हिंदी काव्यात्मक महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र
स्तुतिकार: सनातनपुत्र देवीदास विपुल
"खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक
हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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हिमगिरि नंदनी विश्व वंदिनी, नंदी बंदी जय जय कार करे।
शिखर निवासिनी विष्णु सेविता, शुद्ध ब्रह्म आकार धरे॥
विश्व कुटुम्ब महादेव की शक्ति, जग प्रणाम बारम्बार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥1।
सुर वरदायनी दुर्मुख दुर्धर, सब असुरों का विनाश धरे।
मन हरषानी शिव पटरानी, तीनो लोको निरमाण करे॥
असुरों को भय देनेवाली, धनुष प्रतंच्या टंकार करे।
हे जगमाता भाग्य विधाता, विश्व विजयी बन भ्रमण घने।
उच्च शिखर पर्वत निवासिनी, कैटभ मधु मृत्यु कारण बने॥
विश्व सुंदरी रूप अनेकों, दुखियारों के दुख टार टरै।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥ 3।
महाबलशाली गजमुंड खंडित, दुश्मन का बल क्षीण करे।
सिंहवाहिनी हर्षदायिनी, दैत्यों के दल विदीर्ण करे॥
दुश्मन के सर, धरा पटककर, भीषण ध्वनि कर प्रहार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े ॥4।
शिव को दूत बनाया तुमने, नाना दिव्य शस्त्र हाथ गहे।
भक्तों की रक्षा, देवन सुरक्षा, कामना युद्ध की साथ पहे॥
शुम्भ के दूत बड़े उत्पाती, चुन चुन कर सब संहार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी, विपुल विकल जनै द्वार पड़े ॥5।
जो शरणागत आये द्वारे, अभय कर उन्हे वरदान धरे।
त्रैलोक स्वामी शत्रुगामी, जन नतमस्तक सब आप करे॥
दुन्दुभि बाजन हास्य डरावन, अनेक दैत्य मूर्छाकार पड़े।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े ॥6।
भरे हुंकार तनिक गर्जन कर, ध्रूमविलोचन को धुआं करे।
रक्तबीज संग रक्त की होली, रक्तपान सब बियां करे॥
शुम्भ निशुम्भ दैत्य सब मारे, रक्त पी योगिनी हुंकार भरे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥7।
धनुटंकार से कंगन बाजे, महादैत्य मृत्यु पाश
धरे।
बहुरंगी चतुरंगी सेना सब, महासैन्य सर्वनाश करे॥
रक्ताम्बर रक्त सिंचित आयुध से, गर्जनकर रण में वार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े ॥8।
सुर मुनि वंदित वंदन गायन, सकल जगत तेरा गान करे।
पंच तत्व तेतिसो देव सब, मिल कर तेरा गुणगान करे॥
ता था तालें सुरमणि गा लें, तांडव नृत्यकर सिंगार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥9।
हर्षध्वनि जयघोष नादसंग, देव अचम्भित कर जोड़ खड़े ।
अखिल विश्व पूजित हे माता, रुनझुन ध्वनि नुपुर बोल बड़े॥
अर्धभाग नटेश्वर विराजित, नृत्य मनोहर कर वार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥10॥
रूप मनोहर हिरदय कोमल, कोमलांगी शीतलता करे।
भ्रमर समान नेत्र हैं तेरे, ब्रह्माणी मन चंचलता हरे॥
दो जग आश्रय पालनकरता, लिये हाथ ब्रह्मा हार
खड़े।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥11।
अति विशाल जो महासमर है, कैसे महायज्ञ उसे कर दे।
शिव वंदित रण चण्डी रूपधर, जो असुर नाश उसे कर दे॥
नाना रूप मातृ जो घेरे, सकल सभी जय जयकार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥12।
कर्ण प्रदेश झर मादक महक मधु, महक उठे जग उन्मत से।
हे जगदेश्वरी त्रैलोक भूषण, मनोहारी स्तन उन्नत से॥
हे अनार से दांतोवाली, लज्जित काम रज गुहार
करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥13।
कमल पंखुड़ी निर्मल रूपणी, रवि करोड़ सम कांति धरे।
कर्म सभी हो कला विन्यासित, कलाधारी कल भांति भरे॥
राजहंस सी चाल सुहावन, रूप प्रकृति स्वयं श्रंगार
करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥14।
करगत मुरली कोकिल लज्जित, वाणी मृदुलमयी आप धरे।
जन जन गायन गीत सुहावन, शब्द निकुंजी जब चाप धरे।
क्रीड़ा शबरी भील भीलनी, धरावासी मिल गुहार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी, विपुल विकल जनै द्वार पड़े ॥15।
वस्त्र मनहारी चंद्र भी वारी, देव मुकुट सम नख चमके।
कटि प्रदेश स्वर्णिम प्रकाश दे, हीरे माणिक्य पादुक दमके॥
शीश झुकावन पाप नसावन, जीवन सुखी भव झंकार भरे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े ॥16।
सहस्त्र हस्त हस्त सहस्त्र कटि, कोटी सहस्त्र खंडित वंदित।
तारकासुर तारनेवाली, तारक तम खंड खंड मंडित॥
तुरतसमाधि सुरतसमाधि दे, सुरथ समाधि भक्त पार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥17।
हे सुमंगला काली कमला, जो जन तेरो जय गान करे।
मातृ भाव वात्सल्य प्रेम से, तू भक्त भाव की बान धरे॥
कमलवासिनी हर्षित हो जब, कमलपति स्वप्न साकार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥18।
हे वागेश्वरी महासरस्वती, चरन कमल आश्रय दे दो।
देवन मंडित गर्व अखंडित, महा मंगल प्राश्रय दे दो॥
हे जग्जननी मातृ भवानी, मन वांछित पूर्णाकार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥19।
चंद्र समान मुख परम दयालु, कलुष्य कलश कल मल हर लो।
सम्भव असम्भव भव भावन, भक्तिभाव भक्तन में भर दो॥
मुद्राणी रुद्राणी जपूं शिवी, जप प्रणाम प्रणवाकार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥20।
दीन दयालु सदा हितकारी, अब मेरा भी कुछ हित कर दो।
हे कल्याणी जगत निरमाता, ईश्वर प्रेम मल रहित भर दो॥
नेहकारक जगसंहारक, स्तुति मेरी ये स्वीकार
करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥21।
दास विपुल कुछ हस्ती नहीं मां, जो तनिक तेरा बखान करे।
तेरी महिमा तू ही जाने, दया कलम तेरी काम करे॥
चरण पखारूं नेत्र सजल जल, प्रेम अश्रु स्वराकार भरे॥
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥22।
जीवन सफल बनाये तूने, युगों युगों से साथ दिया।
तीर्थ शिवोम् सा गुरूवर दे, मानव जन्म किरतार्थ किया॥
हे महाकाली गुरू रूप तू, नित्यबोधानंदाकार भरे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥23।
तूने तारे कितने पापी, पापी विपुल सेन को तारे।
मैं हूं चंचल पर पुत्र तेरा, जीवन जो है तुझ पर वारे॥
समां तुझी में जाना चाहूं, विनती यही बारम्बार करे।
जय जय जय महिषासुरमर्दिनी , विपुल विकल जनै द्वार पड़े॥24।
जय मां । जय मां । जय मां । जय मां । जय मां । जय मां । जय मां ।
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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