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Tuesday, November 10, 2020

लोकों की वैज्ञानिक व्याख्या (कही नहीं मिलेगी)

लोकों की वैज्ञानिक व्याख्या (कही नहीं मिलेगी) 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी


लोक एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है 'संसार'। जैन ग्रन्थ और हिन्दू साहित्य में इसका प्रयोग होता है। जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार इस ब्रह्माण्ड में तीन लोक है।
लोक मनुष्य समाज का वह वर्ग है जो आभिजात्य संस्कार, शास्त्रीयता और पांडित्य की चेतना अथवा अहंकार से शून्य है और जो एक परंपरा के प्रवाह में जीवित रहता है।
लोक शब्द सस्कृत धातु लोक् से जन्मा है जिसका मतलब होता है नज़र डालना, देखना अथवा प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना । इससे बने संस्कृत के लोकः का अर्थ हुआ दुनिया , संसार। मूल धातु लोक् में समाहित अर्थों पर गौर करें तो साफ है कि नज़र डालने ,देखने अथवा प्रत्यक्ष ज्ञान करने पर क्या हासिल होता है ? जाहिर है सामने दुनिया ही नज़र आती है। यही है लोक् का मूल भाव। लोक् से जुड़े भावों का अर्थविस्तार लोकः में अद्भुत रहा । पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी प्राणियों मे सिर्फ मनुष्यों के समूह को ही लोग कहा गया जिसकी व्युत्पत्ति लोकः से ही हुई है। लोकः का अर्थ मानव समूह, मनुष्य जाति, समुदाय, समूह, समिति, प्रजा, राष्ट्र के व्यक्ति आदि है।
आलोक भी लोक से ही बना है, फिर उसी से बना है अवलोकन आदि|  अँगरेज़ी का लुक भी| भोजपुरी में दिखने को लौकना कहते हैं|  वाक्य प्रयोग--लौक नहीं रहा है क्या, यानी दिख नहीं रहा है|  क्या. लोक और लौक में ज्यादा अंतर नहीं है, भाषाशास्त्रीय दृष्टिकोण तो आप बताएं| |  
भागवत पुराण के अनुसार धरती पर ही सात पातालों का वर्णन पुराणों में मिलता है। ये सात पाताल है- अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल। इनमें से प्रत्येक की लंबाई चौड़ाई दस-दस हजार योजन की बताई गई है। ये भूमि के बिल भी एक प्रकार के स्वर्ग ही हैं।
 
इनमें स्वर्ग से भी अधिक विषयभोग, ऐश्वर्य, आनंद, सन्तान सुख और धन संपत्ति है। यहां वैभवपूर्ण भवन, उद्यान और क्रीड़ा स्थलों में दैत्य, दानव और नाग तरह-तरह की मायामयी क्रीड़ाएं करते हुए निवास करते हैं। वे सब गृहस्थधर्म का पालन करने वाले हैं।
 
उनके स्त्री, पुत्र, बंधु और बांधव सेववकलोक उनसे बड़ा प्रेम रखते हैं और सदा प्रसन्नचित्त रहते हैं। उनके भोगों में बाधा डालने की इंद्रादि में भी सामर्थ्य नहीं है। वहां बुढ़ापा नहीं होता। वे सदा जवान और सुंदर बने रहते हैं।
अतल में मयदानव का पुत्र असुर बल रहता है। उसने छियानवें प्रकार की माया रची है। उसके वितल लोक में भगवान हाटकेश्वर नामक महादेवजी अपने पार्षद भूतगणों के सहित रहते हैं। वे प्रजापति की सृष्टि वृद्धि के लिए भवानी के साथ विहार करते रहते हैं। उन दोनों के प्रभाव से वहां हाट की नाम की एक सुंदर नदी बहती है।
वितल के नीचे सुतल लोक है। उसमें महायशश्वी पवित्रकीर्ति विरोचन के पुत्र बलि रहते हैं। वामन रूप में भगवान ने जिनसे तीनों लोक छीन लिए थे।
आगे पढ़ें, कौन रहता है तलातल, महातल और रसातल में...

