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Tuesday, September 15, 2020
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 23 | 9 का चक्कर या घनचक्कर
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 23
9 का चक्कर या घनचक्कर
Npc Narendra Parihar: जिज्ञासा शान्ति हेतु ही यह सन्देश यहां उध्दृत किया गया है।
धन्यवाद।
Amita Bhabhi: PM’s numerology
1. Came at 9:00 am
2. Speech for 9 mins
3. Date 5th April i.e. 5+4=9
4. At 9:00 pm for 9 mins
5. 9 days of lockdown today
6. 9 days will be left on 5th April
5 Apr (5+4) = 9*
9* pm
9* Mins
9* number is Mars (मंगल)
Light, Fire = Mars
Modi ji Activating energy of planet.
Also
5+4=9, 9 pm, 9 mins.
3 multiplied by 9 = 27 i.e. 2+7 = 9.
Navgruha aaradhana means pleasing the nine planets to save life.
*सब का मंगल हो*
Very nicely explained by Jaya Madan why modiji informed and wish to do Diya on particular time n date...9.Hats off to such a PM.
Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रभु जी पूरे दिन में सूर्य न जाने कितने क्लोरी ऊर्जा उत्सर्जन करता है।
पूरे भारत वाशी प्रति दिन रसोई, पूजा पाठ आदि में भी ऊर्जा का उत्सर्जन करते है।
उस वक्त लाइट आदि बन्द करने को कहा गया है जबकि यह लाइट तो ऊर्जा का काफी उत्सर्जन करते है।
फिर कौन सी ऐसी ऊर्जा यह दीया, टॉर्च, मोबाइल है जोकि इस विषाणु को मारेगी। यह बिल्कुल कोई ऐसी ऊर्जा का उत्सर्जन नही कर रहा। सिवाय एक के।
हमारा समाज एक और विसानु से लड़ रहा है वो है मुहजिदो से। वरना कोई कारण नही था प्रधानमंत्री का लॉकडाउन के मध्य में आना और कोई विशेष दिशा निर्देश दिए बिना केवल यह कार्य के लिये कहना। यहाँ यह आवश्यक था कि इन मुहजिदो को बताना की समस्त प्रजा राजा के साथ है, इसलिये संगठन की ऊर्जा को निसर्जित करना आवश्यक है। आप क्या मानते है, मोदी जी या प्रसाशन का कोई व्यक्ति आपको देखने आएगा कि आपने दीया जलाया या नही। नही। कोई नही आएगा, लेकिन एक व्यक्ति जरूर देखेगा। मुहजिद।
वो देशद्रोही जो किसी न किसी रूप में आपके हमारे मध्य है। उसे जरूर एहसास होगा, संगठन का। वो छिटक कर समाज के सामने भी आ जायेगा ठीक पॉपकॉर्न की तरह।
इसलिये यह तनिक सी ऊर्जा का उत्सर्जन आवश्यक है। कोरोना का वायरस तो बाल का भी हजारवाँ हिस्सा है उसे नजर नही आएगा कि अमुक व्यक्ति ने ऊर्जा की या नही की। लेकिन बगदादी की औलादों को ठीक ठीक नजर आएगा।
जय गुरुदेव।
जय श्री कृष्णा
Pragya del: लीजिए आनंद उस दृश्य का जिसके लिए विश्व का हर रामभक्त 70 बरस से प्रतीक्षारत था
(लोग मास्क लगाए खड़े हैं और सोशल डिस्टेनसिंग का भी काफी ध्यान रखा जा रहा है)
तो बोलो
*सिया वर राम चन्द्र की - जय*
🚩जय श्री राम🚩
Pragya del: <Media omitted>
यक्ष प्रतिज्ञा।
विपुल लखनवी नवी मुंबई।
आओ मिलकर दिया जलाएं
दीया जलाकर देश बचाएं
दुनिया के आदर्श बन जाए
जहां आग हो उसे बुझाएं
धर्म संग मानवता जाने
घर के दुश्मन को पहिचाने
राष्ट्र चले विकास पथ पर
विकासशील देश कहलाएं
विपुल सबल जब राष्ट्र बनेगा
तब तक हम को चलना होगा
बाधाएं कितनी हो पथ पर
हर बाधाओं से टकराएं
Bhakt Lokeshanand Swami: बड़ी पुरानी घटना है। लाहौर में एक भक्त रहते थे, नाम था छज्जू। वे बड़े प्रभु-प्रेमी थे। एक दिन वे अपने चौबारे में सत्संगियों के साथ बैठे थे।
ज्ञान-ध्यान की बातें चल रही थीं कि नीचे संगतरे बेचनेवाला आया और ऊँची आवाज़ से कहने लगा-"अच्छे संगतरे! अच्छे संगतरे!"
छज्जू भक्त ने सत्संगियों से पूछा- "भक्तों! यह नीचे से क्या आवाज़ आ रही है?"
सत्संगी- "महाराज! संगतरे बेचनेवाला संगतरों का गुण बता रहा है।"
छज्जू भक्त- "ठीक है, परन्तु कहता क्या है? ध्यान से सुनो तो सही!"
इतने में फिर आवाज़ आई- "अच्छे संगतरे!"
सत्संगी- "महाराज! अच्छे संगतरे ही कह रहा है।"
छज्जू भक्त- "हाँ, यही कहता है। समझो! अच्छे संग तरे, जो अच्छों की संगति करता है, वह तर जाता है। अच्छे संग तरे!"
Bhakt Lokeshanand Swami: <Media omitted>
Bhakt Lokeshanand Swami: जनकजी के हृदय आँगन में खेलते खेलते भक्ति देवी, वृद्धि को प्राप्त हो गईं, युवा हो गईं। बस अब यह उन्हें सौंप दें, जिनकी धरोहर है, तो जीवन का संपूर्ण लाभ मिल जाए।
और इसके लिए कुछ करना नहीं है, बस प्रतीक्षा मात्र करनी है।
भीतर तक, वर्षा की टपाटप आवाज आ रही है, बाहर आकाश में घनघोर काले बादल होंगे ही, इसमें संशय कैसा? यहाँ भक्ति उफान पर है, तो भगवान आएँगे ही, इसमें भी संशय न करें।
पर भगवान कैसे आएँ? अभी तक गुरुजी नहीं आए ना। बस गुरुजी के आने की देरी है, भगवान के आने में देरी नहीं है।
आज संदेशवाहक दौड़े आए। संदेश दिया कि मुनि विश्वामित्रजी आ रहे हैं। बस जनकजी सिंहासन से उतर गए। उतरना ही था। जिन संत का हृदय पटल, उन अखिल कोटि ब्रहमाण्ड नायक आनन्दकंद भगवान श्री रामचंद्र जी का सिंहासन हो गया हो, उनके सामने जगत का बड़े से बड़ा सिंहासन भी मिट्टी है। जहाँ हीरा मिल रहा हो, वहाँ कौन मुट्ठियों में मिट्टी पकड़े रहे?
जनकजी मंत्रिमंडल सहित नगर के बाहर आ खड़े हुए।
जन्मों की प्यास बुझने को तैयार है, अब तो गुरुजी आ जाएँ बस। एक एक पल बरस सा बीत रहा था, कि सामने से गुरुजी आते दिखाई दिए। जनकजी दौड़ कर चरणों से लिपट गए।
गुरुजी ने उठाया, जनकजी उठे। बस उठते ही आँखें भगवान की आँखों से मिल गईं, जनकजी खड़े के खड़े रह गए।
आप सुधि पाठकजन विचार करें कि आपके पास गुरुजी तो हों, पर आपके हृदय आँगन में भक्ति देवी ही न खेलती हों, वहाँ कामना पिशाचिनी का वास हो, वासना का नंगा नाच चलता हो, तो गुरुजी भी क्या करें? कैसे भगवान से आपको मिला दें?
अब विडियो देखें- सीताजी का प्राकट्य-2
https://youtu.be/puXXKlOkPoc
अप्रैल 2020, एक बड़ी चुनौती है विद्युत विभाग के सामने कि भारत के माननीये प्रधानमंत्री जी द्वारा घोषित 9 मिनट तक दीपक या मोमबत्ती के रोशनी में रहना है। उससे बडी और एक ऐतहासिक चुनौती विद्युत विभाग के सामने है विद्युत ग्रिड को बचाने की। जब विद्युत मांग लगभग शून्य हो जाएगी और ठीक 9 मिनट के बाद जब दोबारा रोशनी चालू होगी, तब ग्रिड कैसे व्यवहार करेगा? ये सब एक बड़ी चुनौती है। अतः अनुरोध है कि मा0 प्रधानमंत्री जी के आवाहन का क्रियान्वयन करते समय अपने घर के अन्य उपकरण जैसे पंखा, कूलर, फ्रिज, वातानुकूलन यंत्र आदि चालू रखें ताकि ग्रिड पर लोड शून्य न हो जाए। दीया प्रज्वलन की अवधि के उपरान्त घर के पूर्व चलित उपकरणों में से कुछ उपकरण बन्द कर दें एवं घर में प्रकाश व्यवस्था हेतु लगे उपकरणों को एक एक करके कुछ समयावधि अन्तराल पर चालू करें ताकि ग्रिड फ़ेल होने से बचाया जा सके।
हम सब सुरक्षित रहें,
हमारा देश सुरक्षित रहे यही कामना है।
🙏जय हिंद🙏
सौजन्य से- बिजली विभाग😊
http://freedhyan.blogspot.com/2019/02/blog-post_25.html?m=1
Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...
