Tuesday, August 13, 2019

शाबर मंत्र और महत्व

शाबर मंत्र और महत्व

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 

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एक समय था कि सँस्कृत मात्र जन्मने ब्राह्मण ही पढ़ सकते थे। उस समय जन्मे गोरखनाथ ने पूर्वी भाषा मे शक्ति देकर कुछ शब्दों को मन्त्र का रूप दे दिया। जो शाबरी मन्त्र कहलाते है। कुछ शिव को इनका जनक मानतें हैं। वैसे शिव का ही रूप गुरू महाराज होते हैं। बाबा गोरखनाथ को शिव का ही रूप मानते हैं।


देखो जब कोई सिद्ध अपनी शक्ति से किसी शब्द को जागृत कर देता है तो वह जागृत ही रहता है।

जैसे आज के समय सारे मन्त्र सारे शब्द नाम जप सब सिद्ध हो चुके है क्योंकि इतने सन्तो ने इनको जपा की ये जागृत ही हो गए है।

शाबर मंत्र आम ग्रामीण बोलचाल की भाषा में ऐसे स्वयंसिद्ध मंत्र हैं जिनका प्रभाव अचूक होता है।


शाबर मंत्र शास्त्रीय मंत्रों की भांति कठिन नहीं होते तथा ये ऐसे हर वर्ग एवं हर व्यक्ति के लिए प्रभावशाली हैं, जो भी इन मंत्रों का लाभ लेना चाहता है।


थोड़े से जाप से भी ये मंत्र सिद्ध हो जाते हैं तथा अत्यधिक प्रभाव दिखाते हैं। इन मंत्रों का प्रभाव स्थायी होता है तथा किसी भी मंत्र से इनकी काट संभव नहीं है।


परंतु ये किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रयोग किए गए अन्य शक्तिशाली मंत्र के दुष्प्रभाव को आसानी से काट सकते हैं। शाबर मंत्र सरल भाषा में होते हैं तथा इनके प्रयोग अत्यंत सुगम होते हैं।


शाबर मंत्र से प्रत्येक समस्या का निराकरण सहज ही हो जाता है। उपयुक्त विधि के अनुसार मंत्र का प्रयोग करके स्वयं, परिवार, अपने मित्रों तथा अन्य लोगों की समस्याओं का समाधान आसानी से कर सकते हैं।


वैदिक, पौराणिक एवम् तांत्रिक मंत्रों के समान ‘शाबर-मंत्र’ भी अनादि हैं। सभी मंत्रों के प्रवर्तक मूल रूप से भगवान शंकर ही हैं, परंतु शाबर मंत्रों के प्रवर्तक भगवान शंकर प्रत्यक्षतया नहीं हैं, फिर भी इन मंत्रों का आविष्कार जिन्होंने किया वे परम शिव भक्त थे।


गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछन्दर नाथ शाबर-तंत्र के जनक हैं। अपने साधन, जप-तप-सिद्धि के प्रभाव से वे भगवान् शिव के समान पूज्य माने जाते हैं। ये अन्य मंत्र प्रवर्तक ऋषियों के समान विश्वास व श्रद्धा के पात्र हैं, पूजनीय व वंदनीय हैं।


शाबर मंत्रों में ‘आन और शाप’ तथा ‘श्रद्धा और धमकी’ दोनों का प्रयोग किया जाता है। साधक याचक होता हुआ भी देवता को सब कुछ कहने की सामर्थ्य रखता है और उसी से सब कुछ कराना चाहता है।


विशेष बात यह है कि उसकी यह ‘आन’ भी फलदायी होती है। आन माने सौगन्ध। अभी वह युग गए अधिक समय नहीं बीता है, जब सौगन्ध का प्रभाव आश्चर्यजनक व अमोघ हुआ करता था।


सामन्तशाही युग में ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले लोग अनाधिकृत कृत्यों के लिए साधारणतया गांव के ठाकुर, गाय या बेटे आदि की सौगन्ध दिलाने पर ही अवैध कार्यों को रोक देते थे।


न्यायालय, लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभा में आज भी भगवान की ‘शपथ’ लेकर बयान देने की प्रथा है। अधिकांश लोग आज भी अपनी बात का विश्वास दिलाने के लिए सौगन्ध खाया करते हैं।