सुतल लोक से नीचे तलातल है। वहां त्रिपुराधिपति दानवराज मय रहता है। मयदानव विषयों का परम गुरु है। उसके नीचे महातल में कश्यप की पत्नी कद्रू से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का 'क्रोधवश' नामक एक समुदाय रहता है।
उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग हैं। उनके बड़े-बड़े फन हैं। उनके नीचे रसातल में पणि नामके दैत्य और दानव रहते हैं। ये निवातकवच, कालेय और हिरण्यपुरवासी भी कहलाते हैं। इनका देवताओं से सदा विरोध रहता है।
रसातल के नीचे पाताल है। वहां शंड्‍ड, कुलिक, महाशंड्ड, श्वेत, धनन्जय, धृतराष्ट्र, शंखचूड़, कम्बल, अक्षतर और देवदत्त आदि बड़े क्रोधी और बड़े बड़े फनों वाले नाग रहते हैं। इनमें वासुकि प्रधान है।
उनमें किसी के पांच किसी के सात, किसी के दस, किसी के सौ और किसी के हजार सिर हैं। उनके फनों की दमकती हुई मणियां अपने प्रकाश से पाताललोक का सारा अंधकार नष्टकर देती हैं।
पाताल लोक पुराणों में वर्णित एक लोक माना जाता रहा है कई लोग इसे नकारते हैं तो कई लोग इसे मानते भी हैं। पाताल लोक को समुद्र के नीचे का लोक भी कहा जाता है । 
इस भू-भाग को प्राचीनकाल में प्रमुख रूप से 3 भागों में बांटा गया था- इंद्रलोक, पृथ्वी लोक और पाताल लोक। इंद्रलोक हिमालय और उसके आसपास का क्षेत्र तथा आसमान तक, पृथ्वी लोक अर्थात जहां भी जल, जंगल और समतल भूमि रहने लायक है और पाताल लोक अर्थात रेगिस्तान और समुद्र के किनारे के अलावा समुद्र के अंदर के लोक।
पाताल लोक भी 7 प्रकार के बताए गए हैं। जब हम यह कहते हैं कि भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया था तो किस पाताल का? यह जानना भी जरूरी है। 7 पातालों में से एक पाताल का नाम पाताल ही है।
हिन्दू धर्म में पाताल लोक की स्थिति पृथ्वी के नीचे बताई गई है। नीचे से अर्थ समुद्र में या समुद्र के किनारे। पाताल लोक में नाग, दैत्य, दानव और यक्ष रहते हैं। राजा बालि को भगवान विष्णु ने पाताल के सुतल लोक का राजा बनाया है और वह तब तक राज करेगा, जब तक कि कलियुग का अंत नहीं हो जाता।
राज करने के लिए किसी स्थूल शरीर की जरूरत नहीं होती, सूक्ष्म शरीर से भी काम किया जा सकता है। पुराणों के अनुसार राजा बलि अभी भी जीवित हैं और साल में एक बार पृथ्वी पर आते हैं। प्रारंभिक काल में केरल के महाबलीपुरम में उनका निवास स्थान था।
त्रैलोक्य
हिन्दू इतिहास ग्रंथ पुराणों में त्रैलोक्य का वर्णन मिलता है। ये 3 लोक हैं- 1. कृतक त्रैलोक्य, 2. महर्लोक, 3. अकृतक त्रैलोक्य। कृतक और अकृतक लोक के बीच महर्लोक स्थित है। कृतक त्रैलोक्य जब नष्ट हो जाता है, तब वह भस्म रूप में महर्लोक में स्थित हो जाता है। अकृतक त्रैलोक्य अर्थात ब्रह्म लोकादि, जो कभी नष्ट नहीं होते।
विस्तृत वर्गीकरण के मुताबिक तो 14 लोक हैं- 7 तो पृथ्वी से शुरू करते हुए ऊपर और 7 नीचे। ये हैं- भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक और ब्रह्मलोक। इसी तरह नीचे वाले लोक हैं- अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल , महातल और पाताल।
कृतक त्रैलोक्य-
कृतक त्रैलोक्य जिसे त्रिभुवन भी कहते हैं, पुराणों के अनुसार यह लोक नश्वर है। गीता के अनुसार यह परिवर्तनशील है। इसकी एक निश्‍चित आयु है। इस कृतक ‍त्रैलोक्य के 3 प्रकार है- भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक (स्वर्ग)।
