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Monday, September 28, 2020

मां दुर्गा का आठवां स्वरूप महागौरी


मां दुर्गा का आठवां स्वरूप महागौरी

  व्याख्याकार: सनातनपुत्र देवीदास विपुल “खोजी”

माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री का लिंक

नवदुर्गा हिन्दू धर्म में माता दुर्गा अथवा पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों के विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परंतु यह सब एक हैं।


दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अंतर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नांकित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं


    प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

    तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।

    पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

    सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।

    नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

    उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

 

    भगवती का आठवां स्वरूप महागौरी गौर वर्ण का है।

माता महागौरी : मस्तिष्क में ध्यान कर इनको जपा जाता है। इनकी साधना से अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। असंभव से असंभव कार्य पूर्ण होते हैं।

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:।'


भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप सुलभ नहीं है।


माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। इनकि चार भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको।

इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बांए हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है।
 


पहली कथा- देवी पार्वती रूप में महागौरी ने भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए  कठोर तपस्या की थी। एक बार भगवान भोलेनाथ द्वारा कहे गए किसी वचन से पार्वतीजी का  मन का आहत होता है और पार्वतीजी तपस्या में लीन हो जाती हैं। इस प्रकार वर्षों तक कठोर  तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आतीं तो पार्वतीजी को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास  पहुंचते हैं। वहां पहुंचकर वे पार्वतीजी को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। पार्वतीजी का रंग  अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के समान श्वेत और कुंद के फूल के समान धवल  दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौरवर्ण का वरदान देते  हैं और वे 'महागौरी' कहलाती हैं।

 

दूसरी कथा- इस कथा के अनुसार भगवान शिव को पति-रूप में पाने के लिए देवी की  कठोर तपस्या के बाद उनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर  भगवान उन्हें स्वीकार कर उनके शरीर को गंगा जल से धोते हैं। तब देवी विद्युत के समान  अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम 'गौरी' पड़ा।

 

तीसरी कथा- महागौरी की एक अन्य कथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार जब मां उमा वन में  तपस्या कर रही थीं, तभी एक सिंह वन में भूखा विचर रहा था एवं भोजन की तलाश में वहां  पहुंचा, जहां देवी उमा तपस्या कर रही थीं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गई, लेकिन वह  देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमजोर  हो गया। देवी जब तप से उठीं तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आई और मां  ने उसे अपनी सवारी बना लिया, क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी इसलिए सिंह  देवी गौरी का वाहन है।


कहते है जो स्त्री मां की पूजा भक्ति भाव सहित करती हैं उनके सुहाग की रक्षा देवी स्वंय करती हैं।[7]

मंत्र:

    श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
    महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥

अन्य नाम: इन्हें अन्नपूर्णा, ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी भी कहा जाता है।


1) पूजन विधि

सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर माता महागौरी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।

  • चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका(सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। 

  • इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा माता महागौरी सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। 

  • इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, - नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

  • अगर आपके घर अष्‍टमी पूजी जाती है तो आप पूजा के बाद कन्याओं को भोजन भी करा सकते हैं। ये शुभ फल देने वाला माना गया है।

श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥

अर्थ - मां दुर्गा का आठवां स्वरूप है महागौरी का। देवी महागौरी का अत्यंत गौर वर्ण हैं। इनके वस्त्र और आभूषण आदि भी सफेद ही हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। महागौरी का वाहन बैल है। देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनका स्वभाव अति शांत है।

  

मां महागौरी आरती 👈

ऊँ महागौराय  च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो महागौरी प्रचोदयात्।  

 

महागौरी (तुलसी) : तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये रक्त को साफ कर ह्वदय रोगों का नाश करती है।

 

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नव - आरती : मां महिषासुरमर्दिनी 



 🙏🙏  दसवीं विद्या: कमला   🙏🙏      

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जय मां जय महागौरी

 

 

 

 

मां दुर्गा का सातवां रूप कालरात्रि

मां दुर्गा का सातवां रूप कालरात्रि

  व्याख्याकार: सनातनपुत्र देवीदास विपुल “खोजी”

 मां का आठवां स्वरूप महागौरी का लिंक

नवदुर्गा हिन्दू धर्म में माता दुर्गा अथवा पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों के विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परंतु यह सब एक हैं।


दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अंतर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नांकित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं


    प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

    तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।

    पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

    सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।

    नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

    उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

 

