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Wednesday, September 16, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 37 (वेद महावाक्य)

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 37  (वेद महावाक्य)


फेसबुक उठापटक चर्चा।

गीता (18/61) -

"ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति"।

😇

ईश्वर अनाहत (हृदय) चक्र में प्रत्यक्ष होता है, ध्यान-योगी के ध्यान में।

सुशील जालान।

प्रभु जी इस श्लोक में चक्र कहां लिखा हुआ है।

हे अर्जुन ईश्वर सभी भूतों के हृदय में निवास करता है।

बिना वेद महावाक्य अनुभूति कोई ब्रह्म विद्या नहीं होती।

यह अनुभूति ही ज्ञान योग और ब्रह्म विद्या है।

Vipul Luckhnavi Bullet

श्रीमद्भगवद्गीता योग शास्त्र है ब्रह्म विद्या का.... हृदय/अनाहत चक्र इसी से समझ में आता है। 🌷

Sushil Jalan जय हो प्रभु मैं कुछ टिप्पणी नहीं कर सकता।

इतना ही कहूंगा नीम हकीम खतरे जान।

यही सनातन का दुर्भाग्य है कि लोग पढ़ कर के और कुछ थोड़ी बहुत अनुभूति करके ज्ञानी हो जाते हैं।

दुनिया को समझाना बहुत मुश्किल है क्योंकि हर एक की सोच का इस स्तर अलग है।

मित्र एक निवेदन करूंगा थोड़ा और आगे बढ़ लो और पढ़ लो फिर सनातन का प्रचार करो तो बेहतर रहेगा।

जय हो प्रभु जय हो।

🙏🙏🙏🙏

Vipul Luckhnavi Bullet

बताइये और क्या पढूं, ब्रह्म विद्या के अलावा, और कौन सी अनुभूति करुं 🌷

Sushil Jalan आपको किस वेद महावाक्य का अनुभव हुआ है।

बिना वेद महावाक्य अनुभूति कोई ब्रह्म विद्या नहीं होती।

यह अनुभूति ही ज्ञान योग और ब्रह्म विद्या है।

Vipul Luckhnavi Bullet

चार हैं 🌹

Sushil Jalan सर जी अनुभव किसका हुआ।

Vipul Luckhnavi Bullet

प्रथम अनुभव होता है, अयं आत्मा ब्रह्म, फिर तत्त्वमसि, और तब, अहं ब्रह्मास्मि, अन्त में सर्वं खल्विदं ब्रह्म। एक और स्थिति भी है, प्रज्ञानं ब्रह्म।

Sushil Jalan सर आपको कौन सा हुआ।

फिर वार्ता लाप आगे बढ़े।

Vipul Luckhnavi Bullet

ध्यान-योगी हूँ..... अनेक अनुभव हैं🌹

Sushil Jalan सर बात स्पष्ट करें। मैं वेद महावाक्य पूछ रहा हूं।

Vipul Luckhnavi Bullet

मेरी टिप्पणी देखें 🌹

Sushil Jalan मतलब चारों के अनुभव।

Vipul Luckhnavi Bullet

जी 🌷

Sushil Jalan बाप रे। आप तो महायोगी हो गये।  

मतलब सिद्धियां भी मिल गई होंगी।

अच्छा सर यह बताइए कि जब अहम् ब्रह्मास्मि का अनुभव होता है तो शरीर में क्या परिवर्तन होते हैं।

बस ऐसे ही पूछ रहा हूं।

मतलब इस संबंध में शरीर की तन मन की क्या अवस्था हो जाती है।

आप तो महायोगी है थोड़ा समझा दीजिए।

चारों महावाक्य के अनुभव एक से होते हैं कि अलग-अलग होते हैं यह भी मुझे जानना था।

थोड़ा विस्तार से बताएं मेरी बुद्धि बहुत कम है।

Vipul Luckhnavi Bullet

यह समझना इतना आसान नहीं है। जब कुछ साधना उपासना करेंगे तब ही समझ में आ सकता है। 🌷

Sushil Jalan वैसे सर जी आप बहुत ऊंची फेंकते हैं। चारों वेद महावाक्य के अनुभव यह शायद पूरी धरती पर गिनती के लोगों को होगा।

सन्यास दीक्षा में अहम् ब्रह्मास्मि की दीक्षा दी जाती है और यह अनुभव करने के बाद ही वह योगी की श्रेणी में आ जाते हैं। पूरा जीवन बीत जाता है तब यह अनुभव हो पाता है वो भी पूर्व जन्म की साधनाएं और प्रभु या गुरू कृपा हो। और वह भी और आप चारों के अनुभव हो गए। आपके कर्म और लिखावट का वह स्तर नहीं है।

