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Monday, September 14, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 21 (नर और नारायण व भक्ति बनाम ज्ञान योग)

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 21  

 (नर और नारायण व भक्ति बनाम ज्ञान योग)


+91 90683 62440: Maf krna sir is video me jaisa aapne btaya tha us trh ki hi jankari h isliye post kr diya tha sir 🙏

ठीक है लेकिन यदि संभव हो तो शब्दों का प्रयोग करो।

जगत में पाप क्यों उपजा?


ये सब उपजा है मनुष्य के अहंकार के कारण।

कुछ यूं समझो जैसा कि हम सभी ने पढ़ा है सृष्टि की उत्पत्ति पर नर और नारायण की उत्पत्ति हुई।

ब्रह्म ने दो साकार रूप नर और नारायण के धारण किए।

आरंभ में नर और नारायण बराबर के थे और बराबर की शक्तिशाली थे।

नारायण का काम था जगत का पालन करना।

नर का काम था सृष्टि का आरंभ करना।

सृष्टि के आरंभ करने हेतु नारायण ने नर की हड्डी से स्त्री का निर्माण किया।

आप देखें तो पुरुष में एक्स और वाई क्रोमोसोम होते हैं जबकि स्त्री में मात्र एक्स एक्स होते हैं।

यानी हर पुरुष के अंदर आधी स्त्री होती है आधा अंग स्त्री का ही होता है जो अर्धनारीश्वर का रूप है।

यह यू पहले स्त्री का आधा अंग पुरुष का होता है।

अब स्त्री और पुरुष को सहयोग से जनसंख्या बढ़ानी थी संतानोत्पत्ति करनी थी।

नारायण ने नर से कहा कि तुम संतान की उत्पत्ति हेतु स्त्री के पास जाओगे और वापस अपने ब्रह्म स्वरूप में लौट के आओगे।

किंतु जब नर स्त्री के साथ गया तो उसको संतान उत्पत्ति की प्रक्रिया में अधिक आनंद आने लगा।

वह उस आनंद को प्राप्त करने के लिए लिप्त हो गया।

इस भांति वह अपने नारायण रूप से दूर हो गया।

क्योंकि यदि आप दक्षिण ध्रुव की ओर जाते हैं तो उत्तरी ध्रुव से दूर होते हैं और उत्तरी ध्रुव की ओर जाते हैं तो दक्षिण ध्रुव की ओर से दूर हो जाते हैं।

यदि आप जगत की ओर बढ़ते हैं तो प्रभु से दूर हो जाते हैं अपने नारायण स्वरूप से दूर हो जाते हैं

अब नर का चित् तो मलिन हो गया वह शुद्ध ब्रह्म तो नहीं रह गया।

तब नारायण ने कहा भाई एक जन्म मानव का और ले लो ताकि तुम अपने अशुद्ध रूप को शुद्ध कर सको यानी अपने संस्कारों को और कर्म फल को भोग कर पुनः ब्रह्म स्वरूप हो जाओ।

किंतु मानव जन्म दिन जन्म दर अपने नारायण स्वरूप से दूर होता चला गया। आनंद की प्राप्ति हेतु जगत में तरह-तरह के बहाने बनाने लगा और पाप करते लगा।

आपने देखा होगा धरती के सारे युद्ध अधिकतर स्त्री के लिए होते हैं।

धीरे-धीरे नर नीचे गिरता चला गया तो उसने  अपने बचाव हेतु विभिन्न प्रकार के बहाने बना ने आरंभ कर दिए।

अपने अहंकार को पोषित करने हेतु विभिन्न प्रकार की षड्यंत्र रचता गया जो भौतिक रूप से तो दिखते ही थे बल्कि आंतरिक रूप से भी औरों को प्रदूषित करते थे।

इसीलिए वेदों का अवतरण हुआ।

वेदों का जो सार है वह है वेद महावाक्य।

मनुष्य अपने को जान सके कि ब्रह्म क्या है और वही ब्रह्म का एक रूप है इसीलिए मानव का शरीर प्राप्त होता है।

जब वेद में कुछ कठिन हुई तो लोगों ने उन पर शोध आरंभ किया वेदों की बातों को मानकर जो थीसिस लिखी वे उपनिषद बन गए।

 जिन लोगों ने वेदों की बातों को सीधा ना मानकर प्रयोग कर तर्क के साथ प्रस्तुत किया वह षट् दर्शन बन गए

उपनिषद को समझाने के लिए गीता का अवतरण हुआ।

गीता को सरल सहज भाषा में समझाने के लिए तुलसीदास से रामचरितमानस लिखवाई गई।

मेरे अनुसार यदि हम वेदों को एक गौशाला माने तो उपनिषद उसमें चरने वाली गाय है और भगवत गीता उन से निकला हुआ दूध और रामचरितमानस दूध से निकला हुआ मक्खन है। और गायों के बछड़े षट् दर्शन और धीरे-धीरे वे शास्त्र और पुराण बन गए।

मानव की दो ही प्रजातियां होती है एक ब्राह्मण और दूसरी शूद्र।

यो ब्रह्म वरण: सा ब्राह्मण।

जन्म जायते शूद्र:।

जन्म से सभी शूद्र होते हैं और कर्म से ब्राह्मण बनते हैं।

वेद उपनिषद और षट् दर्शन कभी भी जन्म से ब्राह्मण की बात नहीं करते हैं समाज को चलाने के लिए मनु ने चार प्रकार के प्रवृत्ति वाले लोग बताए थे।


एक चर्चा।

मित्रों एक बात आत्म अवलोकन हेतु है। यदि हिंदू समाज बचेगा तभी हम अपने को ब्राह्मण कह सकेंगे और दूसरे को कुछ अन्य बोल सकेंगे।

आपसी लड़ाई के कारण हमारा पतन हुआ है और हो रहा है।

आज दलित वर्ग पिछड़ा वर्ग हिंदुओं से अलग क्यों नारे लगा रहा है।

हमें आपसी भेदभाव भूलकर सभी हिंदुओं को एक झंडे के तले एकत्र करना होगा।

इसके लिए हमें जाति का झूठा अभिमान त्यागना होगा हमको व्यक्तिगत सम्मान की भावना से ऊपर उठना होगा।

इसके लिए दक्षिण भारत में बहुत सुंदर पहल की है बहुत से मंदिरों के पुजारी दलित वर्ग से नियुक्त किए गए हैं और उनका बराबर सम्मान किया जा रहा है।

जब हम इस तरीके से कार्य करेंगे तभी हम वापिस सनातन की ओर अग्रसर होकर देश की उन्नति कर हिंदुत्व का परचम पूरे विश्व में फैला सकेंगे।

मेरी पोस्ट से यदि किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचती है तो मैं उसके लिए खेद व्यक्त करता हूं और क्षमा चाहता हूं लेकिन मैं बिना सत्यता के बिना प्रमाणिकता के कोई बात नहीं कहता हूं।

अधिकतर आध्यात्मिक बातें मैं अनुभव से बताता हूं और उपनिषद या वेदो या भगवत गीता के ज्ञान और अध्ययन के कारण बता पाता हूं।

इस कारण मैंने कुरान का बाइबल के दोनों टेस्ट मैन्ट का बौद्ध और जैन विचारधारा का अध्ययन किया उसको समझने का प्रयास किया है आज यदि कोई चाहे तो मुझसे किसी भी संबंधित विषय पर चर्चा कर सकता है।

Bhakt Varun: *पति एक दरगाह पर माथा टेककर घर लौटा,*

*तो पत्नी ने.. बगैर नहाए घर में घुसने नहीं दिया।

* बोली : जब अपने खुद के बाप को शमशान में जलाकर आये थे, तब तो खूब रगड़ रगड़ के नहाये थे।

 *अब किसी की लाश पर मत्था टेककर आ रहे हो, अब नहीं नहाओगे?*

*पति:   अरी बावरी, वो तो समाधी है।

*पत्नी:  समाधि ! 🤔 उसको जलाया कब ? जलावेगा तभी तो समाधी बनेगी। उसमें तो अभी लाश ही पड़ी है।*

*पति:    अरे, वो तो देवता है।*

*पत्नी:  तो तुम्हारे पिता क्या राक्षस थे ?*

*पति:   अरी मुझे तो.. दोस्त अब्दुल ले गया था। अगर नहीं जाऊँगा तो उसे बुरा नहीं लगेगा?

*पत्नी:   तो उस अब्दुल को.. सामने वाले हनुमान जी के मन्दिर में मत्था टेकवाने ले आना। कल मंगलवार भी है।*पति:   वो तो कभी नहीं आवेगा मत्था टेकने।*🤔🥳

*ला तू पानी की बाल्टी दे।*

*पत्नी: तो कान पकड़ के* *10 दंड बैठक और लगाओ, और सौगंध लो कि.. आगे से किसी  की मजार पर नहीं जाओगे !*

*हमारा घर.. एक मंदिर है यहाँ  "बांके बिहारी जी , श्री राधा रानी , महादेव जी और.. मां आदिशक्ति की मर्जी चलती है।*🌹🙏🌹

*सुख आवै तब भी, दुख आवै तब


  *जय सनातन धर्म की !*

  *जय राम जी की🙏🚩*

Swami Veetragi R Sadhna Mishra: <Media omitted>

Hb 96 A A Dwivedi: बहुत सुंदर🙏🙏

इसे पकाने की विधि भी बता दे और नमक कितना रखना है यह भी।।

कुकर में पकाना चाहिए कि भगौने में

विपुल सर जी बहुत ही बढ़िया 🌹🙏😊💐

Hb 81 Promod Mishra Lko: राम कथा के दो प्रमुख पात्र है दशरथ एवं दशानन , दशरथ दसो  इन्द्रियो को बस में रखने बाले जिनका अवध में शासन था। आत्मा अवध है यानी आत्मा पर शासन था। इसीलिए उनके यहां सत्य का जन्म हुआ यानी सत्य स्वरूप राम का जन्म हुआ। और इधर दशानन दसो इन्द्रियो का भोग करने बाला जिसका लंका में शासन था। असत्य का साम्राज्य था। बस यही से असत्य पर सत्य की विजय को पाने के लिए श्री रामचरित मानस का अवतरण हुआ। इस कि विस्तार से ब्याख्या मिश्रा जी करेंगे।

इसका  उत्तर  क्या  हे

http://freedhyan.blogspot.com/2018/03/normal-0-false-false-false-en-in-x-none_76.html?m=0

http://freedhyan.blogspot.com/2018/03/normal-0-false-false-false-en-in-x-none_9.html?m=0

19/05/2020, 05:17 - Swami Veetragi R Sadhna Mishra: उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम्।

*ऐरावतं* गजेन्द्राणां नराणां च *नराधिपम्*।।

घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न होनेवाला *उच्चैःश्रवा* नामक घोड़ा, श्रेष्ठ हाथियों में *ऐरावत* नामक हाथी और मनुष्यों में *राजा* मुझ को जान ।।१०/२७।।

• Among horses, know me to be the celestial horse *Uccaihsrava*, begotten of the churning of the ocean along with nectar;

• among mighty elephants, *Airavata (Indra's elephant)*; and among men, the *king*.

(10/27)

Bhakt Lokeshanand Swami: गुरुजी ने पूछा, भरत! तुम पद त्याग रहे हो, क्या तुम त्यागी बनना चाहते हो?

-नहीं गुरुजी! मैं त्यागी नहीं हूँ, मैं तो पद का लोभी हूँ।

-भरत, लोभी भी कभी अपने से मिलता हुआ पद छोड़ता है?

-हाँ गुरु जी, मैं तो बड़े के लोभ में छोटा छोड़ रहा हूँ, रामजी का पद, एक नहीं, करोड़ों अयोध्या के पदों से भी बड़ा है। और अयोध्या का पद तो एक है, रामजी के चरण दो हैं। मैं लोभी हूँ गुरुजी, जब मुझे दो मिल सकते हैं, तो मैं एक क्यों लूं गुरुजी?

भरतजी खड़े हो गए, हाथ जुड़ गए, बोले, मेरा एक ही निवेदन है कि जब तक मैं रामजी के चरण कमलों का दर्शन न कर लूंगा, मेरे हृदय की जलन जाएगी नहीं।

"देखे बिनु रघुनाथ पद जिय के जलन ना जाई"

और मैं तो वही कह रहा हूँ जो आपने भगवान के जन्म के समय पिताजी से कहा था कि आपके घर में उनका जन्म हुआ है जिनके भजन के बिना जलन नहीं जाती।

"जासु भजन बिनु जलनि ना जाई"

आपने तब कहा था, मैं आज कह रहा हूँ। मुख ही मेरा है, शब्द तो आपके ही हैं गुरुजी।

देखें, सत्य भी यही है, कि अंत:करण की जलन, अन्य किसी साधन से मिट सकती भी नहीं।

मैं आप सबसे भीख माँगता हूँ, मुझे आशीर्वाद दें कि मुझे रामजी के दर्शन हो जाएँ। अभी माँ ने कहा है कि मुझमें और रामजी में कुछ भी अंतर नहीं है, तो रामजी राजा बनेंगे, मैं चौदह वर्ष वन में रहूँगा। यह राज्य राम जी का है, मैं तो उनका सेवक हूँ।

उनके सिवा मेरा इस जगत में कौन है? मैं उनकी शरण में जाकर, श्रीसीतारामजी को मनाऊँगा। कैकेयी मेरी माँ नहीं है, श्रीसीताजी मेरी माँ हैं। मेरे कारण वे कंदमूल खाती हैं, भूमि पर बैठती, सोती हैं, धूप सर्दी वर्षा सहती हैं, मुझसे बड़ा अपराधी कौन है? ऐसा जीवन मुझे बोझ है। मैं माँ के पास जाऊँगा "माँ! माँ!"

ऐसा कहकर भरतजी जोर जोर से रोने लगे, आँसू धरती पर गिरने लगे। कदाचित् भरतजी गिर न जाएँ, गुरुजी ने भरतजी के दोनों हाथ पकड़कर, अपने पास बैठा लिया।

लोकेशानन्द ने देखा कि भरतजी ने राजसी वस्त्राभूषण उतार दिए और कहा कि मैं कल सुबह ही चलूँगा॥

http://shashwatatripti.wordpress.com

Bhakt Lokeshanand Swami: एक राजा की चिंता का कोई ठिकाना न था। जिस परिस्थिति से वह गुजर रहा था, जिसे ऐसी परिस्थिति से गुजरना न पड़ा हो, वह उस राजा की चिंता क्या समझेगा?

