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Wednesday, September 16, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 30 (कबीर की उलटवासियां)

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 30  

(कबीर की उलटवासियां)

Jb Lokesh Sharma: *KINDLY READ YOU WILL ENJOY.*

       👌🏻👌🏻 *_( अक्षर ढाई )_* 👌🏻👌🏻

*ज्ञान मार्ग जब   ,खोजने निकला,*

*मार्ग मिला        ,अलबेला।*

*जहां भी जाऊं   ,जिधर भी देखूं,*

*मिले ढाई अक्षर  ,का मेला।*

*सोचा इक पल   ,ध्यान लगा कर*

*क्या होता है      ,अक्षर ढाई*

*आया मेरी         ,समझ में जो*

*बतलाता हूं       ,मैं वो भाई*

*रह जाता सब    ,ज्ञान अधूरा*

*जो ना मिलता   ,उत्तर भाई।*

*ढाई अक्षर का वक्र,*

*और ढाई अक्षर का तुंड।*

*ढाई अक्षर की रिद्धि,*

*और ढाई अक्षर की सिद्धि।*

*ढाई अक्षर का शंभु,*

*और ढाई अक्षर की सत्ति*

*ढाई अक्षर का ब्रम्हा*

*और ढाई अक्षर की सृष्टि।*

*ढाई अक्षर का विष्णु*

*और ढाई अक्षर की लक्ष्मी*

*ढाई अक्षर का कृष्ण*

*और ढाई अक्षर की कांता।(राधा रानी का दूसरा नाम)*

*ढाई अक्षर की दुर्गा*

*और ढाई अक्षर की शक्ति*

*ढाई अक्षर की श्रद्धा*

*और ढाई अक्षर की भक्ति*

*ढाई अक्षर का त्याग*

*और ढाई अक्षर का ध्यान।*

*ढाई अक्षर की तृप्ति*

*और ढाई अक्षर की तृष्णा।*

*ढाई अक्षर का धर्म*

*और ढाई अक्षर का कर्म*

*ढाई अक्षर का भाग्य*

*और ढाई अक्षर की व्यथा।*

*ढाई अक्षर का ग्रन्थ,*

*और ढाई अक्षर का संत।*

*ढाई अक्षर का शब्द*

*और ढाई अक्षर का अर्थ।*

*ढाई अक्षर का सत्य*

*और ढाई अक्षर का मिथ्या।*

*ढाई अक्षर की श्रुति*

*और ढाई अक्षर की ध्वनि।*

*ढाई अक्षर की अग्नि*

*और ढाई अक्षर का कुंड*

*ढाई अक्षर का मंत्र*

*और ढाई अक्षर का यंत्र।*

*ढाई अक्षर की सांस*

*और ढाई अक्षर के प्राण*

*ढाई अक्षर का जन्म*

*ढाई अक्षर की मृत्यु*

*ढाई अक्षर की अस्थि*

*और ढाई अक्षर की अर्थी*

*ढाई अक्षर का प्यार*

*और ढाई अक्षर का स्वार्थ।*

*ढाई अक्षर का मित्र*

*और ढाई अक्षर का शत्रु*

*ढाई अक्षर का प्रेम*

*और ढाई अक्षर की घृणा।*

*जन्म से लेकर मृत्यु तक*

*हम बंधे हैं ढाई अक्षर में।*

*हैं ढाई अक्षर ही वक़्त में,*

*और ढाई अक्षर ही अंत में।*

*समझ ना पाया कोई भी*

*है रहस्य क्या ढाई अक्षर में।*

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Printer Raman Mishra: एक अचंभा देखा रे भाई, ठाढ़ा सिंध चरावै गाई॥टेक॥

पहले पूत पीछे भइ माँई, चेला कै गुरु लागै पाई।

जल की मछली तरवर ब्याई, पकरि बिलाई मुरगै खाई॥

बैलहि डारि गूँनि घरि आई, कुत्ता कूँ लै गई बिलाई॥

तलिकर साषा ऊपरि करि मूल बहुत भाँति जड़ लगे फूल।

कहै कबीर या पद को बूझै, ताँकूँ तीन्यूँ त्रिभुवन सूझै॥

Lo brother, I saw a wonder! The lion stood herding the cows!

First the son was born, then the mother! The Guru falls at the feet of the disciple!

The fish of the waters gave birth on a tree! The chicken caught and ate the cat!

The ox put on reins and came home! The cat takes away the dog!

The earth turned upside down to be the sky! In the ant's mouth the elephant fit!

Without wind the mountain flew! All living, all animals drowned in the tree!

A wave arose in the dried up lake! The shelduck sploshed without any water!

The branches were on the ground and the trunk above! With very bright flowers on the roots!

Says Kabir, who understands this song, to him the three worlds are deciphered.

🟢

कबीर की उलटबांसियों के पूरे मिज़ाज़ में ही अचम्भा है। अचम्भा है कि सिंह गायों का पालक बना हुआ है। रक्षक जहां भक्षक बने हुए हैं वहां भक्षकों को रक्षक बनाना आजकल व्यंग्य बन जाता है। प्रजातंत्रीय घोषणापत्रों ने ऐसे व्यंग्य बहुत किये हैं।

- अचम्भा ही है कि पहले बेटे हुए और बाद में माताएं। जीव को माया कहुत बाद में दबोचती है। अगर व्यवसाय या मुद्रा-स्वार्थ का वाणिज्यशास्त्र देखें तो एक समय बाद मां सिर्फ होर्डिंग रह जाती है और पुत्र के पीछे बहुएं (मायायें) राज्य करती है। यह नीति की नहीं अर्थशास्त्र की मजबूरी है।

-अचम्भा ही है कि जल के बिना न रह सकने वाली मछलियां हवा मे अपने बच्चे देती है। बिल्ली को पकड़कर मुरगियां खाने लगती हैं। बैलों के बिना भरे हुए मालवाली गाड़ियां गोदामों में पहुंच जाती हैं। भड़ियाई के लिए प्रसिद्ध बिल्लियां वफादारी के लिए विख्यात कुत्तों को लेकर चम्पत हो जाती हैं। भारतीय पुरुष विदेशी हो जाते हैं।

-अचम्भा ही है कि शाखाएं नीचे तल के नीचे चली गई हैं। भूमिगत हो गई हैं और जड़ों में बहुत प्रकार के फूल-फूले हुए हैं। जड़बुद्धि फल-फूल रहे हैं, ऐसी बातें कहकर बहुत से भारी-भारी विद्वान लोग आहें भरते हैं और फिर भी केवल परिचितों को ,गांठ के पूरों को उछालते रहने से बाज नहीं आते। उन्हें अपने बिलाने का खतरा है। गांठ के पूरे ही उन्हें उबार सकते हैं।

अचम्भा से भरे हुए हैं कबीर।

कबीर की उलटवासियां

कृपया सहीं व्याख्या कीजिए। शाब्दिक नहीं।

🙏🏻

Printer Raman Mishra: http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1985/August/v2.11

एक अचम्भा हमने देखा , गदहा के दो सींग |

उसके गले में रस्सा बांधा , खैचत अर्जुन भीम ||१||

एक अचम्भा हमने देखा , कुआ में लागी आग |

कीचड़ कादो सबही जरिगा , मछली खेलै फाग || २ ||

एक अचम्भा हमने देखा , बन्दर दुहै गाय |

दूध दही सब अपना खावे , घियना बनारस जाय ||३||

शब्दार्थ ------नैया = नावका, मानव = शरीर , नदिया =नदी , संसार

गदहा == अविवेक | दो सींग= राग -द्वेष | कुआ = हृदय | आग = ज्ञान अग्नि | कीचड़ कादो = मन कि मलिनता | मछली =ज्ञानवती मनोवृति | बन्दर = शुद्ध मन | गाय = सदबुद्धि | दूध = जीवन मुक्ति का आनद | घियना = जीवन मुक्ति का सार गुणातीत दशा | बनारस = मोक्षदशा

भावार्थ ----मानव -शरीर संसार - सागर से तरने की नावका है | विवेकवान साधक की साधना के बल से मानव - शरीर रूपी नावका में संसार रूपी नदी डूब जाती है , शून्य हो जाती है और साधक का संसार - सागर से बेड़ा पार हो जाता है

हमने एक अचम्भा देखा की अविवेकी रूपी गदहा के राग -द्वेष रूपी दो सींग हैं | इस गदहे के गले में नाना काल्पनिक साधना के रस्से बाँध कर अर्जुन तथा भीम जैसे बलवान खीचते है , परन्तु उसे बिना विवेक के वश में नही कर पाते है || १||

हमने दुसरा अचम्भा देखा विवेकवान साधक के हृदय - कुए में विवेक ज्ञान की आग लग गयी और मन की मलिनता रूपी कीचड़ - कादो जलकर पूर्ण रूप से नष्ट हो गया , इसलिए ज्ञानवती मनोवृति रूपी मछली आनद का फाग खेलने लगी ||२||

तीसरा अचम्भा कि शुद्ध मन रूपी बन्दर शुद्ध बुद्धि रूपी गाय का दोहन कर रहा है | उसका दूध - दही जीवन मुक्ति का आनद है , जिसका उपभोग जीवन पर्यंत शुद्ध मन स्वंय करता है और उसका गुणातीत दशा रूपी मक्खन विदेहमुक्ति में पहुचता है ||३||

यह व्याख्या बिल्कुल ग़लत दिखती है। कबीरदास योगमार्गी थे। कुण्डलिनी के ज्ञाता अत: उनकी बात बचकानी नहीं हो सकती।

यह सही लगती है।

Printer Raman Mishra: यह गायत्री परिवार द्वारा प्रस्तुत व्याख्या है। हमारी पहुंच यही तक है। आप की बात में सत्यता है। कबीर सच्चे योगी थे।

कहा भी गया है...

