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Sunday, October 18, 2020
मां देवी स्कंदमाता की आरती
तेरे द्वार खड़ा हूं माता। पांचवा रूप है स्कंदमाता।।
तेरी ज्योत जला मैं गाऊं । मात पलभर नहीं बिसराऊं।।
अपनी प्रेमा भगती दे दो। मैय्या जी भक्ति शक्ति दे दो ।।
हर बार जगती को बचाया। संकट जब धरती पर आया।।
माता तनिक दया कर देना। अपने दास विपुल तर देना।।
औषधि अलसी तेरी जानी। हर लो रोग सभी सुख बानी।।
माता दिवस पांचवा ध्याया। दुर्गा रूप तेरा है पाया।।
कर जोर विनय है भवानी। सुन लो दास विपुल की बानी।।
मां कूष्मांडा की आरती ...
मां कूष्मांडा की आरती
सनातनपुत्र देवीदास विपुल " खोजी "
मां कूष्मांडा जग निरमाता। मुझ पर दया करो सुखदाता॥
तुम ही हो पिंगलाज भवानी। ज्वालामुखी का रूप बखानी।।
मैया तेरी आरती गाऊं। मैया तेरी आरती गाऊं।
मैय्या शाकाम्बरी निराली। तू माता है भोली भाली॥
कितने रूप धरे हैं तूने। जग में तेरे आगे बौने।।
कितने रूप धरे हैं तूने। जग में तेरे आगे बौने।।
मैया तेरी आरती गाऊं। मैया तेरी आरती गाऊं।
तेरे जगत निराले डेरे। सुर नर मुनि सब तुझको घेरे।।
भीमा पर्वत भीमा रूपा। तेरो तत्व सदा सुरभूपा।।
तेरे जगत निराले डेरे। सुर नर मुनि सब तुझको घेरे।।
भीमा पर्वत भीमा रूपा। तेरो तत्व सदा सुरभूपा।।
मैया तेरी आरती गाऊं। मैया तेरी आरती गाऊं।
तुने अष्टभुजा रूप धारा। सृष्टि रूप दिया जग सारा।।
तेरे दर्शन का जग प्यासा। पूरन कर दो मैय्या आसा॥
तुने अष्टभुजा रूप धारा। सृष्टि रूप दिया जग सारा।।
तेरे दर्शन का जग प्यासा। पूरन कर दो मैय्या आसा॥
मैया तेरी आरती गाऊं। मैया तेरी आरती गाऊं।
पापी खोजी विपुल गुहारे। माता आरत भाव पुकारें।।
माता कूष्मांडा जो ध्याता। जग में श्रेष्ठ परम पद पाता।।
पापी खोजी विपुल गुहारे। माता आरत भाव पुकारें।।
माता कूष्मांडा जो ध्याता। जग में श्रेष्ठ परम पद पाता।।
मैया तेरी आरती गाऊं। मैया तेरी आरती गाऊं।
मेरी मैया जगत कल्याणी। सुर मुनि तेरो रूप बखानी।।
माता लाज भगत की रखना। सारी इच्छा पूरी करना।।
मेरी मैया जगत कल्याणी। सुर मुनि तेरो रूप बखानी।।
माता लाज भगत की रखना। सारी इच्छा पूरी करना।।
मैया तेरी आरती गाऊं। मैया तेरी आरती गाऊं।
मां की आरती का लिंक
मां की आरती का लिंक
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जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या)
जय गुरुदेव जय महाकाली।
🙏
मां चंद्रघंटा की नव आरती
मां चंद्रघंटा की नव आरती
स्तुतिकार: सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
माता चन्द्रघंटा सुख धामा। पूरन कीजो मेरे कामा॥
तेरी जय हो मां। तेरी जय हो।
माता शीतलता की दाती। चन्द्र किरण तुझी में समांती॥
तेरी जय हो मां। तेरी जय हो।
काम क्रोध को शांत बना दो। सत् मार्ग दुर्जन को दिखा दो।
तेरी जय हो मां। तेरी जय हो।
तुम मणिपुर चक्र अधिष्ठात्री। चन्द्रसुरा औषधि की पात्री।
तेरी जय हो मां। तेरी जय हो।
माता भक्तन प्रेम सुहानी। माता है वरदानों दानी॥
तेरी जय हो मां। तेरी जय हो।
माता वाक रूप की देवी। हर संकट भक्तन हर लेवी।।
तेरी जय हो मां। तेरी जय हो।
दास विपुल हैं पूजन करते। तुझको कोटि नमन हम करते।।
