जैसे त्राटक नेत्र मार्ग इस पर ब्रम्हाकुमारी वाले पर यह बात मूर्खतापूर्ण कि हम ही सही बाकी गलत और बहुत सी बातों का श्रुति यानि वेद उपनिषद से न मिलना। यह सिद्ध करता है कि यह अपरिपूर्ण और पूर्वाग्रहित मार्ग। जैसे यह जीवित गुरू नहीं मानते। काम को गलत मानकर पति पत्नि को भाई बहन बना देते हैं। जिस कारण मनुष्य काम के संस्कार न भोग कर उस ऊर्जा को नहीं सम्भाल पाता है और पागल हो जाता है। इस मत ने दुनिया में सबसे अधिक मस्तिष्क रोगी बना दिये।
कुण्डलनी मार्ग को चक्र को नहीं मानते जो सीधे सीधे गीताज्ञान पर प्रहार है।
कान मार्ग जैसे शब्द योग राधास्वामी मत। यह शब्द देकर बाकी को गलत बताकर शिष्य को रोक देते हैं मात्र गुरूभक्ति सिखाते हैं जो बेहद आपत्तिपूर्ण है। फिर भी यह ब्रह्माकुमारी से बेहतर।
नासिका मार्ग़ जैसे विपश्यना अथवा प्रेक्षाध्यान। निराकार कुछ सीमा तक चार्वाक पर यह गीतानुसार है। किंतु यह पूर्वाग्रही नहीं।
मुख मार्ग जैसे मंत्र जप। यह सबसे प्रचलित मार्ग और मेरे अनुसार सबसे सरल सुगम और टिकाऊ मार्ग। पर कौन सा मन्त्र जो विभिन्न समय लेता है। समर्थ गुरू मंत्र, बीज मंत्र सिद्ध मंत्र प्रचलित मंत्र किसी विशेष प्रयोजन हेतु निर्मित मंत्र।
इसमें भी रामपाल मार्गी। यह बात मूर्खतापूर्ण कि हम ही सही बाकी गलत और बहुत सी बातों का श्रुति यानि वेद उपनिषद से न मिलना। यह सिद्ध करता है कि यह अपरिपूर्ण और पूर्वाग्रहित मार्ग। यह विभिन्न मार्ग के मंत्र देकर बाकी को गलत बताकर शिष्य को रोक देते हैं मात्र अपनी भक्ति सिखाते हैं जो बेहद आपत्तिपूर्ण है। बिल्कुल ब्रह्माकुमारी की तरह शिष्य स्वतंत्र नहीं।
यह सारे मार्ग अंतर्मुखी करने हेतु शिष्य से प्रयास करवाते हैं।
मेरे अनुसार सर्वश्रेष्ठ मार्ग शक्तिपात और क्रिया योग मार्ग। यह दोनो लुप्त मार्ग सप्तऋषियों द्वारा पुन: प्रकाश में लाये गये।
शक्तिपात मार्ग सीधे मोक्ष यानि निर्वाण हेतु। क्रियायोग सिद्धि हेतु श्रम और प्रयास।
शक्तिपात कुण्डलनी जागरण कर अपने संस्कारों को क्षीण कर स्वचलित मार्ग वहीं क्रिया योग सत्वगुणी कर्म कर सत्वगुणी संस्कार संचित कर सिद्धियों हेतु प्रेरण मार्ग। शक्तिपात में सिद्धि मिले न मिले कोई लालसा नहीं। वैसे सिद्धियां मारग की बडी रूकावट होती हैं।
सत्गुण में सबसे अच्छी बात यह तमो और रजो को मारकर समय आने पर खुद को विलीन कर मार्ग प्रशस्त कर देता है।
इन दोनों मार्ग में कोई बंधन नहीं साकार निराकार सगुण निर्गुण का विवाद और बात नहीं। यह सभी मार्गों का ज्ञान दे देता है। इसलिये मैं इन दोनों को आज के युग के सर्वश्रेष्ठ मार्ग मानता हूं।
बिना गुरूवालों हेतु अपने इष्ट का सतत निरन्तर और निर्बाध मंत्र जप। जो गुरू से लेकर ज्ञान तक। सिद्धियों से लेकर निरवाण तक। साकार से लेकर निराकार तक श्रुति अनुसार चलकर अपने आप पहुंचाने की क्षमता रखता है। बस अनुष्ठानिक मंत्र जप में बडे नाटक और सीमायें होती हैं।
ओशो एक ज्ञानी योगी थे। किंतु उनका व्यवहारिक जगत में ज्ञान देना त्रुटिपूर्ण हो गया। जिस कारण सनातन की क्षति के साथ समाज में बदचलनी को सहमति मिल गई। इस कारण मैं ओशो को ज्ञानी पापी मानता हूं रावण की तरह।
प्रश्न 22: क्या हर मनुष्य का एक ही मार्ग या मन्त्र नहीं हो सकता???