ज्यों ज्यों डूबे श्याम रंग

त्यों त्यों उज्जवल होय।🙏

कुछ प्रयास करता हूं बाकी बाद में बताऊंगा।

मनुष्य के शरीर में आत्मा एक सिंह की भांति होती है। सर्वशक्तिमान मनुष्य को जीवन देने का काम उसी का है।

लेकिन अज्ञानी मनुष्य उसको आत्मा का ज्ञान नहीं होता है तो वह जगत के प्रपंच में पड़ा रहता है और विभिन्न प्रकार की वासनाओं को गाय की तरीके से पालता रहता है उनका दुग्धपान करता रहता है।

सबसे बड़ा अचंभा है।

दूसरे मुहावरे में होना जगत में यह चाहिए की ज्ञानी की पूजा हो लेकिन होता क्या है पहले बेटा पीछे माई मतलब जो आदमी शक्ल सूरत वेशभूषा बना लेता है ज्ञानियों की उसका सम्मान होने लगता है और जो ज्ञानी वास्तव में ज्ञान युक्त होता है जिसके ज्ञान से सभी को प्रकाशित होता है वह पीछे रह जाता है क्योंकि जाने के वाह आडंबर पर ध्यान नहीं देता है।

मनुष्य स्वयं ब्रह्म का रूप होता है वह उसको न जान कर जो गुरु का गुरु है इसको न मानकर वाहिक रूप से आकर्षित होकर किसी को प्रणाम करने लगता है।

तीसरे में जल की मछली यानी कुंडली शक्ति जो  सुषुम्ना नाड़ी में चढ़ती है। किसी पक्षी की भांति ऊपरी मंजिल पर पहुंच जाती है। और सहस्त्र सार को वर लेती है। जागृत मनुष्य उसकी जो शक्ति है वह मनुष्य जो म्याऊं म्याऊं करता है मतलब मैं मैं करता है उसको खा डालती है यानी नष्ट कर देती है

बैल ने अपना बंधन स्वयं ही बांध लिया। और घर की ओर चला आया।

मतलब जो छुटा घूमने का आदी है वह है हमारा मन हमारी इंद्रियां।

मन रूपी बैल में इंद्रियों के द्वारा बांधा गया अपने घर वापस आया।

मतलब वह अवस्था जब इंद्रिया स्वयं मन को बांधने लगती है। अपने निज स्वरूप के लिबास में जाने लगती है।

कब होता है जब शक्ति जागृत हो जाती है हमें आप ज्ञान प्राप्त हो जाता है यानी समर्थ गुरु की कृपा फलित होने लगती है तब होता है।

तब अपरिचित को देखकर इन पर भोकने वाला मन उनको हमारा मैं यानी हमारा आत्म स्वरूप बांध देता है।

कुकर का स्वभाव होता है किसी भी हड़िया में मुंह डालना मतलब भटकना।

इस श्लोक में पेड़ की टहनियां नीचे है और जड़ ऊपर है यह है भगवत गीता का श्लोक है।

मतलब ब्रह्म जो सबसे ऊपर और नीचे आते आते उसमें यह पुष्प रूपी संसार निर्मित होता है।

अंतिम दोहा तो साधारण है।

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है।

🙏🏻



आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 29 (राम नाम की महिमा)

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 29

(राम नाम की महिमा) 

विपुल के बावरे दोहे।

मैं पापी कपटी जगत, पाप किए हैं अनेक।

चरण पखारू मात मैं, सुन लो विनती एक।।

साधन कुछ न कर सका, भकती कोसों दूर।

मृग समान जीवन भया, मद में चकनाचूर।।

पापनाशिनी मात है, देती कृपा अनेक।

उसमें भी न मिल सका, जनम लिए हैं अनेक।।

वृथा जीव यह खट रहा, नहीं समझ कुछ मोल।

आगे जीवन कौन सा, तोल सके तो तोल।।

हड्डी चूसता श्वान जो, रक्त स्वयं कर भोग।

यह जीवन यूं बीतता, कर्म अकर्म न योग।।

तुझे प्रभु न मिल सका, जान सका नहीं मर्म।

जगत प्रपंच करता रहा, मान इसी को धर्म।।

निंदा स्तुति सब ही भली, रहूं नहीं मैं लीन।

मैं मूरख कछु जाने न, चाकर प्रभु का हीन।।

दास विपुल है बावरा, रचे बावरी बात।

मूरख कुछ भी जाने न, जीवन की सौगात।।

Bhakt Lokeshanand Swami: हनुमानजी भगवान की भक्ति रूपी संजीवनी बूटी लेने चले, तो रावण ने कालनेमि को हनुमानजी का रास्ता रोकने भेजा। कालनेमि भेष बदलकर बैठ गया।

देखो रावण और कालनेमि तो भेष बदलते ही हैं, जामवंतजी और हनुमानजी भी बदलते हैं। पर अंतर है। रावण, कालनेमि संत हैं नहीं, बने हुए हैं। जामवंतजी, हनुमानजी संत हैं, पर अपना स्वरूप छिपा कर रखते हैं।

"किए कुवेष साधु सन्मानु। जिमि जामवंत हनुमानु॥"

कालनेमि माने समय का चक्र। समय के चक्कर में बड़े बड़े भटक गए। जो साधक धैर्यवान है, जो समय के चक्र से घबराता नहीं, दुख को प्रारब्ध का फल जानकर चलता ही चला जाता है, वही भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ पाता है। कितने ही साधक, चलते तो बड़े जोश में हैं, पर जरा सी विपरीत परिस्थिति आते ही वापस मुड़ जाते हैं।

वे पहुँच तो पाते नहीं, अपनी पुरानी जगह पर बैठे बैठे, स्वयं कालनेमि बनकर, अपने अधकचरे अनुभवों से, अन्य चलने वालों को भटकाने का काम करने लगते हैं। ऐसे लोग ही सनातन परम्परा को नष्ट भ्रष्ट करने वाले, घोर पापी हैं। वे तो पैदा ही न हुए होते, या इस मार्ग पर न ही चलते तो ही अच्छा रहता।

हनुमानजी ने कालनेमि से दीक्षा माँगी नहीं, कालनेमि स्वयं कहता है कि मैं तुम्हें दीक्षा दूंगा। यही सब कालनेमियों की रहनी है।

हनुमानजी ने सोचा कि पहले प्यास बुझा लूं। सरोवर में गए तो मगर ने पैर जकड़ लिया। ये मगर सबके पैर जकड़ता है। भक्ति करना तो चाहते हैं "मगर"। मैं नाम तो जपता "मगर"। और यह हाथ नहीं जकड़ता, पैर जकड़ता है, माने चलने नहीं देता।

गति रुक जाए तो भगति कैसे हो? भक्ति मार्ग में गति का रुकना ही दुर्गति है। इस "मगर" से तो कोई दृढ़ संकल्प वाला साधक ही बच पाता है। हनुमानजी ने मगर पर पैर की ठोकर से प्रहार किया। मगर ने कपटमुनि कालनेमि का भेद खोल दिया।

कालनेमि बोला- आओ! अब दीक्षा ले लो। हनुमानजी कहते हैं- दीक्षा बाद में देना, पहले दक्षिणा तो ले लें। अपनी पूंछ में कालनेमि का सिर लपेटा, और उठाकर भूमि पर पटका। काल के चक्र की बाधा समाप्त हुई।

यों अगर-मगर और समय चक्र की बाधा को पार कर हनुमानजी अपने लक्ष्य, संजीवनी बूटी की ओर बढ़ चले।

अब विडियो देखें- सच्चे साधक को कौन ठगे

https://youtu.be/YwgJusqfk6o

+91 96374 62211: *अवश्य देखें ...*

🌸 नामजप सत्संग : *श्राद्ध विधि करने का उद्देश्य*

🔸 मृत व्यक्ति के वस्त्रों का क्या करना चाहिए ?

🔸 श्राद्ध विधि करने का उद्देश्य

🔸दर्शकों के अभिप्राय

Youtube Link :

🔅https://youtu.be/hIMtao95uTg

🔅https://youtu.be/ZyGr7oitusA

*हिन्दू धर्म की महानता समझानेवाले और भक्तिभाव बढानेवाले ऑनलाइन सत्संग*

पंडित हरिओम दिक्षित ज्योतिषाचार्य  🇭🇺किरावली आगरा भारत, कब होगा पूर्णिमा-अमावस्या श्राद्ध, जानें हर बात

इन दिनों में पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान मुख्य होते हैं.

हर साल पितृपक्ष पर पूर्वजों के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है. इन दिनों में पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान मुख्य होते हैं. ये सप्ताह पितरों को समर्पित होते हैं.

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🖌️🖌️ऐसी मान्यता है कि जो लोग पितृ पक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं कराते, उन्हें पितृदोष लगता है.,, पितरों की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है श्राद्ध इस साल पितृपक्ष पर 19 साल बाद बन रहा है विशेष संयोग,🏸🏸🏸🏸🏸🏸

,, पितृपक्ष में इस साल भी बहुत सारी भ्रांतियां हैं कुछ विद्वान इसको मंगलवार से प्रारंभ करेंगे लेकिन कुछ ज्योतिषी लोग इसको बुधवार से प्रारंभ करेंगे पंडित हरिओम दिक्षित ज्योतिषाचार्य, के अनुसार  एवं शास्त्रों के अनुसार  के अनुसार मंगलवार 1 सितंबर से ही पितृपक्ष प्रारंभ होगा

इस साल पितृपक्ष 1 सितंबर से शुरू हो रहे हैं. अंतिम श्राद्ध यानी अमावस्या श्राद्ध 17 सितंबर को होगा.

