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Friday, September 11, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 9

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 9

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/

Bhakt Pallavi: प्रभु चरणों में समर्पित एक सूक्ष्म  रचना

साकार हो तुम, निराकार हो तुम ,

मेरे तो जीवन का आधार हो तुम| महादेव हो तुम या हो आदि शक्ति,

मेरा तो पूरा परिवार हो तुम॥

तुम्ही से है खिलना ,

तुम्ही में है मिलना

किस बात का फिर अभिमान करना॥

तुम्हारे ही नामों की माला  बनाकर

हृदय में अपने तुमको बसा कर

फिर कर्म बंधन से क्यों कर उलझना॥

परस्पर रहे प्रीत इतनी  दो शक्ति

तुम्हारी ही भक्ति से है मेरी मुक्ति

 किसी और जंजाल में फिर क्यों फंसना॥ 🙏🏻

Bhakt Lokeshanand Swami: आज भगवान वाल्मीकिजी के पास आए हैं, पूछते हैं, गुरुजी मैं कहाँ रहूँ?

वाल्मीकिजी कहते हैं, आप पूछते हैं "मैं कहाँ रहूँ?" तो यह तो बताइये कि आप कहाँ नहीं रहते?

देखें, आध्यात्मिक दृष्टि से तो परमात्मा सर्वव्यापक है, माने वह निराकार होकर सब जगह है। जैसे वायु सब जगह है, पर जबतक चले न तबतक अनुभव में नहीं आती। वह मालूम पड़े इसी के लिए पंखा है।

यों उस निराकार को एक नामरूप देकर, साकार बनाकर अंत:करण में उतारे बिना, वह परमात्मा अनुभव में नहीं आता।

वाल्मीकिजी कहते हैं कि इस प्रकार आप सर्वव्यापक होते हुए भी, उस भक्त के अंतःकरण में रहते हैं, जिसने आपको नामरूप की डोरी से अपने भीतर उतार लिया।

इस प्रकार व्यवहारिक दृष्टि से तो आप एक ही जगह ठहर सकते हैं, आप भक्तों के हृदय में ही निवास करिए, माने आप चित्रकूट में निवास करिए।

ध्यान दें, भगवान चित्रकूट में ठहरते हैं। यदि आप अपना हृदय चित्रकूट बना लें, तो भगवान अभी इसमें ठहर जाएँ।

देखें कूट माने स्थित होना। रामायण में दो ही कूट हैं, चित्रकूट और त्रिकूट। त्रिकूट में रावण रहता है, चित्रकूट में रामजी रहते हैं। और आपका हृदय जबतक चित्रकूट नहीं बन जाता, त्रिकूट ही है।

त्रिकूट माने ऐसा हृदय जहाँ तीन, सत रज तम, स्थूल सुक्ष्म कारण, जागृत स्वप्न सुषुप्ति, काम क्रोध लोभ स्थित हों, वहाँ मोह रूपी रावण की सत्ता है।

और जिस चित् में, भगवान का एक चित्र, स्थित हो गया, एक स्वरूप उतर आया, कूटस्थ हो गया, वह चित् ही चित्रकूट है। तब तो-

"जिगर में छिपी है तस्वीर ए यार।

जब जरा नजरें झुकाई दीदार हो गया॥"

अब आप भी लोकेशानन्द की बात मान कर अपने चित् को चित्रकूट बनाने के लिए, नाम के जप और रूप के चिंतन में लगें, और भगवान को ठहरा लें।

Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

*सर्वतीर्थेषु वा स्नानं सर्वभूतेषु चार्जवम् ।*⚜️

*उभे त्वेते समे स्यातामार्जवं वा विशिष्यते।।*⚜️

*आत्मीय व्यवहार एवं मधुर वाचन* किसी पवित्र नदी मे स्नान से ज्यादा मूल्यवान है।

आत्मीयता सबसे महत्वपूर्ण है।

*Cordial behaviour and polite talking* is much more  valuable then taking a bath in holy river. Hence polite behaviour matters more then anything else.

*शुभोदयम्! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

शुभ कामनाएँ ।🌹🙏🕉

Bhakt Lokeshanand Swami: पुराने समय की बात है, एक शिक्षार्थी को अपनी शिक्षा पूरी होने पर, गुरूजी के दरवाजे से, अपने घर जाना था।

अकेले जाना था, रेल का समय रात दो बजे का था और रेलवे स्टेशन वहाँ से दस मील दूर था। तो वह लड़का अंधेरा होते ही निकला। जंगल का मामला था, सुनसान रास्ता था और अंधेरा भी था, तो गुरूजी ने उसे अपनी पुरानी लालटेन पकड़ा कर विदा किया।

वह लड़का कुछ ही कदम चला होगा कि वापस लौट आया, और बोला- गुरूजी! आप अपनी लालटेन अपने पास ही रख लें, क्योंकि वैसे भी इसका कोई लाभ तो है नहीं। लम्बा रास्ता है। और लालटेन की रोशनी दो ही कदम तक पड़ती है। इतने से प्रकाश से, इतना लम्बा रास्ता कैसे तय होगा?

गुरूजी ने मुस्कुराते हुए पूछा- तुम एक बार में कितने कदम चलते हो?

लड़का- एक बार में तो एक कदम ही चलना होता है, गुरूजी।

गुरूजी बोले- तब परेशानी क्या है? यह दो कदम रास्ता दिखाती है, तुम एक कदम चलते हो। यह फिर दो कदम दिखा देगी, तुम एक कदम फिर चल देना। योंही दो कदम आगे देखते देखते, एक एक कदम चलते रहना, रास्ता तय हो जाएगा।

लड़का बात समझ गया और इसी प्रकार लालटेन का उपयोग कर अपनी मंजिल पर पहुँच गया।

लोकेशानन्द कहता है कि हम भी उस लड़के जैसे ही हैं। हम भी घर से निकलने से पहले ही मंजिल तक का पूरा रास्ता देख लेना चाहते हैं। हम कमियाँ निकालते हैं, बहस करते हैं, सैंकड़ों सवाल पूछते हैं, हजार शंकाएँ उठाते हैं, लाख इंतजाम करना चाहते हैं, पर चलते एक कदम भी नहीं।

ध्यान दें, अपने कदम की लम्बाई पर ध्यान न देकर, रास्ते की लम्बाई का चिंतन करने वाला, कभी मंजिल नहीं पाता।

Mrs Sadhna H Mishra: जय श्री कृष्ण, ज्ञान रूपी अद्वितीय अमृत को धारण करने के लिए विशेष रूप से ,  ध्यान, साधना की भूमिका परम आवश्यक है। अष्टांग योग साधना के  द्वारा अपने आप को एक योग्य पात्र के रूप में ढाल कर जीवन  यापन करना अति आवश्यक है। संत सानिध्य भी दिशा निर्देश के लिए होना ही चाहिए। जब व्यक्ति ईश्वर की कृपा से पात्रता अर्जित कर लेता है तब उसे  ईश्वर अनुकम्पा से सदगुरू से मिलन हो जाता है। उसके उपरांत ही उनके कृपा से ज्ञान के द्वारा अज्ञान की निवृति होती है, तब हमें अपने स्वरूप का बोध होता है।

Mrs Sadhna H Mishra: इसलिए साधना की अपनी भूमिका है।

Mrs Sadhna H Mishra: जो नितांत आवश्यक है।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...

सप्त सागर पर्यन्त तीर्थ स्नानादिकं फलम्।

गुरोरङ्घ्रिपयोबिन्दुसहस्रांशे न दुर्लभम्॥७८॥

हरौ रुष्टे गुरुस्त्राता गुरौ रुष्टे न कश्चन।

तस्मात्सर्वप्रयत्नेन श्रीगुरुं शरणं व्रजेत्॥७९॥


अर्थ: गुरुदेव के चरण प्रक्षालित जल के एक बिंदु का सहस्त्राशं से (एक हजारवां भाग से) सप्तसागर पर्यंत तीर्थों में स्नान का फल मिल जाता है।

यदि भगवान शंकर रुष्ट हो जाए,  तो गुरुदेव रक्षा कर लेते हैं, किंतु यदि गुरु रुष्ट हो जाए तो, कोई भी रक्षा नहीं कर सकता, इसीलिए सब प्रकार से प्रयत्न पूर्वक गुरुदेव की शरण ग्रहण करने कर लेना चाहिए।।

व्याख्या: तीर्थों में स्नान दानादि का बड़ा महत्व पुराणों में वर्णित है, पर संपन्न वर्ग के लोग ही तीर्थ यात्रा कर सकते हैं और दानादि क्रिया से पुण्य अर्जन कर सकते हैं। किंतु चरणोंदक की उपलब्धि सहज है। यह बिंदु के हजारवे भाग से सप्तसागर पर्यंत तीर्थों में स्नान का फल मिल जाता है, तो फिर व्यर्थ तीर्थ यात्रा के व्यय का वहन क्यों किया जाए।

साधारण निर्धन लोग भी इस तीर्थ का लाभ ले सकते हैं, जो तिरादे, उसे तीर्थ कहते हैं जो भवसागर से पार उतारने में नाव का काम करें। उसे तीर्थ कहते हैं।।

शिव और गुरु दोनों एक ही है, केवल साधक की श्रद्धा को दृढ़ करने के लिये ही शिव और गुरु की भिन्नता बतलाई गयी है। शिव और गुरु की भिन्नता का भाव शिष्यों के लिये भी हानिकारक ही माना गया है। यहाँ शिष्य के श्रद्धा भक्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि के लिये, यह उदहारण दिया गया है। यहाँ श्री राम चरित मानस के एक उदहारण से विषय को समुचित रूप से समझा जा सकता है- " एक शिष्य ने गुरु का अपमान कर दिया था तो भगवान शंकर उस पर क्रोधित हो उठे और उसका संहार करने को उघत हुए, तब उस शिष्य के गुरुदेव ने ही, दयालु होकर भगवान शंकर की स्तुति की, तब भगवान शिव प्रसन्न हुए और शिष्य का अपराध क्षमा किया। अतः प्रयत्न पूर्वक गुरु शरणागति ही शिष्य का उद्धार कर सकती है।।

Swami Pranav Anshuman Jee: सभी आदरणीय जन श्रीराम कथा प्रेमी कवितावली बालकाण्ड का आनंद लें ।जय श्रीराम ।🙏🙏

Bhakt Anjana Dixit Mishra: अपने कदम की लंबाई पर ध्यान ना देकर, रास्ते की लंबाई का चिंतन करने वाला, कभी मंजिल नहीं पाता।।👌

नमन लोकेशानंद जी 🙏🙏

अति सुंदर स्वामी जी। आपकी प्रस्तुति आनंददायक है आप वीर रस के अच्छे कवि भी हो सकते हैं। अब आप का प्रवचन पूरा सुनना ही पड़ेगा।

जय राम जी की।

😃😀😃😀

घोर आश्चर्य।

परसों स्वप्न में या गहन ध्यान मुझे कुछ पता नहीं स्वामी नारायण देव तीर्थ जी महाराज आए थे मुझे उन्होंने सफेद बरफी का प्रसाद भी दिया मैंने ग्रहण भी किया था खा भी लिया लेकिन मैं उनको प्रणाम कर रहा था तो वह गद्दा बिछे तख्त पर बैठे थे। मैंने में उनको प्रणाम किया तखत पर हाथ और सर टेक कर। वह बोले थोड़ा और झुको मैं थोड़ा और झुका तब उन्होंने परसाद दिया था और उन्होंने यह भी कहा था इस समय सृष्टि अभी कुपित है और कृपाचार्य जैसे संत भी धरती पर आने वाले हैं।

यह स्वप्न तो बहुत लंबा है मैंने कम लिखा है।

फिर मैंने अपने पूजा के रूम में जाकर अपनी परंपरा के संतो को देखा तब फोटो से मैंने पहचाना अरे यह तो नारायण देव तीर्थ महाराज। आदि गुरु नारायण देव नहीं। उनके जूनियर जिन्होंने इस किताब में प्राक्कथन लिखा है।

