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Wednesday, September 16, 2020
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 34
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 34
Printer Raman Mishra: न्यूटन ने कहा है कि जैसे सागर के किनारे कुछ सीप बीन ली हों, कुछ रेत पर मुट्ठी बांध ली हो, ऐसा मेरा ज्ञान है। सागर के किनारे अनंत-अनंत बालू-कणों के बीच थोड़ी सी रेत पर मुट्ठी बांध ली है; थोड़े जैसे बच्चों ने सीपें, सागर के शंख बीन लिए हों, ऐसे ही कुछ शंख बीन लिए हैं--ऐसा मेरा ज्ञान है। जो मैं जानता हूं, वे मेरी मुट्ठी के रेत-कण हैं। और जो मैं नहीं जानता हूं, वे इस सागर के रेत-कण हैं।
लेकिन न्यूटन कह सकता है। न्यूटन गंवार नहीं है। न्यूटन जैसे-जैसे जानने लगा, वैसे-वैसे अज्ञान प्रगाढ़ और स्पष्ट होने लगा। लेकिन किसी गंवार को पूछें, वह इतना भी मानने को राजी न होगा कि मेरी मुट्ठी में जितने कण हैं, उतना भी मेरा अज्ञान है। जितने सागर में कण हैं, वह तो मेरा ज्ञान है ही; लेकिन जितने मेरी मुट्ठी में हैं, इतना भी मेरा अज्ञान है, यह भी मानने को राजी न होगा।
इसलिए मूढ़ बड़े सुनिश्चित होते हैं। और इन सुनिश्चित मूढ़ों के कारण जगत में इतना उपद्रव है जिसका हिसाब लगाना कठिन है। क्योंकि वे बिलकुल निश्चित हैं। जगत में दो ही कठिनाइयां हैं: मूढ़ों का निश्चित होना, ज्ञानियों का अनिश्चित होना। इसलिए मूढ़ कार्य करने में बड़े कुशल होते हैं। ज्ञानी निष्क्रिय होते मालूम पड़ते हैं। ज्ञानी इतना अनिश्चित होता है, कोहराछन्न होता है, रहस्य में डूबा होता है, इतने काव्य से घिरा होता है कि गणित की भाषा में सोच नहीं सकता। मूढ़ आंख बंद करके वहां प्रवेश कर जाते हैं, जहां देवता भी प्रवेश करने में डरें। मूढ़ काफी सक्रिय होते हैं। उनकी सक्रियता उपद्रव लाती है।
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गणपति बप्पा मोरिया।
विपुल लखनवी नवी मुंबई।
गणपति बप्पा मोरिया। मंगल मूर्ति मोरिया।
हिंदुत्व की कब्र देखकर। विवेकानंद ही रो रिया॥
साधु बाबा हत्या केस में। हत्यारों को छोड़ दिया।
जाने कितने पकड़ लिए थे। कर सम्मानित छोर दिया॥
जो हिंदु के रक्षक कभी थे। अब भक्षक ही बन बैठे।
सत्ता कुर्सी की खातिर वो। हिंदू विरोधी हो रिया॥
हिंदू सब कुछ सहन करे। पर उसको मारा जाता।
जो बेचारा शांतिदूत है। कतल उसी का हो रिया॥
जो हिंदु के अतिथि बने थे। उसको ही खसोट रहे।
राजनीति करने वाले भी। उसको ही है लूट रिया॥
तेल कान में डाले बैठे। हिंदू मूरख समझ है ऐठे।
अब कितने दिन मौज रहेगी। न कोई ये सोच रिया॥
चार दिनों का जीवन अपना। चार दिनों दुनियादारी।
मार काट इसी में मचाई। नहीं समझ यह कोई रिया॥
कैसा यह अंधेर मचाया। किसको मारा किसे बचाया।
जो सद् जन दुर्जन है पीटे। पक्ष उसी का हो रिया॥
गणपति बप्पा मोरिया। मंगल मूर्ति मोरिया।।
Printer Raman Mishra: संविधान के 'मूल संरचना सिद्धांत' को निर्धारित करने वाले ऐतिहासिक फ़ैसले के प्रमुख याचिकाकर्ता रहे केशवानंद भारती का निधन हो गया है. वे 79 वर्ष के थे.
उन्होंने रविवार सुबह केरल के उत्तरी ज़िले कासरगोड में स्थित इडनीर के अपने आश्रम में अंतिम साँस ली.
केशवानंद भारती इडनीर मठ के प्रमुख थे. मठ के वकील आई वी भट ने बीबीसी को बताया, "अगले हफ़्ते भारती की हार्ट वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी होनी थी, लेकिन रविवार सुबह अचानक उनकी मृत्यु हो गई."
केशवानंद भारती का नाम भारत के इतिहास में दर्ज रहेगा. 47 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने 'केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ़ केरल' मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया था जिसके अनुसार 'संविधान की प्रस्तावना के मूल ढांचे को बदला नहीं जा सकता.'
इस फ़ैसले के कारण उन्हें 'संविधान का रक्षक' भी कहा जाता था.
Bhakt Lokeshanand Swami: लोकेशानन्द कहता है कि भगवान की अनन्त कृपा और कोटि कोटि जन्मों में किए सत्कर्मों के फल स्वरूप, नौ द्वार वाले इस मनुष्य शरीर रूपी अयोध्या के, हृदय रूपी राज सिंहासन पर, परमात्मा राम का राज्याभिषेक होता है।
आज इस कथा में वही प्रसंग आया है, तो दो सद्गुरुओं की चर्चा।
रामजी सीताजी के साथ सिंहासन पर विराज रहे हैं। सब ओर हर्षोल्लास है, उमंग उत्साह है। पर न मालूम क्यों, भगवान के मुखमंडल पर प्रतीक्षा का भाव है। आँखें हर एक आने वाले की ओर उठती हैं, और बार बार निराश होकर झुक जाती हैं।
हनुमानजी को चिंता लगी। पूछने लगे- प्रभु! आप किसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं?
भगवान की आँखों की कोर में नमीं स्पष्ट मालूम पड़ती है। भगवान ने कहा- हनुमान! केवट नहीं आए।
सद्गुरू ही केवट हैं, वही नाम रूपी नाव, और नियम रूपी चप्पू द्वारा पार कराते हैं।
उन्होंने मुझे पार लगाया, मैं उनकी कोई सेवा नहीं कर पाया, वे नहीं आए।
हनुमानजी ने चारों ओर नजर दौड़ाई, तो उन्हें एक बात का बड़ा आश्चर्य हुआ, केवट तो वहाँ थे ही नहीं, भरत लाल जी भी नहीं थे।
विस्मित स्वर से हनुमानजी भगवान से पूछते हैं- प्रभु! यहाँ तो भरतजी भी नजर नहीं आ रहे हैं, आपको उनका खयाल नहीं है? वे कहाँ हैं?
भगवान ने कहा- हनुमान! जिस सिंहासन पर मेरा राज्याभिषेक होने जा रहा है, इस पर लगा यह छत्र देख रहे हो? जिस छत्र की छत्रछाया में मैं बैठा हूँ। भरतजी इसी छत्र का दण्ड पकड़ कर, इस सिंहासन के पीछे खड़े हैं।
हनुमानजी ने पीछे जाकर देखा तो भरतजी वहीं थे, और रो रहे थे। हनुमानजी ने भगवान से कहा- प्रभु! भरतजी तो रो रहे हैं। भगवान! जब आप जानते हैं कि भरतजी पीछे खड़े हैं, तो आपको नहीं चाहिए कि उनको आगे बुला लें। जिनकी आँखें आपके राज्याभिषेक को देखने को तरस रही थीं, वे इस दृश्य से वंचित क्यों रहें?
भगवान ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही। बोले- हनुमान! भरतजी अगर आगे आ जाएँगे तो इस छत्र का दण्ड कौन पकड़ेगा? हनुमानजी ने कहा- उसे तो कोई भी पकड़ लेगा प्रभु। भगवान ने कहा- भरतजी यदि उस दण्ड को छोड़ देंगे, तो मेरा राज्याभिषेक आज भी टल जाएगा।
भगवान कहते हैं- मैं दुनियावालों को बताना चाहता हूँ कि अ दुनियावालों! यदि अपने हृदय के राजसिंहासन पर मुझ परमात्मा राम का राज्याभिषेक कराना चाहते हो, तो यह बात ध्यान रखना कि उसी के हृदय रूपी राजसिंहासन पर मेरा राज्याभिषेक होना संभव है, जिसके हृदय पर भरत जैसे किसी संत की छत्रछाया हो।
अब विडियो देखें- राम राज्याभिषेक प्रसंग
https://youtu.be/HIlxud89idk
भवन्ति नम्रास्तरवो फलागमै,
र्नवाम्बुभिभ्रूम्यवलम्बिनो घनाः ।
अनुद्धता सत्पुरुषा समृद्धिषु ,
स्वभाव एवैष परोपकारिणाम।।
फलों के भार से वृक्ष झुक जाते हैं, पानी से भरे हुए मेघ भी नीचे ही आते हैं ।
जो प्रतिष्ठित, समर्थ एवं परोपकारी होते हैं वे अपने वैभव का अभियान नहीं करते और नमृता धारण करते हैं
Tree full of fruits will always bow down, same way clouds full of water.
