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Wednesday, January 15, 2020

भक्ति से मुक्ति और मोक्ष

भक्ति से मुक्ति और मोक्ष

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"


 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
 सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,  फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet

जीवों की संख्या अनंत है। मूलत: वे चेतन और आनंदमय नित्य तत्व हैं पर भौतिक शरीर के संसर्ग से एवं कर्मबंधन से वे दुख भोगते हैं। ईश्वर जीवों का अंतर्यामी रूप से नियंता है, फिर भी वास्तविक कर्ता, भोक्ता तथा कर्म का उत्तरदायी जीव ही है।


ज्ञानपूर्वक ईश्वर से नित्य स्नेह करना भक्ति है जिससे ही जीव मुक्त हो सकता है।

निष्काम धर्म और कर्म से जीव को तत्वज्ञान में सहायता मिलती है - ध्यान से ईश्वरानुग्रह का लाभ होता है और अंत में उसे ईश्वर के स्वरूप का अपरोक्ष ज्ञान हो जाता है।

जब ज्ञान की प्रतिष्ठा हो जाती है तब जीव बंधनमुक्त हो जाता है।

ईश्वर का अनुग्रह सबको नहीं मिलता - वह कुछ लोगों को मुक्ति के लिए चुनता है, बाकी लोगों को छोड़ देता है।

जिनको वह उनकी भक्ति के अनुसार मोक्ष देता है वे ईश्वर में लीन नहीं होते। उनको केवल ईश्वर की सन्निधि मिलती है।

मुक्त जीव ईश्वर की समानता भी नहीं प्राप्त कर सकते।

भक्ति की तीव्रता के अनुसार मुक्ति छह प्रकार की मानी गई है – सार्ष्टि, सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य, सायुज्य या लीनता और साम्य ।

मुक्ति कर्म के बन्धन से मोक्ष पाने की स्थिति है। यह स्थिति जीवन में ही प्राप्त हो सकती है। मुक्ति निम्न छह प्रकार की होती हैं:

सार्ष्टि : ईश के समान ऐश्वर्य की प्राप्ति

सालोक्य: जीव भगवान के साथ उनके लोक में ही वास करता हैं।

सामीप्य:  जीव भगवान के सन्निध्य में रहते हुये कामनायें भोगता हैं।

सारूप्य: जीव भगवान के साम्य (जैसे चतुर्भुज) रूप लिए इच्छायें अनुभूत करता हैं।

सायुज्य: भक्त भगवान मे लीन होकर आनंद की अनुभूति करता हैं।

साम्य : आपकी समता या समानता की प्राप्ति

ब्रह्मवैवर्त पुराण वेदमार्ग का दसवाँ पुराण है। अठारह पुराणों में प्राचीनतम पुराण ब्रह्मवैवर्त पुराण को माना गया है। इस पुराण में जीव की उत्पत्ति के कारण और ब्रह्माजी द्वारा समस्त भू-मंडल, जल-मंडल और वायु-मंडल में विचरण करने वाले जीवों के जन्म और उनके पालन पोषण का सविस्तार वर्णन किया गया है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का विस्तृत वर्णन, श्रीराधा की गोलोक-लीला तथा अवतार-लीलाका सुन्दर विवेचन, विभिन्न देवताओं की महिमा एवं एकरूपता और उनकी साधना-उपासनाका सुन्दर निरूपण किया गया है। अनेक भक्तिपरक आख्यानों एवं स्तोत्रोंका भी इसमें अद्भुत संग्रह है।

