Friday, October 30, 2020

हे हुलसी के लाल तुलसी/ hulsi ke lala tulsi


 हे हुलसी के लाल तुलसी

सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी


हे हुलसी के लाल तुलसी,  करूं मैं कैसे वंदन तेरा।
तुम हो श्रेष्ठ श्रेष्ठतम कविवर,‌ भक्ति प्रेम रस ज्ञान बिखेरा।।



रामचरित को तुमने गाकर, दिया जगत अनूठा उपहार।
सकल भक्ति का रूप मनोहर,रच डाला है बारंबार।।



गान तुम्हारा बड़ा निराला,  जनमानस में भक्ति जगाए।
कर्म योग प्रभु मार्ग पर चलकर, गुरूभक्ति क्या यह समझाए।।



"विनय पत्रिका" अनुपम माला, लिए समेटे भजन अनेक।
"दोहावली" दोहे की गली, भाव अनेकों लिए समेट।।



"कवितावली" में राम कविता, सभी का मन मोहनेवाली।
"गीतावली" के गीत विलक्षण,  सीता मैया मंगल वाली।।



तुम महाकवि हो सकल जग के, अवधी भाषा के सूर्य बने।
राम नाम की महिमा गाकर, कितने भव सागर पार करें।।



नाम तुम्हारा अमर रहेगा, जब तक चमके चांद सितारे।
विपुल ज्ञान तुम देने वाले, नश्वर जग के हो उजियारे।।



हे तुलसी के राम रमैया, यह पापी अधम बुलाता है।
दे दो भक्ति का अमृत कुछ, कर जोरी विपुल गुहराता है।।



सद्गुरू कृपा तुलसी कीन्ही, भक्ति मार्ग की दे दी धारा।
कृपा अमोलक गुरुवर कर दो, तुलसी सम हो हृदय हमारा।।

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