*शुभोदयम् !लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*
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*हिन्दू धर्म की महानता समझानेवाले और भक्तिभाव बढानेवाले ऑनलाइन सत्संग*
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Bhakt Lokeshanand Swami: "समर्पण"
परम पिता परमात्मा श्रीसीतारामजी की असीम अनुकम्पा से यहाँ चल रही रामकथा, कल के राम राज्याभिषेक के प्रसंग से संपूर्ण हुई।
यह लोकेशानन्द, मनुष्य की देह धारण करके समस्त भारतीय भूमण्डल पर विचरण करते परमात्मा, मेरे सद्गुरुदेव भगवान, मेरे प्राणस्वरूप स्वामी मित्रानन्द जी महाराज के चरणों में कोटि कोटि दण्डवत प्रणाम करते हुए, समस्त संत जगत के प्रति श्रद्धा अर्पित करता है।
अनन्त पूर्वजन्मों के अज्ञात संतवृंद, और वर्तमान जन्म की 50 वर्ष की यात्रा में इस लोकेशानन्द को गुरुदेव के साथ साथ, जिन जिन संतों का ज्ञात अज्ञात रूप से मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, यथा सर्वस्वामीश्रीमहाराज अड़गड़ानंदजी, माधवानंदजी, राजेश्वरानंदजी, रामकिंकरजी, दीनदयालुजी, शाश्वतानंदजी, आचार्य रजनीश, कृपालुजी, डा०विश्वामित्रजी, रामभद्राचार्यजी, विद्यारण्यशास्त्रीजी, अखण्डानंदजी, शरणानंदजी, रामसुखदासजी और भी अन्यान्य विस्मृत महापुरुषों के चरणों में, वह कोटि कोटि प्रणाम करता है।
भगवान श्रीसीतारामजी इससे जिस जिस रूप से, शत्रु-मित्र भाव से आ-आकर मिले, जिन्होंने कभी प्रेम तो कभी घृणा दिखाकर ही, इसका मार्ग प्रशस्त किया, उन समस्त रूपों को यह साष्टांग प्रणाम करता है।
जिन्होंने अपने विचारों से उत्साहपूर्वक इस कथायज्ञ में सहयोग दिया, उन यहाँ के पाठकजन के श्रीचरणों में भी लोकेशानन्द का प्रणाम स्वीकार हो।
अंत में यहाँ जो भी लिखा गया, उसे वह अखिल कोटि ब्रह्माण्ड नायक आनन्दकंद भगवान श्रीरामचंद्र जी के चरणों में समर्पित करता है, और आप सभी का हृदय से धन्यवाद करता है, जिन्होंने इसकी कड़वी खट्टी टेढी मेढी बातों को इतनी गहनता और प्रेम से पढ़ा।
"सियाराम मय सब जग जानि।
करऊँ प्रणाम जोरि जुग पानि॥"
🚩जय श्री सीताराम॥
इस प्रकार 5 मार्च 2020 से प्रारंभ हुई यह रामकथा, अनवरत 187 दिन में संपूर्ण हुई। आप अपने स्थान पर ही रामायण जी की आरती करें और दक्षिणा स्वरूप श्रद्धा प्रेषित करें।
*वदनं प्रसादसदनं सदयं हृदयं सुधामुचोवाच:।*
*करणं परोपकरणं येषां केषां न ते वन्द्या: ॥*
जिस के मुखपर सदैव प्रसन्नता है, हृदय मे करुणा है, वाणी मे मधुरता है, कर्म परोपकार के है, ऐसा व्यक्ति किसे वंदनीय नही ?
One who is always happy & having smile in his face, compassionate, soft spoken, always ready to help others ; automatically gets respect from every one in society.
*शुभोदयम् !लोकेश कुमार वर्मा ( L K Verma)*
Jb Ashutosh C: One Should Not Punish Oneself For Someone Else Wrong Doing
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Jb Lokesh Sharma: ऑनलाइन कक्षाएं: राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा, स्कूलों को ट्यूशन फीस से वंचित नहीं किया जा सकता, 70% ट्यूशन फीस 3 किस्तों में लेने की अनुमति दी
भ्रष्टाचार हटा पाओगे एक सपना है।
दिन में तारे गिन पाओगे एक सपना है।।
देश को लूटा खसोटा साल साठ में बेच दिया।
फिर से उनको ला पाओगे एक सपना है।।
जो पैदाइशी गधा बना घोड़ा कभी न हो सकता।
खच्चर को दौड़ा पाओगे एक सपना है।।
जिसको हिंदी आती नहीं है वह हिंद पर राज करें।
मूरख को विद्वान बनाओ एक सपना है।।
राम नाम की माला जिसने वक्त चुनाव में डाली।
शठ बुद्धी को पाठ सिखाओ एक सपना है।।
हिंदू मुस्लिम कर के लड़ाया देश चीन को बेच दिया।
देशभक्ति सिखला पाओगे एक सपना है।।
हिंदू हिंदू गाकर तुमने सत्ता की कुर्सी पाई।
पांच साल तक इसे चलाओ एक सपना है।।
निरिह साधु की हत्या तुमने करवाई है शासन में।
चैन से तुम अब सो पाओगे एक सपना है।।
शेर के घर गीदड़ हो पैदा ऐसा सम्भव नहीं हुआ।
ऐसा भी कर दिखाओगे या सपना है।
बुलेट विपुल की कलम चलेगी इसको कैसे रोकोगे।
उसकी कविता छुपा पाओगे एक सपना है।।
*4 मिनट 28 सेकंड आपके जीवन के अपने घर के बुजुर्गों के लिए*
*******कौवा बन कर नहीं आऊंगा श्राद्ध खाने , जो खिलाना है जीते जी खिला दे*********
मैं भारत की सनातन परंपरा के साथ हूँ , हर तीज - त्यौहार-कर्म किसी विशेष कारण से ही होता है । पर आज के समय में जब घर में बुजुर्ग सम्मान खोते जा रहे है , और दिखावे के लिए उनके जाने के बाद बड़े बड़े आयोजन हो रहे हो , तब आज के समय की जरूरत है ये वीडियो ।
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आंखों में आंसू लाने वाली एक कहानी मेरी आवाज में
साभार
प्रतीक दवे रतलामी
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=3412193305486390&id=100000872626343&sfnsn=wiwspwa&extid=yZZpeXoREDwNXWNn
रामदेव बाबा को एक पत्र ई-मेल से भेजा।
Sub: Need no money for technical knowledge for making Ayurvedic cotton from turmeric plant. Farmers can double their income.
परम पूजनीय बाबा रामदेव महाराज जी को कोटि नमन।
मैं पेशे से एक परमाणु वैज्ञानिक हूं और पोस्ट ग्रैजुएट केमिकल इंजीनियर हूं।
कोरोना काल में घर में बैठकर मैंने कुछ शोध कर डाली जिसमें आर्युवेदिक कापुस का निर्माण अनायास हो गया।
यह कापुस शुद्ध आयुर्वेदिक है और हल्दी के गुणों से परिपूर्ण है इसका फाहा बनाकर यदि चोट पर लगाया जाए तो फायदा कर सकता है लेकिन इस पर शोध करना बाकी है।
मैं जन सेवा हेतु यह तकनीकी आपको देना चाहता हूं।
मुझे कोई धन नहीं चाहिए।
मेरी अन्य अविष्कार मैंने सार्वजनिक कर दिए थे जैसे की स्पीड बगैर से विद्युत का निर्माण और शहरी अपशिष्ट जल का शुद्धिकरण।
कई कंपनी के सीएमडी को भेजा तो लोगों ने अपने नाम से पेटेंट करा लिया और उसको सीमित कर दिया।
आशा है आप मेरी शोध को जन सेवा हेतु प्रयोग करने में सहायक हो सकते हैं।
पुनः निवेदन करता हूं कि मुझे कोई धन नहीं चाहिए लेकिन कुछ शर्ते तो अवश्य होगी।
आपको पुनः नमन और प्रणाम।
आपका चाहने वाला
विपुल सेन
उर्फ विपुल लखनवी कविता और वैज्ञानिक लेखन हेतु
सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी" आध्यात्मिक लेखन हेतु।
ब्लाग: freedhtan.blogspot.com.
जिस पर सनातन संबंधी 400 लेख दिए हुए हैं और सभी अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे।
वेब चैनल : vipkavi
वेब: vipkavi.info
Fb :vipul luckhnavi "bullet"
10 काव्य संग्रह प्रकाशित।
जीवन उद्देश्य और लक्ष्य : सनातन का प्रचार करना और जनमानस को हिंदुत्व की सही व्याख्या समझाना।
अवस्था: अपने जीवन से पूर्णतया संतुष्ट। क्योंकि वह मिला जिसके लिए मनुष्य हजारो जन्म लेता है।
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 35 (काहे का रोना / हिंदू बनो )
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 33 (प्रभु सदा भला करता है)
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 33 (प्रभु सदा भला करता है)
Printer Raman Mishra: श्रीस्वामीजी महाराज की पुस्तक
"एक संत की वसीयत" (प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर) के पृष्ठ संख्या १२ पर स्वयं श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज कहते हैं कि......
