Wednesday, August 14, 2019

चर्चा का चरखा

चर्चा का चरखा

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"


 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
मो.  09969680093
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
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मुम्बई वापिस। झांसी की यात्रा सार्थक रही। लोगो को mmstm बुकलेट्स भी भेंट की।

अपने ग्रुप में एक वालक एक महीने से mnstm कर सिर्फ जप कर रहा है। उसकी सफलता और दिनचर्या में यह बहुत सहायक हो रहा है। याबी उसने पूजा पाठ सब छोड़कर सिर्फ नाम जप का सहारा ही लिया है।

यह एक सीमा के बाद उचित है। प्रारम्भ में किसी एक ही मन्त्र को आधार मौलिक और मूलभूत बनाना चाहिए। अनेक मन्त्र से कोई फायदा नही। जब मूल मन्त्र सिद्ध हो जाये कुछ शक्ति आ जाये तब कोई भी मन्त्र कम मात्रा में भी जाप करने से फलित होता है।

जैसे मुझे किंतने भी शाब्दिक और निराकार अनुभव हो पर मैं नवार्ण मन्त्र को कस के पकड़े रहूंगा। इसका पल्ला नही छोडूंगा।

क्या। समझे नही। सर जी।

जैसे आपको जो गुरु मन्त्र मिला है वह मूलभूत मौलिक मन्त्र है। मतलब संकट में वही काम आएगा। अतः उसको निरन्तर जीवित रखे मन्त्र जप के द्वारा।

कुछ नए मन्त्र सिद्ध कुंजिका स्त्रोत के जो स्पष्ट हुए थे कर रहा हूँ।

यह तो गजब और अजब है। मेरा मूल मन्त्र है।

इनमे यह प्राप्त हुआ कि सहस्त्रसार से निरन्तर रूक रुक कर आनन्द दायक नशा मिलता रहता है।

पर यह मन्त्र सभी जापक नही कर सकते।

शरीर सम्भालना मुश्किल हो जाता है। नया जापक बेहोश तक हो सकता है। अतः गूप्त रखा है।

पहले इस लायक बनो। यह खैरात नही जो हवा में उछाल दे।

मुझे समझने में 30 साल से ऊपर लगे। तब यह प्रकट हुआ। अब यह ऐसे फेंक दे।

कम से कम 10 लाख नवार्ण मन्त्र करो तब सम्भाल पाओगे।

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मत करे। यह मन्त्र हर व्यक्ति के लिए नही होता है। यह गर्म और शक्ति मन्त्र है।

आप विष्णु या कृष्ण या राम का मन्त्र जाप करे। मतलब मृदु और ठंडा मन्त्र करे। किसी की देख देखी शरीकत नही करते।

भाई मैं तो 5 साल की आयु से जाने अनजाने शक्ति पूजा कर रहा हूँ। अतः 59 साल की आयु में कोई भी मन्त्र उठा सकता हूँ।

आप मेरी स्वकथा पढ़े भाग 1 से तो आप समझ पाएगी।

26 साल शक्ति पूजा के बाद भी 33 वर्ष की आयु में नवार्ण मन्त्र मुझे मरणासन्न बना गया था। वो माँ की ही कृपा थी जो शक्तिशाली गुरू मिले तो मैं जीवित बच सका। अन्यथा या मर चुका होता नही तो पागलखाने होता।

शक्ति हीनता और शक्ति क्या है इसको शायद ग्रुप में मुझसे बेहतर कोई नही जानता होगा।

जय महाकाली गुरूदेव।

किसी को यकीन हो तो प्रयोग करे। दुर्गा सप्तशती का पूरा पाठ और 11 नवार्ण मन्त्र केवल एक हफ्ते वैखरी में कर ले। बस।

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कोशिश की है समाधि को वैदिक और वैज्ञानिक तरीके समझा सकू।

आप कही जा नही सकती। समय है नही। इतने बन्धन। इनका क्या समाधान है। आपको विष्णु मन्त्र करने को बोला। कुछ दिन करके तो देखे।