जय गुरुदेव जय महाकाली।

चश्मा लगाए हुए गोरा रंग।

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 जी मैंने कल आपसे साधक/शिष्य के संबंध में प्रश्न किया था। आशा करता हूं ग्रुप के सदस्य अपने विचार दे।

क्या प्रश्न फिर से बताएंगे।

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 शिष्य/साधक के गुरु के प्रति क्या २ कर्तव्य होते हैै। गुरु आश्रम के प्रति । साधक/शिष्य को कैसा होना चाहिए।

प्रभु जी स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज ने बहुत विस्तार से इसको बताया है और शायद साधन संकेत में यह दिया हुआ है।

मुंबई आश्रम में इसके प्रश्न उत्तर को बहुत बड़ा जिराक्स कराकर लगाया है।

मैं गुरु नहीं इसलिए इस संबंध में बोलना शायद सीमा को लांघना होगा लेकिन आपने पूछा है तो मैं अपनी अल्प बुद्धि से कुछ बताने का प्रयास करता हूं।

शिष्य ऐसा चाहिए गुरु को सब कुछ दे।

गुरु ऐसा चाहिए शिष्य कुछ न ले।।

यहां पर शिष्य को चाहिए क्यों गुरु के भौतिक रूप में जो कुछ भी आवश्यकता है उसको धीरे धीरे पूरा करता रहे लेकिन गुरु से पूछ कर।

गुरु का भी कर्तव्य है कि वह लालच ना दिखाएं जैसा कि आजकल के गुरु करते हैं इतनी दक्षिणा दो तब तुम्हारा काम होगा।

यह हर्ष का विषय है कि हमारी परंपरा में अधिकतर गुरु महाराज लालची नहीं है वह मात्र जो आवश्यक होता है उसी को स्वीकार करते हैं बाकी मना कर देते हैं।

गुरु पूर्णिमा के दिन भी जो मिला उसको एक पेटी में बिना देखे डालते जाते हैं।

हमारे गुरु महाराज ब्रह्मलीन नित बोधानंद तीर्थ जी महाराज जब वर्ष उन्नीस सौ 97 या 98 के आसपास अमलनेर चले गए थे तब अमलनेर में कुछ नहीं था। तब एक अग्रवाल साहब जो गुजरात के थे वह लगभग ₹100000 लेकर वहां पहुंचे थे और उन्होंने महाराज जी के सामने रख दिए। हुआ यह था कि महाराज जी की कृपा से उन पर गिरी फालिज पूरी ठीक हो गई थी और वह फिर से चलने लगे थे। तब महाराज जी ने कहा आप इतना दान क्यों दे रहे हैं आपकी बेटी है उसका विवाह करना है। आपको सांसारिक कर्तव्य है उनको पूरा करना है। तब अग्रवाल साहब रोने लगे और कहने लगे कि मेरी बेटियों के विवाह का इंतजाम हो गया है और आप कृपया इसे स्वीकार करें। तब महाराज जी ने बोला ठीक है तब इससे एक कमरे का निर्माण करा दो और फिर उस धनराशि से आश्रम में कुछ निर्माण हुआ था।

यह दोहा उसी को चरितार्थ करता है।

उसके कुछ दिन बाद हमारे मित्र अति उत्साही श्री जनक कवि रत्न आश्रम में गए वहां पर बिजली बहुत चली जाती थी तो जनक जी एक साधक जो औरंगाबाद जा रहे थे उनसे बात करके केरोसिन से चलने वाला छोटा डीजी सेट खरीद लाए। जो उस वक्त करीबन 30000 के आसपास था।

महाराज जी ने पूछा भाई यह कौन लाया है तो जनक जी बोले मैं लाया हूं। तब महाराज जी ने उनकी जो चंपी करी वह शायद वह जिंदगी भर नहीं भूलेंगे महाराज जी ने बोला आश्रम साधन के लिए है सुविधाओं के लिए नहीं आप जाइए और यह वापस करिए।

तमाम विनती मांगने के बाद महाराज जी ने जनक जी को माफ कर दिया।

मजे की बात यह है यह घटना है मेरे सामने हुईं हैं।

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 इस प्रकार की घटना मेरे जीवन में बहुत बार घटित हुई एक बार में स्वयं एक मलमल का शाल लेकर गुरु महाराज के पास गया था। उस समय मेरी आय बहुत कम होने के कारण गुरुदेव बहुत नाराज़ हुए और आज्ञा दी के सदैव पूछ कर ही आवश्यकता का सामान लाओगे। और एक बार रसमलाई लेकर गया था तब भी बहुत चंपी हुई थी।

परंतु मैंने काफी साधक को देखा है वयसन में उलझे हुए। काफी साधक सिगरेट/ गुटखा /पान इस प्रकार के वयसन में फसे रहते हैं। उनके विषय में कुछ बताएं।

यहां तक में चाय पीना इसे भी वयसन की लाइन में रखता हूं

Hb 96 A A Dwivedi: बहुत ही बढ़िया चर्चा चल रही है इसे परम्परा वाले समुह में करना चाहिए कारण है कि बहुत सारे लोग मर्म समझ नहीं पा रहे होंगे बाकी जिसे इससे आनन्द मिल रहा है वो भी ईश्वर की कृपा है🙏👏😊🌹

यह हुई दान की बात।

शिवोम तीर्थ जी महाराज इससे भी बढ़कर थे।

एक बार मुंबई आश्रम में कुछ उत्साही दानदाता मौजूद थे मुंबई आश्रम में कुछ नहीं था उस समय उसके निर्माण के लिए उस समय के ब्रह्मचारी पंकज प्रकाश जो अभी स्वामी शंकर चेतन हैं। आश्रम के निर्माण हेतु मिस्त्री का काम करते थे और हम सब लोग मजदूरी का और महाराज जी सुपरवाइजर का। आपको यह मालूम हो शिवओम तीर्थ जी महाराज पहले भाखड़ा नांगल डैम के निर्माण में कार्यरत थे।

यह उत्साही दानदाता ने पूछा महाराज जी आपका सबसे प्रिय शिष्य कौन है। महाराज जी ने उनकी आशाओं पर कुठाराघात करते हुए बोला वह शिष्य आज से 27 साल पहले हमसे दीक्षा लेने आया था। तो लोगों ने पूछा अच्छा वह आपसे मिलता है क्या। महाराज जी बोले नहीं उसके बाद वह कभी मिलने नहीं आया। लेकिन वह रोज नियत समय पर साधन करता है और मुझसे वह ध्यान में आकर मिलता रहता है।

यहां पर गुरु महाराज मात्र शिष्य का कल्याण चाहते हैं तुम साधन करो बाकी कुछ करो न करो।

यहां पर एक और प्रसंग आता है स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज का। जो महाराज जी ने पुस्तकों मे लिखा है।

एक बार आश्रम में अन्न की कमी पड़ गई समस्या यह थी कि साधकों को भोजन कैसे कराया जाए तो किसी ने स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज से कहा कि आप किसी विशेष तिथि पर गुरु पूजन कराइए तो आश्रम की कुछ आमदनी हो जाएगी इसके बाद स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज नाराज हो गए कहने लगे आश्रम शिव का है शिव ही चलाता है मैं क्यों इस तरह का कार्यक्रम करूं वह भी धन के लिए।

पता यह चला कि दोपहर को एक गांव वाला 1 बोरी गेहूं लेकर आ गया कहने लगा हमारे सेठ की मृत्यु हो गई और उसके पूर्व उन्होंने कहा कि मेरी मृत्यु के बाद एक बोरी गेहूं आश्रम में पहुंचा देना।

इन महान संतों की परंपरा है अपनी।

अब दूसरी बात आती है कि शिष्य के कर्तव्य क्या है वह आश्रम में कैसे रहे।

सबसे पहली बात आश्रम स्वयं सेवा से चलता है। मतलब अपना काम खुद करना पड़ता है जैसे कि अपना बिस्तर खुद लगाना सुबह उठकर उसको बराबर तह करके अपनी जगह पर रखना भोजन करने के पश्चात अपने बर्तन खुद साफ करके उनको पोछ कर अपनी जगह पर रखना इसके अलावा आश्रम में बकवास न करना क्योंकि आश्रम रिश्तेदारी बढ़ाने के लिए नहीं होता है जान पहचान के लिए नहीं होता है आश्रम मात्र साधन का होता है तो साधक का कर्तव्य है और उसका लक्ष्य एक ही होना चाहिए कि वह साधन करें नहीं तो एक आदमी बैठ कर स्वाध्याय करें।

नहीं तो आश्रम की साफ सफाई पर ध्यान दें अपने गुरु को कोई काम न करने दे।

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: आकाश वृती आश्रम में मैंने स्वयं अनेक घटना देखी है जो गुरु परंपरा के सामर्थ्य का अनुपम उदाहरण है।

Hb 96 A A Dwivedi: तैलंग स्वामी जी के पास एक व्यक्ति कई वर्षों से दर्शन के लिए आता था और दिक्षा लेने के लिए विनती करता था तैलंग स्वामी जी ने कहा कि कुछ वर्षों तक नाम जप तथा पठन पाठन का अनुभव लो फिर आना ऐसा करते हुए कई वर्ष बीत गए और फिर उस व्यक्ति को उन्होंने कहा कि अब तुम दिक्षा लेने के लायक हो कल तुमको दिक्षा देते हैं और फिर उसे दिक्षा देने के बाद कहा कि कुछ दिन मछली का सेवन करना कारण आपका शरीर थोड़ा कमजोर है शक्ति को सम्हालने के लिए तब उस व्यक्ति ने पूछा महाराज जी मछली खाने से तो अपवित्र हो जाऊंगा तो तैलंग स्वामी जी हंस कर उसे एक परमात्मा के साकार रूप के सामने ले गए और वहां पर पेशाब करने लगे यह देखकर वह व्यक्ति घबड़ाए और बाद में पुछा महाराज जी यह क्या है तो तैलंग स्वामी जी ने कहा कि सर्वत्र व्याप्त एकमात्र ब्रह्म ही है और जबतक चित्त में अशुद्धि है तब तक वाहिक शुद्धि की जरूरत होती है और जिस प्रकार यह शरीर हमेशा मल मुत्र से भरा हुआ है तो भी हम स्नान आदि जो करते है वो भी चित्त की अशुद्धता के कारण है।।

शरीर में रहकर किया कोई भी कार्य आत्मा को प्रभावित नहीं कर सकता है जो हमारा निज रुप है और जबतक हम शुद्धि और अशुद्धि में अंतर देखते हैं तबतक चित्त की दशा में सुधार की जरूरत होती है।।

😊🌹👏🙏

इसके अतिरिक्त आश्रम में धीरे बोलना किसी बाग से फल या फूल नहीं तोड़ना। आश्रम के नियमों का पालन करना निश्चित समय पर गुरु गीता आरती या अन्य धार्मिक गतिविधियों में भाग लेना।

बहुत से लोग दान दिखाकर करते हैं। ताकि दूसरों पर रोब दिखा सकें यह अहंकार है अतः दान को किसी लिफाफे में या छुपा कर देना चाहिए।

यदि आश्रम निर्माण हेतु धन दे रहे हैं तो आप चेक से दें और रसीद भी ले लें।

Hb 96 A A Dwivedi: भगवान शिव के सारे आश्रम है और वो ही उन्हें चला रहे हैं और कोई साधक अगर यह समझता है कि उसके दान या सेवा के कारण वो चल रहा है तो अज्ञानता है

स्वामी विष्णु तीर्थ जी के द्वारा कहे गए वाक्य है🙏👏🌹😊

यार यह तुम वही बात कर रहे हो रवे का हलवा बना रहे हैं और तुम उसमें अमूल्य मिष्ठान डाल रहे हो।

