कौन हैं बारह आदित्य
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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प्राय: मूर्ख हिंदू, सनातन विरोधी व हिंदू विरोधी 33 करोड देवताओं के नाम से
उपहास उडाते हैं। शास्त्रों के अनुसार यह 33 कोटि यानि प्रकार या देवताओं की
श्रेणी का कुल योग 33 है। देवता दिव् धातु से बना है जिसका अर्थ होता है देने वाला।
जो शक्तियां हमको भौतिक और परालौकिक जो कुछ भी देती हैं उनकेकुल 33 प्रकार होते हैं। मराठी इत्यादि भाषा में कोटि
का अर्थ करोड होता है। अत: मूर्ख लोग उल्टे अर्थ लगाकर उपहास बनाते हैं।
12 आदित्य, 8 वसु,
11 रुद्र और 2 अश्वनि कुमार या
इन्द्र और प्रजापति को मिलाकर कुल 33 देवता होते हैं। कुछ विद्वान इन्द्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विनी कुमारों को रखते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा हैं। 12 आदित्यों में से 1 विष्णु हैं और 11 रुद्रों में से 1 शिव हैं। उक्त सभी देवताओं को परमेश्वर ने अलग-अलग कार्य सौंप रखे हैं। इन सभी देवताओं की कथाओं पर शोध करने की
जरूरत है।
जिस तरह देवता 33 हैं उसी तरह दैत्यों, दानवों, गंधर्वों, नागों आदि की गणना भी की गई है। देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं, जो हिन्दू धर्म के संस्थापक 4 ऋषियों में से एक अंगिरा के पुत्र हैं। बृहस्पति के पुत्र कच थे जिन्होंने शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या सीखी। शुक्राचार्य
दैत्यों
(असुरों) के गुरु हैं। भृगु
ऋषि
तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री
दिव्या के
पुत्र शुक्राचार्य की
कन्या का नाम देवयानी तथा पुत्र का नाम शंद और अमर्क था। देवयानी ने ययाति से विवाह किया था।
ऋषि कश्यप की पत्नी अदिति से जन्मे पुत्रों को आदित्य कहा गया है। वेदों में जहां अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है, वहीं सूर्य को भी आदित्य कहा गया है। वैदिक या आर्य लोग दोनों की ही स्तुति करते थे। इसका यह मतलब नहीं कि आदित्य ही सूर्य है या सूर्य ही आदित्य है। हालांकि आदित्यों को सौर-देवताओं में शामिल किया गया है और उन्हें सौर मंडल का कार्य सौंपा गया है।
पुराण के अनुसार भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार हैं। इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है-
एक बार देवताओं और दानवों में लड़ाई छिड़ गई। इसमें दानव जीत गए और उन्होंने देवताओं को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया। सभी देवता बड़े दु:खी मन से अपने पिता कश्यप मुनि के पास गए। उन्होंने पिता को अपने दु:ख का कारण बताया। कश्यप मुनि परम शिवभक्त थे। उन्होंने अपने पुत्रों को आश्वासन दिया और काशी जाकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना शुरु कर दी। उनकी सच्ची भक्ति देखकर भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए और दर्शन देकर वर मांगने को कहा।
एक बार देवताओं और दानवों में लड़ाई छिड़ गई। इसमें दानव जीत गए और उन्होंने देवताओं को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया। सभी देवता बड़े दु:खी मन से अपने पिता कश्यप मुनि के पास गए। उन्होंने पिता को अपने दु:ख का कारण बताया। कश्यप मुनि परम शिवभक्त थे। उन्होंने अपने पुत्रों को आश्वासन दिया और काशी जाकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना शुरु कर दी। उनकी सच्ची भक्ति देखकर भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए और दर्शन देकर वर मांगने को कहा।
