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Sunday, March 31, 2019

मूर्खों हेतु 33 कोटि यानि 33 करोड



मूर्खों हेतु 33 कोटि यानि 33 करोड

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "अन्वेषक" 
मो.  09969680093
 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) सेवानिवृत्त परमाणु वैज्ञानिक, लेखक एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
   वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
                   फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"



प्राय: मूर्ख हिंदू, सनातन विरोधी व हिंदू विरोधी 33 करोड देवताओं के नाम से उपहास उडाते हैं। शास्त्रों के अनुसार यह 33 कोटि यानि प्रकार या देवताओं की श्रेणी का कुल योग 33 है। देवता दिव् धातु से बना है जिसका अर्थ होता है देने वाला। जो शक्तियां हमको भौतिक और परालौकिक जो कुछ भी देती हैं उनकेकुल  33 प्रकार होते हैं। मराठी इत्यादि भाषा में कोटि का अर्थ करोड होता है। अत: मूर्ख लोग उल्टे अर्थ लगाकर उपहास बनाते हैं। 


12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्वनि कुमार या इन्द्र और प्रजापति को मिलाकर कुल 33 देवता होते हैं। कुछ विद्वान इन्द्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विनी कुमारों को रखते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा हैं। 12 आदित्यों में से 1 विष्णु हैं और 11 रुद्रों में से 1 शिव हैं। उक्त सभी देवताओं को परमेश्वर ने अलग-अलग कार्य सौंप रखे हैं। इन सभी देवताओं की कथाओं पर शोध करने की जरूरत है। 

जिस तरह देवता 33 हैं उसी तरह दैत्यों, दानवों, गंधर्वों, नागों आदि की गणना भी की गई है। देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं, जो हिन्दू धर्म के संस्थापक 4 ऋषियों में से एक अंगिरा के पुत्र हैं। बृहस्पति के पुत्र कच थे जिन्होंने शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या सीखी। शुक्राचार्य दैत्यों (असुरों) के गुरु हैं। भृगु ऋषि तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र शुक्राचार्य की कन्या का नाम देवयानी तथा पुत्र का नाम शंद और अमर्क था। देवयानी ने ययाति से विवाह किया था।

ऋषि कश्यप की पत्नी अदिति से जन्मे पुत्रों को आदित्य कहा गया है। वेदों में जहां अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है, वहीं सूर्य को भी आदित्य कहा गया है। वैदिक या आर्य लोग दोनों की ही स्तुति करते थे। इसका यह मतलब नहीं कि आदित्य ही सूर्य है या सूर्य ही आदित्य है। हालांकि आदित्यों को सौर-देवताओं में शामिल किया गया है और उन्हें सौर मंडल का कार्य सौंपा गया है।


पुराण के अनुसार भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार हैं। इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है-
एक बार देवताओं और दानवों में लड़ाई छिड़ गई। इसमें दानव जीत गए और उन्होंने देवताओं को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया। सभी देवता बड़े दु:खी मन से अपने पिता कश्यप मुनि के पास गए। उन्होंने पिता को अपने दु:ख का कारण बताया। कश्यप मुनि परम शिवभक्त थे। उन्होंने अपने पुत्रों को आश्वासन दिया और काशी जाकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना शुरु कर दी। उनकी सच्ची भक्ति देखकर भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए और दर्शन देकर वर मांगने को कहा।
 

कश्यप मुनि ने देवताओं की भलाई के लिए उनके यहां पुत्र रूप में आने का वरदान मांगा। शिव भगवान ने कश्यप को वर दिया और वे उनकी पत्नी सुरभि के गर्भ से ग्यारह रुपों में प्रकट हुए। यही ग्यारह रुद्र कहलाए। ये देवताओं के दु:ख को दूर करने के लिए प्रकट हुए थे इसीलिए इन्होंने देवताओं को पुन: स्वर्ग का राज दिलाया। धर्म शास्त्रों के अनुसार यह ग्यारह रुद्र सदैव देवताओं की रक्षा के लिए स्वर्ग में ही रहते हैं।

मेरी दृष्टि में इन्द्र और प्रजापति ब्रह्मा ही सही लगते हैं। क्योकि कोई भी जीवन तीन आयामों में होता है। पहला सत्वगुण लेकर जन्म जिसका मालिक ब्रह्मा जी। दूसरा पालन कर्ता यानि विष्णु। सूर्य जीवन की उत्पत्ति का कारण है अत: आदित्य कहकर इनको बुलाया। संहारकर्ता और मृत्यु के बाद के जीवन के मालिक रूद्र और उनका रूप शिव। सभी कर्म इनद्रियां करती है यानि इनका मालिक है इंद्र। फिर जीवन जीने हेतु प्राण वायु और अन्य साम्रगी मिलती है वसुओं से। जिनके आठ प्रकार है। 

(कुछ तथ्य एवं कथा गूगल से साभार) 

MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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