पर, क्रिप्टो क्रिश्चियन, मुसलमानों जैसी हिंसा नहीं करते। जब क्रिप्टो क्रिश्चियन 1 प्रतिशत से कम होते है तब वह उस देश के ईश्वर को अपना कर अपना काम करते रहतें है जैसा कि और जब अधिक संख्या में हो जातें तो उन्ही देवी-देवताओं का अपमान करने लगतें हैं। Hollywood की मशहूर फिल्म Agora(2009)** हर हिन्दू को देखनी चाहिए। इसमें दिखाया है कि जब क्रिप्टो क्रिश्चियन रोम में संख्या में अधिक हुए तब उन्होंने रोमन देवी-देवताओं का अपमान करना शुरू कर दिया। वर्तमान में भारत मे भी क्रिप्टो क्रिश्चियन ने पकड़ बनानी शुरू की तो यहाँ भी हिन्दू देवी-देवताओं, ब्राह्मणों को गाली देने का काम शुरू कर दिया। मतलब, जो काम यूरोप में 2000 साल पहले हुआ वह भारत मे आज हो रहा है। हाल में प्रोफेसर केदार मंडल द्वारा देवी दुर्गा को वेश्या कहा जो कि दूसरी सदी के रोम की याद दिलाता है।


क्रिप्टो-क्रिश्चियन के बहुत से उदाहरण हैं पर सबसे रोचक उदाहरण जापान से है। मिशनिरियों का तथाकथित-संत ज़ेवियर जो भारत आया था वह 1550 में धर्मान्तरण के लिए जापान गया और उसने कई बौद्धों को ईसाई बनाया। 1643 में जापान के राष्ट्रवादी राजा शोगुन (Shogun) ने ईसाई धर्म का प्रचार जापान की सामाजिक एकता के लिए खतरा समझा। शोगुन ने बल का प्रयोग किया और कई चर्चो को तोड़ा गया। जीसस-मैरी की मूर्तियां जब्त करके तोड़ दी गईं। बाईबल समेत ईसाई धर्म की कई किताबें खुलेआम जलायीं गईं। जितने जापानियों ने ईसाई धर्म अपना लिया था उनको प्रताड़ित किया गया। उनकी बलपूर्वक बुद्ध धर्म मे घर वापसी कराई गई। जिन्होंने मना किया, उनके सर काट दिए गए। कई ईसाईयों ने बौद्ध धर्म मे घर वापसी का नाटक किया और क्रिप्टो-क्रिश्चियन बने रहे। जापान में इन क्रिप्टो-क्रिश्चियन को “काकूरे-क्रिश्चियन***” कहा गया।


काकूरे-क्रिश्चियन ने बौद्धों के डर से ईसाई धर्म से संबधित कोई भी किताब रखनी बन्द कर दी। जीसस और मैरी की पूजा करने के लिए इन्होंने प्रार्थना बनायी जो सुनने में बौद्ध मंत्र लगती पर इसमें बाइबल के शब्द होते थे। ये ईसाई प्रार्थनाएँ काकूरे-क्रिश्चियनों ने एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी मौखिक रूप से हस्तांतरित करनी शुरू कर दी। 1550 से ले कर अगले 400 सालों तक काकूरे-क्रिश्चियन बौद्ध धर्म के छद्मावरण में रहे। 20वीं शताब्दी में जब जापान औद्योगिकीकरण की तरफ बढ़ा और बौद्धों के धार्मिक कट्टरवाद में कमी आई तो इन काकूरे-क्रिश्चियन बौद्ध धर्म के मुखौटे से बाहर निकल अपनी ईसाई पहचान उजागर की।


क्रिप्टो क्रिश्चियन बुद्ध के जैसी दिखने वाली मूर्ति, जो वास्तव में मदर मैरी की है, इसे जापान के क्रिप्टो-क्रिश्चियन पूजते थे।


केवल रोमन साम्राज्य और जापान में ही क्रिप्टो क्रिश्चियनों के उदाहरण नहीं मिलते बल्कि बालकंस व एशिया माइनर, मध्यपूर्व, सोवियत रशिया, चाइना, नाज़ी जर्मनी समेत भारत में भी क्रिप्टो क्रिश्चियनों की बहुतायत है। जैसे जापान के क्रिप्टो क्रिश्चियन काकूरे कहलाते हैं वैसे ही एशिया माइनर के देशों सर्बिया में द्रोवर्तस्वो, साइप्रस में पत्सलोई, अल्बानिया में लारामनोई, लेबनान में क्रिप्टो मरोनाईट व इजिप्ट में क्रिप्टो कोप्ट्स कहलाते हैं।


भारत मे ऐसे बहुत से काकूरे-क्रिश्चियन हैं जो सेक्युलरवाद, वामपंथ और बौद्ध धर्म का मुखौटा पहन कर हमारे बीच हैं। भारत मे ईसाई आबादी आधिकारिक रूप से 2 करोड़ है और अचंभे की बात नहीं होगी अगर भारत मे 10 करोड़ ईसाई निकलें। अकेले पंजाब में अनुमानित ईसाई आबादी 10 प्रतिशत से ऊपर है। पंजाब के कई ईसाई, सिख धर्म के छद्मावरण में है, पगड़ी पहनतें है, दाड़ी, कृपाण, कड़ा भी पहनतें हैं पर सिख धर्म को मानते हैं पर ये सभी गुप्त-ईसाई हैं।


बहुत से क्रिप्टो-क्रिश्चियन आरक्षण लेने के लिए हिन्दू नाम रखे हैं। इनमें कइयों के नाम राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा आदि भगवानों पर होते हैं। जिन्हें संघ के लोग भी सपने में गैर-हिन्दू नहीं समझ सकते जैसे कि पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन। जो जिंदगी भर दलित बन के मलाई खाता रहा और जब मरने पर ईसाई धर्म के अनुसार दफनाने की प्रक्रिया देखी तो समझ मे आया कि ये क्रिप्टो-क्रिश्चियन है। देश मे ऐसे बहुत से क्रिप्टो-क्रिश्चियन हैं जो हिन्दू नामों में हिन्दू धर्म पर हमला करके सिर्फ वेटिकन का एजेंडा बढ़ा रहें हैं।


हम रोजमर्रा की ज़िंदगी मे हर दिन क्रिप्टो-क्रिश्चियनों को देखते हैं पर उन्हें समझ नहीं पाते क्योंकि वे हिन्दू नामों के छद्मावरण में छुपे रहतें हैं।


जैसे कि–


    श्री राम को काल्पनिक बताने वाली कांग्रेसी नेता अम्बिका सोनी क्रिप्टो क्रिश्चियन है।