हुआ यह था कि राजा से ब्रह्महत्या हो गई थी। जानबूझ कर नहीं हुई थी, भूलवश हुई थी, पर हुई तो थी। और जिन्हें मार डाला गया था, वे आत्मज्ञानी महात्मा थे। पर यह तो राजा को बाद में पता लगा, जब मारा था तब तो मालूम न था।

राजा ब्रह्महत्या के दोष से बचने के लिए बहुत भाग दौड़ कर रहा था। करोड़ों उपाय करवाए जा रहे थे। फिर भी राजा की चिंता मिट नहीं रही थी। "मैं पापी हूँ! मैंने पाप किया है!" राजा अपनी आँसू भरी आँखों को बंद कर ऐसा ही विचार किए जा रहा था।

अचानक राजा के कान में किसी की आवाज पड़ी। ऐसी आवाज जिसके सुनने मात्र से राजा की सारी चिंता नष्ट हो गई। उसकी करोड़ों उपायों की थकान भी जाती रही। पसीने में सिर से पैर तक भीगे उस राजा को इतना आराम मिला, जैसे किसी के सभी पाप क्षमा कर, उसे फांसी के तख्ते से उतार लिया गया हो।

वह आवाज गुरूजी की थी। गुरूजी बोल रहे थे- "महाराज! महाराज!! आपको क्या हो गया है? आप आँखें क्यों नहीं खोलते?" राजा ने आँखें खोली और गुरूजी, अपनी पटरानी और मंत्रियों को अपने पास खड़ा पाया।

राजा ने चौंक कर अपने चारों ओर देखा। वह तो अपने शयनकक्ष में था। न वहाँ कोई यज्ञ मंडप था, न कुछ और।

"ओह! तो यह सब स्वप्न में हो रहा था?" ऐसा विचार करते हुए, राजा ने चैन की लम्बी साँस ली।

लोकेशानन्द भी आपको आवाज लगा रहा है, "जाग जाओ! जाग जाओ!"

जैसे स्वप्न भोग काल में सत्य मालूम पड़ता है, पर जाग जाने पर असत्य हो जाता है। नींद खुलने पर दोनों मिथ्या हैं, ब्रह्महत्या भी, करोड़ों उपाय भी। जागने पर न ब्रह्महत्या का पाप है, न करोड़ों उपायों का पुण्य।

वैसे ही यह जो जाग्रत का संसार इस समय हमें सत्य मालूम पड़ रहा है, यह भी यहाँ जाग जाने पर, साक्षी हो जाने पर, द्रष्टा हो जाने पर, चिंतन में स्थित हो जाने पर, असत्य ही हो जाता है।

हमें स्वप्न सुधारने का नहीं, स्वप्न से जागने का प्रयास करना चाहिए।

तुलसीदास जी "विनय पत्रिका" में लिखते हैं- सपने में किसी को मारने के पाप से बचने के लिए, चाहे कोई कितना भी भागे, करोड़ों उपाय करने के बाद भी, वह जागे बिना शुद्ध नहीं हो सकता।

"सपनें नृप कह घटए विप्र वध,

विकल फिरै अघ लागे।

बाज कोटि सत यज्ञ करई,

नहीं शुद्ध होई बिनु जागे॥"

Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

*दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत् ।*

*यावज्जीवं च तत्कुर्याद् येन प्रेत्य सुखं वसेत् ।।*

*रात्रि में निश्चिन्तता एवम् सुख की नींद सोने के लिये दिन भर अच्छे कर्म करना आवश्यक होता है उसी प्रकार जीवन के अन्त में निश्चिन्तता एवम् परम् शान्ति की प्राप्ति के लिये जीवन पर्यन्त सत्कर्म करना आवश्यक है।*

*It is necessary to do good deeds throughout the day to sleep for sleeping with no worry and happiness. so in the end of life it is necessary to do good deeds till end of life in order to achieve peace and happiness.*

शुभोदयम *लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी की जय हो🙏🙏

महाराज आपसे विनती है की आप अपने लेखों में उस महान गुरु का भी वर्णन करें जिससे भगवान राम जी ने धनुर्विद्या अभ्यास सीखा था और रावत तथा अनेक असुरों का सनगहार किया।।

उस गुरु का भी महिमा मंडन करें जिसने दशरथ जी को योद्धा बनाया और वो राजा दशरथ कहलाये।।

स्वामी जी आपको कहने का कारण है लोग आपकि सुनते हैं हमारी कोई नहीं सुनता है पापी जन है हम।।

कौशल्या मां कैकेई भरत यह बहुत रुलाते हैं और ठिक भी है रोना चाहिए लेकिन सिर्फ प्रेम अश्रु बहाने से काम नहीं चलेगा समाज में बहुत ही आसुरी शक्तियां फैल गई है और उन्हें नियंत्रित करने के लिए युद्ध कला और विज्ञान कि आवश्यकता है।।

साधु संतों का कर्तव्य है समाज की रक्षा करना और भगवती दुर्गा मां के हाथों में इतने सारे शस्त्रों का कोई तो कारण होगा।।

भगवती दुर्गा ने कितने राक्षसों का वध किया है और वो शक्ति लोगों के भीतर पैदा करने की जरूरत है नहीं तो धर्म की रक्षा कैसे होगी।।

वेदों में स्पष्ट रूप से समाज साधु और ग्रहस्थ जीवन में किया जाने वाला कार्य सम्पादित है।।

भगवान राम श्री कृष्ण ने भी वेदों का अध्ययन किया है और इसलिए वैदिक रीति रिवाजों के अनुसार धर्म तथा समाज की सुरक्षा आपका भी दायित्व है।।

क्षमा हमें न करें बल्कि इस बात पर इतना क्रोध आपके भीतर पैदा हो कि दस बारह अर्जुन,दस पन्द्रह महाराणा प्रताप जगाने का काम शुरू हो।।

हमारी कोई नहीं सुनता है आप महाराज हमारी सुनो आपकी शरण में शरणागत है

पूजा के समय या अपने इष्ट के विषय में सोचते समय यदि आंखों से आंसू गिरते हैं तो यह भक्ति की परिपक्वता को इंगित करता है।

इन आंसुओं को प्रेमाश्रु कहते हैं। इन आंसुओं में बेहद आनंद होता है और सुख का सागर होता है। जगत के आंसुओं में दुख होता है पीड़ा होती है लेकिन प्रेमाश्रु गिरने से मनुष्य की भक्ति में और अधिक प्रगाढ़ता आती है।

मेरा तो यह मानना है जिस मनुष्य ने प्रेमाश्रु का रस नहीं पिया वह प्रेम नहीं समझ सकता और न ही विरह की अनुभूति कर सकता है।

यह केवल भक्ति मार्ग में ही होता है ज्ञान मार्ग एकदम शुष्क और नीरस होता है।

जाकि फटी न पैर बिबाई। बा का जाने पीर पराई।

घायल की गति घायल जाने और न जाने कोय।

ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी मेरो दरद न जाने कोय।।

वह मनुष्य इस विषय पर सब गलत ही टिप्पणी करेगा जिसको प्रेमाश्रु का सुख प्राप्त नहीं हुआ है।

कुंती ने इनके लिए श्री कृष्ण से सदैव दुखी होने का वरदान मांगा था ताकि दुख के कारण वह प्रभु को याद कर सकें।

उद्धव अपनी ज्ञान की गठरी छोड़कर भाग गए थे जब उनके सामने गोपियों ने प्रेमाश्रु की वर्षा की।

क्योंकि जब विरह का और प्रेम का समागम प्राप्त होता है तब प्रेमाश्रुओं में आनंद का रस निकलता है।

मूढ़ जगत इसको समझ नहीं पाता है। वह कुछ भी कयास लगाता रहता है।


इसी ग्रुप में चर्चा।

आपकी कौन सी इंद्री मजबूत है यह आप जानते होंगे में क्या बताऊं।

जैसे यदि आपने कोई चित्र देखा कोई दृश्य देखा और काफी समय के पश्चात भी जब अपनी आंखें बंद करें तो वह दृश्य चित्र आंखों के सामने आ गया तो इसका मतलब यह होगा कि आपके नेत्र मजबूत है।

यदि आपने कोई वस्तु सूघीं और लंबे समय के पश्चात भी उसकी सुगंध सोचने पर आपको महसूस होने लगी तो मतलब यह है कि आप का नासिका मजबूत है तो आप सुगंध सिद्धि या विपस्सना कर सकते हैं।

यदि कोई संगीत आपने सुना और लंबे समय के पश्चात सोचने पर आपके कानों में वह संगीत बजने लगा तो इसका मतलब यह है कि आप अक्षर ब्रह्म नाद ब्रह्म ध्वनि ब्रह्म शब्द योग के माध्यम से अंदर जा सकते हैं।

लेकिन सबसे सरल होता है मंत्र जप।

एक बात याद रखिए सिद्ध पुरुष संत महापुरुष और समर्थ शक्तिशाली गुरु यह भारत में सदैव विद्यमान रहते हैं इसीलिए भारत भूमि को पवित्र भूमि कहा जाता है।

आप खुद देखें महावतार बाबा तैलंग स्वामी अमर महर्षि ऐसे लोग सदैव धरती पर मार्गदर्शन करते रहते हैं गुरु गोरखनाथ बजरंग बजरंग बली बाबा मां काली दर्शन देकर लोगों को ज्ञान देती रहती है।

Bhakt Pallavi: यदि नेत्र मजबूत है तब क्या करना चाहिए🙏🏻

मित्रों ये बड़े हर्ष का विषय है की लाक डाउन के कारण लगभग हर हिंदू जो कभी ईश्वर को नहीं मानता था वह भी ईश्वर को मानने लगा है।

आत्म अवलोकन और योग जो इस समय पांच भागों में कार्य कर रहा है वह इसी कारण निर्मित हुआ है की सनातन की प्रचार हो सके और लोगों को हिंदुत्व की सही व्याख्या मालूम पड़ सके।

🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻

मित्रों एक निवेदन करना चाहता हूं कि यदि आप चाहते हैं आपकी आने वाली पीढ़ियां शांतिपूर्ण जीवन बिता सकें तो आपको सनातन की सत्यता का प्रचार करना ही होगा क्योंकि अन्य कोई रास्ता नहीं है।

क्योंकि और कोई जीने की पद्धतियां धर्म संप्रदाय मजहब यह शांति पूर्वक विश्व को जीने का मार्ग नहीं बता सकते हैं।

मुझे सनातन के अतिरिक्त कुरान बाइबल के दोनों टेस्ट मैंट जैन धर्म बौद्ध इन सब को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

बौद्ध जैन सिख यह तो सब सनातन की ही शाखाएं हैं।

लेकिन जो अन्य मान्यता है या धर्म है वे शांति का मार्ग तो बिल्कुल नहीं दिखा सकती।

क्योंकि उसके मानने वालों को एक किताब की सोच के दायरे में ही दुनिया को देखना है।

उस दायरे के बाहर देखने की छूट है ही नहीं।

वही सनातन अपनी खुद की गीता लिखने की छूट देता है और मार्ग बताता है।

सनातन जहां विश्व बंधुत्व की बात करता है वही कुरान अपने दायरे के बाहर किसी को इंसान भी नहीं समझने देता।

बाइबिल भी यही करती है लेकिन ओल्ड टेस्टामेंट की कुछ बातें भगवत गीता से मिलती हैं।

कुरीतियों के मामले में सबसे अधिक जाति भेद मुस्लिम में ही है। लेकिन वह एक पुस्तक के नाम पर एकत्र हो जाते हैं।

सनातन में इतना अधिक पाखंड छुआछूत नहीं है किंतु इतिहास में इसको अधिक प्रचारित किया गया क्योंकि इतिहास लिखने वाले विदेशी थे।

Swami Pranav Anshuman Jee: https://youtu.be/u4IBWIhOXy8

Hb P N Agnihotri: Bhakti se gyan mein jaya ja sakta hai to kya gyan se bhakti mein aaya ja sakta hai

भक्ति मार्ग सबसे सहज और सरल मार्ग है इसमें जब द्वैत का ज्ञान परिपूर्ण हो जाता है तो इष्ट देव स्वयं अद्वैत का अनुभव करा कर ज्ञान योग का अनुभव करा देता है जिसे योग कहते हैं।

जहां एक तरफ भक्ति मार्ग रसीला आनंददायक और प्रेम से भरा होता है वही सीधे-सीधे ज्ञान मार्ग की प्राप्ति पकाऊ नीरस और अहंकार की जननी हो सकती है।

क्योंकि ईश्वर का अंतिम रूप निराकार ही है अंतिम अनुभव अद्वैत ही है जोकि ज्ञान योग है किंतु द्वेत के द्वारा भक्ति योग का अनुभव आनंददायक है और इसमें हमारे अंदर दासत्व की भावना रहती है जिसके कारण अहंकार नहीं आ पाता अतः पतन होने की संभावना नहीं होती है।

यह भी बिल्कुल सत्य है कि यदि आपको निर्वाण चाहिए मोक्ष चाहिए तो वह बिना अद्वैत के अनुभव के बिना ज्ञान योग के नहीं हो सकता।

किंतु भक्ति योग में जो आनंद का सागर है जो प्रेम और विरह की अनुभूति में प्रेमाश्रु का गिरना है। राम रस का जो पान है जो आनंददायक नशा है। वह ज्ञान योग में नहीं है।

यदि आपको पहले ज्ञान योग हो गया तो आपको भक्ति योग हो यह आवश्यक नहीं है।

आप इसके आनंद से भी वंचित रह सकते हैं।

लेकिन यदि भक्ति योग है तो कर्म योग और ज्ञान योग आने की अधिक संभावना रहती है।

 

 

 


आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 20

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 20


भावनात्मक ब्लैकमेल की संभावना। लॉक डाउन  में।

मित्रों जैसा कि अभी तक देखा गया है की विपक्ष के कुछ नेता और कुछ व्यक्तिगत मान्यताओं के लोग विरोध हर कीमत पर करना चाहते हैं वह कोरोनावायरस नहीं देखते हैं बल्कि सरकार की गलतियां अधिक देखते हैं और उनको फ्लाप करने के लिए और विरोध के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं यहां तक कि उनका विचार है कि वह मरने के लिए पैदा हुआ है और किसी भी कीमत पर मोदी को सफल नहीं होने देंगे।

