सर घूम जाता है पढकर।
कुछ उत्तर
सनातन पुत्र देवीदास विपुल
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN
वेब:
vipkavi.info , वेब चैनल: vipkavi
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/
एक बात मेरी समझ मे आ
रही है। जिस प्रकार जानवरो की संख्या सीमित रहे हिंसक पशु होते है। जो जानवर खाते
है। घास फूस सीमित रहे अतः अन्य शाकाहारी जानवर होते है।
उसी प्रकार मानव जाती
में विभिन्न धर्म होते है जो जन संख्या नियंत्रित करते है। हिन्दू सबसे साफ्ट गाय बकरी की तरह शाकाहारी सिर्फ
शिकार बनने रूपी मानव जानवर है। आपस मे लड़ते भिड़ते है फिर ग्रास बन जाते है।
इतिहास गवाह है। बाकी कुछ उदासीन पर मांस भक्षी और कुछ इनको खाने वाले धर्म है जो
इनका शिकार करते है।
आप मेरी व्याख्या से
सहमत है क्या।
मुझे तो यह प्रकृति
चक्र ही लगता है। यह तब तक चलता रहेगा जब तक सभी घास फूस वाले समाप्त न होंगे।
सबकी बुद्दी सबका
ज्ञान। सबका अनुभव एक सा नही होता है।
कलियुग इसी का नाम
है।
दरवाजे पर भगवान बैठा
है। जरा सा द्वार खोलो। पर कोई विश्वास नही करता ।
देखे कलियुग में यदि
अनपढ़ बनकर कृष्ण भी आएंगे कोई यकीन न करेगा।
कर्तव्यों को त्यागना
गलत है । पर कर्तव्य क्या यह जानना ज्ञान है।
भाई मेरे विचार से हर
आध्यात्मिक कर्म हरेक के लिए नही होता है। हर मर्ज की एक दवा नही होती है। अतः एक
ही डंडे से हांकना उचित नहीं।
सबसे सुंदर सस्ता
टिकाऊ मार्ग है प्रभु स्मरण, प्रभु समर्पण। न योग न भोग न कुछ भी नही जानो। सिर्फ और सिरफ प्रभु को
मानो और जानो। वह जो मार्ग दिखाए। तुमको जो अनुभव कराए वो ही सही। बाकी सब तुम्हारे
लिए व्यर्थ।
न रिद्धि न सिद्धि।
सब कुछ व्यर्थ यदि प्रभु को अर्पण समर्पण और स्मरण न किया।
मीरा सूर तुलसी कबीर
नानक किस हिमालय में गए थे। सन्सार में रहो कमल की भांति। यही परीक्षा स्थली है।
यही है कुरुक्षेत्र।
ईश का अंतिम स्वरूप
निराकार है। समय आने पर प्रभु की इच्छा से वह भी मिल जाता है। बस तुम साकार का
आनन्द लेते रहो। सगुन से निर्गुण की यात्रा सुहावनी होती है। द्वैत से अद्वैत का
अनुभव मनोहर होता है। साकार से निराकार आश्चर्य भरा।
किसी के लिए न प्रयास
करो। न सोंचो। न मानो न जानो। बस एक बात याद रखो तुम और तुम्हारा इष्ट। नही तो
गुरु। दोनो एक ही है।
भटको मत ज्ञान में।
अज्ञान में। दुनिया के प्रलोभन में बातो में।
बस चले चलो अपनी
साधना, मन्त्र जप के साथ प्रभु
समर्पण और स्मरण। अर्पण भी स्वतः हो जाएगा।
मन विचार मत करो, क्या पाप या पुण्य।
बस केवल कर याद रख, इष्ट तेरा अक्षुण्य।।
भाई मुझे कुछ नही
पता। बस प्रभु स्मरण और समर्पण।
आप जो कहे सब सही है यह मेरा अहंकार हो सकता है।
कोई टिप्पणी नही।
मित्रो mmstm इतनी अधिक पावरफुल होगी। मैं सोंच भी नही सकता था। ईश
दर्शनों के आगे भी कुछ लोग निकल गए।
मुझे एक सन्यास
दीक्षा देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
सन्यास में मनुष्य की