अ-त्रिनेत्र: सर्व साक्षी, अ-चतुर्बाहुरच्युत:।
अ-चतुर्वदनो ब्रह्मा, श्रीगुरु कथित: प्रिये।।47।।
अर्थ: हे प्रिये (पार्वती)! बिना तीन नेत्रों के जो सर्व साक्षी शिव का स्वरूप है, बिना चार हाथ के जो भगवान विष्णु है और बिना चार मुख के जो चार मुख वाले ब्रह्मा के समान है। ऐसे गुरुदेव को ब्रह्मा विष्णु एवं शिव रूप कहा गया है।
व्याख्या: भाव यह है कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव तीनों परब्रह्म की शक्ति के आधार पर ही देवत्त्व धारण किये हुए है, उसी शक्ति के प्रभाव से सृजन, पालन, संहार आदि कार्य करने में समर्थ होते है। प्रकारान्तर से, ये तीनों देवता उस शक्ति का ही स्वरूप है।
किंतु यहाँ गुरुतत्व की शक्ति से विभूषित गुरुदेव को, इन तीनो देवताओं के प्रतीकात्मक चिन्हों के न होने पर भी इन तीनों देवताओ की सम्मिलित शक्ति का प्रतीक मान कर स्तुति की गई है। वैसे गुरु शक्ति का क्षेत्र इतना व्यापक है, कि जगत के जितने प्राणी है, उनकी इंद्रियां तथा मन आदि की सभी क्रियाएं, इस गुरुशक्ति के द्वारा ही कार्य करने में समर्थ होती है। भगवान शंकर की उपमा देते हुए यहाँ गुरुदेव को सर्वसाक्षी के विशेषण से विभूषित किया गया है। सब प्राणियों के जितने भी कार्य कलाप है, इसी गुरुशक्ति से संचालित होने के कारण उन सब कार्य कलापों के साक्षी भी वे गुरु देव है। यहाँ भगवान विष्णु के स्थान पर "अच्युत" शब्द का प्रयोग हुआ है, जिसका अर्थ होता है "जिसे कोई शक्ति, अपने स्थान से च्युत नही कर सकती अर्थात हटा नही सकती" ब्रह्मा, जिस प्रकार सृजन कार्य करते है, उसी प्रकार गुरुदेव भी साधकों के निर्माण करते है, अतः ब्रह्मा है।
Vipul Sen: <Media omitted>
यह दीप ज्योति की प्रार्थना आपके लिए ढूंढ कर लाया हूं कल आप लोग रात 9:00 बजे इसको अपने साउंड बॉक्स पर बजाने का अनुरोध है।
निवेदक विपुल लखनवी नवी मुंबई।
- Hb 87 lokesh k verma bel banglore:
*अवश्यमनुभोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ।*
*नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटि शतैरपि ।।*
मनुष्य अपने अच्छे व बुरे कर्मों का परिणाम अवश्य प्राप्त करता है । अतः सत्कर्म का सतत् प्रयासरत रहे।
Man is bound to experience the fruit of his good and bad actions. The KARMA doesn't diminish even after billions of days unless one experienced the fruits of KARMA(Action) .
*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*
*Be Alert* 🔴
Humble Request
*Those of you who plan to burn "Diya/Candle" on 5th April 2020 @ 9 pm, please do ensure that there is no Sanitizer on your Hand*
Pass on this message to maximum groups / your contacts.
As sanitisers are made from ethanol, a highly inflmable chemical. Mixed with hydrogen peroxide, which gives necessant oxygen, help for burning.
Glycerine is also flammable organic chemical.
Hence washing hands with soap is recommended before Diya lightening.
Mr. MK Mathur
Associate Director, NPCIL
*(Nuclear Power Corporation of India Limited*):-
Pl keep all Fans ON for fifteen minutes on dated 5/4/20 (8:55pm to 9:10pm) to maintain Grid-stability.
With Regards.....
Send this message in all groups.
+91 99260 92451: *गुलजार साहब की यह कविता आज बहुत याद आ रही है...👏👏*
*"बे वजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है......."*
*"........मौत से आँखे मिलाने की ज़रूरत क्या है...."*
*"सब को मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल......."*
*".......यूँही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है...."*
*"ज़िन्दगी एक नेमत है उसे सम्भाल के रखो......."*
*"........क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है...."*
*"दिल बहलाने के लिये घर में वजह हैं काफ़ी......."*
*".......यूँही गलियों में भटकने की ज़रूरत क्या है"......👍*
*Stay at HOME.....🏠*
*..........Stay SAFE..... 😍
*_➡मंदिर तक पहुँचना तन का विषय है..!_*
*_✅लेकिन ईश्वर तक पहुँचना मन का विषय है..!!_*
*_🌿🍁गुरुदेव दत्त🍁🌿_*
+91 99260 92451: "मनुष्य उतना दुःखी किसी बड़ी दुर्घटना से भी नहीं होता, जितना अपनी स्मृतियों से होता है ।गड़े मुद्दे उखाड़ कर वह स्वयं परेशानी मोल लेता है ।उसके दूषित सन्स्कार चित्त को अशांत करते रहते है ।अपने आनन्दमय कोष पर परदा डालकर वह जिवन भर रोता ही रहता है ।"
*स्वामी विष्णुतिर्थ *
"मनुष्य अपनी वासनाऔ को जितना बढ़ाता है और अपने मन के संकल्पो को जितना अधिक उलझन में डालता है, उतना ही वह अपनी कुण्डलिनी शक्ति के कुण्डलो को मजबूत करता है ।जिनकी सब गांठें खुल गई हो, मन संकल्प- विकल्प रहीत बन गया हो और वासनाये नष्ट हो गई हों, वही योगी हैं ।"
*स्वामी विष्णुतीर्थ*
"जिस मनुष्य के व्दारा संसार में उत्तेजना नहीं फेलती और जो स्वयं किसी भी स्थिति में उत्तेजित नहीं होता, -ऐसा हर्ष, शोक और भय के उव्देगो से मुक्त मनुष्य शिव रूप होता है ।"
**स्वामी विष्णु तिर्थ **
मित्रों कल जब आप 9:00 बजे दीप जलाएं उसके पश्चात आप यदि चाहे तो रात को सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि करें क्योंकि कल सभी आध्यात्मिक शक्तियों का आवाहन देश की जनता 9 मिनट तक करेगी अंत: आपको हो सकता है एक बार में ही कुछ अनुभव हो जाए।
Bhakt Lokeshanand Swami: देखो, भगवान आ तो जाते हैं, पर टिकते नहीं, निकल निकल जाते हैं। भगवान को ठहरा लेना हर किसी के बस की बात नहीं।
ध्यान दो, भगवान आए तो जनकजी की आँखें रामजी पर से हटाए नहीं हटतीं। हटाते हैं, पर फिर फिर उन्हीं पर टिक जाती हैं। जनकजी विचार में पड़ गए।
बड़ी कीमती बात है, महापुरुष के जीवन में दूसरे की बात नहीं, अपना अंतःकरण ही प्रमाण होता है। जनकजी अपने मन को जानने वाले हैं।
वे विचार करने लगे कि जो मन लौकिक सौंदर्य पर रीझ नहीं सकता, इन पर से हटता क्यों नहीं? ऐसा पहले कभी हुआ नहीं, होने की संभावना नहीं, फिर क्यों हो रहा है? जनकजी ने निर्णय लिया, कि मेरा मन ही प्रमाण दे रहा है कि ये लौकिक नहीं हैं, इस लोक के नहीं हैं, अलौकिक हैं, परतत्व हैं, परमात्मा हैं।
बस परमात्मा पहचाना गया, रोम रोम हर्षित हो, बार बार गुरुजी के चरणों में गिरते हैं। "बड़ी कृपा की, बड़ी कृपा की" ऐसा बार बार कहते हैं। प्रभु के दर्शन हो गए, जीवन सफल हो गया, आँखों का लाभ मिल गया।
भगवान तो आ गए, अब प्रश्न पैदा हुआ कि भगवान को ठहराऊँ कहाँ? जनकपुर में आलीशान महलों की कोई कमी नहीं है, सामान्य जन और स्वयं जनकजी लगभग एक जैसे भवनों में रहते हैं। पर ईश्वर को सांसारिक ऐश्वर्य नहीं रोक सकता। इन्हें तो किसी विशेष भवन में ठहराना चाहिए। कहाँ? भक्ति के भवन में ठहराना चाहिए।
बस जनकजी को सीताजी की याद आ गई, सीताजी को बुलाया। जानकी! कुछ समय के लिए तुम्हारा भवन चाहिए, मैं वहाँ रामजी को ठहराना चाहता हूँ। और ऐसा ही हुआ, रामजी सुखपूर्वक ठहर गए। जनकजी का मनोरथ पूरा होने को ही है।
आप भी अपना मन भक्ति का भवन बना लें, भगवान स्वयं आकर ठहर जाएँगे, आपका भी मनोरथ पूरा हो जाएगा।
और मन को भक्ति का भवन कैसे बनाएँ, इसके लिए अब विडियो देखें-
https://youtu.be/ESPnyWtrLSA
Bhakt Lokeshanand Swami: <Media omitted>
Hb 87 lokesh k verma bel banglore:
क्रोधो वैवस्वतो राजा तॄष्णा वैतरणी नदी।
विद्या कामदुघा धेनु: सन्तोषो नन्दनं वनम्॥
क्रोध यमराज के समान है और तृष्णा नरक की वैतरणी नदी के समान। विद्या सभी इच्छाओं को पूरी करने वाली कामधेनु है और संतोष स्वर्ग का नंदन वन है।
Anger is like King of Death. Greed is like turbulent river of hell. Knowledge is all fulfilling cow and contentment is the heaven's paradise.
