क्या है दस विद्या ?
पहली विद्या: काली और महाकाली
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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मित्रो मां दुर्गा की आरती में आता है।
दशविद्या नव दुर्गा नाना शस्त्र करा। अष्ट
मातृका योगिनी नव नव रूप धरा॥
अब दशविद्या क्या हैं यह जानने के लिये मैंनें गूगल गुरू की शरण ली। पर सब जगह
मात्र कहानी और काली के दस रूपों का वर्णन। अत: मैंनें दशविद्या को जानने हेतु स्वयं
मां से प्रार्थना की तब मुझे दशविद्या के साथ काली और महाकाली का भेद ज्ञात हुआ जो
मैं लिख रहा हूं। शायद आपको यह व्याख्या भेद कहीं और न मिले। किंतु वैज्ञानिक और तर्क
रूप में मैं संतुष्ट हूं।
शाक्त सम्प्रदाय के देवी भागवत पुराण का मंत्र
है।
काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी
छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।
बगला
सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता
दश महाविद्या: सिद्धविद्या: प्राकृर्तिता।
एषा
विद्या प्रकथिता सर्वतन्त्रेषु गोपिता।।
"काल (मृत्यु) का भी भक्षण करने में समर्थ, घोर भयानक
स्वरूप वाली प्रथम महा-शक्ति महा-काली, साक्षात योगमाया
भगवान विष्णु के अन्तः करण की शक्ति"।
काली
कुल की सर्वोच्च दैवीय शक्ति महा काली, कर्म-फल प्रदाता,
अभय प्रदान करने वाली महा-शक्ति! महा-काली।
पहले आप पौराणिक कथा देखें। पुराणों अनुसार जब भगवान शिव की पत्नी सती ने
दक्ष के यज्ञ में जाना चाहा तब शिवजी ने वहां जाने से मना किया। इस इनकार पर माता
ने क्रोधवश पहले काली शक्ति प्रकट की फिर दसों दिशाओं में दस शक्तियां प्रकट कर
अपनी शक्ति की झलक दिखला दी। इस अति भयंकरकारी दृश्य को देखकर शिवजी घबरा गए।
क्रोध में सती ने शिव को अपना फैसला सुना दिया, 'मैं दक्ष यज्ञ में
जाऊंगी ही। या तो उसमें अपना हिस्सा लूंगी या उसका विध्वंस कर दूंगी।'
हारकर शिवजी सती के सामने आ खड़े हुए। उन्होंने सती
से पूछा- 'कौन हैं ये?' सती
ने बताया,‘ये मेरे दस रूप हैं। आपके सामने खड़ी कृष्ण रंग की
काली हैं, आपके ऊपर नीले रंग की तारा हैं। पश्चिम में
छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के
पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में
मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोड़शी हैं और मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देने के
लिए आपके सामने खड़ी हूं।' यही दस महाविद्या अर्थात् दस
शक्ति है। बाद में मां ने अपनी इन्हीं शक्तियां का उपयोग दैत्यों और राक्षसों का
वध करने के लिए किया था।
काली कुल की देवियाँ प्रायः घोर भयानक
स्वरूप तथा उग्र स्वभाव वाली होती हैं तथा इन का सम्बन्ध काले या गहरे रंग से होता
हैं। काली कुल की की देवियों में महाकाली, तारा, छिन्नमस्ता, भुवनेश्वरी हैं, जो
स्वभाव से उग्र हैं। (परन्तु, इनका स्वभाव दुष्टों के लिये
ही भयानक हैं) श्री कुल की देवियों में महा-त्रिपुरसुंदरी, त्रिपुर-भैरवी,
धूमावती, बगलामुखी, मातंगी
और कमला हैं, देवी धूमावती को छोड़ कर सभी सुन्दर रूप तथा
यौवन से संपन्न हैं।
अब यह कहानी मात्र सांकेतिक है किंतु इसका अर्थ यह है
कि विज्ञान भी दस दिशायें मानता है।
10 दिशाएं कौन सी है। * पूर्व, * पश्चिम,
* उत्तर, * दक्षिण, * ईशान,
* नैऋत्य, * वायव्य, * आग्नेय,
* आकाश, * पाताल। यहां आकाश पाताल तीन विमायें
बताता है। जैसे लम्बाई चौडाई और मोटाई। अब इन दिशाओं में व्याप्त शक्ति यानि विद्या
की देवी अधिष्ठात्री। यहां कुछ व्याख्या दी है।
कोई भी मानव यदि इन गुण विद्यायों और विधाओं