कालरात्रि- देवी भगवती का सातवां रूप है जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं ओर मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है। 

"भगवती कालरात्रि का शुभंकरी स्वरूप ही श्री शीतला माता के रूप में पूजा जाता है। ... इनकी प्रधान प्रतिमा कद साथ श्री भगवती की अनेक शक्तियां भी निराकार स्वरूप में शिला के स्वरूप में पूजी जाती है। जिससे उनके उपासक पर भगवती की सभी शक्तियां प्रसन्न रहती है"

भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप सुलभ नहीं है।

नवरात्रि का सातवां दिन मां कालरात्रि को सपमर्पित है. कालरात्रि को गुड़ बहुत पसंद है इसलिए महासप्‍तमी के दिन उन्‍हें इसका भोग लगाना शुभ माना जाता है. मान्‍यता है कि मां को गुड़ का भोग चढ़ाने और दान करने से वह प्रसन्‍न होती हैं और सभी विपदाओं का नाश करती हैं. मां कालरात्रि को लाल रंग प्रिय है.

इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।

कहा जाता है कि कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं।

नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है।

इस देवी के तीन नेत्र हैं। यह तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। यह गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो।

बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन यह सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए यह शुभंकरी कहलाईं। अर्थात इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।

कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं। यह ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।


आज के दिन मां कालरात्रि की पूजा करने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस कारण से मां कालरात्रि को शुभंकरी के नाम से भी पुकारा जाता है। मां कालरात्रि की पूजा करने से आकस्मिक संकटों से रक्षा होती है। आज के दिन मां कालरात्रि को रातरानी का पुष्प अर्पित करने से वह जल्द प्रसन्न होती हैं। 


प्रार्थना

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥

वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।

वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

मंत्र

1. ओम देवी कालरात्र्यै नमः।

2. ज्वाला कराल अति उग्रम शेषा सुर सूदनम।

त्रिशूलम पातु नो भीते भद्रकाली नमोस्तुते।।

मां कालरात्रि बीज मंत्र

क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।

मां कालरात्रि देवी दुर्गा के 9 स्वरूपों में से एक हैं। मां कालरात्रि का रंग कृष्ण वर्ण का है, काले रंग के कारण उनको कालरात्रि कहा गया है। गर्दभ पर सवार रहने वाली मां कालरात्रि के केश खुले रहते हैं। चार भुजाओं वाली मां कालरात्रि दोनों बाएं हाथों में क्रमश:  कटार और लोहे का कांटा धारण करती हैं। वहीं दो बाएं हाथ क्रमश: अभय मुद्रा और वरद मुद्रा में होते हैं। गले में एक सफेद माला धारण करती हैं। मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज का संहार करने के लिए अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया था।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान कर।

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः

मां कालरात्रि की पूजा विधि

  • मां कालरात्रि की पूजा ब्रह्ममुहूर्त में ही की जाती है. वहीं तंत्र साधना के लिए तांत्रिक मां की पूजा आधी रात में करते हैं. इसलिए सूर्योदय से पहले ही उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं.

  • मां कालरात्रि  के पूजन के लिए विशेष कोई विधान नहीं है. इस दिन आप एक चौकी पर मां कालरात्रि का चित्र स्थापित करें.

  • मां कालरात्रि को कुमकुम, लाल पुष्प, रोली आदि चढ़ाएं. माला के रूप में मां को नींबुओं की माला पहनाएं और उनके आगे तेल का दीपक जलाकर उनका पूजन करें.

  • मां को लाल फूल अर्पित करें. मां के मंत्रों का जाप करें या सप्तशती का पाठ करें. मां की कथा सुनें और धूप व दीप से आरती उतारने के बाद मां को प्रसाद का भोग लगाएं और मां से जाने अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा मांगें.

  • काले रंग का वस्त्र धारण करके या किसी को नुकसान पंहुचाने के उद्देश्य से पूजा ना करें. अगर आप शत्रुओं व विरोधियों से घिरे हैं और उनसे मुक्ति पाना चाहते हैं तो मां कालरात्रि की पूजा विशेष तरीके से भी कर सकते हैं.

मां कालरात्रि  की विशेष पूजा

  • मां कालरात्रिकी पूजा करने के लिए श्वेत या लाल वस्त्र धारण करें और ध्यान रहे कि यह विशेष पूजा आपको रात्रि में ही करनी है.