*शुभोदयम्! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*
Bhakt Anil Kumar: होइहि सोई जो राम रचि राखा
को करि तर्क बढावै शाखा
सब कुछ ईश्वर की इच्छा हो रहा है
इसलिए जिनको यह लगता है कि उनसे कोई गलती हुई तो वह गलत
और कोई यह कहे कि अध्यात्म में मैंने काफी ऊंची अवस्था को प्राप्त कर लिया तो ये भी गलत
इसलिए इस ग्रुप में कोई कहता है कि हमारे हाथ में केवल प्रयास करना है फल ईश्वर के हाथ
पुरुषार्थ उसका☝🏻समर्पण भी उसको।
हर काम उसका☝🏻सब अर्पित हो उसको।
Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...
अयं मयान्ज्लिर्बद्धो, दया सागरवृद्धये।
यदनुग्रहतो जन्तुश्चित्रसंसार मुक्तिभाक्।।48।।
अर्थ: अपनी सर्वतोमुखी वृद्धि (उन्नति) के लिये दयासागर इन गुरुदेव की बद्धाजंलि होकर (प्रार्थना-करना चाहिये कि हे दया सागर! आप मेरी साधना की वृद्धि में सहायक हो।) प्रणाम करना चाहिये। जिनके अनुग्रह प्राप्ति के बाद प्राणी इस चित्र (विविधता से भरा हुए) संसार से मुक्ति का भागी बनता है।
व्याख्या: गुरुदेव तो दया के सागर होते ही है। उनका प्रकाट्य ही शिष्यों के कल्याण के लिये होता है, किंतु शिष्यों को उनके समक्ष बद्धाजंलि होकर, अर्थात विनम्रता पूर्वक श्रद्धा सहित प्रणाम की मुद्रा में प्रस्तुत होना चाहिये। बद्धाजंलि का एक अर्थ और लिया जा सकता है, जब तक खुले हाथ होते है द्वैत का प्रतीक है, और जब दोनों हाथ मिल जाते है, तो अद्वैत भाव की मुद्रा बन जाती है, जिसका अर्थ होता है कि संसार के प्रति मेरी जो द्वैत भावना है, उसका आप नाश कर दे।
"चित्र संसार मुक्ति भाक्" का अर्थ होता है कि यह संसार नाना प्रकार की विविधता से युक्त होने के कारण चित्र की भांति सबको अपनी ओर आकर्षित करता रहता है और इस प्रकार के संस्कारों को जन्म देता है, जो बन्धन के कारण होते है एवं इसी कारण आवागमन के चक्र से मुक्ति नही मिल पाती। यहाँ गुरु शक्ति के अनुग्रह प्राप्ति की प्रार्थना करते हुए, संचित संस्कारो के क्षीण करने हेतु एवं अपने अभ्युदय के लिये प्रार्थना कर रहा है। मुक्ति की याचना कर रहा है
Vipul Sen: <Media omitted>
ये प्रार्थना स्वास्तिक की प्रार्थना है इसको भी आप शाम को बजा सकते हैं।
Hb 96 A A Dwivedi: पता नहीं क्यों तुम बार बार हमारी गाली खाने आ जाते हो और जानते हो कि हमारे हृदय में तुम्हारे लिए गालीयां है।।
राम यानी हमारे पुरूषार्थ
पुरुषार्थ यानी समर्पण भाव जो ध्यान में शक्ति के सम्मुख हम करते हैं और उससे हि चित्त की सफाई होती है और संस्कार नष्ट होते हैं।।
वैसे तो संसार में सबकुछ शक्ति का खेल चल रहा है लेकिन जब हम जगत व्यवहार में होते हैं तो अपनी बुद्धि का उपयोग करते हैं और उस समय शरीर क्रिया करता है जो कि संस्कार के अनुसार गति करता है।।
यह गुढ बात समझ आना जरूरी है।।
बगैर ध्यान साधना के लोग सबकुछ शक्ति के भरोसे छोड़ देते हैं जो सही नहीं है और शरीर से क्रिया तथा मन से कर्म करते हुए नये संस्कार जोड़ने लगते हैं।।
अजपा जप जिसे कहा गया है वो भी शक्ति के द्वारा ही होता है और जब हम इसमें अहम भाव जोड़ लेते हैं तो उससे भी संस्कार संचित होते हैं।।
राम यानी पुरूषार्थ के द्वारा प्रारब्ध कर्म फल को भी कम किया जा सकता है यही करम का सिद्धांत है।।
अध्यात्म में ऊंचाई जैसी कोई चीज नहीं होती है कारण ऊंचाई पर स्थित होने पर जगत हि नहि रह जाता है।।
कोई ऊंचाई पर स्थित है तो हम सबको दर्शन का लाभ करवाओ
Bhakt Anil Kumar: लेकिन आप गाली तो देते नहीं कभी
पुरुषार्थ और समर्पण
दोंनों को ठीक से समझाइये
और अन्य लोग भी चर्चा में सम्मिलित हों तो निष्कर्ष पर जल्दी पहुंच सकते हैं
Hb 96 A A Dwivedi: आत्मा, ईश्वर इसको शास्त्रों में पुरुष कहा गया है और उसके दृष्टा भाव में स्थित होने पर जो भी कार्य होते हैं उसे हि समर्पण कहते हैं।।
ध्यान में जब हम अपने स्वयं के प्रयास बन्द कर देते हैं और साक्षी भाव से क्रियाओ का अवलोकन करते हैं उसे हि समर्पण कहते हैं।।
मतलब जीव भाव का पुरुष भाव में आना
इसलिए पुरुषार्थ और समर्पण एक ही है।।
यह बड़े महाराज जी ने कहा भी है शायद पुस्तक मिलती है तो लेख भेजते हैं
🌹😊👏🙏
Bhakt Anil Kumar: पुरुषार्थ और समर्पण दोंनों एक ही हैं
☝🏻इस पर विपुल सर आप भी अपने विचार रखें
क्या कोई और अधिक अच्छे से नहीं समझा सकता
क्या ग्रुप में कोई भी नहीं जो सही से समझा सके
अंतर मात्र भाव का है भाव ही पुरुषार्थ को समर्पण का रूप दे देता है और भाव ही पुरुषार्थ को गर्व यानी अहंकार का रूप भी बना देता है निर्भर यह करता है हम किस भाव में रहते हैं।
पुरुषार्थ के कई अर्थ होते हैं लेकिन वास्तविक अर्थ यह है कि तुम अपने को पहचानो और वह सारे अर्थ जो तुम्हारी पहचान में रुकावट डालते हैं वह पुरुषार्थ नहीं गर्व है यानी अहंकार है।
अहंकार भी कई अर्थ लिए होता है इसीलिए मैं गर्व वाला अहंकार लिख रहा हूं।
अपने को जानना ही अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना ही वास्तविक अहंकार है भौतिक रूप में अपनी पहचान बनाना और उस में लिप्त हो जाना यह गर्व वाला अहंकार है।
Monday, September 14, 2020
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 22
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 22
कोरोनाकाल कैद में ज्ञान
बेहद सुंदर और आवश्यक आत्म अवलोकन कृपया आप यह जरूर देखें।
मेरी मां नहीं है अब। २०११ मैं चली गई।
मत होना कभी निराश तुम, यदि कहीं घोर अंधेरा पाओ।
यह तुमको एक अवसर देता, बनो दीप तुम राह दिखाओ।।
यदि कहीं फंस जाओ विपुल तुम, तारों की इक भीड़ में।
तब तुमको यह अवसर होगा बनकर सूरज चमक दिखाओ।।
मैं मुंबई में रहने के कारण सेवा ना कर सका। हां पिताजी के लिए 21 दिन तक वार्ड बॉय बन गया था।
Bhakt Swagat Shukla Ref Dandi: मित्र ,एक तरफ आप कहते है ,ब्राह्मण , गिनती पर गिने हुऐ है , दुसरी ओर उनगिने हुऐ ब्राह्मणो में , अपने आप को श्रेष्ठ ब्राह्मण घोषित कर रहे है, क्या ये तुम्हारे अनुसार की गयी ब्रम्ह को जानने वाले गिनती में गिने हुऐ ब्राह्मणो का अपमान नही , अपने को गिने हुऐ मे श्रेष्ठ घोषित करना , आप के अंदर बढ रहे अभिमान का संकेत नही , आप के इस सर्वश्रेष्ट की घोषणा को ग्रुप के ब्रम्ह को जानने वाले क्या , मित्र गण क्या उचित कहेगे , अपने मुह तुम आपन करनी बार अनेक भाँति बहु बरनी
आत्मा स्तुति
Bhakt Vipin Banni: कोई हिम्मत नहीं कर पा रहा है खुलकर कहने की, क्योकि वो बनावटी हैं, हाँ मैं ब्रम्ह को जानता हूँ
Bhakt 16 ref dandi: जन्म ही श्रेष्ठ है कर्म तो बनते बिगड़ते रहते हैं
Bhakt Swagat Shukla Ref Dandi: पुस्तक का ज्ञान , घर में रखा धन , परदेश में काम नही आता , मित्र सेन जी आप ने अपने को सबसे श्रेष्ट घोषित कर दिया , यदि आप के हाथ मे स्मार्ट फोन न हो तो ,एक मित्रता के नाते सच बताना , कितने समय तक , समाज की एकता , समृद्धि , उत्तम संस्कार , सरता , उदरता ,प्रेम , भाव , क्षमा , शान्ति , आदि बिन्दुओ पर बोल कर ,राष्ट्र , समाज , व विश्व को एक सुत्र बाँध का , कार्य सकते