से युक्त है तो वह ऐश्वर्यशाली बनकर सब सुख भोगकर भी योग मार्ग के द्वारा मोक्ष की
प्राप्ति कर सकता है।
हां जब काली मां अपने इन दसों रूपों को
समेटकर एक रूप धारण करती हैं तो वह रूप महाकाली कहलाता है। महाकाली के रूप में दस सिर
बीस हाथ और पैर दिखाये जाते है। यानि दस शक्तियों का समूह।
मेरे विचार से प्राय: यदि “महा” लगा दें तो वह शक्ति का निराकार व्यक्त करती है क्योकि
साकार तो सीमित ही होता है। असीमित सिर्फ निराकार। धारावाहिकों में महा का मतलब आकार
बडा कर देना ही तक सीमित है पर आकार तो तभी बडा होगा जब सर्व व्यापी होगा। सर्व व्यापी
तो निराकार रूप ही हो सकता है।
काली का रूप: काली यानि वीरता और शक्ति
की विद्या जो सर्वश्रेष्ठ है अत: काली प्रथम। वीरता का मतलब मात्र युद्ध नहीं बल्कि
जीवन के हर क्षेत्र अर्थ धर्म काम में वीरता।
मां काली : दस महाविद्या में काली प्रथम
रूप है। माता का यह रूप साक्षात और जाग्रत है। काली के रूप में माता का किसी भी
प्रकार से अपमान करना अर्थात खुद के जीवन को संकट में डालने के समान है। महा
दैत्यों का वध करने के लिए माता ने ये रूप धरा था। सिद्धि प्राप्त करने के लिए
माता की वीरभाव में पूजा की जाती है। काली माता तत्काल प्रसन्न होने वाली और
तत्काल ही रूठने वाली देवी है। अत: इनकी साधना या इनका भक्त बनने के पूर्व एकनिष्ठ
और कर्मों से पवित्र होना जरूरी होता है।
यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरूढ़ मुंडमाला धारण किए
हुए एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर
भक्तों के समक्ष प्रकट होने वाली काली माता को नमस्कार। यह काली एक प्रबल
शत्रुहन्ता महिषासुर मर्दिनी और रक्तबीज का वध करने वाली शिव प्रिया चामुंडा का साक्षात
स्वरूप है, जिसने देव-दानव युद्ध में देवताओं को
विजय दिलवाई थी। इनका क्रोध तभी शांत हुआ था जब शिव इनके चरणों में लेट गए थे।
शस्त्र
: त्रिशूल और तलवार । तिथि: शुक्रवार । दिन
: अमावस्या । ग्रंथ : कालिका पुराण । मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि
कालिके स्वाहा। दुर्गा मां का एक रूप हैं माता
कालिका। 10
महाविद्याओं में से एक हैं और मां काली के 4 रूप
हैं:- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ
काली और महाकाली। जिस राक्षस का वध किया वो था रक्तबीज।
यहां देखे रक्त बीज के रक्त की बूंदों से अन्य
रक्त बीज उत्पन्न होते थे। मतलब मां काली की आराधना से हमारे संस्कार नष्ट होकर हमें
मोक्ष मार्ग पर ले जाते हैं। आप देखें मूलाधार चक्र की शक्ति भी काली कही जाती है।
मूलाधार यानि पृथ्वी तत्व, जो सबसे मजबूत और शक्तिशाली तत्व है और
जिससे हमारे शरीर का पहला बीज निर्माण होता है।
दूसरे यही कुंडलनी शक्ति को जागृत कर क्रिया
के माध्यम से हमारे संस्कार नष्ट करती है और हमें योग मार्ग पर ले जाती है। योग का
अनुभव कराती है।
कालीका के प्रमुख तीन स्थान है: कोलकाता में कालीघाट पर जो एक शक्तिपीठ भी है।
मध्यप्रदेश के उज्जैन में भैरवगढ़ में गढ़कालिका मंदिर इसे भी शक्तिपीठ में शामिल
किया गया है और गुजरात में पावागढ़ की पहाड़ी पर स्थित महाकाली का जाग्रत मंदिर
चमत्कारिक रूप से मनोकामना पूर्ण करने वाला है।
काली माता का मंत्र: हकीक की माला से नौ माला 'क्रीं ह्नीं ह्नुं दक्षिणे कालिके स्वाहा:।' मंत्र
का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम इत्यादि किसी जानकार से पूछकर ही करें।
दस महाविद्या
में शिव के रूप है काली का महाकाल।
दस महाविद्या में काली का विष्णु का अवतार रूप है कृष्ण।
जय महाकाली जय गुरूदेव