+91 96374 62211: *अवश्य देखें ...*

🌸 भावसत्संग : *भक्ति के अधीन भगवान*

🔸भक्त गौरदास बाबा की फूल सेवा

🔸मालिन सुखिया को कैसे दिए कान्हा ने दर्शन

🔸गणपतिपुले मंदिर के मानस दर्शन

Youtube Link :

🔅https://youtu.be/1Nza68NIRSI

🔅https://youtu.be/mjE7FXHiz10

*आज 'पितृपक्ष'पर विशेष ऑनलाइन प्रवचन !*

1. श्राद्ध क्यों आवश्यक है ?

2. श्राद्ध में ब्राह्मणों को दिया भोजन पितरों तक कैसे पहुंचता है ?

3. कौवा पिंड को छूने के संदर्भ में क्या शास्त्र है ?

4. श्राद्ध किसने और कहा करना चाहिए ?

5. श्राद्ध करने से क्या लाभ होते है ?

🌸 धर्मसंवाद : *स्वामी विवेकानंदजी को अपेक्षित भारतीय शिक्षा (भाग 4)*

🔸स्वामी विवेकानंदजी ने भारतीय शिक्षा, शिक्षक और विद्यार्थी के इनके विषय में क्या मार्गदर्शन किया ?

Youtube Link :

🔅https://youtu.be/5XSWMxowFsU

🔅https://youtu.be/IwZ9KQS_BcQ

Bhakt Gautam Swami R Y Rajput Noida: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=731181970772091&id=228552764368350&sfnsn=wiwspmo&extid=r8uCb3zD4SYVwZuO

Bhakt Lokeshanand Swami: "देखा सैल ना औषधि चीन्हा।

सहसा कपि उपार गिरि लीन्हा॥"

हनुमानजी पर्वत पर पहुँचे, पर बूटी पहचान में नहीं आई, तो पर्वत ही उठा लिया। भैया! हनुमानजी तो ज्ञानीनामाग्रगण्यम् हैं, वे तो परमगुरु हैं, सब जानते हैं। वे तो जानबूझकर अज्ञानी होने का अभिनय कर रहे हैं, कि हमें बात समझ में आ जाए।

अब देखो, और कोई होता तो आकर कहता कि हमने तो सब जगह देखा, पर मिली नहीं तो क्या करते? वापस आना ही पड़ा।

पर हनुमानजी विचार करते हैं कि गुरुजी ने कहा था कि इस पर्वत पर संजीवनी बूटी है, तो होगी ही। हम नहीं पहचान पा रहे हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं कि है ही नहीं। तो पर्वत को ही गुरुजी के पास ले चलूं।

विचार करें कि पर्वत उठा लाने का अर्थ क्या है? भगवान की भक्ति ही संजीवनी बूटी है, शास्त्र ही पर्वत है। यह लीला हम सब को दिखाने के लिए है कि शास्त्र अपनी बुद्धि से समझ में नहीं आता। तुलसीदासजी स्पष्ट कहते हैं-

"अनमिल आखर अर्थ न जापू।

प्रकट प्रभाव महेश प्रतापू॥"

अपनी बुद्धि से शास्त्र पढ़ने वाले को, न तो अक्षरों का मेल ही बैठता है, न अर्थ ही स्पष्ट होता है। इसका अर्थ तो कोई इस धरती पर मनुष्य बनकर घूम रहा परमात्मा ही अपने प्रताप से बताया करता है।

शास्त्र तो दवा का गोदाम है। इसमें रखी दवा अपनी मर्जी से मत खाओ, किसी वैद्य के मार्गदर्शन में दवा लो।

ध्यान देकर समझ लें, शास्त्र का सही अर्थ समस्त भ्रमों से निवृत्त कर देता है, और यदि अर्थ ही गलत लगा लिया, जो की लगाया जा ही रहा है, तो यह और भ्रम में डाल देता है।

शास्त्र कभी भी, न तो सूर्य प्रकाश में समझा जाता है, न ही चन्द्र प्रकाश में ही समझा जाता है, न किसी अन्य प्रकाश में समझा जाता है, शास्त्र जब भी समझा जाता है किसी आत्मज्ञानी महापुरुष के ज्ञान प्रकाश में ही समझा जाता है।

अब विडियो देखें- संजीवनी बूटी मिलेगी कहाँ?

https://youtu.be/rTw6hGgAPUc

*रहस्यभेदो याच्ञा च नैष्ठुर्यं चलचित्तता ।*

*क्रोधो नि:सत्यताद्यूतमेतन्मित्रस्य दूषणम् ॥*

गुप्तवार्ता को अन्यत्र प्रकट करना, धनादिक का मांगना, क्रूरता रखना, चित्त की चंचलता, क्रोध रखना, द्यूत खेलना ये सब मित्रता के दूषणरूप है ।

Followings are the negative traits of a FRIEND;

* Disclosing the   confidential things of one another,

*Rude behaviour,

*Flickering behaviour,

*Gambling, &

*Demanding money time and again.

*शुभोदयम्! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*

Printer Raman Mishra: इस दुनिया में किसिम किसिम के नकचढ़े होते हैं। लेकिन विशिष्ट किस्म के नकचढ़े वे होते हैं जिनके पास अपने चुने हुए क्षेत्र में महारत तो हासिल नहीं होती लेकिन अपने रखरखाव या ज्ञान से दूसरों को अपमानित करने का प्रयास वे जरूर करते हैं। यह जरूरी नहीं हैं कि किसी नकचढ़े व्यक्ति को यह एहसास भी हो कि वह नकचढ़ा या घमंडी है। लेकिन दूसरे लोग उसे फौरन ही समझ जाते हैं।

दरअसल, नकचढ़ेपन का मूल तत्व यह है कि इसका शिकार व्यक्ति दूसरे लोगों को प्रभावित करने का प्रयास करता है। वैसे हर नकचढ़ा व्यक्ति स्वभाव से बुरा नहीं होता। कुछ तो फैशन की वजह से ऐसे हो जाते हैं, और कुछ सामाजिक परिस्थितियों के कारण। इसलिए अगर थोड़ा-सा प्रयास करके किसी के नकचढ़ेपन को दूर किया जा सकता है तो इसमें कोई हर्ज नहीं है।

गौरतलब है कि १९वीं शताब्दी से पहले स्नॉब या नकचढ़ा शब्द अँगरेजी में मौजूद नहीं था। इससे मालूम होता है कि पहले लोग बहुत सादे थे और नकचढ़ा होना विशिष्ट आधुनिक बीमारी है बल्कि लोकतंत्र की बाई प्रोडक्ट। ज्यादातर अजीबो गरीब बर्ताव बदलते माहौल के कारण उत्पन्न हो रहे हैं। जो सांस्कृतिक परिवर्तन हो रहा है उसके कारण नकचढ़ों की संख्या बढ़ती जा रही है।

इसमें कोई शक नहीं है कि नकचढ़ा होना और दूसरों को अपने सामने तुच्छ समझना बुरी आदत है, लेकिन सवाल यह है कि इससे छुटकारा कैसे पाया जाए? इस संदर्भ में विशेषज्ञों के निम्न सुझाव हैं-

⚫जीवन की इस तेज रफ्तारी में हम दूसरों के प्रति दयालु होना अक्सर भूल जाते हैं। इसलिए स्नॉब होने से बचने का मुख्य तरीका यह है कि दूसरों को अपनी बराबर का समझें, और उन्हें सम्मान दें।

⚫दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करें, जैसा कि आप चाहती हैं कि वे आपके साथ करें। इसलिए अपने आपको दूसरों के जूतों में रखकर देखने की कोशिश करें कि जब आप उनको अपमानित करती हैं तो वे कैसा महसूस करते हैं।

⚫कम्युनिकेशन में दक्षता हासिल करें, ताकि अपने इर्द-गिर्द वाले नकचढ़े बर्ताव से बच सकें।

⚫अपने विचारों और जीवन शैली में अधिक क्रिएटिव बनें। लोगों से संपर्क करना न छोड़ें।

⚫अपनी निजी स्पेस को अपनी स्नॉब स्पेस न बनाएँ और उससे बाहर निकलें।

⚫आप जो हैं उसमें विश्वास करें।

⚫आपके पास जो कुछ है या जो कुछ आपने हासिल किया है उसे अपने लिए पर्याप्त समझें। जीवन में आपकी उपलब्धियों का कोई विकल्प नहीं है।

⚫किसी का अपमान न करें। अपने से बड़े या छोटे सभी को सम्मान दें। ध्यान रहे कि जो पेड़ फलों से लदा होता है उसकी ही शाखें झुकी होती हैं और इसके बावजूद सभी उसी को उपलब्धि की नजर से देखते हैं। इसलिए स्नॉब न बनें, अपने नखरे और नकचढ़ेपन को ताक पर रखकर इंसान बनने का प्रयास करें।

Bhakt Gautam Swami R Y Rajput Noida: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4320645321310640&id=430486686993209&sfnsn=wiwspmo&extid=bZ8CnZnXvV7Wu6o6

Jb Ashutosh C: When we Loose all Hopes in Life & think that this is the End,God Smiles from above & says ''Relax dear,it's just a Bend not the End.''.. Good morning