कर्म श्रेष्ठ है ,जन्म तो अनगिन्त बार ले चुके है , वो जन्म श्रेष्ट जिसमें कर्म श्रेष्ट थे , जैसे विदुर , शवरी , केवट ,
देखना है तो नजदीक आकर देखिए।
प्यार भी हो जाएगा नजरें मिलाकर देखिए।।
मैं ब्राह्मण हूं और मैं भी श्रेष्ठ तो कहने में क्या आपत्ति है आपने पूछा तो कह दिया।
💐💐💐
और हां जी मैं निष्ठा पूर्वक कह सकता हूं यह मैंने अहंकार रहित परिचय दिया है। क्योंकि मैं अहंकार को जानता हूं और अहंकार के साथ रहता हूं।
जो सूझे वह है विज्ञानी।
जो समझे वह तो है ज्ञानी।।
Bhakt Swagat Shukla Ref Dandi: अब आप अपनी पोष्ट का मुल्यांकन भी खुद करने लगे
बस यही तो समझ का फेर है।
मित्र आप सभी से अनुरोध करता हूं आप किसी अन्य पर बिल्कुल यकीन न करें सिर्फ आपके अनुभव आपके अनुभूतियां ही सत्य है आपके लिए और यह भी मैं दावा करता हूं कि हमारी भगवत गीता में या अन्य जगह जो भी बातें की हुई है उनके अनुभव किए जा सकते हैं लेकिन मनुष्य को उसके लिए लगन के साथ मेहनत करनी पड़ती है।
कभी भी किसी को मानो मत जानो। जानने से ही तुम ज्ञानी बन पाओगे।
किन्तु सेन जी ये तो आप को मानना ही पडेगा , कभी कभी आप उचित शब्द का चयन करने मे जल्द बाजी करदेते है , जिससे भाव बदल जाता है ,
Swami Veetragi R Sadhna Mishra: <Media omitted>
Bhakt Lokeshanand Swami: भरतजी कहते हैं, गुरुजी! मैं आर्त हूँ, ठगा गया हूँ, विधि ने मुझे ठगा है, ऐसा कौन सा कुकर्म है जो मैं नहीं कर सकता।
गुरुजी, लोग मेरे लिए चाहे जैसा बोलते हों, मुझे दुख नहीं, पिताजी स्वर्ग चले गए, उसका भी मुझे दुख नहीं, आपके सम्मुख उत्तर देता हूँ और मेरा हृदय फट नहीं जाता, इसका भी दुख नहीं।
पर मुझे एक बात का दुख है कि श्रीसीतारामजी को मेरे कारण कष्ट सहना पड़ रहा है, इस सारे अनर्थ का कारण मैं हूँ। कैकेयी का पुत्र कैकेयी से भी अधम है क्योंकि कारण से कार्य कठिन होता ही है।
यह तो वह सिंहासन है जिस पर भागीरथ बैठते थे, दिलीप, हरीशचंद्र, महाराज रघु बैठते थे, इसपर मुझ पापी को बिठाइएगा तो पृथ्वी रसातल में डूब जाएगी। मैं ही अयोध्या के दुख का एकमात्र कारण हूँ, मेरे में इसे हाथ से छूने भर की भी योग्यता नहीं है।
गुरुजी ने पूछा, भरत! इस पृथ्वी पर हिरण्यकशिपु जैसे राजा हो गए, रावण जैसे राजा हैं, तब भी पृथ्वी रसातल को नहीं गई, तुम्हारे बैठने से चली जाएगी? भरतजी ने कहा, गुरुजी! वो तो रामजी के कुछ नहीं थे, वे पाप करके राजा हो गए इसमें हैरानी नहीं, पर यदि राम का भाई भी वैसा ही करेगा तब तो पृथ्वी रसातल को चली ही जाएगी।
फिर भी गुरुजी, यदि पिताजी की आज्ञा मानने न मानने का प्रश्न है, तो उन्होंने स्वयं मुझे राजपद दिया है, माने राजा का पद दिया है, राजा तो रामचन्द्रजी हैं, और आपने ही पढ़ाया था कि पद माने चरण होता है, मुझे तो प्रिय पिताजी ने रामचन्द्रजी के चरणों की सेवा दी है।
मैं तो उन्हीं चरणों में जाऊँगा गुरुजी! मैं सिंहासन पर नहीं बैठूंगा।
देखें, किस प्रकार से सच्चा संत बड़े से बड़े सिंहासन को भी ठोकर मार कर, रामजी जिस मार्ग पर चले, उस मार्ग का अवलम्बन करता है।
अब विडियो देखें- भरत वशिष्ठ संवाद
https://youtu.be/Prno51D86U0
Bhakt Lokeshanand Swami: मैं मौमु सेठ के बारे में बहुत तो नहीं जानता, पर इतना तो जानता ही हूँ कि वह पहले से ही सेठ नहीं था। वह तो एक गरीब आदमी था, झन्नु उसका नाम था।
झन्नु हमेशा झन्नाया रहता। बिना बात का झगड़ा करना तो उसके स्वभाव में ही था। किसी ने पूछ लिया कि झन्नु भाई टाईम क्या हुआ होगा? तो झन्नु झनझना जाता और कहता- यह घड़ी तेरे बाप ने ले कर दी है? यहाँ टाईम पहले ही खराब चल रहा है, तूं और आ गया मेरा टाईम खाने। भाग यहाँ से।
अब ऐसे आदमी के साथ कौन काम करे? न उसके पास कोई ग्राहक टिकता, न नौकर। यही कारण था कि वो जो भी काम करता था, उसमें उसे नुकसान ही होता था।
कहते हैं कि एक संत एक बार झन्नु के पास से गुजरे। वे कभी किसी से कुछ माँगते नहीं थे, पर न मालूम उनके मन में क्या आया, सीधे झन्नु के सामने आ खड़े हुए। बोले- बेटा! संत को भोजन करा देगा?
अब झन्नु तो झन्नु ही ठहरा। झन्ना कर बोला- मैं खुद भूखे मर रहा हूँ, तूं और आ गया। चल चल अपना काम कर।
संत मुस्कुराए और बोले- मैं तो अपना काम ही कर रहा हूँ, बिल्कुल सही से कर रहा हूँ। तुम ही अपना काम सही से नहीं कर रहे।
झन्नु झटका खा गया। उसे ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी। पूछने लगा- क्या मतलब?
संत उसके पास बैठ गए। बोले- बेटा! मालूम है तुम्हारा नाम झन्नु क्यों है? क्योंकि झन्नाया रहना और नुकसान उठाना, यही तुम करते आए हो।
अगर तुम अपना स्वभाव बदल लो, तो तुम्हारा जीवन बदल सकता है। मेरी बात मानो तो चाहे कुछ भी हो जाए, खुश रहा करो।
झन्नु बोला- महाराज! खुश कैसे रहूँ? मेरा तो नसीब ही खराब है।
संत बोले- खुशनसीब वह नहीं जिसका नसीब अच्छा है, खुशनसीब वह है जो अपने नसीब से खुश है। तुम खुश रहने लगो तो नसीब बदल भी सकता है। तुम नहीं जानते कि कामयाब आदमी खुश रहे न रहे, पर खुश रहने वाला एक ना एक दिन कामयाब जरूर होता है।
झन्नु बोला- महाराज! दुनिया बड़ी खराब है और मेरा ढंग ही ऐसा है कि मुझसे झूठ बोला नहीं जाता।
संत बोले- झन्नु! झूठ नहीं बोल सकते पर चुप तो रह सकते हो? तुम दो सूत्र पकड़ लो। मौन और मुस्कान। मुस्कान समस्या का समाधान कर देती है। मौन समस्या का बाध कर देता है।
चाहे जो भी हो जाए, तुम चुप रहा करो, और मुस्कुराया करो। फिर देखो क्या होगा?
झन्नु को संत की बात जंच गई। और भगवान की कृपा से उसका स्वभाव और भाग्य दोनों बदल गए। फल क्या
Npc Narendra Parihar: राम नवमी पर आप सभी को शुभ कामनाएं ।
धीरज, धर्म , मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥
बन्धुओं!
आपत काल यानी मुसीबत में ही आदमी के धैर्य , धर्म , मित्रों और पत्नी की पहचान होती है।
राष्ट्र हित में मंदिरों में भव्य आयोजन नहीं हो पा रहें हैं। परन्तु अगर आप रामभक्त हैं तो सबसे बड़ा मंदिर तो आपका घर है और देवता तो आपके हृदय में है।
क्या आप इतने मजबूर हैं कि, अपने सबसे बड़े आराध्य के जन्म दिन पर भी इसे भी सूना रखेंगे?
आज शाम अपने घर में कम से कम सात दीप जलाकर बालकनी या घर से बाहर रखें। दीप के तेल में थोड़ा सा कपूर का चूरा भी मिला दें , जो कि वातावरण को शुध्द करेगा।
आइये अपने हृदय में राम को धारण करें और जोर से बोलें
*जय श्री राम!*
Bhakt Parv Mittal Hariyana: दूरदर्शन पर चाणक्य नाटक का प्रसारण चल रहा है। बचपन मे अक्सर देखा करते थे। जो बीच मे ही रोक दिया गया था। तब बड़ा दुख हुआ था। निश्चित ही अब देखने के अवसर प्राप्त होगा। बहुत ज्ञानवर्धक सीरियल है
अथ श्रीगुरुगीता...