    NDTV का अधिकतर स्टाफ क्रिप्टो-क्रिश्चियन है।


हिन्दू नामों वाले नक्सली जिन्होंने स्वामी लक्ष्मणानन्द को मारा, वे क्रिप्टो क्रिश्चियन हैं।


    गौरी लंकेश, जो ब्राह्मणों को केरला से बाहर उठा कर फेंकने का चित्र अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर लगाए थी, क्रिप्टो क्रिश्चियन थी।

    JNU में भारत के टुकड़े करने के नारे लगाने वाले और फिर उनके ऊपर भारत सरकार द्वारा कार्यवाही को ब्राह्मणवादी अत्याचार बताने वाले वामी नहीं, क्रिप्टो-क्रिश्चियन हैं।

    फेसबुक पर ब्राह्मणों को गाली देने वाले, हनुमान को बंदर, गणेश को हाथी बताने वाले खालिस्तानी सिख, क्रिप्टो-क्रिश्चियन हैं।

    तमिलनाडु में द्रविड़ियन पहचान में छुप कर उत्तर भारतीयों पर हमला करने वाले क्रिप्टो क्रिश्चियन हैं।


जिस राज्य ने सबसे अधिक हिंदी गायक दिए उस राज्य बंगाल में हिंदी का विरोध करने वाले क्रिप्टो क्रिश्चियन हैं।


    अंधश्रद्धा के नाम हिन्दू त्योहारों के खिलाफ एजेंडे चलाने वाला और बकरीद पर निर्दोष जानवरों की बलि और ईस्टर के दिन मरा हुआ आदमी जीसस जिंदा होने को अंधश्रध्दा न बोलने वाला नरेन्द्र दाभोलकर, क्रिप्टो-क्रिश्चियन था।

    देवी दुर्गा को वैश्या बोलने वाला केदार मंडल और रात दिन फेसबुक पर ब्राह्मणों के खिलाफ बोलने वाले दिलीप सी मंडल, वामन मेश्राम क्रिप्टो-क्रिश्चियन हैं।

    महिषासुर को अपना पूर्वज बताने वाले जितेंद्र यादव और सुनील जनार्दन यादव जैसे कई यादव सरनेम में छुपे क्रिप्टो-क्रिश्चियन हैं।

    तमिल अभिनेता विजय एक क्रिप्टो- क्रिस्चियन है, पूरा नाम है जोसफ विजय चंद्रशेखर।

http://azaadbharat.org के अनुसार भगवान बुध्द के जैसी दिखने वाली एक मूर्ति बनाई गई है जो बच्चा को गोद में लेकर बैठे है, वे वास्तव में मैरी की है जिसे जापान के क्रिप्टो-क्रिस्चियन पूजते थे। ये क्रिप्टो-क्रिस्चियन क्या है? ग्रीक भाषा मे क्रिप्टो शब्द का अर्थ हुआ छुपा हुआ या गुप्त; क्रिप्टो-क्रिस्चियन (crypto-christian) का अर्थ हुआ गुप्त-ईसाई। इसमें महत्वपूर्ण बात ये है कि क्रिप्टो-क्रिस्चियन कोई गाली या नकारात्मक शब्द नहीं हैं।


लखनऊ में कई जगह पर हिंदू रीति रिवाजों यहां तक भगवा वस्त्र पहुंच कर हवन तक नकली करते किंन्तु गले में क्रास लटकाकर भंडारा कर प्रसाद तक बांटा जाता है।


आखिर यह है क्या ??

क्रिप्टो-क्रिस्चियानिटी ईसाई धर्म की एक संस्थागत प्रैक्टिस है। क्रिप्टो-क्रिस्चियनिटी के मूल सिद्धांत के अंर्तगत क्रिस्चियन जिस देश में अल्पसंख्यक होते है वहाँ वे दिखावे के तौर पर तो उस देश के ईश्वर की पूजा करते है, वहाँ का धर्म, रिवाज मानते हैं जो कि उनका छद्मावरण होता है, पर वास्तव में अंदर से वे ईसाई होते हैं और निरंतर ईसाई धर्म का प्रसार करते रहते है। विकीपीडिया के अनुसार : गुप्त इसाइयत या (क्रिप्टो-क्रिश्चियनिटी) ईसाई धर्म का एक गुप्त व्यवहार है। इसमें इसाई जिस देश मे रहते हैं वहाँ वे दिखावे के तौर पर तो उस देश के ईश्वर की पूजा करते हैं, वहाँ का धर्म मानते हैं पर वास्तव में अंदर से वे ईसाई होते हैं और निरंतर ईसाई धर्म का प्रचार करते रहते हैं। अन्य धर्मों के शासकों या समाज द्वारा ईसाई धर्मावलंवियों के लिए खतरा उत्पन्न किए जाने की स्थिति में यह व्यवहार अपनाया गया। जब क्रिप्टो क्रिश्चियन 1 प्रतिशत से कम होते है तब वह उस देश के ईश्वर को अपना कर अपना काम करते रहते हैं। जब वे अधिक संख्या में हो जाते हैं तो प्रकट रूप से ईसाई धर्म को मानने लगते हैं। हॉलिवुड फिल्म 'अगोरा' (2009) में गुप्त इसाइयत को दिखाया गया है।


ग्रीक भाषा मे क्रिप्टो शब्द का अर्थ हुआ छुपा हुआ या गुप्त। क्रिप्टो क्रिश्चियन * का अर्थ हुआ गुप्त-ईसाई। इसमें महत्वपूर्ण बात ये है कि क्रिप्टो-क्रिश्चियन कोई गाली या नकारात्मक शब्द नहीं हैं। क्रिप्टो-क्रिश्चियनिटी ईसाई धर्म की एक संस्थागत प्रैक्टिस है। क्रिप्टो-क्रिश्चियनिटी के मूल सिद्धांत के अंर्तगत क्रिश्चियन जिस देश मे रहतें है वहाँ वे दिखावे के तौर पर तो उस देश के ईश्वर की पूजा करते हैं, वहाँ का धर्म मानतें हैं जो कि उनका छद्मावरण होता है; पर वास्तव में अंदर से वे ईसाई होते हैं और निरंतर ईसाई धर्म का प्रचार करते रहतें है।