भूलोक:
जितनी दूर तक सूर्य, चंद्रमा आदि का प्रकाश जाता है, वह पृथ्वी लोक कहलाता है। हमारी पृथ्वी सहित और भी कई पृथ्वियां हैं। इसे भूलोक भी कहते हैं।
भुवर्लोक:
पृथ्वी और सूर्य के बीच के स्थान को भुवर्लोक कहते हैं। इसमें सभी ग्रह-नक्षत्रों का मंडल है।
स्वर्लोक:
सूर्य और ध्रुव के बीच जो 14 लाख योजन का अंतर है, उसे स्वर्लोक या स्वर्गलोक कहते हैं। इसी के बीच में सप्तर्षि का मंडल है।
अब जानिए भूलोक की स्थिति : पुराणों के अनुसार भूलोक को कई भागों में विभक्त किया गया है। इसमें भी इंद्रलोक, पृथ्‍वी और पाताल की स्थिति का वर्णन किया गया है। हमारी इस धरती को भूलोक कहते हैं। पुराणों में संपूर्ण भूलोक को 7 द्वीपों में बांटा गया है- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। जम्बूद्वीप सभी के बीचोबीच है। सभी द्वीपों में पाताल की स्थिति का वर्णन मिलता है।
माता पार्वती और पाताल लोक रहस्य
हिन्दू धर्मग्रंथों में पाताल लोक से संबंधित असंख्य घटनाओं का वर्णन मिलता है। कहते हैं कि एक बार माता पार्वती के कान की बाली (मणि) यहां गिर गई थी और पानी में खो गई। खूब खोज-खबर की गई, लेकिन मणि नहीं मिली। बाद में पता चला कि वह मणि पाताल लोक में शेषनाग के पास पहुंच गई है। जब शेषनाग को इसकी जानकारी हुई तो उसने पाताल लोक से ही जोरदार फुफकार मारी और धरती के अंदर से गरम जल फूट पड़ा। गरम जल के साथ ही मणि भी निकल पड़ी।
राजा बलि
पुराणों में पाताल लोक के बारे में सबसे लोकप्रिय प्रसंग भगवान विष्णु के अवतार वामन और राजा बलि का माना जाता है। बलि ही पाताल लोक के राजा माने जाते थे।
अहिरावण
रामायण में भी अहिरावण द्वारा राम-लक्ष्मण का हरण कर पाताल लोक ले जाने पर श्री हनुमान के वहां जाकर अहिरावण का वध करने का प्रसंग आता है। इसके अलावा भी ब्रह्मांड के 3 लोकों में पाताल लोक का भी धार्मिक महत्व बताया गया है।
पाताल में जाने के रास्ते :
आपने धरती पर ऐसे कई स्थानों को देखा या उनके बारे में सुना होगा जिनके नाम के आगे पाताल लगा हुआ है, जैसे पातालकोट, पातालपानी, पातालद्वार, पाताल भैरवी, पाताल दुर्ग, देवलोक पाताल भुवनेश्वर आदि। नर्मदा नदी को भी पाताल नदी कहा जाता है। नदी के भीतर भी ऐसे कई स्थान होते हैं, जहां से पाताल लोक जाया जा सकता है। समुद्र में भी ऐसे कई रास्ते हैं, जहां से पाताल लोक पहुंचा जा सकता है। धरती के 75 प्रतिशत भाग पर तो जल ही है। पाताल लोक कोई कल्पना नहीं। पुराणों में इसका विस्तार से वर्णन मिलता है।
कहते हैं कि ऐसी कई गुफाएं हैं, जहां से पाताल लोक जाया जा सकता है। ऐसी गुफाओं का एक सिरा तो दिखता है लेकिन दूसरा कहां खत्म होता है, इसका किसी को पता नहीं। कहते हैं कि जोधपुर के पास भी ऐसी गुफाएं हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका दूसरा सिरा आज तक किसी ने नहीं खोजा। इसके अलावा पिथौरागढ़ में भी हैं पाताल भुवनेश्वर गुफाएं। यहां पर अंधेरी गुफा में देवी-देवताओं की सैकड़ों मूर्तियों के साथ ही एक ऐसा खंभा है, जो लगातार बढ़ रहा है। बंगाल की खाड़ी के आसपास नागलोक होने का जिक्र है। यहां नाग संप्रदाय भी रहता था।