कश्यप मुनि ने देवताओं की भलाई के लिए उनके यहां पुत्र रूप में आने का वरदान मांगा। शिव भगवान ने कश्यप को वर दिया और वे उनकी पत्नी सुरभि के गर्भ से ग्यारह रुपों में प्रकट हुए। यही ग्यारह रुद्र कहलाए। ये देवताओं के दु:ख को दूर करने के लिए प्रकट हुए थे इसीलिए इन्होंने देवताओं को पुन: स्वर्ग का राज दिलाया। धर्म शास्त्रों के अनुसार यह ग्यारह रुद्र सदैव देवताओं की रक्षा के लिए स्वर्ग में ही रहते हैं।
मेरी दृष्टि में इन्द्र और प्रजापति ब्रह्मा ही सही लगते हैं। क्योकि
कोई भी जीवन तीन आयामों में होता है। पहला सत्वगुण लेकर जन्म जिसका मालिक ब्रह्मा जी।
दूसरा पालन कर्ता यानि विष्णु। सूर्य जीवन की उत्पत्ति का कारण है अत: आदित्य कहकर
इनको बुलाया। संहारकर्ता और मृत्यु के बाद के जीवन के मालिक रूद्र और उनका रूप शिव।
सभी कर्म इनद्रियां करती है यानि इनका मालिक है इंद्र। फिर जीवन जीने हेतु प्राण वायु
और अन्य साम्रगी मिलती है वसुओं से। जिनके आठ प्रकार है।
यदि यह सब ठीक रहते हैं तो शरीर के आयाम स्वस्थ्य ही रहेगें। अत: अश्वनि
कुमार को मैं नहीं गिनता पर उनकी पुराणों में उत्पत्ति अवश्य वर्णन करूंगा।
12 आदित्य:
12 आदित्य देव के अलग
अलग नाम : ये कश्यप ऋषि की दूसरी पत्नी
अदिति से उत्पन्न 12 पुत्र हैं। ये 12 हैं : अंशुमान, अर्यमन, इन्द्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और विष्णु। इन्हीं
पर वर्ष के 12 मास नियुक्त हैं।
पुराणों में इनके नाम इस तरह
मिलते हैं : धाता, मित्र, अर्यमा, शुक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान, पूषा, सविता, त्वष्टा एवं विष्णु।
कई जगह इनके नाम हैं
: इन्द्र, धाता, पर्जन्य, त्वष्टा, पूषा, अर्यमा, भग, विवस्वान, विष्णु, अंशुमान और मित्र।
तो कहीं यह भी। 12. विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान
वामन)।
इन्द्र : यह भगवान सूर्य का प्रथम रूप है। यह देवों के राजा के रूप में आदित्य स्वरूप
हैं।
इनकी शक्ति असीम है।
इन्द्रियों पर इनका अधिकार है। शत्रुओं का दमन और देवों की रक्षा का भार इन्हीं पर है।
इन्द्र को सभी देवताओं का राजा माना जाता है। वही वर्षा पैदा करता है और वही स्वर्ग पर शासन करता है। वह बादलों और विद्युत का देवता है। इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी थी। छल-कपट के कारण इन्द्र की प्रतिष्ठा ज्यादा नहीं रही। इसी इन्द्र के नाम पर आगे चलकर जिसने भी स्वर्ग पर शासन किया, उसे इन्द्र ही कहा जाने लगा। तिब्बत में या तिब्बत के पास इंद्रलोक था। कुछ लोग कहते हैं कि कैलाश पर्वत के कई योजन उपर स्वर्ग लोक है।
इन्द्र किसी भी साधु और धरती के राजा को अपने से शक्तिशाली नहीं बनने देते थे। इसलिए वे कभी तपस्वियों को अप्सराओं से मोहित कर पथभ्रष्ट कर देते हैं तो कभी राजाओं के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े चुरा लेते हैं।
ऋग्वेद के तीसरे मंडल के वर्णनानुसार इन्द्र ने विपाशा (व्यास) तथा शतद्रु नदियों के अथाह जल को सुखा दिया जिससे भरतों की सेना आसानी से इन नदियों को पार कर गई। दशराज्य युद्ध में इन्द्र ने भरतों का साथ दिया था। सफेद हाथी पर सवार इन्द्र का अस्त्र वज्र है और वह अपार शक्ति संपन्न देव है। इन्द्र की सभा में गंधर्व संगीत से और अप्सराएं नृत्य कर देवताओं का मनोरंजन करते हैं।
इन्द्र को सभी देवताओं का राजा माना जाता है। वही वर्षा पैदा करता है और वही स्वर्ग पर शासन करता है। वह बादलों और विद्युत का देवता है। इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी थी। छल-कपट के कारण इन्द्र की प्रतिष्ठा ज्यादा नहीं रही। इसी इन्द्र के नाम पर आगे चलकर जिसने भी स्वर्ग पर शासन किया, उसे इन्द्र ही कहा जाने लगा। तिब्बत में या तिब्बत के पास इंद्रलोक था। कुछ लोग कहते हैं कि कैलाश पर्वत के कई योजन उपर स्वर्ग लोक है।