शिव के रूप में पूजा होती है। जल चढ़ाने का मौका मुझे मिला।
अपने ही परिवार के
सदस्यों से सबसे पहले भिक्षा मांगनी पड़ती है। माम भिक्षाम देही। सन्यास दीक्षा
सनातन के अनुसार हुई।
सबसे पहले जिस गुरू
ने दीक्षा दी। वोही उस शिष्य के शिव तत्व को प्रणाम करता है फिर बाकी सन्यासी।
सबसे पहले नदी पर
स्नान कराया गया। उस अवसर पर सभी सन्यासियों के साथ जुड़ने का मौका मिला।
कुछ भी करो। साकार
सगुण आरम्भ करो। सरलतम है मन्त्र जप। साथ मे ध्यान भी मन्त्र जप के साथ। या सगुण
त्राटक के साथ।
देखो भक्त बनो। भक्त
को चक्रो से क्या चक्कर। सच बोलूं सब गया तेल लेने। अपने बस प्रभु स्मरण, समर्पण और अर्पण ।
देखो यह वह ऊपर क्या
नीचे क्या सब ज्ञानियों की बाते। जब तक न करो सब व्यर्थ। मात्र चर्चा और वृथा
परिश्रम।
लोकेशानन्द जी भक्ति
को कितना समझाते है। किंतने विस्तार से और सुंदर तरीके से।
पर ग्रुप में किंतने
समझे होंगे। शायद इक्का दुक्का।
रामेश्वर जी योग
वर्णन करते है। किंतने समझते होंगे या समझने के लिये पढ़ते होंगे। इका दुक्का।
मैने अपने सारे
वस्त्र उतार दिए। सारे गोपनीय खजाने समझाने के लिए लुटा दिए। पर ग्रुप में शायद
किसी ने ढंग से पढ़ा भी न होगा।
लेकिन हम अपना लोक
कल्याण का कार्य करते रहेंगे।
सब माँ जगदंबे की
कृपा और गुरु शक्ति की दया।
बस चलते रहो। चलते
रहो।
उत्तम प्रयास। लगे
रहो मुन्ना भाई।
आपका स्वागत है। रोज
एक श्लोक की व्याख्या करे।
स्वागत है मित्र।
अपना प्रश्न पटल पर रखे।
मित्र आपकी कुछ बातें
सत्य है किंतु कुछ से मैं सहमत नही क्योकि मेरे अनुभव कुछ और है। कारण प्रत्येक
मनुष्य के कर्म अलग होते है अतः अनुभव अलग हो सकता है ।
मित्र मैं ग्रुप में
सिर्फ अनुभव की बाते चाहते हूँ। किसने क्या बोला सब गूगल पर दिया है। बार बात वही।
अरे अपने अनुभव लिखकर
पोस्ट कर दो। फिर कोई कुछ पूछे तो समझाओ।
आगे से किताबी ज्ञान
का ध्यान रखेंगे।
यार तुम बहुत अनुभवी
हो। अपने गुरू प्रदत्त साधन को करो। मूर्खो से बात क्यो करते हो। तुम्हारी बातो
में दम होती है पर बेसमय। जब समय हो तब अपनी बात रखो। किसी नए को अनुभव से समझा
दो।
माता जी मेरा प्रयास
रहता है कि मैं मात्र अनुभव की बातों को स्थान दू। बाकी कहानी हेतु गूगल गुरू है।
पर कुछ लोगो की ज्ञान की भड़ास असमय निकलती है। तो अजीब लगता है। शाम तक 355 पोस्ट। बताइए क्या यह उचित है।
मेरा निवेदन है गीता
ज्ञान गूगल गुरू से समझे। यदि कोई नई शोध हो अर्थ हो तो समझाए। जो बात हजारों साल
से ज्ञानी बोल रहे है। उसको पोस्ट करने से क्या फायदा।
यह आपकी मर्जी आप
क्या ग्रहण करते है। सत्य भी होता है गूगल गुरू के पास।
मित्रो। जो ज्ञानी जन
है। उनसे अनुरोध है कुछ इस प्रकार की नई सोंच के साथ गीता का श्लोक पोस्ट कर
व्याख्या करें। अनावश्यक चर्चा व्यक्तिगत पोस्ट पर ही करे।
यह ग्रुप अनुभव वर्णन
को अधिक मान्यता देता है।
ध्यान लेट कर कर ले।
कोई बात नही यह ध्यान
निद्रा कहलाएगी।
बेहतर है आप ब्लाग पर
कुछ लेख पढ़ ले।
इस पर जाए आपके लगभग