३. मैंने किसी भी व्यक्ति, संस्था, आश्रम आदि से व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं जोड़ा है । यदि किसी हेतु से सम्बन्ध जोड़ा भी हो, तो वह तात्कालिक था, सदा के लिये नहीं । मैं सदा तत्त्व का अनुयायी रहा हूँ, व्यक्ति का नहीं
४. मेरा सदा से यह विचार रहा है कि लोग मुझमें अथवा किसी व्यक्ति विशेष में न लगकर भगवान में ही लगें । व्यक्तिपूजा का मैं कड़ा निषेध करता हूँ ।
५. मेरा कोई स्थान, मठ अथवा आश्रम नहीं है । मेरी कोई गद्दी नहीं है और न ही मैंने किसी को अपना शिष्य प्रचारक अथवा उत्तराधिकारी बनाया है ।
#धर्म#अध्यात्म
पढ़ना न जानने वाला ‘अनपढ़’। चार कौशल हैं- सुनना, बोलना, लिखना और पढ़ना। भाषा के लिखित पक्ष से लिखना और पढ़ना संबंधित है। अनेक भाषाएं आज भी लिपिबद्ध नहीं हैं। यूं भी अनेक भाषाओं को लिपिबद्ध करने का मुख्य कारण ईसाइयों द्वारा बाइबल का प्रचार था।
संस्कृत में ‘विद्’ का अर्थ है- जानना, समझना, सीखना, मालूम करना, निश्चय करना, खोजना। महसूस करना और अनुभव करना भी इसका अर्थ है। ‘विद्या’ का अर्थ है- ज्ञान, अवगम, शिक्षा, विज्ञान। ‘सा विद्या या विमुक्त्तये।’
‘विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन गुप्तं धनम्।’ कुछ विद्वानों के अनुसार विद्या चार हैं- ‘आन्वीसिकी त्रयी वार्ता दण्डनीतिश्च शाश्वती।’ पांचवी विद्या आत्मविद्या को शास्त्रकारों ने और जोड़ा है। परंतु साधारणतः 14 विद्याओं का उल्लेख है- चार वेद, छह वेदांत, धर्म, मीमांसा, तर्क (न्याय) और पुराण। विद्या का एक अर्थ ‘यथार्थ ज्ञान’ भी होता है यानि ‘अविद्या’ के विपरीत। शिक्षा का अर्थ है- अधिगम, अध्ययन, सानाभिग्रहण। किसी कार्य को करने की योग्यता हासिल करने की इच्छा भी शिक्षा कहलाती है। ‘विनय’ और ‘विनम्रता’ भी संस्कृत में विद्या का अर्थ है। तो ‘शिक्षित’ का अर्थ है- अनुशासित, सधाया हुआ, विनीत, कुशल, चतुर।
भाषा का मुख्य पक्ष मौखिक है। जो भाषा को पढ़ना-लिखना नहीं जानते, वे भी भाषा का कुशलतापूर्वक प्रयोग करते हैं। हमारे यहां प्राचीन काल में शिक्षा वाचिक (oral) ही थी।
अब पढ़ाई-लिखाई (भाषा के लिखित पक्ष) का स्कूल सर्टिफिकेट से कोई लेना-देना नहीं है। अनेक अध्ययन बताते हैं कि बच्चों के पास जिस कक्षा को उत्तीर्ण करने का सर्टिफिकेट होता है, उनकी क्षमता उस योग्य नहीं होती। और मनोविज्ञान का नियम है कि किसी की क्षमता के अनुसार ही उसकी योग्यता होती है। एनसीआईआरटी ने जो न्यूनतम योग्यता का दर्जा तय किया है, देश के अधिसंख्य बच्चे उस स्तर की योग्यता नहीं रखते।
मानव मस्तिष्क में याद के दो खंड हैं- कुछ याद ज्यादा समय तक रहती है, इसे long term memory कहते हैं। कुछ याद जल्दी मिट जाती हैं, इसे short term memory कहते हैं। हमारे शास्त्र कहते हैं कि अप्रिय बातों को भूलना ही जीवन में शांति और सहजता लाता है। सामाजिक सरोकारों से वास्ता रखने वालों को प्रायः ही अप्रिय घटना/बातों का सामना करना पड़ता है। इसे नजरअंदाज करना भी एक साधन हो सकता है। आम आदमी का जीवन तो यूं भी इस देश में परेशानियों से भरा है। कभी बिजली, कभी पानी, कभी राशन, कभी बेकारी, कभी बेगारी से जूझना पड़ता है। अतः वह तो दूसरों की कही बातों को दिल से लगाने की सोच भी नहीं सकता। अच्छा हो हमारे संभ्रांत, सुसंस्कारित व्यक्ति भी दूसरे की कही बातों को दिल से न लगाये तो एक स्वच्छ समाज का निर्माण हो सकता है। यूं किसी हद तक हम सभी यूरेटिक (मनो-विक्षिप्त) हैं, परंतु जब यह साइकोटिक (पागलपन) होने लगता है तो ज्यादा परेशानी होती है। हमारे शास्त्रकारों ने वाचाडम्बर से बचने को कहा है। झगड़ा- उत्पाद को ‘वाचकलहः’ कहा गया है। यूं वाच से ही ‘वागीश्वर’ बना है और ‘वाचशा’ भी जिसका अर्थ है- सरस्वती। इसी से ‘वांग्डम्बर’ शब्द बना है, जिसका अर्थ है- ‘निस्सार उक्ति’। ‘वाग्दण्ड’ का अर्थ है- भत्र्सना वचन, झिड़की।
हम सभी ‘वाक्संगम’ से विहीन हैं। इसी से भाषण या बोलने पर नियंत्रण नहीं है। बोलना भी एक कला है। राजनीति में यूं भी प्रांजल या ललित भाषा का प्रयोग नहीं होता है। और भारतीय राजनीति में तो बिना प्रतीक्षा किये कठोर से कठोर वचनों में प्रतिपक्ष को किसी वक्तव्य का उत्तर दिया जाता है। यह सब अपने ‘आका’ का ध्यानाकर्षण करने के लिए होता है। यदि ‘आका’ व्यक्ति-पूजा को बंद कर दें तो भी राजनीति में वाक्-युद्ध में कुछ कमी आयेगी और शालीनता भी। कुल बात जीवन शैली की है। हमने पाश्चात्य आधुनिक राजनैतिक ढांचा तो अपना लिया है, उसकी रीति-नीति नहीं। यही विडम्बना है।
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*अनपढ़ का अर्थ / डा. लक्ष्मी नारायण*
#धर्म#अध्यात्म
भाषा और बोली में फर्क होता है भाषा को होती है जिसकी व्याकरण होती है बोली वह होती है जिसकी व्याकरण नहीं होती इसलिए बोली का लुप्त होना आसान होता है। भारत में ऐसी जनजाति है जिसकी बोली को केवल 5 लोग ही बोल पाते हैं वह लुप्त प्राय होने वाली है
K Vedvrat Bajpai: https://youtu.be/jwi0eRYq8x8
शिक्षक देश के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ऐसे शिक्षकों को मेरा नमन।
शिक्षकों को समर्पित इतना भावपूर्ण वीडियो मैंने आज तक नही देखा आप भी देखिए और कमेंट में अपनी प्रतिक्रिया दर्ज कराए।
*A tribute to our teachers.*
Bhakt Lokeshanand Swami: कथा का अर्थ न जाननेवाला ही भगवान पर आरोप लगाने का अनर्थ करता है। आज सीताजी पर तीन बातें-
1- सूर्पनखा प्रसंग के बाद रामजी ने सीताजी को अग्नि में रख कर माया सीता, छाया सीता, नकली भक्ति को उनके स्थान पर बैठा दिया।
"तुम पावक महुँ करहु निवासा।
जब लगि करऊँ निसाचर नासा॥"
अब असली भक्ति हो तो भगवान को ही दृष्टि में रखे, पर जब भक्ति नकली हो तो मारीच यानि संसार पर पड़ती ही है। (मरीचिका शब्द मारीच से ही बना है, माने भ्रम)
यही इस लीला का आशय है। यहीं से उनकी दुख की यात्रा का प्रारंभ है। माने दृष्टि भगवान से हटी, संसार पर पड़ी, कि दुख आया।
2- रावण नकली सीता को उठा ले गया। रामजी ने रावण को मारकर, उन्हीं नकली सीता को लंका से बरामद किया।
अब पुनः नकली सीता को अग्नि में प्रवेश करा के, असली सीताजी को अग्नि से निकाला जा रहा है, और दुनियावाले समझ रहे हैं कि सीताजी की अग्नि परीक्षा हो रही है।
3- जैसे सीढ़ी से छत पर जाने वाला, छत पाकर सीढ़ी का त्याग करता ही है। नाव से किनारे पर पहुँच कर, नाव छोड़नी पड़ती ही है। ऐसे ही अंतःकरण रूपी अयोध्या के राजसिंहासन पर, परमात्मा राम का राज्याभिषेक कराने के लिए, भक्ति रूपी सीता की आवश्यकता होती है।
जब तक जीव अलग था, भगवान अलग मालूम पड़ते थे, तब तक भक्ति के संबंध की आवश्यकता थी। जब वह भगवान से एक ही हो गया, दो रहे ही नहीं, तब कौन सा संबंध, कैसा संबंध? मंजिल मिल गई, अब रास्ते से क्या प्रयोजन?
जब वे मन में बैठ ही गए, तब मन नामक कपड़े को धोनेवाले, सद्गुरू धोबी, भक्ति छुड़वा ही दिया करते हैं।
इसमें हैरानी परेशानी क्या है?
अब विडियो देखें- सीताजी का वनवास
https://youtu.be/GtFhkgANL_M
और, अग्नि परीक्षा
https://youtu.be/Qy8-9_spWjw
Jb Rajeev Sharma: Very beautifully narrated !!
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*श्रद्धाभक्तिसमायुक्ता नान्यकार्येषु लालसा:।*
*वाग्यता: शुचयश्चैव श्रोतार: पुण्यशालिन:॥*
श्रद्धा और भक्ति से समान रूप से युक्त, अन्य कार्यों की इच्छा न रखने वाले, कम और सुन्दर बोलने वाले, श्रोता ही पुण्यवान हैं।
Those who possess reverence and devotion equally, have no desire for other things, speak less and pure are virtuous listeners.
*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*
Jb Ashutosh C: 'I have learned to give not because I have too much,but because I know the feeling of not having.......'
Swami Toofangiri Bhairav Akhada: *एक व्यक्ति का दिन बहुत खराब गया उसने रात को ईश्वर से फ़रियाद की.*
*व्यक्ति ने कहा,*
' *भगवान, ग़ुस्से न हों तो एक प्रश्न पूछूँ ?*
भगवान ने कहा,
'पूछ, जो पूछना हो पूछ;....?
