Thursday, April 4, 2019

क्या है सप्तांग योग



क्या है सप्तांग योग
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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घेरण्डसंहिता हठयोग के तीन प्रमुख ग्रन्थों में से एक है। अन्य दो ग्रंथ हैं - हठयोग प्रदीपिका तथा शिवसंहिता इसकी रचना १७वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में की गयी थी। हठयोग के तीनों ग्रन्थों में यह सर्वाधिक विशाल एवं परिपूर्ण है। इसमें सप्तांग योग की व्यावहारिक शिक्षा दी गयी है। घेरण्डसंहिता सबसे प्राचीन और प्रथम ग्रन्थ है , जिसमे योग की आसन , मुद्रा , प्राणायाम, नेति , धौति आदि क्रियाओं का विशद वर्णन है। इस ग्रन्थ के उपदेशक घेरण्ड मुनि हैं जिन्होंने अपने शिष्य चंड कपालि को योग विषयक प्रश्न पूछने पर उपदेश दिया था।

योग आसन , मुद्रा , बंध , प्राणायाम , योग की विभिन्न क्रियाओं का वर्णन आदि का जैसा वर्णन इस ग्रन्थ में है , ऐसा वर्णन अन्य कही उपलब्ध नहीं होता। पतंजलि मुनि को भले ही योग दर्शन के प्रवर्तक माना जाता हो परन्तु महर्षि पतंजलि कृत योगसूत्र में भी आसन , प्राणायाम , मुद्रा, नेति , धौति, बंध आदि क्रियाओं कहीं भी वर्णन नहीं आया है। आज योग के जिन आसन , प्राणायाम , मुद्रा, नेति, धौति, बंध आदि क्रियाओं का प्रचलन योग के नाम पर हो रहा है , उसका मुख्य स्रोत यह घेरण्ड संहिता नामक प्राचीन ग्रन्थ ही है। उनके बाद गुरु गोरखनाथ जी ने शिव संहिता ग्रन्थ में तथा उनके उपरांत उसके शिष्य स्वामी स्वात्माराम जी ने हठयोग प्रदीपिका में आसन , प्राणायाम , मुद्रा, नेति , धौति बंध आदि क्रियाओं का वर्णन किया है , परन्तु इन सब आसन , प्राणायाम , मुद्रा, नेति , धौति बंध आदि क्रियाओं का मुख्य स्रोत यह प्राचीन ग्रन्थ घेरण्ड संहिता ही है।
 
घेरण्ड संहिता में कुल ३५० श्लोक हैं, जिसमे ७ अध्याय (सप्तोपदेश) |  जिनसे बनता है सप्तांग योग। षटकर्म आसन प्रकरणं, मुद्रा कथनं, प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यानयोग, समाधियोग) का विशद वर्णन है। इस ग्रन्थ में प्राणायाम के साधना को प्रधानता दी गयी है।

पातंजलि योग दर्शन से घेरंड संहिता का राजयोग भिन्न है। महर्षि का मत द्वैतवादी है एवं यह घेरंड संहिता अद्वैतवादी है। जीव की सत्ता ब्रह्म सत्ता से सर्वथा भिन्न नहीं है। अहं ब्रह्मास्मि का भाव इस संहिता का मूल सिद्धांत है। इसी सिद्धांत को श्री गुरु गोरक्षनाथ जी ने अपने ग्रन्थ योगबीज एवं महार्थमंजरी नामक ग्रन्थ में स्वीकार किया है। कश्मीर के शैव दर्शन में भी यह सिद्धांत माना गया है।

 
घेरंड संहिता ग्रन्थ में सात उपदेशों द्वारा योग विषयक सभी बातों का उपदेश दिया गया है। पहले उपदेश में महर्षि घेरंड ने अपने शिष्य चंडकपाली को योग के षटकर्म का उपदेश दिया है। 

पहला है षट्कर्म प्रकरणं: षट कर्म को शास्त्रों में छह वर्गों में बांटा गया है।
 १. शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मणों के ये छः कर्म-यजन, याजन, अध्ययन, अध्यापन, दान और प्रतिग्रह।
२. स्मृतियों के अनुसार ये छः कर्म जिनके द्वारा आपातकाल में ब्राह्मण अपना निर्वाह कर सकते हैं- उछवृत्ति, दान लेका, भिक्षा, कृषि, वाणिज्य और महाजनी (लेन-देन)।
३. तंत्र-शास्त्र के अनुसार मारण, मोहन (या वशीकरण) उच्चारण, स्तंभन, विदूषण और शांति के छः कर्म। 
४. योगशास्त्र में, धौति, वस्ति, नेती, नौलिक, त्राटक और कपाल भाती ये छः कर्म।
५. साधारण लोगों के लिए विहित ये छः काम जो उन्हें नित्य करने चाहिए-स्नान, संध्या, तर्पण, पूजन जप और होम।
६. लोक व्यवहार और बोल-चाल में व्यर्थ के झगड़े-बखेड़े या प्रपंच।
पहलावाला ही योग हेतु प्रयासरत मानव के लिये है।

दूसरे में आसन और उसके भिन्न-भिन्न प्रकार का विशद वर्णन किया है। घेरण्ड ऋषि द्वारा 32 आसनों के बारे में बताया गया है | वह आसान इस प्रकार है।
1. सिद्धासन  2. पद्मासन 3. भद्रासन 4. मुक्तासन 5. वज्रासन 6. स्वस्तिकासन 7. सिंहासन 8.गोमुखासन 9. वीरासन 10. धनुरासन 11. शवासन 12. गुप्तासन 13. मत्स्यासन 14. अर्ध मत्स्येन्द्रासन `5. गोरक्षासन 16. पश्चिमोत्तासन 17. उत्कटासन 18. संकटासन 19. मयूरासन 20. कुक्कुटासन 21. कूर्मासन 22. उत्तान कूर्मासन 23, मण्डूकासन 24. उत्तान मण्डूकासन 25. वृक्षासन 26. गरुडासन 27. त्रिशासन 28. शलभासन 29. मकरासन 30. ऊष्ट्रासन 31. भुजंगासन 32. योगासन

यह 32 आसन ही मृत्युलोक अर्थात पृथ्वी लोक में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है|
इन सभी आसनों के बारे में घेरण्ड संहिता में आपको विस्तृत जानकारी मिल जाएगी

तीसरे में मुद्रा के स्वरुप, लक्षण एवं उपयोग बताया गया है।
चौथे में प्रत्याहार का विषय है।
पांचवे में स्थान, काल मिताहार और नाडी सुद्धि के पश्चात प्राणायाम की विधि बताई गयी है।
छठे में ध्यान करने की विधि और उपदेश बताये गए हैं। 

इन विषयॉ पर मैं अलग से लिख चुका हूं।
सातवें में समाधी-योग और उसके प्रकार (ध्यान-योग, नाद-योग, रसानंद-योग, लय-सिद्धि-योग, राजयोग) के भेद बताएं गए हैं। इस प्रकार ३५० श्लोकों वाले इस छोटे से ग्रन्थ में योग के सभी विषयों का वर्णन आया है। इस ग्रन्थ की प्रतिपादन शैली सरल, सुबोध एवं साधक के लिए अत्यंत उपयोगी है।

MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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