यह उस समय की स्मृतियां हैं, जब छोटी-छोटी जनजाति तथा उलट-फेर के कार्य करने वाले भी सौगन्ध को नहीं तोड़ते थे। आज परिवर्तन हो गया है- सौगन्ध लोगों के लिए कोई महत्व नहीं रखते, किंतु ‘शाबर’ मंत्रों में जिन देवी -देवताओं की ‘शपथ’ दिलायी जाती है, वे आज भी वैसे ही हैं।


उन देवों पर जमाने की बेईमानी का कोई असर नहीं हुआ है। शास्त्रीय प्रयोगों में उक्त प्रकार की ‘आन’ नहीं रहती, किंतु शाबर मंत्रों में जिस प्रकार एक अबोध बालक अपने माता-पिता से गुस्से में आकर चाहे जो कुछ बोल देता है, हठ कर बैठता है।


उसके अंदर छल-कपट नहीं होता, वह तो यही जानता है कि मेरे माता-पिता से मैं जो कुछ कहूंगा, उसे पूरा करेंगे ही। ठीक इसी प्रकार का अटल विश्वास ‘शाबर’ मंत्रों का साधक मंत्र के देवता के प्रति रखता है।


जिस प्रकार अल्पज्ञ, अज्ञानी, अबोध बालक की कुटिलता व अभद्रता पर उसके माता-पिता अपने वात्सल्य, प्रेम व निर्मलता के कारण कोई ध्यान नहीं देते, ठीक उसी प्रकार बाल सुलभ सरलता, आत्मीयता और विश्वास के आधार पर निष्कपट भाव से शाबर मंत्रों की साधना करने वाला परम लक्ष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।


शाबर मंत्रों में संस्कृत - हिंदी - मलयालम - कन्नड़ - गुजराती या तमिल भाषाओं का मिश्रित रूप या फिर शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य शैली और कल्पना का समावेश भी दृष्टिगोचर होता है। सामान्यतया ‘शाबर-मंत्र’ हिंदी में ही मिलते हैं।


प्रत्येक शाबर मंत्र अपने आप में पूर्ण होता है। उपदेष्टा ‘ऋषि’ के रूप में गोरखनाथ, सुलेमान जैसे सिद्ध पुरूष हैं। कई मंत्रों में इनके नाम का प्रवाह प्रत्यक्ष रूप से तो कहीं केवल गुरु नाम से ही कार्य बन जाता है।


शाबर मंत्र शास्त्रीय मान्यता से परे होते हुए भी अशास्त्रीय रूप में अपने लाभ व उपयोगिता की दृष्टि से विशेष महत्व के हैं। शाबर मंत्र ज्ञान की उच्च भूमिका नहीं देता, न ही मुक्ति का माध्यम है। इनमें तो केवल ‘काम्य प्रयोग’ ही हैं।


इन मंत्रों में विनियोग, न्यास, तर्पण, हवन, मार्जन, शोधन आदि जटिल विधियों की कोई आवश्यकता नहीं होती। फिर भी वशीकरण, सम्मोहन, उच्चाटन आदि सहकर्मों, रोग-निवारण तथा प्रेत-बाधा शांति हेतु जहां शास्त्रीय प्रयोग कोई फल तुरंत या विश्वसनीय रूप में नहीं दे पाते, वहां ‘शाबर-मंत्र’ तुरंत, विश्वसनीय, अच्छा और पूरा काम करते हैं।


शाबर मंत्र साधना के महत्वपूर्ण बिंदु: इस साधना को किसी भी जाति, वर्ण, आयु का पुरुष या स्त्री कर सकते हैं। इन मंत्रों की साधना में गुरु की इतनी आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि इनके प्रवर्तक स्वयंसिद्ध-साधक रहे हैं।


फिर भी कोई पूर्णत्व को प्राप्त निष्ठावान् साधक गुरु बन जाए या मिल जाए तो सोने पे सुहागा सिद्ध होगा और उसमें होने वाली किसी भी परेशानी से आसानी से बचा जा सकता है। षट्कर्मों की साधना तो बिना गुरु के न करें।


साधना के समय नित्य-नैमित्तिक कर्मों को पूर्ण करके श्वेत या रक्त वस्त्र या फिर साधना के मंत्र प्रयोग में वर्णित वस्त्र धारण करना चाहिए। आसन ऊन या कंबल का श्वेत, रक्तवर्णी या पंचवर्णी ग्रहण करें तथा एक बार आसन पर सुखासन में बैठकर जप की नियत संख्या पूर्ण कर ही आसन से उठें।