Bhakt Komal: श्री योग वशिष्ठ

मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण

अध्याय 6

विश्वामित्र जी का उपदेश

ब) राजा जनक का उपदेश


इस पर राजा जनक ने कहा - मुने! इस ब्रह्माण्ड में एक अखंड चिन्मय परम पुरुष परमात्मा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। आपने अपने विवेक से इसे जाना है तथा अपने पिता से भी इसको सुना है। इससे बढ़कर दूसरा कोई जानने योग्य तत्त्व नहीं है। जो प्राप्त करने योग्य वस्तु है उसे आपने पा लिया है। आपका चित्त पूर्णकाम हो गया है। आप बाह्य विषय की ओर दृष्टिपात नहीं करते, अतः मुक्त हैं। अभी कुछ पाना या जानना शेष रह गया है, इस भ्रम को त्याग दीजिए।

राजा जनक के येे वचन सुनकर शुकदेव जी के शोक, भय और श्रम सभी नष्ट हो गए। वे सर्वथा संशयरहित हो गए। तदंतर वे मेरुपर्वत पर समाधि लगाने के लिए चले गए। वहां दस हजार वर्षों तक  निर्विकल्प समाधि में स्थित रहे तथा प्रारब्ध क्षीण हो जाने पर परमात्मा में लीन हो गए।

स) विश्वामित्र जी का वशिष्ठ जी से अनुरोध (सर्ग २)

विश्वामित्र जी श्री राम को यह कथा सुनाकर मुनि वशिष्ठ जी से कहने लगे कि श्री राम ने ज्ञातव्य वस्तु को जान लिया है। इसलिए सारे भोग समूह उन्हें रुचिकर नहीं ज्ञात हो रहे हैं। भोगों के चिंतन से ही अज्ञान जनित बन्धन दृढ़ होता है और भोग वासना के शान्त हो जाने पर संसार बंधन क्षीण हो जाता है। भोग वासना के क्षय को ही मोक्ष कहते हैं और विषयों में होने वाली दृढ़ वासना को ही बन्धन बताते हैं। जिसकी दृष्टि राग आदि दोषों से रहित है वही तत्वज्ञ है और वही विद्वान है। जब तक जानने योग्य वस्तु का ज्ञान नहीं होता तब तक मनुष्य के हृदय में विषयों की ओर से वैराग्य नहीं होता। जब श्री राम सद्गुरु के मुख से यह सुन लेंगे कि ' यही परमार्थ वस्तु है ' तब इनके चित्त को अवश्य विश्राम प्राप्त होगा। इसके चित्त के विश्राम के लिए समस्त इक्ष्वाकुवंशीय के शिक्षक और कुलगुरू वशिष्ठ जी यहां युक्ति का प्रतिपादन करें। महात्मन! वही ज्ञान, वही शास्त्रार्थ और पांडित्य सार्थक एवं प्रशंसित है, जिसका वैराग्य युक्त उत्तम शिष्य के लिए उपदेश दिया जाता है। जिसमें वैराग्य नहीं है तथा जो शिष्य भाव से रहित है, उसे जो कुछ भी उपदेश दिया जाता है, वह कुत्ते के चमड़े से बने हुए कुप्पे में रखे हुए गाय के दूध की भांति अपवित्रता को प्राप्त हो जाता है।

गाढ़ीनंदन विश्वामित्र के ऐसा कहने पर ब्रह्माजी के पुत्र महातेजस्वी वशिष्ठ मुनि ने, जो ब्रह्माजी के समान ही ज्ञान विज्ञान से सम्पन्न थे।

वशिष्ठ जी बोले - मुने! आप जिस कार्य के लिए मुझे आज्ञा दे रहे हैं उसे मैं बिना विघ्न बाधा के आरंभ कर रहा हूं। शक्तिशाली हो कर भी संतों की आज्ञा का उल्लंघन करने में कौन समर्थ हो सकता है? पूर्व काल में निषद पर्वत पर पूजनीय पद्मयोनी ब्रह्माजी ने संसार रूपी भ्रम को दूर करने के लिए जिस ज्ञान का उपदेश किया था, वह अविकल रूप से मुझे याद है।

क्रमशः

Printer Raman Mishra: *आज़ाद के अंतिम संस्कार से जुड़ी कहानी*

पं. शिव विनायक मिश्र के पोते सतीश मिश्र के मुताबिक आजाद के अंतिम संस्कार में कमला नेहरू आईं थीं और उनको पता था कि पं. शिव विनायक मिश्र आजाद के करीबी हैं इसलिए उनको भी बुलवाया गया. इलाहाबाद में रसूलाबाद घाट पर अंतिम संस्कार किया गया.

अंतिम संस्कार में क्रांतिकारियों के बड़े नेता शचिंद्रनाथ सान्याल की पत्नी प्रतिभा सान्याल भी पहुंचीं. उन्होंने जोरदार भाषण दिया और कहा - ‘‘जब खुदीराम बोस को फांसी पर लटकाया गया था तो हम बंगाल की माताएं बोस की राख लेकर गई थीं और अपने बच्चों को हमने उसका ताबीज बनाकर दिया ताकि वो भी क्रांतिकारी बनें.’’ ऐसा कहना था कि भीड़ टूट पड़ी और एक चुटकी राख के लिए भगदड़ मच गई.

बाद में शिव विनायक मिश्र बची हुई अस्थियां लेकर बनारस आए. सरदार भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह 1974 में कांग्रेस के टिकट से सहारनपुर से एमएलए चुने गए थे. सूबे के सीएम नारायण दत्त तिवारी ने उन्हें खाद्य रसद और पेंशन राज्यमंत्री बनाया. 1976 में कुलतार सिंह ने बनारस जाकर पं शिवविनायक मिश्रा के घर से आजाद के अस्थि कलश को हासिल किया. कई शहरों में प्रोग्राम हुए, फिर उन्हें लखनऊ संग्रहालय में रख दिया.

साभार

Printer Raman Mishra: अशांत चित्त बेहद खतरनाक होता है। चित्त को शांत करने का सिर्फ एक ही उपाय है और वह है ध्यान। ध्यान करने से जहां आपका मन शांत होगा, वहीं आपको शांति भी प्राप्त होगी। मन यदि अशांत है तो सारी पूजा-पाठ और कर्मकांड पाखंड है। मन का निष्क्रिय होना ही ध्यान है और कामनाओं का त्याग ही संयम है।

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मन बेहद चंचल होता है। मन का पेट बुरे विचारों, बुरी आदतों से भरता है। जब तक इसे निष्क्रिय नहीं करेंगे तब तक ध्यान में मन नहीं लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यदि मन खराब है और आप पूजा कर रहे हैं तो पूजा आपका शरीर कर रहा है लेकिन मन में कुछ और चल रहा है तो ऐसी पूजा किसी पाखण्ड से कम नहीं है।

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पं. विजय शंकर मेहता

K Ashwani K Panday Ahemdabad: दुनिया में अग़र कुछ सबसे अधिक दुर्लभ है तो वह है ध्यान को केन्द्रित करना।

इसी पर तुलसीदासजी ने अपने रामचरितमानस में लिखा---------

*जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं।*

*अंत राम कहि आवत नाहीं।।*

Jb Rajeev Sharma: Sadhana

Swami Niranjanananda Saraswati

Sadhana also lends to an interesting understanding of the human mind. There is an old swami in the ashram who likes to talk, particularly on subjects that require high understanding, such as atma, paramatma, and all similar ideas.

   One day it was raining hard and we were discussing what the scriptures say about self-relization and God-realization, whether God and the self are the same or not the same, and so on. He was saying to me, "Am I, as a human being, part and parcel of that God gene, and if not, why is my gene different? " He was going on and on about self-image and how  one can visualize oneself to be pure, luminous, peaceful, benevolent, compassionate, kind and loving. I said, "Yes, these are good ideas, but I can give you an experience that you will not find even in the shastras, the scriptures. Are you ready for it? " He said, " Yes, I am ready. "

   I said, " It is raining today. You stand in the rain with your head held high and your arms wide open, and you will have a very special revelation about yourself. A very special revelation which is not revealed in any of the shastras. "

    He said, " Wow! That is where guru comes in handy, they tell us about things that are not written down anywhere. " He ran outside, but there were many people around, so he went to the Garuda-Vishnu building which is more secluded, raced to the top of terrace, closed the terrace doors, took off his upper cloth and shirt, and stood in the rain with his head held heaven wards and arms open. He was like that for about fifteen minutes, then he dressed himself and came back.

    I asked him, "What did you experience?" He said, "Swamiji, I did as you told me. I stood in the rain with my head pointing to the sky and my arms wide open. "I said, " Then what happened? "He said, " I became wet. " I said, " Then what happened? " He said, " I felt like a fool! " I said, " That was the revelation that no shastra has spoken about. " That is the revelation about oneself that no shastra, no scripture, no guru, has ever spoken about.

   It is also the revelation that each one of you runs away from. If in your meditation you see an angel, you are happy, as you have seen something nice. If, instead, you see the devil you become disturbed and wonder, 'I am such a good person, why did I see the devil? How did the devil appear in front of me? That question will come, for you project yourself as what you are not; you hide from your own nature. Therefore hearing about and speaking about luminosity, harmony and peace is attractive to everybody, but observing the conditions that limit you and learning how to deal with them is not everybody's desire.