  • मां कालरात्रि  के समक्ष दीपक जलाएं और उन्हें गुड़ का भोग लगाएं. 108 बार नवार्ण मंत्र पढ़ते जाएं और एक एक लौंग चढाते जाएं.

  • नवार्ण मंत्र है- "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे "

  • उन 108 लौंग को इकठ्ठा करके अग्नि में डाल दें.

  • ऐसा करने से आपके विरोधी और शत्रु शांत होंगे और आपकी सारी परेशानियां मां कालरात्रि स्वयं दूर कर देंगी.

 मां कालरात्रि की आरती


ऊँ कालरात्रिर् च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो कालरात्रि प्रचोदयात्। 

कालरात्रि (नागदौन) : यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं। यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है।

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नव - आरती : मां महिषासुरमर्दिनी 

हिंदी काव्यात्मक सिद्ध कुंजिकास्तोत्र पाठ


शक्तिशाली महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत काव्य‌ रूप
 क्षमा प्रार्थना 

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जय मां कालरात्रि

मां दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी


मां दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी

  व्याख्याकार: सनातनपुत्र देवीदास विपुल “खोजी”

 मां का सातवां रूप कालरात्रि का लिंक 

नवदुर्गा हिन्दू धर्म में माता दुर्गा अथवा पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों के विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परंतु यह सब एक हैं।


दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अंतर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नांकित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं


    प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

    तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।

    पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

    सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।

    नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

    उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

 

 

माता कात्यायनी : आज्ञा चक्र में ध्यान कर इनकी आराधना की जाती है। भय, रोग, शोक-संतापों से मुक्ति तथा मोक्ष की दात्री हैं।
आज्ञा चक्र स्पष्टता और बुद्धि का केन्द्र है। यह मानव और दैवी चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। यह ३ प्रमुख नाडिय़ों, इडा (चंद्र नाड़ी) पिंगला (सूर्य नाड़ी) और सुषुम्ना (केन्द्रीय, मध्य नाड़ी) के मिलने का स्थान है। ... आज्ञा चक्र का रंग सफेद है।

 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:।'


माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।

मां कात्यायनी देवी दुर्गा का रौद्र रूप हैं। शेर पर सवार रहने वाली मां कात्यायनी अपनी दो भुजाओं में पुष्प और तलवार धारण करती हैं, जबकि अन्य दो भुजाएं अभय मुद्रा और वरद मुद्रा में रहती हैं। मां कात्यायनी योद्धाओं की परम प्रिय देवी हैं। जब संसार में असुरों का अत्याचार बढ़ गया था तब मां पार्वती अपने ज्वलंत स्वरूप में कात्यायन ऋषि के घर कन्या स्वरूप में प्रकट हुईं। कात्यायन ऋषि ने उनको अपनी पुत्री माना, इसलिए वे कात्यायनी हुईं।

आज्ञा चक्र भौहों के बीच मौजूद होता है। इस चक्र पर महारत हासिल करने से शान्ति हासिल हो जाती है और इंसान बुद्धि के स्तर पर सिद्ध पुरुष बन जाता है।


आज्ञा का मतलब, ज्ञान का स्रोत है। यह विवेक का चरम बिंदु है। जैसा कि आप जानते हैं कि प्रकाश अपने में सात रंग संजोए होता है। अगर रोशनी का कोई खास रंग हो, जैसे बैंगनी, लाल या कोई और रंग, तो इसका मतलब है कि यह सिर्फ एक ही मकसद के लिए काम आ सकती है। यह हर मकसद के लिए काम नहीं करेगी। लेकिन आज्ञा रंगहीन प्रकाश है, हम लोग इसे सफेद प्रकाश कह रहे हैं, लेकिन वास्तव में यह रंगहीन प्रकाश है, क्योंकि आप इसे देख नहीं सकते। अगर आप प्रकाश के स्रोत को देखें तो आप प्रकाश को देख पाते हैं, अगर आप उस वस्तु को देखें, जिसपर यह पड़ रहा है तो आप इसे देख पाते हैं, लेकिन अगर आप इन दोनों बिंदुओं के बीच इसे देखने की कोशिश करें तो आप इसे नहीं देख सकते।


आप केवल प्रकाश को तभी देख पाते हैं, जब कोई चीज उसे रोकती है, इसलिए प्रकाश रंगहीन है।