तेरी जय हो मां। तेरी जय हो।
तेरा दुर्गा रूप है न्यारा। प्रभु तीर्थ शिवोम को प्यारा।।
तेरी जय हो मां। तेरी जय हो।
मृदुल वाणी विपुल जन देना। सारे संकट को हर लेना।।
तेरी जय हो मां। तेरी जय हो।
मैया शठ बुद्धी हम हीना। हमको सद् बुद्धी तुम देना।।
तेरी जय हो मां। तेरी जय हो।
जो जन भजन भाव से गावे। सारी सुख संपत्ति वह पावे।।
तेरी जय हो मां। तेरी जय हो।
हम भक्तजन तेरे द्वारे। मुक्ति दे दो मां पुकारे।।
तेरी जय हो मां। तेरी जय हो।
जो प्रेम से आरति गावे। वह सर्वसुख सद्गति पावे।।
तेरी जय हो मां। तेरी जय हो।
क्या तैयारी करें तीसरे दिन की। मां चन्द्रघंटा
क्या तैयारी करें तीसरे दिन की। मां चन्द्रघंटा
सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
आशा है आप सब ने आज सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि को मां ब्रह्मचारिणी मंत्र के साथ संपन्न किया होगा और दिन भर मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र पढ़कर शाम को आरती और हवन किया होगा।
आपको तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजन करनी है। रात्रि में शयन के पूर्व मां ब्रह्मचारिणी को नमन करने के पश्चात मां चंद्रघंटा का मंत्र जप करते हुए शयन करें।
कल प्रातः सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि के साथ लिंक में दिए हुए मंत्र के साथ दिनभर जाप करें।
रात्रि में पुनः आरती और हवन करें।
मैंने आरतियों का संकलन किया था लेकिन प्रथम दिवस और द्वितीय दिवस की आरती में मात्रिक दोष मिले जिसके कारण गेयता में बहुत ही परेशानी हुई।
इस कारण मां की कृपा से मैंने अब सभी देवी आंखों की आरती लिखने का संकल्प लिया है और आज मां सरस्वती की कृपा से चंद्रघंटा मां की और कुष्मांडा माता की नई आरती लिख दी है पोस्ट भी कर दी है।क
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जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥
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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या)
ध्यान और मंत्र जप में गहराई कैसे लाएं
ध्यान और मंत्र जप में गहराई कैसे लाएं
सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
अक्सर लोगों को शिकायत रहती है कि ध्यान नहीं लग पाता है और मंत्र जप में गहराई नहीं आ पाती है।
इसके लिए आपको कुछ साधारण प्रयास तो करने हीं पड़ेगे। ले
ध्यान में यदि आप अपने अंगूठे का ऊपरी हिस्सा और तर्जनी का ऊपरी हिस्सा आपस में मिलाकर आंख बंद करते हैं तो आप देखेंगे आपको कंपन महसूस होगा और ऐसा लगेगा की कोई ऊर्जा उंगलियों के माध्यम से घूम रही है।
आप देखेंगे आपके ध्यान में गहराई शीघ्र आ जाएगी।
दूसरी बात भोजन में और ध्यान में कम से कम 3 से 4 घंटे का अंतर रखें।
इसके अतिरिक्त ध्यान में अथवा मंत्र जप में बैठने के लिए कुछ आरंभिक कार्य कर लें।
पहला तो यह आपका आसन किसी गर्म कपड़े का होना चाहिए जिससे कि आपके शरीर की ऊर्जा धरती में न जा पाए।
इसके अतिरिक्त आप आसन पर बैठने के पश्चात मंत्र जप या ध्यान के पहले अपने शरीर के पांचों तत्वों को शांत करें।
