अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर: इसका उत्तर कही नहीं मिलेगा
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी
33. जब सब भगवान करता है तो पापी इंसान क्यों ???
यह बात तर्कों के हिसाब से बिल्कुल सही है कि जब सब काम ईश्वर करता है तो मनुष्य पाप क्यों करता है वह सच्चाई के रास्ते पर क्यों नहीं चलता है।
इस प्रश्न का उत्तर आपको शायद ही कोई संत या गुरु दे पाए नेट पर तो यह कहीं नहीं दिया है और ना ही किसी शास्त्र में कहा गया है।
इस प्रश्न के उत्तर मेरे गुरुदेव और मां काली की कृपा से ही प्राप्त हुआ है जोकि मुझे एक तरीके से आभासी चित्र दिखाकर आत्म गुरु ने समझाया।
यह तो हम सभी जानते हैं वह ब्रह्म न किसी का मित्र है न किसी का शत्रु है हर मनुष्य अपने कर्म के हिसाब से कर्मफल पैदा करके उसको भोगता है और उसी के हिसाब से जन्म लेता है। जिसमें उसके कर्मफल संस्कार के रूप में या प्रारब्ध के रूप में भोगने के लिए बाध्य करते हैं।
यह हम सभी जानते हैं कि मनुष्य जब पैदा होता है तब अपने प्रारब्ध लेकर पैदा होता है।
हमको अपने कर्म फल तो भोगना ही पड़ेगा लेकिन भक्ति के द्वारा हमको उनको सहने की क्षमता प्राप्त हो जाती है और कभी कभी उनका प्रभाव फैल जाता है। हम अपनी साधना के द्वारा कर्म फल को आगे तो बढ़ा सकते हैं लेकिन हम उसको नष्ट नहीं कर सकते।
आपने पितामह भीष्म की कथा तो सुनी ही होगी।
जब मनुष्य की योनि का निर्माण हुआ तब विष्णु पुराण के अनुसार नर और नारायण का अवतार हुआ यानी उस ब्रह्म ने जो निराकार था उसने एक रूप नर का बनाया और एक नारायण का बनाया। दोनों बराबर शक्तिशाली थे और दोनों के बीच में युद्ध तक हुआ|
नारायण को काम दिया गया सृष्टि को चलाने का नर को काम दिया गया सृष्टि को बढ़ाने का एक माध्यम बनेगा।
इसके लिए नारायण ने नर की एक हड्डी से स्त्री का निर्माण किया यह विज्ञान के हिसाब से भी सही है क्योंकि एक्स और वाई क्रोमोसोम पुरुष में ही होते हैं स्त्री में खाली एक्स ही होता है।
जब नर ने नारायण से बात की ब्रह्म से पूछा तो ब्रह्म ने कहा कि तुम अब इस खाली पड़ी हुई सृष्टि में मानव का निर्माण करो इसके लिए यह स्त्री दी गई है और इसी के साथ नारायण ने रजोगुण में क्षणिक आनंद भी भर दिया।
नर ने जब सृष्टि के निर्माण हेतु स्त्री से संपर्क किया तो उसको वह क्षणिक आनंद अत्यंत सुखदाई लगा अगली बार वह सृष्टि के निर्माण हेतु नहीं बल्कि उस आनंद की पुनरावृत्ति हेतु स्त्री के पास गया इस प्रकार वह अपने संस्कार संचित करता गया साथ ही उसके अंदर करतापन की भावना आई कि मैं आनन्द लेना चाहता हूं। इसलिए इस तरीके से वह अपना नारायण स्वरूप खो चुका था।
तो नारायण ने कहा भाई तुमको एक जन्म और दे देता हूं तुम अपने को शुद्ध कर लो अपने को संस्कार विहीन कर लो। नारायण ने नर को एक जन्म और दे दिया लेकिन नर उस जन्म में भी रजोगुण हेतु अपने आप जीवन नष्ट कर दिया।
धीरे धीरे आनंद देने की प्रवृत्ति के कारण तमोगुण भी पैदा हो गए। मतलब लड़ाई झगड़े दंगे फसाद इस प्रकार मनुष्य अपने नारायण स्वरूप से हर जन्म में धीरे-धीरे अलग होता गया।
आप देखेंगे इस धरती पर जितने भी युद्ध हुए हैं नरसंहार हुए हैं वह सब रजोगुण के कारण ही हुए हैं। जर और जोरू के कारण। आज भी काफिर की औरत के साथ कुछ भी करो। एक वर्ग ईश्वर के नाम यह कहता है। पुस्तक में लिखा है। रजोगुण एक बड़ा कारण है अपराध होने का।
जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥
आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब / फालो कर दें। जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे।
No comments:
Post a Comment