अध्यात्म में मनुष्य को सत्य बोलना आना चाहिए। आपने वेद महावाक्य भी नेट से देखकर अटपटे तरीके से लिखे।

वेद महावाक्य चार होते हैं पांचवा सार वाक्य होता है।

पहला होता अहम् ब्रह्मास्मि जिसमें कि यह अनूभव होता है कि हम ही ब्रह्म है हम ही दुर्गा हैं हम ही काली है शिव हैं और यह पूरे शरीर को झन्ना देता है। साथ ही मन बुद्धि सभी से ऐसा प्रतीत होता है कि मैं शक्तिमान ब्रह्म हूं। यह अवस्था कुछ समय तक रहती है। किन्तु बहुत ज्ञान दे जाती है। यहां तक गीता वह सब स्वत: प्रकट होकर प्रकट हो जाते हैं।

दूसरा होता है एवं अयम आत्मा ब्रह्म। जिसमें कि यह अनुभव होता है अचानक से ऐसा लगता है अरे यह क्या है मैं जिसको कहां-कहां तलाश रहा था वह तो मेरी आत्मा ही है यह पहले से अलग होता है। और आपके अंदर से कोई आपको समझाने लगता है।

तीसरा होता है तत्तवम् असि। यह लोग सद्गगुरू जग्गी रमण महर्षि को हुआ था।और इसे आत्म विस्तार का अनुभव होता है जिसको की श्यामाचरण लहरी महाराज को भी हुआ ना।

चौथा होता है प्रज्ञानं ब्रह्म। जोकि यह समझ में आता है कि मेरे पास जो कुछ भी बुद्धि है जो कुछ भी समझ है वह सब तो उसी का है वह ब्रह्म की ही देन है और जो सार वाक्य होता है। सर्वखल्विदं ब्रह्म।

यानी ऊपर नीचे चारों ओर तू ही तू। जिससे मैं कहता हूं सर्वस्व ब्रह्म सर्वत्र ब्रह्म।

Sushil Jalan सर आध्यात्म में दिखावा नहीं होना चाहिए। यह योग होने की पहली शर्त है।

जिसको अनुभव हो जाते हैं वह अपने नाम के आगे योगी नहीं लगाता है क्योंकि उसको जगत के किसी भी पद से लगाव नहीं रहता है। आपने अपने आप को कोई योगी बोल दिया ध्यान योगी।

आपकी प्रशंसा करी तो आप उसको लाइक कर रहे हैं यह कोई योगी कभी नहीं कर सकता।

क्योंकि यह अहंकार का प्रतीक है।

Vipul Luckhnavi Bullet परस्पर ज्ञानी पुरुषों की चर्चा परिचर्चा  सुनने में अज्ञानियों को भी ज्ञान प्राप्त होता रहता है  आप दोनों महानुभावों से प्रश्न है कि अगर ध्यान में कुछ क्षणों तक सप्त चक्रों के दर्शन हो तो इसको कौनसी अवस्था कहेंगे ।

Ajay Sharma यह है चक्रों की दर्शना भूति मात्र है इससे और आगे कुछ नहीं यह ध्यान की प्रगाढ़ता को दर्शाता है।

K Babu Ghayal: 💐💐💐💐💐💐

*श्रीकृष्णम वन्दे जगदगुरूम*

✍️✍️✍️✍️✍️✍️

माखन कैसे खा जातें हैं- *श्रीकृष्णा*।

कहीं छुपाओ,पा जाते हैं- *श्रीकृष्णा*।

कब आते हैं,कब जाते हैं,पता नही।

भोग लगाकर भग जाते है- *श्रीकृष्णा*।

🥁🥁🥁🥁🥁🥁

        *गीतेश्वर बाबू*

हिंदी दिवस के अवसर पर सभी कवियों को एक विशेष मौका है की कुछ कविताएं अच्छी सी पोस्ट कर दें।

लेकिन किसी ने पोस्ट नहीं करीं।

😞😞

*वाणी रसवती यस्य,यस्य श्रमवती क्रिया ।*

*लक्ष्मी: दानवती यस्य सफलं तस्य जीवितम् ।।*

जिसकी वाणी रसपूर्ण हो, कर्म-क्रिया श्रमवान हो, और लक्ष्मी दान वृत्ति  हो, उसका जीवन निश्चित ही सफल होता है ।

Who always talks sweetly, polietly, who is hardworking, diligent and who is having a big heart, magnanimous... will always have a prosperous &  successful life.