सर्वत्र ब्रह्म सर्वस्व ब्रह्म इस स्थिति में आने के लिए साधन बहुत परिपक्व होना चाहिए।

हम सब लोग बहुत निम्न कोटि के साधक हैं। यह उदाहरण समझकर गलत अर्थ लगा लेंगे।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Hb 96 A A Dwivedi: तैलंग स्वामी जी की पुस्तक में उनके द्वारा नियुक्त शिष्य द्वारा वर्णित घटना को लिखा है इसमें हमारा रनच मात्र भी बुद्धि या विवेक नहीं है कापी पेस्ट है😊🌹👏🙏

अब प्रश्न है बहुत सारे साधक नशा कर रहे हैं पान बीड़ी सिगरेट से जूझ रहे हैं।

नशा करना तैलंग स्वामी के समान कोई व्यक्ति है तो अलग बात है लेकिन हम लोग बहुत ही छुद्र मनुष्य हैं।

यदि हम नर्सरी केजी के बच्चों को पोस्ट ग्रेजुएट शब्द बताएंगे तो वे उसमें एबीसीडी ढूंढ लेंगे।

हमारी हालत नर्सरी केजी के बच्चों से ऊपर नहीं है।

एक बार अघोर पंथ के पुनर स्थापक संत कीनाराम और तैलंग स्वामी महाराज रात भर शराब पीते रहे और चिलम पीते हैं लेकिन सुबह जब उठे तो बिल्कुल नॉर्मल थे उनके व्यवहार से लग नहीं रहा था कि उन्होंने नशा किया है।

हम में से कौन ऐसा है।

संत लीला को हम नहीं समझ सकते।

Hb 96 A A Dwivedi: पेट आगे निकलना यह भी तैलंग स्वामी जी की निशानी है।

बाबा गोरखनाथ जी इसे व्यसन मानते हैं

जस मति तस गति

चित्त में बज रहा था तो लिख दिया जय श्री राम👏🙏🌹😊

तैलंग स्वामी दिक्षा नहीं देते थे क्योंकि वे कहते थे शिष्य गुरु के अनुसार नहीं चलते हैं।‌उन्होंने मात्र एक माताजी को दिक्षा दी थी और उसके बाद वह कोई भी शिष्य ना देख सके और माताजी ने भी किसी को दीक्षा नहीं ली।

मेरा भी बहुत पेट निकला हुआ है लेकिन मैं तैलंग स्वामी के पैरों की धूल धूल उसके नीचे वाली धूल भी नहीं है।

Hb 96 A A Dwivedi: यह पुस्तक का वर्णन है महाराज जी🙏🌹😊👏

चित्त को बजाते रहो।

गुरु गीत गाते रहो।।

कभी न कभी किनारा मिलेगा।

अपनी नौका यूंहीं चलाते रहो।।

😃😃😃

महाराज योगेन्द्र विज्ञानी जी के भी गुरु थे तैलंग स्वामी जी👏😊🌹🙏

अपने चित्त को सदा बजाते रहो।

गुरु प्रेम के गीत गाते रहो।।

कभी न कभी किनारा मिलेगा।

अपनी नौका यूंहीं चलाते रहो।।

😃😃😃

Hb 96 A A Dwivedi: यह बात घनघोर आश्चर्य में डाल दिया था महाराज लेकिन फिर वाराणसी आश्रम में उनकी समाधि देखा तब पता चला इस बात का वर्णन पुनुरदय में भी है कि स्वामी योगेन्द्र विज्ञानी महाराजजी को बंगाल जाने के लिए उन्होंने हि कहा था।।

तैलंग स्वामी जी दिक्षा जल्दी नहीं देते थे कुल तीन लोगों के बारे में उल्लेख है और इनके वाराणसी आश्रम में साक्षात दर्शन किए जा सकते हैं🌹😊🙏👏

Hb 96 A A Dwivedi: 😃😃महाराज जी तैलंग स्वामी जी की समाधि के दर्शन लाभ के लिए अनुमति हो तो फोटो डाल दें बहुत ही शक्तिशाली है सिर्फ फोटो से क्रिया हो सकती है अगर उनका आशीर्वाद है👏🙏😊🌹

अरे डालो ना यार।

🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻

Hb 96 A A Dwivedi: आपको मां काली का आशीर्वाद प्राप्त है आप सरल हृदय है हमारी तरह कपटि नहीं है और सरल हृदय में ही वो निवास करते हैं भगवन्😊🌹🙏👏

मित्र यह तो सत्य है कि मेरी अशरीरी गुरु मां काली है शरीरी गुरु स्वामी नित्य बोधानंद तीर्थ जी महाराज है और शिवओम तीर्थ जी महाराज हैं।

यह इस नश्वर शरीर का अहोभाग्य ही कहा जाएगा।

प्रभु कृपा गुरु कृपा जो भी कह लो।

जय हो भगवन्।

Hb 96 A A Dwivedi: यह शिवलिंग बारह सौ किलो वजन के आस पास है और नौ फुट ज़मीं के भीतर है इसे गंगा जी से अपने कन्धों पर उठाकर स्थापित किया था।।

यह शिवलिंग शिवरात्रि में दुसरे रंग का हो जाता है और यह बातों पर कोई शक न करें यह सब ईश्वर की लीला है

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी हमने इस समाधि को धड़कते हुए देखा है यह बात हमारे गुरु महाराज जी सुन रहे हैं कोई भी ग़लत बात नहीं कहेंगे यह अनुभव उनके आश्रम में हुआ जब दो दिन लगातार वहां ध्यान साधना कर रहे थे और भी बहुत कुछ अनुभव हुआ तब पता चला कि तैलंग स्वामी जी का हमारी परम्परा के साथ क्या सम्बन्ध है🌹😊👏🙏

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 इस सत्संग से मैंने एक बिंदु यह निकला साधक का परम कर्तव्य यह होना चाहिए वह अपने गुरु के चिंतन में स्थान प्राप्त करने के लिए सदैव प्रयास रत रहे।

💐💐💐🙏🏻🙏🏻

Ba A K Agrawal: आपका बहुत-बहुत धन्यवाद विपुल जी

🙏🙏

Ba A K Agrawal: विपुल जी

मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि गुरु शिष्य की परंपरा एवं आवश्यकता पर और भी चर्चा होनी चाहिए हमारे देश और समाज दोनों को ही इसकी आवश्यकता है।

🙏🙏

मित्र इस बात का प्रयास जारी रहेगा।

🙏🏻🙏🏻

Swami Somendratirthji: आज गुरुवार का दिन है सबको बहुत-बहुत आशीर्वाद

हरि ओम जय जय गुरुदेव श्री सद्गुरु नाथ महाराज की जय

Swami Somendratirthji: हकीकत में आज गुरुवार का दिन नहीं है बुधवार है और आप सब लोग कितने सावधान हो वह देखना चाहता थे, ध्यान समाधि हमें कर्मों में कुशलता प्रदान करती है बेहोशी नहीं

महाराज जी यह बताइए वह दिन कौन सा दिन है जो गुरु का नहीं है।

अपने लिए प्रत्येक दिन गुरुवार है।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

यदि आपने बृस्पतिवार लिखा होता तब सोचने की आवश्यकता थी।

Swami Somendratirthji: बहुत सुंदर विपुल भाई हर दिन गुरु का दिन होता है वाह वाह

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 जब मन करता निष्काम कर्म और ईश्वर के पास कुछ ना हो देने को तब मिलते है सदगुरु देने को वह ब्रह्म विचार।

ब्रह्म विचार को पाकर वह स्वयं ब्रह्म बन जाता है पर रहता सदैव शिष्य ही ,सदगुरु समक्ष मस्तक झुकाता हैं।।

Hb 96 A A Dwivedi: साधारण मनुष्य के जीवन में अनुशासन कि कमी अध्यात्म में उन्नति के लिए बाधा उत्पन्न करती है और इसलिए सशरीर गुरु के चरणों में तीव्र गति प्रापत होती है और जो भी शंका विकार होते हैं वो निरमुल हों जाते हैं।।

बगैर सशरीर गुरु के साधक अभिमान के वशीभूत हो सकता है और प्राया ऐसा ही होता है और जो सदगुरु को प्राप्त करते हैं वो लोग निश्चित रूप से मनुष्य योनि के नीचे नहीं जा सकते हैं इसके पीछे बहुत ही बड़ा विज्ञान छुपा है।।

सशरीर दिक्षा लेने पर शिष्य के रोगो तथा संस्कार क्षय का दायित्व गुरु के ऊपर आ जाता है और सदगुरु के पद पर जो आसीन हैं वो इतनी शक्ति अपनी परम्परा से प्राप्त कर चुके होते हैं कि हदय चक्र तक साधक का सिद्ध कर सकते हैं बगैर किसी भी प्रयास के।।

शिष्य के प्रति लगाव होने पर उसके भौतिक जीवन के सारे कष्ट सद्गुरु पल में दुर कर सकते हैं और कर रहे हैं।।

गुरु के जीवन का एकमात्र लक्ष्य शिष्य का आध्यात्मिक उत्थान हि होता है और वो कभी भी किसी भी प्रकार का भौतिक सुख नहीं लेता है।।

सदगुरु को शिष्य के भीतर संचित सभी संस्कारों का पता होता है और भविष्य में होने वाली सभी घटनाओं को वो जान सकते हैं अगर शिष्य के ऊपर कृपा करना चाहे।।

यहां तक कि बड़ी से बड़ी बीमारी को अपने शरीर में लेकर तपोबल से उसे समाप्त कर देते हैं या फिर अपने अन्त समय में उसे धारण कर भस्म कर देते हैं।।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी जैसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं और जो लोग ईश्वर को सीधे रुप से गुरु मानकर चलते हैं तो उन्हें बहुत ही संयम और अनुशासन का पालन करना चाहिए नहीं तो जरा सी गलती होने पर तकलीफ़ हो सकती है।।

सनसार में गुरु मिलने के समान दुसरी कोई घटना नहीं है और जो लोग सद्गुरु के चरणों का ध्यान करते हुए यात्रा करते हैं उनके लिए भवसागर सिर्फ कुछ जन्म का समय मात्र रह जाता है।।

भगवान शिव ने मां पार्वती जी को कहा है कि सद्गुरु धरती पर मेरा हि प्रतिक है और जो सदगुरु के प्रति समर्पण भाव से साधना करेगा उसकी मुक्ति कि जिम्मेदारी मेरे ऊपर है


गुरु मेरी पुजा गुरु गोविंद

गुरु मेरा परबरहम गुरु भगवंत

गुरु के चरणों में मेरे सारे तीर्थ

गुरु के चरणों में जगत का ज्ञान


जय गुरुदेव🌹👏😊🙏

अनुशासन का अणुशासन।

यह देता है स्व शासन।।

स्वशासन से जग शासन।

बन जाता तब सुशासन।।

Bhakt Sarvesh Rajput: विपुल सर और अन्य सदस्य को मेरा सादर नमस्कार ग्रुप में add करने के लिए धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏🙏

"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 
 

 जय गुरूदेव । जय महाकाली



आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 8

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 8

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
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एक अन्य सन्यासी द्वारा मेरी चर्चा।

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 शायद यह भी वह ना समझ सके परंतु संतो को सम्मान देना हमारा कर्तव्य है । उनको मेरा प्रणाम है🙏

यह सन्यासी बहुत गंभीर रहते हैं और ग्रुप में बिल्कुल बोलते ही नहीं हैं यदा-कदा मुझसे बात कर लेते हैं बस।

कई बार ग्रुप छोड़ चुके हैं लेकिन मेरे निवेदन पर मैं उनको बाद में जोड़ लेता हूं।

माता जी प्रणाम आपने ग्रुप छोड़ क्यों दिया था।

🙇♂️🙇♂️🙇♂️

Hb 96 A A Dwivedi: समुह में मौजूद सभी संतों के श्री चरणों में कोटि-कोटि नमन

आप हमारे अवगुणों के लिए क्षमा करें हम अज्ञानी लोग हैं और सनसार में भटक रहे हैं आप लोग आशिर्वाद दे🙏🙏🙏👏