प्राचीनकाल में समुद्र के तटवर्ती इलाके और रेगिस्तानी क्षेत्र को पाताल कहा जाता था। इतिहासकार मानते हैं कि वैदिक काल में धरती के तटवर्ती इलाके और खाड़ी देश को पाताल में माना जाता था। राजा बलि को जिस पाताल लोक का राजा बनाया गया था उसे आजकल सऊदी अरब का क्षेत्र कहा जाता है। माना जाता है कि मक्का क्षे‍त्र का राजा बलि ही था और उसी ने शुक्राचार्य के साथ रहकर मक्का मंदिर बनाया था। हालांकि यह शोध का विषय है।
अमृतपान
माना जाता है कि जब देवताओं ने दैत्यों का नाश कर अमृतपान किया था तब उन्होंने अमृत पीकर उसका अवशिष्ट भाग पाताल में ही रख दिया था अत: तभी से वहां जल का आहार करने वाली असुर अग्नि सदा उद्दीप्त रहती है। वह अग्नि अपने देवताओं से नियंत्रित रहती है और वह अग्नि अपने स्थान के आस-पास नहीं फैलती।
इसी कारण धरती के अंदर अग्नि है अर्थात अमृतमय सोम (जल) की हानि और वृद्धि निरंतर दिखाई पड़ती है। सूर्य की किरणों से मृतप्राय पाताल निवासी चन्द्रमा की अमृतमयी किरणों से पुन: जी उठते हैं।
7 प्रकार के लोक
पुराणों के अनुसार भू-लोक यानी पृथ्वी के नीचे 7 प्रकार के लोक हैं जिनमें पाताल लोक अंतिम है। पाताल लोक को नागलोक का मध्य भाग बताया गया है। पाताल लोकों की संख्या 7 बताई गई है।
विष्णु पुराण के अनुसार पूरे भू-मंडल का क्षेत्रफल 50 करोड़ योजन है। इसकी ऊंचाई 70 सहस्र योजन है। इसके नीचे ही 7 लोक हैं जिनमें क्रम अनुसार पाताल नगर अंतिम है। 7 पाताल लोकों के नाम इस प्रकार हैं- 1. अतल, 2. वितल, 3. सुतल, 4. रसातल, 5. तलातल, 6. महातल और 7. पाताल।
7 प्रकार के पाताल में जो अंतिम पाताल है वहां की भूमियां शुक्ल, कृष्ण, अरुण और पीत वर्ण की तथा शर्करामयी (कंकरीली), शैली (पथरीली) और सुवर्णमयी हैं। वहां दैत्य, दानव, यक्ष और बड़े-बड़े नागों और मत्स्य कन्याओं की जातियां वास करती हैं। वहां अरुणनयन हिमालय के समान एक ही पर्वत है। कुछ इसी प्रकार की भूमि रेगिस्तान की भी रहती है।
1. अतल :
अतल में मय दानव का पुत्र असुर बल रहता है। उसने छियानवे प्रकार की माया रची है।
2. वितल :
उसके वितल लोक में भगवान हाटकेश्वर नामक महादेवजी अपने पार्षद भूतगणों सहित रहते हैं। वे प्रजापति की सृष्टि वृद्धि के लिए भवानी के साथ विहार करते रहते हैं। उन दोनों के प्रभाव से वहां हाट की नाम की एक सुंदर नदी बहती है।
3. सुतल :
वितल के नीचे सुतल लोक है। उसमें महायशश्वी पवित्रकीर्ति विरोचन के पुत्र बलि रहते हैं। वामन रूप में भगवान ने जिनसे तीनों लोक छीन लिए थे।
4. तलातल :
सुतल लोक से नीचे तलातल है। वहां त्रिपुराधिपति दानवराज मय रहता है। मयदानव विषयों का परम गुरु है।
5. महातल :
उसके नीचे महातल में कश्यप की पत्नी कद्रू से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का ‘क्रोधवश’ नामक एक समुदाय रहता है। उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग हैं। उनके बड़े-बड़े फन हैं।
6. रसातल :
उनके नीचे रसातल में पणि नाम के दैत्य और दानव रहते हैं। ये निवातकवच, कालेय और हिरण्यपुरवासी भी कहलाते हैं। इनका देवताओं से सदा विरोध रहता है।
7. पाताल :
रसातल के नीचे पाताल है। वहां शंड्‍ड, कुलिक, महाशंड्ड, श्वेत, धनंजय, धृतराष्ट्र, शंखचूड़, कम्बल, अक्षतर और देवदत्त आदि बड़े क्रोधी और बड़े-बड़े फनों वाले नाग रहते हैं। इनमें वासुकि प्रधान है। उनमें किसी के 5, किसी के 7, किसी के 10, किसी के 100 और किसी के 1000 सिर हैं। उनके फनों की दमकती हुई मणियां अपने प्रकाश से पाताल लोक का सारा अंधकार नष्ट कर देती हैं।.