साधना में घी या मीठे तेल का दीपक एक पटल पर नवीन वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर जलाएंगे, जब तक मंत्र जप चले। अगरबत्ती या धूप किसी भी प्रकार की प्रयुक्त हो सकती है परंतु शाबर मंत्र साधना में गूगल तथा लोबान की अगरबत्ती या धूप की महत्ता मानी गयी है।


पुष्प, शुद्ध जल, नैवेद्य यथाशक्ति अर्पण करें। मानस भाव उत्साह व श्रद्धा से पूर्ण हों तो मंत्र शीघ्र ही जागृत हो जाते हैं। जहां दिशा का निर्देश न हो वहां पूर्व तथा उत्तर दिशा की ओर मुख करके साधना करनी चाहिए। इस्लामी साधना में पश्चिम दिशा का महत्व है।


जब तक दिशा निर्देश न हो दक्षिण की ओर मुंह न करें। जहां माला का निर्देश न मिले वहां कोई भी माला प्रयोग में ला सकते हैं। वैसे तुलसी, चंदन, रुद्राक्ष, स्फटिक की माला विशेष फलदायी है। इस्लामी शाबर मंत्र साधना में ‘सीपियों या हकीक’ की माला का विधान है।


यदि माला न हो तो कर रूपी मनोअंक माला का प्रयोग किया जा सकता है। नियमानुसार माला 108 मनकों वाली ही हो। जप की गति मध्यम हो, न तेज न कम। तन्मयता, श्रद्धा, विश्वास मंत्र सिद्धि के अचूक साधन हैं।


अविश्वास, अधूरा विश्वास व अश्रद्धा से फल प्राप्त नहीं होगा। मंत्र बड़ी ही सरलता से सिद्ध हो जाते हैं, परंतु साथ ही विषमता यह है कि इन मंत्रों की साधना करते समय विचित्र प्रकार की भयानक आवाजें सुनायी पड़ती हैं या डरावनी शक्लें दिखने लगती हैं।


इसलिए इन साधनाओं में धैर्य और साहस बहुत ही आवश्यक है। जप के समय किसी भी परिस्थिति में घबराएं नहीं। न ही जप व आसन छोड़ें। साधना-काल में एक समय भोजन करें तथा ब्रह्मचर्य का पालन करें।


साधना दिन या रात्रि में किसी भी समय कर सकते हैं। शाबर मंत्र साधना सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, दशहरा, गंगा दशहरा, शिवरात्रि, होली, दीपावली, रविवार, मंगलवार, पर्वकाल, सूर्य संक्रांति या नवरात्रियों से प्रारंभ की जा सकती है।


मंत्र का जाप जैसा है वैसा ही करें, अपनी तरफ से कोई परिवर्तन न करें। उच्चारण की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।


मंत्र जप घर के एकांत कमरे में, मंदिर में, नदी-तालाब-गौशाला, पीपल वृक्ष या जप विधि में निर्देशित स्थान पर ही करें। साधना प्रारंभ करने की तिथि-दिन याद रखें।


प्रतिवर्ष उन्हीं तिथियों में मंत्र का पुनः जागरण करें। जागरण में कम से कम एक माला जप के साथ होम (यज्ञ) भी करें। अधिक जप करने पर अधिक फलदायी होता है।

भाई यदि उनका मन होगा तो वह स्वयम आपसे व्यक्तिगत सम्पर्क कर लेंगे। मैं किसी के मान को ठेस नही पहुंचा सकता।

माता जी के सब पुत्र है और आदेश करें सब वयवस्था परमात्मा करेंगे हम लोग निमित्त मात्र है।।

नहीं। यह इशारा है तुम्हारी सोंच में बदलाव का। अब नशा छोड़ो और तैयार हो नए अनुभव के लिए।

वैसे यह किसी मातृ तुल्य रिश्तेदार की मृत्यु का भी संकेत हो सकता है।

आदरणीय विपुल सर जी

महोदय   कई महीनों पहले आप ने   ढोल गवार शुद्ध पशु नारी    पर एक बहुत ही सुंदर लेख लिखा था  जो कि एकदम सटीक था  एक बार वहीं पोस्ट डालने की कुपा करें   धन्यवाद