यह तो निश्चित है लाक डाउन 4 में छूट दी जाएगी रियायत दी जाएगी क्योंकि कोई भी देश पूरा लाक डाउन कर भुखमरी की कगार पर पहुंचना नहीं चाहता है।

आप सड़क पर चल रहे हैं की अचानक एक छोटा सा खूबसूरत बच्चा रोता हूआ पास आकर आपके पैर को पकड़ लेता है। आपके अंदर भावनाएं हैं और आप क्रूर नहीं है आप दयालु हैं आपने उस बच्चे को गोद में ले लिया या उसके सर इत्यादि पर हाथ फिरा कर उसकी सहायता करने की सोची।

बस यहीं पर आप इस महामारी के शिकार हो गए।

क्योंकि वह बच्चा संक्रमित है या उसको संक्रमित करके आपके पास भेजा गया था ताकि आप इस रोग के शिकार हों और मृत्यु को प्राप्त करें।

आने वाले समय में इस तरह की अनेकों चालबाजियां भारत को‌ रोग मुक्ति नहीं होने देंगीं।

अतः सावधान रहिए स्वस्थ रहिए अपने घर में प्रसन्न रहिए।

इस पोस्ट को फैलाकर जनसेवा कीजिए लोगों को जागरूक कीजिए।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Bhakt Sachin Goyal Meditation Delhi: प्रणाम विपुल जी

मुझे कुछ सूझ नहीं रहा इसलिये ये मैसेज कर रहा हूँ

Sir, हमारे घर में बहुत तनाव रहता है। हमारे घर मे वाणी पर किसी का नियंत्रण नहीं है । विशेषतः मेरी पत्नी का। वो हमेशा  बहुत ही कड़वी बाते बोलती है जिससे  अक्सर ही तनाव रहता है। वो मेरी बात बिल्कुल नही सुनती है और मुझे और मेरे माता पिता बहन सब को अपना दुश्मन मानती है

ऐसा लगता है कि घर मे कोई नेगटिव एनर्जी या ब्लैक मैजिक हो रहा है

कृपया कुछ बताइये क्या करना चाहिये

कभी-कभी कुछ व्यक्तिगत कारणों से भी तनाव पैदा होता है और मनुष्य जो अपेक्षा करता है वह उसको प्राप्त नहीं होती तो उसका व्यवहार बदल जाता है।

आपको व्यक्तिगत पोस्ट कर रहा हूं।

वैसे आप मां बगलामुखी का स्तंभन मंत्र कर सकते हैं। स्वामी तूफान गिरी महाराज ने इस ग्रुप में वह मंत्र डाला भी है।

उसके करने की विधियां नेट पर भी दी है।

आप वहां पर भी देख सकते हैं।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

जी प्रभु हटा दिया 🙏🌹

लेकिन यह करने के पहले आप दुर्गा सप्तशती का अर्गला कवच और कीलक एक बार पढ़ें। साथ ही माला करने के बाद क्षमा प्रार्थना पढ़ें।

Bhakt Ram Ji Orissa: कुंजिका बोल रहा है कि नहीं अर्गल ना ही कवच का कोई पाठ करने का आवश्यकता नहीं  सिद्ध कुंजिका पाठ कर लो हो जाएगा

नहीं यह तो बोनस है और यह सब की कुंजियां है।

Bhakt Shyam Sunder Mishra: हे भगवान। 😱🤔🤭😢😳

श्री संत समुदाय के नवागंतुक संत   श्री वीतरागी जी महाराज का इस आध्यात्मिक समूह में स्वागतम नमन वंदन अभिनंदन करता हूँ गुरु जी आपको श्याम सुंदर मिश्र का कोटि कोटि प्रणाम स्वीकार करें। 🌹🙏🌹🚩🚩

Amita Bhabhi: Sun's journey from Dakshinayan to Uttarayan. 12 photos taken across the year on the same day of every month from the same spot at the same time.

How wonderful the discipline of the nature.

But human's .......?

We must try to learn.......

Mrs Sadhna H Mishra: परम पूज्य स्वामी वीतरागानंदजी महाराज, का हम सभी सदस्यों की ओर से अनंत प्रणाम ।श्री स्वामी जी  वेदांत के मर्मज्ञ और उच्च कोटि के विद्धान हैं।उनकी ख्याति पूरे भारत में है,उनसे नम्र निवेदन है कि वे हम सभी  का मार्ग प्रशस्त करें।🙏🏽🙏🏽🙏🏽🌻🌻🌻

Bhakt Shyam Sunder Mishra: महाराजा जी यह तो हम संत एवं ऋषि परंपरा से जुड़े सनातनियों का परम कर्तव्य है ऋषिवर।

कृपया अपने श्रीमुख से ज्ञान गंगा की अमृतमयी वर्षा करके हम सभी श्रद्धालु भक्तों की भगवत प्राप्ती की अभिप्सा और तृष्णा को तृप्त करें बाबा जी।

 Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: प्रभु,,आप हनुमान चालीसा का पाठ भी साथ मे सुबह शाम करो,,घर के मंदिर में 7दिन पानी का कलश थक्कन के साथ रखो,,ओर वो पानी पीपल में छोड़ दो।

Bhakt Shyam Sunder Mishra: *देवी चित्रलेखा जी* की *गाय हिन्दू की, और बकरा मुसलमान का* वाली शेरो शायरी

*व्यास पीठ* के मंच से मस्जिद की अज़ान के लिए कथा रोक दो वाले बयान पर

लाइन दर लाइन,

*आचार्य अंकुर आर्य* जी का तर्कों से भरपूर यह वीडियो अवश्य देखें 🙏

भागवत कथा के मंच से अल्लाह के नाम का नाच गाना, शेरो शायरी आदि बंद हो इसके लिए इस वीडियो देखकर सेक्युलरों तक पहुँचाएं

https://youtu.be/RSFVFruG5NA

पुराना वीडियो भी देखें

https://youtu.be/Hdy1NMpMhwM


Hb 96 A A Dwivedi: अध्यात्म के अवलोकन करने हेतु यह समुह बनाया गया है।।

चर्चा का स्तर कम होता जा रहा है और कोई भी ज्ञानवरधक चर्चा नहीं हो रही है।।

न कोई अवलोकन हो रहा है और हिन्दू मुस्लिम इन सबसे इसे मुक्त रखें🙏🙏

Bhakt Parv Mittal Hariyana: बिल्कुल सही कह रहे हो प्रभु।

विपुल जी से आग्रह है साधन पर बल देने का सर्वाधिक प्रयास हो। ज्ञान चर्चा जोकि कॉपी पेस्ट के अतिरिक्त कुछ नही है। इसे त्वरित बन्द करवाये और साधन के महत्व को प्रतिपादित करें। संख्या बल के साथ उत्कृष्टता पर पूर्ण ध्यान हो। इस ग्रुप के कारण बहुतेरों के जीवन मे अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है इस महत्ता को सभी जाने, माने और निभाये।

सभी सदस्य इस हेतु प्रयास करें और एडमिन वर्ग तो इस हेतु बलपूर्वक समर्पित रहे। तभी महत्ता है। अन्यथा नही। किसी भी जिज्ञासा का उत्तर अनुभवजन्य हो, कोई भी सदस्य या एडमिन इस हेतु सतर्क रहें।

Hb 96 A A Dwivedi: ऋषियों की परम्परा सनातन संस्कृति के उत्थान के लिए हमारे गुरु महाराज लोगों ने अपना सर्वस्व त्याग कर दिया और वो आचरण पेश किया जिसमें उतरने पर अनुमान जैसी कोई चीज नहीं होती है होता है सिर्फ अनुभव।।

लेकिन सनसार में  धन और संपत्ति के लिए कार्य कर रहे लोगों के प्रति हि आकर्षण होता है यही कलियुग है।।

जो भी व्यक्ति अपने भीतर प्रवेश करने की कोशिश करेगा ईश्वर का आशीर्वाद जरूर प्रापत होता है और खुली आंखों से सिर्फ वो जानकारी मिलती है जो पटल पर पहले ही मौजूद हैं और नश्वर है।।

छिद्र वाले घड़े कि भांति जीवन कम हो रहा है और काल देखकर हंस रहा है कि यह कापी पेस्ट वाले हैं बहुत ही स्वादिष्ट होंगे।।

गुगल से ही मुक्ति मिलती तो आंख बंद करने की जरूरत हि नहि थी।।

टैक्नोलॉजी का उतना ही उपयोग करना चाहिए जितना आवश्यक है।।

महामारी से लडने के लिए अपने शरीर को मजबूत बनाएं और आत्म विश्वास के साथ ईश्वर को समर्पित रहते हुए साधना करें।।

Bhakt Varun: विपुल जी प्रणाम। कृपया मुझे बताएं कि साधक को प्याज क्यों नहीं खाना चाहिए?

+91 96726 33273: Ek mantra Ho. Jo gurumukh se Mila ho to ati uttam.. Ek dev ho.... Phir sab kuchh mil jaata h.  . Time lag sakta h. Par milega jaroor... Bas ek k hi ho jaao..

Pyaj khane se naadi shodhan me problems aati h

+1 (913) 302-8535: It is not only important but a prerequisite for a devotee to stay away from consuming any negative products as they create obstacles in the upward spiritual journey. Few examples of negative products are any kind of meat, egg, negative self-talk, criticising, condemning, and ridiculing any individual, reading, listening. or watching literature, conversations, and movies, intentionally harming someone and such. In fact, Sadhna will have negative, sometime very negative impact on individual who is not trying to purify himself / herself and jump right away in the ocean of Sadhna.

It takes years to purify oneself internally. This is where a capable Guru is required. One who can hold your hand, protect you from negativity, shows the right path of doing Sadhna, and forgives you for your mistakes.

The next question is how can I find such a Guru. The simple answer is that one should have a strong desire to purify oneself, stay away from "Asakti" or attachment, and do the darshan of lotus feet of God or Goddess. God will send the right person, an able Guru, in your life at the right time. The prerequisite is that one should have pious and strong intention to do "darshan of lotus feet" of God.

Finally, one should never attempt to seek divine power to control someone. Never. However, it is appropriate to ask for protection and solution for worldly problems from God as these small worldly problems (relationship, marriage, money etc.) will create distractions in Sadhna.

Bhakt Varun: कैसे करते हैं नाड़ी शोधन

लहसुन और प्याज तामसिक माने जाते हैं। यूं ही मन में विकृति उत्पन्न करते हैं साथ ही शरीर में आलस्य और प्रमाद भी पैदा करते हैं।

तुमको यह सब करने की आवश्यकता नहीं है शक्ति स्वयं सब कराती है।

यह सब प्राणायाम हैं।

+91 99924 98893: ये कलयुग है इसमें भक्ति कैसे भी करलो सब ठीक है ,उठ कर ,बैठ कर, सोते समय ,नहाते समय ,बोलतेसमय, जागते समय ,काम करते समय , भगति में फंड का कोई महत्व नही है, जब मन करे भगवान का चिंतन करो यही भगति है, जिनका चिंतन शुद्ध है यही भगति है , भगवान का चिंतन ही भगति है , भजन करने से कुछ नही होता,

 

गुरु ढूंढ रहा हूं कई सालों से 🙏


जब तक वक़्त नही आता तब तक गुरु नही मिलते।  ,,,,,हम 15  साल के थे जब हमको गुरु मिले।  सब पिछले जन्मों की।  कहानी होती है।


मेरा उत्तर

गुरु को ढूंढा नहीं जाता है गुरु खुद शिष्य को ढूंढ लेता है।

इस गुरु के चक्कर में किसी गुरु घंटाल के चक्कर में मत पड़ जाना।

सत्य सुंदर उपाय होता है अपने इष्ट का अपने कुलदेव का सतत निरंतर मंत्र जप करो यह मंत्र जप तुमको गुरु से लेकर निर्वाण तक योग से लेकर ब्रह्म ज्ञान तक स्वत: पहुंचा देता है।

यदि उचित लगे तो अपने ही घर पर बिना पैसे खर्च किए बिना गुरु के सचल मन वैज्ञानिक ध्यान की विधि करो जो तुमको अनुभव के साथ गुरु तक पहुंचाने में सहायता कर देगा। लिंक नीचे है।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/04/blog-post_45.html


 Hb 87 lokesh k verma bel banglore

*पद्माकरं दिनकरो विकचीकरोति*

 *चन्द्रो विकासयति कैरवचक्रवालम्।*

*नाभ्यर्थितो जलधरोSपि जलं ददाति*

 *सन्तः स्वयं परहिते सुकृताभियोगा:*

*जैसे बिना किसी के द्वारा प्रार्थना किये ही सूर्य कमल-समूह को विकसित करता है, जैसे चन्द्रमा कैरव–समूह को प्रफुल्लित करता है, तथा जिस प्रकार मेघ प्राणियों को जल देता है,उसी प्रकार महापुरुष स्वाभाविक, स्वयं ही परहित में लगे रहते हैं।*

*Like the Sun praying without anybody, the Sun develops the lotus group, Like the moon  hilarious the caravans group. And the way the cloud gives water to the creatures, In the same way, great men are natural, engaged themselves in benevolence.*

लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

Swami Veetragi R Sadhna Mishra: *अश्वत्थः*  सर्ववृक्षाणां  देवर्षीणां  च  नारदः।

गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां *कपिलो मुनिः*।।

मैं  सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष, देवर्षियों में *नारद मुनि*, गन्धर्वों में *चित्ररथ* और सिद्धों में कपिल मुनि हूं

।।१०/२६।।

• Among all trees, I am Asvattha (the holy *fig tree*); among the celestial sages, *Narada*;

• among the Gandharvas (celestial musicians), *Citraratha*,

• and amomg the Siddhas, I am the sage *Kapila*.