क्रिप्टो क्रिश्चियन का सबसे पहला उदाहरण रोमन सामाज्य में मिलता है जब ईसाईयत ने शुरुवाती दौर में रोम में अपने पैर रखे थे। तत्काल महान रोमन सम्राट ट्रॉजन ने ईसाईयत को रोमन संस्कृति के लिए खतरा समझा और जितने रोमन ईसाई बने थे उनके सामने प्रस्ताव रखा कि या तो वे ईसाईयत छोड़ें या मृत्यु-दंड भुगतें। रोमन ईसाईयों ने मृत्यु-दंड से बचने के लिए ईसाई धर्म छोड़ने का नाटक किया और उसके बाद ऊपर से वे रोमन देवी देवताओं की पूजा करते रहे, पर अंदर से ईसाईयत को मानते थे। जिस तरह मुसलमान 5-10 प्रतिशत होते हैं होतें है तब उस देश के कानून को मनाते हैं। पर जब 20-30 प्रतिशत होतें हैं तब शरीअत की मांग शुरू होती है, दंगे होतें है। आबादी और अधिके बढ़ने पर गैर-मुसलमानों की Ethnic Cleansing शुरू हो जाती है।


पर, क्रिप्टो क्रिश्चियन, मुसलमानों जैसी हिंसा नहीं करते। जब क्रिप्टो क्रिश्चियन 1 प्रतिशत से कम होते है तब वह उस देश के ईश्वर को अपना कर अपना काम करते रहतें है जैसा कि और जब अधिक संख्या में हो जातें तो उन्ही देवी-देवताओं का अपमान करने लगतें हैं। Hollywood की मशहूर फिल्म Agora(2009)** हर हिन्दू को देखनी चाहिए। इसमें दिखाया है कि जब क्रिप्टो क्रिश्चियन रोम में संख्या में अधिक हुए तब उन्होंने रोमन देवी-देवताओं का अपमान करना शुरू कर दिया। वर्तमान में भारत मे भी क्रिप्टो क्रिश्चियन ने पकड़ बनानी शुरू की तो यहाँ भी हिन्दू देवी-देवताओं, ब्राह्मणों को गाली देने का काम शुरू कर दिया। मतलब, जो काम यूरोप में 2000 साल पहले हुआ वह भारत मे आज हो रहा है। हाल में प्रोफेसर केदार मंडल द्वारा देवी दुर्गा को वेश्या कहा जो कि दूसरी सदी के रोम की याद दिलाता है।


क्रिप्टो-क्रिश्चियन के बहुत से उदाहरण हैं पर सबसे रोचक उदाहरण जापान से है। मिशनिरियों का तथाकथित-संत ज़ेवियर जो भारत आया था वह 1550 में धर्मान्तरण के लिए जापान गया और उसने कई बौद्धों को ईसाई बनाया। 1643 में जापान के राष्ट्रवादी राजा शोगुन (Shogun) ने ईसाई धर्म का प्रचार जापान की सामाजिक एकता के लिए खतरा समझा। शोगुन ने बल का प्रयोग किया और कई चर्चो को तोड़ा गया। जीसस-मैरी की मूर्तियां जब्त करके तोड़ दी गईं। बाईबल समेत ईसाई धर्म की कई किताबें खुलेआम जलायीं गईं। जितने जापानियों ने ईसाई धर्म अपना लिया था उनको प्रताड़ित किया गया। उनकी बलपूर्वक बुद्ध धर्म मे घर वापसी कराई गई। जिन्होंने मना किया, उनके सर काट दिए गए। कई ईसाईयों ने बौद्ध धर्म मे घर वापसी का नाटक किया और क्रिप्टो-क्रिश्चियन बने रहे। जापान में इन क्रिप्टो-क्रिश्चियन को “काकूरे-क्रिश्चियन***” कहा गया।


काकूरे-क्रिश्चियन ने बौद्धों के डर से ईसाई धर्म से संबधित कोई भी किताब रखनी बन्द कर दी। जीसस और मैरी की पूजा करने के लिए इन्होंने प्रार्थना बनायी जो सुनने में बौद्ध मंत्र लगती पर इसमें बाइबल के शब्द होते थे। ये ईसाई प्रार्थनाएँ काकूरे-क्रिश्चियनों ने एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी मौखिक रूप से हस्तांतरित करनी शुरू कर दी। 1550 से ले कर अगले 400 सालों तक काकूरे-क्रिश्चियन बौद्ध धर्म के छद्मावरण में रहे। 20वीं शताब्दी में जब जापान औद्योगिकीकरण की तरफ बढ़ा और बौद्धों के धार्मिक कट्टरवाद में कमी आई तो इन काकूरे-क्रिश्चियन बौद्ध धर्म के मुखौटे से बाहर निकल अपनी ईसाई पहचान उजागर की।


क्रिप्टो क्रिश्चियन बुद्ध के जैसी दिखने वाली मूर्ति, जो वास्तव में मदर मैरी की है, इसे जापान के क्रिप्टो-क्रिश्चियन पूजते थे।


केवल रोमन साम्राज्य और जापान में ही क्रिप्टो क्रिश्चियनों के उदाहरण नहीं मिलते बल्कि बालकंस व एशिया माइनर, मध्यपूर्व, सोवियत रशिया, चाइना, नाज़ी जर्मनी समेत भारत में भी क्रिप्टो क्रिश्चियनों की बहुतायत है। जैसे जापान के क्रिप्टो क्रिश्चियन काकूरे कहलाते हैं वैसे ही एशिया माइनर के देशों सर्बिया में द्रोवर्तस्वो, साइप्रस में पत्सलोई, अल्बानिया में लारामनोई, लेबनान में क्रिप्टो मरोनाईट व इजिप्ट में क्रिप्टो कोप्ट्स कहलाते हैं।


    आम आदमी पार्टी का नेता आशीष खेतान एक क्रिप्टो-क्रिश्चियन है। इसकी पत्नी का नाम है, क्रिस्टिनिया लीडिया फर्नांडीस और दोनों बच्चे ईसाई हैं।

  यहां तक पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायनण के मरने के बाद पता चला कि वह क्रिप्टो-क्रिस्चियन। जिंदगी भर दलित लबादा उढ कर सारे फायदे लिये किंतु मरने के जब जलाया नहीं गया क्रिस्चियन कब्रिस्तान में दफनाया तो मालूम हुआ वह क्रिप्टो-क्रिस्चियन थे??? 


लिंक देखें: 

https://www.thenewsminute.com/article/what-row-over-ex-president-kr-narayanans-second-christian-burial-all-about-66062

The controversy erupted after a Malayalam channel broke the story that KR Narayanan's tomb was found in a Christian cemetery in Delhi.
PTI Image

As Ram Nath Kovind was sworn in as India's 14th President last month, he also became the second Dalit President of the country, after KR Narayanan. 
Cut to a tomb at a Christian cemetery in New Delhi, where the names of two people are engraved on it in black. The names are that of Uma Narayanan, the former first lady of India and KR Narayanan, the former President of India. 
It was the Malayalam channel Janam TV and Malayalam daily Janmabhoomi- both backed by RSS- which reported that KR Narayanan had embraced Christianity.