*व्यक्ति ने कहा,*
' *भगवान, आपने आज मेरा पूरा दिन एकदम खराब क्यों किया ?*
भगवान हँसे ......
पूछा, पर हुआ क्या ?
*व्यक्ति ने कहा,*
' *सुबह अलार्म नहीं बजा, मुझे उठने में देरी हो गई......'*
भगवान ने कहा, अच्छा फिर.....'
*व्यक्ति ने कहा,*
*देर हो रही थी,उस पर स्कूटर बिगड़ गया. मुश्किल से रिक्शा मीली .'*
भगवान ने कहा, अच्छा फिर......!'
*व्यक्ति ने कहा,*
*टिफ़िन ले नहीं गया था, वहां केन्टीन बंद थी....एक वडा पाव खाकर दिन निकाला,*
भगवान केवल हँसे.......
*व्यक्ति ने फ़रियाद आगे चलाई , 'मुझे बहुत ही काम का एक का फ़ोन आने वाला था और फ़ोन ही हैंग होकर बंद हो गया ;*
भगवान ने पूछा.....' अच्छा फिर....'
*व्यक्ति ने कहा,*
*विचार किया कि जल्दी घर जाकर AC चलाकर सो जाऊं , पर घर पहुँचा तो लाईट गई थी .*
भगवान.... सब तकलीफें मुझे ही. ऐसा क्यों किया मेरे साथ ?
*भगवान ने कहा,*
' देख , मेरी बात ध्यान से सुन .
आज तुझपर कोई आफ़त थी.
मेरे देवदूत को भेजकर मैंने रुकवाई . अलार्म बजे ही नहीं ऐसा किया .
स्कूटर से एक्सीडेंट होने का डर था इसलिए स्कूटर बिगाड़ दिया . केन्टीन में खाने से फ़ूड पोइजन हो जाता .
फ़ोन पर बड़ी काम की बात करने वाला आदमी तुझे बड़े घोटाले में फँसा देता . इसलिए फ़ोन बंद कर दिया .
तेरे घर में आज शार्ट सर्किट से आग लगती, तू सोया रहता और तुझे ख़बर ही नहीं पड़ती . इसलिए लाईट बंद कर दी !
*मैं हूं न .....,!*
मैंने यह सब तुझे बचाने के लिए किया;
*व्यक्ति ने कहा,*
*भगवान मुझसे भूल हो गई . मुझे माफ किजीए . आज के बाद फ़रियाद नहीं करूँगा ;*
भगवान ने कहा,
माफी माँगने की ज़रूरत नहीं , परंतु विश्वास रखना कि *मैं हूं न....,*
मैं जो करूँगा , जो योजना बनाऊँगा वो तेरे अच्छे के लिए ही ।
जीवन में जो कुछ अच्छा - खराब होता है ; उसकी सही असर लम्बे वक़्त के बाद समझ में आती है.
मेरे कोई भी कार्य पर शंका न कर , श्रदा रख .
जीवन का भार अपने ऊपर लेकर घूमने के बदले मेरे कंधों पर रख दे .
*चिंता मत कर, चितंन कर*
*मैं हूं ना.....!*
*ओम नमो नारायण जी*
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🌸 नामजप सत्संग : *श्राद्ध के प्रकार (भाग 3)*
🔸श्राद्ध के बारे में अन्य विशेष जानकरी
🔸संत एकनाथ महाराज ने किया श्राद्ध
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एक ग्रुप में चर्चा। पूछने वाले का और अपना नाम डिलीट कर दिया है ताकि आप अन्य ग्रुप में भी लोगों को समझा सके।
Mera man yahan Nahin lag raha
Bahut saare Karan Hain..
मैं समझ सकता हूं।
Swami Vishnu tirth hi Maharaj me do baatein kahin thi, an arth samajh Aaya hai
क्या कहा था
1.kuch Karne se adhik kathin ,Kuch Nahin Karna hai..
2.sewa Karne se adhik kathin sewa Lena hai..
Arth samajhne ki jigyaasa thi...point 1...pehle hi ho gaya tha..point 2...ab ho gaya
बिल्कुल सही बात है क्योंकि यह मन की चालबाजी यही है जो हमें घूमाती रहती है इसीलिए भगवान श्री कृष्ण भगवत गीता में स्थितप्रज्ञ होने को अंतिम अवस्था बताआ है।
सेवा लेने में दूसरे की प्रक्रिया दूसरे का समर्पण और दूसरे के कार्य करने की प्रणाली यह बहुत कुछ कह जाती है।
वहां पर हमें स्थिर बुद्धि होना चाहिए मतलब उसको ध्यान ही नहीं देने का प्रयास करना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है।
Kab tak?
Main koi Sant to Nahin...aur naahi Shri krishn Hun..
जब तक हमारी प्रारब्ध नहीं कट जाते वास्तव में हमारे प्रारब्ध हमारी परीक्षा लेते हैं लेकिन हम दे नहीं पाते हैं क्योंकि प्रारब्ध को भोंगते समय यदि हम उन में लिप्त हो गए तो वह पुनः संस्कार बनाकर कर्म फल प्रदान कर देते हैं।
Hmm
संत होना भी कोई महानता नहीं है। स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज भी पत्नी के जाने के बाद अध्यात्म में प्रविष्ट हुए थे
जब तक संसार में हो संसारी व्यवहार करना ही चाहिए एक बार के लिए उसमें मन से लिप्त न हो लेकिन उसको दिखाना आवश्यक होता है। क्योंकि यह जगत संसार की बात ही समझ पाता है और कुछ नहीं।
सबसे अच्छा होता है भड़ास निकालो और भूल जाओ नहीं तो किसी ने कुछ किया है तो उसको भी भूल जाओ।
भूलने की आदत डालना यह आध्यात्म में बहुत सहायक होता है।
Haan...
यदि तुमने मन से भोजन त्याग दिया तो अच्छी बात है लेकिन शरीर के लिए और इस जगत के लिए अपने मातृत्व के कर्तव्य के लिए भोजन करना आवश्यक है।
आपने जो भी कहा कुछ नया नहीं।
मुझे पता है लेकिन समझाने के लिए कुछ तो बोलना पड़ेगा हालांकि मैं खुद फेल हो जाता हूं लेकिन यह है भड़ास निकाल कर भूल जाता हूं।
मुझे बड़ा आश्चर्य होता है जब लोग क्रोधित नहीं होकर संयम बनाए रखते हैं।
यह भी एक कला है जीवन में जीने की क्योंकि क्रोध करने पर हम अपने शरीर को ही नष्ट करते हैं अपनी शक्ति को ही गिराते हैं और क्षण भर के लिए हम अपने स्वरूप से अलग हो जाते हैं।
साथ ही हम हिंसक हो जाते हैं क्योंकि शब्दों से भी हिंसा होती है।
हम सनातन का पहला सिद्धांत अहिंसा परमो धर्मा यह बिल्कुल भूल जाते हैं।
लेकिन क्रोध न करके अपने मन में भाव रख लेना यह भी हानिकारक हो सकता है। भूल गए तो ठीक है अच्छी बात है लेकिन यदि हम उसका बदला लेने के लिए उस में घूमते रहे तो यह हमारा पतन नहीं करता रहेगा।
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 32 (बोझ या अज्ञानता)
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 32 (बोझ या अज्ञानता)
Mk Hariom Dixit Jyotish: यकीनन #मुसलमान आज देश पर #बोझ हैं !
देश में आज मुस्लिमों की #आबादी लगभग 18 % है पर इनके इस्लामिक नजरिये और दर्जन भर #बच्चे पैदा करने के कारण....#प्राईवेट_हॉस्पिटल में तो इनकी भर्ती है मात्र 4% पर #मुफ्त के सरकारी अस्पतालों में मुस्लिम मरीज हैं लगभग 45% !
ये गैर मुस्लिम का खून लेने के लिये तो तुरन्त लेट जाएंगे पर जब देने की बारी आएगी तो #आसमानी_किताब का हवाला देकर अपने सगों को भी देने से पीछे हट जाएंगें !
#रक्तदान_शिविरों में इनकी उपस्थिति लगभग नगण्य ही होती है और अंगदान तो खैर इस्लाम में ही #हराम है !
पुलिस में ये हैं मात्र 6% पर #जेलों में हैं लगभग 32% !
ऑलंपिक और एशियाड के व्यक्तिगत-पदक विजेताओं में ये हैं आज लगभग शून्य....पर #अपराधों में ये हैं लगभग 44% !
#इनकम_टैक्स में इनका योगदान है मात्र 3% पर बिजली-पानी चोरी में ये हैं 61% !
नई कार खरीदी में ये हैं 6% पर #पंचर बनाने जैसे कामों में हैं 67% !
समाजसेवा में इनकी महिलाएं हैं सिर्फ 2% पर कुल #वेश्याओं में इनकी भागीदारी है 41% !
मंहगे मॉलों में ये मिलेंगें 4% पर #सस्ते_सब्सिडाइज्ड चिडियाघर में ये मिलेंगें 47% !
महंगे निजी स्कुलों में तो इनके बच्चे हैं लगभग 4% पर #खैराती_मदरसों मे हैं पूरे 100% !
सिमी जैसे देशविरोधी #आतंकी_संगठनों में तो ये हैं 100% पर इसरो और डीआरडीओ जैसे संस्थाओं में ये हैं महज 2% !
देशहित में नारे लगाने में ये हैं 1% पर #देशद्रोह के कुल आरोपियों में ये हैं 95% !
