सेवा निवृत्ति कर्म से
या मर्म से
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक”
ISSN
2456-4818
मो. 09969680093
ई - मेल: vipkavi@gmail.com वेब: vipkavi.info , वेब चैनल: vipkavi
फेस बुक: vipul luckhnavi “bullet"
फेस बुक: vipul luckhnavi “bullet"
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने
का दिन आ गया।।
क्या था पाया क्या गंवाया, धीरे से समझा गया॥
उमंग भर आशायें लेकर, मैं
हुआ दाखिल यहां।
सपने कुछ रंगीले लेकर
संग हुआ गाफिल जहाँ।।
अब समय की चाल पीड़ा, सहने
का दिन आ गया।।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने
का दिन आ गया।।
मैं अहम में चूर होकर, सोंचा
सभी अपना यहां।
ऊंची पदवी मिलती जाती, फूल
कर ऐंठा जहाँ।।
लोग डरते मुझसे कितना, दिल
मेरा भरमा गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने
का दिन आ गया।।
यही मेरा सम्मान हक है, जिस
पर मैं काबिज हुआ।
कितने सिर नीचे झुके
हैं, कमरे में दाखिल
हुआ।।
न मैं सुनता कुछ किसी
की वो करूं मन भा गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने
का दिन आ गया।।
बात क्या बोलूँ अभी
मैं, अभिमान मुझमें शेष है।
मान पैसे का मेरे में, दर्प
अनगिन अशेष है।।
कितनी इज्जत मुझको
मिलती, मैंही केवल छा गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने
का दिन आ गया।।
पर कदाचित हुआ न ऐसा, जैसा
सपना मेरा था।
अरे ये तो निकला धोखा, कोकिलों
ने घेरा था।
अब समझ आया मुझे, नेत्रों में कोहरा छा गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने
का दिन आ गया।
सुनो जगतवालो मुझे
अभी कोई क्यों न जानते।
भूले क्या मुझको कभी
तुम ईश सम ही मानते॥
अब मुझे अनुभव है कड़वा, आईना
दिखला गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने
का दिन आ गया।
काश मैंने काम को
सम्मान देना सीखा होता।
और जन की पीडा क्या भान
करना सीखा होता।।
काश पढ पाता सम्वेदना, कोई
मन मे गा गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने
का दिन आ गया।
काश मैंने आत्मा की, बात सुनना
सीखी होती।
यह जगत मिथ्या कहानी, सीख बुनना
सीखी होती।।
पर मेरी अब आयु बीती, यौवन
को तरसा गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने
का दिन आ गया।
ऐ विपुल क्या सीखना सीखे
समय जो अब पास है।
कर्म के मायने समझ तू, भक्ति
प्रभू जग आस है।।
आत्मा को जाना जब
खोया समय रोना आ गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने
का दिन आ गया।
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक
हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा
बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन
से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं।
10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/