मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या)
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या में भेद
(पहलीबार व्याख्या)
व्याख्याकार सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
मित्रों कुछ दिन पूर्व मैनें 10 विद्या पर लेख लिखे थे तो 10 विद्या का कुछ अर्थ का प्रादुर्भाव हुआ था। इसके बाद मां दुर्गा के नव रूपं पर भी लेख लिखे थे। तब यह प्रश्न उठा। जिस पर मां सरस्वती और गुरूदेव की कृपा हुई और मैं वह कुछ खोज पाया जो आपको कहीं नहीं मिलेगा। बल्कि आपने सुना तक न होगा। कुछ प्रतीक्षा करें इन विषयों पर लेखों की। आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब कर दे जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे।
वास्तव में हम जितना अधिक विज्ञान में खोज करते जायेंगे हम उतना अधिक सनातन को समझ पायेंगे और यह सोंचने पर विवश हो जायेंगे कि आज का विज्ञान कितना बौना है जो सनातन के रहस्यों पर प्रकाश नहीं डाल पाता और बिना जाने निंदा करता है। सनातन की ऊंचाई गहन अध्ययन चिंतन और ईश कृपा के बिना नहीं पाई जा सकती है। वास्तव में सनातन में सृष्टि में होनेवाले सभी अविष्कारों को गूढ रूप में समझाया गया है। जो हम समझ नहीं सकते और पूर्वाग्रह के कारण सिर्फ बकवास ही करते हैं। इसमें सुपर भौतिकी मेटा भौतिकी सहित विज्ञान के हर आयाम को बताया गया है।
चूंकि इस जन्म में मैं इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएट के साथ परमाणु वैज्ञानिक और 38 साल का अनुभवी हूं अत: मैं कह सकता हूं कि वैज्ञानिक कौम सबसे बडी मूर्ख और पूर्वाग्रहित कौम है जो किसी उपकरण की सूचना को सही मानेगा पर जिसने उपकरण बनाया उस पर यकीन नहीं करेगा। साथ ही किसी घटना के घटने के लिये 50 साल प्रतीक्षा करेगा पर उसको बोलो मुझे मात्र कुछ दिन कुछ समय दो। तुमको पराशक्ति के सनातन अनुभव होंगे तो वह कन्नी काटेगा।
मैं समझता हूं सनातन के ऊपर शोध हेतु कोई शिक्षा प्रणाली और संस्थान होनें चाहिये।
अभी नवरात्रि हेतु नवदुर्गा के नव रूपों पर लेख लिख रहा था तब नवरात्रि का अर्थ समझ में आया और अनायास ही मां सरस्वती की कृपा से अपने प्रथम गुरु मां काली की दया से व भौतिक गुरू की लीला से अचानक स्पष्ट हुआ नवरात्रि और 10 विद्या में यानी मां दुर्गा के नौ रूपों में और 10 विद्या के 10 रूपों में बहुत ही अंतर है।
इसको मैंने इंटरनेट पर गूगल गुरु की शरण में जाकर देखा वहां कुछ नहीं मिला न ही किसी किताब में कुछ मिला न ही किसी संत ने इस पर व्याख्या की। मैंने व्यक्तिगत रूप में उनको निवेदन किया कुछ तांत्रिकों से भी पूछ पर कोई बता न सका। कुछ ने मां दुर्गा के नव रूपों पर प्रकाश डाला। अत: यह हो सकता है यह व्याख्या आपको इस लेख के अलावा कहीं और न मिले। हो सकता है यह व्याख्या हमारे मन का भ्रम हो यानी गलत हो। लेकिन यह बात तो सही है अभी तक के हमारे अनुभव अनुभूति व आत्मगुरू की व्याख्या मां जगदंबे की कृपा से सही ही रही। वह सब के सब वेद से उपनिषद से भगवत गीता से अंत में मेल खा जाते और कहीं न कहीं उस अनुभूति का जिक्र मिल जाता है।