स्वामी जी प्रणाम आपने ग्रुप छोड़ क्यों दिया था।

🙇♂️🙇♂️🙇♂️

लेकिन मैं आपको छोड़ने वाला नहीं लाक डाउन के बाद वृंदावन आऊंगा आपके आश्रम में रहूंगा।

मान ना मान मैं तेरा मेहमान।

🙏🏻🙏🏻💐💐🙇♂️🙇♂️

Bhakt Shailendra Tripathi Gonda: Guru mata ko koti koti pranam

Swami Prkashanand Shivohm Ashram Mathura: शिवोहम का अर्थ

https://youtu.be/dNNUyi9KaO8

💐💐🙏🏻🙏🏻

सघन जटा प्रभाव बटा गंगाधर नाम है।

कंठ धो शीतल दे गंगा का ही काम है।।

विषलै नाग कण्ठ डाल डमरू तांडव करे।

ऐसे शिव शंकर सदा सबका ही हित करे।।

तीव्र धार कर प्रहार गंगा सिर पर आ रही।

अग्नि की प्रचंड ज्वाल तीव्र होती जा रही।।

बालचंद्र कीरीट शिर शोभा धारण करे।

ऐसे शिव शंकर सदा वास मम हृदय


और पढ़ना हो तो लिंक पर जाएं।🙏🏻🙏🏻🙏🏻

https://kavidevidasvipul.blogspot.com/2020/01/blog-post_88.html


Bhakt Lokeshanand Swami: भगवान से किसी ने पूछा कि सब आपकी मानते हैं, आप भी किसी की मानते हैं? भगवान ने वाल्मीकि जी कि ओर इशारा कर दिया, मैं इनकी मानता हूँ। ये जैसा जैसा कहते हैं, मैं वैसा वैसा ही चलता हूँ।

वाल्मीकि जी वे हैं जो जीवभाव का तिरस्कार कर, परमात्मा को जानकर परमात्मा ही हो गए, ब्रह्म हो गए।

"जानत तुमहि तुमहि हो जाई"

"ब्रह्म जानेति ब्रह्मैव भवति"

संकेत मिलते हैं कि "वाल्मीकि तुलसी भए" वाल्मीकि जी ही तुलसीदास बनकर आए। स्वयं तुलसीदासजी ने लिखा-

"डिग बांदीपुरा बिच सीतामढ़ी,

जहाँ आसन मारत वृत्ति चढ़ी।

भूख न प्यास विचित्र दशा,

उर पूर्व जन्म प्रसंग बसा॥"

डींग और बाँदीपुरा के बीच सीतामढ़ी है, जहाँ बैठते ही मेरी वृत्ति आकाशीय हो गई। मुझे देह का भान न रहा, अपने पूर्व जन्म का स्मरण हो आया। और हैरानी की बात है कि सीतामढ़ी ही वह स्थान है जहाँ वाल्मीकि भगवान का आश्रम था।

वाल्मीकि जी का जीवन उदाहरण है कि मन की दिशा बदल जाए तो जीवन की दशा बदल जाए। तुलसीदास जी लिखते हैं-

"उल्टा नाम जपत जग जाना।

वाल्मीकि भए ब्रह्म समाना॥"

कहनेवाले कहते हैं वाल्मीकि जी ने उल्टा नाम जपा, "मरा-मरा" जपा। लोकेशानन्द कहता है कि उल्टा नाम का अर्थ "राम" का उल्टा "मरा" नहीं, बल्कि उल्टा माने जप की धारा को उलट दिया।

जैसे दिन का उल्टा रात है, दुख का उल्टा सुख है, जपा का उल्टा अजपा है। जपा को अजपा कर देना ही, जप की धारा को पलट देना है, नाम को उल्टा देना है। नामजप का इतना अभ्यास हो गया कि जप करना ही नहीं पड़ता, नाम अपनेआप चलने लगा। और यही तो विधि है।

आप ध्यान देकर समझें, जब भीतर नाम अपने से चलने लगा, और आपका ध्यान भटककर, कुछ समय कहीं बाहर ही घूमफिर कर, जब पुनः भीतर लौटकर आया, तब आपको लगा "अरे! मेरा ध्यान तो कहीं और था, फिर यहाँ ये नाम कौन जप रहा था?"

तब आपको पहली बार मालूम पड़ा कि मैं जपने वाला नहीं हूँ, मैं तो देखने वाला हूँ। मैं कर्ता नहीं था, कर्ता तो मन था, मैं तो द्रष्टा हूँ। योंही नामजप जपा से अजपा होकर धीरे धीरे अपनेआप ही द्रष्टाभाव में टिका देता है।

Hb 96 A A Dwivedi: मुम्बई पालधर में सैकड़ों की संख्या में लोग एक निहत्थे बुजुर्ग साधु को जानवरों की तरह मार रहे थे वो विनती कर रहे थे और पुकार रहें थे

हे बजरंगबली साधु संत के तुम रखवारे असुर निकनदन राम दुलारे

हनुमानजी बोले मैं नहीं आऊंगा तुम अपने कर्म फल को भोग रहे हो

मैं तो कथा वाचकों के बुलावे पर ही जाता हूं वहां मेरी कथा सुनकर लोग रोने लगते हैं और कहते हैं प्रेमाश्रु बह रहे हैं

बुजुर्ग पालधर के साधु ने फिर विनती की भगवती दुर्गा मां आओ भगवती दुर्गा ने कहा पुत्र मैं तो कण कण में विराजमान हु अपने चित्त को शुद्ध करने के बाद हमारे दर्शन का लाभ उठा सकते हो

ऐसा करते हुए लगभग आधे घंटे के बाद वो सनातन संस्कृति का लाल धरती पर पड़ा था और फेसबुक व्हाट्सएप पर लाखों जागे हुए हिन्दू उसकी निन्दा कठोर शब्दों में कर रहे थे कुछ तो इतना गुस्से में थे कि बस चलता तो मोबाइल तोड़ देते

फिर वो दिन आ गया जब लाखों की संख्या में सन्त महात्मा मुम्बई आ गये हमारे पुत्र ने पूछा कहां है दिखाई क्यों नहीं दे रहे हैं हमने कहा सब ईश्वर का अंश है कण कण में मौजूद हैं अपने चित्त की शुद्धि करो तभी दिखाई देंगे

वाह ये अद्भुत ज्ञान सनातन धर्म का परचम लहराने का काम कर रहा है अद्भुत नजारा है और मुझ पापी को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है

किसी को दिखाई दे रहा हो तो हमें भी आंखों देखा वर्णन कहें

थोड़ा और सो लो जल्दी ही गहरी नींद में सुलाने वाले निकल पड़े हैं

Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

*एक: क्षमावतां दोषो द्वितियो नोपपद्यते ।*

*यदेनं क्षमया युक्तमशक्तं   मन्यते  जन: ।।*

*सोअ्स्य दोषो न मनतव्य: क्षमा हि परमं बलम् ।*

*क्षमा गुणो ह्यशक्तानां , शक्तानां भूषणं क्षमा ।।*

स्वभाववान व्यक्तियों की एक ही कमजोरी है। *क्षमा करना*. ?

यह लज्जा की बात है कि हम ऐसे विशाल हृदय के व्यक्तियों को कमजोर मानते हैं।

क्षमा करना व्यक्ति की कमजोरी नहीं वरन् ताकत है। यह कमजोर का गुण व कठोर का गहना है।

The persons of a forgiving nature have only one shortcoming and no other. It is pity that a person of forgiving nature is considered to be weak.

A forgiving temperament is not a sign of weakness. Forgiveness is a sign of STRENGTH.It is virtue of the weak and an ornament of the strong.

*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

निवेदन:

मित्रों ग्रुप बनाते समय गलती से कुछ सदस्य दो ग्रुप में ऐड हो जाते हैं अतः ग्रुप सदस्यों से निवेदन है कि यदि आप इसी ग्रुप के दूसरे विस्तार ग्रुप में सदस्य हैं तो एक ही ग्रुप के साथ रहे क्योंकि यह तीनों ग्रुप का उद्देश्य एक ही है।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Bhakt Lokeshanand Swami: एक नवविवाहित समुराई योद्घा, अपनी पत्नी के साथ, प्रसन्नता पूर्वक, शिनानो नदी में, नौका विहार कर रहा था। कि अचानक बहुत भयंकर तूफान आया।

बड़ी बड़ी लहरें उस नौका से टकराने लगीं और नौका जोर से हिचकोले खाने लगी।

नौका डूबने के विचार से, मृत्यु सम्मुख देख कर, वह नवयुवती थर थर काँपने लगी और उस समुराई से चिपक गई।

समुराई योद्घा ने, अपनी पत्नी का हाथ पकड़ा, और झटके से अपने से दूर हटा कर, अपनी तलवार निकाली और उस युवती के गले पर टिका दी।

युवती ने हैरान होकर, समुराई की आँखों में झाँका, और अचानक ही हंसने लगी।

समुराई ने कहा- मेरी तलवार तेरी गर्दन पर टिकी है, मेरा हाथ हिला कि तेरे प्राण गए। फिर भी तूं हंसती है, डरती नहीं है। क्या अब तुझे मृत्यु का भय नहीं है?

वह युवती बोली- हाँ मैं हंसती हूँ, मुझे इस तलवार से मृत्यु का भय नहीं है, क्योंकि मैं जानती हूँ कि तलवार मेरे प्रेमी के हाथ में है। मैं तलवार नहीं देखती, तलवार जिस हाथ में है, वह हाथ देखती हूँ।

समुराई ने तलवार म्यान में रखी, और प्रेमपूर्वक उस के पास बैठ गया। उसका हाथ पकड़ा और कहने लगा- जब तूं तलवार नहीं देखती, तब तूफान क्यों देखती है? क्या तूं नहीं जानती कि तूफान किसके हाथ में है। तुझे मेरे हाथ पर भरोसा है, उस परमात्मा पर भरोसा नहीं है?

नवयुवती मुस्कुराई, उसका भय और कंपन मिट गया, और अब वह शांतचित्त होकर बैठी रही।

कुछ ही समय में तूफान भी शांत हो गया।

लोकेशानन्द कहता है कि हम जगत पर तो भरोसा करते हैं, जगदीश पर भरोसा नहीं करते। यदि हमें जगदीश पर भरोसा हो जाए, तो प्रलय की अग्नि में भी हमारा चित्त कंपायमान न हो। क्या हम नहीं जानते-

"जाको राखे साँइया मार सके ना कोय।

बाल ना बाँका कर सके जो जग बैरी होय॥"

पता नहीं उन निर्दोष साधुओं के हत्यारों को कब दण्ड मिलेगा।

😣😣😕😕😞😞

Swami Toofangiri Bhairav Akhada: जिस तरह देश के अंदर इस्लाम धर्म के जमा क्यों की वजह से पूरा देश सजा भुगत रहा है अगर साधु संत महात्मा सड़कों पर आ जाते हैं तो यही कलंक उनके माथे पर भी लगना तय है

प्रभु उनको कोरोना से ही मार दो।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

हर चीज का समय तय है वह उसी समय होगी अब उन साधुओं की मृत्यु का दंड पूरा महाराष्ट्र भुगत रहा है

विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।

बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।

Swami Pranav Anshuman Jee: https://www.facebook.com/372279763585667/posts/673967033416937/

Swami Pranav Anshuman Jee: श्रीहनुमानजी भक्त एवं सुन्दरकाण्ड प्रेमी आनंद लें ।जय श्रीराम🙏🙏🙏 ।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...

ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम्।

मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं तस्मै श्रीगुरवे नमः॥७६॥

गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परम दैवतम्।

गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः॥७७॥

अर्थ: ध्यान के मूल गुरु की मूर्ति है, पूजा के मूल गुरुदेव के चरण कमल हैं। मंत्र का मूल गुरुदेव के वाक्य हैं। तथा मोक्ष का मूल गुरुदेव की कृपा है।

 गुरु आदि है अनादि हैं और गुरु जी परम देवता है, एवं गुरु से बढ़कर और कोई नहीं है, ऐसे गुरुदेव को प्रणाम है।

व्याख्या: ध्यान के लिए किसी स्थूल आधार के आवश्यता रहती है और सबसे उत्तम आधार गुरुदेव का भौतिक चेतन शरीर ही होता है, श्री गुरु शऱीर में सूक्ष्माति सूक्ष्म गुरुतत्व, क्रियाशील होकर शिष्यों के कल्याण के लिए तत्पर रहता है। अतः गुरु मूर्ति का ध्यान सबसे उत्तम है।।

इसी प्रकार उपासकों के लिए सर्वश्रेष्ठ उपासना का माध्यम "गुरु चरणारविन्द है" क्योंकि गुरु चरण अरविंद में सभी देवताओं के शिव शक्ति आत्मक होने के कारण परम पूजनीय है।

मंत्र का मूल स्थान वाणी है, उसको जब गुरु तत्व का आश्रय मिल जाता है, तो उस वाणी से जो शब्द निकलते हैं वे भी मंत्र बन जाते हैं, इस प्रकार एक चेतन प्रकाशित तत्व द्वारा दिया गया मंत्र भी चेतन होता है और वही जप के योग्य होता है। कई स्थितियों में गुरु मंत्र का प्रभाव तत्काल देखा गया है।


जब मंत्र शक्ति शिष्य ने जागृत हो जाती है तो अक्षर समूह रूपी स्थूल मंत्र बाहर छूट जाता है, कई नवीन मंत्रों की स्फुरणा होती है, यह गुरुदेव द्वारा प्रदत्त वाणी का ही प्रभाव है।

मोक्ष का मूल गुरु कृपा को माना गया है। मोक्ष अंतिम लक्ष्य है। संसार के आवागमन का चक्र, गुरु कृपा से ही मिट सकता है और मोक्ष स्थिति उपलब्ध हो सकती है।

जब गुरु तत्व मानव शरीर में विकसित होता है तो उसका आदि (प्रारंभ)अवश्य होता है, वैसे गुरु तत्व अनादितो है ही।  गुरु ही परम देवता का अर्थ है, गुरु से बढ़कर कोई देवता नहीं है अर्थात जितने देवत्व हैं, वह सब परब्रह्म से शक्ति प्राप्त करते हैं, तब देवता कहलाते हैं, और गुरु तत्व स्वयं शक्ति युक्त होने से उसे किसी से शक्ति ग्रहण नहीं करनी पड़ती।

 "गुरो: परतरं" पर पिछले श्लोकों में प्रकाश डाला जा चुका है।

उपरोक्त विभूतियुक्त गुरुदेव को प्रणाम है।।

छत्तीस गुण और चौसठ कलाओं के साथ पूर्ण पुरुष....पूर्णता ही जिनका मापदंड है....

कृष्ण जो काला है...जो सबको खुद में समाहित कर ले...जिसमे डूब के कुछ नही दिखता...रंग कोई भी हो...

प्रेम की परिपूर्णता...धर्म की परिपूर्णता....छल की पूर्णता...सहजता और सौम्यता की पूर्णता...खूबसूरती और सम्मोहन की परिपूर्णता....संगीत नृत्य और कला की पूर्णता...ज्ञान की पूर्णता...पौरुषता की पूर्णता...!!

कृष्ण की स्थिति ही पूर्णता में है....

जहां पूर्णता नही वहां कृष्ण नही.....

जिनके नाम से ही ये जगत पूर्ण हो जाता है..

Chintan Mali Ref R D 1: धन्यवाद 🙏🏻

मुझे काफी जिज्ञासा है।

में कौन हूं?

में क्यू हु?

में किसके लिए हु?

में कहा से आया हु? ओर मुझे कहा जाना है?

वेदों का अवतरण का मुख्य उद्देश्य था कि मनुष्य जान सके वह क्या है। ब्रह्म क्या है और मानव भी ब्रह्म है।

बाद में वेद समझ में नहीं आए तो लोगों ने उस पर शोध किए थीसिस लिखें वेदों की बातों को मानकर जो उनका शोध लिखा तो उपनिषद बने। इन्ही के साथ वेद महा वाक्यों का जन्म हुआ।

कुछ लोगों ने वेद की बातें सीधे न मानते हुए स्वयं प्रयोग किए तर्क दिए और फिर जो लिखा तो षड्दर्शन का निर्माण हुआ।

इन्हीं षट्दर्शन में पतंजलि द्वारा योगसूत्र का निर्माण हुआ जो अष्टांग योग कहलाया।

मतलब आठ अंगो यानी कर्म करने से मनुष्य को योग का अनुभव हो सकता है।

वेदांत महाभारत के अनुसार आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव ही योग है। भगवान श्री कृष्ण ने इसीलिए कहा हे अर्जुन तू योगी बन।

यदि हम वेदों को गौशाला मानी तो उपनिषद उस में चरने वाली गाय हैं। षटदर्शन वृषभ है। उन गायों का दूध श्रीमद भगवत गीता है। उस दूध से निकला हुआ मक्खन रामचरितमानस है।

श्रीमद भगवत गीता की व्याख्या रामचरितमानस से अच्छी किसी ने नहीं की। श्रीमद्भगवद्गीता में केवल चरित्र बताए गए किंतु रामचरितमानस ने उन चरित्र को जीवन देकर उनकी गाथा का वर्णन किया।

और उन गायों से जो बछड़े पैदा हुई वे विभिन्न शास्त्र और पुराण बन गए।

अब आपको अपने प्रश्नों के उत्तर मिल गए होंगे।

जय गुरुदेव जय महाकाली।

Bhakt Brijesh Singer: जय श्री राम

जय हनुमान

बहुत सुंदर प्रभु जी 👌

जौ रघुबीर अनुग्रह कीन्हा।

तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा।।

Rajesh Sharma Vashi Vinod: जय हो गुरु महाराज की

बहुत ही सुक्षम मे संपूर्ण दिखा दिया

बस इतने मे ही हम सब है 🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹

Swami Toofangiri Bhairav Akhada: https://youtu.be/-T5L20uWTRo

Swami Pranav Anshuman Jee: धन्यवाद बृजेश जी ।आपने श्रवण किया , प्रसन्नता हुई ।इसकी स्पष्टता एवं संतुलित संगीत के कारण मुझे देशके कई हिस्सो से फोन आये ।तो सोचा इस ग्रुप मे भी शेयर करूं ।इसमे मेरी कोई भी  बडाई नही केवल हरि कृपा 🙏🙏🙏

यद्यपि किसी को कुछ भी अच्छा लगना या न लगने पर यही समझना चाहिये कि

 *जेहि कर मन रम जाहि सन तेहि तेही सन* *काम*।सभी आदरणीय जनों को जय श्रीराम 🙏🙏🙏

चर्चा

Chintan Mali Ref R D 1: बहुत ही उत्तम भाई 🙏🏻

लेकिन मेरे प्रश्न तो ओर ही है।

में ब्रह्म हूं यह बात सदा स्मरण में नहीं रहेती इसके लिए हम क्या कर शक्ते है ?

पहला प्रश्न मैं कौन हूं तो मित्र आप ब्रह्म का ही रूप है। बस मैं यह जानता हूं आप यह नहीं जानते।

दूसरा प्रश्न क्यू हूं आप इसलिए है इस भौतिक शरीर में मन बुद्धि अहंकार के साथ इतना कि आप जान सके कि आप ही ब्रह्म का रूप हैं।

आपको अंत में उस ब्रह्म में ही ब्रह्मलीन होना है इसके लिए आप यहां पर हैं।

आप उस ब्रह्म के द्वारा रचित आत्मा के शरीर रूप में यहां पर मौजूद है।

मुझको कहां जाना है मुझको वास्तव में उसी ब्रह्म में विलीन होना है।

यही हमारा कर्म भी है यही हमारा लक्ष्य है और यही हमारा साधन।

जगत में मिले हुए सारे कर्म संबंध यह मात्र इसी दिशा में सहायक होने चाहिए।

वह किस प्रकार सहायक होंगी यह हमको भगवत गीता और रामचरितमानस अच्छी तरीके से समझाती है।

हमको यह शरीर हमारे कर्मफल के कारण प्राप्त हुआ है प्रारब्ध के कारण प्राप्त हुआ है हमको अपने सारे संस्कार नष्ट कर पुनः उस ब्रह्म में विलीन होना है।

🚩🚩🚩🚩

इसके लिए हमें सबसे पहले सदैव भौतिक रूप से प्रयास करना चाहिए कि हम अध्यात्म से जुड़े रहे।

जैसे भजन सुनिए घर में आरती कीजिए समय पास करने के लिए मंत्र जप कीजिए। आध्यात्मिक से जुड़ी जानकारी को नेट पर जाकर पढ़िए।

मन करे या न करे मन में श्रद्धा हो ना हो किंतु आप प्रयास करते रहे।

बेहद आरंभिक अवस्था के लिए आपको यदि यह प्रेरणा पैदा हुई तो इसके लिए नवधा भक्ति तुलसीदास के बताइए और भागवत में भी भगवान श्रीकृष्ण ने बताई है।

और यदि मैं भी मन नहीं लगता है तो आप अंतर्मुखी होने का अन्य प्रयास टाइम पास करने के लिए करें।

बिना योग का अनुभव किए यह याद रखना बहुत मुश्किल है।

इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे अर्जुन तू योगी बन क्योंकि यदि एक बार तू योगी हो गया तुझे योग का अनुभव हो गया तो क्या करना है क्या नहीं करना है यह सारा ज्ञान तुझको तुरंत प्राप्त हो जाएगा तुम क्या हो तुम्हारा मूल रूप क्या है तुम कहां से आए हो तुमको कहां जाना है तुम्हारा कौन सा कर्म सही है गलत है यह सब कुछ अपने आप स्पष्ट हो जाएगा।

योगी होने के लिए कलयुग में मंत्र जप से सर्व श्रेष्ठ कुछ नहीं।

मंत्र जप के द्वारा हम सबसे आसानी से अंतर्मुखी हो सकते हैं।

और हम अपने सद्गुरु के द्वार तक पहुंच सकते हैं।

कलयुग में ईश्वर प्राप्ति और अपने को जानना सबसे आसान है यदि कलयुग में यह ना कर सके तो कभी ना कर सकोगे।

मैंने अपने लेखों में अंतर्मुखी होने की विधियां विस्तार से बताईं हैं।

श्री कृष्ण की प्रेरणा से उनकी दया से महाकाली की कृपा से सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि का भी निर्माण हो गया।

जिसको कोई भी महा आलसी महा कंजूस महा पापी अपने घर पर बिना गुरु के कर सकता है। लेकिन यह कलयुग की देन है कि हम अपना समय भी देना नहीं चाहते हैं। बकवास में नेट बाजी में सोशल मीडिया में टीवी पर सिर्फ और सिर्फ बकवास करना चाहते हैं कुछ करना नहीं चाहते हैं।

क्योंकि योगी होना अपने को जानना यह सब से खच्चर काम है।

हमें टीवी के बटन की तरह दबाकर सब कुछ सहजता से प्राप्त हो जाए। दारु पीने के लिए लाइन में लगने के लिए मटन मच्छी के लिए हरामखोरी करने के लिए हमारे पास बहुत समय है लेकिन ईश्वर की ओर हमारा आकर्षण समय की बर्बादी है क्योंकि हम आधुनिक हैं। मैं स्वयं वैज्ञानिक हूं इसीलिए मैं कहता हूं कि वैज्ञानिक जगत के सबसे बड़े धूर्त है। वह मशीनों पर यकीन कर लेंगे जिसको इंसान ने बनाया है लेकिन इंसान पर यकीन नहीं करेंगे।

