सम्पूर्ण आध्यात्मिकता का मूल क्या है ??
क्या खोज रहा है इंसान ??
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी
मनुष्य का मूल रूप आनंद है जाने अनजाने में मनुष्य इसी आनंद के लिए सारे क्रियाकलाप करता है और जब वह आत्म तत्व में स्थित हो जाता है तब उसको स्थाई आनंद की प्राप्ति हो जाती है और वह आत्माराम बन जाता है।
आध्यात्मिकता का मूल यदि हम ध्यान से देखें तो वेदों के अनुसार वेद महावाक्यों के अनुभव के बाद हमें अपना मूल रूप मूल स्वरूप मालूम पड़ता है और हमें यह मालूम पड़ जाता है कि हमारा मूल रूप ब्रह्म है।
लेकिन भौतिक जगत में जाने अनजाने में आदमी अपनी मृत्यु की तैयारी कर रहा है क्योंकि हर सांस के साथ मृत्यु हमारे नजदीक आती जा रही है और मृत्यु के समय हमारे भाव हमारे अगले जन्म की तैयारी करेंगे।
यह हम अच्छी तरीके से जानते हैं की मानव शरीर सबसे अधिक शक्तिशाली होता है क्योंकि यह पांच तत्वों से निर्मित होता है और जब उसमें से जल और भूमि तत्व निकल जाते हैं तो मनुष्य की मृत्यु हो जाती है लेकिन वह 3 तत्व दो जोकि अग्नि वायु और आकाश यह सूक्ष्म शरीर में विद्यमान रहते हैं और हमारे भौतिक जगत के कर्मों के फल भोंगते हैं। उसी के अनुसार स्वर्ग नरक पाताल इत्यादि लोगों में भ्रमण करते हैं। जो मनुष्य शांति के साथ शरीर त्यागते हैं उनके अंदर तो अग्नि तत्व भी नष्ट हो जाता है मात्र वायु और आकाश तत्व रहते हैं। और आकाश तत्व में जिसे हम भाव शरीर कारण शरीर कहते हैं उसके कारण हमारा सूक्ष्मख शरीर बनता है और फिर यह भौतिक शरीर।
जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥
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