कभी यह जाप कभी वह जाप। आप मन को स्थिर करे। यदि यकीन है तो जो बोला है वह करे।

आप अपने साथ दूसरो को भी कन्फ्यूज कर रही है।

आप बौराये नही। आपके गुरू आसाराम जी भी शक्तिपात ही करते थे।

गुरू शक्ति को ढंग से याद करे सोने के पहले।

सोने के पहले माँ का सम्पुट पढ़ ले।


दुर्गा देवी नमातुभ्य सर्वाकामार्थ साधिके।

मम सिद्धिम सिद्धिम व स्वप्ने सर्व प्रदर्शय:।।

यदि विष्णु मन्त्र एक हफ्ते में असर न दिखाई तो बजरंग बाण संकल्प के साथ सुबद शाम 21 दिन पढ़े  या जब तक फायदा न हो पढ़ते रहे। संख्या अधिक होने में परहेज नही।

जितनी हो सकती हो  पर वह संख्या नित्य होनी चाहिए।

गूढ़ बात।

हर गुरू परम्परा की शक्ति अलग होती है। जब वे टकराती है तो शिष्य का नुकसान हो सकता है।

यदि एक साधारण गुरू हो तो परेशानी नही होती है  क्योंकि शक्तिपात के कौल गुरू से अधिक कोई शक्तिशाली नही होता है। अतः किसी भी दीक्षा के बाद शक्तिपात दीक्षा में कोई हर्ज नही। पर अन्य परम्पराओं में यह बात नही होती है।

यू समझो पी एच डी वाला किसी का गाइड बन सकता है। शक्तिपात पी एच डी होती है।

शक्ति पात परंपरा में हमारे गुरुदेव परम पूज्य स्वामी नित्य बोधानन्द तीर्थ जी महाराज दीक्षा से पहले साधकों को साधन करने के नियम बताते हुए कहते थे कि मंत्र तो साधन प्रारम्भ करने के लिए सीढ़ी है। क्रिया प्रारम्भ होने के बाद मन्त्र छूट जाय और दूसरा मन्त्र शुरु हो जाय तो कहीं रुकना नहीं किसी मन्त्र या क्रिया के लिए आग्रह , भाव , इच्छा कुछ भी  नहीं करना चाहिए।शक्ति साधक के उत्थान के लिए जो भी आवश्यक होगा वह सारी विधि व्यवस्था परिस्थिति का निर्माण सहजता से करती चली जाती है।साधक को साधन कम से कम 2 घंटे लगातार रोज करते हुए शक्ति को कार्य करने का अवसर अवश्य देना चाहिए।

शुरुआत में 5-6 वर्ष सुबह शाम 2-2 घण्टे साधन अवश्य करने चाहिए !!ॐ!!

साधन जितना करो कम है। जब साधन नही तो मन्त्र जप करो। जप कितना भी करो कम है।

मेरा लक्ष्य जीवन समाप्त होने के पूर्व सवा करोड़ नवार्ण मन्त्र का है।

लिखना अच्छी आदत है।

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सत्य वचन। सब पर लागू विचार। विचार करे।

क्या बात।

कबीरा इस बाजार में। दुखिया सब संसार।।

विपुल पापी संसार मे। रोवे सभी संसार।।

नही सोंच जब समय था। इतना कम जप यार।।

नही सोंचा

पहले पांच अवगुण होते थे जिनसे छुटकारा पाना बहुत कठिन होता था।


क्राम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार,

अब सात हो गये


क्राम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, फेसबुक और व्हाटसैप

मित्रो बुरा न लगे। हर समय मोबाइल को साथ रखना और ध्यान देना ईश प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है।

आप जिसको संकट में याद करे। जिसका नाम निकले वह आपका इष्ट।

जिसका जप जाने अनजाने कर चुके है कर रहे है वह इष्ट।

जो अच्छा लगे वह इष्ट।

जिसका नाम आनन्द दे वह इष्ट।

          