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_16.html

मित्र। आपका अनुभव उत्तम है पर यह कुछ भी नहीं। शक्तिपात दीक्षा के बाद इस ग्रुप में कुछ सदस्य है जिनको खेचरी उड्डयन और जलन्धर बन्ध जो रामदेव जैसे लोग भी नही कर सकते वह स्वतः लग जाते है। अतः आप भयभीत न हो। आनन्द ले। यह प्रणायाम इत्यादि गौण है जो स्वास्थ्य के साथ प्रारंभिक स्तर की होती है।

आप mmstm चालू रखे। आपकी दीक्षा का समय आ रहा है।

मित्र आप यह लेख अन्य लेखों के साथ मेरे ब्लॉग पर देख ले।

Freedhyan.blogspot.com

कोई अनुभव न अच्छा होता है न बुरा। यह बस शक्ति का खेल होता है।

आप अपने गुरूपर श्रद्धा रखे। हा यदि आपको इसके आगे की दीक्षाये जैसे ब्रह्मचर्य या सन्यास चाहिये तो गुरू बदलना पड़ेगा। क्योंकि आसाराम ग्रहस्थ्य है।

देखिये गुरू के शरीर पर न जाये ये एक शक्ति है। गुरू का शरीर गलती कर सकता है अपने कर्मो का प्रारब्ध का फल भी भोग सकता है। पर उनकी शक्ति निष्कलंक होती है। अतः आप अपने गुरू को ही समर्पित रहे।

जय गुरुदेव।

देखिये। आसाराम जी के शरीर ने जो पूर्व में वर्तमान में गलत कार्य किये है उनका फल तो भोगना ही पड़ेगा।

पर ज्ञान और शक्ति तो निराकार शुद्ध और निष्कलंक होती है।

अतः आप गुरू तत्व को समर्पित हो। एक वार आसाराम के नाम या शरीर को छोड़ सकती है।

अनुभव को पकड़ कर न बैठे। यह सब पड़ाव होते है।

देखिये विज्ञान की डॉक्टर की सीमा है।

यह क्रिया है।

दुनिया के सामने न करे। यह जगत आपको पागल समझेगा।

विपुल सर आप कह रहे थे कि एक बार आनंदमय कोष में पहुंच जाने के बाद आनंदित रहते हुए सांसारिक कार्यों को कर सकते हैं

आनंदमयकोष में पहुंचना मतलब सहस्त्रार का सक्रिय होना? ? ?

जी

आपकी शक्ति कंट्रोल नही है। आप कहाँ रहती है।

लगे रहो मुन्ना भाई

क्या आप दोबारा शक्तिपात दीक्षा लेकर संतुलित होना चाहेगी।

देखिये यह डिग्री होती है। आसाराम जी के भी पिता धरती पर है। मैं समझा रहा हूँ किसी का अपमान नही कर रहा।

हा जो संस्कार जनित प्रारब्ध होते है वह यदि बीमारी के रूप में है तो स्वतः ठीक हो जाते है। बस साधन करते रहो।

आप कहाँ रहते है।

कालपी, जनपद-जालौन, उ.प्र.

ग्रेजुएट हूं..नौकरी कर रहा हूं

व्यक्तिगत आओ

मतलब उनसे भी शक्तिशाली गुरू है जो प्रचार प्रसार से दूर रहते है।

कर ले। नम्बर में जल्दबाजी नही।

सभी नए सदस्यों का स्वागत है। ग्रुप में केवल आध्यात्मिक अनुभव हेतु ही पोस्ट डाले। गुड़ मार्निंग इवनिग और फोटो पोस्ट करने से बचे।

अपने लिखे भजन इत्यादि डाल सकते है।

मित्र आर्यसमाजियों के साथ और अन्य परम्पराओं के साथ पूर्वाग्रहीत सोंच कुछ हद तक झक होती है।

जैसे मैं सभी मन्त्र समान देखता हूँ। महाराज जी शक्तिपात किसी भी शब्द नाम या मनचाहे मन्त्र से कर देते है। पर कुछ लोग है जिनकी बुद्धि विकसित नही होती वह किसी एक के पीछे ही पड़े रहते है।

