Friday, November 6, 2020

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 6 / brahm gyan kaya khand 6

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 6

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"



28. प्रश्न है जब हर एक चीज़ पहले से ही नियत है कि वही होना है जो लिखा है तब हमारी मुक्ति किस तरह सुनिश्चित हो सकती है यदि पहले से ही मुक्ति लिखी है तो अपने आप ही उक्त कर्म भी होंगे ही यदि मुक्ति नही लिखी है तो हम चाहते हुए भी कर्म नही कर सकते है अतः इसमे प्रकाश डालने की कृपा करें?? 



कर्म मानव से बंधे हुए हैं ! और उन्ही कर्मो का शुभ अशुभ फल इंसान को भुगतने होते है ! यदि आप सद्कर्मो को अपनाते है तो मुक्ति होनी ही है ! दुर्गुण अपनाते हैं तो मुक्ति तो होती है लेकिन कठिनाई से ! क्योंकि जीवन चक्र कभी रुकता नही है , मरकर पुनर्जन्म लेना यही प्रकृति का नियम है ! लेकिन मन चंचल होता है वह किसी के भी वशीभूत नही है ! इसलिए व्यक्ति चाहकर भी सद्गुणों से दूर हो जाता है !


मनुष्य जब जन्म लेता है तो अपने साथ दो चीजें लेकर आता है पहला प्रारब्ध दूसरा भाग्य। प्रारंभ लभ्यते स:  प्रारब्ध।
मनुष्य अधिक से अधिक 8 वर्ष की आयु तक जो कुछ भी करता है वह अपने प्रारब्ध के अनुसार भोगता है।
उसमें कोई कर्म फल नहीं पैदा होता क्योंकि उसकी अपनी बुद्धि नहीं होती है वह प्रेरित बुद्धि होती है।
दूसरा होता है भाग्य जो मनुष्य स्वयं बना सकता है आप जिस तरीके का बीज बोयेंगे उसी तरीके का पेड़ पैदा होगा।


सृष्टि में ब्रह्म ने एक कंप्यूटर प्रोग्रामिंग कर रखी है जैसा आप कर्म करेंगे वैसे ही फल आपको उपस्थित होकर भोगने पड़ेंगे और यदि आप इस जन्म में उसको नहीं हो पाए तो अगले जन्म में वह प्रारब्ध बनकर उपस्थित होंगे।
इसी कारण कहते हैं कि सब विधना के हाथ। क्योंकि यदि आप गलत काम करके आए हैं तो दंड तो आपको निश्चित है उसी बात यदि आप पुण्य कर्म साधनाएं करके आए हैं उसका फल भी निश्चित है।


इसका कारण यह है मानव का शरीर एक भोग योनि के साथ कर्म करता है और कर्म फल भोगता है कर्म करने की शक्ति सिर्फ और सिर्फ मानव योनि में है।
इसी कारण मुक्ति भी केवल मानव के जन्म से ही संभव है।


29.क्या ये सही है कि हमारी मौत का कारण विधाता पहले ही लिख देता है ??
यह बहुत ही सामान्य किंतु गहन प्रश्न है क्योंकि इसके विषय में कहीं पर भी स्पष्ट नहीं लिखा है।



मेरे अनुसार यदि मनुष्य पूर्व जन्म के प्रारब्ध के अनुसार ही कर्म करता रहता है तो वह एक निश्चित अवधि में अपने सारे कर्म फल भोग कर देह को त्याग कर सकता है और एक गणितीय गणना के अनुसार वह कितने दिनों में संस्कार विहीन होगा और उसके पश्चात निर्वाण प्राप्त करेगा।



लेकिन होता क्या है मनुष्य अपने कर्म जब 8 वर्ष के बाद आरंभ करता है तो वह फिर कर्मफल पैदा कर देते हैं और वह कर्म फल अच्छे भी हो सकते हैं बुरे भी हो सकते हैं जिस कारण उसकी आयु में बढ़ोतरी या घटोतरी हो सकती है।
कभी-कभी दुर्घटनावश यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो भी उसको इतने वर्षों तक किसी विशेष योनि में भटकना पड़ता है।
मतलब यह हुआ आपके कर्म आप के फल को परिवर्तित करते हैं और फिर वह परिवर्तन आपकी मृत्यु को भी परिवर्तित कर सकता है।
अधिकतर देखा गया है कि जो ज्ञानी पुरुष पैदा होते हैं वह 5 साल 7 साल की आयु पर ही अपनी प्रतिभा को दिखाने लगते हैं और बहुत ही कम आयु में देह को त्याग देते हैं जैसे संत  ज्ञानेश्वर 21 वर्ष शंकराचार्य 21 वर्ष विवेकानंद 40 वर्ष कुछ ऐसे ही समझिए।
जितनी लंबी आयु मतलब उतना अधिक आपके ऊपर कर्मफल के संस्कारों का बोझ जिसको काटने के लिए आपको इस मानव देह में लंबे समय तक रहना है।




30. क्या तुरंत मुक्ति सम्भव है यदि मुक्ति सम्भव है तो हम मुक्त हुए या नही इसको किस भांति बताया जा सकता है?? 