यद्यपि यह बात सही है कि ब्रह्म निराकार है और उसने समय-समय पर साकार रूप धारण किए तो यह कह देना कि सब एक ही है यह बहुत ही उच्च स्तर की बात होगी जब आप उस ब्रह्म के स्तर पर बैठे हो।
यह तो बिल्कुल वही बात हो गई आप बोलो सब आलू या बटाटा या पोटैटो है लेकिन आलू की चाट बनती है सब्जी बनती है उबाल के बनता है चिप्स बनते हैं नमकीन बनती है भुजिया बनती है सब में अंतर है कि नहीं उसी भांति इन नौ रूपों में और 10 विद्या में अंतर है। इन सबको आप एक तब ही कह सकते हैं जब यह मूल रूप में हो। कुछ ऐसे ही ब्रह्म समझें। जब कुछ समझ में न आये तो बोल देना सब एक ही है।
कुछ इसी भांति मां गायत्री के विषय में कुछ असत्य बातें दीं हुई हैं जो तर्कों पर खरी नहीं उतरती हैं। इस पर भी लिखना है। विष्णु का क्षीरसागर रूप भौतिकी से समझा जा सकता है। इसलिए मैं विज्ञान की दृष्टि से और तर्क के साथ आपके समक्ष इस विषय पर चिंतन करना चाहूंगा। आपका सुझाव आपके प्रश्न का हमेशा की भांति स्वागत रहेगा।
प्रयोग करें एक टंकी के अंदर पानी भर दे गुब्बारों के अंदर पानी भरकर टंकी में छोड़ दें आप देखेंगे गुब्बारे के अंदर भी पानी है गुब्बारे के, बाहर भी पानी है। लेकिन उन दोनों पानी का कोई आपस में जोड़ नहीं मेल नहीं। बस यही अंतर है 10 विद्या में और नवरात्रि में।
साकार ब्रह्म की मूर्ती के अंदर भी जल है बाहर भी है। वैसे ब्रह्म सर्वव्यापी है निराकार रूप में लेकिन साकार रूप में भी वह मौजूद है यानी गुब्बारों के आकार के अंदर भी वही है और बाहर भी वही है। बीच में इस शरीर का बंधन है।
वह गुब्बारा कौन है हम हैं जो साकार है वह जो पदार्थ है जो हमें दिखते हैं जिसको कि भगवान श्री कृष्ण ने भागवत में कहा की विज्ञान वह है जिसमें मनुष्य हमारे साकार सगुण रूप के विषय में शोध करता है और उस विषय में चिंतन करता रहता है जानने का प्रयास करता रहता है। ज्ञान क्या है जो निराकार सगुण स्वरूप को जानता है जानने का प्रयास करता है वह ज्ञानी है और वह ज्ञान है।
10 विद्या जो गुब्बारों के बाहर व्याप्त है यानी जो हमारे शरीर के बाहर ऊर्जा है जो रूप है वह विद्याएं हैं क्योंकि विद्या के द्वारा हम बाहर कुछ करते हैं। इस पर भी अलग लेख लिखूंगा।
मैं यह कहना चाहूंगा पहले 10 विद्या का प्रादुर्भाव हुआ फिर दुर्गा का प्रादुर्भाव हुआ और जिसने की नव दुर्गा के रूप धरे। इसी के साथ गायत्री का प्रादुर्भाव हुआ।
यानी पहले वाहिक जो 10 विद्या थी उर्न्होने सृष्टि उत्पन्न की और फिर उस सृष्टि ने मनुष्य की उत्पत्ति की और फिर नवदुर्गा उत्पन्न हुई। फिर मनुष्य को ज्ञान हेतु वेदों को उत्पन्न करने हेतु मां गायत्री का रूप।
अब मैं योग की एक नई परिभाषा देता हूं। “ जब तुम्हारे अंदर की दुर्गा का काली से मिलन होगा तब योग होगा”।
सोचने की बात यह है कि शब्द नवरात्रि क्यों है नव दिन क्यों नहीं है नव दिवस क्यों नहीं है नौ रूपों के लिए नवरात्रि ही क्यों कहा जाता है?????
वहीं 10 रूपों को विद्या कहा जाता है और कुछ नहीं। बस आरंभ यहीं से होता है।
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