हर सम्भावित प्रश्नों के उत्तर लेखों के रूप में दिए है।
जी नही पा गल ही कर सकता है।
गुरू के पीछे प्रकाश शुभ
है। गुरू के प्रति आपकी श्रध्दा का द्योतक है।
ईश का वास्तविक
स्वरूप निराकार है । मन्त्र दर्शन अनुभूतिया सब पीछे रह जाती है। आपकी transition state है । पर शिव का साकार का मन्त्र जप किसी भी
कीमत पर न छोड़े। शक्ति हमे बहलाकर कैसे भी पीछे भेजने
का प्रयास करती है। साकार निराकार द्वैत से अद्वैत और सगुण से निर्गुण ही वास्तविक
ज्ञान देता है।
मनुष्य बहुत
शक्तिशाली होता है। वह सगुन साकार रूप में शक्ति को आने के लिए विवश कर सकता है।
आप मन्त्र जप करे।
माँ काली दर्शन देती
है।
mmstm करे। ग्रुप में कितनो
को दर्शनाभूति और वार्ता तक हुई है।
शक न करे। ईश का
साकार रूप है हैं और है। पर अंतिम निराकार है जिसका अनुभव आपका साकार मंत्र ही कराता
है।
नही किसी को नकारो
नही। अपना मन्त्र जप नहीं तो mmstm कर लो। मन्त्र जप सघन सतत और निरन्तर करो । ये ही आगे की यात्रा निराकार
तक कराने की क्षमता रखता है।
बिल्कुल होंगे। वे
होते है। प्रायः बजरंग बली सबसे पहले सहायक होते है । अतः बजरंग बली की भी फोटो रखे
पूजा स्थल पर।
महादेव के मन्त्र और
संकल्प के साथ करो।
यह आपकी भृमित अवस्था
है जो सबको आती है। घबराए नहीँ mmstm के साथ मन्त्र जप करते रहे। प्रतिदिन एक निश्चित संख्या में न्यूनतम। अधिक
की सीमा नही।
शुभ है यह आपकी
बुद्दी की एकाग्रता और त्राटक की क्षमता बताता है। जप में लगी रहे निस्वार्थ
निरन्तर और सतत।
यह रीढ़ की हड्डियां
है। मतलब आपको शुभ समाचार मिल सकता है। mmstm करे।
इन चक्करों में न
पड़े। बिना अर्थ के भी चिन्ह देखते है अपना ध्यान चालू रखे। घबराए नही।
रूप है भी और नही भी।
आप पूर्व जन्म में
किसान थे। हसिया यही बताता है।
व्यर्थ की बात। साकार
की ईजाद मनुष्य ने की। कृपया मेरे लेख लिंक पर पढ़े। सब उत्तर मिल जायेंगे।
आपकी शक्ति उठने का
प्रयास करती है पर आपका शरीर इस लायक नही। अतः प्रणायाम और मन्त्र जप करके अपने को
मजबूत बनाये।
आप ध्यान निराकार
करते है या साकार या विपश्यना।
आप साकार विपश्यना
करे। रोना एक क्रिया है जो अचानक शक्ति की क्रियाशीलता से होता है।
वास्तव में नींद के
पहले ध्यान करे ताकि नींद को योगनिद्रा का दर्जा मिल जाये।
ओह झटके कुण्डलनी
जागृत होने की कोशिश में है। किसी कौल गुरू की शरण मे जाए।
यह क्रिया का अंग है।
अच्छा है। जप और तेज
कीजिये। मजा लीजिए।
जी यह भी कई प्रकार
से की जा सकती है।
कृपया नए सदस्य लिंक
पर जाकर कुछ लेख और mmstm यानी
समवैध्यावि की विधि देख ले।
अंतर्मुखी होने की
विधियों को भी ध्यान से पढ़ ले। साथ मे बीज मंत्र क्या हैं। गुरू की पहिचान क्या है। इत्यादि जो आपने
सोंचे भी न होंगे।
आपके सभी संभावित
प्रश्नों के उत्तर मिल जायेंगे।
लिंक
mmstm करे। फिर बताये। यह
उतार चढ़ाव होता है। कुछ घूम फिर लो। मन्त्र जप निश्चित संख्या में करते रहो कैसे
भी।
Don't think negative. Never never.