   The purpose of sadhana is to recognize what you are and then use that as the launching pad to improve yourself and develop a better understanding. That is the focus of sadhana, not to impose ideas like, 'Oh, when I meditate I should see light, because that is what has been said in the scriptures. ' Or, 'In one book I read that I should see a blue pearl in meditation so I must see a blue pearl. ' That is how you condition yourself to hide away from your limitations and perceive something that you are not. That is why people are not successful in sadhana.

   If you look at the yogic concepts, everything revolves around one word: self-awareness. Is that self-awareness only to be used at the time of meditation? Or should that self-awareness be part and parcel of every moment of the day and night? Is it to remain limited to the classroom environment and satsang, and beyond that there need not be any self-awareness? The purpose of sadhana is to be aware of one's limitations every moment and acquire the strength to overcome those limitations.

 ध्यान के समय मनुष्य के हृदय में वह सभी तरंगे आती हैं जो दिन में व्यस्तता के कारण नहीं आती।

राम का नाम चाहे बिना मन से लिया जाए या मन से लिया जाए कैसे  लिया जाए वह अपना कार्य करता है यह कहना कि मन इधर-उधर है यह सब बातें पूर्णतया सही नहीं है क्योंकि आरंभ में ध्यान के समय मन का भटकाव अधिकतम होता है लेकिन नाम जप के साथ और अभ्यास के साथ वह धीरे-धीरे एकाग्र होने लगता है।

सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाए तरुवर की छाया।

ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है मैं जब से शरण तेरी आया।। मेरे राम

जब मन अशांत हो तब प्रभु का नाम एक फाहे की तरीके से होता है। यही एक दवाई है मनुष्य के दर्द को कम करने की।

एक शराबी भी कबाबी भी हत्यारा भी यदि राम का नाम लेना आरंभ करता है तो एक समय के पश्चात वह भी इंसान बन जाता है।

राम का नाम कभी छुआछूत नहीं देखता कभी मन के भाव भी नहीं देखता वह दुष्ट भाव को भी नष्ट करने की क्षमता रखता है उसका नाम ले कर तो देखो।

राम के नाम का अर्थ अपने इष्ट का नाम अपने गुरू मंत्र का जाप।

इसको करते रहो जपते रहो आज नहीं तो कल यह अपना रंग दिखाएगा और गुरु से लेकर ज्ञान तक भौतिक सुखों से लेकर मोक्ष तक पहुंचाने की क्षमता रखता है करके तो देखो।

लेकिन हम बिना अनुभव के थोड़ा सा भी अनूठी होने पर विद्वान बन बैठते हैं दूसरे को गलत बताने लगते हैं कि नहीं भैया ऐसे करो वैसे करो जबकि यह सबसे बड़ी मूर्खता है प्रभु का नाम कैसे भी लो वह हमेशा दया का सागर है

 

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 30  


Tuesday, September 15, 2020

गणपति बप्पा मोरिया।

 गणपति बप्पा मोरिया

विपुल लखनवी नवी मुंबई।


गणपति बप्पा मोरिया। मंगल मूर्ति मोरिया।

हिंदुत्व की कब्र देखकर। विवेकानंद ही रो रिया॥

साधु बाबा हत्या केस में। हत्यारों को छोड़ दिया।

जाने कितने पकड़ लिए थे। कर सम्मानित छोर दिया॥

जो हिंदु के रक्षक कभी थे। अब भक्षक ही बन बैठे।

सत्ता कुर्सी की खातिर वो। हिंदू विरोधी हो रिया॥

हिंदू सब कुछ सहन करे। पर उसको मारा जाता।

जो बेचारा शांतिदूत है। कतल उसी का  हो रिया॥

जो हिंदु के अतिथि बने थे। उसको ही खसोट रहे।

राजनीति करने वाले भी। उसको ही है लूट रिया॥

तेल कान में डाले बैठे। हिंदू मूरख समझ है ऐठे।

अब कितने दिन मौज रहेगी। न कोई ये सोच रिया॥

चार दिनों का जीवन अपना। चार दिनों दुनियादारी।

मार काट इसी में मचाई। नहीं समझ यह कोई रिया॥

कैसा यह अंधेर मचाया। किसको मारा किसे बचाया।

जो सद् जन दुर्जन है पीटे। पक्ष उसी का हो रिया॥ 

कलम विपुल रोती रहती। बात शब्द कहती रहती॥
कलम बने हथियार सभी की। ध्यान इसी पर हो रिया॥

 

गणपति बप्पा मोरिया। मंगल मूर्ति मोरिया।।



मृग की कस्तूरी |बूझो तो जानूं। ज्ञानी मैं मानूं।

मृग की कस्तूरी

 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल “खोजी” 


जंगल जंगल ढूंढ रहा है। 

मृग अपनी ही कस्तूरी को।

पास उसी के जो है रहता। 

किधर कहां गई कस्तूरी को॥ 

 

कितना मुश्किल है तय करना। 

खुद से खुद की ही दूरी को। 

भीतर शून्य है बाहर शून्य। 

शून्य शून्य बन मजबूरी को॥    

मैं नही हूं मुझमें फिर भी मैं। 

मैं ही शोर हर ओर मचा।

मृग आखेट बन बैठा जब। 

पा सका नहीं वो कस्तूरी को॥  

विपुल तले पकवान अनेकों। 

सब अधपके कच्चे रह जाते।

मूरख विपुल भट्टी क्यों बैठा। 

तल न पाया एक पूरी को॥

 



मैं की में में |बूझो तो जानूं। ज्ञानी मैं मानूं।

 मैं की में में 


सनापुत्र देवीदास विपुल “खोजी” 


मैं ने जब पाया मैं को भी। पर नहीं मिला मैं किधर गया।

मैं छुप बैठा मैं ही मैं में। में में करते मैं गुजर गया।।

मैं मैं में में दोनों ही मैं। समझा मैं में यह मैं ही हूं।

यह मेरा मैं मैं ही निकला। संग में मैं था मैं जिधर गया।।

दास विपुल बकरी की मैं मैं। में में मैं मैं बन जाती कब।

गले छुरी चलती ही रहती। पर मेरा मैं अब किधर गया॥

अजब तमाशा दुनिया का है। है दास विपुल कुछ न समझे।

मैं मैं रहे न बाकी जग में। समझा जब मैं मैं गुजर गया॥  


निर्दोष साधु हत्या पर आक्रोश

 निर्दोष साधु हत्या पर आक्रोश

विपुल लखनवी



अहिंसा पुजारी कैसे खुद हिंसा से ही मारे जाते हैं। 

प्रेम पाठ समझाने वाले घृणा शिकार हो जाते हैं॥


गीता पढ़ना बहुत जरूरी अध्ययन उसका कर डालो।

अत्याचारी के विरुद्ध लड़ो और मौन समर्थन मत पालो॥


भारत का दुर्भाग्य सदा यह प्रेम अहिंसा सिखलाया है।

देश लुटेरों को आश्रय दे गले से अपने लगाया है॥


है दुर्भाग्य ये भी भारत का गद्दारों संग राज किया।

कुछ धन लोलुप भाई थे अपने अपनों का ही रक्त पिया।।


जयचंद अपने घर में रहते उनको हमने ही पाला है।

बन आस्तीन के सांप रहे वो आज हमको डस डाला है॥


फिर भी हम सब नहीं जगेंगे कायरता तो लहू में है।

अपने बाप के न दिखते हैं बाप कोई तो और ही है॥


घाट घाट के कुत्ते बनेंगे नहीं चैन से सो पायेंगे ।।

अगर न जागे अब तुम समझो वीर शिवाजी रो जायेंगे।


महावीर राणा प्रताप आंसू पोछते थक जायेंगे।

कलंक लगाया हिंदू समाज जो कभी नहीं धो पायेंगे॥    


कलम विपुल की समझाती है पर समझ नहीं कुछ आती है।

बेबस लाचारी के आंसू चुपके चुपके पी जाती है॥


आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 28 ओशो सन्यासी से चर्चा

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 28

ओशो सन्यासी से चर्चा

Npc Narendra Parihar: Few are not enough.. specially when majority of us do not support them . We should atleast demand a ayrvedachary at our dispensaries.

I have experienced in certain areas ayurved is not only superior but   only treatment.

Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

*आचारः परमो धर्म आचारः परमं तपः।*

*आचारः परमं ज्ञानम् आचरात् किं न साध्यते॥*

सदाचरण सबसे बड़ा धर्म है, सदाचरण सबसे बड़ा तप है, सदाचरण सबसे बड़ा ज्ञान है, सदाचरण से क्या प्राप्त नहीं किया जा सकता है?

Right conduct is the highest religion. Right conduct is the greatest penance. Right conduct is the greatest knowledge. What can't be achieved through right conduct?

