Wednesday, October 28, 2020

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 4 / brahm gyan kaya khand 4

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 4

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 

24. फिर अष्टांग योग क्या है???


पातांजलि महाराज ने षट् दर्शन के अंतर्गत “योग सूत्र” लिखे जिन्हे अष्ट अंग योग यानि अष्टांग कहा गया। यह हठ योग का मार्ग है। 

 👉👉अष्टांग (अष्ट + अंग) योग क्या है ?👈👈

 👉👉बिना स्वार्थी बने योग नही हो सकता👈👈

मेरी व्याख्या शायद आप कहीं और न पायें। 

 

पातंजलि महाराज के पहले ऋषियों ने षष्ट अंग व सप्त अंग योग मार्ग की व्याख्या की है किंतु वह अधिक प्रचलित न हो सकें। इन विधि मार्गों में मुद्रा ध्यान भी एक अंग बताया। जिसको महात्मा बुद्ध ने भलीं भांति प्रयोग कर बताईं। वर्तमान में यह विधियां बुद्ध लामाओं के पास तिब्बत में सुरक्षित हैं। सनातन का कुछ ज्ञान तिब्बती भाषा में ही सुरक्षित रह सका। आक्राताओं ने संस्कृत साहित्य व पाली साहित्य को आसानी से नष्ट कर दिया क्योकि यहां की जलवायु उनके अनुकूल थी। किंतु वे तिब्बत न जा सके। अत: वह साहित्य सुरक्षित रहा।  

 

👉👉क्या है षट-अंग, सप्तांग और अष्टांग योग  👈👈

पातांजलि महाराज एक बडे विज्ञानी थे। उन्होने मानव के आठ अंगों के अनुकूल अष्ट वासुदेव की तरह इन अंगों को जोडकर एक योग का मार्ग बना दिया। 

 

योग की क्रिया के आठ भेद — यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। यम व नियम के पांच उप अंग। 

 👉👉पातांजलि के पंच यम क्या हैं?👈👈

 👉👉पातांजलि के पंच नियम क्या हैं?👈👈

आयुर्वेद के आठ विभाग - शल्य, शालाक्य, कायचिकित्सा, भूतविद्या, कौमारभृत्य, अगदतंत्र, रसायनतंत्र और वाजीकरण।   

 

शरीर के आठ अंग — जानु, पद, हाथ, उर, शिर, वचन, दृष्टि, बुद्धि, जिनसे प्रणाम करने का विधान है। आठ अंगों का उपयोग करते हुए प्रणाम करने को साष्टांग दण्डवत कहते हैं।

 👉👉क्या अंतर है ज्ञान और बुद्धि में👈👈

👉👉विवेक की व्याख्या  👈👈

आपको बता दें कि जानू का मतलब आत्मा, जीवन शक्ति, जन्मस्थान होता है।

जानू शीर्षासन भी होता है।


अब यहां देखें आप हाथों के द्वारा जगत में व्यवहार करते हैं तो यह यम का अर्थ आपकी दाहिना हाथ हो गया और इसमें पांच उंगलियों के रूप में पांच उपांग है फिर नियम यानी आप अपने प्रति क्या व्यवहार करते हैं इसमें फिर पांच उप अंग है जो आपके हाथ की उंगलियों की भांति है यह बायां हाथ हो गया।

दोनों को जोडने से हो गया नमस्कार मुद्रा।

इसी भांति दोनों हाथों को आप अपने शरीर से खींचकर लगाते हैं।

यानी जकड़ते हैं तो इसका अर्थ हो गया जो बद्रायण पहला ब्रह्म अथातो ब्रह्म जिज्ञासा। यानि आपके अंदर ब्रह्म को जान्ने की जिज्ञासा। 

👉👉क्या है ईश्वर- प्रणिधान अष्टांग योग में  👈👈

👉👉मन, बुद्धि और आत्मा  👈👈


तीसरा सूत्र तीसरा अंग है वह है प्रत्याहार जिसका शाब्दिक अर्थ है ( पुल्लिंग)  पीछे खींचना, हटाना अथवा आशा, वचन आदि वापस लेना। जगत में जो कुछ भी वस्तुएं आप संग्रह करने की प्रवृत्ति करते हैं उनके त्याग के विषय में और आवश्यक से अधिक संचय का त्याग करना यह आप यह प्रत्याहार के द्वारा करते हैं।  यानी दोनों हाथों से जगत का व्यवहार करते हैं तो प्रत्याहार का तात्पर्य हो गया आपकी बुद्धि से।

 

अब देखें पहले यम यानि जगत के प्रति व्यहार यानि जगत जो दायां हाथ। आप दाहिने हाथ से अधिक काम करते हैं। फिर नियम यानि आपका स्वयम आपके प्रति व्यहार। मतलब आपकी आत्मा के स्वरूप जो आपका शरीर है उसके प्रति व्यवहार। यानि बायां हाथ। आपका ह्र्दय भी बायीं तरफ है। 

 

इन दोनों हाथों के द्वारा आप ग्रहण करते हैं। स्थूल जगत को और सूक्ष्म रूप में। उसके प्रति उदासीनता ही प्रत्याहार हो गई। 

 👉👉क्या हैं “त्याग” के अर्थ यानि प्रत्याहार का रूप👈👈

 

चौथा हो गया आसन यानि जिसके द्वारा आप जमीन पर बैठते उठते हैं और प्रत्येक पशु का अलग आसन भी होता हैं।

वह अवस्था जिसमें आप सहजतापूर्वक बैठ सकें व अपने शरीर को स्वास्थ्य प्रदान कर सकें। 