आपकी शक्ति का समार्थ्य मैंने देखा। मुझे मुरारी बापू गुरू दत्त मौलेश्वर महाराज आसाराम बापू सहित तमाम लोगो ने सिर पर हाथ रखने से मना कर दिया था। मैं जब मरनासन्न होता था। तब मेरे प्रथम गुरू महाकाली की शक्ति को जब प्रथम देही गुरू स्वामी नित्यबोधानन्द तीर्थ जी महाराज सम्भाल न पाए थे। तब आपने तीन बार तालू पर हाथ मारकर मेरी क्रियाओं और शक्तियों को दबा दिया था।

जो बाद में 24 साल के जप के बाद पुनः सक्रिय हुई।

स्वामी नित्यबोधानन्द तीर्थ जी महाराज उस स्तर की विशेष दीक्षा देते थे। उस शक्ति से किसी साधारण को हाथ रख दे तो सामनेवाले की मौत तक हो जाये।

शक्ति के खेल का अनुभव मैं समझता हूँ मुझसे अधिक किसी ने न देखा होगा।

जय गुरूदेव।

आपकी फोटो देखकर लोगो को क्रियाये आरम्भ हो जाती थी।

आप महाराज जी की फोटो पर त्राटक कर खुद ही देख ले।

मेरी बात के गवाह कुछ लोग ग्रुप के सदस्य भी है।

आपका कथन बिलकुल सत्य है प्रभु जी, गुरुदेव पॉजिटिव एनर्जी के भंडार है, फोटो तो दूर गुरुदेव का नाम ही काफी है, वास्तव में साधन दौरान गुरुदेव स्वयं सहाय होते है

ठीक है इच्छित लोग त्राटक करे या mmstm करे। इस चित्र के साथ।

चश्मा लगाकर कर ले। पर चश्मे का होश रखे।

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Bhakt Anil Kumar: आपकी biography में कई जगह हास्य हैं जहां खुद को हंसने से रोक नहीं पाता हूं

पहला

जिसमें आपके पिता जी आपको पीटते थे वहां लिखा आपने हॉकीयास्त्र बेटास्त्र जो भी उस समय उपलब्ध हो सके उससे


दूसरा

आप छोटे बडे कीडों को आप डंडी में लगाकर गर्म राख में प्रवेश कराते जिसमें फट फट कि आवाज के साथ उनका फटना


तीसरा

मामी बोली

विपुल तुम तो अच्छे खासे दिखते हो

मित्रो। आज एक खोज की बात कर रहा हूँ। यद्यपि लोग अपने आध्यात्मिक अनुभव गूप्त रखते है किंतु मुझसे सनातन की शक्ति प्रदर्शन  हेतु ध्यान की विधि mmstm का निर्माण करवाया गया। जिसके परिणाम अभी तक शत प्रतिशत और आश्चर्यजनक आये है।

आज मैं वह नाम जप सार्वजनिक कर रहा हूँ। जिसने महाराष्ट्र के अनेको सन्तो को तारा। नाम देव तुकाराम राखू बाई गोरा कुम्भार सेन नाई सहित तमाम नाम है।

जो अदीक्षित है उनके लिए कह रहा हूँ। दीक्षित के मन पर है।

यह नाम जप चमत्कारिक है। आप सिर्फ कुछ मिनट ताली के साथ हल्की ताली बजाकर गाये। आपको आनन्द का अनुभव होगा।यह मेरा विश्वास है।

नाम जप

बिठ्ठला बिठ्ठला

पांडुरंग पांडुरंग

 यह बोलते हुए आंख बंद कर लीन हो जाये। फिर इसका चमत्कार देखे।

जय विठ्ठल श्री हरि।

जय गुरुदेव।


मित्रो जहाँ लाभ मिले। निसंकोच ले लेना चाहिए।

स्वर योग शब्द योग मार्ग का दूसरा नाम है। मैं समझता हूँ। दयालबाग राधा स्वामी मत भी शब्द योग के मार्ग से अंतर्मुखी करते है। अक्षर ब्रह्म है। स्वर भी अक्षर है अतः यह भी ब्रह्म है। अदीक्षित लोग अवश्य इससे बेहद लाभान्वित हो सकते है।