 


MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/


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किधर देश जानेवाला है। कुछ तो बोलो।।

किधर देश जानेवाला है। कुछ तो बोलो।।

कवि : विपुल लखनवी, मुम्बई MOB : 09969680093

अब तो जागो भाई मेरे। कुछ तो बोलो ।।

क्या इतिहास नही देखा है। या अज्ञानी बनते हो।।

या सहने की आदत पड गई।कुछ भी होता सहते हो।।

आज समय की मांग यही है। खुद को ही मोलो॥

किधर देश जानेवाला है। कुछ तो बोलो।।


याद करो वह भी भारत था। पूरी दुनिया में फैला था।

आधी दुनिया पास थी अपने। अपना परचम फैला था।।

धीरे धीरे सिकुड़ गए क्यों। कायरता ही कारण था।।

अब तो त्यागो क्लीवता मन की। कुछ कर डोलो॥

किधर देश जानेवाला है। कुछ तो बोलो।।


समझदार तब चुप बैठे थे। समझदार अब चुप बैठे हैं॥

मौन व्रत तब भी धारण था। मौन लपेटे अब भी बैठे है॥

ये ही चुप्पी भारी होगी। वंश हमारा मिट जायेगा।

कहलाओ भारत के वासी। अब वीरता घोलो ॥

किधर देश जानेवाला है। कुछ तो बोलो।।


आज विश्व में वो फैले है। जो तलवारे रखते है॥

पर अब भी हम जाग रहे न। मुह औधाये लेटे है।।

निद्रा त्यागो उठो सम्भलकर। समय जो भागे उसे पकडकर॥ 

जागो भारतवंशी जागो। अब आखें खोलो॥ 

किधर देश जानेवाला है। कुछ तो बोलो।।


जो तुमको जगाना चाहे। उस पर तुम चिल्लाते हो।।

घर के मेरे भाई बनकर । घर में सेंध लगाते हो।।

यही विडम्बना हमको लूटे।  भारत के जो भाग्य थे टूटे॥

मुहं न फेरो कसम राष्ट्र की।  पौरूष को तोलो॥

किधर देश जानेवाला है। कुछ तो बोलो।।


ठीक है मेंरे अपने हो तुम। यह अधिकार तुम्हारा है।।

पर मत भूलो देश है ऊपर। जिसने हमें पुकारा है।।

आज विश्व को दिखलाना है। अमन चैन फिर से लाना है॥

यह जीवन बेअर्थ न जाये। भारत मां के होलो॥

किधर देश जानेवाला है। कुछ तो बोलो।।

वंदे मातरम


MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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कुछ दोहे दिल से:

कुछ दोहे दिल से: 

कवि : विपुल लखनवी, मुम्बई MOB : 09969680093 

हिन्दू होता सौभाग्य से पापी जनम न पाये।

मंदिर जा टीका लगा, हिन्दू बना न पाये।।

वोट चोट ऐसी करे, बिना शोर की मार।

कुरसी के नाटक करे, बन जनता के यार।।

जीवन भर हिन्दू घृणा  पूजा शरम बताये।

सत्ता की मजबूरी है, मन्दिर दौड़ जाये।।

विपुल की वाणी कह रही यक्ष प्रश्न है आज।

ये भड़वे रण में भिड़े, करे सही को खाज।।

जग से मायाजाल का कुछ ऐसा सम्बन्ध।

जैसे जीने के लिये हो अपना अनुबन्ध।।

जग का मायाजाल जो छूटे मृत्यु आये।

दोनो पूरक जीवन के विरल इसे समझाये।।

माया ममता मान के बंधन टूटत नाय।

राम नाम के जाप से मोह मुक्त हो जाय।।

नाम सदा लो ईश का उसका कर गुणगान।

सन्त ज्ञानी कहे सुनो बात लाख की मान।

माया ठगनी जान लो जीव सफल बन जाय।

रामनाम की डोर ही नॉका पार लगाय।।

विपुल विपुलता विफल है ज्ञान धरा रह जाय।

राम नाम मनवा धरो जीव ये मुक्ति पाय।।

ठगनी माया ठग गई, ले कर यौवन भाग।

मूरख पीछे भागता, जले समय ज्यूँ आग।।

माया के विस्तार संग, जीवन भ्रम ये पाल।

बालो को काला करे, दूर हुआ क्या काल।।

माया जनम जगत भयो, बिन माया सब सून।

जो समझे माया भली, भोजन पानी जून।।

माया मोह विस्तार का, आदि हुआ न अंत।

माया राम को डस गई, कहे विपुल औ सन्त।।

माया गुरू गोरख भई, लगे मछिनदर बूझ।

गोरख ज्ञानी जाने तब, माया की अस सूझ।।

वह बिरले होते जगत, माया जीत न पाय।

गुरु शिवोम ऐसे रमे, माया भी पछिताय।।

लगी जवानी पूछने, इक दिन मेरा हाल।

देख चलो आगे बढ़ो, वृद्ध अवस्था ढाल।।

जीवन तो ऐसा गया, जैसे हो इक रात।

जागे कब सोये रहे, जब मृत्यु की बात।।

रहे जगाते सब हमें, पर थी गहरी नींद।

सोवत ही जग से चले, कहाँ खुली थी नींद।।

जीत गये तो ठीक है, मत करना अभिमान।

सत्ता ठगनी माया है होवे बन्द दुकान।।

जनता सब है जानती, मत समझो नादान।

मूर्ख समझना भूल है, मूरख की पहिचान।।

दोहा संग सम वेदना, दोहा का है बान।

रूप भक्ति श्रृंगार का, अद्भुत देता ज्ञान।।

कविता संग अपवाद है, अपकाव्य कवि समान।

गीतकार तो बन गये, महाविदूषक खान।।

छंद व्याकरण खा गये, मिट दारू के साथ।

जोर लगाकर चीखते, दो ताली सौगात।।


Wednesday, August 7, 2019

इष्ट कैसे जानें? और चर्चा

इष्ट कैसे जानें? और चर्चा 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,

ग्रुप सदस्य पंकज ने पूछा कि मैं अपने मन को स्थिर नही कर पता कुछ दिन महीने में भटक जाता है consistency नही आ पाती सांसारिक आकर्षण के अधीन हो जाता विचलित हो जाता अटक जाता है। मेरा इष्ट क्या है कैसे जानूं। कृपा मेरा मार्गदर्शन करें सर। मैं अपने diagnose बताना चाहता हूं  जिससे आप समझ सके आंकलन के बाद कि सही सही मुझे क्या करना चाहिये।