इस पुराण में चार खण्ड हैं। ब्रह्मखण्ड, प्रकृतिखण्ड, श्रीकृष्णजन्मखण्ड और गणेशखण्ड। इन चारों खण्डों से युक्त यह पुराण अठारह हजार श्लोकों का बताया गया है। यह वैष्णव पुराण है। इस पुराण में श्रीकृष्ण को ही प्रमुख इष्ट मानकर उन्हें सृष्टि का कारण बताया गया है। 'ब्रह्मवैवर्त' शब्द का अर्थ है- ब्रह्म का विवर्त अर्थात् ब्रह्म की रूपान्तर राशि। ब्रह्म की रूपान्तर राशि 'प्रकृति' है। प्रकृति के विविध परिणामों का प्रतिपादन ही इस 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में प्राप्त होता है। कहने का तात्पर्य है प्रकृति के भिन्न-भिन्न परिणामों का जहां प्रतिपादन हो वही पुराण ब्रह्मवैवर्त कहलाता है। विष्णु के अवतार कृष्ण का उल्लेख यद्यपि कई पुराणों में मिलता है, किन्तु इस पुराण में यह विषय भिन्नता लिए हुए है। 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में कृष्ण को ही 'परब्रह्म' माना गया है, जिनकी इच्छा से सृष्टि का जन्म होता है। 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में श्रीकृष्ण लीला का वर्णन 'भागवत पुराण' से काफी भिन्न है। 'भागवत पुराण' का वर्णन साहित्यिक और सात्विक है जबकि 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' का वर्णन श्रृंगार रस से परिपूर्ण है। इस पुराण में सृष्टि का मूल श्रीकृष्ण को बताया गया है। ब्रह्म वैवर्त पुराण: यह वैष्णव पुराण है। इस पुराण में श्रीकृष्ण को ही प्रमुख इष्ट मानकर उन्हें सृष्टि का कारण बताया गया है। 'ब्रह्मवैवर्त' शब्द का अर्थ है- ब्रह्म का विवर्त अर्थात् ब्रह्म की रूपान्तर राशि। ब्रह्म की रूपान्तर राशि 'प्रकृति' है। प्रकृति के विविध परिणामों का प्रतिपादन ही इस 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में प्राप्त होता है। विष्णु के अवतार कृष्ण का उल्लेख यद्यपि कई पुराणों में मिलता है, किन्तु इस पुराण में यह विषय भिन्नता लिए हुए है। 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में कृष्ण को ही 'परब्रह्म' माना गया है, जिनकी इच्छा से सृष्टि का जन्म होता है।

कृष्ण से ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश और प्रकृति का जन्म बताया गया है। उनके दाएं पार्श्व से त्रिगुण (सत्व, रज, तम) उत्पन्न होते हैं। फिर उनसे महत्तत्व, अहंकार और पंच तन्मात्र उत्पन्न हुए। फिर नारायण का जन्म हुआ जो श्याम वर्ण, पीताम्बरधारी और वनमाला धारण किए चार भुजाओं वाले थे। पंचमुखी शिव का जन्म कृष्ण के वाम पार्श्व से हुआ। नाभि से ब्रह्मा, वक्षस्थल से धर्म, वाम पार्श्व से पुन: लक्ष्मी, मुख से सरस्वती और विभिन्न अंगों से दुर्गा, सावित्री, कामदेव, रति, अग्नि, वरुण, वायु आदि देवी-देवताओं का आविर्भाव हुआ। ये सभी भगवान के 'गोलोक' में स्थित हो गए।

सृष्टि निर्माण के उपरान्त रास मण्डल में उनके अर्द्ध वाम अंग से राधा का जन्म हुआ। रोमकूपों से ग्वाल बाल और गोपियों का जन्म हुआ। गायें, हंस, तुरंग और सिंह प्रकट हुए। शिव वाहन के लिए बैल, ब्रह्मा के लिए हंस, धर्म के लिए तुरंग (अश्व) और दुर्गा के लिए सिंह दिए गए।


यह पुराण कहता है कि इस ब्रह्माण्ड में असंख्य विश्व विद्यमान हैं। प्रत्येक विश्व के अपने-अपने विष्णु, ब्रह्मा और महेश हैं। इन सभी विश्वों से ऊपर गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण निवास करते
ब्रह्म खण्ड में कृष्ण चरित्र की विविध लीलाओं और सृष्टि क्रम का वर्णन प्राप्त होता है। कृष्ण के शरीर से ही समस्त देवी-देवताओं को आविर्भाव माना गया है। इस खण्ड में भगवान सूर्य द्वारा संकलित एक स्वतन्त्र 'आयुर्वेद संहिता' का भी उल्लेख मिलता है। आयुर्वेद समस्त रोगों का परिज्ञान करके उनके प्रभाव को नष्ट करने की सामर्थ्य रखता है। इसी खण्ड में श्रीकृष्ण के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में राधा का आविर्भाव उनके वाम अंग से दिखाया गया है। 