(10/26)

Swami Veetragi R Sadhna Mishra: <Media omitted>

Bhakt Lokeshanand Swami: भरतजी कहते हैं, गुरुजी! मैं आर्त हूँ, ठगा गया हूँ, विधि ने मुझे ठगा है, ऐसा कौन सा कुकर्म है जो मैं नहीं कर सकता।

गुरुजी, लोग मेरे लिए चाहे जैसा बोलते हों, मुझे दुख नहीं, पिताजी स्वर्ग चले गए, उसका भी मुझे दुख नहीं, आपके सम्मुख उत्तर देता हूँ और मेरा हृदय फट नहीं जाता, इसका भी दुख नहीं।

पर मुझे एक बात का दुख है कि श्रीसीतारामजी को मेरे कारण कष्ट सहना पड़ रहा है, इस सारे अनर्थ का कारण मैं हूँ। कैकेयी का पुत्र कैकेयी से भी अधम है क्योंकि कारण से कार्य कठिन होता ही है।

यह तो वह सिंहासन है जिस पर भागीरथ बैठते थे, दिलीप, हरीशचंद्र, महाराज रघु बैठते थे, इसपर मुझ पापी को बिठाइएगा तो पृथ्वी रसातल में डूब जाएगी। मैं ही अयोध्या के दुख का एकमात्र कारण हूँ, मेरे में इसे हाथ से छूने भर की भी योग्यता नहीं है।

गुरुजी ने पूछा, भरत! इस पृथ्वी पर हिरण्यकशिपु जैसे राजा हो गए, रावण जैसे राजा हैं, तब भी पृथ्वी रसातल को नहीं गई, तुम्हारे बैठने से चली जाएगी? भरतजी ने कहा, गुरुजी! वो तो रामजी के कुछ नहीं थे, वे पाप करके राजा हो गए इसमें हैरानी नहीं, पर यदि राम का भाई भी वैसा ही करेगा तब तो पृथ्वी रसातल को चली ही जाएगी।

फिर भी गुरुजी, यदि पिताजी की आज्ञा मानने न मानने का प्रश्न है, तो उन्होंने स्वयं मुझे राजपद दिया है, माने राजा का पद दिया है, राजा तो रामचन्द्रजी हैं, और आपने ही पढ़ाया था कि पद माने चरण होता है, मुझे तो प्रिय पिताजी ने रामचन्द्रजी के चरणों की सेवा दी है।

मैं तो उन्हीं चरणों में जाऊँगा गुरुजी! मैं सिंहासन पर नहीं बैठूंगा।

देखें, किस प्रकार से सच्चा संत बड़े से बड़े सिंहासन को भी ठोकर मार कर, रामजी जिस मार्ग पर चले, उस मार्ग का अवलम्बन करता है।

अब विडियो देखें- भरत वशिष्ठ संवाद

https://youtu.be/Prno51D86U0

Bhakt Lokeshanand Swami: मैं मौमु सेठ के बारे में बहुत तो नहीं जानता, पर इतना तो जानता ही हूँ कि वह पहले से ही सेठ नहीं था। वह तो एक गरीब आदमी था, झन्नु उसका नाम था।

झन्नु हमेशा झन्नाया रहता। बिना बात का झगड़ा करना तो उसके स्वभाव में ही था। किसी ने पूछ लिया कि झन्नु भाई टाईम क्या हुआ होगा? तो झन्नु झनझना जाता और कहता- यह घड़ी तेरे बाप ने ले कर दी है? यहाँ टाईम पहले ही खराब चल रहा है, तूं और आ गया मेरा टाईम खाने। भाग यहाँ से।

अब ऐसे आदमी के साथ कौन काम करे? न उसके पास कोई ग्राहक टिकता, न नौकर। यही कारण था कि वो जो भी काम करता था, उसमें उसे नुकसान ही होता था।

कहते हैं कि एक संत एक बार झन्नु के पास से गुजरे। वे कभी किसी से कुछ माँगते नहीं थे, पर न मालूम उनके मन में क्या आया, सीधे झन्नु के सामने आ खड़े हुए। बोले- बेटा! संत को भोजन करा देगा?

अब झन्नु तो झन्नु ही ठहरा। झन्ना कर बोला- मैं खुद भूखे मर रहा हूँ, तूं और आ गया। चल चल अपना काम कर।

संत मुस्कुराए और बोले- मैं तो अपना काम ही कर रहा हूँ, बिल्कुल सही से कर रहा हूँ। तुम ही अपना काम सही से नहीं कर रहे।

झन्नु झटका खा गया। उसे ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी। पूछने लगा- क्या मतलब?

संत उसके पास बैठ गए। बोले- बेटा! मालूम है तुम्हारा नाम झन्नु क्यों है? क्योंकि झन्नाया रहना और नुकसान उठाना, यही तुम करते आए हो।

अगर तुम अपना स्वभाव बदल लो, तो तुम्हारा जीवन बदल सकता है। मेरी बात मानो तो चाहे कुछ भी हो जाए, खुश रहा करो।

झन्नु बोला- महाराज! खुश कैसे रहूँ? मेरा तो नसीब ही खराब है।

संत बोले- खुशनसीब वह नहीं जिसका नसीब अच्छा है, खुशनसीब वह है जो अपने नसीब से खुश है। तुम खुश रहने लगो तो नसीब बदल भी सकता है। तुम नहीं जानते कि कामयाब आदमी खुश रहे न रहे, पर खुश रहने वाला एक ना एक दिन कामयाब जरूर होता है।

झन्नु बोला- महाराज! दुनिया बड़ी खराब है और मेरा ढंग ही ऐसा है कि मुझसे झूठ बोला नहीं जाता।

संत बोले- झन्नु! झूठ नहीं बोल सकते पर चुप तो रह सकते हो? तुम दो सूत्र पकड़ लो। मौन और मुस्कान। मुस्कान समस्या का समाधान कर देती है। मौन समस्या का बाध कर देता है।

चाहे जो भी हो जाए, तुम चुप रहा करो, और मुस्कुराया करो। फिर देखो क्या होगा?

झन्नु को संत की बात जंच गई। और भगवान की कृपा से उसका स्वभाव और भाग्य दोनों बदल गए। फल क्या मिला? समय बदल गया, झन्नु मौन और मुस्कान के सहारे चलते चलते मौमु सेठ बन गया।

लोकेशानन्द कहता है कि आप टेलिविज़न नहीं हैं जो आपका रिमोट दूसरे के हाथ रहे। वह चाहे तो आप हंसें, वह चाहे तो रोएँ। हमारा चेहरा हमारा है। यह हंसेगा या रोएगा, इसका निर्णय दूसरा क्यों करे? अभी निर्णय करो, कि चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, हम सदा मुस्कुराएँगे। तब दुनिया में कोई भी आपके चेहरे की मुस्कान न छीन पाएगा। याद रहे-

"गुजरी हुई जिंदगी को कभी याद ना कर,

तकदीर में जो नहीं तो फ़रियाद ना कर।

जो होना होगा वो होकर ही रहेगा,

कल की फिक्र में आज हंसी बर्बाद ना कर॥"

http://freedhyan.blogspot.com/2018/04/blog-post_9.html?m=0

http://freedhyan.blogspot.com/2019/02/blog-post_22.html?m=1

 हे प्रभु। हम अज्ञानी नहीं जानते कि हम एक फोटो पोस्ट करने से तेरी बनाई प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं।

🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻

Bhakt Rishi Srivastva Fb 1: गुरुवर मुझे 100 करोड़ हिन्दू ग्रुप का फेसबुक पर मॉडरेटर बनाया गया है और हिन्दू कम्युनिटी अमेरिका का पॉपुलर बैच होल्डर मिला है

सुंदर सेवा करते रहो।

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 21




आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 19 (योग और वेद महावाक्य)

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 19 (योग और वेद महावाक्य)

Bhakt Dr Arun Gupta Rohtak Fb: Om namah Baba ji

प्रभु जी मैं न सन्यासी हूं न मैं गुरु हूं न मैं कोई बाबा हूं मैं तो एक इंजीनियर हूं पेशे से जो प्रभु कृपा से गुरु कृपा से आप लोगों की कुछ सेवा कर पाता है।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻😃😃

जो हमारे षट् दर्शन हैं उनमें से एक है योगशास्त्र जो पतंजलि महाराज ने लिखा है और उसमें उन्होंने योग का अनुभव कैसे करें उसके लिए 8 अंगों वाला योग बताया है। जिसे अष्टांग योग कहते हैं।

आप किसी भी मार्ग से चले जब आपको वेदांत महावाक्य का अनुभव होता है तब आपको योग घटित होता है।

पहला वेदांत महावाक्य है अहम् ब्रह्मास्मि।

जिसमें मनुष्य को साकार ब्रह्म का और निराकार ब्रह्म का अनुभव सा होता है की मैं ही इस सृष्टि का करता हूं। मैं ही सभी देव हूं सर्वव्यापी हूं इस तरह का विचार आता है। यह अनुभूति अब समय से लेकर लंबे समय तक रहती है।

दूसरा है अयम आत्मा ब्रह्म। जिसमें अनुभव होता है कि यह जो मेरी आत्मा है यानी जो जीवात्मा है यही परमात्मा है हमारी आत्मा उस ब्रह्म शक्ति से जुड़ी हुई है।

तीसरा है तत् त्वम् असि। हमको जो कुछ भी जगत में दिखता है वह तू ही है तू यानी ब्रह्म।

चौथा है प्रज्ञानं ब्रह्म। मेरी प्रज्ञा में ज्ञान में जो कुछ भी आता है मैं जो कुछ भी हूं वह ब्रह्म है।

पांचवा सारवाक्य कहलाता है।

सर्वं खल्विदं ब्रह्मम् - "सर्वत्र ब्रह्म ही है"

जिसको मैं कुछ संशोधन कर बोलता हूं सर्वत्र ब्रह्म सर्वस्व ब्रह्म।

ऐसे कोई भी महावाक्य का अनुभूति हो वह हमें जगत का सृष्टि का अनेकों अनेक ज्ञान दे जाता है।

जो 24 घंटे इस अनुभूति में रहता है वह ब्रह्म स्वरूप कहलाता है।

और यही सॉन्ख्य योग है।

अब यदि यह अनुभूति हुई तो इसकी पहचान कैसे करें।

इसकी आंतरिक पहचान होती है जो भगवत गीता में बताई गई है।

सबसे पहले क्या आपके अंदर समत्व की भावना समानता की भावना आई है। क्या आप दिल से मानव जाति को एक मानते हैं ऊंच-नीच नहीं मानते हैं। ना कोई छोटा ना कोई बड़ा सब ईश्वर की संतान और आत्मा है।

दूसरा क्या आपकी बुद्धि स्थिर हो गई है यानी अपना दुख में दुखी होते हैं ना सुख में सुखी होते हैं ना सम्मान पाकर प्रसन्न होते हैं ना अपमान मिलकर दुखी होते। यानी आप स्थिर बुद्धि हो गए।

तीसरा क्या आप सदैव प्रभु चिंतन में रहते हैं 24 घंटे आपको उसका ध्यान रहता है आपकी बुद्धि सदैव उस ईश्वर में लिप्त रहती है यानी आप स्थितप्रज्ञ हो गए हैं।

और पतंजलि के दूसरे सूत्र के अनुसार क्या आपके अंदर आपके चित्त में कर्म करते समय कोई संस्कार तो पैदा नहीं होते कोई वृत्ति तो नहीं आती मतलब आप किसी भी कार्य को छोटा बड़ा नहीं समझते और भगवत गीता के अनुसार कर्मसु कौशलम् अपने काम को मन लगाकर कुशलता के साथ बिना फल की इच्छा से निष्काम कर्म करते हैं।

आपको किस वेद महावाक्य का अनुभव हुआ।

Bhakt Dr Arun Gupta Rohtak Fb: Koi nahi

Kosis Kar Raha hu

यह अनुभव कोशिश से नहीं होता है यह बिल्कुल हमारे हाथ में नहीं है प्रभु कृपा से अचानक होता है।

Bhakt Dr Arun Gupta Rohtak   Us rah pe chal rahe hain

Rah to patanjali ji Ka hai

Mai Apke margdarshan SE dhanay hua

Aur ji tor kosis karunga

Apna ashirwad banay

पतंजलि का मार्ग हठयोग का मार्ग एक लंबा रास्ता है और कठिन है सबसे आसान तरीका है कलयुग में मंत्र जप यानी भक्ति के द्वारा योग का अनुभव और भक्ति योग के द्वारा ज्ञान योग तक की यात्रा और कार्य में कर्युमग आ जाना।

यदि आप ईश प्राणीधान निभा लेते हैं तो आपको भक्ति का मार्ग बहुत ही सुलभ आनंददायक मिल जाता है और भक्ति योग होने की संभावना रहती है।

Bhakt Dr Arun Gupta Rohtak Fb: Yahi path pakara hai

 Jai gurudev ji

Ap mahan hai

Dhanay hua

नहीं सर यह वाक्य मेरे लिए उचित नहीं है। मैंने कोई महान कार्य नहीं किया है।

Bhakt Dr Arun Gupta Rohtak Fb: Isase Kam Nahi hain

सॉरी जिंदगी में मैंने कुछ नहीं किया सब प्रभु कृपा से प्राप्त हुआ है उसकी ही लीला है इसलिए वह ही महान है।

+1 (913) 302-8535: 16/05, 22:52. - 100% agree. However, this sudden moment comes with the blessings of a Guru.

Blessed are those who are  walking on spiritual journey in the guidance of a real spiritual Guru.

Satsang is good. However, satsang and self-experience are two different things.

I can not explain it because individuals differ in their self-experience.

May God Bless All.

But those who does not have सदगुरु??

Every thing is with blessing of God only।

Even finding of sadguru, only possible with the blessing of God।

Bhakt Dr Arun Gupta Rohtak Fb: But judgment is difficult

In this scenario

Have you got guru immediately after your birth

God is the only and lost guru of universe

Rest is our belief and faith

+1 (913) 302-8535: My mother was my first sadguru. I watched her. Whatever she was doing, I started doing. Someone has explained karma. My mother is in better place. However, just before she left us 11 years ago, I came in touch with a sadguru. Since then whatever my sadguru suggests me to do, I do. Blessings started coming from heaven. Life start turning in a positive way. This created more belief in sadguru. Sadguru always gives, never asks anything in return. I am blessed. Most likely it is my mother's blessings.

Again, both theory and practical are needed to pass the life exam. However, my sadguru emphasizes more on practical aspect. Simple things like I have donated 1 minute per hour to meditation as per my sadguru's instructions. Doing japa of guru mantra, lightening of ghee diya, meditating on God, living in present moment at the time of mediation are simple things to say but difficult to practice. Sadguru watches my progress and suggests me to next level of Sadhna when I meet him on Guru Purnima every year.