मुझे हमेशा भ्रम रहता है कि अपने निर्णय पर सही गलत का फैसला करना मुश्किल होता है कभी लगता है ये पंत सही है कभी लगता है वो सही है कभी लगता है वो गुरु सही है कभी लगता है वो सही है  जितनी जोर से साधना भक्ति का जोश चढ़ता है उतनी ही जोरो से उतर भी जाता है फिर आलस्य और निराशा रह जाती है लगता है कुछ नही कर सकता जीवन मे आलस्य मेरा शत्रु बनता जा रहा है।  कभी सोचता है ये मंत्र कर या कोई और करू बस इनी सब कारणों से अटका रहता हूं। जाप शिव जी का करता हूं और भक्ति श्री कृष्ण की तरफ चली  जाती है


मेरी सलाह है कि ये सब गलत है। आप सिर्फ एक मन्त्र पकड़े। उसका ही सिर्फ उसका ही सघन निरन्तर सतत मन्त्र जप करे। यानि बेस मंत्र एक बनायें।

रहीम का एक दोहा याद रखें।

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।

‘रहिमन’ मूलहि सींचिबो, फूलहि फलहि अघाय॥


अर्थ: एक ही काम को हाथ में लेकर उसे पूरा कर लो। सब में अगर हाथ डाला, तो एक भी काम बनने का नहीं। पेड़ की जड़ को यदि तुमने सींच लिया, तो उसके फूलों और फलों को पूर्णतया प्राप्त कर लोगे।

अत: पहले एक मंत्र को साधे। बाकी सब कुछ मिल जायेगा।

मन्त्र का चुनाव ऐसे करे।

1 जो आपका इष्ट हो।

2 जो आपको प्रिय हो

3 संकट में जो याद आता हो।

4 जीवन मे कभी जिसने सहायता की हो

5 जिसका जप अधिक किया हो।

6 नही तो mmstm करे। और पूछे संकल्प के साथ मेरा इष्ट कौन है। जो देव का मन विचार चित्र ध्यान में आये। उसका जाप करे।

फिर उसी से mmstm करे। और वह मन्त्र आपका इष्ट हो गया।

प्राय: जन्म जन्मांतर से हम जिनको भजते हैं। वहीं हमारे इष्ट होते हैं। अत: गुरू दीक्षा इष्ट मंत्र से ही लेनी चाहिये। 

सभी देवी –देवताओं की पूजा –उपासना करने के बाद भी अक्सर इंसान का मन भटकता ही रहता है।


ज्योतिष के जानकारों की मानें तो हर इंसान का मन किसी एक देवी या देवता की ओर सबसे ज्यादा आकर्षित होता है और वही देवी या देवता आपके इष्ट देव हो सकते हैं।  अगर आपकी कोई कुल देवी या देवता हैं तो वो भी आपके इष्ट हो सकते हैं।  प्राय: जन्म जन्मांतर से हम जिनको भजते हैं। वहीं हमारे इष्ट होते हैं। अत: गुरू दीक्षा इष्ट मंत्र से ही लेनी चाहिये।  
   

 

इष्ट देव कौन हैं?
- धार्मिक मान्यताओं में हर व्यक्ति के एक इष्ट देव या देवी होते हैं।
- इनकी उपासना करके ही व्यक्ति जीवन में उन्नति कर सकता है।
- इष्ट देव या देवी का निर्धारण लोग कुंडली के आधार पर करते हैं।
- वास्तव में ग्रहों और ज्योतिष का ईष्टदेव से सम्बन्ध नहीं होता है।
- ईष्टदेव या देवी का निर्धारण आपके जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों से होता है।
- बिना किसी कारण के ईश्वर के जिस स्वरुप की तरफ आपका आकर्षण हो, वही आपके ईष्ट देव हैं।
- ग्रह कभी भी ईश्वर का निर्धारण नहीं कर सकते।
- ग्रहों की समस्या को दूर करने के लिए विशेष देवी देवताओं की उपासना की जा सकती है।
धार्मिक परंपराओं में ईश्वरीय शक्ति की उपासना अलग-अलग रूपों में की जाती है।   अलग-अलग शक्तियों के रूप में उनकी पूजा की जाती है।  अगर आपकी कुंडली में ग्रहों से जुड़ी कोई समस्या है तो आइए जानते हैं कि कौन से ग्रह के लिए कौन से देव की उपासना सबसे उत्तम होगी: 


ग्रहों की समस्या के लिए क्या करें?

- सूर्य के लिए सूर्य की ही उपासना करें या गायत्री मंत्र की साधना करें। क्योंकि गायत्री सूर्य उपासना है।
- चन्द्रमा के लिए भगवान शिव की उपासना करना उत्तम होगा। क्यंकि शिव चंद्र धारण करते हैं।
- मंगल के लिए कुमार कार्तिकेय या हनुमान जी की उपासना करें। क्योंकि हनुमान सदा मंगलकारी होते हैं। आप किसी भी देव की पूजा करें हनुमान सहायक होते हैं।
- बुध  के लिए मां दुर्गा या सरस्वती की उपासना करें। क्योकिं इसका वाहन सिंह है। यह ग्रह बुद्धि, बुद्धिवर्ग, संचार, विश्लेषण, चेतना, विज्ञान, गणित, व्यापार, शिक्षा और अनुसंधान का प्रतिनिधित्व करता है। जो मां सरस्वती यानि दुर्गा रूप का क्षेत्र है।
- बृहस्पति के लिए श्रीहरि की उपासना करें। क्योंकि यह शरीर में पाचन तंत्र, मेदा और आयु की अवधि को निर्धारित करता है। इस शरीर का पाल्न पोषण विष्णु का काम है। यहां तक महिलाओं के जीवन में विवाह की सम्पूर्ण जिम्मेदारी बृहस्पति से ही तय होती है।
- शुक्र के लिए मां लक्ष्मी या मां गौरी की उपासना करें। क्यों कि ज्योतिष के अनुसार शुक्र रोमांस, कामुकता, कलात्मक प्रतिभा, शरीर और भौतिक जीवन की गुणवत्ता, धन, विपरीत लिंग, खुशी और प्रजनन, स्त्रैण गुण और ललित कला, संगीत, नृत्य, चित्रकला और मूर्तिकला का प्रतीक है। यह सब लक्ष्मी से ही प्राप्त होता है।
- शनि के लिए श्रीकृष्ण या भगवान शिव की उपासना करें। क्योंकि शनि और इनकी  मा6 छाया शिव भक्त हैं। शनि को सन्तुलन और न्याय का ग्रह माना गया है। श्रीकृष्ण तो सत्य के पक्ष में युद्ध तक करते हैं। जो काम शनि का भी है।
- राहु के लिए भैरव बाबा की उपासना करें। क्योंकि राहु क्रोधदेवताएं में से एक है। भैरव भी इसी के सत्य देव रूप है। 
- केतु के लिए भगवान गणेश की उपासना करें। क्योंकि दोनों का धड़ काटा गया। श्री गणेश सत्य दिशा में है। 