*शुभोदयम्! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

 Bhakt Lokeshanand Swami: "दुनिया के जिस्म जलते देखे अपना जल जाना भूल गए।

दुनिया के झमेलों में फंसकर हम असली ठिकाना भूल गए॥

हमें काम ना भूला क्रोध ना भूला नाम हरि का भूल गए।

जो वादा करके आए थे वो कौल निभाना भूल गए॥"

दशरथ जी आज बहुत प्रसन्न हैं, पुत्रवधुएँ जो आ गईं। सब ठीक हो गया। सब उनके भाग्य की सराहना कर रहे हैं।

अपनी प्रशंसा सुनकर उन्होंने दर्पण मंगवाया, कि देखें हम इस स्तुति के योग्य भी हैं या नहीं? और देखा क्या? देखा कि यम का डाकिया कान पर मौत का वारंट चिपका गया है।

देखो कहने वाले कहते हैं कि मौत बता कर नहीं आती, कोई अचानक ही मर जाता है। नहीं नहीं, वह तो हजार चिट्ठियां भेजती है, आप ही होश में नहीं हैं, आप ही ध्यान नहीं देते, आप वह चिट्ठी देखकर भी नहीं देखते।

बालों की सफेदी आपने छिपाई, चेहरे की झुर्रियाँ आपने छिपाई, मामला क्या है? किसे आप धोखा देना चाहते हैं? अपनेआप को? दुनिया वाले तो धोखे में आ सकते हैं, पर यमदूत धोखा नहीं खाते।

दशरथजी ने सफेद बाल देखते ही निर्णय लिया, मैं अपना राज्य भगवान को दे दूंगा। अब नाव जितनी खेनी थी खे ली, अब तेरे हवाले कर दूंगा। अब जो कुछ है सब तेरा, तूं ही संभाल। अब बस हो गई। बहुत रह लिए, दुनिया की रंगीनियों में घूम लिए, नशों में झूम लिए, अब चलने का समय हो गया, जीवन ढलान पर आ गया, वापसी होने को है, माल लुट गया, अब बाजार समेटने का समय हो गया, स्टेशन आने को है, गाड़ी से उतरना है, सामान बाँधना है।

बड़े उत्साह से घूमने निकले थे, थक गए हैं, टाँगों में जान नहीं रही, हाथ काँपने लगे, आँखों से कम दिखता है, ऊँचा सुनता है, पेट गड़बड़ रहता है, बहुत सफ़र किया, बहुत suffer किया, अब घर जाऊँगा, अब यहाँ जो है सब भगवान को सौंप कर, आराम करूंगा।

आप का क्या कार्यक्रम है?

 Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...

यत् पाद रेणू कणिका, कापि संसार वारिधे:।

सेतु बन्धायते नाथं, देशिकं तमुपास्महे।।55।।

अर्थ: जिन गुरुदेव की चरण रज का एक कण भी संसार रूपी समुद्र को पार करने के लिये सेतु के समान है उन समर्थ गुरुदेव की हम उपासना करते है।

व्याख्या: यहाँ गुरुपद रज कण से एक विशेष अर्थ को ग्रहण करना चाहिये, गुरु प्रसाद रज कण वास्तव में गुरु कृपा के प्रसाद का ही अंश है।

गुरु शिष्य में तादात्म्य स्थापित होने पर शक्तिपात की प्रक्रिया सम्पन्न होती है, उससे जब शक्ति अन्तर्मुखी जाग्रत हो जाती है, तो शक्ति जागृत करने वाला जो शक्ति का अंश है वही "गुरु पद रज कण" है। इस शक्ति के सामान्य अंश से भी संसार समुद्र को पार किया जा सकता है। इस शक्ति के प्रभाव से  संस्कार  क्षीण होते हैं, संसार के बंधन कट जाते है-पाप राशि समाप्त हो जाती है, ऐसे समर्थ अपने स्वामी गुरुदेव की हम उपासना करते है।

Bhakt Lokeshanand Swami: एक राजा के पास एक मोटी-ताजी पर भुक्खड़ बकरी थी। कितना भी क्यों न खा ले, उसका पेट न भरता, जहाँ हरी घास देखती, मुंह जरूर मारती।

राजा ने बकरी का पेट भर देने वाले को एक लाख रुपए ईनाम देने की घोषणा की।

पर बड़े बड़े सेठ, उस बकरी को सुबह-शाम-दिन-रात घास खिला कर भी उसकी वह आदत न बदल पाए।

तब एक लंगोटीधारी संत आए। राजा ने व्यंग्य किया कि आपके पास तो खुद के लिए ही भोजन नहीं है, आप बकरी का पेट कैसे भरेंगे? परन्तु संत मुस्कुराते हुए उस बकरी को अपनी कुटिया में ले गए।

संत ने बकरी को एक खूंटे से बाँध दिया, सामने हरी हरी घास रख दी, और स्वयं एक छड़ी लेकर कुर्सी पर बैठ गए।

बकरी ने जैसे ही घास को मुंह लगाया, संत ने उसकी नाक पर हलके से छड़ी लगा दी। बकरी चोट खाकर पीछे हट गई। ऐसा ही चार दिन लगातार चलता रहा। संत ने बकरी को एक तिनका घास भी न खाने दिया।

जब बकरी घास देखते ही, तुरंत छड़ी की ओर देखने लगी, संत बकरी को राजा के पास लौटा लाए।

राजा ने बकरी को देखा तो चीख उठा। चीखता क्यों नहीं, चार दिन से कुछ भी न खाने से बकरी पिचक जो गई थी।

राजा बोला- हाय हाय! मेरी बकरी को भूखा मार दिया।

संत मुस्कुरा कर बोले- नहीं महाराज! यह तो आपकी याद में पतली हो गई है। मैंने इसे इतना खिला दिया है कि अब कईं दिन घास नहीं खाएगी।

राजा ने हरी घास मंगवाई। संत भी छड़ी बगल में दबाए तैयार ही खड़े थे।

राजा ने घास हाथ में लेकर बकरी को पुचकारा। बकरी ने घास देखी। फिर छड़ी की ओर देखा। संत ने छड़ी जरा सी हिला दी। बकरी चार कदम पीछे हट गई।

संत ने कहा- नहीं खाएगी महाराज! नहीं खाएगी। राजा भी हैरान रह गया।

लोकेशानन्द कहता है कि वह राजा कोई ओर नहीं आप ही हैं। मन ही बकरी है। इसे कुछ भी क्यों न मिल जाए, यह 'और' माँगा ही करता है। यदि गुरूजी के मार्गदर्शन में, इस मन को संयम की छड़ी लगने लगे, तो इसकी भी भूख सदा के लिए मिट जाए।

मित्रों सनातन के अनुसार कोई भी महामारी या अशुभ सृष्टि की निर्माता महाकाली का भृकुटी विलास माना जाता है। जो एक प्रकार से मनुष्य को चेतावनी होता है।

मेरे दिमाग में है पता नहीं क्यों कुछ दिनों से यह भाव आ रहा है कि रामचरितमानस की एक चौपाई उसका पाठ अगर किया जाए तो संकट से उबरा जा सकता है वह चौपाई है।

देवी पूजी पद कमल तुम्हारे।

सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।

मैं समझता हूं यदि इसका हम निरंतर जाप या पाठ करें तो हम संकटों से मुक्त हो सकते हैं। वैसे दुर्गा सप्तशती के सम्पुट भी बहुत शक्तिशाली है लेकिन वह क्योंकि संस्कृत में है इसलिए कुछ मुश्किल हो जाती है।

यक्ष सवाल

आजकल फेसबुक पर लोग पूछ रहे हैं कि आप बताएं कि आप मुझसे कब पहली बार मिले थे।

मेरा सवाल है मैं आप सभी से पूछता हूं आप स्वयं अपने आप से कब मिले थे या फिर कब मिलेंगे।

मुझसे तो आज तक कोई नहीं मिला।

Ba Kuldeep Yadav Ref Nu: स्वयं से आप स्वयं कभी नहीं मिल सकते जब तक किसी गुरु की कृपा न हो...

Pragya del: Ek baar puja karte samay jab man mein prashan aaya ki mujhe dharti per kyo bheja to laga ek awaj ander se aayi ki tumhe dharti per bachho ko vigyan sikhane bheja hai .ye kaam sahi se karo taki log usse padhkar apna jeevan uparjan kar sake.bus tabhi se yahi koshih hai ki iss kary mein safal rahu .iss udheshya se na bhatku

Ba Kuldeep Yadav Ref Nu: स्वयं से आप स्वयं कभी नहीं मिल सकते जब तक किसी गुरु की कृपा न हो...

बिल्कुल आवश्यक नहीं है यह आपकी इच्छा शक्ति और आपकी कार्यशैली पर निर्भर करता है।

वास्तव में जगत का एक ही गुरु होता है और वह स्वयं परमपिता परमेश्वर जिसका साकार रूप शिव तत्व के नाम से जाना जाता है।

किंतु मानव शक्ति हीन हो चुका है वह उस परमपिता परमेश्वर की शक्ति को सहन नहीं कर सकता अतः मानव के रूप में ही कुछ लोगों को ईश्वरीय शक्ति देकर इस कार्य हेतु प्रेषित किया जाता है ताकि मनुष्य उनको सहन कर सके।

आप देखें कि भगवान श्री कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाने के पहले अर्जुन को विशेष शक्ति प्रदान की थी कि वह श्री कृष्ण का वास्तविक रूप देख सकें।

Bhakt Manglam Ref Shukla Ji: ....शक्ति को पहचान लो....

शिव पर समर्पित, भाव अर्पित और भक्ति  जान लो।

हो तन समर्पित, प्राण अर्पित, शक्ति को पहचान लो।।

प्रारब्ध के उस पाश में जो जीव-तन है जल रहा।

जन्म-जन्मांतर का संचय कर्म का जो फल रहा।।

संस्कारो  की  अमिट  स्म्रति-छवि  का बल  रहा।

कर्म -  दुष्कर्मों  का  जो एकत्र  होता मल  रहा।

गुरु पर समर्पित,भाव अर्पित, ब्रह्म-भक्ति जान लो।

हो मन समर्पित, ध्यान अर्पित, शक्ति को पहचान लो।।

                 ....सुनेत्रम योगी🕉

Pragya del: Sirf apne dharti per hone ka uddeshya pata hai.