किसी घटना के लिए वर्षों इंतजार कर लेंगे समय बर्बाद कर देंगे प्रोजेक्ट का प्रारूप तैयार करते रहे लेकिन उनसे कहो हमको केवल 6 दिन दे दो तो उसके लिए तैयार नहीं होगें।

यही कलयुग की विडंबना है। सतयुग में जहां पर सभी लोग ज्ञानी 75 से 100% लोग अच्छे थे सतगुणी थे ध्यानी थे वहां पर स्पर्धा बहुत अधिक थी इसलिए लोगों को हजारों साल तप करना पड़ता था।

त्रेता में जहां पर 50 से 75% लोग सात्विक होते हैं वहां पर उनको सैकड़ों वर्ष तपस्या करनी पड़ती थी।

द्वापर में जहां 25 से 50% लोग सात्विक होते हैं वहां पर कई दिनों तक तपस्या करनी पड़ती है कई महीनों तक तपस्या करनी पड़ती थी।

किन्तु कलयुग में जीरो से लेकर 25% तक अच्छे लोग हैं सात्विक लोग हैं इसलिए स्पर्धा बहुत कम है आप कुछ घंटे अगर ईश्वर का ध्यान कर ले तो ईश्वर आपके सामने खड़ा हो जाए।

Chintan Mali Ref R D 1: बहुत ही उत्तम ज्ञान है आपके पास

आपके गुरुदेव को मेरा प्रणाम 🙏🏻

जी यह बात तो पूरा सच है क्योंकि हमारे परम गुरु स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज ने अपने शिष्य हमारे दादा गुरु स्वामी शिवओमतीर्थ जी महाराज से एक चर्चा में बात की थी कि उनको स्त्री-पुरुष का भेद दिखना बंद हो गया। आप उनकी आध्यात्मिक ऊंचाई देख सकते हैं कि जो मात्र आत्म तत्त्व ही देखते थे दूसरों में। उनके लिए हम लोग जो स्तुति करते हैं वह लिखते ब्रह्मस्वरूपम् नील वर्णम श्री गुरुदेवम्  ओम नमो विष्णु तीर्थम्।

💐💐🙏🏻🙏🏻

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 शिष्य/साधक के गुरु के प्रति क्या २ कर्तव्य होते हैै। गुरु आश्रम के प्रति । साधक/शिष्य को कैसा होना चाहिए। गुरु एवं शिष्य के संबंध के विषय में बताएं।

 http://freedhyan.blogspot.com/2018/04/blog-post_9.html?m=0

Bhakt Vikas Sharms: ✨👌🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻💐

Swami Sidhanand Giri Juna Akada Ujjain Mohali Punjab: साधना में थी बच्चे फोन भी खराब चल रहा है यही वजह से msz नही देख पाती हूँ।

हर हर महादेव

"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 
 

 जय गुरूदेव । जय महाकाली

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 7 (बिना गुरू दीक्षा सन्यासी कैसे बन गये ये)


आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 7 (बिना गुरू दीक्षा सन्यासी  कैसे बन गये ये) 

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
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पिछले भाग से आगे ..........


Bhakt Anil Vibhute Thane Dir:

एक नगर था जिसके चारोओर से पत्थर की दीवार थी ( संरक्षण हेतु बनवाई गई थी ) .नगर से बाहर निकलने के किये एक ही द्वार  ( दरवाज़ा ) था. एक अंध व्यक्ति  को ( जीवात्मा को ) नगर के बाहर निकलना था,इस हेतु वो एक हात में लकड़ी और दूसरे हात से दिवार का सहारा ले करके चल रहा था.चलते चलते जब नगर से बाहर निकलने का  द्वार आया तब उस अंध व्यक्ति के सर में खुजली आयी और वो चलते चलते एक हात से सर खुजाने लगा,अब खुजाने के चक्कर मे नगर का द्वार पीछे छूट गया अब जब खुजली रुकी तो  हात में फिर दीवार आयी.अभ वापस पूरे नगर का चक्कर लगाना पड़ा द्वार की खोज में अब जो सद्गुरु है उनकी असीम गुरुकृपा से वो जो द्वार पर आते हि आने वाली खुजली को रोक देती है और इस संसार रूपी नगर का द्वार मिल जाता है

अभी जीव इस जन्म - मृत्यु के फेरो से मुक्ति पा लेता है

*पुनरपि जनमं पुनरपि मरणं* वाला मसला खंडित हो जाता है

कुल मिलाकर यह अपने ग्रुप विभिन्न क्षेत्रों के संतों द्वारा बहुत ही सुंदर तरीके से विकसित हो गया है और इसके लिए मैं प्रभु को कोटिश नमन करता हूं।

🙇♂️🙇🏼♀️🙇♂️

Bhakt Shyam Sunder Mishra: 👍👍🌹🙏🌹🚩🚩🚩

अब यदि कोई सदस्य लाभ नहीं उठा पाता है तो यह उसका महादुर्भाभाग्य है।

Bhakt Vikas Sharms: ✨🙏🏻🙏🏻🙏🏻✨

Bhakt Harish Kumar Haiyana: ये हमारा शौभाग्य है । आपने बहुत अच्छे से ग्रुप को चलाया है

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी👏👏 दर्शन दे और सम्पूर्ण विधि से अवगत कराये।। बहुत कोशिश की हनुमान जी नहीं आये बताया कि आपके साथ है हम लोगों को भी साधना कि विधि विस्तार से बताये🙏👏🌹😊

यार यह क्या पोस्ट है खीर में नमक की तरीके से इस तरह की पोस्ट ग्रुप में ना डालें।।

Bhakt Rishi Srivastva Fb 1: ये बात सही है मेरा अभी शक्तिपात दीक्षा  नही हुई माता जी का आशीर्वाद नही ले पा रहा हु और आप सब गुरुजन किसी न किसी रूप में।शक्ति का दर्शन कर लिया है मैं अभी लटका हुआ हूं

लाक डाउन हटने के बाद करवा देता हूं।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_21.html?m=1

+91 94065 00022: 🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹

जी अवश्य

Swami Triambak giri Fb: आप सभी प्रभु प्रेमी सज्जन वृंद को संध्याकालीन नमन |

परमात्मा के पहचान की कोई निश्चित विधि नहीं है सारा भाव का पराक्रम है परमात्मा भाव का भूखा है आप के अंदर अगर शिष्यत्व जाग गया है यह भाव घर कर गया है कि मुझे हर पल परमात्मा में ध्यान रखना है इसके लिए मुझे परमात्मा की पहचान चाहिए तो परमात्मा कण कण में है इसका मतलब कि आपके शरीर के अंदर भी है और कई बार प्रार्थना कर चुका हूं कि आप सभी को ही अनुभव होता होगा परमात्मा अंदर की बात को अंदर ही सुनता है समझता है  तो आप प्रथम वरीयता परमात्मा से प्रार्थना को दें और परमात्मा से हर पल प्रार्थना करते हुए बाकी दुनियावी हर काम को करें |

तात्विक चेतना में जीवन को जिए |

Swami Triambak giri Fb: सच्चा ईश्वरीय प्रेम अगर स्वभाव में हो तो हमें ना कोई साधना चाहिए ना कोई उपासना |

+91 94065 00022: K k not again👍🏻

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Satya Vachan

Koti koti Naman 🙏🙏

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी की जय हो👏👏बुनद से प्यास नहीं बुझेगी जन्म जन्मांतर के प्यासे हैं और आपसे विनती है कि बीरबल की खिचड़ी मत परोसै पुरी थाल चाहिए😊

महाराज जी भाव कैसे पैदा होता है और भाव जड़ शरीर के साथ जुड़ा है कि चैतन्य तत्व है

महाराज जी वर्षों से साधना में लगे हैं और हनुमान जी नहीं आये और पालधर मुम्बई में वो बुढा साधु बहुत ही करुण भाव से ईश्वर को पुकार रहा था वहां भी नहीं आये, पीढ़ियों से लोग ऋषियो के बताये मार्ग को छोड़कर कथा वाचकों के भाव को पकड़ लिया है फिर भी कुछ हाथ नहीं लगा है

हमारे भाव पवित्र है और आपको किसी भी प्रकार से कष्ट हुआ है तो क्षमा करें महाराज भाव भाव से काम नहीं चल रहा है बहुत प्रेमाश्रु बहाने के बाद भी हनुमान जी नहीं आये और शास्त्रों में कहा गया है कि वो दृष्टा है तो क्या शास्त्रों में झुठ कहा गया है


महाराज जी हमारी प्यास बुझाने कि दया करे🙏🙏

Swami Triambak giri Fb: इसके लिए परमात्मा पर विश्वास करके सत्य निष्ठ होना पड़ता है सत्व गुण जागृत किए बगैर कैसे संभव हो सकता है |

सत्य निष्ठा अनिवार्य है अब अपने अंदर झांके क्या आपके अंदर सत्य निष्ठा हैं ❓

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी👏👏

प्रश्न के बदले प्रशन चर्चा में आए तो फिर आप हमारी भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं सत्वगुण कैसे प्रकट होता है और गुण शरीर में कहा रहता है और भाव के साथ मिलकर धर्म के नाम पर लोगों की हत्या कर रहे हैं

आप विस्तार से कहे और हमारी जानने की इच्छा है कोई अहंकार वश नहीं पुछ रहे हैं आप चाहें तो इस चर्चा से बहुत लोगों को लाभ होगा

हम वैदिक रीति से आपको शास्त्रों के अनुसार साधन विधि के बारे में कहेंगे उसमें आप भाव और सतगुण निकाल देना😊🙏👏🌹

Hb 96 A A Dwivedi: सत्य निष्ठा है महाराज जी और सत्य क्या है यह भी बताये🙏👏🌹😊

Swami Triambak giri Fb: संकल्प से,

ग्रुप का नाम आत्म अवलोकन है आत्म अवलोकन करें |

Swami Triambak giri Fb: जब आपको असत्य का भान हो जाता है अज्ञान का बोध हो जाता है तभी सत्य का और ज्ञान का बोध होता है

Hb 96 A A Dwivedi: विपुल जी क्षमा करें आज थोड़ा विस्तार से चर्चा करते हैं🙏👏

Swami Triambak giri Fb: यह हमने पहले ही लिखा है कि सच्चा ईश्वरीय प्रेम चाहिए और प्रेम न बाड़ी उपजे प्रेम न हाट बिकाय प्रेम आपको अनुभव मिलने से ही उत्पन्न होगा और ईश्वर या अनुभव आपको तभी मिलेगा जब आपके जन्मों जन्मों की साधना जागृत होगी क्योंकि आप अभी भी साधना उपासना और विधि के पीछे पड़े हैं आप ईश्वरीय कृपा के भरोसे नहीं हैं जो ईश्वरीय कृपा के भरोसे हो जाता है अपने आप को ईश्वरीय कृपा के भरोसे छोड़ जाता है वह पूर्ण समर्पित हो जाता है जो करे सो हरि करें हरि करें तो खरी करें

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी🙏🙏

भाव

संकल्प

सत्य

श्रृद्धा

यह सभी एक ही जगह पर रहते हैं या फिर इनके निवास भिन्न भिन्न जगह पर है और अवलोकन कौन कर सकता है शरीर में किसकी शरण में जाएं

महाराज जी आप ईश्वर को प्राप्त कर चुके हैं और आप ईश्वर की वाणी बोल रहे हैं और हम अज्ञानी समझ नहीं पा रहे हैं महाराज उस कृष्ण की वाणी में कहे जो इस अर्जुन के हृदय में उतर जाये

महाराज जी आप यह नहीं कह सकते हैं कि निष्ठा और लगन में कोई कमी है कमी है तो उस विधि कि जिसे जानने के लिए आपकि शरणं गच्छामि है👏🙏😊🌹

