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Monday, September 14, 2020
यक्ष काढ़ा
यक्ष काढ़ा
विपुल लखनवी।
काढ़ा मेरा बड़ा निराला।
काली मिर्च लौंग पीस कर डाला।।
पिसी हुई इलायची भी मिलाई।
पिसा पुदीना खड़ा धनिया रंग लाई।।
लेमनग्रास खुशबू निराली।
पिसी अदरक महिमा कह डाली।।
थोड़ा गुड़ अजवाइन भी डाला।
काला नमक तो बड़ा निराला।।
यक्ष सलाह
यक्ष सलाह
विपुल लखनवी
नींबू छिलका फेंक न बीज निकाल सुखाय।
फिर मिक्सी में पीसकर पाउडर उसे बनाय।।
पीने से पहले इसे काढ़े में कुछ मिलाय।
खटमिठ्ठा स्वाद हो विटामिन सी मिल जाय।।
वरना काढ़े में थोड़ा आंवला पीस मिलाय।
स्वादिष्ट काढ़ा बन गया जी भर के पी जाय।।
तेजपत्ता डालकर उसे उबाल फिर छान।
गरम-गरम पी लो उसे करोना जाए मान।।
एक कप दूध में हल्दी लियो मिलाय।
रात्रि समय पी लो उसे करोना कभी न आय।।
जीवन एक मुस्कान है
जीवन एक मुस्कान है
विपुल लखनवी। नवी मुम्बई।।
जीवन एक मुस्कान है। यह सांसो का गान है।।
सांस तेरी कहती क्या। जो तेरी पहचान है।।
जब श्वांस संग हरि भजे। तेरी सांस महकेगी।।
अपने मन हरि बसा ले। यही तेरा निर्वाण है।।
यही जीवन सरल बना। रहे मस्त सदा मन में।।
अंत: मन डूब जा बंदे। यह तो सुख की खान है।।
व्यस्त रहे व मस्त बने। मन मौज में डूबे तू।।
लक्ष्य सदा हरि नाम हो। यह गीता का ज्ञान है।।
दास विपुल जब पा सके। सुख सागर स्वयम मन में।।
तू भी उसको पा बन्दे। यह प्रभु प्राणीधान है।।
न योग की चिंता कर ले। न वियोग में दुख ही कर।।
बस मन को तू स्थिर कर। यह तेरी पहचान है।।
करोना पर यक्ष विचार
करोना पर यक्ष विचार
विपुल लखनवी। नवी मुम्बई।।
शायद यह कुछ कहने आया है।
जो इसने समय पर नहीं पाया है।।
हम जिंदगी की आपाधापी में।
शायद कुछ भूल गए थे।।
अपने घर से भी होता है रिश्ता।
पर दुनिया में झूल गए।।
शायद यह हमें फिर से जोड़ने आया है।
हमें हमारा घर बतलाने आया है।।
प्रदूषण से कराह रही थी यह धरती।
इसलिए प्रदूषण कम करने आया है।।
बर्गर पिज्जा में घर का खाना हम भूल गए थे।
इसीलिए हमें घर में खाना खिलाने आया है।।
आभासी फिल्मी दुनिया में हम भूल गए थे अपनी दुनिया।
उस आभासी दुनिया से हमें निकालने आया है।।
खो गई थी जो प्रकृति की रंगीनियां।
उन्हें फिर से वापिस बुलाने आया है।।
वास्तव में करोना हमें मारने नहीं।
सुधारने आया है।।
माध्यम तो चीन है पर यह प्रभु की माया है।।
मां तेरी जय हो जय हो जय हो।
मां तेरी जय हो जय हो जय हो।
🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻
विपुल लखनवी नवी मुंबई।
तेरे चरणों में लीन रहूं गर मृत्यु मुझे जो आए मां।
तेरी सुंदर छवि सामने हो जो मृत्यु मुझे बुलाए मां।।
हर जन्म में तेरा साथ मिले तेरी अनुकंपा बनी रहे।
मेरी न कोई इच्छा हो यदि जग मुझको बिसराये मां।।
तेरी सुंदर छवि सामने हो जो मृत्यु मुझे बुलाए मां।।
हर जन्म में तेरा साथ मिले तेरी अनुकंपा बनी रहे।
मेरी न कोई इच्छा हो यदि जग मुझको बिसराये मां।।
तू जो करती मां वही करे तुझको न कोई रोक सके।
पर यह विनती इस बालक की चरणों में लीन भुलाए मां।।
तूने मानव का जन्म दिया और तीर्थ शिवओम सा गुरुवर मिला।
अब न कोई इच्छा बाकी जो मैं तुझसे गुहराऊं मां।।
पर यह विनती इस बालक की चरणों में लीन भुलाए मां।।
तूने मानव का जन्म दिया और तीर्थ शिवओम सा गुरुवर मिला।
अब न कोई इच्छा बाकी जो मैं तुझसे गुहराऊं मां।।
तेरी भक्ति का अमृत पिया मां दर्शन तूने दे डाला।
मुझ अधम पतित पापी को मां कोई भय न सताए मां।।
हर सांस पर तेरा नाम जपुं हर पल चरणों में लीन रहूं।
यही विनती कर बार बार यही गीत दुहराऊं मां।।
है दास विपुल ने देख लिया जीवन क्षणभंगुर सपना है।
तू ही बस केवल सत्य है मां बाकी सब मिथ्या सपना है।।
ज्ञान ध्यान विज्ञान जगत सब तूने ही दे डाला मां।
नतमस्तक तेरे आगे हूं अब बलिहारी मैं जाऊं मां।।
पृष्ठ पर जाने हेतु लिंक दबायें: मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य
विपुल लखनवी के यक्ष दोहे।
विपुल लखनवी के यक्ष दोहे।
बूझो तो जानी। मानू तब ज्ञानी।
भाव भाव को देखता, न है भाव आ भाव।
भाव नहीं तो भाव क्यों, क्यों है भाव अभाव।।
तू देखे तुझको न मैं, तुझको तुझ में देख।
बूझ गया जो तुझको मैं, पड़ी समय इक रेख।।
समय चला गतिमान बन, गति गति है शून्य।
दूर गति करे चले तू, दाल धान ले चून।।
बरस बरस के बरस गए, असुअन नयनन धार।
दिन बारिस सब सून है, कैसे बेड़ा पार।।
मांग मांग कर भर लिया, अपने घर को आज।
बने भिखारी आज सब, कौन बने सरताज।।
मद माया ममता यहां, करै न बेड़ा पार।
इनका यहां न मोल है, कैसे बेड़ा पार।।
मांग मांगे बुझे नहीं, क्षुधा अलग है राज।
दिशा क्षुधा की मोड़ कर, बन जा तू सरताज।।
यम का पासा दिख रहा, गोटी कौन पिटाय।
जो गोटी निज घर रहे, वोही तो बच पाय।।
चौसर खेले रोग यह, यम की चलती चाल।
बैठे रहो क्रास पर, यह जीवन की ढाल।।
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