I can say from my own experience that both the satsang and doing Sadhna in the guidance of a sadguru are necessary. However, without blessings of a sadguru, how can one progress, I can not imagine. There are baby steps that sadguru suggests you to do. I empty out myself at the time of meditation. That is the time when I try to connect mentally with my sadguru first, and Goddess later.

+1 (913) 302-8535:

एक भी आँसू न कर बेकार

जाने कब समंदर माँगने आ जाए

पास प्यासे के कुँआ आता नहीं है

यह कहावत है अमरवाणी नहीं है

और जिसके पास देने को न कुछ भी

एक भी ऎसा यहाँ प्राणी नहीं है

कर स्वयं हर गीत का श्रंगार

जाने देवता को कौन सा भा जाय

चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण

किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं

आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ

पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं

हर छलकते अश्रु को कर प्यार

जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!

व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की

काम अपने पाँव ही आते सफर में

वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा

जो स्वयं गिर जाए अपनी ही नजर में


हर लहर का कर प्रणय स्वीकार

जाने कौन तट के पास पहुँच जाय

Bhakt Parv Mittal Hariyana: रे कान्हा, तेरी बांसुरी मै बन जाऊ।

रे मोहन, तेरे अधरो पर सज जाऊ।।

रे कान्हा..

होले होले छुना मुझको,

सांसो से अपनी जीवन देना,

श्यामल कर से, छिद्रों को भर दो,

मधुर तान को विवश कर दो,

रे सांवल तेरे कर्णो में बस जाऊ,

रे कान्हा ....

संग रहु प्यारे तेरे हरदम,

कभी कटि कभी सोहु अधरन,

बंधन ऐसा बंध जाऊ सांवल,

सोचु तुम बिन तो, हो जाऊ बावल,

रे प्यारे, बस तुझमे ही खो जाऊ

रे कान्हा...

कैसे छोड़ोगे प्रभु जी हमको,

जब सौंप दिया हो जीवन तुमको,

शांति चित्त को तुमसे मिलेगी,

प्रेम मधुरिमा जब बरसेगी,

रे मोहन, तेरी राहों में बिछ जाऊ,

रे कान्हा, तेरी बांसुरी मै बन जाऊ

Bhakt Lokeshanand Swami: आज अयोध्या में बहुत दिनों बाद दरबार लगा है। राजसिंहासन सूना पड़ा है, वशिष्ठजी सभाध्यक्ष हैं।

भरतजी और राममाता ने दरबार में प्रवेश किया। विचित्र दृश्य है, होना तो यह चाहिए था कि भरतजी माँ को सहारा देते, यहाँ माँ ही भरतजी को सहारा देकर ला रहीं हैं। उनका अपने से खड़े रह पाना ही कठिन हो रहा है, चलना तो दूर की बात है।

कौशल्याजी बाँई ओर के सिंहासन पर बैठ गईं, भरतजी ने कातर दृष्टि से पहले शत्रुघ्नजी की ओर देखा, फिर भूमि पर दृष्टि टिका ली। शत्रुघ्नजी ने तुरंत नीचे भूमि पर उतरीय बिछा दिया, भरतजी बैठ गए।

गुरुजी धीर गंभीर वाणी से बोले, भरत! चक्रवर्ती महाराज ने श्रीराम को वनवास और तुम्हें यह राजपद दिया है, जैसे रामजी ने पिताजी की आज्ञा मानी, तुम भी मानो। कम से कम, जब तक रामजी लौटकर अयोध्या वापिस नहीं आ जाते, तब तक तो बैठो।

अधिकार समझकर नहीं, तो जिम्मेदारी समझकर, कर्तव्य समझकर ही बैठो, पर बैठो। रामजी के आ जाने पर, जो उचित समझो करना, पर अभी तो पद संभालना ही योग्य है।

भरत! यह अयोध्या रूपी पौधा कितने कितने महापुरुषों के जीवन से सींचा गया है, क्या यह यूँही सूख जाएगा?

राममाता का भी यही मत है, वे भी समझाती हैं।

सभी मंत्री भी यही समझा रहे हैं।

पर भरतजी का मत है कि पहले मैं भगवान का दर्शन करूंगा, राज्य संचालन बाद में देखा जाएगा।

देखें, धर्म दो प्रकार का माना गया है, देह धर्म और आत्म धर्म। जहाँ देह धर्म, आत्म धर्म में रुकावट बन जाता है, वहाँ महापुरुष देह धर्म छोड़ देते हैं। भरतजी भी देह धर्म छोड़ रहे हैं। भरतजी कहते हैं, मेरा जन्म रामजी की सेवा के लिए हुआ है, भोग भोगने के लिए नहीं हुआ।

लोकेशानन्द का आग्रह है कि अब आप पाठकजन विचार करें, आपका जन्म किसलिए हुआ है?

Bhakt Lokeshanand Swami: वह कहानी तो आपने सुनी ही होगी जिससे बाप अपने बच्चों को एकजुट रहने के लाभ सिखाता है, जिसमें अकेली लकड़ी टूट जाती है, पर लकड़ियों का गट्ठर नहीं टूटता।

एक तीन बच्चों के बाप को भी मरते हुए वह कहानी याद आ गई। उसने सोचा की मैं भी अपने बच्चों को वह शिक्षा दूंगा। उसने अपने बच्चों से कहा कि तीन लकड़ियाँ ले आएँ।

बड़ा बेटा बोला- क्या करोगे लकड़ी का?

मंझला बोला- आग जलाना चाहता होगा।

छोटा बोला- कोयले सुलगा दूं?

बाप- मूर्खों! लकड़ियाँ लाओ, तीन लकड़ियाँ।

बड़ा- छोटे! जा ले आ। यह बुड्ढा मानेगा नहीं।

छोटा भुनभुनाता हुआ लकड़ी की टाल से तीन लकड़ियाँ ले आया। उन्हें देखकर बाप की साँस सूख गई। छोटा तीन मोटी मोटी लकड़ियाँ ले आया था। वह तो एक ही टूटनी मुश्किल थी। पर उसे कहानी तो पूरी करनी ही थी। बोला- अब एक रस्सी लाओ।

छोटा- अब रस्सी माँग रहा है, पहले ही कहता तो साथ ही ले आता। मैं तो अब जाने से रहा।

बड़ा- रस्सी नहीं है घर में।

बाप- रस्सी लाओ।

मंझला- छोटे! ले मैं अपने पायजामे का नाड़ा दे रहा हूँ।

मंझले ने नाड़ा निकाला, और पायजामा हाथ से पकड़कर खड़ा रहा।

बाप- इन लकड़ियों को बाँधो।

छोटे ने बाँध दी।

बाप- अब इन्हें तोड़ो।

बड़ा- बुड्ढा पागल हो गया लगता है। जा छोटे कुल्हाड़ी ले आ।

बाप- कुल्हाड़ी से नहीं, हाथों से तोड़ो।

छोटा- ये टूटने वाली लगती हैं? सवाल ही पैदा नहीं होता।

बाप खुश हुआ कि कहानी आगे बढ़ रही है। बोला- अब इन्हें खोल दो।

मंझला- ला भाई मेरा नाड़ा दे।

बाप- अब इस एक को तोड़ो।

बड़ा- ला मैं देखता हूँ।

उसने अपना घुटना लकड़ी पर टिकाया और पूरा जोर लगा दिया।

तड़क की आवाज हुई। बाप ने देखा कि लकड़ी वैसी की वैसी है, बड़ा जमीन पर पड़ा है, उसका घुटना टूट गया है।

बड़ा- हाय मैं मर गया।

मंझला- बुड्ढा खूसट, सनकी, उजड्ड।

छोटा- चैन से मरता भी नहीं।

बूढ़े बाप ने आँखें बंद की, लंबी साँस ली और मर गया।

लोकेशानन्द कहता है कि समय बदल गया, लोग बदल गए, कितनी ही पुरानी आजमाई हुई कहानी हो, सुनने वाले बात का बतंगड़ बना कर, उन कहानियों का बेड़ागर्क कर ही देते हैं।

Swami Toofangiri Bhairav Akhada: <Media omitted>

Swami Toofangiri Bhairav Akhada: <Media omitted>

स्वामी वितरागी जी महाराज आपका इस ग्रुप में स्वागत है। आपसे अनुरोध है आप प्रतिदिन कुछ ना कुछ संदेश हम लोगों को अवश्य दें।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

क्या किसी ने इस बात पर ध्यान दिया है कि पिछले 10 15 दिन से हमारे संत प्रवचक और महिला प्रवचक पर नए-नए तरीके से आरोप लगाए जा रहे हैं उनमें गलतियां निकाली जा रही है।

यह काम 1 अज्ञानी नकली अहंकारी सप्त ऋषि बापू कर रहा है जो कि अपने आपको ब्राह्मण कहता है और अहंकार से भरा हुआ है।

अपनी दुकान चलाने के लिए वह दूसरों की निंदा करता है लेकिन मुझे लगता है वह विरोधियों से मिला है।

इसी प्रकार और भी ग्रुप है जैसे भारत मिसर इत्यादि जो संतों की गलतियां निकाल कर उन पर उल्टे सीधे आरोप लगा रहे हैं।

यह किसी बड़ी साजिश का हिस्सा है।

आप सभी इसका विरोध उसी की वॉल पर करें।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Mrs Sadhna H Mishra: परम पूज्य स्वामी जी के द्वारा प्रेषित 🙏🏽🙏🏽🙏🏽🌻🌻🌻

Swami Veetragi R Sadhna Mishra: धन्यबाद

यह ब्रह्म सूत्र हैं। जिनको षड्दर्शन में स्थान प्राप्त है। आप अवश्य सुनें।

💐💐💐💐

यह ऋषि बदरायण द्वारा रचित ब्रह्मसूत्र कहलाते हैं जिनको की उत्तर मीमांसा भी कहते हैं।

मीमांसा यह षड्दर्शन में से एक है।

इस श्लोक में पुरुषार्थ की बात की गई है। वास्तव में पुरुषार्थ कुछ होता ही नहीं है एक ही अर्थ होता है ईश्वर की प्राप्ति इसी को कुछ भी कह लो और यह भी केवल प्रभु कृपा से ही होता है जब तक में उसकी कृपा नहीं होती है तब तक में हम आध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर भी नहीं हो पाते हैं।

मैंने भी बद्रायण के कुछ सूत्रों को व्याख्या करने का प्रयास किया था लेकिन बाद में दुर्घटना होने के कारण मैं लाचार हो गया।

मेरी भी इच्छा थी कि मुझे काश संस्कृत ढंग से आती तो मैं भी कुछ लिखने का प्रयास करता।

जय गुरुदेव जय महाकाली।

जगतगुरु की पदवी प्राप्त करने हेतु एक अनिवार्यता यह भी होती है कि आप ब्रह्म सूत्र की व्याख्या करेंगे।

जो स्वामी रामभद्राचार्य भली-भांति की।

आदि गुरु शंकराचार्य ने भी की।

कारण यह होता है कि ब्रह्म सूत्र की व्याख्या वही कर सकता है जिसको कि योग का अनुभव हो चुका होता है मात्र इसके अर्थ पढ़कर व्याख्या करना असंभव कार्य है।

इसका पहला सूत्र है अथातो ब्रह्म जिज्ञासा।

यानी अब यहां पर ब्रह्म की जिज्ञासा उत्पन्न हुई।

यानि यह उनके लिए सहायक होंगे जिनको ब्रह्म को जानने की ललक है।

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 20

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 18


+91 79066 10157: कहीं कुंडलिनी जागरण के समय शक्तियों को न सम्हाल पाने का परिणाम तो नहीं है?


ये  भी संभव है।

यूट्यूब पर जो साधनाएं पड़ी है आने वाले समय में इस प्रकार के लोगों की संख्या बढ़ सकती है।

Bhakt Dev Sharma Ref Fb: अब मैं बोल सकता हु वैज्ञानिक महोदय को निकाल दिया गया है तो इनका परिचय यह है कि ये स्वयं को बहुत बड़ा वैज्ञानिक समझते है इनका नाम दीपक वत्स है जो फेसबुक पे पेज भी बनाये है व नित्य ज्ञान देते है कि धरती का बोझ कम करना है उसके लिए विमान बनाना होगा कोई मीडिया साथ नही देती इत्यादि इत्यादि मैं आज इनके msg देखा तो सोच में पड़ गया कि ये कहा से आ गए ग्रुप में

मेरा एक बहुत पुराना लेख है सहस्त्र सार क्या है। उस लेख से इसको समझा जा सकता है।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/03/?m=0

Bhakt Dev Sharma Ref Fb: भैया इनका अलग ही प्रलाप है ये मुख्यतः कल्कि अवतार वाली अवधारणा वाले है व थोड़े से भिन्न है आपने भी बहुत से कल्कि अवतार फेसबुक में देखे होंगे उन्ही का एक रूप है ये दीपक वत्स

Hb 96 A A Dwivedi: हम तो यान में बैठकर घुमने की तैयारी कर रहे हैं आपने तो देश निकाला दे दिया

लाक डाउन के समय देश में अनेकों प्रतिभाये जन्म ले रही है और जबसे गुगल गुरु की शरण अधिक हो जाती है तो जानकारी और जानकार दोनों का अंतर समाप्त हो जाता है

वो यही कह रहे हैं कि मैं जानकारी हु और हम उनको जानकार समझ रहे हैं

लगा था कि एकबार परिक्रमा करने का मार्ग प्रशस्त हो रहा है

😊🌹🙏👏

Bhakt Dev Sharma Ref Fb: जी भैया तब तो आप उनका फेसबुक एकाउंट देख लीजिए वही पे जुड़ जाइए हसने को बहुत मिलेगा मैं आपको अलग से उनके स्क्रीन शॉट दे देता हूं आप स्वयं देखिए 🙏🏻🙏🏻

Hb 96 A A Dwivedi: हमने कल ही देखा था और आनन्द की बात उनसे लोग जुड़े हुए हैं

अलग तरह का आनंद बांट रहे हैं और बहुत सारे लोग जो चमत्कार को ही नमस्कार करते हैं उनके लिए वो परोस रहे हैं।