 

पांचवां होता है प्राणायाम। यानी आप का मुख और नासिका द्वारा प्राणों की वायु का आयाम। पंच वायु  जिसके द्वारा आप इस जगत में जीवित रहते हैं।

हम जब श्वास लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु पांच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर पांच जगह स्थिर और स्थित हो जाता हैं। लेकिन वह स्थिर और स्थितर रहकर भी गतिशिल रहती है।

ये पंचक निम्न हैं- (1) व्यान, (2) समान, (3) अपान, (4) उदान और (5) प्राण।


वायु के इस पांच तरह से रूप बदलने के कारण ही व्यक्ति की चेतना में जागरण रहता है, स्मृतियां सुरक्षित रहती है, पाचन क्रिया सही चलती रहती है और हृदय में रक्त प्रवाह होता रहता है। इनके कारण ही मन के विचार बदलते रहते या स्थिर रहते हैं।

 

1.व्यान : व्यान का अर्थ जो चरबी तथा मांस का कार्य करती है।

2.समान : समान नामक संतुलन बनाए रखने वाली वायु का कार्य हड्डी में होता है। हड्डियों से ही संतुलन बनता भी है।

3.अपान : अपान का अर्थ नीचे जाने वाली वायु। यह शरीर के रस में होती है।

4.उदान : उदान का अर्थ उपर ले जाने वाली वायु। यह हमारे स्नायुतंत्र में होती है।

5.प्राण : प्राण वायु हमारे शरीर का हालचाल बताती है। यह वायु मूलत: खून में होती है।

 

 

प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएं करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक।

उक्त तीन तरह की क्रियाओं को ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं।


अब देखें छठा होता है जो कि आती है उसे बोलते  हैं धारणा।

जिसमें कि आप की आंतरिक दृष्टि का इस्तेमाल होता है तो वह आपके शरीर काम हो गया दृष्टि और यहां पर हो गया धारणा।


इसके पश्चात होता है ध्यान और समाधि।


इन सब को एक साथ लेकर चलने से आपको योग घटित हो सकता है यानी आप एक पूर्ण मानव बन सकते हैं।


पांजजलि महाराज ने बहुत ही सुंदर तरीके से हमारे शरीर के अंगों को योग के अंगों के माध्यम से समझा कर उनके कार्य को समझा कर अष्टांग योग की स्थापना की।


25. तो फिर सनातन में वेद क्या है???


जब मनुष्य की उत्पत्ति हुई थी तब वह एक शुद्ध आत्मा था और ईश्वर के बिल्कुल निकट था आपने नर और नारायण की कथाएं पढ़ी होंगी लेकिन जब नर ने नारायण से पूछा कि भाई मेरा कर्म क्या है मेरी उत्पत्ति क्यों हुई है और उस मनुष्य को मार्गदर्शन करने के लिए आदि शक्ति काली ने मां गायत्री रूप धारण किया और तीन वेदों की रचना की। बाद में मनुष्यों ने ऋषियों ने अन्य मार्ग खोजें और उनको साथ लेकर अर्थव वेद बना। 

👉👉ब्रह्मचर्य के वास्तविक अर्थ👈👈 

 👉👉वेद, उपनिषद और गीता की जन्म कथा👈👈

👉👉मानव योनि सर्वश्रेष्ठ क्यों??  👈👈

👉👉धर्म क्या??  👈👈

👉👉सत्य की विवेचना 👈👈

 

यहां देखें। गाय  त्री । यानि तीन गायन मतलब लेखन। नाम पडा गायत्री। ऋग्वेद छंद के रूप में पद्य है। बाकी गद्य। इन वेदों से वेद महावाक्य व मानव रूप का उद्देश्य मिलता है। अर्थ, काम, धर्म व मोक्ष। 

 


इन वेदों को सत्य मानकर जिन शोधकर्ताओं ने शोध किया एक तरह से पीएचडी की उनके ग्रंथ उपनिषद कहलाए।  जिन मनीषियों ने वेदों को सीधे-सीधे न मानकर प्रयोग किये फिर वेदों को समझाया। इति सिद्धम्। आपने रेखा गणित में निर्मेय प्रमेय पढी होगी। सिद्ध होने के बाद जो लिखा वह दर्शन कहलाए।  जो कि षट् दर्शन कहलाते हैं उसी में प्रयोग के द्वारा पतंजलि महाराज ने “ योग सूत्र”  की रचना की। जिसमें अष्टांग योग है। 

👉👉क्या है षट्दर्शन और भारत का ज्ञान  👈👈


यदि हम वेदों को गोशाला मानें तो उसके अंदर रहनेवाली गाय हैं उपनिषद। गायों के दूध के रूप में श्रीमद भगवत गीता और दूध के अंदर से निकला हुआ मक्खन रामचरितमानस है।  रामचरितमानस से अच्छी गीता की कोई व्याख्या नहीं हो सकती गीता ने संकेतों में बात किया है लेकिन रामचरितमानस में उदाहरण के साथ चरित्र के रूप में समझाया गया है।  वही षड्दर्शन को नंदी मान सकते हैं और पुराने को हम बछड़े।

 

प्रश्न 26: योगी की पहचान क्या है???

आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???

अगले अंक की प्रतीक्षा !!

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5👈👈

👉👉संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है?? भाग 1  👈👈

👉👉संक्षिप्त ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 2 ! 👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3 👈👈

 


आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब / फालो कर दें। जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे।


जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥

 
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।
 
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

No comments:

Post a Comment