भोजन मनुष्य के शरीर
के साथ उसकी सोंच और कर्म को भी प्रभावित करता है। अतः आध्यात्म के मार्ग पर चल कर
अपनी उन्नति चाहने वाले को जहां तक सम्भव हो भोजन की शुध्दता और शाकाहारी भोजन का
प्रयास करना चाहिए। नशा, पान,
तम्बाकू इत्यादि विष का काम करते है।
मुझे याद पड़ता है कि
किस प्रकार मैं शक्तिहीन होकर मरणासन्न हो जाता था। कारण मैं सामिष भोजन और
मदिरापान भी करता था। किंतु जाप के कारण और माँ काली के प्रहार से कुण्डलनी जागृत
हुई तो उसकी ऊर्जा यह शरीर अपवित्र होने के कारण न सहन कर सका।
बाकी तो स्वकथा में
लिख रखा है। अतः अपने शरीर को भोजन के द्वारा शुध्द रखे। कही अचानक आपकी शक्ति
जागृत हो गई तो कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
बस इसी कारण से ग्रुप
बनाया ताकि मेरी तरह अन्य को इतने कष्ट और समस्याएं न झेलनी पड़े।
भाई यह मैंने पढा है केवल सृष्टि के पालन हेतु
सप्त ऋषि नियुक्त जो वैज्ञानिक थे। जो हर युग पर निगाह रख धरती पर अवतारों हेतु
वातावरण बनाते है। महाऋषि अमर जो बंगलूर में वर्ष 1994 को प्राण त्यागे। वह सप्तऋषियो के सम्पर्क में 8 वर्ष
की आयु से थे। सप्तऋषि तपोवन में वर्ष 2004 में सूक्ष्म में
इकट्ठा हुए थे और मीटिंग हुई थी। जिसकी व्यवस्था अमर जी के शिष्य कृष्णकांत ने की
थी।
आप महऋषि कृष्णकांत रचित “प्रकाश की ओर” पढ़े। आप
उलट जायेगे। उसको पढ़कर। पता है मानसा फाउनडेशन, तपोवननगर, चिक्क्गुब्बि, बंगलोर
अर्बन – 562149,
ई मेल info@saptarishis.com वेब साइट : www. saptarishis.com, मो. 9342030250.
ब्रह्मांड की उतपत्ति लेख धारणा नही। अचानक कृष्न ने अपना निराकार रूप दिखाया था। और मुझे अनूभुति कराई।
ई मेल info@saptarishis.com वेब साइट : www. saptarishis.com, मो. 9342030250.