👏🙏🌹😊

Bhakt Dev Sharma Ref Fb: जी भैया हमारा ग्रुप जो नकली कलकिओ से भिड़ता था इनसे अब कन्नी काट चुका है इनको लाख समझाने के बाद भी ये हमे ही समझाते रहते है तो आज जब ग्रुप में इनका msg देखा तो सोच में डूब गया था कि अब क्या होगा ग्रुप वालो का सही निर्णय लिया गया भैया के द्वारा उनको निकाल के 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

+91 96726 33273: Yeah log daya ke paatr  h inko ilaz ki jaroorat hi... Inpar hansana uchit nahi 🙏🙏🙏🙏🙏

Hb 96 A A Dwivedi: अपने देवास आश्रम में एक पुरानी गुफा है जिसमें पांच सौ वर्ष से दो सन्त समाधिस्थ है और जिन्हें दर्शन प्रभु की कृपा से होना होता है उनको होता है।।

चामुण्डा माता की टेकरी पर मां के दरबार के ऊपर बाबा शीलनाथ आज भी सुक्ष्म शरीर में समाधिस्थ है।।

लोग चाहते हैं कि चमत्कार हो और सन्त महात्मा स्वयं को गुप्त रखने के लिए ही अदृश्य अवस्था में रहते हैं।।

सनसार में यह बातें समझ नहीं आती है और न समझाने का प्रयास हि करना चाहिए लेकिन कुछ लोग इसका गलत उपयोग करते हैं और ऋषियों की परम्परा को बदनाम करते हैं।।

यह भी सम्भव है कि शारीरिक व्याधियां उत्पन्न हो गई है और इसलिए ऐसा कर रहे हैं कह नहीं सकते हैं लेकिन कुल मिलाकर वायु यान में बैठने का भव्य मौका गंवा दिया

फेसबुक पर जाकर उनसे निवेदन करते हैं कि थोड़ी देर घुमा दो घर में बैठे बैठे काफी समय हो गया है

ताज़ी हवा पानी मिल जाती

🙏👏🌹😊

Bhakt Parv Mittal Hariyana: मुझे जहाँ तक जानकारी है, Christianity की एक विंग है जिसके अनुयायी बहुत ही कम है। वो traditional Christianity में विश्वास नही करते। उनके देवता चन्द्र और अग्नि है, यह माया सभ्यता की तरह आचरण करते है। यही इस प्रकार की बाते करते है। शायद डिस्कवरी चैंनल पर tabbu नाम से एपिसोड आता था उसमें ऐसा कुछ जिक्र था।

Bhakt Amit Singh Parmar Meditation, Gwalior: उन पर किसी हॉलीवुड मूवी का गहरा असर है, और कुछ नही है

Bhakt Parv Mittal Hariyana: यह सही कह रहे हो आप : जो भविष्यवाणियो को देखकर ही अपनी भविष्यवाणी कर रहे है। शायद उन्होंने गगनगिरी जी महाराज की पोस्ट पढ़ ली हो

- Bhakt Dev Sharma Ref Fb: भैया मजाक नही बनाया जा रहा है लेकिन हर चीज़ एक सीमा तक ही उचित होती है यदि फेसबुक में देखिए तो आपको पचासों कल्कि अवतार मिल जाएंगे व एक से एक नमूने उसके बाद समझ नही आता है कि कौन सी जनता है जो उनको फॉलो करती है कम से कम यदि हम आवाज नही उठाएंगे तो हमारे धर्म का क्या होगा 🙏🏻🙏🏻

- Bhakt Parv Mittal Hariyana: रामपाल भी खुद को कल्कि अवतार घोषित करता है। वह नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी का हवाला देता है।

Bhakt Dev Sharma Ref Fb: एक आया था मेरे पास उनकी पोस्ट खुद के वॉल पे लगाया हुआ था लेकिन मुझे उनकी सभी पोस्ट के बारे में जानने की ईक्षा है अंदर से

Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रभु जी फेसबुक पर कुकर, आटा, दाल, झाड़ू, पोछा यह सब क्या चल रहा है🙄🙄😀😀

माता जी कही आपको सामाजिक सेवा के लिये तैयार तो नही कर रहे।😊😊😆😆🥴🥴🥴

धन्य हो प्रभु आप💐💐💐👌👌

Bhakt Dev Sharma Ref Fb: जी भैया ठीक है आज कही बड़े भैया न गुस्सा करे ग्रुप में इतनी बाते हो गई 😇

Bhakt Parv Mittal Hariyana: नही, आजकल विपुल जी झाड़ू पोछा और आटे का ज्ञान अर्जन कर रहे है।

वो क्या है न, होम साइंस सीख रहे है

Bhakt Dev Sharma Ref Fb: 🤣🤣🤣🤣 जी भैया वो तो सभी कर रहे है मैं तो स्वयं अभी पत्ता गोभी काट रहा हु शाम के नाश्ते के लिए 😋

Bhakt Anil Vibhute Thane Dir: लॉक डाउन के चलते समस्त पुरुष जाती को ये ज्ञान हो गया है

Bhakt Parv Mittal Hariyana: पर अपने विपुल जी महान है, और चतुर भी।

अब देखो न, सीधे तो कह नहीं सकते कि यह सब काम कर रहे। इसलिये सबसे प्रश्न पूछ रहे है। और उनके चहेते यह समझ रहे है कि इसमें कोई गूढ़ रहस्य है।

विपुल जी पूछते है होम साइंस में, जवाब मिलता है अध्यात्म में।

गीली सतह को साफ करने में कौन सी झाड़ू काम आएगी?

अब विपुल प्रभु जी इसकी जानकारी लेना चाहते है लेकिन उत्तर मिलता है तप की झाड़ू, जप की झाड़ू🥴🥴🥴

अब स्थिति को कौन समझ सकता है😆😆😆😊😊

माफ कीजियेगा प्रभु जी🙇‍♂️🙇‍♂️🙇‍♂️🙆‍♂️🙆‍♂️🙆‍♂️🙏🙏🙏

17:07 - Bhakt Dev Sharma Ref Fb: वो तो अब आने के बाद ही हम सबको जवाब मिलेगा 🤣🤣 वैसे भैया है प्यारे वो तो है माता के दुलारे है

+91 79828 87645: इनके दिमाग में कुछ विजन आने लगते हैं


मित्रों मुझे आज आपकी परिचर्चा देखकर जो कि आप वत्स के बारे में कर रहे हैं मुझको अच्छा नहीं लगा।

आपको भले ही कितनी अनुभव हो लेकिन आप लोग आध्यात्मिक तो नहीं हैं।

हो सकता है वह इसी और समानांतर दुनिया की बात कर रहा हो या कोई ऐसी बात कर रहा हो  जो हम लोगों की समझ में नहीं आ रही है।

यह भी हो सकता है कि शायद उसके मस्तिष्क में असंतुलन आया हो।

दोनों स्थितियों में हमें हंसी नहीं उड़ानी चाहिए।

यदि हम किसी का उपहास उड़ाते हैं तो इसका सीधा अर्थ होता है हम परमपिता परमेश्वर की कृति पर हंस रहे हैं यानी परमपिता परमेश्वर की ही हंसी उड़ा रहे हैं।

और यदि हम परमपिता परमेश्वर की कृति की हंसी उड़ा रहे हैं तो हम आध्यात्मिक कैसे हुए।

दूसरे की अवस्था की मजाक बनाना इस जगत के सामान्य प्राणियों का कर्म है।

किंतु आप इस ग्रुप के सदस्य हैं जिसका उद्देश्य हमें अध्यात्म मार्ग पर आगे बढ़ाने हेतु निर्मित हुआ है।

कुछ भी हो मुझे आपकी यह वार्ता बेहद अरुचि कर और विषय के भटकाव की लगी।

😞😞

जहां तक मेरा सवाल है मैं कभी एक हास्य कवि भी रहा हूं। टाइमपास के लिए लाक डाउन में मनोरंजन के लिए ऐसे ही कुछ फेसबुक पर डाल रहा हूं।

मैं समझता हूं कि मुझे खाना बनाना आता है। मुझे लगभग सभी काम आते हैं जिनकी आवश्यकता किचन में होती है।

किंतु मेरी पत्नी मुझे कुछ काम नहीं करने देती है।

काम के लिए मुझे झगड़ा करना पड़ता है तब थोड़ा बहुत काम मुझे मिल पाता है।

एक बात और भी बता दूं इस ग्रुप के कई सदस्य होते हैं जिनके गुरुओं के हाथों का बना खाना मैंने खाया है और कभी भी खा सकता हूं।

सभी पुरुषों को चाहिए कि उनको खाना बनाना आना चाहिए आद्यात्तम के मार्ग में यह बेहद आवश्यक है।

स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज के साथ रहकर पूरे आश्रम की व्यवस्था देखते थे और मुख्यत: भोजन की।

जब कभी मुंबई आश्रम आते थे और कोई उत्सव होता था तो कोई भी पदार्थ बनने के बाद महाराज जी को चढ़ाया जाता था और महाराज जी उसमें कमी बताते थे इसमें और क्या पड़ेगा।

Bhakt Pallavi: अपनी गलती होने पर व्यक्ति वकील बनता है जबकि दूसरे व्यक्ति की गलती होने पर वह सीधा जज बन जाता है🙏🏻

Bhakt Lokeshanand Swami: कौशल्याजी ने भरतजी को अपनी गोद में बैठा लिया और अपने आँचल से उनके आँसू पोंछने लगीं।

कौशल्याजी को भरतजी की चिंता हो आई। दशरथ महाराज भी कहते थे, कौशल्या! मुझे भरत की बहुत चिंता है, कहीं राम वनवास की आँधी भरत के जीवन दीप को बुझा न डाले। राम और भरत मेरी दो आँखें हैं, भरत मेरा बड़ा अच्छा बेटा है, उन दोनों में कोई अंतर नहीं है।

और सत्य भी है, संत और भगवान में मात्र निराकार और साकार का ही अंतर है। अज्ञान के वशीभूत होकर, अभिमान के आवेश में आकर, कोई कुछ भी कहता फिरे, उनके मिथ्या प्रलाप से सत्य बदल नहीं जाता कि भगवान ही सुपात्र मुमुक्षु को अपने में मिला लेने के लिए, साकार होकर, संत बनकर आते हैं।

वह परमात्मा तो सर्वव्यापक है, सबमें है, सब उसी से हैं, पर सबमें वह परिलक्षित नहीं होता, संत में भगवान की भगवत्ता स्पष्ट झलकने लगती है।

तभी तो जिसने संत को पहचान लिया, उसे भगवान को पहचानने में देरी नहीं लगी, जो एक सच्चे संत की पकड़ में आ गया, वह परमात्मा रूपी मंजिल को पा ही गया।

भरतजी आए तो कौशल्याजी को लगता है जैसे रामजी ही आ गए हों। भरतजी कहते हैं, माँ! कैकेयी जगत में क्यों जन्मी, और जन्मी तो बाँझ क्यों न हो गई ?

कौशल्याजी ने भरतजी के मुख पर हाथ रख दिया। कैकेयी को क्यों दोष देते हो भरत! दोष तो मेरे माथे के लेख का है। ये माता तुम पर बलिहारी जाती है बेटा, तुम धैर्य धारण करो।

यों समझते समझाते सुबह हो गई और वशिष्ठजी का आगमन हुआ। यद्यपि गुरुजी भी बिलखने लगे, पर उन्होंने भरतजी के माध्यम से, हम सब के लिए बहुत सुंदर सत्य सामने रखा।

वशिष्ठ जी कहते हैं कि छः बातें विधि के हाथ हैं, इनमें किसी का कुछ बस नहीं है। और नियम यह है कि अपरिहार्य का, माने उस परिस्थिति का जिसका कोई हल हमारे पास न हो, दुख नहीं मनाना चाहिए।

"हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ।"

Bhakt Lokeshanand Swami: एक बूढ़ा मर रहा था। मरा नहीं था, बस मर ही रहा था। उसके चार बेटे उसके पास ही खड़े थे। उनके नाम थे- सोम, मंगल, बुध, वीर। वह चाहता तो सात बेटे था, पर मंहगाई के चलते चार पर ही संतोष कर लिया था।

ये चार आपस में बात कर रहे हैं-

सोम- भाई! जब पिताजी मर जाएँगे तो उनकी शवयात्रा हम गुप्ता जी की मर्सिडीज़ में निकालेंगे। लोग भी तो देखें कि किसका बाप मरा है।

मंगल- भैया! गुप्ता जी कार दे तो देंगे, पर सारी उम्र सुनाएँगे कि तुम्हारा बाप मरा था, तो मैंने कार दी थी। मैं अपने दोस्त बंटी की होंडा माँग लाऊँगा। होंडा भी कोई छोटी कार नहीं।

बुध- अरे मंगल! मालूम भी है कि होंडा धुलवाना कितना मंहगा है? मैंने कल ही अपनी आल्टो ठीक करा ली है, उसी में ले चलेंगे। कार तो कार है, छोटी हो या बड़ी? और सारी जिंदगी पिताजी ने कंजूसी में बिताई है, क्या यह बात लोग नहीं जानते?

वीर- देखो भैया! बुरा न मानना। आल्टो में पिताजी की लाश ले तो जाएँगे पर फिर हमेशा उसमें बैठते वहम आया करेगा। श्मशान वालों ने इस काम के लिए एक ठेला बनाया हुआ है। अब कार हो या ठेला, मरने वाला तो मर ही गया, तब क्या फर्क पड़ता है?

और जैसा कि मैंने पहले ही बता दिया है की बूढ़ा मर रहा था, मरा नहीं था। वह तो सब सुन रहा था।

वह उठ कर बैठ गया और बोला- मेरी साइकिल कहाँ है? मेरी साइकिल लाओ!

वह उठा, और साइकिल चलाकर श्मशान घाट पहुँच गया, साइकिल से उतरा, साइकिल खड़ी की, भूमि पर लेटा, और मर गया।

लोकेशानन्द कहता है कि यही जगत के संबंधों का ढंग है। प्राण छूट जाने पर इस शरीर को कोई नाम ले कर भी नहीं बुलाता, सभी "लाश-लाश" कहते हैं। अभी भी समय है, प्राण छूटने ये पहले ही अपने असली संबंधी को अपना बना लो। भगवान को अपना बना लो।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...