जय गुरुदेव।

यह सही है। पर इस नाम जप की विशेषता खोजी है। तब ही पुनः लोगो को प्रेरित करने का प्रयास किया है।

राम राम हरे कृष्ण तमाम नाम जप सार्वजनिक है पर किंतने लोग करते है।


प्रभु जी सब जगह प्राप्त होने वाली वनस्पति सब लोगो को साधारण सुलभ वस्तु है लेकिन एक जानकार और वैद्य के लिये अमूल्य औषधि।

इस तरह के ज्ञान सिर्फ कुछ हद तक जैसे ब्रह्मा कुमारी जैसे सनकी ही पैदा करते है।

या मुस्लिम और ईसाई । सिर्फ मानो और मानो। अपनी बुद्धि न लगाओ। न कुछ प्रयोग करो न कुछ जानो। जो बोला उसी सीमित दायरे में रह कर असीमित की बात करो।

यह तो बेईमानी है।

सनातन का सिध्दांत तुमको असीमित बनाता है। अपना अनुभव करो। अपनी गीता का निर्माण खुद कर सकते हो। चाहे रामपाल जैसे उल्टी खोपड़ी वाले क्यो न हो।

मित्रो यह कट पेस्ट आपके लिए विशेष है। रमन महृषि बिना गुरू दीक्षा के सिद्ध पुरूष थे। ऐसे योगी कम होते है। आप उनकी जीवनी पढ़े। काफी कुछ ऐसा बोल है जो संयोग से प्रायः मेरे लेखों में भी दिख जाता है।

महऋषि रमण को कोटिशः नमन।

मित्र। विज्ञान कभी सोंच को नही रोकता बल्कि संतुष्ट करता है।


कोई कोई प्रश्न जन कल्याण हेतु भी पूछे जाते है।

तर्क में क्या बुराई। बस झक्क न हो।

जैसे कुछ अज्ञानी ज्ञानी ईश को सिर्फ निराकार बता कर दुकान चला रहे है। यदि ताकत

जैसे तुषार मुखर्जी ने वेद वाणी का उदाहरण देकर आर्य समाज की पूरी सोंच को सीमित कर दिया।

अब जो न माने यह उसकी झक्क है।

सनातन में कहा गया है यदि कही आध्यात्मिक विवाद हो तो वेद वाणी ही अंतिम और मान्य होगी।

यदि आपकी वानी सत्य होगी तो वेद में दी होगी।

यही मैं कहता हूँ। पर जिसका जो अनुभव वह सत्य आप थोप नही सकते। यह अवस्था है पहली कक्षा का विद्यार्थी उसी को सही मानेगा। आप दसवीं कैसे समझाएँगे। यदि समझाते है तो यह आपकी मूर्खता है। आप उसको सारे क्लास पढ़ाकर 10 वी तक लाये।

यही करना लोग भूल जाते है। सीधे सीधे 10 वी बात।

आप गलत बात पर ग्रुप से लोगो को निकालेंगे तो लोग समझ जायेंगे और ग्रुप में बने रहेंगे। मैं किसी को ग्रुप में रुकने हेतु हाथ नही जोड़ता। जिसका प्रारब्ध है वो ही ज्ञान लेगा। बाकी जिसको जाना हो जाये।

मैं तो ईश का काम मॉनकर कर रहा हूँ। उसकी जो इच्छा। मेरी कोई इच्छा नही।

मैं कभी अपने महाराज जी के प्रवचनों का प्रचार नही करता। कारण अधिकतर लोग समझ ही नही पायेगे।