Swami Triambak giri Fb: यह सब आपकी बुद्धि में ही निवास करते हैं यह सोए पड़े हो तो उसको जागृत करना यह तो पहला चरण है अभी और अगर यह सब आप कर रहे हैं कर चुके हैं तो पहले चरण से आपको ऊपर परमात्मा अपने आप उठाएगा आप ईश्वर के समर्पण तो हो लो आप हमारी शरण में आने से अच्छा है ईश्वर की शरण में चले जाओ यही तो मैं कह रहा हूं कि शरीर धारी गुरु मत बनाओ परमात्मा को ही अपना गुरु सद्गुरु बनाओ तभी बात बनेगी जब तक शरीर धारी गुरु बनाते रहोगे विधि में ही अटके रहोगे

प्रभु जी भाव कैसे पैदा हो।

Hb 96 A A Dwivedi: 🙏🙏भगवन् बुद्धि तो जड़ है और परमात्मा चैतन्य है

भला अन्धकार प्रकाश से कैसे उदय होता है और क्या यह जड़ शरीर चैतन्य के साथ कोई भी सम्बन्ध है और हैं तो शरीर के गिर जाने के बाद चैतन्य तत्व कहा जाता है और किस प्रकार से पुर्व जन्म के साधन के बाद सद्गुण स्वयं प्रकट हो जाता है👏🙏😊🌹

Swami Triambak giri Fb: परमात्मा ही आपके बुद्धि में विचारों को दे देगा और एक विशेष बात कि मैं यहां ज्ञान वर्धन के लिए नहीं हूं मैं तो तात्विक  उपासक हूं और मैं तात्विक उपासना के लिए ही आपको आग्रह करता हूं आप तात्विक उपासक हो करके तात्विक चेतना में जीवन को जीए हर पल इस तत्व के साथ जुड़कर के |

गुरु तब तो परमात्मा तत्व कण-कण में विराजमान है

Swami Triambak giri Fb: तब को तत्व पढ़ें

प्रभु जी तात्विक उपासना क्या है।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

मैं मूर्ख नहीं जानता।

Swami Triambak giri Fb: यह शरीर ही साधन है मोक्ष का और इस बुद्धि को आप को मोक्ष प्राप्त करने के लिए ही प्रदान किया गया है अन्यथा तो आप किसी भी योनि में मोक्ष प्राप्त कर सकते थे |

वाह प्रभु किसी भी योनि को मोक्ष मिलता है।

🙏🏻🙏🏻🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️

Swami Triambak giri Fb: गुरु तत्त्व को परमात्मा तत्व को कण कण ने मान करके इसके साथ जुड़कर  इसके प्रति समर्पित होकर के हर पल इस को याद करते हुए जीवन के हर कर्म को करते हुए जीवन को जीना |

क्योंकि दुनिया का कोई भी ऐसा शास्त्र नहीं है जो इस बात से नकारता हो कि परमात्मा कण कण में नहीं है |

प्रभु जी यही समस्या है समर्पित कैसे हो।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Swami Triambak giri Fb: दुनिया के सभी शास्त्रों पर विश्वास करके हमारी भारतीय मनीषा पर विश्वास करके

शास्त्र बहुत-बहुत भटकाते हैं कोई कहता विष्णु बड़े कोई कहता है दुर्गा। कोई कहता है शिव।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी👏👏

सथुल शरीर के गिर जाने के बाद क्या साधना नहीं होती है या की जाती है

सुक्षम शरीर में रहकर साधना करते हुए बुद्धि कार्य करती है या प्रज्ञा

महाराज जी तात्विक साधना भी तत्वों की साधना है और यह वो ही साधन है जो गुरु महाराज के भीतर गुरु तत्व के रूप में स्थापित होता है और ईश्वर को गुणों से कैसे जान सकते हैं बगैर किसी माध्यम के महाराज जी वो तो गुणातीत है गुणों से परे है

जय हो महाराज🙏👏🌹😊क्षमा अगर कोई भी बात गलती से ग़लत लिखा है

Bhakt Shyam Sunder Mishra: जी हाँ, तो इसका समाधान कैसे हो गुरदेव  ?

प्रणाम जी सब को

मेरा नाम हरीश कुमार है । मै हरियाणा से हूँ ।

मै चार साल से शाधना कर रहा हूँ । मै माँ दुर्गा जी शिव जी का ज्यादा ध्यान करता हूँ ।

मुझे आपके ग्रुप में जुड़े हुए भी काफी समय हो गया है । ध्यान के कारण मेरे को स्वप्न में बहुत अच्छे दरसन होते थे । लेकिन कुछ कारन बस ध्यान 5 महीनो से कम हो गया ।

मुझे दूसरे महीने में पित्त की पथरी के कारण ओपरेसन करवाना पड़ा ।

ओप्रेसन करवाने के 5 दिन बाद ही मुझे पीलिया हो गया । जो की काफी बढ़ गया है । चेकअप करवाया तो एक डॉक्टर कह रहा है की दवाई लेते रहो ठीक हो जाओगे । ठीक नही हुआ तो दूसरे डॉक्टर को दिखया तो उस डॉक्टर ने कह दिया की लिवर ट्रांसप्लांट करवाना भी पड़ सकता है ।

बहुत दुखी हूँ जी । आप ही सब सहारा है । ध्यान में कुछ गलती हुई हो मेरे से तो भी पता नही ।


आप देखो ना जी ।

माँ से अरदास करके पूछो ना जी ।

आप सब जानते हो ।

प्रणाम जी सबको

Swami Triambak giri Fb: शास्त्रों में भटकाना क्यों है शास्त्र की एक ही बात पकड़ो जो सही है जो सारे शास्त्र कहते हैं कि परमात्मा सर्वत्र है

पर किसको माने

🙏🏻🙏🏻

Swami Triambak giri Fb: आप जिसको प्रज्ञा कह रहे हो वह परमात्मा की ही आवाज है

Bhakt Brijesh Singer: गुरु बिन ज्ञान विवेक होई

राम कृपा बिन सुलभ सोई |

🙂

Swami Triambak giri Fb: परमात्मा एक है और यह सब परमात्मा की रचना है इनके अच्छे और सच्चे कर्मों के कारण लोगों ने इनको भगवान कह दिया जैसे अगर आप अगर किसी के लिए आज कुछ भलाई करने लग जाओ तो वह कह देता कि आप हमारे लिए भगवान हो

समझा नहीं।

😕☹️☹️

Bhakt Shyam Sunder Mishra: हाँ गुरु देव।

मैं भी इसी द्वैत में उलझा हूँ।

Swami Triambak giri Fb: और राम की कृपा के लिए राम के प्रति समर्पित हो जाओ जा पर कृपा राम की होई ता पर कृपा करे सब कोई |

"  यत्र तत्र सर्वत्र रमेति तैया राम: "

समर्पण कैसे करें भगवन

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी सुबह के समय आपने इस प्रशन का जवाब दिया होता जो अभी दिया तो सारे प्रश्न समाप्त हो जाते थे🙏🙏

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: सत्यम शिवम सुन्दरम,,,एकोहम शिवोहम अनंदोहम,,, जय गुरुदेव

+91 79828 87645: समर्पण एस अस्तित्व की सबसे दुर्लभ घटना है

 समर्पण होते ही समाधि लग जाती है

मैं राम को नहीं मानता। दुर्गा को मानता हूं।

☹️☹️☹️

समाधि क्या होती है।

☹️☹️

+91 79828 87645: लोग लंबी लंबी बातें करते हैं भक्ति की गाथा गाते हैं परंतु उनको समाधि लगी है समझना चाहिए कि समर्पण नहीं हुआ है बेशक से वह इतना भी कहे कि समर्पण हो गया बस वह बुद्धि की चालाकी चल रहे हैं और कुछ भी नहीं

Swami Triambak giri Fb: लेकिन किंतु परंतु अगर मगर छोड़कर

+91 79828 87645: 100% समर्पण

+91 79828 87645: ✅

इसमें देह भान रहता है क्या।

+91 79828 87645: नहीं देह  नहीं रहता

और मर भी नहीं जाते

समर्पण हो कैसे???

मतलब

+91 79828 87645: लगातार मानसिक दृष्टा हो करके मन की गतिविधि का निरीक्षण करते रहने से और स्वयं के केंद्र पर स्थापित होते रहने से कुछ समय में यह घटना घटती है

पर कैसें हो।

+91 79828 87645: पारलौकिक कोई अस्तित्व है जहां पर मौजूद हो जाने से  देह की एनालिसिस करने वाला मन बुद्धि का अतिक्रमण हो जाता है

- +91 79828 87645: भक्ति वाले परा  भक्ति में

ध्यान वाले कर्मफल त्याग की चरम स्थिति में पहुंचने पर

समस्या करने की है। कैसे हो।

कोई मार्ग बताएं।

भक्ति भाव पैदा कैसे हो।

कर्मफल का त्याग कैसे हो।

जो जिस अवस्था को प्राप्त कर लेता है उसको बड़ा आसान सोचता है पर वह मार्ग नहीं बताता है कि वह खुद कैसे आया।

यदि व्यक्ति खुद इस मार्ग से आया रहै तो मार्ग पता होगा नहीं तो ऐसा लगता है कि सामने वाला किताबी ज्ञान दे रहा है।

ऐसा लगता है कि नेट से देखकर बड़े-बड़े शब्द बोलो सामने वाला सामने नहीं समझा तो ठीक नहीं तो दूसरा शब्द दाग दो।

😣😣☹️☹️

+91 79828 87645: भक्ति भाव भी परमात्मा का दिया हुआ स्वभाव है  बस उस मार्ग पर चलने की उसको निखारने की उसमें अपने आपको पूरी तरह झौंक देने वाली बात है   परिणाम जो भी हो वह ईश्वर का प्रसाद है

ज्ञानियों का ध्यान मार्ग भी उनका निजी स्वभाव है जो परमात्मा का ही दिया हुआ है

इसमें भी अपने आपको पूरी तरह झोंक देने की जरूरत है

जिसका अंतिम रुकावट या कारण कर्म फल की भावना बनी रहती है जैसे पूरी तरह त्यागने की जरूरत पड़ती है परिणाम जो भी हो वह भी ईश्वर का प्रसाद है

मेरा प्रश्न बार-बार यही है कि ध्यान है तो ध्यान कैसे करें भक्ति भाव में कैसे उतरे।

भक्ति भाव यदि परमात्मा का स्वभाव है तो यह सब परमात्मा की मर्जी है हम खाली बैठे।

+91 79828 87645: अपने प्राणीधान ईश्वर का सतत स्मरण निदिद्यासन  भक्ति मार्ग पर चलने का प्रमुख उपाय है

Swami Triambak giri Fb: पहले हनुमान जी की भक्ति ही किया करते थे पर धीरे-धीरे समझ आगे बढ़ी हनुमान जी से राम जी का पता पूछने लगे और  और भी शास्त्रों का अध्ययन किया संतों की वाणी या सुनी प्रवचन सुने संतो द्वारा लिखित पुस्तकों का स्वाध्याय किया समझ आगे बढ़ी तो हनुमान जी की भक्ति करनी भी बंद कर दी सुंदरकांड बंद कर दिया रामायण पाठ करना बंद कर दिया सब कुछ बंद कर दिया अब समझ में आ गया कि परमात्मा तो मेरे अंदर ही है सब जगह है कोई ऐसी जगह नहीं जहां परमात्मा नहीं है तो हर पल परमात्मा से प्रार्थना करते हुए अपना जो जीवन का कार्य था वह करते रहा और एक समय ऐसा आया जब यह आभास हो गया और यह आवाज आ गई कि मैं यहीं हूं और मैं यही हूं |

अब इसी में हर पल ध्यान टिका रहता है और द्रष्टा बनकर बैठा हूं जो कुछ हो रहा है इसे भी निहार रहा हूं और इस सत्ता को भी निहार रहा हूं |