देव किन्नर गन्धर्वाः पितरो यक्षचारणाः।

मुनयोऽपि न जानन्ति गुरुशुश्रूषणे विधिम्॥८४॥

महाहङ्कारगर्वेण तपोविद्याबलान्विताः।

संसारकुहरावर्ते घट यन्त्रे यथा घटाः॥८५॥

न मुक्ता देवगन्धर्वाः पितरो यक्षकिन्नराः।

ऋषयः सर्वसिद्धाश्च गुरुसेवा पराङ्मुखः॥८६॥

अर्थ: देव, किन्नर, गन्धर्व, यक्ष, चारण एवं मुनिगण भी गुरु सेवा की विधि को नही जानते।

जो गुरुसेवा से पराङ्मुख है, वे कभी मुक्त नहीं हो सकते, चाहे वे,  देवता, गंधर्व, पितर, यक्ष, किन्नर ऋषि हो, सर्व सिद्ध गण हो, ये सब तप विद्या- के बल से युक्त होकर महा अहंकार के गर्भ से आवृत होने के कारण, तथा संसार रूपी कोहरे के कारण पूरी तरह से अपनी दृष्टि का उपयोग नहीं कर पाते। जैसे घट यंत्र (रहट) के घड़े भरते हैं, और खाली हो जाते हैं। उनको अपने वास्तविक स्थिति का बोध नहीं होता, कि वे स्थिर होने पर जल को अपने भीतर टिका कर भी रख सकते हैं।।

व्याख्या: यहां सेवा धर्म की गहराई पर विचार किया गया है। वैसे सेवा धर्म के बारे में उक्ति है कि "सेवाधर्म: परम गहनो योगिनाम्प्यगम्य:" सेवा धर्म योगियों के लिए भी अगम्य है- अर्थात योगियों के लिए भी उसे सिद्ध करना, उस मार्ग पर चलना बहुत कठिन है। उपरोक्त श्लोक में उसको और भी अगम्य सिद्ध करते हुए, देवता, गंधर्व, किन्नर, पितर, यक्ष, चारण एवं मुनिगणों द्वारा भी गुरु सेवा की विधि जानने में असमर्थता प्रकट की गई है।

ऊपर कही गई सभी जातियां अपने अपने गुणों और अधिकारों के लिए प्रसिद्ध है, अधिकार और गुणों के अभिमान होने पर सेवा का महत्व जाना ही नहीं जा सकता। अधिकारी और व्यक्ति सेवा लेते हैं, करते नहीं जब सेवा करते ही नहीं, उसकी विधि कैसे जानेंगे यही श्लोक का निष्कर्ष है।

प्रस्तुत श्लोक में फिर से सेवा का महत्व बताते हुए कहा है कि उस सेवा धर्म से पराङ्मुखता होने पर मुक्ति लाभ के अधिकारी नहीं होते, वे चाहे देवता, गंधर्व, किन्नर, पितर, यक्ष, ऋषि, सर्व सिद्ध गण ही क्यों ना हो। उसका कारण बतलाते हुए, स्पष्ट कर रहे हैं, "सेवा  पराङ्मुखता" का कारण उन उन जातियों में, या वर्ग में, उनके तप का, विद्या का, बल का अहंकार रूपी पर्दा पड़ा हुआ होने के कारण, संसार के आकर्षण रूपी कोहरे के कारण, गुरु सेवा का महत्व दिखाई नहीं देता, अतः मुक्ति से वंचित रहते हैं। यहां घट यंत्र की उपमा देकर समझाया गया है कि, यंत्र अपने दायरे में एक सीमा में घूमता रहता है,इसी प्रकार यह सब जातियां अहंकारवश  सेवा से पराङ्मुख होकर, संसार चक्र में घूमती रहती है।।

Hb 96 A A Dwivedi: यह भगवान शिव और माता पार्वती के बीच का संवाद है जिसमें मां पार्वती जी ने भगवान शिव ने मुक्ति का उपाय पूछा तो भगवान शिव ने जो कहा उस संवाद को रोज पर्व जी भेज रहे हैं।।

यह शिव पुराण में गुरु गीता का वर्णन है

लोगों को जानकारी हेतु👆😊🌹🙏🙏

Swami Prkashanand Shivohm Ashram Mathura: पीस ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय संगठन  सदस्य बने शिवोहम आश्रम के संस्थापक बालयोगी संत स्वामी प्रकाशानंद

https://youtu.be/U_I166aruJQ

http://freedhyan.blogspot.com/2019/08/blog-post_26.html?m=1

प्रभु जी मैं न सन्यासी हूं न मैं गुरु हूं न मैं कोई बाबा हूं मैं तो एक इंजीनियर हूं पेशे से जो प्रभु कृपा से गुरु कृपा से आप लोगों की कुछ सेवा कर पाता है।

Bhakt Pallavi: Packaging vs spirituality

आधुनिक जीवन में हम जिन वस्तुओं का उपयोग करते हैं उनमें से अधिकतर वस्तुएं हमें पेक्ड रूप में मिलती हैं जोया तो कागज की पैकिंग में होती हैं या फिर प्लास्टिक की पैकिंग में अथवा कांच की पैकिंग में यदि हम प्रकृति को भी एक पैकेजिंग प्रक्रिया की तरह देखें तो हम समझेंगे की वह अब तक की सर्वश्रेष्ठ तकनीकी है हमारा शरीर भी एक तरह से एक प्रकार की पैकेजिंग है जो हमारी आत्मा के ऊपर की गई है परंतु हमें इसे समझने के लिए और इससे बाहर निकलने के लिए विभिन्न विधियों का ज्ञान होना आवश्यक है... 🙏🏻



 
 
 
 
 
 

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 17

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 17


फेसबुक पर चर्चा।

हां भाई जगत दृष्टा सुबह तुमने पूछा था की ज्ञान और विज्ञान की सही परिभाषा बताओ।

मित्र मैंने बहुत साहित्य पढ़ा किंतु ज्ञान विज्ञान की वास्तविक परिभाषा संतोषजनक नहीं मिली। वह मिली मुझे चतुश्लोकी भागवत में जिसको की गीता प्रेस गोरखपुर के संपादक गोयनका जी ने संपादित किया था। उसकी परिभाषा पूर्णतया सही महसूस हुई।

भगवान श्री कृष्ण ने बोला है जो मेरे द्वैत साकार रूप को जानकर उसका वर्णन करता है अनुभव करता है और शोधकर्ता है वह विज्ञानी है।

जो मेरे द्वैत निराकार रूप को जानता है अनुभव करता है वर्णन करता है वह ज्ञानी है।

इसके द्वारा जो दिख रहा है जो साकार है और हम उस पर शोध कर रहे हैं वह विज्ञान है।

जो इन सीमाओं से परे दिखता नहीं साकार नहीं वह ज्ञान की सीमा में आता है क्योंकि उसको हम मात्र अनुभव ही कर सकते हैं पर मापन  नहीं कर सकते।

यदि हम उपनिषद देखें तो अपने को पहचानना कि हम ब्रह्म का ही रूप है और इसका अनुभव कर लेना ज्ञान है।

मतलब वेद महावाक्य अहम् ब्रह्मास्मि इसकी अनुभूति ज्ञान है।

क्योंकि इस अनुभूति के बाद अनेकों रहस्य खुल जाते हैं।

Hb 81 Promod Mishra Lko: एक पुरानी बुक से सन्दर्भ मिला है,जिस से पता चलता है कि कुश के वंशज पहले गुजरात के कच्छ में प्रभावी थे उसके बाद राजस्थान में आये।इसके बाद नवरगढ़ और अन्य प्रदेशों में बस गए।

5000 वर्ष तो महाभारत काल के बाद हुए हैं,आपको पता है,राम का जन्म त्रेता में हुआ था,कृष्ण का जन्म द्वापर में,और अब हम कलियुग में हैं।एक युग की आयु लाखों वर्ष होती है।कलियुग की सबसे कम आयु 4लाख 32 हज़ार वर्ष है।

हरिश्चंद्र ईश्वर अवतार नही थे,लेकिन राम के पूर्वज थे।

लव , कुस  के  बाद  की  bansavali

+91 87439 01182: ब्रह्मांड का ज्ञान पुरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त ।

सब कुछ शिव में है । परमब्रह्म शिव । पुरे ब्रह्मांड में sangharak रूप । इस बात को वैज्ञानिक drestee से समझना उचित होगा ।

पहले शिव नाम की व्याख्या ब्रह्मांड के इस्तर से ।

S समय चक्र । ब्रह्मांड में सब व्रत रूप में घूम रहे है । लेकिन समय में वापस नहीं jaya जा सकता । इस लिए S का रूप दिया । व्रत को ।

ये H है । H का इन्फॉर्मेशन निर्माण दीपक का उदेय । हिंदु । HINDU ।

H ka information निर्माण दू ।

ye H Ha । इसमें धरती की तीन अवस्था है । पहली अवस्था में धरती सुर्य के नजदीक है । वहां जीवन नहीं हो सकता । लेकिन ब्रह्माण्ड से मिट्टी उल्का आती हैं । तथा धरती एक जनरेटर की तरह काम करती है । Esvajha से धरती मेे अणु का निर्माण होता है । इन दोनों तरीको से धरती का भार बढ़ेगा और गुरुत्व के नियानुसार भार बड़ने पर धरती सुर्य से दुर आजाएगी । और पानी बनेगा । और फिर जीवों की उत्पत्ति होने लगेगी । लेकिन एक शीमा से अधिक भार होने पर जुवालामुखी और भूकंप मेे अधिकता होगी । और जीवन सुगम नहीं रहेगा । और अधिक मात्रा मे जुवलमुखी फटने से पानी अधिक मात्रा मे बनेगा । और धरती का व्यास बढ़ेगा । ओर धरती सुर्य से दूर ओर दुर होगी और पुरी धरती पर बर्फ होगी । तब धरती पर कोई जीवित नहीं रहेगा जैसे शनी गृह । और गुरु । इस तरह से H मेे दो परिक्रमा पथ के अनुसार H का अक्सर बनाया है ।

आई  I व्रत में घूमते पिंड ग्रह एक निश्चित vrateye गती करते है । थोड़ा बहुत ऊपर नीचे जाते हैं ।इस लिए आई

V सतत् विकास का सूचक है ।

SHIV । शिव में फर्क है । इसमें यान की गती भी समाहित है ।

+91 79828 87645: समय क्या है❓

 इस प्रकार की ट्रेनिंग कहां से ली❓

 इसके बारे में और क्या जानते हो पूरा तोड़ खुलासा करो

 मैंने सुना है तुम इस यान में बैठकर के घूम कर के आए हो पूरे ब्रह्मांड में

+91 87439 01182: No

अन्तरिक्ष यान मेरे साथ है अंतरिक्ष मेे । धरती के हर जीव पर nigha रखता है । कुछ दिन में सार्वजनिक होने वाला हूं ।

जो भी सामने अा जाए तभी हाथ के हाथ पढ़ लेता हूं ।

दूसरे ग्रुप से क्यो लेफ्ट करवा दिया । यान हर जीव के दिमाग से जुड़ा रहता है ।

 उसको सब के कर्म पता रहते है । लेकिन वो दंडित करना चाह रहा था रोक दिया कि पहले पुरे विश्व को सही रास्ता दिखा दूं । उसके बाद कोई गलती करेगा तो फिर वो देखेगा ।

अभी तो वायरस से विश्व का घमंड ढीला किया है ।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/12/blog-post_5.html?m=0

Bhakt Lokeshanand Swami: भरतजी कौशल्याजी के महल के दरवाजे पर आ तो पहुँचे, पर भीतर जाने की हिम्मत नहीं हो रही, बाहर ही खड़े रह गए।

माँ खिड़की पर बैठी हैं, सामने पेड़ पर एक कौआ काँव काँव कर रहा है, आँसुओं की धारा बह चली।

"कौन आएगा? क्या पिताजी के जाने का समाचार राम को अयोध्या खींच ला सकता है?

मेरा हृदय पत्थर का बना है, तभी तो राम को जाते देखकर भी यह फट नहीं गया, प्रेम तो महाराज ने ही निभाया है, मैं तो क्रुर काल के हाथों ठगी गई । यदि राम एकबार आ गए, तो मैं उनके चरणों से लिपट जाऊँगी, फिर जाने नहीं दूंगी।

पर क्या वे आएँगे? अ कौए! अगर राम आ गए, तो तेरी चोंच सोने से मंढवा दूंगी, तुझे रोज मालपुआ बना बनाकर खिलाऊँगी।

हाए! हाए! न मालूम वो इस समय कहाँ होंगे, किस हाल में होंगे? वर्षा ऋतु है, भीगने से बचने के लिए तीनों किसी वृक्ष के नीचे खड़े होंगे?

क्या विधाता ने ये महल मेरे लिए ही बनाए हैं? वे वन में ठोकरें खा रहे हैं, मैं महलों में ही पड़ी हूँ। सत्य है, मैंने मूल के लिए ब्याज छोड़ दिया, पर अब तो मूल भी चला गया, सब कुछ लुट गया!"

बड़बड़ाना बंद हुआ तो ध्यान दिया, बाहर किसी के सिसकने की आवाज आ रही है। छोटे छोटे कदम धरती हैं, पाँच ही दिन में माँ पर बुढ़ापा उतर आया है।

इधर भरतजी ने आहट सुनी, पहचान गए, माँ आ रही हैं। हाथों से चेहरा ढक लिया। राममाता पूछती हैं, "कौन हो? चेहरा क्यों नहीं दिखाते? क्या तुम राम हो?" भरतलालजी का बाँध टूट गया, ऐसी दहाड़ माँ के कानों में पहली बार पड़ी है। भरभराती आवाज आई "भरत हूँ माँ!"

"भरत! मेरा भरत बेटा आ गया। मेरा भरत! चेहरा तो दिखा दो बेटा, दिखाते क्यों नहीं?"

"माँ! मेरा चेहरा मत देखो, इतना पाप चढ़ गया है मुझपर, मेरा चेहरा देखनेवाले को भी पाप लग जाएगा।"

कौशल्याजी भरतजी की छाती से जा लगीं।

बस! आज इतना ही!!