अध्यात्म में मनुष्य की पहली पहचान है कि वह कितना अधिक धैर्य धारण कर सकता है।
क्षेत्र में कोई भी कार्य तुरंत नहीं होता है।


हां यदि पुण्य कर्म बहुत अधिक है तो कोई अवतारी पुरुष आशीर्वाद से आपका काम बना दिया लेकिन इसमें भी उसका तप  और उसका सत्य नष्ट होता है।


मेरा तो मानना है कि आप भटके बिल्कुल नहीं यदि आपके गुरु नहीं है तो आप किसी गुरु घंटाल के चक्कर में ना पड़े आप अपने इष्ट का सतत निरंतर निर्बाध मंत्र जप करते रहे श्रद्धा के साथ करते रहे एक ना एक दिन यह मंत्र जब आपको गुरु से लेकर ज्ञान तक भौतिक सुखों से लेकर मोक्ष तक स्वयं ले जाने की क्षमता रखता है।


31. मैं चाहता हु तुरंत वाला आप बताइए कैसे होगा कि बस मैं मान लू की मैं मुक्त हु ओर हो गया अब क्या क्या परिवर्तन होने चाहिए मेरे में या क्या स्थिति होनी चाहिए?? 



देखिए पतंजलि महाराज ने जो वाहिक अंग बताए हैं वे सभी आध्यात्मिक मार्ग हेतु एक से जैसे यम दूसरा नियम।
नियम में आप अपने प्रति क्या व्यवहार करते हैं उसमें एक शब्द आता है स्वाध्याय।
स्वाध्याय के द्वारा आप अपने अंदर आने वाले परिवर्तनों को देख सकते हैं निरीक्षण कर सकते है और उसके अनुसार क्या सुधार करना है यह आप जान सकते इसके अलावा क्या आपके अंदर यम और नियम के जो पांच उप अंग हैं वह धीरे-धीरे प्रविष्ट हो गए कि नहीं यदि यह सब बदलाव आ रहे हैं तो आप सही मार्ग पर जा रहे हैं।
यदि आपके अंदर धीरे-धीरे समत्व का भाव आ रहा है यदि आपके अंदर स्थिरबुद्धि आ रही है आप स्थितप्रज्ञ हो रहे हैं तो निश्चित रूप से आप उन्नति कर रहे हैं।
यदि आपके अंदर निष्काम कर्म की भावना आ रही है और आप अपने कार्य को कुशलतापूर्वक निभा रहे हैं तो निश्चित रूप से आप सही मार्ग पर हैं।


32. आप वैज्ञानिक हैं कृपया मुझे बताइये की आजादी के समय हमारे देश की औसत आयु मात्र 32 वर्ष थी जो आज बढ़ कर 69 वर्ष हो गई है। तो क्या पहले के लोग खराब थे और अब अच्छे हो गए हैं। अमेरिका वगैरा में 87-88 वरष है। तो क्या उनके कर्म बेहतर हैं?? 


यह बिल्कुल सही बात है कारण पहले अकाल मौत बहुत होती थी अभी विज्ञान के द्वारा हमने अपनी भौतिक आयु को बढ़ा लिया है लेकिन मानसिक रूप से हम बहुत अधिक बीमार हो चुके हैं।

हमारे वहां यजुर्वेद भी आयुर्वेद की उत्पत्ति करता है मतलब मनुष्य अपनी आयु को भी बढ़ा सकता है भौतिक रूप से भी और आध्यात्मिक रूप से भी।


।। येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।

अर्थ : जिसके पास विद्या, तप, ज्ञान, शील, गुण और धर्म में से कुछ नहीं वह मनुष्य ऐसा जीवन व्यतीत करते हैं जैसे एक मृग।



यहां पर दो चीजें आती है सार्थक और निरर्थक।


33. यदि मान लेते है कि 40 की आयु में मृत्यु होने का तय है व इस बात को नही जानते है तो क्या इंतज़ार करना चाहिए भैया 55 की उम्र तक का बताइए

अगले अंक की प्रतीक्षा !!


👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 4👈👈

जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥



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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

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