Bhakt Manglam Ref Shukla Ji: छोटे भाई सुनेत्रम शुक्ला की ओर से प्रस्तुत एक रचना🙏

यह बहुत अच्छी बात है कि तुम को अंदर से आवाज आती है जिसे आत्मगुरु भी कहा जाता है। किंतु हमारे परम पूजनीय स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज के अनुसार जब तक में आपको कोई आदेश लिखकर न दिखाई दे या उसकी स्पष्ट ध्वनि न सुनाई दे स्वप्न में आकर स्पष्ट आदेश न हो तब तक में कुछ भी आंतरिक आवाज को हम मन की बात ही समझ सकते हैं यानी यह सब मन की चालबाजी भी हो सकती है।

यह योगीराज तुम्हारे छोटे भाई हैं।

भाव सुंदर है अच्छे हैं लेकिन अपने नाम के आगे योगी लगा कर तुम्हारे भाई ने अपने आपको एक साधारण मानव बना दिया।

इस तरह के नाम पत्र अपने नाम के आगे स्वयं जोगी लगा लेना गुरु लगा लेना सिद्ध लगा लेना इत्यादि यह सब हमारा अहंकार पोषित करते हैं और अहंकार का प्रतीक है और यदि हम सब अपने नाम के आगे लगाते हैं हम जिंदगी में योगी नहीं हो सकते

तुम देखो कोई भी महापुरुष कोई भी महायोगी क्या स्वयं अपने नाम के आगे योगी लिखता है हमारे परम गुरु महाराज स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज हस्ताक्षर करते हैं तो अपने नाम के आगे स्वामी तक नहीं लगाते जबकी स्वामी टाइटिल होता है सन्यासियों का। वह केवल शिवम का साइन करते हैं या शिवओम तीर्थ लिखते हैं बस।

Bhakt Manglam Ref Shukla Ji: 🙏🏻🙂

Bhakt Manglam Ref Shukla Ji: बड़ी सुमन🙏

मेरी बात को अन्यथा मत लेना क्योंकि तुम सब लोग अभी आयु में बहुत छोटे हो और इस ग्रुप का नाम आत्म अवलोकन है अतः मैं स्पष्ट शब्दों में बोल देता हूं यदि किसी को बुरा लगे तो यह उसकी व्यक्तिगत बात है और किस बात के लिए मैं क्षमा मांगता हूं।

Ba Kuldeep Yadav Ref Nu: 🙏🙏 बहुत अच्छी तरह से आपने समझा दिया।।

🙏🙏💐💐

Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रभु जी आज दैन्य पर कुछ लिखिये। मन बहुत आतुर है

Pragya del: Dhwani spasht hoti hai

अब सब कुछ आप के निर्णय पर हैं।

Bhakt Anil Vibhute Thane Dir: अर्जुन के साथ एक और भी था जो ये विराट दिव्य रूप देख का

*संजय*

संजय को दिव्य ज्योति किसने दी थी श्रीकृष्ण ने दी थी इसके अलावा जिसे आजकल खाटू श्याम के नाम से जानते हैं जो बर्बरीक था उसने भी देखा था।

यक्ष चुनौती

मित्रों मैं आज आपके सामने चुनौती पूर्वक अपनी बात कहना चाहता हूं जो लोग मोदी के विरोधी हैं यदि वे मानव हुए यानी उनमें यदि कुछ भी मानवीय गुण होंगे तो वह 1 वर्ष के भीतर मोदी के मुरीद हो जाएंगे क्योंकि हम भारतीयों को बचाना था इसके लिए नियति ने मोदी ऐसा महायोगी हमारा प्रधानमंत्री बनाया और आयुष मंत्रालय के द्वारा हम भारतीयों की रोग विरोधी क्षमता को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। यह प्रयास आगे आने वाली विपत्तियों में सहायक होगा क्योंकि कोविड-19 तो कुछ भी नहीं है आने वाले समय में इससे भी भयंकर आपदाएं आने की संभावना है। मात्र 1 वर्ष रूकिए और तब मेरी बात आप लोगों की समझ में आएगी।

आज के महाज्योतिषी दिसंबर 2020 के बाद का भविष्य देखें और अपनी बात रखें। वे मेरी बात से सहमत होंगे।

विनीत: सनातन पुत्र देवीदास विपुल।

क्या,बिपदा आने वाली है प्रभु,,खुल के कहो

किस भांति की आने वाली है चीज़े बताने की कृपा करें

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: यह तो भविष्य भाखा है किसी ने आप ओर कूछ कहे विपुलजी

Bhakt Amit Singh Parmar Meditation, Gwalior: सर पहले से ही बुरी हालत है आप और डरा दो, जो होगा देखा जाएगा अभी से क्या सोचना 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

+91 94174 71894: Respected vipul ji kindly let us know what is going to happen

   Thanks and Regards

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: 21 वी सदी उज्ज्वल भविष्य,,यह नारा तो प पु श्री राम शर्मा आचार्य जी ने कब से दिया है प्रभु

यार अभी कुछ नहीं बोलूंगा लाक डाउन के बाद।

किसी ज्योतिषी से पूछ कर देखो उससे बोलो दिसंबर 2020 के बाद का भारत देखे मतलब दुनिया देखे।

किसी भी घटना में अधिकतर देश  मिट जाएं किंतु भारत अडिग रहेगा उसको उतना नुकसान नहीं होगा जितना कि औरों को होगा।

एक बात यह समझ लो भारत इस समय एक महायोगी के हाथों में सुरक्षित है।

वो कोई भी निर्णय ले रहा है वह समय के अनुसार बिल्कुल सटीक है और भारतीय सनातन संस्कृति के आधार पर निर्णय लेता है।

आप लोग बस निरंतर प्रभु भक्ति में लीन रहे

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: क्षमा करें,,आगाह तो अनंत भाई जी,,ने ओर कालसूत्रअभिषेकम ने भी की है

Ba Shetty Hindi: No one can predict, what shall happen next moment...

Why worry present

Bhakt Parv Mittal Hariyana: आज जिस पुस्तक को प्रस्तुत कर रहा हूं वो गुरुदेव विष्णुतीर्थ जी महाराज द्वारा लिखित प्राणतत्व है। जो तथ्य मुझे अक्सर रोमांचित करते रहते थे और अनायास ही प्रकट होते रहते थे वो इस पुस्तक में प्रस्तुति देते है। साधक वर्ग से अनुरोध है कि इस पुस्तक का श्रवण एकाग्रचित और एकांत में करें। इसमे बहुत रहस्य है जो मुमुक्षुओ की जीवंतता की जिज्ञासा का शमन करता है। यद्यपि मुझको महान सँस्कृत भाषा का अति अल्प ज्ञान है और पुस्तक में वर्णित मंत्रों के उच्चारण में न्याय नही कर पा रहा हूं, तथापि रोमांचित और मुमुक्षु होने के कारण ऐसा कर पाने का दुस्साहस कर रहा हूं। विद्वतजन मेरे इस अमर्यादित व्यवहार के लिये क्षमा करके मेरे भाव को आशीष देवे। प्रस्तुत श्लोको का जो व्याख्या गुरुदेव ने की है उनको शुद्ध उच्चारण देने की पूर्ण चेष्टा की है। पुस्तक पढ़ते हुए कई बार रोमांचित होकर एक आध जगह स्वयं के कुछ पंक्ति अवश्य जोड़ी है उसके लिये क्षमा प्रार्थी हूं। क्योंकि जब गुरुदेव ज्ञानवर्षा कर रहे हो तो बीच मे बोलकर उदंडता नही करनी चाहिये। अपनी इस वाचालता के लिये गुरुदेव आपसे क्षमाप्रार्थी हूं, आपका बालक हूं निश्चित ही आप मेरा यह अपराध क्षमा करेंगे।

श्री गुरुचरणों में दण्डवत प्रणाम🙇‍♂️

जय गुरुदेव

जय श्री कृष्णा🙏🙇‍♂️

Bhakt Brijesh Singer: हां

दुनिया से 20% आबादी का तो हमने भी सुना है

Bhakt Baliram Yadav: शिव लिंग का अर्थ तो इसे क्या हमारे बहुत से अपने लोगो को पता नहीं है ☹😔😔

शिवलिंग का अर्थ वास्तव में जनक से लिया जाता है और पुराणों के अनुसार जब ब्रह्मा और विष्णु में विवाद था तब शिवलिंग के आकार की उत्पत्ति हुई थी और जिसका आदि अंत ढूंढने के लिए दोनों गए थे। यह कथा आपको पता होगी वास्तव में यदि आप देखें तो इस जगत में  ग्रह नक्षत्र इलेक्ट्रान या कण यह सब दीर्घ वृत्त के आकार में घूमते हैं जो एक शिवलिंग का ही आकार है उसी के प्रतीक स्वरूप इस जगत के निर्माता को एक लिंग का रूप दिया।

वेदों में लिंग शब्द कई जगह इस्तेमाल हुआ है जिसका अर्थ जनक से ही है।

शिवलिंग के ऊपर जो डेढ़ कुंडली लिए सांप है वह वास्तव में कुंडलिनी शक्ति है जो कि हमारे मूलाधार चक्र में स्थित होती है यह मूलाधार चक्र हमारी योनि और लिंग के बीच में होता है। वास्तव में शिवलिंग सृष्टि का प्रतीक है।

मित्रों राम मंदिर बनने की तैयारी हो रही है लेकिन यह बहुत दुखद है कि कुछ साधु संत जो कि शंकराचार्य के स्तर के भी हैं वह ट्रस्ट में शामिल नहीं किए जाने के कारण कोर्ट तक जाने की बात कर रहे यह बहुत दुखद है और अशोभनीय भी है।