वैज्ञानिक व्याख्या : 
यह सब जो आपको मैंने अभी बताया यह सब आपको पुराणों से और नेट पर इधर उधर से मिल जाएगा लेकिन इसकी वैज्ञानिक व्याख्या कैसे करें???? 
इस विषय पर चर्चा करते हैं।
यह तो सिद्ध हो चुका है की सृष्टि का निर्माण निराकार सगुण ऊर्जा से हुआ है और ऊर्जा ही सर्वव्यापी है विज्ञान के द्वारा जहां पर कुछ अशरीरी उपस्थिति का एहसास होता है वहां पर ऊर्जा संबंधी यंत्र कम ऊर्जा या अधिक ऊर्जा का सिग्नल देने लगते हैं।
और यह भी सही है कि जैसा कि मनुष्य का शरीर पांच तत्वों को मिलाकर बना है जब भूमि और जल तत्व निकल जाता है तब मनुष्य की मृत्यु कही जाती है और तब उसके साथ में आकाश वायु और अग्नि तत्व रहते हैं कभी-कभी शांत लोगों का अग्नि तत्व  भी नष्ट हो जाता है केवल वायु तत्व और आकाश तत्व ही रहती है यानी केवल ऊर्जा का रूप रहता है अब ऊर्जा का रूप कैसे रहता है यह तो आपने पढ़ा है यह फोटोन के बंडल के रूप में रहता है और फ़ोटान  की ऊर्जा  को हम एच न्यू के द्वारा व्यक्त करते हैं जहां पर एच h  प्लैंक स्थिराक है और न्यू บ फ्रीक्वेंसी है यानी hა उरजा  है।
मनुष्य जब पांचों तत्वों में रहता है यानी जीवित रहता है विज्ञान के हिसाब से तो वह अपने अंदर ध्यान के माध्यम से किस ऊर्जा के स्तर पर चला जाता है|  अब आप देखिए अगर आप कभी गलत काम करते हैं या दौड़ते हैं या कोई बुरा सपना देखते हैं तो आप हाफने लगते हैं क्यों आप की धड़कन बढ़ जाती है सांस तेज चलने लगती है क्यों आपके शरीर को अधिक ऑक्सीजन की अवश्यकता  लगती है क्यों?? 
क्योंकि यह सब ऊर्जा ही है ऊर्जा के बिना जगत  चल नहीं सकता और सृष्टि का निर्माण हो नहीं सकता तो मनुष्य अपने विचारों के द्वारा अपने भूमि और जल तत्व के अतिरिक्त जो तत्व है उनको ऊर्जा का क्या स्तर दे देता है और शरीर त्याग के समय किस स्तर पर उसने शरीर त्यागा तो यह जो ऊर्जा निकलती है जिसे आत्मा कहते हैं यह जिस स्तर पर निकलती है तो वह अपने स्तर के अन्य ऊर्जा के बंडल में मिल जाती है मिलने लगती है यही लोक की व्याख्या कर देते है|  लोक का तात्पर्य ऊर्जा के विभिन्न स्तर आप धरती पर है इसके शरीर से ऊपर के लोगों में जहां पर आप आनंद की अनुभूति में रहते हैं विभिन्न सुख भोंगते हैं और आपकी उर्जा को विभिन्न प्रकार की शक्तियां मिल जाती है वह 7 लोक और जो बुरे लोग दुर्गुण लोग बाकी लोग शरीर त्यागते हैं तो उनकी ऊर्जा का स्तर अलग हो जाता है और वह शरीर में जो मनुष्य बनने के लिए जो ऊर्जा चाहिए उस से नीचे की ओर चले जाते हैं वह भी सात लोक।
और फिर जब वह जन्म लेते हैं तो प्रत्येक जीव के जन्म लेने के लिए जो उसके अंदर पांचों तत्वों का मिश्रण कैसा होगा यह भी निर्भर करता है ऊर्जा के स्तर के द्वारा जैसे ऊर्जा का एक संतुलित स्तर है वह जो भी हो मुझे नहीं पता तब वह जो भाव में और कारण शरीर में जो ऊर्जा है वह मानव योनि ले लेगी और यदि वह ऊर्जा असंतुलित हुई गडबड़ हुई तो वह अन्य जीव में चली जाएगी और उस जीव की योनि में जन्म ले लेगी|| 

