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मां कालरात्रि की आरती
मां कालरात्रि की आरती
वंदनकार: सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
कालरात्रि मां आरती गाऊं। तुझको कभी न मैं बिसराऊं।।
कालरात्रि मां बन कर काली। मृत्युकाल भय रक्षणी वाली॥
मात शीतला रूप बनाया। भय स्वरूप भय शीश नवाऊं।।
कालरात्रि मां आरती गाऊं। तुझको कभी न मैं बिसराऊं।।
निराकार को तुम समझाती। शक्तिभक्ति मुक्ति की प्रदाती।
नवदुरगा में रूप भयानक। रूप मनोहर दरशन पाऊं।।
कालरात्रि मां आरती गाऊं। तुझको कभी न मैं बिसराऊं।।
तीनों लोक विस्तार तुम्हारा। दुष्ट को दंड असुर संहारा।।
जग की पूजा तेरी पूजा। गुड़ मेवे का भोग लगाऊं।।
कालरात्रि मां आरती गाऊं। तुझको कभी न मैं बिसराऊं।।
दास विपुल शीतला मां ध्याया। तेरी परिक्रमा न बिसराआ।।
गुरू रूप तू काली बनती। प्रकटो मां यही गुहराऊं।।
कालरात्रि मां आरती गाऊं। तुझको कभी न मैं बिसराऊं।।
जो जन तेरी आरती गाते। सब सुख भोग परमपद पाते।।
सभी कामना पूरी कर दो। सत्तगुणों में मैं बस जाऊं।।
कालरात्रि मां आरती गाऊं। तुझको कभी न मैं बिसराऊं।।
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जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥
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