 
विशेष समस्याओं के लिए किसकी उपासना करें ?
- मानसिक समस्याओं के लिए शिवजी की उपासना करें
- शारीरिक दर्द और चोट -चपेट की समस्या के लिए हनुमान जी की उपासना करें
- शीघ्र विवाह के लिए पुरुष मां दुर्गा उपासना करें
- शीघ्र  विवाह के लिए स्त्रियां भगवान शिव की उपासना करें
- बाधाओं के नाश के लिए भगवान गणेश की पूजा करें
- धन के लिए मां लक्ष्मी की उपासना करें 
- मुक्ति मोक्ष या आध्यात्मिक उपलब्धि के लिए श्रीकृष्ण या महादेव की उपासना करें 
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो हर व्यक्ति के इष्ट देवी या देवता निश्चित होते हैं..अगर समय रहते उन्हें पहचान लिया जाए तो ग्रहों के हर दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है. तो आप भी अपने इष्ट देव को पहचानें और उनकी उपासना करें. फिर सुखी जीवन के लिए किसी दूसरे उपाय की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.
 

मित्र। यदि जब तक हम निंदा सुनना नही सीख पाते। अपमान नही सह सकते तब तक हम आधायतम में उन्नति नही कर सकते।

मुझे तो यह लगता है कि प्रशंसा तो मेरी नही प्रभु की हो रही है। तो गाली और अपमान भी उन्ही का। मैं कौन वह निबटे। अतः लोगो की निंदा को बुराई को सहना सीखो।

क्रोध को प्रेम से। घृणा को स्नेह से।

पाप को पुण्य से।अंधेरे को प्रकाश से।

लूले को हाथ से। अकेले को साथ से।

सूखे को सींच के। बैरी को भींच के।

जीतना चाहिए।  जीतना चाहीए।


वैसे आपसे अनुरोध है कि पहले ब्लाग पर जाकर कुछ लेख पढ़ ले। जिससे आपके प्रश्न और जिज्ञासाएं शांत हो जाएगी।

साथ ही यदि आप अदीक्षित है तो mmstm यानी सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि अपने घर पर करे। ताकि आपको ईश शक्ति का अनुभव हो सके।

आपको जो आध्यात्मिक प्रश्न पूछने हो। कृपया पोस्ट कर दे। उचित समय मिलने पर उत्तर मिल जायेंगे। मेरे कार्यालय में मोबाइल की अनुमति नही है। अतः सोम से शुक्र सुबह 7 से शाम 7 तक नो मोबाइल।

गुरूवर मैं संसार में रहते हुए  भी संसार में नहीं रहना चाहता कृपया मार्गदर्शन करें।

आप क्या करते थे। क्या करते है।

यह मन मे क्यो आता है।

मित्र मैं खोजी हूँ। वैज्ञानिक हूँ। आप मेरा नाम ले सकते है मैं गुरु नहीं। वैसे आप क्या सन्यासी हैं।

आपने किस गुरु से कौन सी दीक्षा ली है।

कहा किस से ली।

ऐसा करे। आप पूरा विवरण आराम से लिख दे। मैं जवाब दे दूंगा। मेरी रात्रि पूजा का समय हो गया है।

क्या आपको क्रिया हुआ। जो अनुभव हुए हो बताये।

कृपया फिर लिख दे। अनुभव और क्रिया।

देखिये गुरू शरीर नही। शक्ति होती है तत्व हित है। आप ध्यान में उनसे गाइडेन्स ले सकते है। गुरू हर शिष्य को संभालते है

ध्यान में गुरू का आह्वाहन करे।

मित्र मैं तो शक्तिपात का हूँ। अपने गुरू महाराज ध्यान या स्वप्न में आ जाते है।

तो आप mmstm करे। गुरू के चित्र के साथ। अपने मन्त्र के साथ। गुरू आह्वाहन के साथ। वे स्वप्न में आ जायेंगे।

ओम नरायण ने पूछा कि गंगा स्नान को जाता था और शिव जी की पूजा करता था,अब पूजा करने को मन भी नही करता लेकिन ईश्वर पर आस्था उतनी ही है जितनी पहले थी

वो तो ठीक है लेकिन मैं आप का नाम नही ले सकता क्यों कि आप की और मेरी उम्र में काफी अंतर होगा मैने अपनी जिंदगी के कल ही 27 बसन्त पार किये।

इसका उत्तर मुझे खुद नही मिल रहा 2015 की जनवरी से ये बिचार रह रह कर आता है मन में,ऐसा मन को लगता है सब कुछ होते हुए मेरे पास किसी की कमी है पर वो क्या चीज़ है ये ढूंढ सका।

ये ढूंढ़ नहीं सका अभी तक,न किसी का बोलना अच्छा लगता है न किसी से बोलना अच्छा लगता है बस हमेशा के लिए मौन हो जाना चाहता हूं एक दम शांत किसी से कोई मतलब नही।

कभी कभी लगता है भोजन का त्याग कर दूं सिर्फ कूटू के आटे को एक टाइम लूं कभी विचार आता है घर छोंड़ दूँ.....पता नही ये सब मेरे साथ क्या हो रहा है दिल और दिमाग कुछ भी काम नही रहा....?

कुछ भी काम नहीं कर रहा

मेरा उत्तर है कि यह अच्छी स्थिति है। जगत से विमुखता हो रही है। अब आप अपना मन साकार भक्ति में लगाकर आनन्द ले। यदी आपके भाव सत्य है तो गुरु को बताकर ब्रह्मचर्य की दीक्षा ले सकते है।

अपने समय और अनुभव को सनातन की सेवा में लगाये। जगत कल्याण करे।

वैसे यह लक्षण डरिप्रेशन के भी होते है।

क्या आप कामेच्छा होती है।

क्रोध आता है। लालच आता है।

मैं ऐसे किसी गुरु को नही जानता कृपया आप मार्गदर्शन करें।

आप कहाँ रहते है।

आप परिवारिक दायित्व है क्या।

गुरू मेरे पास है।

अगर उस ओर ध्यान दो तो नहीं तो नही।

आप सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि करे। इष्ट के मन्त्र के साथ। वह स्वयम प्रकट होकर आपको मार्ग बता सकते है। mmstm का लिंक है।

https://freedhyan.blogspot.com/2018/04/blog-post_45.html?m=0


बाकी जो आप सोंच सकते है। समझ सकते है सबके उत्तर ब्लाग में मिल जायेंगे। पर उसको भी पढ़े कौन। हमको तो अपनी वित्ती भर ज्ञान की बाते बतानी है।