गुकारं च गुणातीतं, रुकारं रूप वर्जितम्।
गुणातीत स्वरूपं च, यो दघात् स गुरु: स्मृत:।। 46 ।।
अर्थ: गुरु शब्द में "गु" कार अक्षर गुणातीत का बोधक है और "रु" कार रूपातीत का बोधक है, ऐसे जो गुणातीत और रूपातीत स्वरूप के प्रदाता है, उन्हें गुरु कहा जाता है।
व्याख्या: श्रीगुरु शक्ति, सत्व, रज, तथा तम इन तीनों से अतीत है, बाकी सारा जगत त्रिगुणात्मक है, माया के अधीन है। गुरु शक्ति का कोई रूप भी नही है, वह निराकार, गुणातीत, रूपातीत है। यही स्वरूप परब्रह्म परमेश्वर का भी कहा जाता है, अतः गुरु एवं परब्रह्म एक ही है, जब परब्रह्म शिष्यों के कल्याण के लिये तत्पर होता है, तो उसे ही श्रीगुरु कहा जाता है। जब वह गुरु शक्ति किसी मनुष्य शरीर मे जाग्रत व प्रकाशित होती है तब उसे ही सद्गुरु कहा जाता है। वही गुरु-शक्ति मंगलमयी बनकर शिष्यों में जाग्रत व प्रकाशित हो उठतीं है। इसे ही यहाँ गुणातीत स्वरूप का दान समझना चाहिए। गुरु शक्ति ही जाग्रत होने पर संस्कारो को क्षीण करती है, विकारों को मिटाती है, चित्त को शुद्ध करती है, और शिष्य के चित्त पर से अविद्यादि पंच क्लेशो को दूर करती है। चित्त शुद्ध हो जाने पर नित्य, शुद्ध, बुद्ध, सच्चिदानन्द स्वरूप आत्मा का अंतर में ज्ञान होता है, आत्मा के निराकार एवं गुणातीत स्वरूप का बोध होता है, तब नाना नाम रूपात्मक जगत विलीन हो जाता है। जब पुनः व्युत्थान दशा आती है, तब जगत का ज्ञान होता है, इसके बाद जगत का मिथ्यात्त्व स्पष्ट हो जाता है। इस प्रकार के बोध देने वाले ही सद्गुरु कहलाने के अधिकारी है, शेष तो मिथ्या गुरु की सीमा में ही आते है।
आप हैं हमारे गुरूदेव स्वामी नित्यबोधानंद जी महाराज। जिनके पास में स्वप्न और ध्यान के माध्यम से गया था।
Hb 87 lokesh k verma bel banglore*भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टवा अ्ं सस्तनूभिव्यशेमहि
देवहितं यदायुः ।।
*RIGVED :1/89/8*
*YAJURVED: 25/21*
*SAMVED : 1874*
विद्वत लोगों की संगति मे हम सत्य एवं ईश्वर की प्राथना करें जिससे हमारी आयु बढे।
हम असत्य न सुने ,नही बोलें ।
ईश्वर हमें शक्ति दे कि हम अपने आचरण को संयमित कर सकें ।
In the company of learned men , let us hear beautiful words, see the truth & worship God, so that our longevity may increase. Let us not speak untruth, nor hear words of false praise nor see what is bad .
May God grant us the power to keep our senses under control.
*शुभोदयम्!लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*
श्री सद् गुरूवे नमः
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः
+91 99260 92451: निज सरल सहज मुस्कान लिये श्री गुरूदेव नित्य बोधाननद तिर्थ जी महाराज के श्री चरणों में कोटि कोटि प्रणाम
Npc Narendra Parihar: ताला बन्दी 2
बाहर बन्द ज़रूर हुआ पर दिमाग़ खुल गए।
1. वातावरण स्वच्छ रखने के लिए अरबों खरबों खर्च करवाने वाले किताबी विद्वानों को मुफ्त में ये काम करने का रास्ता दिख गया।
बैठे बिठाए हवा स्वच्छ हो गई, नदियां स्वच्छ हो गईं औऱ सारा वातावरण स्वच्छ हो गया।
2. आदमी को पता लग गया , जीने के लिए सिर्फ दो ही चीजे ज़रूरी हैं, परिवार और दाल रोटी।
बांकी सब फ़िज़ूल है। जिसके पास ये है वही अमीर है।
3. ऊपर वाले ने, लाठी मार कर, समझा दिया कि वो न मंदिर में रहता है, न मस्ज़िद में न गुरुद्वारे में ! वो तो आपके दिल में रहता है।
4. देशवाशियों को मित्रों और दुश्मनों की पहचान हो गई । समझदार और बेवकूफों का पता लग गया।
5. पता लग गया कि मुसीबत में भव्य धार्मिक स्थलों से ज्यादा भव्य अस्पतालों की जरूरत पड़ती है।
हम देश के लाखों करोड़ों धार्मिक स्थलों की जगह , अगर हम अपना दान , उससे चौथाई संख्या में भी अस्पताल बनाने में दें, तो देश में सबको मुफ्त उपचार मिल सकता है।
हर मुसीबत एक अवसर लाती है,,,सुना था ,,,,पर देखा तालाबंदी में,,
जय हिंद।
नरेंद्र परिहार।
Bhakt Anil Vibhute Thane Dir: एक मोमबत्ती 2 कॅलरी उष्मा देती है
मोबाईल का टॉर्च 0.5 कॅलरी उष्मा देता है
तेल वाला दिया 3 कॅलरी उष्मा देता है
तो समझो 130 करोड भारतीय मेसे 70 करोड भारतीय ने भी 30 करोड़ मोमबत्ती,20 करोड़ मोबाइल टॉर्च,20 करोड़ तेल वाला दिया जलाया तो लगभग 1 मिनिट में 125 कॅलरी उष्मा पैदा होगी
और
कोरोना व्हायरस तो 10 कॅलरी मे ही मर जायेगा
ये है इसके पीछे का विज्ञान 5 अप्रैल को रात को 9 बजे 9 मिनिटं दिये,मोमबत्तिया, मोबाईल टॉर्च जरूर जलाये
BVP GAGAN Panday: People were expecting harsh and tough message from PM after Nijamuddin incident in Delhi , followers are disappointed and opposition is making fun.
Law and order is state subject and possibly under Home ministry , PM is on constitutional posts not on political post to entertain people with his speeches and it's emergency not election season , people are watching Ramayana and Mahabharata these days which is defining the ideal role and responsibilities of authorities under different circumstances and situations.
PM has asked to switch off the electric lights on 5th April at 9 PM and to light Dias , candles , Mobile light etc , he might be doing satellite (light) mapping to gauge the effect of his appeal , wherever appeal is followed only health ministry may entertain , otherwise health ministry may entertain along with home ministry.
Hb 96 A A Dwivedi: शब्द स्पर्श रूप रस गंध यह सभी हमारे पांच तत्वों को निर्दिष्ट करते हैं और इनको हमारा शरीर इन्द्रिय के द्वारा जानता है और जो विषय पहले से ही संस्कार के रूप में मौजूद होते हैं तो उसके अनुसार हम कर्म करते हैं।।
मतलब अगर संस्कार संचित कम होने लगे तो विषयों के अभाव में हम शान्त रहने लगेंगे।।
संस्कार नष्ट मतलब क्रिया के द्वारा ध्यान में
शरीर जड है और इसलिए इस बारे में लगातार चिन्तन करते रहना चाहिए जड़ पदार्थ से हमारा कोई भी सम्बन्ध नहीं है क्योंकि हम चैतन्य चित्र रहित ज्योतिर्मय आनन्द रुप आत्मा है।।
सवाल यह है कि मानने से काम नहीं चलता है तो इसलिए हमारे ऋषियों ने अभ्यास के लिए बहुत जोर दिया है और जो भी विषय हमारे विकार के कारण है वो सबसे पहले चित्त में उठते हैं उसे मन घटा या बढ़ा देता है इसलिए उस विचार रुपी विकार को मन से ही मारो।।
मारो यानी यह चिन्तन की इन्द्रियों का विषय यह शरीर है जो कि जड है और हम ईश्वर लीन चैतन्य निर्विकार निराकार अजन्मा आतमरुप है।।
लगातार आतमरुप के चिन्तन से विचारों में बहुत ही जल्दी शुद्धि होने लगती है और आत्माराम जागरण शुरू हो जाता है।।
विश्वास करें जितना अधिक आत्माराम का चिन्तन करते हैं वो हमारे सामने प्रतयक्ष ऐसी स्थिति खडि करने लगता है जो हमें भवसागर से पार लगाती है।।
जितना भी नाम जप है वो सभी आत्माराम यानी आतमरुप के लिए ही है।।
यह विषय बहुत ही ध्यान से समझिए और इसके भीतर उतरने पर आत्माराम निश्चित ही हाथ पकड़ लेता है।।
जय गुरुदेव🙏👏😊🌹
Bhakt Anil Kumar: क्या आत्माराम का चिंतन ,बिना शक्ति जाग्रति के भी काम करेगा
Hb 96 A A Dwivedi: जगत कैसे उत्पन्न हुआ है यह जानने की विधि है तत्व ज्ञान और जिससे यह पता चलता है कि कुछ भी न उत्पन्न हो रहा है और न ही नष्ट हो रहा है।।
जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वो भ्रम मात्र है और सबकुछ आत्मतत्व में चैतन्य शक्ति में मन के फुरने से हो रहा है जिसे संकल्प भी कहते हैं।।
ब्रहम सत्य जगत मिथ्या
जब हम शरीर को अपना अस्तित्व मान लेते हैं जो कि सत्य प्रतीत होता है तो शक्ति के कार्य को अपने से अलग नहीं देख पाते हैं शक्ति जागरण के बाद भी तो ऐसे में मन की शक्ति जो चंचलता है उसे विचारों के द्वारा काटकर तीव्र गति प्रापत होती है।।
जैसे लोहे को लोहा काटता है वैसे ही मन में उठ रहे विचारों को आत्मचिंतन से समाप्त करने की विधि कारगर है और शासत्र सम्वत है।।
जब तक आतमरुप के दर्शन नहीं होते हैं और चित्त में संस्कार रहते हैं या फिर हम अज्ञानवश इसे छोड़ रहे हैं तो शक्ति जागरण के पहले और बाद दोनों ही स्थितियों में आत्मचिंतन बहुत ही श्रेष्ठ साधन है और त्वरित परिणाम मिलता है।।
जय गुरुदेव👏🙏😊🌹
Bhakt Anil Kumar: स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज
गुरुदेव ने कहा है कि चिंतन मनन सब शंक्ति जाग्रति कै बाद ही काम करेंगे
Hb 96 A A Dwivedi: गुरुदेव ने ऐसा कहा है जिसका अर्थ है पुरुषार्थ से शक्ति का सदुपयोग।।
शक्ति हि सबकुछ करती है यह अज्ञानता है शक्ति को वह समय और उचित आत्मचिंतन लगातार करना पड़ता है।।
अन्तर जागरण में शक्ति प्रतयक्ष ध्यान में कार्य करती है लेकिन जगत के व्यवहार में हमारे अनुभव जिसे बुद्धि कहा गया है उसका हि उपयोग आत्मचिंतन है और यह करम करने के कारण प्रारब्ध काटने और नये पैदा न हो इसका मार्ग प्रशस्त करती है।।
जय गुरुदेव👏🙏😊🌹
Bhakt Brijesh Singer: श्री मदभगवत् गीता....