फिर भी इनके #मस्जिद_और_मदरसों को सरकारी सहायता मिलती है और मंदिरों का चढ़ावा सरकार ले लेती है !!।
#उर्दू_भाषा के ज्ञान की विद्दवता के आधार पर इनको #आईएएस_और_आईपीएस बना दिया जाता है
और संस्कृत का #हिन्दू_विद्वान भिक्षा का कटोरा लेकर दर दर भटकता है।
========#जागो_हिन्दू_जागो======
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🌸 धर्मसंवाद : *श्राद्ध : केवल कर्मकांड नहीं; धर्मविज्ञान है ! (भाग 2)*
🔸क्या श्राद्धविधि करते समय कोई विशिष्ट प्रार्थना आवश्यक हैं ? 🔸विधि के व्यतिरिक्त और पितृपक्ष में क्या करना चाहिए ?
Bhakt Lokeshanand Swami: हनुमान जी ने कहा- भरत जी! किसी को भी मेरे साथ चलने की आवश्यकता नहीं है, बस आप मुझे विदा करें, कि मैं तुरंत भगवान के पास पहुँच जाऊँ।
भरत जी ने बड़ी विचित्र बात कही- हनुमान जी! आप मेरे बाण पर पर्वत सहित बैठ जाएँ, मैं आपको अभी भगवान के चरणों में पहुँचा देता हूँ।
हनुमान जी को अचरज तो हुआ, पर उन्होंने भरत जी की बात मानी। भरत जी ने बाण छोड़ा तो क्षण भर में ही हनुमान जी ने स्वयं को भगवान के पास पाया।
यहाँ सुखैन वैद्य ने तुरंत संजीवनी बूटी खोजी, और उसका रस लक्ष्मण जी को पिलाया, लक्ष्मण जी तत्क्षण उठ बैठे। उठें भी क्यों न, भगवान की भक्ति का रस जिसे मिल जाए, उसको कामना में रस रहे ही कैसे? मूर्छा तो फिर टूट ही जाती है।
भगवान ने लक्ष्मण जी और हनुमान जी को गले से लगा लिया। भगवान हनुमान जी से पूछते हैं- हनुमान! दुनियावाले कहते हैं कि मैं और भरत बिलकुल एक जैसे हैं। तुम्हें क्या लगता है?
हनुमान जी ने उत्तर दिया- हाँ भगवान! पहले मुझे भी यही गलतफहमी हो गई थी। जब मैंने अपने को भरत जी की गोद में पाया, तो मुझे लगा कि मैं आपकी गोद में हूँ। पर बाद में मुझे मालूम पड़ा कि वे तो भरत जी थे।
भगवान! भरत जी देखने में तो बिल्कुल आप जैसे हैं, पर प्रभाव में आप से श्रेष्ठ हैं। आपके पास रहते हुए भी मुझमें कर्तृत्व आ गया, मुझे लगा कि लक्ष्मण जी के लिए बूटी लेने "मैं" जा रहा हूँ, पर भरत जी के पास जाते ही, मेरा अभिमान दूर हो गया।
दूसरी बात यह कि भरत जी के पास ऐसा बाण है, जिसने पलक झपकते ही मुझे आपके चरणों में पहुँचा दिया।
राम जी पूछते हैं कि इसमें कौन सी विशेष बात है, मेरा भी बाण जिसे लग जाता है, वह मेरे चरणों में पहुँच जाता है।
हनुमान जी कहते हैं- हाँ भगवान! पहुँच तो जाता है, पर मरने के बाद। भरत जी का बाण तो जीते जी ही पहुँचा देता है।
विचार करें, भगवान कहाँ नहीं हैं? क्या वे इस समय आपके अंत:करण में द्रष्टा रूप से अवस्थित नहीं हैं? हैं। तो क्या आपके अंत:करण के दोषों का शमन हो गया? नहीं ना। क्यों? क्योंकि वह परमात्मा आपके कृत्यों में दखल नहीं देता। भगवान की कृपा की अनुभूति करवा कर, कर्तृत्वाभिमान से छुड़ा देना तो, भरत जी जैसे किसी संत के ही अधिकार क्षेत्र की वस्तु है।
लोकेशानन्द कहता है कि संत का उपदेश ही बाण है। कितनी चमत्कारी बात है, कि लाख कोई संसार में रचापचा हो, पर इस उपदेश रूपी बाण के लगते ही, मन बिना एक पल की भी देरी किए, भगवान के चरणों में पहुँच जाता है।
क्या इस समय, जब आप यह उपदेश पढ़ रहे हैं, आपका मन भगवान में नहीं लगा हुआ है?
पर कितने ही बाण क्यों न छोड़े जाएँ, यदि कोई बात अपने को लगने ही न दे, तर्क की ढ़ाल से उन्हें दाएँ बाएँ हटाता ही रहे, उसका मन कैसे भगवान में लगे?
बातें तो बहुत चलती हैं, बात बाण रूपी बात चलने की नहीं है, बात तो बात लगने की है। लग जाए बस।
इसीलिए भगवान स्वयं कहते हैं-
"मो ते अधिक संत करि लेखा।"
"मो ते अधिक गुरुहि जियं जानी।
सेवईं सकल भाँति सन्मानी॥"
अब विडियो देखें- भरत जी का बाण
https://youtu.be/gw7SI5b7k9o
*चन्दनं शीतलं लोके चंदनादपि चंद्रमा: |*
*चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगत: ||*
संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है | अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है |
sandalwood is pleasant (cool), moon (or moon light) is more pleasant than sandal. (but) company of a good person (sAdhu) is pleasant then both moon and sandal.
*शुभोदयम्! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*
Jb Ashutosh C: Easily Achieved things do not stay Longer......&....Things which stay Longer are not Easily Achieved.....Good Morning
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*हिन्दू धर्म की महानता समझानेवाले और भक्तिभाव बढानेवाले ऑनलाइन सत्संग*
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Bhakt Komal: श्री योग वशिष्ठ
अध्याय ७
ब) पुरुषार्थ की महत्ता और दैववाद (प्रारब्ध) सर्ग (४-९)
सौम्य श्री राम! समुद्र की जलराशि शान्त हो या तरंग युक्त, दोनों दशाओं में उसकी जल रूपता समान ही है, उसी तरह देह के रहते हुए और उसके न रहते हुए भी मुक्त महात्मा मुनि की स्थिति एक सी होती है। उसमें कोई भेद नहीं होता। सदेह मुक्ति हो या विदेह मुक्ति, उसका विषयों से कोर्इ संबंध नहीं है। जीवनमुक्त और विदेह मुक्त दोनों ही प्रकार के महात्मा बोध स्वरूप हैं। उनमें क्या भेद है?
रघुनंदन! इस संसार में सदा अच्छी तरह पुरुषार्थ करने से सबको सब कुछ मिल जाता है। जहां कहीं किसी को असफल देखा जाता है, वह उसके सम्यक प्रयत्न का अभाव ही कारण है। परमात्मा प्राप्ति रूप आत्यंतिक आनन्द पुरुष के प्रयत्न से ही प्राप्त हो सकता है। अन्य हेतु (प्रारब्ध) से नहीं। इसलिए पुरुष को प्रयत्न पर ही निर्भर रहना चाहिए। शास्त्रज्ञ सत्पुरुषों के बताए हुए मार्ग से चलकर अपने कल्याण के लिए जो मानसिक, वाचिक, और कायिक चेष्टा की जाती है, वही पुरुषार्थ है और वही सफल चेष्टा है। इससे भिन्न जो शास्त्र विपरीत मनमाना आचरण है , वह पागलों की सी चेष्टा है। जो मनुष्य जिस पदार्थ को पाना चाहता है, उसकी प्राप्ति के लिए यदि वह क्रमशः प्रयत्न करता है और बीच में ही उससे मुंह नहीं मोड़ लेता तो अवश्य उसे प्राप्त कर लेता है। शास्त्र के विपरीत किया हुआ प्रयत्न अनर्थ की प्राप्ति कराने वाला होता है।
क्रमशः
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*।। शिक्षक दिवस निमित्त ऑनलाइन प्रवचन ।।*
🌸 विषय - *प्राचीन शिक्षा व्यवस्था के अनुसार आदर्श अध्यापक और विद्यार्थी कैसे हों !*
🔸आधुनिक शिक्षा से भी भारत की प्राचीन शिक्षा बेहतर कैसे है ?
🔸 स्वामी विवेकानंद, योगी अरविंद और डॉ. एनी बेसेन्ट जी प्राचीन शिक्षा के पक्षधर क्यों थे ?
*भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए आजके कार्यक्रम में जान ले प्राचीन शिक्षा व्यवस्था के रहस्य...*
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*पितरों के समान हैं ये 3 वृक्ष, 3 पक्षी, 3 पशु और 3 जलचर*
*धर्मशास्त्रों अनुसार पितरों का पितृलोक चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। दूसरी ओर अग्निहोत्र कर्म से आकाश मंडल के समस्त पक्षी भी तृप्त होते हैं। पक्षियों के लोक को भी पितृलोक कहा जाता है। तीसरी ओर कुछ पितर हमारे वरुणदेव का आश्रय लेते हैं और वरुणदेव जल के देवता हैं। अत: पितरों की स्थिति जल में भी बताई गई है।*
*⚜️तीन वृक्ष:-*
*🚩1. पीपल का वृक्ष :-* पीपल का वृक्ष बहुत पवित्र है। एक ओर इसमें जहां विष्णु का निवास है वहीं यह वृक्ष रूप में पितृदेव है। पितृ पक्ष में इसकी उपासना करना या इसे लगाना विशेष शुभ होता है।
*🚩2. बरगद का वृक्ष :-* बरगद के वृक्ष में साक्षात शिव निवास करते हैं। अगर ऐसा लगता है कि पितरों की मुक्ति नहीं हुई है तो बरगद के नीचे बैठकर शिव जी की पूजा करनी चाहिए।
*🚩3. बेल का वृक्ष :-* यदि पितृ पक्ष में शिवजी को अत्यंत प्रिय बेल का वृक्ष लगाया जाय तो अतृप्त आत्मा को शान्ति मिलती है। अमावस्या के दिन शिव जी को बेल पत्र और गंगाजल अर्पित करने से सभी पितरों को मुक्ति मिलती है।...इसके अलावा अशोक, तुलसी, शमी और केल के वृक्ष की भी पूजा करना चाहिए।
*⚜️तीन पक्षी:-*
*🚩1. कौआ :-* कौए को अतिथि-आगमन का सूचक और पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौओं का बहुत महत्व माना गया है। इस पक्ष में कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है। शास्त्रों के अनुसार कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में स्थित होकर विचरण कर सकती है।
*🚩2. हंस :-* पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना हैं जिन्होंने अपने जीवन में पुण्यकर्म किए हैं और जिन्होंने यम-नियम का पालन किया है। कुछ काल तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक चली जाती है। हो सकता है कि आपके पितरों ने भी पुण्य कर्म किए हों।
*🚩3. गरुड़ :-* भगवान गरुड़ विष्णु के वाहन हैं। भगवान गरुड़ के नाम पर ही गुरुढ़ पुराण है जिसमें श्राद्ध कर्म, स्वर्ग नरक, पितृलोक आदि का उल्लेख मिलता है। पक्षियों में गरुढ़ को बहुत ही पवित्र माना गया है। भगवान राम को मेघनाथ के नागपाश से मुक्ति दिलाने वाले गरूड़ का आश्रय लेते हैं पितर।... इसके अलावा क्रोंच या सारस का नाम भी लिया जाता है।
*⚜️तीन पशु:-*
*🚩1. कुत्ता :-* कुत्ते को यम का दूत माना जाता है। कहते हैं कि इसे ईधर माध्यम की वस्तुएं भी नजर आती है। दरअसल कुत्ता एक ऐसा प्राणी है, जो भविष्य में होने वाली घटनाओं और ईथर माध्यम (सूक्ष्म जगत) की आत्माओं को देखने की क्षमता रखता है। कुत्ते को हिन्दू देवता भैरव महाराज का सेवक माना जाता है। कुत्ते को भोजन देने से भैरव महाराज प्रसन्न होते हैं और हर तरह के आकस्मिक संकटों से वे भक्त की रक्षा करते हैं। कुत्ते को रोटी देते रहने से पितरों की कृपा बनी रहती है।
*🚩2. गाय :-* जिस तरह गया में सभी देवी और देवताओं का निवास है उसी तरह गाय में सभी देवी और देवताओं का निवास बताया गया है। दरअसल मान्यता के अनुसार 84 लाख योनियों का सफर करके आत्मा अंतिम योनि के रूप में गाय बनती है। गाय लाखों योनियों का वह पड़ाव है, जहां आत्मा विश्राम करके आगे की यात्रा शुरू करती है।
*🚩3. हाथी :-* हाथी को हिन्दू धर्म में भगवान गणेश का साक्षात रूप माना गया है। यह इंद्र का वाहन भी है। हाथी को पूर्वजों का प्रतीक भी माना गया है। जिस दिन किसी हाथी की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है। हाथियों को अपने पूर्वजों की स्मृतियां रहती हैं। अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन गजपूजा विधि व्रत रखा जाता है। सुख-समृद्धि की इच्छा रखने वाले उस दिन हाथी की पूजा करते हैं।.. इसके अलावा वराह, बैल और चींटियों का यहां उल्लेख किया जा सकता है। जो चींटी को आटा देते हैं और छोटी-छोटी चिड़ियों को चावल देते हैं, वे वैकुंठ जाते हैं।
*⚜️तीन जलचर जंतु:-*
*🚩1.मछली :-* भगवान विष्णु ने एक बार मत्स्य का अवतार लेकर मनुष्य जाती के अस्त्वि को जल प्रलय से बचाया था। जब श्राद्ध पक्ष में चावल के लड्डू बनाए जाते हैं तो उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है।
*🚩2. कछुआ :-* भगवान विष्णु ने कच्छप का अवतार लेकर ही देव और असुरों के लिए मदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर स्थापित किया था। हिन्दू धर्म में कछुआ बहुत ही पवित्र उभयचर जंतु है जो जल की सभी गतिविधियों को जानता है।
*🚩3. नाग :-* भारतीय संस्कृति में नाग की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि यह एक रहस्यमय जंतु है। यह भी पितरों का प्रतीक माना गया है।... इसके अलावा मगरमच्छ भी माना जाता है।
महत्वपूर्ण विषय पर लाइव हैं देश के बड़े विचारक एवं अन्तर्राष्ट्रीय कवि जनार्दन पांडेय प्रचण्ड जी !
सभी लोग
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K lko dr kailash nigam: https://youtu.be/nM_BQCX3QVg
Bhakt Lokeshanand Swami: अब पहले भगवान ने कुंभकर्ण को मारा, अहंकार को, "मैं" को मारा। भगवान उसका एक एक अंग काटते चले गए और कटते कटते कुंभकर्ण मर गया। अहंकार आसानी से नहीं मरता। विचार के बाण से, माने भुजा मैं नहीं हूँ, सिर मैं नहीं हूँ, बुद्धि मैं नहीं हूँ, मन मैं नहीं हूँ, यों एक एक अंग से हटते हटते, नेति नेति, तब समझ आता है कि मैं तो आत्मस्वरूप हूँ।
"मैं क्या हूँ" इसके चिंतन से स्वरूप नहीं जाना जाता। "मैं क्या नहीं हूँ" इसके चिंतन की दृढ़ता से जाना जाता है। तब मालूम पड़ता है कि "मैं" है ही नहीं, ज्ञान मात्र है।
यों जब ज्ञान भगवान ने अहंकार कुंभकर्ण को मार दिया, तब वैराग्य लक्ष्मणजी ने काम मेघनाद को समाप्त कर दिया।
अंत में भगवान और रावण में युद्घ हुआ। रामजी ने कितनी ही बार समस्त राक्षसी सेना का संहार किया, कितनी ही बार रावण के सिर काटे, पर हर बार रावण पुनः दसों सिर के साथ, अपार सेना लेकर चढ़ा आता है। मामला क्या है?
रावण मोह है। मोह समस्त मानस रोगों की जड़ है।
"मोह सकल व्याधिन्ह कर मूला।
तेहिं ते पुनि उपजहिं बहू सूला॥"
लाख पत्ते तोड़ो, जड़ बची है तो पत्ते दोबारा उग आते हैं। तो मोह पुनः पुनः दसों इन्द्रियों से सुख भोगने को, समस्त विकार लेकर अंतःकरण पर चढ़ा आता है।
दूसरे अभी भीतर का कुण्ड सूखा नहीं है। बाहर कितना ही समाधान करो, जब तक भीतर से रस न सूखे, समस्या कैसे मिटे? हमने कितनी बार हाथ काटे, माने संकल्प किया की अब ऐसा या वैसा नहीं करेंगे, पर भीतर संसार के प्रति रस बना है तो फिर फिर वही वही करते हैं या नहीं? सत्संग का तीर चला कि फिर संकल्प उठा, संसार की छाया पड़ी कि फिर वहीं के वहीं।
देखो! भगवान ने युद्ध रोक दिया, रावण कृपाण उठाकर छाती पर चढ़ने दौड़ा। विभीषण ने यह सब देखा। तो जो विभीषण अभी तक मूकदर्शक बना देख मात्र रहा था, अपनी गदा उठाकर रावण पर झपटा। बस कोई किसी को छू पाता, इससे पहले ही, भगवान ने एक तीर चलाया, और रावण धराशायी हो गया।
ध्यान दें! जीव विभीषण जब तक स्वयं "मेरेपन" से नहीं झूझ पड़ता, "मेरा" यह भाव कैसे मिटे? मोह कैसे मिटे? रावण कैसे मरे? तब तक भगवान भी क्या करें? मारते तो भगवान ही हैं, पर झूझना जीव को ही पड़ता है।
Jb Ashutosh C: Happy Teacher's Day to all of us who had wonderful time with our teachers...including, of course, some tough times as well !!!...
But in either case they selflessly helped us grow in the making - period of our life...they weren't counting money for every sincere thought they nurtured for us ; and, skill with witch they handled each one of us amongst so many in each class !
My deep regards and humble salutation to them .
May God bless them all.
I take the opportunity once again to wish all teachers a lovely life full of happiness.🙏🙏💐💐
Vs P Mishra: 🌞सुप्रभातं🌻
_प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा।_
_शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥_
*भावार्थ:* प्रेरणा व संदेश देने वाले, सत्य का मार्ग दिखाने वाले, शिक्षा देने वाले और ज्ञान बोध कराने वाले –यह सब गुरु समान है ।
मेरे अब तक के जीवन काल में मुझे इस मंजिल तक पहुंचाने वाले ऐसे सभी सम्माननीय शिक्षक, सम्बन्धी, वरिष्ठों और साथियों का ह्र्दयतल से अविस्मरणीय आभार...शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹 सादर🙏🌹
+91 96374 62211: 🚩 हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा प्रस्तुत
⭕ *वामपंथी प्रचार तंत्र क्या है ?*
⭕ *इस प्रचार तंत्र के बलि कौन ?*
⭕ *क्या यह वामपंथियों का वैचारिक दहशतवाद है ?*
⭕ *वामपंथी विचारधारा और गौरी लंकेश की हत्या का क्या संबंध है ?*
🤔 *क्या है इसके पीछे का सत्य ?*
जानने के लिए अवश्य देखें चर्चा हिन्दू राष्ट्र की...