अध्याय 6: प्रभो! सार्ष्टि, सालोक्य, सारूप्य, सामीप्य, साम्य और लीनता– मुक्त पुरुष ये छः प्रकार की मुक्तियाँ बताते हैं। अणिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञता, दूरश्रवण, परकायप्रवेश, वाकसिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टिशक्ति, संहारशक्ति, अमरत्व और सर्वाग्रगण्यता – ये अठारह सिद्धियाँ मानी गयी हैं।
सर्वेश्वर! योग, तप, सब प्रकार के दान, व्रत, यश, कीर्ति, वाणी, सत्य, धर्म, उपवास, सम्पूर्ण तीर्थों में भ्रमण, स्नान, आपके सिवा अन्य देवता का पूजन, देव प्रतिमाओं का दर्शन, सात द्वीपों की परिक्रमा, समस्त समुद्रों में स्नान, सभी स्वर्गों के दर्शन, ब्रह्मपद, रुद्रपद, विष्णुपद तथा परमपद– ये तथा और भी जो अनिर्वचनीय, वांछनीय पद हैं, वे सब-के-सब आपकी भक्ति के कलांश की सोलहवीं कला के भी बराबर नहीं हैं।

महादेव जी का यह वचन सुनकर भगवान श्रीकृष्ण हँसे और उन योगिगुरु महादेव जी से यह सर्वसुखदायक सत्य वचन बोले–
श्रीभगवान ने कहा – सर्वज्ञों में श्रेष्ठ सर्वेश्वर शिव! तुम पूरे सौ करोड़ कल्पों तक निरन्तर दिन-रात मेरी सेवा करो। सुरेश्वर! तुम तपस्वीजनों, सिद्धों, योगियों, ज्ञानियों, वैष्णवों तथा देवताओं में सबसे श्रेष्ठ हो।


शम्भो! तुम अमरत्व लाभ करो और महान मत्युंजय हो जाओ। मेरे वर से तुम्हें सब प्रकार की सिद्धियाँ, वेदों का ज्ञान और सर्वज्ञता प्राप्त होगी। वत्स! तुम लीलापूर्वक असंख्य ब्रह्माओं का पतन देखोगे। शिव! आज से तुम ज्ञान, तेज, अवस्था, पराक्रम, यश और तेज में मेरे समान हो जाओ। तुम मेरे लिये प्राणों से भी अधिक प्रिय हो। तुमसे बढ़कर मेरा कोई प्रिय भक्त नहीं है: 


त्वत्परो नास्ति मे प्रेयांस्त्वं मदीयात्मनः परः ।
ये त्वां निन्दन्ति पापिष्ठा ज्ञानहीना विचेतनाः ।
पच्यन्ते कालसूत्रेण यावच्चन्द्रदिवाकरौ ।
शिव! तुमसे बढ़कर अत्यन्त प्रिय मेरे लिये दूसरा नहीं है। तुम मेरी आत्मा से बढ़कर हो। जो पापिष्ठ, अज्ञानी और चेतनाहीन मनुष्य तुम्हारी निन्दा करते हैं, वे तब तक कालसूत्र नरक में पकाये जाते हैं, जब तक चन्द्रमा और सूर्य की सत्ता रहती है।


ये हुई मुक्ति, मानव की जगत के प्रपंच से मुक्ति किंतु मोक्ष नहीं। मोक्ष का अर्थ है सभी प्रकार के भावों और संस्कारों से मुक्त होकर ब्रह्म की निराकार ऊर्जा में विलीन हो जाना। कुछ उसी भांति जैसे समुद्र से एक बूंद अलग हुई। वाष्प बनी फिर वर्षा के रूप में धरती पर आई। फिर वह या तो तालाब में जायेगी या धरती में समायेगी या पेड़ पौधों की जड़ में समाकर फूल पत्ती या फल में चली जायेगी। अब बूंद कहां से आई और कहां गई। वह फल किसी ने खाया फिर उस बूंद को उत्सर्जित कर त्यागा फिर वह बूंद कहीं समा गई। उस बूंद का चक्र समुद्र में ना जाकर कहीं और चलता रहा। लेकिन यदि वह समुद्र में मिल गई तो उसका अस्तित्व ही समुद्र का हो। उसका स्वयं का कोई अस्तित्व न रहा। बस इसी भांति आप समुद्र को ब्रह्म का निराकार रूप समझें और पानी बूंद आप। जो पानी के गुण लेकर विभिन्न रूपों में भटकी। बस ऐसे ही हम और आप।
क्योंकि यह मुक्ति हमारे पुण्य क्षीण होने के कारण फिर हमें जगत में भेज सकती हैं। जैसे जल की बूंद जल का स्वभाव भूलकर और रूप बन गई। बस इसी भांति हम जगत में अपने मूल रूप को भूल कर भटक रहें हैं। 

 

"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ़ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/2018/04/blog-post_45.html

 

 

3 comments:

  1. धन्यवाद सर्। अन्य लेख भी पढ कर विचार व्यक्त करें।

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  2. Bahut sunder.. .. Yeh padhne ko goole par bhi nhi hai.. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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