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्।।
पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश -- ये पञ्चमहाभूत और मन, बुद्धि तथा अहंकार -- यह आठ प्रकारके भेदोंवाली मेरी अपरा प्रकृति है। हे महाबाहो ! इस 'अपरा' प्रकृतिसे भिन्न मेरी जीवरूपा बनी हुुई मेरी 'परा' प्रकृतिको जान, जिसके द्वारा यह जगत् धारण किया जाता है।
एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय।
अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा।।
यह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञरूप दोनों परा और अपरा प्रकृति ही जिनकी योनि कारण है ऐसे ये समस्त भूतप्राणी प्रकृतिरूप कारणसे ही उत्पन्न हुए हैं ऐसा जान। क्योंकि मेरी दोनों प्रकृतियाँ ही समस्त भूतोंकी योनि यानी कारण हैं इसलिये समस्त जगत्का प्रभव उत्पत्ति और प्रलय विनाश मैं ही हूँ अर्थात् इन दोनों प्रकृतियोंद्वारा मैं सर्वज्ञ ईश्वर ही समस्त जगत्का कारण हूँ।
Bhakt Anil Kumar: पुरुषार्थ शक्ति का है या जीव का
Npc Narendra Parihar: इस मंच के महानुभावों का, काफी प्रचारित हो रहे , इस सन्देश पर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा।
क्या ऐसा कोई संयोग है?
वाह मोदी जी वाह!
क्या तोड़ निकाल कर लाए।
हम सोच रहे थे यह 5 तारीख को रात 9 बजे 9 दिए लगाने से क्या होगा?
इसी विषय पर लगभग आधा घँटे से *मनो मंथन* कर रहे थे। अंत में निष्कर्ष निकल कर सामने आया कि।
तंत्र में प्रदोष का बहुत महत्व है। और 8 तारीख को आने वाले हनुमान जयंती अवसर के पूर्व 5 तारीख को मदन द्वादशी का प्रदोष काल अति महत्वपूर्ण काल है।
तंत्र मतानुसार प्रदोष काल में कोई अपने घर के सामने या छत पर चौमुखी दीपक सरसों के तेल से लगाए तो उस घर के आसपास संक्रमण समाप्त हो जाता है।
अगर चौमुखी न हो तो 9 दीपक लगाएं।
यह सब जानकर हम आश्चर्य चकित रह गए कि मोदी जी हर क्षेत्र में आगे है।
धन्य है हम ऐसा प्रधानमंत्री पाकर ।
जो आध्यात्म की पराकाष्ठा को छूता हो।
सनातन धर्म की जय हो।
🌹🌹🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻
योग क्या और योगी की पहिचान / करोना काल है वरदान
योग क्या और योगी की पहिचान / करोना काल है वरदान
सनातनपुत्र देवीदास विपुल “खोजी”
देखो योग क्या है।
वेदांत महावाक्यकहता है आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव ही योग है।
इस अनुभव हेतु लोगों ने 6 अंगों वाला षष्टांग योग 7 अंकों वाला सप्तांग योग और पतंजलि महाराज ने अष्टांग योग बताया।
योग की कसौटी हेतु चार वेद महावाक्य निर्मित हैं।
इन महावाक्यों का अनुभव / अनुभूति ही योग कहलाता है और यही विद्या की ब्रह्म ज्ञान की और ज्ञान योग निशानी है।
पांचवा सार वाक्य है।
अहं ब्रह्मास्मि - "मैं ब्रह्म हुँ" ( बृहदारण्यक उपनिषद १/४/१० - यजुर्वेद)
तत्त्वमसि - "वह ब्रह्म तु है" ( छान्दोग्य उपनिषद ६/८/७- सामवेद )
अयम् आत्मा ब्रह्म - "यह आत्मा ब्रह्म है" ( माण्डूक्य उपनिषद १/२ - अथर्ववेद )
प्रज्ञानं ब्रह्म - "वह प्रज्ञानं ही ब्रह्म है" ( ऐतरेय उपनिषद १/२ - ऋग्वेद)
सर्वं खल्विदं ब्रह्मम् - "सर्वत्र ब्रह्म ही है" ( छान्दोग्य उपनिषद ३/१४/१- सामवेद )
अब योग की पहचान क्या है
श्रीमद भगवत गीता के अनुसार योग होने के पश्चात मनुष्य के अंदर समत्व का भाव यानी सभी प्राणी एक स्थिर बुद्धि यानी न छोटा ना बड़ा न कष्ट न सुख-दुख इत्यादि और स्थित यानी बुद्धि का प्रभु में लीन हो जाना।
यह लक्षण है और यह लक्षण भी धीरे-धीरे आते हैं किसी में कम किसी में ज्यादा।
साथ ही वह किसी भी कर्म को मन लगाकर करता है और उसकी फल की इच्छा नहीं करता है यानी निष्काम कर्म करता है।
पतंजलि महाराज के अनुसार उसके चित्त में कभी भी वृत्ति पैदा नहीं होती है यानी कोई भी कार्य वह अपने चित्त में बिना विक्षेप के करता है। “चित्त में वृत्ति का निरोध ही योग है”। योग सूत्र 2
इसके अतिरिक्त जो यम और नियम हैं उनका पालन वह स्वत: करने लगता है।
अब वेद महावाक्य का अनुभव कुछ क्षणों से लेकर लंबे समय तक हो सकता है।
लेकिन यह अनुभव बहुत कुछ ज्ञान दे जाता है
जो मनुष्य चौबीसों घंटे स्थितप्रज्ञ हो जाता है और वेद महावाक्य की अनुभूति में रहता है वह महायोगी और ब्रह्मस्वरूप कहलाता है।
योग के अनुभव के पश्चात मनुष्य के गिरने की भी संभावना रहती है किंतु वह भौतिक रूप से गिर सकता है लेकिन ज्ञान उसके पास निरंतर रहता है।
जिसकी कसौटी हम उसके द्वारा किए गए कर्मों के हिसाब से कर सकते हैं।
जिस मनुष्य को बिना साकार के अनुभव के निराकार ब्रह्म का अनुभव होता है वह अहंकार युक्त हो सकता है। क्योंकि जब हम ब्रह्म के समान महसूस करते हैं तो निरंकुश हो सकते हैं। जबकि मैं इसको मात्र एक उच्च क्रिया ही मानता हूं।
साकार यानि द्वैत जिसमें प्रभु के साकार दर्शन होने पर हम अपने को उसका दास मानने लगते है अत: समर्पण बढ़ जाता है। इसके बाद निराकार का अनुभव हमें अहंकार में लिप्त नहीं होने देता। वैराग्य इत्यादि अपने आप ही आने लगता है। जगत के किसी पद पुरस्कार या सम्मान अथवा लोभ भी नहीं रहता है।
मनुष्य अपने में लीन हो जाता है। उअसका एक मात्र लक्ष्य सनातन की सेवा और जगत के क्ल्याण हेतु लोगों को सनातन हेतु प्रेरित करना ही रहता है। क्योंकि जगत की सत्यता सामने आ जाती है।
क्योंकी विश्व शांति एकमात्र भारतीय सनातन ज्ञान ही दे सकता है। बाकी तो जगत में अशांति अत्याचार और कुमार्ग की ही शिक्षा देते हैं। मनुष्य को स्वार्थी और पापी बनाने की शिक्षा देते हैं। पाप की शिक्षा भी समझा कर उसे सही बता कर देतें हैं।
सनातन का अर्थ बौद्ध, जैन अथवा सिख विचारधाराओं से ही है। हां पारसी भी सनातन का कुछ हद तक हिस्सा है।
इसका कारण यह है जब हम आरंभ में ही निर्गुण निराकार की आराधना आरंभ करते हैं तो हमें निराकार का ही अनुभव होता है और क्योंकि हम किसी को नहीं मानते हैं तो हमें कौन बचाएगा क्योंकि हम अद्वैत को मानने लगते हैं।
मेरे विचार से द्वैत से अद्वैत का अनुभव ही योग है।
यह सत्य है ईश्वर का अंतिम रूप निराकार है और अद्वैत ही अंतिम अनुभव है जिसकी आवश्यकता है मोक्ष की प्राप्ति हेतु।
किंतु द्वैत में भक्ति योग मिलता है जो अत्यंत आनंददायक होता है और इसके आनंद की कोई सीमा नहीं होती है इसीलिए जो व्यक्ति द्वैत से अद्वैत की ओर जाता है भक्ति योग से ज्ञानि योंग की ओर जाता है उसको दोनों अनुभव हो जाते हैं और उसे हम पूर्ण अनुभव कह सकते हैं।
इसीलिए मैं सभी को यह सलाह देता हूं कि सदैव सगुण साकार से भक्ति आरंभ करो यही तुम को पूर्ण अनुभव देगा यहां तक कि आदि गुरु शंकराचार्य आरंभ में निराकार थे अद्वैत थे किंतु बाद में उनको द्वैत की भावना में आना पड़ा और साकार की आराधना में उनको समय बिताना पड़ा।