सबसे पहले आप अपने मंत्र को बोलकर आगे पृ्थ्वी शांति बोलें। यह पांच बार करें।
जैसे अपना मंत्र बोला फिर उसी की आगे क्रम में पृथ्वी शांति।
पांच बात अपना मंत्र बोलकर पृथ्वी शांति करें।
इसी प्रकार 5 बार अपना मंत्र बोलकर जल शांति करें।
इसी प्रकार 5 बार अपना मंत्र बोलकर वायु शांति करें।
इसी प्रकार 5 बार अपना मंत्र बोलकर अग्नि शांति करें।
इसी प्रकार 5 बार अपना मंत्र बोलकर अंतरिक्ष शांति करें।
इसके बाद सर्वप्रथम गणेश को प्रणाम करें।
फिर अपने गुरु को प्रणाम करें।
फिर अपने इष्ट को प्रणाम करें।
इसके बाद अपना मंत्र जप या ध्यान आरंभ करें आप देखेंगे यह कितना सुखद परिणाम देता है।
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जय गुरुदेव जय महाकाली।
🙏
Saturday, October 17, 2020
क्यों लगाए ओम् नवार्ण मंत्र के आगे (पहली बार कारण पढ़ें, आपको किसी ने नहीं बताया होगा)
क्यों लगाए ओम् नवार्ण मंत्र के आगे
सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
मित्रों बहुत से लोग यह मानते हैं कि क्योंकि नवार्ण मंत्र 9 वर्णों का है अतः इसके आगे ओम नहीं लगाना चाहिए क्योंकि तब यही दशाक्षरी हो जाएगा।
लेकिन मेरा यह मानना है और यह अनुभव भी है ओम तो लगाना ही चाहिए क्योंकि किसी मंत्र के आगे ओम लगाने से यह ओम गणेश को समर्पित हो जाता है।
गणेश हमारे गणों के ईश मतलब जो हमारे अंदर की शक्ति नव दुर्गा के रूप में रहती है और बाहर सृष्टि की शक्ति काली के 10 रूपों में रहती है उनके बीच में हमारे गणों का एक पर्दा पड़ा होता है इसलिए ओम बोलने से गणपति सहायक हो जाते हैं।
वैसे भी आपने पुराण में पड़ा होगा कि प्रथम पूजनीय गणपति इसलिए बने थे कि उन्होंने अपने माता-पिता की परिक्रमा की थी और माता-पिता ही मिलकर आपके इस शरीर को बनाते हैं यानी आपके शरीर के चारों ओर जो आवरण है जिन पर गणों का वास है। वह गणेश जी द्वारा संचालित होते हैं।
यह बात सही है कि जब मात्र ओम का उच्चारण करते हैं तो वह निराकार को चला जाता है उस ब्रह्म को चला जाता है जिसने सृष्टि की उत्पत्ति की थी और पहला साकार रूप मां काली बनी जिन्होंने 10 रूपों में 10 विमाओं में इस सृष्टि का निर्माण किया।बाद में जब मानव का निर्माण हुआ तब नव दुर्गा की शक्ति मनुष्य के अंदर चक्रों के रूप में स्थापित हुई और मनुष्य को ज्ञान देने के लिए उस काली ने गायत्री का रूप धारण किया जिसने कि मनुष्य को कल्याण के लिए वेदों का ज्ञान दिया।
इसलिए आप मंत्र में ओम् को अवश्य लगाएं।
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जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या)
जय गुरुदेव जय महाकाली।
नवदुर्गा और नवग्रह का सम्बन्ध जानें
नवदुर्गा और नवग्रह का सम्बन्ध
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
नवरात्रि में शक्ति का रूप मानी जानी वाली मां दुर्गा के नौ रूपों की साधना की जाती है। इनमें पहले नवरात्रि पर मां शैलपुत्री तो दूसरे नवरात्रि में मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे में माता चंद्रघंटा तो चौथे नवरात्र पर मां कुष्मांडा, पांचवें नवरात्रिमें स्कंदमाता तो छठे नवरात्रि पर कात्यायनी माता की पूजा की जाती है। सातवें, आठवें और नवें नवरात्रि में क्रमश मां कालरात्रि, मां महागौरी एवं माता सिद्धिदात्रि का पूजन किया जाता है। जब नवग्रह शांति के लिये पूजन किया जाता है तो इस क्रम में बदलाव हो जाता है। प्रत्येक ग्रह की माता अलग होती है।