प्रभु जी, यूं तो हमाऱा परिवार भी आर्य समाजी ही है, मेरे पिता जी आर्य समाजी, मेरी माँ सनातनी, प्रभाव माँ आर्य समाज का आदर करती है पिता जी सनातन का।  मेरे अभिभावक कहते है की कभी भी एक चीज़ को रटो मत, समझो, क्योंकि यदि समझोगे नही तो सामने वाली सोच या वस्तु तुम्हे अपनी गिरफत में ले लेगी। वैसे आर्य समाज बुरा नही यह हर प्रकार के पाखण्ड से बचाता है, धर्म के कारोबार से बचाता है यदि बुरे है तो इसके पैरोकार।

कर्मगति टारे नाही टरे।

दुनिया समझ नही पा रही है। यह भक्ति की अवस्था है।

आप घरवालों के नाम व्यक्तिगत पोस्ट कर दे। मैं एक दो दिन में मन्त्र दे दूंगा।

अतः आप सब ने देखा होगा जितने भी संतों ने ईश्वर के दर्शन किये उन सभी संतों ने जन मानस कि सेवा के लिए परोपकार के श्रेष्ठ और शुभ कर्म भी किये.


अकर्मण्य को कुछ भी हासिल नहीं हो सकता.

इनको लेख का रूप देकर डालो।

कल ध्यान में मन्त्रो का तुलनात्मक अध्ययन किया। मेरी निगाह में सब समान है व्यक्ति विशेष का अंतर है बस। सब सिद्ध हो चुके है। पर मन्त्रो में नवार्ण मन्त्र को श्रेष्ठतम बताया। क्योकि गायत्री और महामृत्युंजय मंत्र नवार्ण मन्त्र में ही समाहित है।

कारण भी समझाया गया। समय मिलने पर लिखूंगा।

मित्र साक्षात्कार हेतु समाधि आवश्यक नही। समाधि पर भी लिख रहा हूँ। लोगो को बहुत भरम है।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_17.html

आपने मेरे लेख को पढा नही। मैं बार बार कहता हूँ। सब नाम मन्त्र इत्यादि सिद्ध यानि जीवित हो चुके है। आप कुछ भी करो पर करो। बिना जाने बिना बुझे। सतत निरन्तर निर्बाध समर्पण के साथ।

मैंने सिर्फ मजबूरीवश तुलना करने का दुस्साहस किया। जो मेरी क्षमता के बाहर है। परंतु व्यर्थ के छोटे बड़े मन्त्र के विवाद के कारण मुझे इस पर चर्चा करने हेतु ध्यान और मीमांसा करनी पड़ी।

यह मुझे अच्छा नही लगा। किंतु अज्ञानी ज्ञानियों के लिए जो छोटा बड़ा पूवाग्रह लेकर बैठे है अपनी अपनी सीमित सोच को दुनिया मे प्रचारित कर रहे है।

मेरे लिए नवार्ण गायत्री महामृत्यंजय राम नाम बिट्टल सब नाम बराबर। यह सत्य है मेरा आधार मन्त्र नवार्ण है पर मुझे क्रिया या ध्यान हेतु कुछ भी चलता है और बराबर क्रिया भी होती है।

मुझे लगता है मुझे सभी देवों का आशीष है। माँ गायत्री का भी अनुग्रह है।

जय महाकाली गुरुदेब। जय महाकाल।

मेरे विचार से यह उचित भी था ताकि लोग मन्त्रो के रहस्य भी जान सके। दूसरे यह माँ जगदम्बे की कृपा से अचानक ही हो गया और तर्क मीमांसा स्वतः स्पष्ट हो गई।

मैंने तो लिख भी दिया है अंत मे मैं अज्ञानी मूर्ख मुझे कुछ नही पता। सब माँ की कृपा ने लिखवाया।

यही सत्य है। जापक अधिक महत्वपूर्ण है।

जो घड़ा खाली होता है उसमें अधिक द्रव भरत है। जिसमे कचरा हो तो पहले वह खाली होता है। यह स्थिति उनकी है जो शरण मे आते है।

दूसरी बात गीता रामायण चालीसा मन्त्र नाम जप सब स्वतः सिद्ध है जीवित है। अतः बिना अर्थ जाने या न जाने इसमें कोई अंतर नही। बस आवषयक है आपकी एकाग्रता और समर्पण और जप संख्या।

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MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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