इन्द्र किसी भी साधु और धरती के राजा को अपने से शक्तिशाली नहीं बनने देते थे। इसलिए वे कभी तपस्वियों को अप्सराओं से मोहित कर पथभ्रष्ट कर देते हैं तो कभी राजाओं के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े चुरा लेते हैं।
ऋग्वेद के तीसरे मंडल के वर्णनानुसार इन्द्र ने विपाशा (व्यास) तथा शतद्रु नदियों के अथाह जल को सुखा दिया जिससे भरतों की सेना आसानी से इन नदियों को पार कर गई। दशराज्य युद्ध में इन्द्र ने भरतों का साथ दिया था। सफेद हाथी पर सवार इन्द्र का अस्त्र वज्र है और वह अपार शक्ति संपन्न देव है। इन्द्र की सभा में गंधर्व संगीत से और अप्सराएं नृत्य कर देवताओं का मनोरंजन करते हैं।
2. धाता :
धाता
हैं दूसरे आदित्य। इन्हें श्रीविग्रह के रूप
में जाना जाता है। ये प्रजापति के रूप में जाने
जाते
हैं। जन समुदाय की सृष्टि में इन्हीं का योगदान है। जो
व्यक्ति
सामाजिक नियमों का पालन नहीं करता है और जो व्यक्ति धर्म का
अपमान करता है उन पर इनकी नजर रहती है। इन्हें
सृष्टिकर्ता भी कहा जाता है।
केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर बासवाड़ा से 12 किमी की दूरी पर है प्रचीन बसुकेदार मंदिर समूह। शंकराचार्यकालीन यह
मंदिर कत्यूरी शिल्प में निर्मित 18 छोटे बड़े मंदिरो का समूह है।
मुख्य मंदिर शिव के केदार स्वरूप को समर्पित है, जिसके अंदर गर्भगृह के पहले
द्वार पर गणेश और विष्णु भगवान की पाषाण प्रतिमाऐ हैं। मुख्य
मंदिर से लगते अन्य मंदिरो में भी शिव रूप स्थापित है। मान्यता है कि यहां अष्ट वसुओं ने भगवान
आदिकेदार की तपस्या की थी। इसलिऐ यह स्थान बसुकेदार
नाम से प्रसिद्ध हुआ।
3. पर्जन्य : पर्जन्य तीसरे आदित्य हैं। ये मेघों में निवास करते हैं। इनका मेघों पर
नियंत्रण
हैं। वर्षा के होने तथा किरणों के प्रभाव से मेघों का जल बरसता है।
ये
धरती के ताप को शांत करते
हैं और
फिर से जीवन का संचार करते
हैं। इनके
बगैर धरती पर जीवन संभव
नहीं।
4. त्वष्टा : आदित्यों में चौथा नाम श्रीत्वष्टा का आता है। इनका निवास स्थान वनस्पति में है। पेड़-पौधों में यही व्याप्त हैं। औषधियों में निवास करने
वाले हैं। इनके तेज से
प्रकृति की वनस्पति में तेज व्याप्त है जिसके द्वारा जीवन को आधार प्राप्त होता है।
त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप। विश्वरूप की माता असुर कुल की थीं अतः वे चुपचाप असुरों का भी सहयोग करते रहे। एक दिन इन्द्र ने क्रोध में आकर वेदाध्ययन करते विश्वरूप का सिर काट दिया। इससे इन्द्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा। इधर, त्वष्टा ऋषि ने पुत्रहत्या से क्रुद्ध होकर अपने तप के प्रभाव से महापराक्रमी वृत्तासुर नामक एक भयंकर असुर को प्रकट करके इन्द्र के पीछे लगा दिया। ब्रह्माजी ने कहा कि यदि नैमिषारण्य में तपस्यारत महर्षि दधीचि अपनी अस्थियां उन्हें दान में दें दें तो वे उनसे वज्र का निर्माण कर वृत्तासुर को मार सकते हैं। ब्रह्माजी से वृत्तासुर को मारने का उपाय जानकर देवराज इन्द्र देवताओं सहित नैमिषारण्य की ओर दौड़ पड़े।
5. पूषा : पांचवें आदित्य पूषा हैं जिनका निवास अन्न में होता है। समस्त प्रकार के
धान्यों
में ये विराजमान हैं। इन्हीं के द्वारा अन्न में पौष्टिकता एवं
ऊर्जा आती
है। अनाज में जो भी स्वाद
और रस
मौजूद होता है वह इन्हीं
के तेज से आता है।
6. अर्यमन :
अदिति
के
तीसरे पुत्र और आदित्य नामक सौर-देवताओं में से एक अर्यमन या अर्यमा को
पितरों
का देवता भी कहा जाता है। आकाश में आकाशगंगा उन्हीं के मार्ग का
सूचक
है। सूर्य से संबंधित इन देवता का अधिकार