तो जिस तरह से रंगहीन प्रकाश को तोड़ने पर यह सात रंगों में बंट जाता है, इसी तरह, ये सात चक्र सात रंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन आज्ञा रंगविहीन है। इसलिए आज्ञा का संबंध वैराग्य से है, जिसका मतलब है रंगविहीन या रंगों से परे की अवस्था। क्योंकि प्रकाश रंगविहीन होता है, इसलिए आप हर चीज को उसी तरह देख पाते हैं, जैसे कि वह है। मान लीजिए कि अगर एक कमरे में लाल रोशनी जला दी जाए तो सब लोग कुछ अलग ही नजर आएंगे। इसी तरह से अगर हम नीली रोशनी जला दें तो भी आप सब अलग नजर आएंगे।

अगर आपकी ऊर्जा आज्ञा में काफी प्रबल है या आपने आज्ञा पर महारत हासिल कर ली है तो बौद्धिक रूप से आप एक सिद्ध पुरुष हो चुके हैं। बौद्धिक सिद्धि आपको शांति देती है। भले ही अनुभव के लिहाज से आपको सिद्धि न मिली हो, लेकिन बौद्धिक सिद्धि आपको मिल चुकी है। यह चीज आपके भीतर एक खास तरह की शांति व स्थिरता की स्थिति लाती है, फिर भले ही बाहरी तौर पर आपके साथ जो भी हो रहा हो। जब बाहरी परिस्थितियां आपके भीतर घट रही चीजों पर असर नहीं डालतीं, तो इससे जिस तरह की आजादी मिलती है, वह अपने आप में जबरदस्त होती है। ऐसे में आपके लिए जो चीजें मायने रखती हैं, उसमें लगाने के लिए आपके पास जितनी मात्रा में ऊर्जा रहती है, वह अद्भुत होती है। इसकी वजह है कि बाहरी चीजें आपके लिए मायने नहीं रखतीं, क्योंकि उन चीजों को आपने जस का तस देखा है।

 

इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।



कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। इनका गुण शोधकार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। यह वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं।



मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी।



इसीलिए यह ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। यह स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाँयी तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है।



इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।

मंत्र:


    चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
    कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥


मां कात्यायनी की पूजा विधि

चैत्र नवरात्रि के छठे दिन आप सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो जाए। उसके पश्चात मां कात्यायनी का स्मरण करें और उनकी विधिपूर्वक पूजा करें। माता कात्यायनी को शहद, धूप, गंध, अक्षत्, सिंदूर आदि अर्पित करें। संभव हो तो मां कात्यायनी को लाल गुलाब अर्पित करें, नहीं तो लाल पुष्प चढ़ा दें। माता को शहद का भोग प्रिय है। फिर उनके मंत्रों का उच्चारण करें और मां कात्यायनी की आरती करें।

 

प्रार्थना

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

मां कात्यायनी बीज मंत्र

क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम

मंत्र

1. एत्तते वदनम साओमयम् लोचन त्रय भूषितम।

पातु नः सर्वभितिभ्य, कात्यायनी नमोस्तुते।।

2. ओम देवी कात्यायन्यै नमः॥

 

मां कात्यायनी की आरती हेतु नीचे लिंक दबाएं👇👇


ऊँ कात्यायनी च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो कात्यायनी प्रचोदयात्।  

देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका। इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं। यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है। 

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नव - आरती : मां महिषासुरमर्दिनी 



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जय मां कात्यायनी

 


Sunday, September 27, 2020

मां दुर्गा का पांचवा रूप स्कन्दमाता


मां दुर्गा का पांचवा रूप स्कन्दमाता

व्याख्याकार: सनातनपुत्र देवीदास विपुल “खोजी”

 

 मां का छठा रूप कात्यायनी का लिंक 

नवदुर्गा हिन्दू धर्म में माता दुर्गा अथवा पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों के विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परंतु यह सब एक हैं।


दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अंतर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नांकित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं


    प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

    तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।

    पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

    सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।

    नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

    उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

 
    या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'


पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्द माता के रूप हैं।

इनकी आराधना विशुद्ध चक्र में ध्यान कर की जाती है। सुख-शांति व मोक्ष की दायिनी हैं।

नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं। यह दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है।


पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता। नवरात्रि में पाँचवें दिन इस देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं।


यह दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। यह कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।


शास्त्रों में इसका पुष्कल महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है।


उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।


मंत्र:


    सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

    शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥


मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:।'

 