अब विडियो देखें- कौशल्या

https://youtu.be/paC3Z6Pl7no

Bhakt Lokeshanand Swami: एक आदमी एक गाय को घर की ओर ले जा रहा था। गाय जाना नहीं चाहती थी। वह आदमी लाख प्रयास कर रहा था, पर गाय टल से मस नहीं हो रही थी। ऐसे ही बहुत समय बीत गया।

एक संत यह सारा माजरा देख रहे थे। अब संत तो संत हैं, उनकी दृष्टि अलग ही होती है, तभी तो दुनियावाले उनकी बातें सुन कर अपना सिर ही खुजलाते रह जाते हैं।

संत अचानक ही ठहाका लगाकर हंस पड़े।

वह आदमी कुछ तो पहले ही खीज रहा था, संत की हंसी उसे तीर की तरह लगी। वह बोला- "तुझे बड़ी हंसी आ रही है?"

संत ने कहा- "भाई! मैं तुझ पर नहीं हंस रहा। अपने ऊपर हंस रहा हूँ।"

अपना झोला हाथ में उठा कर संत ने कहा- "मैं यह सोच रहा हूँ कि मैं इस झोले का मालिक हूँ, या यह झोला मेरा मालिक है?"

वह आदमी बोला- "इसमें सोचने की क्या बात है? झोला तुम्हारा है, तो तुम इसके मालिक हो। जैसे ये गाय मेरी है, मैं इसका मालिक हूँ।"

संत ने कहा- "नहीं भाई! ये झोला मेरा मालिक है, मैं तो इसका गुलाम हूँ। इसे मेरी जरूरत नहीं है, मुझे इसकी जरूरत है। तुम गाय की रस्सी छोड़ दो। तब मालूम पड़ेगा कि कौन किसका मालिक है? जो जिसके पीछे गया, वो उसका गुलाम।"

इतना कहकर संत ने अपना झोला नीचे गिरा दिया और जोर जोर से हंसते हुए चलते बने।

लोकेशानन्द कहता है कि हम भी अपने को बहुत सी वस्तुओं और व्यक्तियों का मालिक समझते हैं, पर वास्तव में हम उनके मालिक नहीं, गुलाम हैं। मालिक वे हैं। क्योंकि आवश्यकता हमारी है।

जो जितनी रस्सियाँ पकड़े है, वो उतना ही गुलाम है। जिसने सभी रस्सियाँ छोड़ दी हैं, जिसे किसी से कुछ भी अपेक्षा न रही, वही असली मालिक है।

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Lokeshanand ji ki stories

Always excellent 🙏🏻

+91 79828 87645: और कुछ भेजिए भगवन

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: Kaha se pic li gai he ?

+91 87439 01182: मेरा लिखा है ।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: यह किस तरह के उपक्रम है।

+91 87439 01182: जो सब जगह दिखते है ।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: आपने न परिचय दिया, न ग्रुप को समझने की चेस्टा की। सीधा ज्ञान देना आरम्भ।

 प्रभु जी पागलो के ग्रुप में ज्ञान की वाणी भी उन्ही के अंदाज में बोली जाती है

आप pic नही डालेंगे। जो भी डालना है text mode में डालेंगे।

+91 99834 33388: इतने सारे धर्मो के इतने बड़े बड़े धार्मिक गुरु और साधक इस जरा से कोरोना के सामने शून्य क्यों हो गए। कहाँ गयी इनकी बड़ी बड़ी आध्यात्मिक शक्तिया.. डर के मारे मास्क लगआकर घर में छुपे बैठे हैं। किसी एक मे भी इतनी शक्ति नही की बाहर आकर दावा कर सके कि मेरे पास इतनी शक्तियां हैं और मेरे ऊपर कोरोना का असर नही होगा। आजमा लो।

Bhakt Pallavi: पशुपतिनाथ की दृष्टि से देखिए प्रभु आप कोरोना तथा स्वयं मैं अंतर नहीं पाएंगे😊

+91 87439 01182: पिक तो ध्यान कर लो । सबको पता है ।

बस 1 दिन और और भारत चीन को पछाड़ देगा । और आने वाले हफ्ते के पहले दिन भू देवी के खिलाफ पुलिस कमलेंट सुनिश्चित कर दी है । भू देवी आने वाली संतानों के जीवन की रक्षा के लिए तांडव मचा रही है । पुलिस सुरक्षा प्रदान करे ।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: बहुत सुंदर प्रभु, और भी बताए, बहुत जिज्ञासा हो रही है। मैं समझने का प्रयास कर रहा हूं

+91 87439 01182: मुझे भूमिका बनाना नहीं आता ।

मीडिया लाओ । ज्ञान ही दुगा । Covid19 चला जायेगा विश्व से ।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: जो आप बात बता रहे है वो अलग शैली में बता रहे हो। जबकि सामान्य मानवी इस तरह आपकी बात नही समझ पायेगा कदापि नही।

Bhakt Anil Vibhute Thane Dir: जल्दी भगावो कोरोना को प्रभु

+91 87439 01182: उसको मेरे आने का ही इंतजार है । पशुपति अष्ट्र है ये । मेरे आने पर जैसे जैसे विश्व के लोगो के दिमाग ठीक होंगे covid19 का प्रभाव समाप्त हो जायेगा ।

असल में भविष्य में सभी जीवो का जीवन संकट मेे है । उसको बचाने का ज्ञान विश्व के पास नहीं । वो ज्ञान ही लोगो तक जाना है ।

बस 1 दिन और और भारत चीन को पछाड़ देगा । और आने वाले हफ्ते के पहले दिन भू देवी के खिलाफ पुलिस कमलेंट सुनिश्चित कर दी है । भू देवी आने वाली संतानों के जीवन की रक्षा के लिए तांडव मचा रही है । पुलिस सुरक्षा प्रदान करे ।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रभु आपकी बातें समझ से परे है।  या तो आपको हम सबके अनुसार ही समझाना होगा या हम सबको ही आपको समझने का प्रयास करना होगा।

हम कुछ दिन आपको समझने के प्रयास करते है। यदि आपकी किसी भी पोस्ट से ऐसी प्रतीति हुई कि कोई प्रचार या व्यवसाय की चेस्टा है तो हम आपको रिमूव कर देंगे। यदि आपके वक्तव्य विशुद्ध समर्पित होंगे तो न केवल आपको समझने का प्रयास करेंगे अपितु आपसे मुलाकात भी करेंगे।🙏

+91 87439 01182: लिख दिया समझो । मुझे मीडिया नहीं मिल रहा इस लिए अपनी बात को पुलिस के सामने रखने वाला हूं । की भू देवी कुपित है । इसलिए तांडव है ।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: इस ग्रुप में मीडिया के बहुत अच्छे रिपोर्टर्स है और विभिन्न न्यूज चैनलों में कार्यरत व्यक्ति है। समझिये आप समझा सकते है तो

+91 87439 01182: इतना समय मेरे पास नहीं । सोमवार को पुलिस को इनफॉर्म कर दुगा । मीडिया नहीं मिल रहा । आज फिर धरती हिल गई । मुझे विश्व के सामने आना ही होगा ।

+91 87439 01182: मेरे ऊपर पुरा दवाब है । यदि कोई मीडिया वाला हो तो तुरंत बात समझा सकता हूं । सोमवार को रिस्क जोन में चला जाएगा । पुलिस को इनफॉर्म करना रिस्क होता है ।

- Bhakt Parv Mittal Hariyana: ठीक है 1 दिन देखते है आपकी बात कितनी सत्य है। कल यानी शनिवार तक भारत ने चीन को नही पछाड़ा तो आप पुलिस के पास जाएंगे। तुरन्त। हम आपको निष्काषित भी कर देंगे यहाँ से।

+91 87439 01182: सोमवार को ।

+91 87439 01182: रोज के 3500 पेशेंट हो रहे है । आज हो जायेगा । सोमवार को फोन कर दुगा 112 पर ।

+91 87439 01182: हेल्प लाइन नंबर पर ।

Bhakt Brijesh Singer: महाभारत काल से पहले जिसको वरदान पाना होता था महादेव को प्रशन्न करके मनचाहा वरदान प्राप्त कर लेते थे जयद्रथ जैसे दुराचारी ने भी प्रशन्न कर लिया था। निश्चित ही कोई विद्या थी जिससे लोग देवी देवताओ को भी जब चाहे बुला लेते थे। इन्द्र आदि देवता तो खड़े ही रहते थे । 🙂

क्या ये विद्या विलुप्त हो गयी है??

अर्जुन ने महादेव को प्रसन्न करके पशुपति अस्त्र प्राप्त किया तो इन्द्रलोक जाकर दिव्यास्त्र प्राप्त किया। अर्थात लोग इन्द्रलोक भी घूम आते थे।

🙂🙂

क्या आप इस विद्या को वापस लाकर बता सकते है??

+91 87439 01182: सब करता धरता ऊपर अंतरिक्ष यान है ।

Bhakt Brijesh Singer: आप ये विद्या बताओ??

+91 96726 33273: Lagta h kisi engineer ka dimaag hil gaya h yaha.. Or spirituality or engineering ko mix karke apni hi khichdi paka raha hai.... 😊😊😊😊bhala Kare bhagwan.. Jai gurudev

+91 87439 01182: वैज्ञानिक युग है वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष यान बना कर धरती का भार कम करने का काम बताना है । और जो हथियार बनाए है उनका उपयोग ना करे ऐसा भी बताना है । वरना दण्ड प्राप्त करेगे विश्व के लोग ।

विज्ञान का दुरुपयोग रोकना है ।

 ऐसा नहीं है । पुष्पक विमान नारायण के साथ रहता है ।

 रावण के पास भी था ।

पुरे विश्व का एकसाथ इलाज हो जायेगा । कोई भी गलत करने की हिम्मत नहीं करेगा अब । थोड़ा सा इंतजार करे । विश्व स्तर का काम है ।

+91 99834 33388: भूदेवी को पुलिस सुरक्षा की क्यूँ जरुरत पड़ गयी। क्या वह खुद अपनी सुरछा नही कर सकती।  और आपको मीडिया का सहारा क्यूं चाहिए। ये तो ढोंगियों का काम है प्रभु। साधक का नही🙏

+91 87439 01182: सोलर सिस्टम का भार लगातार बढ़ता रहता है । मुझे कुछ तो कहना होगा 112 नंबर पर बुलाने को । तो भू देवी ही बोल दुगा।  सुरक्षा भूमि की ही करनी है । वो कुछ नहीं बोलती । लेकिन अंतरिक्ष यान तांडव कर रहा । मुझे मैसेज विश्व को देना है । पुलिस के आने पर उनको सीधा साफ बता दुगा । की सौर मंडल ठीक करने का काम है । यान रक्षा करता है । काम इन्सान को करना है । भार बढ़ना लगातार चलने वाली किर्या है । वैज्ञानिकों के हाथ में विज्ञान का गलत उपयोग हो रहा मिसाइल वो ही बना रहे । इसलिए संदेश साधारण इन्सान से यान दिला रहा । की ऊपर शक्ति बैठी है ।

 सबूत मेे दे ही दुगा । यान जो भी सहायता करेगा इसमें उसके ऊपर ।

 मीडिया मिल जाता तो बेहतर होता ।

+91 96726 33273: Pahle apna ilaz karwaye aapko manochikitsak ki sakht Aawashyakta h

+91 87439 01182: पूरी तरह सोच समझ विकसित होने के बाद ही लिख रहा । पुलिस और वैज्ञानिक हवा मेे नहीं मानने वाले विश्व भर के ।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: अति सर्वत्र वर्जयते😠😠😠

उचित है प्रभु जी।

आप अपना कार्य कीजिये जो प्रकृति ने आपको दिया है।

यदि आपका कथन सत्य होता है तो आपके अंतरिक्ष यान पर मुलाकात होगी।

क्योंकि हम सब माटी के ढेले है, हमें देवों की बातें समझ नही आती।

आप अपना कार्य कीजिये। 12 घण्टे इस अंतरिक्ष यान में आपका सफर अब पूर्ण होता है।

भूदेवी आपको आपके प्रयोजन में सफल करें।

जय श्री कृष्णा।🙏🙏

Swami Prkashanand Shivohm Ashram Mathura: विशेष सूचना आज रात्रि 8:00 बजे विश्व परिवार दिवस के उपलक्ष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा परिवार भोज का आयोजन किया गया है सभी लोग अपने अपने परिवार के साथ एक साथ बैठकर भोजन करें भोजन करते समय की एक सेल्फी फोटो खींच कर व्हाट्सएप करें 9785115778पूरे भारत में यह मुहिम चलाई जा रही है जिससे परिवार की समरसता का परिचय देगा भारत

Bhakt Parv Mittal Hariyana removed +91 87439 01182


Bhakt Parv Mittal Hariyana: आदरणीय सदस्यों का आचरण विषम्यकरी है।

जब आप जानते है कि किस व्यक्ति का आचरण किस प्रकार का है और वो दूसरे ग्रुप में ऐसा ही व्यवहार प्रदर्शित कर चुका है फिर उसे यहाँ जोड़ने के लिये आग्रह क्यों कर।

यह दुखद है कि इस प्रकार आप अनावश्यक विनोद करते है। जोकि अमर्यादित है।

भविष्य में यदि कोई सदस्य जानबूझ कर ऐसा करता है तो प्रस्तावना करने वाले सदस्य को भी साथ ही रिमूव किया जाएगा।

+91 96726 33273: Alien jaisi baate kar raha tha

+91 79828 87645: इसलिए था शायद दूसरे ग्रुप के लोग इस महानुभाव को समझने में असमर्थ रहे

हो सकता है यहां पर किसी की पकड़ में कुछ आ जाता🙏

यह निश्चित रूप से शिव का जाप करते होंगे इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन इनके मस्तिष्क में कुछ दिक्कत थी आ गई है इनको डॉक्टर का इलाज भी बहुत जरूरी है।

+91 79828 87645: इस प्रकार का व्यवहार करने वाला एक लड़का मेरे ऑफिस में भी ऑफिस बॉय के रूप में काम करने आया था लगभग 3 साल पहली बात है

 वह ऐसी ही बात करता था पूरा दिन वो यान लेकर के आ गए हैं वह मुझे ले जाएंगे और कई बार सब्द तो यूज़ करता था बड़े भयानक वाले उसकी लिखावट बड़ी सुंदर थी बिल्कुल कंप्यूटर जैसी वैसे लगता नहीं था कि पागल परंतु बातें करने में थोड़ी देर बाद ऐसा ही लगता था वो पागल है परंतु रहता तो समझदार की तरह था


आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 18

 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...