भारतीय मनीषा की इस बात पर गौर किया है कि अंत समय में जो मता होगी वही गति होगी अंत समय में मता इस सत्ता में रखनी है इस में रखनी है इसके लिए शरीर को सुलाकर भी इससे जुड़ा रहना जरूरी है |

मतलब आपने वेद महावाक्य अयम आत्मा ब्रह्म इसका अनुभव किया।

इस अनुभव के समय स्थिति क्या होती है कुछ प्रकाश डालेंगे।

+91 79828 87645: हां परमात्मा का स्वभाव है परंतु साथ में संसार को भोगने की वृत्ति वाला मन भी है जो स्वभाव मैं स्थिन ना होने का कारण है

+91 79828 87645: जिस दिन आप खाली बैठ जाएंगे उस दिन समाधि लग जाएगी खाली बैठना ही आप का टारगेट है और यह हर किसी के लिए संभव नहीं है इसलिए सबको समाधि नहीं लगती

Swami Triambak giri Fb: मैं हूं नहीं तू है

वही मैं पूछ रहा हूं मन कैसे लगाएं।

+91 79828 87645: संसार की सभी चीजों से मन हटा दें और सतत ईश्वर के स्मरण में बिजी हो जाएं क्योंकि वह बड़ी चीज है और वह अंतिम लक्ष्य है जो अंतिम है उसका आज ही अभी ही क्यों ना स्मरण किया जाए

मतलब तत्वम असि का अनुभव किया

Swami Triambak giri Fb: प्रज्ञानंम ब्रह्म

वही तो प्रश्न है संसार से मन कैसे हटाए।

प्रज्ञानं ब्रह्म यह जो आपने पहले बोला है वह नहीं है।

+91 79828 87645: क्योंकि आप मन के मालिक हैं मन की आपके भीतर कोई अलग सत्ता नहीं है यह आपका कहना मानता है आप इसे एक बार आदेश दे कर देखो

Swami Triambak giri Fb: आप जिसको प्रज्ञा कहते हो यही परमात्मा की आवाज है

प्रज्ञानं ब्रह्म में अपनी आत्मा का विस्तार महसूस होता है

Swami Triambak giri Fb: अपना शरीर और अपनी आत्मा तो आप कौन हो ❓

इसे आत्म‌ गुरू बोलते हैं। किंतु एक‌ अवस्था के बाद मन भी बोलने लगता है।

+91 79828 87645: प्रज्ञानंम ब्रह्म को ही शायद भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता में महत्त् ब्रह्म कह कर के बोलते हैं

इसका मतलब हुआ वह अस्तित्व जो स्वयं ज्ञानवान है और स्वयं की सत्ता से ही फलीभूत देहधारी भी है

आत्म गुरु सही बोलता है मन गुरु भटकाता है जिसे कुरान में शैतान की बोली बोलते हैं।

Bhakt Brijesh Singer: इसमे अंतर करना मुस्किल हो जाता है

+91 79828 87645: पहली बात तो मन को गुरु बोल रहे हैं यह गलत बात है मन गुरु नहीं है

मन एक ऐसा उपाय है जो अतीत में हमने संसार के विभिन्न अनुभवों को भोगने का माध्यम बनाकर के प्रयोग में लिया था परंतु बहुत अधिक अनुभव ले लिए हैं तो इसमें बहुत ज्यादा यादाश्त  जुड़ गई हैं

कि हम अपना मूल स्वरूप भूल गए हैं जिसने मन को धारण कर रखा है उस अस्तित्व को भूले पड़े हैं केवल मनोंमय हो गए हैं

 जैसे कोई दीवारों पर लगे हुए काजल की कोठरी में काफी दिन रह ले और एकदम काजल जैसा काला हो जाए एकदम काला काला तो वह अपना स्वरूप भी कैसे पहचाने बस वह बात है

+91 79828 87645: अभी किसी को और कुछ पूछना हो तो हम ठहरे हुए हैं 5 मिनट और फिर दोबारा मुलाकात होगी एक युग के पश्चात

मन गुरू को आत्म गुरू समझकर मोहम्मद एकदम भटक गया था।

कई संप्रदाय और पंथ जो बिल्कुल सनकी है वह इसी के कारण पैदा हुए हैं मन गुरु अगर आप नहीं बोलना चाहते हैं तो मन की बात को हम आत्म गुरु समझ लेते हैं

जब तक कोई भी बात हमें स्पष्ट ना सुनाई दे शब्द में लिखी हुई दिखाई न दे ध्यान में न सुनाई दे तब तक वह मन की चालबाजी है।

Swami Triambak giri Fb: Vipul sen ji   इसका जवाब नहीं दिया आपने

+91 79828 87645: हां यही गलती है जबकि कोई भी बात आत्म गुरु की नहीं होती
बात मात्र मन की होती है

आत्मा तो बस है बिना किसी बात के है

यदि कोई बात चलती है कोई डिमांड ऊठती है कोई विषय उठता है तो वह सिर्फ मन की बकवास है

 ऐसा जानना चाहिए परंतु आजकल लोग मन की आवाज को आत्मा की आवाज समझ लेते हैं जो कि संस्कार के अनुसार होती है

सही बताऊं मांस का एक लोथड़ा।

मैं तो कुछ करता ही नहीं मैं कुछ भी नहीं लेकिन मैं सब कुछ हूं मैं ही मैं हूं।

+91 79828 87645: सब कुछ मन है सब कुछ मन है ऐसा जाना चाहिए कोई बात स्पष्ट सुनाई दे

कोई शब्द स्पष्ट दिखाई दे कोई रूप स्पष्ट दिखाई दे

सब कुछ मन है यह संसार मन का ही फैलाव है

वह बात अलग है कि वह व्यक्तिगत मन हो या समस्टी गत मन हो

एक होता है स्वत: एक होता है संकर्षण।

Swami Triambak giri Fb: मांस का लोथोड़ा तो शरीर है जो आपका है |

पहले वाला है तो‌ सही है यदि दूसरा वाला हो तो गलत।

+91 79828 87645: इस प्रश्न का जवाब इस प्रकार होना चाहिए

मैं एक आत्मा जिसने मन बुद्धि अहंकार सहित मनुष्य शरीर धारण कर रखा है और जो संसार के प्रकृति के नियमों के भीतर विचरण कर रहा है

Swami Triambak giri Fb: ✔

इन के साथ मेरी फेसबुक पर बहुत नोंक झोंक होती रहती है थोड़ा आनंद ले कर के कर जवाब देता हूं

+91 79828 87645: 😁

Swami Triambak giri Fb: तो फिर आप आनंद ही लीजिए मैं यह चर्चा बंद करता हूं और इस ग्रुप से बाहर होता हूं

Swami Triambak giri Fb left

+91 79828 87645: नहीं प्रश्न करने वालों की हमेशा कीमत होती है आपको ग्रुप से बाहर नहीं जाना चाहिए

Hb 96 A A Dwivedi: वैदिक साधना पुर्ण रुप से वैज्ञानिक आधार पर हैं जिसमें पंच कोषों पर विजय प्राप्त करने के उपरांत ही मन का आत्मा में विलय होता है।।

भाव में स्थित होने के लिए मन को साधने की आवश्यकता होती है और मन को साधने के लिए चित्त की शुद्धि करने की आवश्यकता है उसे ही अवलोकन कहते हैं।।

चित्त जड़ रुप है और आतमा चैतन्य

शरीर असत्य है और आत्मा सत्य

मन की अपनी कोई सत्ता नहीं है वो इन्द्रियो के विषयों पर आधारित है जो कि जड़ है और आत्मा चैतन्य

चैतन्य आत्मा को जानने के लिए शरीर के अंदर मौजूद भगवती चैतन्य शक्ति को जगाने कि जरुरत होती है और उस विधि को शकतिपात दिक्षा कहते हैं।।

यह वही दिक्षा है जो भगवान राम को महर्षि वशिष्ठ जी ने और सनदिपनी ऋषि ने भगवान श्रिकृषण पर किया

यह वही शकतिपात है जो अष्टावक्र ने राजा जनक के ऊपर किया

बगैर चैतन्य शक्ति को जगाये जड शरीर कभी भी ईश्वरीय गुणों का विकास नहीं कर सकता है

शरीर में इतनी ताकत भी नहीं है जो बगैर चैतन्य शक्ति के पत्ते को भी हिला सके

यह वही जड़ शरीर है जो चैतन्य शक्ति के निकल जाने के बाद आंख होते हुए भी नहीं देख सकता है कान होते हुए भी नहीं सुन सकता है


गुरु अपने चित्त की दशा को शिष्य के शरीर में प्राकट्य करके भगवती कुण्डली जागरुक कर देते हैं और वो ही भगवती कुण्डली षठ चक्रों को भेदती हुई शरीर से जड़ ग्रनथी को तोड़कर चैतन्य आत्मा का अस्तित्व प्रकट कर देती है यह ऋषियो की बताई विधि है जिसे

लाहिड़ी महाशय

बाबा गोरखनाथ

देवरहा बाबा

तैलंग स्वामी

राम कृष्ण परमहंस

भगवान राम और श्रीकृष्ण ने अपनाया


जय हो गुरुदेव

जय हो महाराज जी


👏🙏🌹😊

+91 79828 87645: इस प्रकार का ज्ञानी किस काम का जब तक दो लात ना पड़े उससे पहले ज्ञानी अगर चला जाए तो उसको ऑथेंटिक ज्ञानी नहीं मानना चाहिए😄

Hb 96 A A Dwivedi: शिव बाबा की जय हो😊🌹🙏👏

अब यह स्वामी जी गुरु को मानते ही नहीं।

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी चले गए

बड़ा संभाला है बहुत सहनशील।

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 आपको लगता है सन्यासी को मान अपमान सम्मान  लगता है।

Bhakt Brijesh Singer: नही जी

+91 94065 00022 left

प्रिय विपुल भय्या , इस समय जो भीषण तर्क चल रहा है उसमें स्पष्ट रूप से वह त्रयंबक गिरी जी महाराज प्रबाह में बह कर कुछ अनर्गल भी कह गये हैं एवं अब समेटना मुश्किल हो रहा है  ।

मेरा ग्रुप मे कुछ कहना सामहिक रूप से एक संत को उत्तर देना अनुचित लग रहा है मुझे ।

आप लोगो का तो ध्यान एवं मंत्र साधना , शक्तिपात से जुडे ज्ञान हैं उनको पढता हूँ ।

वास्तव में आप लोगो की साधना का स्तर बहुत ऊचा है एवं मैं अभी केवल राम नाम राम।महिमा को समझने में लगा हूँ ।जो कि अभी भी नही समझ पाया तो वहा किसी बारे में ज्ञान देने के लिए सक्षम नहो समझता अपने आप को ।

जय श्रीराम विपुल भय्या ।।💐💐💐💐💐

प्रभु जी आप यह शब्द लिखकर हम सभी को शर्मिंदा कर रहे हैं आप राम नाम के लिए जगत छोड़ चुके हैं और हम अभी तक जगत के प्रपंचओं में फंसे हैं निश्चित रूप से आपका स्थान हम सभी से बहुत ऊपर है हम आपको प्रणाम करते हैं और आपके मुंह से भी कुछ राम चर्चा सुनना चाहते हैं।

यही बात सत्य है की त्रिंबक गिरी इनसे मेरी पहचान फेसबुक पर हुई थी और इनकी अधिकतर बातों से मैं सहमत नहीं होता था लेकिन अपने ग्रुप में लोगों को समझाने के लिए की सन्यास का अर्थ पर यह नहीं कि मनुष्य ज्ञानी हो गया।

किंतु हमें ब्रह्मचारीओं का और संन्यासियों का सम्मान करते रहना चाहिए।

बस आपके मुखारविंद से राम नाम चर्चा सुनने की अभिलाषा है।

🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻


"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 

 जय गुरूदेव । जय महाकाली


 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...