मां देवी स्कंदमाता

भगवान स्कंद कुमार [कार्तिकेय] की माता होने के कारण दुर्गा जी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंद माता नाम प्राप्त हुआ है। भगवान स्कंद जी बालरूप में माता की गोद में बैठे होते हैं इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। स्कंद मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजाएं हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कंद को गोद में पकड़े हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पकडा हुआ है। मां का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इसी से इन्हें पद्मासना की देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है।

इनका वाहन भी सिंह है। स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी है। इनकी उपासना करने से साधक अलौकिक तेज की प्राप्ति करता है। यह अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है। एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके मां की स्तुति करने से दु:खों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है।

स्कंदमाता की पूजा विधि-

कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से जो साधक दुर्गा मां की उपासना कर रहे हैं उनके लिए दुर्गा पूजा का यह दिन विशुद्ध चक्र की साधना का होता है. इस चक्र का भेदन करने के लिए साधक को पहले मां की विधि सहित पूजा करनी चाहिए। पूजा के लिए कुश अथवा कंबल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से शुरू करना चाहिए जैसे आपने अब तक के चार दिनों में किया है फिर इस मंत्र से देवी की प्रार्थना करनी चाहिए

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

अब पंचोपचार विधि से देवी स्कंदमाता की पूजा करें-

नवरात्रि की पंचमी तिथि को कहीं कहीं भक्त जन उद्यंग ललिता का व्रत भी रखते हैं। इस व्रत को फलदायक कहा गया है। जो भक्त देवी स्कंद माता की भक्ति-भाव सहित पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है। देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है। नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जाता हैं। स्कंदमाता का मंत्र- सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी ।।

या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

स्कंदमाता का ध्यान-

वंदे वांछित कामार्थे चंद्रार्धकृतशेखराम्।

सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कंदमाता यशस्वनीम्।।

धवलवर्णा विशुद्ध चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।

अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥

प्रफु्रल्ल वंदना पल्लवांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।

कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

स्कंदमाता का कवच-

ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।

हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥

श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।

सर्वाग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥

वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता।

उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠ तेअवतु॥

इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी।

सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥

 

वात, पित्त, कफ जैसी बीमारियों से पीडि़त व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए।

स्कंद माता कथा-

दुर्गा पूजा के पांचवें दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा होती है। कुमार कार्तिकेय को ग्रंथों में सनत-कुमार, स्कंद कुमार के नाम से पुकारा गया है। माता इस रूप में पूर्णत: ममता लुटाती हुई नजर आती हैं। माता का पांचवां रूप शुभ्र अर्थात श्वेत है।

जब अत्याचारी दानवों का अत्याचार बढ़ता है तब माता संत जनों की रक्षा के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती हैं। देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं, माता अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कंद या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिए बैठी हैं। मां का चौथा हाथ भक्तो को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे है।

देवी स्कंद माता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं इन्हें ही माहेश्वरी और गौरी के नाम से जाना जाता है। यह पर्वत राज की पुत्री होने से पार्वती कहलाती हैं, महादेव की वामिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के नाम से पूजी जाती हैं। माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है अत: मां को अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है। जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है मां उस पर अपने पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं।

भोले शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने महान व्रत किया उस महादेव की पूजा भी आदर पूर्वक करें क्योंकि इनकी पूजा न होने से देवी की कृपा नहीं मिलती है। श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए।

स्कंदमाता की स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

स्कंदमाता की प्रार्थना

सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

स्कंदमाता बीज मंत्र

ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।

या

ओम् ऐं ह्लीं क्लीं स्कंदमाताय नमः

मंत्र

महाबले महोत्साहे। महाभय विनाशिनी।

त्राहिमाम स्कन्दमाते। शत्रुनाम भयवर्धिनि।।

 

कैसे करें पूजन :

सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।

इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।

चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर कलश रखें।

उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें।

इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा स्कंदमाता सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें।

इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

स्कंदमाता के अन्य मंत्र

मां स्कंदमाता का वाहन सिंह है। इस मंत्र के उच्चारण के साथ मां की आराधना की जाती है।

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

भोग एवं प्रसाद - पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए| 

मां देवी स्कंदमाता की आरती 

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मां देवी स्कंदमाता की आरती

स्तुतिकार: सनातन पुत्र देवीदास विपुल  "खोजी"   



ऊँ स्कन्दमाताय च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो स्कन्दमाता प्रचोदयात्।

देवी स्कंदमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है।

 

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