किस नवरात्रि को होती है किस ग्रह की पूजा
नव दुर्गा शक्ति के नौ रूपों का ही नाम है। इनकी साधना से ग्रह पीड़ा से भी निजात मिलती है लेकिन इसके लिये यह अवश्य ज्ञात होना चाहिये कि किस दिन कौनसे ग्रह की शांति के लिये पूजा होनी चाहिये। दुर्गा पूजा शक्ति उपासना का पर्व है। शारदीय नवरात्र में मनाने का कारण यह है कि इस अवधि में ब्रह्मांड के सारे ग्रह एकत्रित होकर सक्रिय हो जाते हैं, जिसका दुष्प्रभाव प्राणियों पर पड़ता है। ग्रहों के इसी दुष्प्रभाव से बचने के लिए नवरात्रि में दुर्गा की पूजा की जाती है।
दुर्गा दुखों का नाश करने वाली देवी है। इसलिए नवरात्रि में जब उनकी पूजा आस्था, श्रद्धा से की जाती है तो उनकी नवों शक्तियाँ जागृत होकर नवों ग्रहों को नियंत्रित कर देती हैं। फलस्वरूप प्राणियों का कोई अनिष्ट नहीं हो पाता।
दुर्गा की इन नवों शक्तियों को जागृत करने के लिए दुर्गा के 'नवार्ण मंत्र' का जाप किया जाता है। नव का अर्थ नौ तथा अर्ण का अर्थ अक्षर होता है। अतः नवार्ण नवों अक्षरों वाला वह मंत्र है, नवार्ण मंत्र 'ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे' है। नौ अक्षरों वाले इस नवार्ण मंत्र के एक-एक अक्षर का संबंध दुर्गा की एक-एक शक्ति से है और उस एक-एक शक्ति का संबंध एक-एक ग्रह से है।
नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में पहला अक्षर ऐं है, जो सूर्य ग्रह को नियंत्रित करता है। ऐं का संबंध दुर्गा की पहली शक्ति शैल पुत्री से है, जिसकी उपासना 'प्रथम नवरात्र' को की जाती है।
दूसरा अक्षर ह्रीं है, जो चंद्रमा ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी से है, जिसकी पूजा दूसरे नवरात्रि को होती है।इसी प्रकार तीसरा अक्षर क्लीं है, चौथा अक्षर चा, पाँचवाँ अक्षर मुं, छठा अक्षर डा, सातवाँ अक्षर यै, आठवाँ अक्षर वि तथा नौवा अक्षर चै है। जो क्रमशः मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु ग्रहों को नियंत्रित करता है।
इन अक्षरों से संबंधित दुर्गा की शक्तियाँ क्रमशः चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री हैं, जिनकी आराधना क्रमश : तीसरे, चौथे, पाँचवें, छठे, सातवें, आठवें तथा नौवें नवरात्रि को की जाती है।
इस नवार्ण मंत्र के तीन देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं तथा इसकी तीन देवियाँ महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती हैं।
दुर्गा की ये नवो शक्तियाँ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की प्राप्ति में भी सहायक होती हैं।
जय गुरुदेव जय महाकाली।
🙏🙏🙇🙇🙇🙇
आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब कर दे जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे।
जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।
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