कदापि नहीं। क्योंकि किसी जन्म में कुछ प्राप्त करना हमारे पूर्व जन्मों की अराधनाओं साधनाओं और गुरू की शक्ति पर निर्भर करता है। अत: जैसे हर रोग की अलग दवा वैसे ही हर मानव के लिये अलग मार्ग।
प्रश्न 23: फिर गीता में सिर्फ भक्ति कर्म ज्ञान और राजयोग के साथ सांख्य योग की बात की है।
योग यानि वेद महावाक्य की अनुभूति। जो अलग अलग स्वाद की दिखती है पर है वहीं! जो सार वाक्य समझाता है। सार वाक्य की अनुभूति नहीं होती है यह अभ्यास के द्वारा और वेद महावाक्य की अनूभुतियों के कारण स्वप्रकाशित होता है।
भक्तियोग का मार्ग नवधा है। जो द्वैत से आरम्भ होती है यह मार्ग बेहद आनन्दायक और रस पूर्ण है। प्रेमाश्रु के द्वारा हम वास्तविक रूप में विरह और प्रेम को समझ पातें हैं वहीं राम रस के कारण नशे के बारे में जान पाते हैं। फिर जब द्वैत से अद्वैत का अनुभव होता है तो ज्ञान हो जाता है। और फिर अपने आप कर्म निष्कामता को प्राप्तकर कर्मयोग समझा देते हैं।
वास्तव में भक्तियोग और गृहस्थ जीवन का अनुभव की जगत और ब्रह्म का पूर्ण ज्ञान समझा सकता है।
गृहस्थ तो सन्यासी या ब्रह्मचारी क्या???
हमारे सनातन के लगभग हर ऋषि की गृहस्थी थी। वह तो बाद में सनातन के प्रचार और रक्षा हेतु सन्यास और ब्रह्मचारी धर्म ध्वजा वाहक बने।
आप देखें आदि शंकर को मंडन मिश्रा की पत्नि से शास्त्रार्थ जीतने के लिये परकाया प्रवेश सिद्धि द्वारा एक राजा के शरीर में चार माह तक रहकर काम शास्त्र को सीखना पडा। जो आजीवन ब्रह्मचारी नहीं जान पाता मतलब अपूर्ण ज्ञान। वहीं सन्यासी को बेहद कठिन बंधनों में रहकर जीवन व्यवतीत करना पडता है। साथ ही यदि कभी काम संस्कार उदित हुये तो फिसलने का डर।
कुछ इसी प्रकार मात्र निराकार के द्वारा योग अनुभव अधूरा क्योकिं उसको साकार मार्ग का ज्ञान नहीं।
मात्र द्वैत से अद्वैत या साकार से निराकार का मार्ग ही अनुभव पूर्ण ज्ञान दे सकता है। जो शक्तिपात और क्रियायोग में मिलते हैं और भक्ति मार्ग से सहज प्राप्त हो सकते हैं।
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