✒️ *विषय : वामपंथियों का प्रचारतंत्र और गौरी लंकेश की हत्या !*
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*भक्ति में अटूट श्रद्धा का महत्त्व*
🔸एक वैद्य की ईश्वर में अटूट श्रद्धा
🔸राजा सुषेण की गुरुभक्ति
🔸दत्त के नामजप से एक विदेशी भक्त को हुआ लाभ
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*अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।*
*चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥*
जिसने ज्ञानांजनरुप शलाका से, अज्ञानरुप अंधकार से अंध हुए लोगों की आँखें खोली, उन गुरुजनों को सादर नमन् ।
Salute to the guru, who opens eyes of a person blind due to darkness of ignorance, by knowledge (GYAna). Guru is one of the most honorable personalities in Indian (Hindu) tradition.
*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*
😀😀: विपुल का गुरू नमन दोहा।
गुरू ही धन गुरू रतन, गुरू गुणों की खान।
गुरू नाम से बन गये, ध्रुव प्रह्लाद महान।।
यह महाशय अंग्रेजों के पिठ्ठू और महा चाटुकार थे।
भगवत गीता के बंगाली अनुवाद को गीतांजलि के नाम से नोबेल भी अंग्रेजों ने दिला दिया था।
कभी शांतिनिकेतन जाइए तो उनके ठाठ बाट और सूट बूट की फोटो भी देख सकते हैं।
उस जमाने में किसी व्यक्ति के पास कार थी जिनका नाम था रविंद्र नाथ टैगोर।
मेरे हिसाब से इनको जबरदस्ती महान बनाकर थोपा गया।
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 33 (प्रभु सदा भला करता है)
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 31 (पितरों को नमन)
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 31 (पितरों को नमन)
Bhakt Lokeshanand Swami: इधर नंदिग्राम में भरतजी माला जप रहे हैं। किसी विशालकाय आकृति ने आकाश को ऐसा ढक लिया कि अनिष्ट की आशंका से भरतजी ने चौदह वर्षों बाद धनुष-बाण उठा लिया। आज लोग कहते हैं कि माला जपने वाला भाला न उठाए। भैया! देश ही न बचेगा, तो माला बचेगी?
पर भरतजी ने बिना फल का बाण मारा, एक कारण तो यह कि एक बार फल वाला बाण दशरथजी ने अनुमान से चला दिया था, उसी से यह सारा झंझट हुआ है। दूसरे भगवान का काम करें तो फल दृष्टि में नहीं रहना चाहिए, इसीलिए बिना फल वाला।
हनुमानजी मूर्छित होकर गिरे, राम राम राम राम करते गिरे। भरतजी ने रामनाम सुना तो हनुमानजी को गोदी में लपक लिया। आँखें तो नम रहती ही थीं, दो बूंद हनुमानजी पर गिरी तो मूर्छा टूटी। भरतजी कहें कि मुझसे भूल हो गई, तो हनुमानजी कहें कि आपने भूल की नहीं, मेरी भूल सुधार दी। मैं अयोध्या के ऊपर से जा रहा था, बाण ने कहा कि इस भूमि पर तो परमात्मा तक नीचे उतर आया, तुम भी उतर आओ।
आपने बड़ी कृपा की जो बाण मारा। मैं समझ रहा था कि पर्वत मैंने उठा रखा है। पर जब मैं गिरा, तो मैं ही गिरा, पर्वत नहीं गिरा, वह तो अब भी आकाश में ही खड़ा है। आपके बाण ने मेरा भ्रम मिटा दिया, पर्वत तो भगवान की कृपा ने ही उठा रखा है।
देखो काम का बाण मूर्छित करे तो भगवान को भुला देता है, संत का बाण भगवान की कृपा की स्मृति करा देता है।
सब समाचार आग की तरह फैल गया। सब दौड़े आए। कौशल्याजी कहती हैं- हनुमान! राम से कहना, कि जैसा मुस्कुराता लक्ष्मण मेरे दरवाजे से ले गया था, वैसा ही लक्ष्मण साथ लेकर आना, नहीं तो आना ही मत। सुमित्राजी मुंह पर हाथ रखकर कहती हैं- दीदी! ऐसी बात मत कहो।
पुकार कर शत्रुघ्नजी को बुलाती हैं, कि तुम्हारे भैया भगवान के काम आ गए हैं, तुम हनुमान के साथ चले जाओ, आज जीवन धन्य करने का समय आ गया।
"ठहरें माँ!" दाँई ओर से आवाज आई। किसकी? उनकी, जिनका जिक्र अभी तक इस रामकथा में हुआ ही नहीं, उर्मिला जी की। उर्मिला जी की चर्चा कल।
अब विडियो देखें- भरत जी का बाण
https://youtu.be/gw7SI5b7k9o
*यथा यथा हि पुरुष: कल्याणे कुरुते मन: ।*
*तथा तथास्य सर्वार्था: सिद्धयन्ते नात्र संशय:।।*इस मे कोई संशय नहीं है कि जो व्यक्ति सेवा वृति होते हैं व परोपकार के कार्यों मे लिप्त हैं , वे जो चाहते हैं प्राप्त कर लेते हैं ।
There is no doubt about it that as a man involves himself in virtuous deeds and works for the welfare of others , he succeeds in whatever he aims for.
शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)
Vs P Mishra: 🙏
प्यार दे कर जो हमें
विदा हुए संसार से,
आओ उनका
स्वागत करें आज से।
वो हुए पुरखो में शामिल
जो कभी थे साथ में,
आज से नमन करेंगे
हम मन के द्वार से।
पितर चरण में नमन करें,
ध्यान धरें दिन रात।
कृपा दृष्टि हम पर करें,
सिर पर धर दें हाथ।
ये कुटुम्ब है आपका,
आपका है परिवार।
आपके आशिर्वाद से,
फले - फूले संसार।
भूल -चूक सब क्षमा करें,
करें महर भरपूर।
सुख सम्पति से घर भरें,
कष्ट करें सब दूर।
आप हमारे हृदय में,
आपकी हम संतान।
आपके नाम से हैं जुड़ी,
मेरी हर पहचान।
*सभी पितरो को सादर*
*नमन*
श्री योग वशिष्ठ
मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण
अध्याय ७
महर्षि वशिष्ठ का उपदेश
अ) यह जगत भ्रम एवं मिथ्या है (सर्ग ३)
वशिष्ठ जी ने कहा - पूर्व काल में सृष्टि के प्रारंभ के समय भगवान ब्रह्मा ने संसाररूपी भ्रम के निवारण के लिए ज्ञान का उपदेश दिया था, उसी का मैं यहां वर्णन करता हूं।
यह जगत स्वप्न में देखे गए नगर के समान भ्रम द्वारा निर्मित हुआ है। मृत्यु काल में पुरुष स्वयं अपने हृदय में इसका अनुभव करता है। इस प्रकार जगत मिथ्या होने पर भी चिरकाल तक अत्यंत परिचय में आने के कारण घनिभाव को प्राप्त हो कर जीव के हृदयाकाश में प्रकाशित हो बढ़ने लगता है। यही ईहलोक कहलाता है। वासना के भीतर अन्य अनेक शरीर और उनके भीतर भी दूसरे दूसरे शरीर - येे इस संसार में केले के वृक्ष की त्वचा के समान एक के पीछे एक प्रतीत होते हैं। वस्तुतः इस संसार में कोई सार नहीं है। न तो पृथ्वी आदि पंच महाभूतों के समुदाय है और न जगत की सृष्टि की कोर्इ क्रम ही है। येे सब के सब मिथ्या है। तथापि मृत और जीवित जीवों को इनमें संसार का भ्रम होता है यह अविद्या रूपिणी नदी है जिसका कहीं अंत नहीं है। मूढ़ पुरुषों के लिए यह इतनी विशाल है कि वे इसे पार नहीं कर सकते।
श्री राम! परमार्थ सत्य रूपी विशाल महासागर में सृष्टि रूपी असंख्य तरंगें उठती हैं। इस समय ब्रह्म कल्प का बहतरवां त्रेतायुग चल रहा है। यह पहले भी अनेक बार हो चुकी है और आगे भी होता रहेगा। यह वही पहले वाला त्रेतायुग है और उससे विलक्षण भी है। येे जितने लोक हैं वे पूर्व में भी हुए हैं। श्री राम! तुम भी अनेक बार त्रेतायुग में अवतार ले चुके हो और भविष्य में भी लोगे। मैं कितनी ही बार वशिष्ठ रूप में उत्पन्न हो चुका हूं और आगे भी होऊंगा। हमारे यह सभी रूप पूर्व के तुल्य होंगे और भिन्न भी। इस बात को मैं अच्छी तरह जानता हूं। सभी प्राणी पूर्व कल्पों के समान होते हैं।
क्रमशः
Jb Lokesh Sharma: *Way re Judiciary, Sudarshan TV ki series ban ho Sakti hai par Ye film Nahin Jo Airforce ko andhere ke samay, kamjor dikhati hai*
https://hindi.livelaw.in/category/top-stories/gunjan-saxena-the-kargil-girl-delhi-hc-refuses-to-grant-injunction-in-a-plea-moved-by-centre-162288
Jb Rajeev Sharma: 🌷 *पितरों को नमन*🌷
वो कल थे तो आज हम हैं
उनके ही तो अंश हम हैं..
जीवन मिला उन्हीं से
उनके कृतज्ञ हम हैं..
सदियों से चलती आयी
श्रंखला की कड़ी हम हैं..
गुण धर्म उनके ही दिये
उनके प्रतीक हम हैं..
रीत रिवाज़ उनके हैं दिये
संस्कारों में उनके हम हैं..