वही माधवाचार्य ने अपनी यात्रा द्वैत से आरंभ करी और द्वैत पर ही खत्म कर दी। अतः उनको कृष्ण लोक मिला होगा।
यदि हमारे मन में मोक्ष की भावना रहेगी और कोई भी सतगुण भी रहेगा तो हमें मोक्ष नहीं मिल सकता।
हमें त्रिगुणातीत होना होगा तब हम इसकी संभावना कर सकते हैं।
इसीलिए मैं यह बात कहता हूं कलयुग में यदि तुम अष्टांग योग के नियम का पांचवा अंग यानी ईश प्राणीधान निभा सको तो तुम को सब मिल जाएगा।
मैं समझता हूं योग के विषय में लोगों की जानकारी कुछ बढ़ी होगी।
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मित्रों वर्तमान में करोना को लेकर जिस प्रकार से विश्वव्यापी भय का माहौल पैदा हुआ है यह वास्तव में आपकी परीक्षा की घड़ी है यदि आप भयभीत होते हैं तो इसका मतलब यह है कि आप ईश्वर पर भरोसा नहीं करते और आप योगी तो हो ही नहीं सकते क्योंकि जीवन और मरण सिर्फ ईश्वर के हाथ में होता है। उससे भय क्या।
और वैसे यदि आपको लगता है कि भय है तो यह तो बहुत अच्छी बात है अब आप प्रभु भक्ति में जुट जाएगी यह सोचकर यह आपके दिन नजदीक आ गए आप अपनी प्रभु सेवा को और बढ़ा दीजिए मंत्र जप और बढ़ा दीजिए।
और प्रयास कीजिए गंगा जी का तट हो मेरा सांवरा निकट हो जब प्राण तन से निकले।
इस भावना के साथ आप सभी को शुभकामनाएं और आप सभी को बधाई हो आपकी परीक्षा आरंभ हो गई है।
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करोना पर यक्ष विचार
शायद यह कुछ कहने आया है।
जो इसने समय पर नहीं पाया है।।
हम जिंदगी की आपाधापी में।
शायद कुछ भूल गए थे।।
अपने घर से भी होता है रिश्ता।
पर दुनिया में झूल गए।।
शायद यह हमें फिर से जोड़ने आया है।
हमें हमारा घर बतलाने आया है।।
प्रदूषण से कराह रही थी यह धरती।
इसलिए प्रदूषण कम करने आया है।।
बर्गर पिज्जा में घर का खाना हम भूल गए थे।
इसीलिए हमें घर में खाना खिलाने आया है।।
आभासी फिल्मी दुनिया में हम भूल गए थे अपनी दुनिया।
उस आभासी दुनिया से हमें निकालने आया है।।
खो गई थी जो प्रकृति की रंगीनियां।
उन्हें फिर से वापिस बुलाने आया है।।
वास्तव में करोना हमें मारने नहीं।
सुधारने आया है।।
माध्यम तो चीन है पर यह प्रभु की माया है।।
🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻
शिवाय नम:,
या तो कर्म सिद्धान्त पर आपकी पूर्ण निष्ठा हो कि जो कर्म किये हैं उनका फल तो भोगना ही होगा। यदि प्रारब्ध कर्मफल के रूप में चाईना कोरोना वायरस से आपको संक्रमित होना होगा तो इसे ही प्रराब्ध रूप में स्वीकार करें। यदि ऐसा कोई कर्म किया ही नहीं कि ये बीमारी से आक्रान्त हो शरीर नष्ट होना हो तो वह आपको होगी ही नहीं। यह जानें एवं चिन्तामुक्त रहें।
या तो भक्ति ही कर लो। सबकुछ ईश्वर पर छोड दो। ईश्वर अपने भक्त को योगक्षेम स्वयं ही वहन करते हैं। यदि कोरोना होगा भी तो उसमें आपके लिए ईश्वर की कोई बडी लाभप्रद बात ही छिपी होगी। हम बहुत छोट समय सीमा के छुद्र लाभों को ही देख पाते हैं। ईश्वर समष्टि की दृष्टि से आपके लिए क्या श्रेष्ठ है इसका विचार आपसे उत्तम रूप से कर सकता है। इस प्रकार जो भक्त हैं वे चिन्तामुक्त हैं।
या तो वेदान्त के परमज्ञान में स्थित हो जाओ। तब तो कोई किसी भी प्रकार की चिन्ता का प्रश्न ही नहीं। आपके सद्चिदानन्दस्वरूप में तो विकार, विक्षेप सम्भव ही नहीं। शरीर जब तक चल रहा है चल रहा है नहीं चल पायेगा तो गिर जायेगा बस। मैं तो इस देह से विलक्षण सद्चिदानन्त आत्मा हूं।
जिनका जीवन आत्मचिन्तन प्रधान रहा है वे गीता के दूसरे अध्याय पपर गहन चिन्तन करें। सारी चिन्ताओं से मुक्त होने का इससे श्रेष्ठ विधान तो कोई ज्ञात नहीं। कभी चित्त को इस चिन्तन से नीचे उतरता जानो बस दो श्लोकों का चिन्तन करो एवं चित्त पुन: प्रशान्त अवस्था को प्राप्त हो जाता है।
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति।।२.१३।।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।२.२२।।
चलिए यह तो हुई उनकी चर्चा जिनका अध्यात्मचिन्तन कुछ परिपक्वास्था में है। घर में आग लग जाने पर फिर तो पानी का गड्डा खोदा नहीं जा सकता।
अब चर्चा करते हैं समान्यजनों की दृष्टि से जो सबके लिए लाभप्रद हो।
भय परिस्थितियों में किसी प्रकार का सुधार नहीं लाता अपितु उन्हें और जटिल बना देता है। जो व्यक्ति सामान्यरूप से स्वस्थ हैं किसी जटिल रोग से ग्रसित नहीं हैं उनके लिए कोई विशेष समस्या नहीं है। किन्तु उन्हें भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि वे इस रोग के वाहक बनकर उन लोगों को संक्रमित न करें जिनके लिए ये प्राणघातक हो सकता है।
इस समय को चाईना कोरोना चातुर्मास के रूप में एकान्त में बितायें। भगवद्भजन एवं गीता आदि शास्त्रों के अध्ययन में इस समय का सदुपयोग करें। इसे ईश्वर प्रदत्त वरदान जानें जब आपको इस जटिल भाग दौड भरे जीवन में कुछ मास एकान्तवास एवं भगवद्भजन को प्राप्त हो रहे हैं। इस समय को आत्मचिन्तन, भगवद्भजन में बीतायें। गीता के दूसरे अध्याय का श्रवण एवं मनन करें।
यह समय एक दूसरे पर आरोप लगाने का, धार्मिक रूढीवादिता के प्रचार प्रसार का भी नहीं है। अपितु इस समय सारे भेदभाव भुला कर, इसे आपात काल जान मानवमात्र के प्रति सुहृदता का प्रदर्शन कर एकत्रित हो इस माहामारी को फैलने से रोकने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। दूसरों को नीचा दीखा अपना मण्डन खण्डन बाद के विषय हैं। अपनी शुद्धता एवं देवत्व के प्रचार प्रसार का समय यह नहीं। सबके साथ मिलकर सबके हित के लिए कार्य करने का समय है। कौन पापी है कौन पुण्यात्मा एवं आपसी मतभेद बाद में सुलझाते रहेंगे।
जाने क्या है महामाई की इच्छा।
अगर यह नवरात्रों के पश्चात शान्त नहीं हुआ तो परिस्थितियां विकट हो सकती हैं। हमें जो अन्त: प्रेरणा हो रही है वह है शिव के योगेश्वर योग की। इस अनुष्ठान को अत्यन्त दुष्कर कार्य के लिए ही करने को कहा जाता है। शिव पुराण में कहा गया है कि इसका अनुष्ठान उसके फल को प्राप्ति के लिए करना चाहिए जो अन्य कार्यों से असाध्य हो।
महत्स्वपि च पातेषु महारोगभयादिषु।
दुर्भिक्षादिषु शान्त्यर्थं शान्तिं कुर्यादनेन तु।।
महोत्पात, महारोग, महाभय एवं दुर्भिक्ष आदि की शान्ति के लिए इसका अनुष्ठान करना चाहिए। यदि कुछ लोग आगे आयें तो पूरे राष्ट्रहित के लिए मिलकर यह अनुष्ठान सम्पन्न किया जा सकता है।
मित्रों कल आप दिन भर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें अथवा घंटे के साथ ओम का जाप करें।
घंटे के नाद से पी तरंगे निकलती है जो वायुमंडल में ध्वनि संचरण में दवाब की समानांतर जगह पैदा करती है जिसके कारण बहुत सारे वायरस का प्रोटीन का ऊपरी कवच टूट सकता है। यही तरंगे शंख के द्वारा भी पैदा होती है। ध्यान रहे संगीत से यह तरंगे उतनी प्रभावशाली नहीं होंगी जितनी की घंटे की अथवा शंख की ध्वनि से होंगी।