क्योंकि यदि आप योगी है तो आपके अंदर अष्टांग योग महायोग के कुछ गुण तो होने चाहिए।

और उसमें यम के अंतर्गत अपरिग्रह यानी स्वीकार न करने की वृत्ति और जो तीसरा अंग है प्रत्याहार यानी त्यागने की प्रवृत्ति।

यदि यह नहीं है तो आप योगी कहलाने लायक नहीं है और यदि योगी भी नहीं है तो आप कैसे सद्गुरु या जगतगुरु हो सकते हैं।

जिसको योग के विषय में अनुभूतियां वह निश्चित रूप से कह देगा आप नकली है असली नहीं है।

मैंने अपने गुरु महाराज को देखा महाराज का 19 सौ 75 में किसी ने आश्रम निर्माण हेतु इकट्ठा ₹25000 मार दिया था लेकिन महाराज जी ने कोई प्रतिकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि उसको अधिक आवश्यकता होगी। आश्रम के लोगों ने कहा पुलिस में जाओ।

 त्याग यहां तक कि शरीर त्यागने के पहले शिष्यों के रोग ले लिए।

और फिर देखो यह योगी के लक्षण होते हैं। हालांकि सबको अपना गुरु बहुत अच्छा लगता है भगवान लगता है और होता भी है।

लेकिन मैं बात करूं आज की तारीख में मुझे कोई भी व्यक्ति योगी तो नहीं दिखता है यदि आपके अंदर पद की लालसा है तो आप योगी नहीं है।

सवाल यह है राम मंदिर बनने का जो संकल्प पूरा हो रहा है कोई भी उसे पूरा करें राम मंदिर बन रहा है उसका स्वागत करना चाहिए ना कि आपने मुझे शामिल नहीं किया मैं कोर्ट में जाऊंगा।

आप भारतीय जनता पार्टी को गालियां दे सकते हैं लेकिन याद रखिए राजनीतिक पार्टी है जो हर कार्य में राजनीति भी देखेगी और यह अधिकार भी है क्योंकि जहां पर वोट होते हैं वहां पर यदि आपको वोट मिलेंगे तभी आपके हाथ में अधिकार है और चूंकी भारतीय जनता पार्टी आई तब ही राम मंदिर बनेगा।

पहले किसी  की औकात नहीं थी हिम्मत नहीं थी कि राम मंदिर बनवा देते।

काग्रेस ने तो शंकराचार्य को दीवाली के दिन गिरफ्तार किया था क्या उखाड़ लिया था हिंदुओं ने।

क्या कर लिया था बाकी शंकराचार्य ने।

इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं राम मंदिर बनने का विरोध न करें और यदि आपके गुरु ऐसा कर रहे हैं तो आप को समझाएं उनको अष्टांग योग की फिर से बताएं कि आप जो कह रहे हो लेकिन आप उन पर खुद नहीं चल रहे हो।

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लंबा लंबा सफर और कठिन है डगर।

नाम ले ले प्रभु का तो तर जाएगा।।

वरना थक गिरेगा तू चूर कहां।

अपना रास्ता भी तू फिर भटक जाएगा।।

नाम की नांव ले जो भी मझधार में।

कितना तूफान भी तू उतर जाएगा।।

चाहे रात अंधेरी हो बादल घने।

चाहे कंटक अनेकों जो पथ पर बिछे।

बस राम का नाम तू लेता चले।

यह लंबा सफर भी तो कट जाएगा।

अब आगे और बनाऊंगा।

🤪🤪

धीरे धीरे चलता चल प्रभु नाम को जपता चल।

यह तुझको पहुंचा दे मंजिल।

यह तुझको पहुंचा दे मंजिल।

आज नहीं तो पहुंचेगा कल।।

बाकी बाद में

Bhakt Mohit Fb: आत्मा दूसरे लोको में विचरण करते हुए परमात्मा तक पहुंचती है। ऐसा कथन बहुत से गुरुओं ने कहा है जैसे राधा स्वामी, राम रहीम, ओम शांति, जय गुरुदेव आदि संस्थाओं में यह कहा जाता है। क्या यही सत्य है ? हमारी भी ऐसे ही यात्रा होगी क्या ?

 कामवासना मुझे सताती है, क्या करू ?

जब तुम इतने गुरु के संपर्क में हो तो मेरी क्या औकात??

🤪🤪🙏🏻🙏🏻

वैसे यह शरीर तीन प्रकार का होता है स्थूल सूक्ष्म और कारण।

Bhakt Mohit Fb: kaaran matlab

यह सब मैं अपने ग्रुप में लोगों को अवसर बताता रहता हूं समझाता रहता हूं कारण चली जो है मनुष्य के जीवन का कारण बनता है।

Bhakt Mohit Fb: nhi smjha

अपने किसी महान गुरु से पूछ लेना यदि समझ में ना आए तो मैं सब समझा दूंगा।

Bhakt Mohit Fb: mera koi guru nahi

ek hai to sahi, lekin usko me kam maanta hu, kyuki wo sansaari jyada hai

देखो सन्यास मन का होता है तन का नहीं कोई संसारी व्यक्ति किसी संन्यासी से अधिक ज्ञानी और अनुभव वाला हो सकता है।

तुम मुझसे बात करते हो तो मैं ना कोई सन्यासी हूं और ना ही मुझे गुरू पद स्वीकार है और नहीं मैं अपने को कुछ समझता हूं किंतु अध्यात्म के अनेकों अनुभव कर चुका हूं किसी भी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर दे सकता हूं।

ध्यान की नई तकनीकी के द्वारा कितनों को दिव्य अनुभव भी हो चुका है।

Bhakt Mohit Fb: आपको गुरु पद नहीं चाहिए क्युकी ये आपके गुरु ने  बोला कि यहां कोई गुरु नहीं होगा

 ये भी तो एक बंधन है

गुरु ने ऐसा नहीं बोला और हमारी परंपरा में कई गुरु वर्तमान में मौजूद हैं जिनको गुरु दीक्षा का अधिकार है।

यह शायद तुम ना समझोगे की गुरुपद एक बहुत ही अधिक बंधन कारी पद होता है बहुत ही कष्टकारी होता है।

गुरु को स्वयं कभी मुक्ति आसानी से नहीं मिलती है

Bhakt Mohit Fb: बंधनकारी ओर कष्टकारी ☹️

मैं यह बात समर्थ गुरु सद्गुरु के लिए कह रहा हूं जो वास्तव में योगी होते हैं और गुरु होते हैं आज के दुकानदारों के लिए यह बात नहीं है

Bhakt Mohit Fb: लाहिड़ी जी

तभी तो मैं तुमको एक बालक बोलता हूं अभी तुमको बहुत कुछ जानना होगा जिसमें कि तुमको बहुत समय भी लग सकता है

Bhakt Mohit Fb: मै एकमात्र इन्हीं को मानता हूं सबसे बड़ा


इसके बाद ओशो

यह सत्य है लहरी महाशय बहुत ही उच्च कोटि के साधक और गुरु थे वे पारिवारिक होते हुए भी सन्यास से युक्त थे लेकिन लहरी महाशय भी जब महा अवतार बाबा के संपर्क में आए और महा अवतार बाबा जो उनके पूर्व जन्म के गुरु थे उन्होंने उनको तेल पीने को दिया था तब लहरी महाशय सांसारिक बंधनों से मुक्त हो पाए थे।

ओशो एक ज्ञानी व्यक्ति था लेकिन वह रावण की भांति था।

Bhakt Mohit Fb: तेल 🤔

महावतार बाबा लहरी महाशय को एक गुफा में ले गए थे और वहां पर उनके सिर पर हाथ रख कर उनको पूर्व जन्म का वृतांत दिखाया और उसके बाद बोला तुम उस दिए में रखा हुआ जो तेल है वह भी जाओ तो तुम अपने सारे जगत की वासनाओं को नष्ट कर दोगे।

Bhakt Mohit Fb: 😦😯

Bhakt Mohit Fb: मेरा जवाब दो

Bhakt Mohit Fb: कहना क्या चाहते थे

तुम पहले दूसरों का सम्मान करना सीखो। तुम्हारी हर समस्या मैं जानता हूं हर समस्या का समाधान है और हल है मेरे पास। लेकिन तुम अभी भटकाव में हो कुछ और भटक लो तब तुमको अधिक बेहतर समझ में आएगा।


मात्रा का भजन।

जीवन एक मुस्कान है

विपुल लखनवी। नवी मुम्बई।।


जीवन एक मुस्कान है। यह सांसो का गान है।।

सांस तेरी कहती क्या। जो तेरी पहचान है।।


जब श्वांस संग हरि भजे। तेरी सांस महकेगी।।

अपने मन हरि बसा ले। यही तेरा निर्वाण है।।


यही जीवन सरल बना। रहे मस्त सदा मन में।।

अंत: मन डूब जा बंदे। यह तो सुख की खान है।।


व्यस्त रहे व मस्त बने। मन मौज में डूबे तू।।

लक्ष्य सदा हरि नाम हो। यह गीता का ज्ञान है।।


दास विपुल जब पा सके। सुख सागर स्वयम मन में।।

तू भी उसको पा बन्दे। यह प्रभु प्राणीधान है।।


न योग की चिंता कर ले। न वियोग में दुख ही कर।।

बस मन को तू स्थिर कर। यह तेरी पहचान है।।

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 29 (राम नाम की महिमा) 

 

 

 

 

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