देखा नहीं सब पुरखों को
पर उनके ऋणी तो हम हैं..
पाया बहुत उन्हीं से पर
न जान पाते हम हैं..
दिखते नहीं वो हमको
पर उनकी नज़र में हम हैं..
देते सदा आशीष हमको
धन्य उनसे हम हैं..
खुश होते उन्नति से
दुखी होते अवनति से
देते हमें सहारा
उनकी संतान जो हम हैं..
इतने जो दिवस मनाते
मित्रता प्रेम आदि के
पितरों को भी याद कर लें
जिनकी वजह से हम हैं..
आओ नमन कर लें कृतज्ञ हो लें
क्षमा माँग लें आशीष ले लें
पितरों से जो चाहते हमारा भला
उनके जो अंश हम हैं..
Printer Raman Mishra: हर ज़र्रा* चमकता है अनवार-ए-इलाही* से
हर साँस ये कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है।
⚫अकबर इलाहाबादी
जर्रा = कण, अनवार-ए-इलाही = भगवान की रौशनी
Printer Raman Mishra: *कहाँ गए 'काग भुसुंडी*
प्रचलित पौराणिक कथाओं में काग भुसुंडी की कहानी भी है. ये एक ऋषि थे जिन्हें अमरत्व का वरदान मिला था और माना जाता है कि कौवे के रूप में से आज भी धरती पर ही हैं.
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हिंदू धर्म में पुरखों के नाम पर तर्पण करने के पखवाड़े पितृपक्ष में उनकी अहमियत बहुत बढ़ जाती है.
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दिल्ली - मुंबई के लोगों को इस बात की शिकायत है कि वो अपने पुरखों को मालपुए-पूरी नहीं खिला पा रहे हैं.
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पितृपक्ष में पुरखों को याद करने और उन्हें भोग लगाने के लिए कौवे को आहार देना पड़ता है पर समस्या यह है कि कौवे बड़े शहरों में कम ही हैं.
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चिंता की बात है पर सोचना तो तब चाहिए था जब पुरखों तक श्राद्ध सामग्री पहुँचाने वाले इस जीव के आशियानों को उजाड़कर कंक्रीट-सीमेंट के मकान बेहिसाब बनाए जा रहे थे.
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आंगन की गौरैया तो कब की ग़ायब हो चुकी थीं और गिद्ध भी अधिकतर लोग किताबों में ही देखते हैं. अब बारी कौवों की है और कौवे संकट में हैं.
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प्रभु ने काग भुसुंडी को अमरत्व का वरदान दिया था तब उन्हें पता नहीं था दिल्ली-मुंबई वाले सबसे चतुर पक्षी का भी जीना मुहाल कर देंगे.
Bhakt Lokeshanand Swami: इधर नंदिग्राम में भरतजी माला जप रहे हैं। किसी विशालकाय आकृति ने आकाश को ऐसा ढक लिया कि अनिष्ट की आशंका से भरतजी ने चौदह वर्षों बाद धनुष-बाण उठा लिया। आज लोग कहते हैं कि माला जपने वाला भाला न उठाए। भैया! देश ही न बचेगा, तो माला बचेगी?
पर भरतजी ने बिना फल का बाण मारा, एक कारण तो यह कि एक बार फल वाला बाण दशरथजी ने अनुमान से चला दिया था, उसी से यह सारा झंझट हुआ है। दूसरे भगवान का काम करें तो फल दृष्टि में नहीं रहना चाहिए, इसीलिए बिना फल वाला।
हनुमानजी मूर्छित होकर गिरे, राम राम राम राम करते गिरे। भरतजी ने रामनाम सुना तो हनुमानजी को गोदी में लपक लिया। आँखें तो नम रहती ही थीं, दो बूंद हनुमानजी पर गिरी तो मूर्छा टूटी। भरतजी कहें कि मुझसे भूल हो गई, तो हनुमानजी कहें कि आपने भूल की नहीं, मेरी भूल सुधार दी। मैं अयोध्या के ऊपर से जा रहा था, बाण ने कहा कि इस भूमि पर तो परमात्मा तक नीचे उतर आया, तुम भी उतर आओ।
आपने बड़ी कृपा की जो बाण मारा। मैं समझ रहा था कि पर्वत मैंने उठा रखा है। पर जब मैं गिरा, तो मैं ही गिरा, पर्वत नहीं गिरा, वह तो अब भी आकाश में ही खड़ा है। आपके बाण ने मेरा भ्रम मिटा दिया, पर्वत तो भगवान की कृपा ने ही उठा रखा है।
देखो काम का बाण मूर्छित करे तो भगवान को भुला देता है, संत का बाण भगवान की कृपा की स्मृति करा देता है।
सब समाचार आग की तरह फैल गया। सब दौड़े आए। कौशल्याजी कहती हैं- हनुमान! राम से कहना, कि जैसा मुस्कुराता लक्ष्मण मेरे दरवाजे से ले गया था, वैसा ही लक्ष्मण साथ लेकर आना, नहीं तो आना ही मत। सुमित्राजी मुंह पर हाथ रखकर कहती हैं- दीदी! ऐसी बात मत कहो।
पुकार कर शत्रुघ्नजी को बुलाती हैं, कि तुम्हारे भैया भगवान के काम आ गए हैं, तुम हनुमान के साथ चले जाओ, आज जीवन धन्य करने का समय आ गया।
"ठहरें माँ!" दाँई ओर से आवाज आई। किसकी? उनकी, जिनका जिक्र अभी तक इस रामकथा में हुआ ही नहीं, उर्मिला जी की। उर्मिला जी की चर्चा कल।
अब विडियो देखें- भरत जी का बाण
https://youtu.be/gw7SI5b7k9o
Bhakt Lokeshanand Swami: उर्मिलाजी के प्रसंग से पहले यह समझ लें कि राम माने द्रष्टा रूप से अवस्थित परमात्मा, तो सीता माने शांति। भरत माने भाव, तो मांडवी माने अंतःकरण का भाव से मंडित हो जाना। भीतर के शत्रुओं को काटने की क्षमता शत्रुघ्न है, तो श्रुतियाँ कीर्ति गाने लगें यह श्रुतकीर्ति है। लक्ष्य पर मन का टिक जाना लक्ष्मण है, तो लक्ष्य से एकाकार हो जाना, उर का मिल जाना उर्मिला है।
उर्मिलाजी कहती हैं- जिनके सिर पर सदा रामजी का हाथ रहता हो, विधाता भी उनका बाल तक बाँका नहीं कर सकता। फिर मेघनाद की तो औकात ही क्या है, कि उनको मार डाले? काम तो उन्हें छू तक नहीं सकता।
"रघुनाथ के हाथ हैं साथ जहाँ,
वहाँ रूठी बिगाड़ी सकई क्या विधाता।
घननाद के बाण से प्राण तजें,
यह मेरे नहीं मन में जम पाता॥
मान कदाचित् लेती भी हूँ,
तो पति का प्रतिबिम्ब है सामने आता।
स्वामी थके रण के श्रम से,
नहीं और कछु है दूसरी बाता॥"
माँ! मैं देख रही हूँ कि स्वामी तो युद्ध से थक कर, भगवान की गोद में विश्राम कर रहे हैं, वे इतने वर्षों से सोए नहीं थे ना। माँ! आप मेरी माँग का सिंदूर देख रही हैं? एक कण भी दाँए से बाँए नहीं है। उनका स्वरूप एक पल के लिए भी मेरी पलकों से नहीं हटता।
"भाल सुहाग के बिंदु सुशोभित,
माँग में लाली निहारति हूँ।
मारि सकै उनको कोऊ क्या,
पल भी पलकों ना टारती हूँ॥"
और यदि मान भी लूं, तो भी आप शत्रुघ्नजी को मत भेजें। अभी मेरी तो श्वास चल रही है, मैं स्वामी की अर्धांगिनी हूँ, उनका आधा भाग हूँ, मैं तो जीवित हूँ। मैं लंका के गढ़ में जाकर, मेघनाद को अपने हाथों से मारकर, सुलोचना की माँग का सिंदूर मिटा दूंगी। और रावण के दसों सिर काटकर, जानकी जी को निकाल कर भगवान के चरणों में पहुँचा दूंगी।
"मत भेजो अभी रिपुसूदन को,
यदि सत्य है तो गढ़ लंक में जाऊँ।
समरांगण में हत के घननाद,
सुलोचनी माँग सिंदूर मिटाऊँ॥
दसशीश के शीश उतार सभी,
भगिनी को निकाली प्रभु ढिग लाऊँ॥"
लोकेशानन्द उर्मिला चाची के चरणों में बारम्बार माथा रखता है।
*लावण्यरहितंरूपं विद्यया वर्जितं वपुः ।*
*जलत्यक्तं सरो भाति नैव धर्मो दयां विना !!*
लावण्यरहित रुप, विद्यारहित शरीर,
जलरहित तालाब शोभा नही देते । उसी प्रकार दयारहित धर्म भी शोभा नही देता हैं ।
A persona without lustre, a body without knowledge , a lake without water don't look good & a religion without compassion and sympathy is not graceful too.
*शुभोदयम ! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*
Printer Raman Mishra: बहुत महत्व की बात।
करुणा..... महावीर, बुद्ध से शुरू हो कर गांधी तक....यही करुणा भारतीय दर्शन और संस्कृति की पहचान है।🙏
काश.....धर्म की पूंछ पकड़ कर सत्ता सुख भोगने वाले इस मर्म को समझ पाते....!🙏
दया और करुणा के बिना धर्म की कल्पना असंभव है।🙏
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*आप आपने परिजनों के साथ इस प्रवचन में अवश्य सम्मलित हों, यह विनंती है !*🙏
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 32 (बोझ या अज्ञानता)
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