हे मां जगदंबे जगजननी तुम्हारी जय हो जगत का कल्याण करो मां।
मैं मूर्ख सोचता था कि मैं सनातन का हिंदुत्व का प्रचार कर सकूंगा लोगों को हिंदुत्व की सही परिभाषा बता सकूंगा यह सब कैसे होगा सिर्फ तुम्हारी लीला का सहारा था, है और रहेगा किंतु तुम तो मायाधारी लीलाधारी हो एक चक्र में तुमने संपूर्ण जगत में अपना परचम फहरा दिया पूरी दुनिया में सभी लोग सनातन की ओर प्रेरित होंगे पश्चिमी सभ्यता और बिगड़ी सभ्यतायें एक बार पुनः बौनी सिद्ध हो गई। सिर्फ सनातन ही सर्वश्रेष्ठ से सिद्ध हुआ।
तुम्हारी जय हो तुम्हारी जय हो।
मांसाहार एक झटके में बंद करा दिया शव का दाह संस्कार एक झटके में आरंभ करा दिया। भारत की नमस्कार की परंपरा को स्थापित कर दिया।
पतंजलि के आसन और प्राणायाम को फिर से स्थापित किया और लोगों को ध्यान की ओर प्रेरित कर दिया।
हे मां तुम्हारी शक्ति अपरंपार है तुम्हारे प्रत्येक कार्य में जगत का कल्याण छुपा होता है। तुम दयालु हो कृपालु हो सदैव जगत का कल्याण ही करती हो। कभी-कभी यह दिखता है तुम गलत कर रही हो लेकिन ऐसा नहीं मनुष्य को अपने कर्मों का दंड भोगना ही होता है और आज इस वायरस के रूप में मनुष्य जाति ने जो दुष्कर्म किए प्रकृति के साथ खिलवाड़ किए उन सब का फल भोगने के लिए मौत के साए में खड़ा हुआ है यह सब तुम्हारी लीला है मां सब तुम्हारी लीला है मां तुम्हारी जय हो मां तुम्हारी जय हो।
या देवी सर्वभूतेषु दया रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै: नमस्तस्यै: नमस्तस्यै: नमो नमः।।
हे मां जगदंबे तुम्हारी जय हो तुम्हारी जय हो। मां शरणागत की रक्षा करने वाली दयालु मां तुम्हारी जय हो तुम्हारी जय हो।
अभी तक पुस्तक में पढ़ा था कि किस प्रकार तुम जगत का भार कम करती हो अब यह देख रहा हूं। इस जगत के सभी रूप तुम्हारे हैं जन्म से लेकर मृत्यु तक वाणी से लेकर सांस तक हर जगह तुम्हारा मां। मां जो कुछ पुस्तक में पढ़ा था आज प्रत्यक्ष देख रहा हूं किस प्रकार तुम इस सृष्टि की रक्षा करने के लिए अपना चक्र चलाती हो। तुम्हारी लीला अपरंपार है मां तुम्हारी जय हो तुम्हारी जय हो।
कितनों को इस महामारी ने तुम्हारी शरण ला दिया जिसकी कोई गिनती नहीं है।
कितने ही आज जीवन बचाने के लिए तुम्हारी शरण में आए होंगे। तुम सर्व सत्तामई हो जगत की पालक हो यह सिद्ध हो गया की तुम ही तुम हो तुम ही तुम हो।
जय मां जगदंबके।
दुर्गा सप्तशती में अंत में दिए हुए हैं दो मंत्र एक महामारी विनाश के लिए है ओम जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते। और दूसरा रोग नाश के लिए
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मां तेरी जय हो जय हो जय हो। 🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻
तेरे चरणों में लीन रहूं गर मृत्यु मुझे जो आए मां।
तेरी सुंदर छवि सामने हो जो मृत्यु मुझे बुलाए मां।।
हर जन्म में तेरा साथ मिले तेरी अनुकंपा बनी रहे।
मेरी न कोई इच्छा हो यदि जग मुझको बिसराये मां।।
तू जो करती मां वही करे तुझको न कोई रोक सके।
पर यह विनती इस बालक की चरणों में लीन भुलाए मां।।
तूने मानव का जन्म दिया और तीर्थ शिवओम सा गुरुवर मिला।
अब न कोई इच्छा बाकी जो मैं तुझसे गुहराऊं मां।।
तेरी भक्ति का अमृत पिया मां दर्शन तूने दे डाला।
मुझ अधम पतित पापी को मां अब कोई भी भय न सताए मां।।
हर सांस पर तेरा नाम जपुं हर पल चरणों में लीन रहूं।
यही विनती कर बार बार यही गीत दुहराऊं मां।।
है दास विपुल ने देख लिया जीवन क्षणभंगुर सपना है।
तू ही बस केवल सत्य है मां बाकी सब मिथ्या सपना है।।
ज्ञान ध्यान विज्ञान जगत सब तूने ही दे डाला मां।
नतमस्तक तेरे आगे हूं अब बलिहारी मैं जाऊं मां।।
हे प्रभु राम तुम्हारी जय हो।
सब भक्तन हितकारी जय हो।।
सारे जग से न्यारी जय हो।
छवि तेरी दुलारी जय हो।।
संतन रक्षा हितकारी जय हो।
कौशल्या तो वारी जय हो।।
दशरथ नंदन तुम्हारी जय हो।
दास विपुल बलिहारी जय हो।।
अधर्म विनाशी धर्म के पालक।
पाप धरती से जल्दी क्षय हो।।
सत्य सनातन ध्वज फहराए।
श्रेष्ठ भारत की पुनः पुनः जय हो।।
मित्रों जिस प्रकार से आपको घर में रहने का समय मिला है ऐसा सदियों में एक बार मिलता है इस समय का सदुपयोग करना सीखें।
अधिक से अधिक इईश प्राणीधान में लिप्त हों। मतलब नवधा भक्ति में किसी को भी अपना कर निरंतर प्रभु चिंतन में व्यस्त रहें।
जो होना है वह होकर रहेगा लेकिन जो समय आपको मिला है वह बहुमूल्य है उसके लिए आप अपना आध्यात्मिक उत्थान करने का प्रयास करें।
व्हाट्सएप पर कम से कम ध्यान दें फेसबुक पर भी कम से कम ध्यान दें। टीवी तो बंद ही कर दे तो बेहतर होगा।
अपने इष्ट का निरंतर जाप करें रात को समय मिले तो मन करे तो सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि के द्वारा अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को उजागर करें।
मित्रों मैं यह देख रहा हूं कि लोग घर में रह ही नहीं पा रहे हैं रोज व्हाट्सएप के सारे ग्रुप के मैसेज डिलीट करने पड़ते हैं।
जबकि यह तो समय आपको प्राप्त हुआ है यह समय आपको कभी नहीं मिलेगा जब आप अपने स्वयं के नजदीक जा सके अपने स्वरूप को पहचान सके।
आपको आश्चर्य होगा मेरे घर में टीवी 1 साल से बंद है फेसबुक और व्हाट्सएप पर मैसेज बहुत कम लिख रहा हूं। फिर भी मैं प्रसन्न हूं और मेरा समय सकुशल बीत रहा है।
मैं बार-बार आपसे अनुरोध करता हूं जो होना है वह होकर रहेगा निश्चिंत रहिए लेकिन सावधानी बरतिए साथ में प्रभु स्मरण करते रहिए हर संभव प्रयास कीजिए कि उसमें लीन रहे कोई न कोई आध्यात्मिक कथा पढ़िए। टीवी से दूर रहिए फेसबुक व्हाट्सएप से भी दूरी रखने का प्रयास करिए।
मैं बता रहा हूं कि यह समय आपको जो मिला है यह कलियुग में कभी प्राप्त नहीं होता है जब आप प्रभु को अपने नजदीक महसूस कर सकते हैं।
बूझो तो जानी। मानू तब ज्ञानी।।
भाव भाव को देखता, न है भाव आ भाव।
भाव नहीं तो भाव क्यों, क्यों है भाव अभाव।।
तू देखे तुझको न मैं, तुझको तुझ में देख।
बूझ गया जो तुझको मैं, पड़ी समय इक रेख।।
समय चला गतिमान बन, गति गति है शून्य।
दूर गति करे चले तू, दाल धान ले चून।।
बरस बरस के बरस गए, असुअन नयनन धार।
दिन बारिस सब सून है, कैसे बेड़ा पार।।
मांग मांग कर भर लिया, अपने घर को आज।
बने भिखारी आज सब, कौन बने सरताज।।
मद माया ममता यहां, करै न बेड़ा पार।
इनका यहां न मोल है, कैसे बेड़ा पार।।
मांग मांगे बुझे नहीं, क्षुधा अलग है राज।
दिशा क्षुधा की मोड़ कर, बन जा तू सरताज।।
यम का पासा दिख रहा, गोटी कौन पिटाय।
जो गोटी निज घर रहे, वोही तो बच पाय।।
चौसर खेले रोग यह, यम की चलती चाल।
बैठे रहो क्रास पर, यह जीवन की ढाल।।
जय गुरूदेव जय मां काली
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