उनको समझने के लिए भी उच्च कोटि का स्तर चाहिए।

एक उदाहरण दे रहा हूँ।

एक प्रश्न था। ग्रुप में देखे कौन समझ पाता है।

क्या मृत्यु भी एक क्रिया है।

आप अपने लेख में ऐसे ही

आत्म ज्ञानी सन्तों की जीवनियाँ

और किस्से जो आत्मज्ञान को जानने में हमारी तकलीफों को कम कर सकें

और जोड दें अपने लेख में अधिक से अधिक आत्मज्ञानी संतों की कहानियां किस्से और जीवनियां इन्हैं पढने में जो आनंद आता है वो अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकता

मेरी सर से विनम्र निवेदन

समस्या यही है। उनके प्रवचन लोग समझ ही पाते। यही आपका उत्तर है। वह जहाँ प्रवचन देते थे वह उनके आश्रम के शिष्य होते थे। जिनको कुण्डलनी जागरण और आत्ममय अनुभव थे। तो वह समझ जाते थे। मतलब महाराज जी सभी पोस्ट ग्रेजुएट क्षात्रों को ही प्रवचन देते थे। अब जो d.sc. होगा वह गली कूंचों में तो प्रवचन देगा तो बेकार जाएगा।

देखकर शक्ति पात दिझा देते थे।।रवि शंकर जी उनही से दिझित हैं ।।

कानपुर तो मेरी ज्ञाननगरी है। इस शहर को नमन।

मेरी रोजी रोटी नौकरी की दाता। कानपुर।

सर मेरे ब्लॉग पर मेरी स्वकथा 13 भागो में लिखी है। आप पढ़ने का कष्ट करें। बार बार बोलना या लिखना अजीब है। यह आत्मश्लाघा होगी।

लिंकः

Freedhyan.blogspot.com

चलिए। ग्रुप की टेस्टिंग है। उत्तर है मृत्यु भी एक क्रिया है। पर आप ज्ञानीजन बताये क्यो।

योग सिखाया या योगासन सिखाया।

योग आंतरिक होता है। अनुभव होता है। वह तो कोई समर्थ गुरू ही सिखा सकता है।

मात्र प्रणायाम या आसन योग नही। पातञ्जलि के अष्टांग योग के आठ अंगों में से मात्र दो अंग।

आप रेकी के सुपर मास्टर है। पर शक्तिपात दीक्षित भी है। कुछ और सोंचे।

नही यार 100 में 35 नम्बर। वो भी partiality में। क्योकि मैं तुम्हे विशेष प्रेम करता हूँ।

अब देखो। महाराज जी का एक वाक्य समझ से परे जा रहा है।

मतलब महाराज जी की गहराई कौन नाप सकता है।

हाथ ऊपर।

सोंचो सोंचो।

यह हमेशा सत्य नही।

जोर दो क्रिया क्यो होती है। इसी में उत्तर छिपा है।

अब आप बताओ सर

पहुच रहे हो।

संस्कार न हो तो क्या होगा। यह क्लू है।

सही है। मतलब जीवन नही। जब जीवन नही तो मृत्यु नही।

तो मृत्यु क्या है। जब तक संस्कार है। जीवन मरण के चक्कर लगते रहेगे।

मृत्यु रूपी अंतिम क्रिया होती रहेगी।

जब संस्कार नष्ट। पातञ्जलि के अनुसार चित्त में कोई वृति नही। मतलब जन्म नही।

अब समझे। यह था मात्र एक वाक्य महाराज जी का सब उल्टे हो गए।

MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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इस ब्लाग पर प्रकाशित साम्रगी  मेरे ग्रुप “आत्म अवलोकन और योग” से लिये गये हैं। जो सिर्फ़ सामाजिक बदलाव के चिन्तन हेतु ही हैं। कुलेखन साम्रगी लेखक के निजी अनुभव और विचार हैं। अतः किसी की व्यक्तिगत/धार्मिक भावना को आहत करना, विद्वेष फ़ैलाना हमारा उद्देश्य नहीं है। इसलिये किसी भी पाठक को कोई साम्रगी आपत्तिजनक लगे तो कृपया उसी लेख पर टिप्पणी करें। आपत्ति उचित होने पर साम्रगी सुधार/हटा दिया जायेगा।

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