आप की इच्छा हो तो ब्लाग पर पढ़कर लाभ लेते रहे।

जीने नही देते है चैन से ये दुनिया वाले।

मरने जाओ तो जीने की कसम दिलाते हैं। .......... विपुल लखनवी

सिर के मध्य भाग के पीछे अंदर से खुजली। शरीर पर अचानक खुजली होकर दाने प्रकट होना फिर स्वतः गायब होंना। पीठ कर त्वचा के नीचे कभी कभी खुजली का एहसास। क्या एक सब ऊर्जा उतपति के लक्षण है।

हो सकता है छोटे छोटे फुन्सीनुमा दाने सिर पर भी निकल कर खुद बिना दवा के ही सूख जाते है।

देखो गुरू कोई शरीर या देह नही। देह तो माध्यम होती है बस। असली माल मसाला तो गुरु तत्व है जो हमको मिल जाता है पर हम अनुभूति नही कर पाते। कारण स्वार्थ और कर्महीन होना।

न हम साधन करते न हम उनकी बातों पर चिंतन करते। न हम स्वाध्याय करते। हम बस चमत्कारों और उल जलूल बकवास में व्यस्त रहते है।

जैसे मेरे केस में। मेरी पहली गुरु माँ काली जिन्होंने ने शक्ति दी दीक्षा दी। मैं न सम्भल सका तो गुरु महाराज स्वप्न और धतान के माध्यम से अपने पास तक खींच लाये। शक्ति को और मेरे शरीर को संभाला। वह भी काली भक्त। यहाँ तक आऐडी गुरु जो मेरे पूर्व जन्म के भी गुरु थे वह भी काली भक्त।

लोग बाग गुरु शरीर को एक मूर्ति जी तरह पूज कर इतिश्री कर लेते है। जिसके कारण उनका उत्थान नही हो पाता है।

सही है। यह नाता जन्मो का है।

यह शरीर नष्ट हो जाता है। पर गुरु तत्व अनन्त तक रहता है।

सही है। कर सकते है।

शिष्य गुरू के पैर की जंजीर है। प्रायः गुरू इसी कारण मुक्त नही हो पाते वह गुरू लोक में तप करने लगते है।

यदि हमें मुक्त होना है तो गुरू के तत्व को समझकर उसकी ही शक्ति से उसे भी छोड़कर और आगे बढ़ना है।

वह कहलाता है मोक्ष या निर्वाण। यह तब होता है जब हम निराकार का अनुभव कर निराकार निर्गुण को प्राप्त कर लेते है। मतलब मोक्ष का मार्ग ज्ञान योग और अद्वैत का अनुभव।

लेकिन मजा केवल और केवल साकार सगुन और द्वैत में ही होता है।

देखो पहला। आत्मा में परमात्मा का अनुभव हुआ योग। जो भक्ति और कर्म योग का जनक।

दूसरा । मैं ही आत्म स्वरूप हूँ। परमात्मा हूँ। यह हुआ ज्ञान योग।

तीसरा। यह जो मेरी आत्मा है इसी में साकार और निराकार का वास।

इस अंतिम अवस्था मे आप अपनी मर्जी से साकार या निराकार की भक्ति या अनुभूति कर उस मे रम सकते है।

अनुभव को सोंचने से नही होता। क्योकि उत्सुकता ध्यान की गम्भीरता कम कर देती है।

देखो देहभान जब तक है। तब तक कुछ मिलना मुश्किल।

लीन हो मन्त्र जप में। अंत मे यह भी बन्द होकर नींद जैसी पर जागृत अवस्था मे ले जाता है।

सर जी आप दीक्षित भी है। फिर रकीं के उस्ताद।

वास्तव में रात्रि सोने के पहले साधन पर बैठ जाओ। फिर उसी में सो जाओ। यह ध्यान निद्रा का रूप ले लेगी। और स्वप्न भी नही आएंगे। यदी आएंगे तो अनुभव दे जायेगे।

यहाँ तक तमाम लोक। मन्त्र। दर्शन पता नही क्या क्या।

मैं भी इसी वक्त आरती करता हूँ।

रात में ही मजा आता है। वह भी 12 के बाद।

आप पहले ज्योत जलाए आरती करें। फिर बैठे।

उल्टा क्रम कर्म कर दे। यदि निश्चित जाप करते है तो माला ठीक वरना माला छोड़कर पश्यंती करे। तब ही आनन्द और उत्थान होगा। माला अनुष्ठानिक के लिए ठीक है पर ध्यान के लिए बन्धन।

यार इतने वरिष्ठ हो। उंगलियों पर कर लो। बन्धन तो बन्धन

ध्यान में तीव्रता हेतु कुछ नही। न माला न टीका न बिंदी न कुछ भी। सिर्फ और सिर्फ मैं और मेरा मन्त्र। फिर वह भी छूटा।

नही मोक्ष निर्वाण मतलब उस अनन्त सुप्त ऊर्जा में विलीन हो जाना। जिसे निराकार कृष्ण अल्लह या गाड कहते है। यह अंतिम है। पर वहाँ तक लोग पहुचते बहुत कम है। उसके पहले तमाम लोक होते है। पहले निराकार सुप्त ऊर्जा। फिर निराकार दुर्गा। फिर ब्रह्म। फिर विष्णु और रुद्र। फिर शिव और गुरु लोक। फिर तमाम साकार। फिर तेज लोक। गायत्री लोक। फिर अन्य देव लोक। फिर स्वर्ग और नर्क। फिर तीन प्रकार के शरीर। फिर धरा।

अब आपको mmstm की जरूरत नही। आप दीक्षित है। वह तो सिर्फ आपको अनुभव हेतु बताया था।

आप सीधे सीधे गुरु मन्त्र करे आरती के बाद। अब सारे नाटक बन्द। सिर्फ और सिर्फ गुरु शक्ति।

जैसी आपकी सामर्थ्य और प्रभु की इच्छा साथ ही गुरू का आशीष।

मोक्ष अपनी विरासत नही है कि हमारी इच्छा अनिच्छा से मिलेगी।

नही। फिर वापिस ही न आना।

तब अपनी सोंच प्रगाढ़ करो और साकार भक्ति में ही लगे रहो। अंत समय मे यदि शून्य मस्तिष्क हुए तो समझो निर्वाण पक्का। इसी लिए किसी साकार देव को या गुरू को याद करना तो वह लोक। बच्चों को याद करना तो भू लोक। लेकिन यदि ममता या मोह हुआ तो वही योनि। धन सोना तो सर्प। बच्चे मोह तो सुअर या कुत्ती। और कुछ सोंचा तो बस वोही रूप।