प्रात: और रात्रि के चक्र पर है। आदित्य
का
छठा रूप अर्यमा नाम से जाना जाता है। ये वायु रूप में प्राणशक्ति का
संचार
करते हैं। चराचर जगत की जीवन शक्ति हैं। प्रकृति की
आत्मा रूप में निवास करते हैं।
7. भग : सातवें आदित्य हैं भग। प्राणियों की देह में अंग रूप में
विद्यमान हैं। ये भग देव शरीर में
चेतना,
ऊर्जा शक्ति,
काम शक्ति तथा जीवंतता की अभिव्यक्ति
करते हैं।
8. विवस्वान : आठवें आदित्य
विवस्वान हैं। ये अग्निदेव हैं। इनमें जो तेज व ऊष्मा व्याप्त है वह सूर्य से है। कृषि और फलों का पाचन, प्राणियों द्वारा खाए गए भोजन का पाचन इसी अग्नि द्वारा होता है। ये आठवें मनु वैवस्वत मनु के पिता हैं।
9. विष्णु : नौवें आदित्य हैं विष्णु। देवताओं के शत्रुओं का संहार करने वाले देव
विष्णु हैं। वे
संसार के समस्त कष्टों से मुक्ति कराने वाले हैं। माना जाता है कि नौवें आदित्य के रूप में विष्णु ने त्रिविक्रम के रूप
में जन्म लिया था। त्रिविक्रम को विष्णु का वामन अवतार माना जाता है। यह दैत्यराज बलि
के काल
में हुए थे। हालांकि इस पर
शोध किए जाने कि आवश्यकता है कि नौवें आदित्य में लक्ष्मीपति विष्णु हैं या विष्णु अवतार वामन।
12 आदित्यों में से एक विष्णु को पालनहार इसलिए कहते हैं, क्योंकि उनके समक्ष प्रार्थना करने से ही हमारी समस्याओं का निदान होता है। उन्हें सूर्य का रूप भी माना गया है। वे साक्षात सूर्य ही हैं। विष्णु ही मानव या अन्य रूप में अवतार लेकर धर्म और न्याय की रक्षा करते हैं। विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हमें सुख, शांति और समृद्धि देती हैं। विष्णु का अर्थ होता है विश्व का अणु।
10. अंशुमान : दसवें आदित्य हैं अंशुमान। वायु रूप
में जो प्राण तत्व बनकर देह में विराजमान है वही अंशुमान हैं। इन्हीं से जीवन
सजग और तेज पूर्ण रहता है।
11. वरुण : ग्यारहवें आदित्य जल तत्व का प्रतीक हैं वरुण देव। ये मनुष्य में विराजमान
हैं जल
बनकर। जीवन बनकर समस्त
प्रकृति के जीवन का आधार हैं। जल के अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
वरुण को असुर समर्थक कहा जाता है। वरुण देवलोक में सभी सितारों का मार्ग निर्धारित करते हैं। वरुण तो देवताओं और असुरों दोनों की ही सहायता करते हैं। ये समुद्र के देवता हैं और इन्हें विश्व के नियामक और शासक, सत्य का प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन-रात के कर्ता-धर्ता, आकाश, पृथ्वी एवं सूर्य के निर्माता के रूप में जाना जाता है। इनके कई अवतार हुए हैं। उनके पास जादुई शक्ति मानी जाती थी जिसका नाम था माया। उनको इतिहासकार मानते हैं कि असुर वरुण ही पारसी धर्म में 'अहुरा मज़्दा' कहलाए।
वरुण को असुर समर्थक कहा जाता है। वरुण देवलोक में सभी सितारों का मार्ग निर्धारित करते हैं। वरुण तो देवताओं और असुरों दोनों की ही सहायता करते हैं। ये समुद्र के देवता हैं और इन्हें विश्व के नियामक और शासक, सत्य का प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन-रात के कर्ता-धर्ता, आकाश, पृथ्वी एवं सूर्य के निर्माता के रूप में जाना जाता है। इनके कई अवतार हुए हैं। उनके पास जादुई शक्ति मानी जाती थी जिसका नाम था माया। उनको इतिहासकार मानते हैं कि असुर वरुण ही पारसी धर्म में 'अहुरा मज़्दा' कहलाए।
12 मित्र : बारहवें आदित्य हैं मित्र। विश्व के कल्याण हेतु तपस्या करने वाले, साधुओं का कल्याण करने की क्षमता रखने वाले हैं मित्र देवता हैं।
ये 12
आदित्य सृष्टि के विकास क्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
(तथ्य एवं कथा गूगल से साभार)
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