तो कहने का तात्पर्य है कि आप ऊर्जा के किस आयाम में अपना शरीर त्याग देते हैं और किस आयाम में रहते हैं जैसे आपने देखा होगा कछुआ जो है उसकी आयु बहुत अधिक होती है क्यों बहुत धीरे सांस लेता है योगी लोग बताते हैं यदि आप अपनी सास को नियंत्रित करना सीख ले तो आप अपनी आयु बहुत लंबी कर सकती है मतलब कम ऊर्जा में रहना अधिक ऊर्जा में रहना शरीर कब निर्माण हुआ को दी गई ऊर्जा| 
ऊर्जा कुंडलनी शक्ति के रूप में जग गई ऊर्जा और बढ़ गई क्योंकि उर्जा भी आपको मिल गई यानी आप ऊपर  चले गए तो आप इस शरीर में जो आप आए हैं इससे ऊपर की ओर चले जाएंगे लेकिन अगर आप कर्म गलत कर रहे हैं पापी व्यक्ति हैं तो आप मौत के समय आपकी कुंडलनी  तो सोई हुई है वह शक्ति बेकार चली गई अब आप की शक्ति जो है उसमें काम करना है यानी आप मानव शरीर के लिए जो चाहिए थी उसे नीचे चले गए|
सीधा मतलब आप किसी और योनि मे चले गए| 


जय गुरुदेव जय महाकाली



जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥



मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।
 
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

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