सोंच और अनुभव में अंतर है। मैं सोंच नही अनुभव से बात कर रहा हूँ।

अनुभव से बड़ा कुछ नही

योग के बाद ही यह सब अनुभव होते है। योग तो प्राथमिक द्वार है।

देखो जब आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव होता है। तब हमे दर्शनाभूति या ऐसा ही कुछ निराकार उपासक को कुछ और अनुभव के आगे पीछे अहम ब्रह्मास्मि की अनुभूति के साथ हमारे पांचवे तत्व यानी आकाश तत्व के द्वार खुल जाते है। जहाँ पर हम ध्यान के द्वारा आगे बढ़कर नए नए अनुभव और ज्ञान प्राप्त करते है। साथ ही आत्मगुरु जागकर मार्गदर्शन करता है। पर सावधान मन गुरु भी जाग कर भटकाने का प्रयास करता है।

यह सब क्षणिक होकर भी जीवन भर याद रहता है। फिर योग की अवधि धीरे धीरे बढ़कर हमे कृष्ण द्वारा वर्णित कर्म योग करवाता है। उसी के अनुसार लक्षण होने लगते है। सबसे अंत मे पातञ्जलि की वाणी यानी चित्त में वृत्ति का निरोध आ भी सकता है और नहीं भी। यह अंतिम कैवल्य अवस्था है।

इसी के बीच द्वैत से अद्वैत का अनुभव और एकोअहम दिवतीयोनास्ती हमे ज्ञान योग का अनुभव करा देता है। पर यह सब होने के बाद भी अधिकतर पातञ्जलि परिभाषित योग को नही प्राप्त हो पाते।

जी ऐसा नही बिल्कुल नही।

कर्तव्य विमुख होना जिम्मेदारियों से भागना कायरता है। आपको मोक्ष नही मिल सकता। जिम्मेदारी को आप कम ज्यादा नही कर सकते। बस उसको निभाते हुए लिप्त न हो। साक्षी और द्रष्टा भाव रहने का प्रयास कर सकते है।

इसका सबसे आसान उपाय है सघन सतत मन्त्र जप। कर्म करते हुए भी मन्त्र में लीन रहने से लिपपता कम हो जाती है।

यद्यपि यह भी संस्कार संचित करता है। पर यह सत्वगुणी है अतः अपने को खुद विलीन कर लेता है।

जब समय मिले गुरु प्रददत साधन संस्कारविहीन होने के लिए। बाकी समय जप।

सफलता 

अधितर लोग सफलता का अर्थ भौतिक सुखों को किसने अधिक प्राप्त किया उस बात से लगाते है। जैसे पैसा शोहरत सन्तान इत्यादि।

कुछ लोग स्वस्थ्यमय जीवन से लगाते है।

सफलतापूर्वक मर गए अपने बच्चों का शादी ब्याह कर के । तो वे सफल हो गए।

पर मैं इसे पूर्ण सफलता नही मानता हूँ।

यो स फल: स सफल:. यानी जिसने उसको या वो फल प्राप्त किया वह सफल हुआ। स के कई अर्थ हो सकते है हर मनुष्य के लिए अलग अलग। ऊपर दो प्रकार के लोग बताये जो निम्न और मध्यम प्रवृति के हुए।

उत्तम प्रकृति पुरुष में इसके अर्थ अलग होते है। जिसने वह फल पाया। जिसको वह फल फलित हुआ। बाबा कौन सा फल। जिसने आत्म रुपी फल को प्राप्त किया वह उत्तम पुरुष। जिसने इस जीवन को वास्तव में सफल बनाया वह उत्तम पुरुष। अर्थात जिसने नश्वर पाया वह निम्न और जिसने नश्वर पाया और अनश्वर को जाना या प्रयास किया वह मध्यम पुरुष। जिसने अनश्वर को पाया। वह उत्तम पुरुष।

प्रायः उच्च मध्यम पुरुष आजकल गुरु बन जाते है। प्रवाचक बन जाते है। दुकान खोल कर प्रचार करते है पर फिर गिर जाते है। क्योंकि उनका पुण्य प्रताप नष्ट होने लगता है। वह चेलो की गिनती और आश्रमो की संख्या में पड़कर अपनी साधना से विमुख हो जाते है। मन भटक जाता है। धीरे धीरे आम मनुष्य की भांति उनकी बुद्धि मन के अधीन हो जाती है और वह फिर इसी जगत में फंस कर रह जाते है।

निम्न पुरुष अनश्वर की सोंचते ही नहीं। वे मानव योनि के भी नीचे गिरकर पतित होकर अधोमुखी होकर दुःख में लिप्त होकर कष्ट भोगते है।

उत्तम पुरुष किसी उच्च लोक में जाकर फिर वापस आ सकते है या निर्वाण यानि मोक्ष प्राप्त कर लेते है।

अब यह सब प्राप्त कैसे हो। कलियुग में अनश्वर को जानना और पाना बेहद आसान है।  जिसके लिए भक्तियोग भक्तिमार्ग सर्वश्रेष्ठ। और इसके लिए सर्वप्रथम मन्त्र जप नाम जप। जो इष्ट अच्छा लगे। नही तो अपना ही नाम। जपो। अखण्ड सतत निरन्तर। जबरिया जपो। धीरे धीरे मन लगने लगेगा। और तुम्हारे अंदर भक्ति उदित होकर कल्याणकारी मार्ग पर ले जाएगी। अपने नाम जपने से समय लग सकता है पर फल मिलेगा। क्योकि मानसिक एकाग्रता तो बढ़ेगी। और अक्षर ही ब्रम्ह है। ब्रह्मांड की उतपति का कारण एक अक्षर ही है। जिसे ॐ कहते है।

अतः यदि मुक्ति चाहते हो तो आज से अभी से जुट जाओ। सतत निरन्तर अखण्ड जप में नाम स्मरण में।

कभी न कभी तो किनारा मिलेगा।

मुझे मेरा दिलवर प्यारा मिलेगा।।

कभी छूट जायेगे ये सारे बन्धन।

मुझे मेरा अपना एक द्वारा मिलेगा।।

यह मैं लेखों में लिख चुका हूँ। आलसी लोग कभी लेख नही पढ़ते।

कवि : विपुल लखनवी, मुम्बई MOB : 09969680093


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