ब्रह्मांड की उतपत्ति लेख धारणा नही। अचानक कृष्न ने अपना निराकार रूप दिखाया था। और मुझे अनूभुति कराई।
निराकार सुप्त ऊर्जा को गाड़ अल्लह कहते है। जो
निराकार कृष्ण भी कहलाता है। जब आप किसी के आगे महा लगा देते है तो उस देव का अर्थ
साकार से निराकार तक चला जाता है।
यह अपना काम करते है। वास्तव में जब ब्रह्मा ने
सृष्टि बनाई तो विनाश हेतु रुद्र हुए। शिव बाद में आये। महाकाल या रुद रूप शिव से
पहले का है। विष्णु पैदा से मौत तक मालिक है। लक्ष्मी तभी चाहिए। रुद्र जो मृत्यु
के समय होते है। ब्रह्मा पैदा करते है।
जगत में ज्ञान जीवित रखने हेतु गुरुओ के मालिक
शिव।
हा निराकार शक्ति जिसे दुर्गा कहते है।
उस सुप्त ऊर्जा में मिलना ही मोक्ष है। जहाँ जाकर
वापिसी नही होगी।
जागृत शक्ति या ऊर्जा निराकार दुर्गा तक जगत में
वापिस आ सकते है। अपनी मर्जी से।
निराकार में समाना मोक्ष है।
निराकार ऊर्जा में गहन अंधकार व्याप्त है ऊर्जा
का शांत समुद्र जैसा। काला रंग अंधकार का साकार रूप है।
हा निराकार कृष्ण। क्योकि जानने हेतु साकार
मनुष्य ही है जो कृष्ण है यानी विष्णु यानी इस साकार जगत का
पालक।
हम सब ऊर्जा के साकार रूप है।
काला यानी कृष्ण अतः कृष्ण नाम।
हा बिल्कुल हम किसी और ग्रह पर भी जन्मके सकते
है।
नही ऐसा नही जहाँ कोई और कम्पन न हो।
प्रकाश में ही सब दिखता है। अतः प्रकाश निराकार
से साकार के बीच का माध्यम।
प्रकाश से आप साकार या निराकार किसी का अनुभव पा
सकते है।
हा निराकार तो अंधकार है।
नही यह तो हमने समझने के लिए नाम दिया। उसे अल्लह
या गाड भी कहते है।
ध्यान तो सुपर महासुपर परासुपर सूक्ष्म अतिसूछ्म
सभी कुछ। जगत कल्याण हेतु चेतना का जागृत होना। यह व्यक्तिष्ट है।
सप्त ऋषि सहायता करते है त्रिदेव की वैज्ञानिक और
सृष्टि के नियम के आधीन।
यह बदलते है । हर चतुर्युग के अलग ऋषि होते है।
ये हमेशा कार्यशील रहते है।
सतयुग भी साउथ से आ रहा है।
एक मन्वंतर में कितने कल्प होते हैं
यार अब पकाओ मत। गूगल गुरु की शरण मे जाओ।
आत्मा उसी ऊर्जा का अंश है। तभी तुम उस ऊर्जा की
शक्ति से सब करते हो। मरने पर वह निकल जाती है।
मैंने वह बताया जो अनुभव था। खुद मेरे स्थूल शरीर
का।
सनातन ही अंत है ज्ञान का बाकी सब धर्म बच्चे है।
जो स्वर्ग नरक से ऊपर सोंच ही नही पाते।
मनुष्य ध्यान कर के कहा तक पहुँच जाता है।
ध्यान के सात द्वार। 6 द्वार तक देहभान रहता है। ध्यान का 7 द्वार से समाधि
का पहला द्वार से 9 द्वार तक जा सकते है यहाँ फंस गए तो बिना गुरु शक्ति के बाहर आना मुश्किल।
निराकार का कोई नाम नही पर साकार समझाने हेतु यह
जरूरी ।
यह सब परमगुरु श्री योगेंद्र विज्ञानी रचित
“महायोग विज्ञान” से है।
एक पलक झपकना यानी एक निमेष
15 निमेष 1 काष्टॉ
30 काष्टॉ यानी एक कला।
30 कला एक मुहूर्त
30 मुहूर्त एक दिन
15 दिन 1 पक्ष
6 महीने 1 अयन
मनुष्य का 1 वर्ष देवताओ का 1
दिन। यह समय की गति बताते है।
मनष्य के 360 वर्ष यानी देव का 1
दिव्याष वर्ष
400 दिव्य वर्ष का सतयुग
400 दिव्य वर्ष आगे और पीछे
त्रेता 3000 द्वापर 2000
कलियुग 1000 दिव्य वर्षो का।
इनके आगे पीछे के वर्ष
कुल 12000 दिव्य वर्ष 1
चतुर्युग
1000 चतुर्युग 1 कल्प
71 कल्प का एक मन्वन्तर
कल्प ब्रह्मा का 1 दिन
ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष
जिसमे 50 बीत गए
ब्रह्मा के अंत मे ब्रह्मांड का अंत
ऐसे 1000 ब्रह्मा यानी
विष्णु की 1 घड़ी
ऐसे 1000 विष्णु तो महेश्वर
का 1 पल।
1000 महेश्वर यानी शक्ति का आधा पल
अब समझे शक्ति क्या है जो निराकार दुर्गा है???
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है।
कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार,
निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि
कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10
वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल
बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
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