*शुभोदयम्! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*

Swami Toofangiri Bhairav Akhada: *....✍🏻 "संत वाणी"*

 *मत बन खुदा किसी के लिए,*

*बस....! इंसान बन जा इंसान के लिए...*

🙏🏻  *राम राम जी* 🙏🏻

Jb Ashutosh C: We often don't express our feelings for fear of loosing a relationship ,but fact is,we often loose a beautiful relationship by not expressing our feelings......!

+91 96374 62211: 👉 _अवश्य देखें !_

*हिन्दू धर्म की महानता समझानेवाले और भक्तिभाव बढानेवाले ऑनलाइन सत्संग*

🌸 भावसत्संग : *इच्छाओं का त्याग ही सर्वोपरि त्याग*

*संत बहिणाबाई*

विशेष संवाद : *प्राचीन भारत - 'टेक्नोलाॅजी' में प्रगत भारत*

▫️ Youtube.com/HinduJagruti

▫️ Fb.com/HinduAdhiveshan

Fb Yashodhara Sharma: नमस्कार सर

कल कुछ प्रतिक्रिया नहीं लिख पायी परसो रात के ध्यान में  कुछ विशेष हुआ भी नहीं था । में आगे पीछे हिल रही थी बस।कल दिन मैं काम की काफी ज्यादा व्यस्तता रही लौट भी देर से पायी तो कल रात 10 बजे बैठने का मन नहीं किया सो सभी के साथ कुर्सी पे ही बैठी थी।10 :15बजे  कुछ बैचैनी सी लगी मैं वही बैठे बैठे उँगलियों पे ही जाप करने लगी मैं फिर हलके हलके  कभी आगे पीछे कभी दायें बाएं हिलने लगी  फिर केवल सर गोल गोल घूमने लगा। 10:45 मैं उठ गयी इस बीच मैं ध्यान में नहीं थी सबसे बात कर रही थी।

 आज सुबह 3 :45 मेरी नींद खुल गयी कुछ बैचैनी फिर लगने लगी में जप करने लगी ।फिर लेटे लेटे में हिलने लगी। फिर सर हिलने लगा।फिर नींद आ गयी ।सोकर उठी तो सर भारी था ।पूजा करने बैठी तो फिर सर गोल गोल घूमने लगा । ब्रेकफास्ट करने लगी तो टेबल पे भी आगे पीछे हिलने लगी।अब भी सर भारी है ।  जैसे ही खुद को ढीला छोड़ती हु सर गोल गोल घूमने लगता है

थोड़ी उलझन हो रही है सब स्टाफ के लोग देखेंगे मैडम क्या कर रही है।घर में सब देखेंगे ।ये क्या है मैं किस प्रकिया से गुजर रही हूँ।कोई भूत प्रेत के वष मई तो नहीं हो गयी हूँ।मेरा सर का बैलेंस जैसे बिगड़ गया लगता है

Lko mukesh: जितनी गहरी हो सके साँस लें। हो सके तो 15 मिनट ज़रूर करें। सम्भवतः लाभ होगा

देखिए आप घबराइए बिल्कुल नहीं। यह शक्ति जागरण के लक्षण हैं।

आप बैठे-बैठे लेट जाया कीजिए।

और जब भी होने लगे तो आंख बंद करके शक्ति से प्रार्थना कीजिए कि हे मां इस समय मैं अन्दर कार्य में हूं कृपया मुझे लीला मत दिखाएं।

एक बात याद रखिए मां शक्ति का अपमान मत कीजिएगा।

वैसे अब आप शक्तिपात दीक्षा लेने लायक हो गई है।

अब आपको ही स्पष्ट हो गया कि हम कौन हैं क्योंकि आपके न चाहने पर भी अंदर कोई शक्ति कार्यरत  है।

इस शक्ति के कई नाम है इसी को शिव शक्ति दुर्गा शक्ति प्रभु शक्ति कुंडलिनी शक्ति तमाम नामों से पुकारा जाता है।

यह शक्ति हमको साक्षात अनुभूति और अनुभव कराती है कि हे मानव तू मूर्ख है तू कुछ नहीं कर रहा है करने वाला तो कोई और है जो तेरे अंदर विद्यमान है।

अब आपको शक्ति पर यकीन होने लगेगा और जो चर्चा आपने फेसबुक पर देखी होगी हमारे द्वारा उसको अब आप सही मानने लगी होंगी।

सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि का निर्माण भगवान श्री कृष्ण ने करवाया था और उसको मां काली का आशीर्वाद है।

लेकिन कलियुग में नकली के बीच में कोई यकीन नहीं करता है।

आप बहुत भाग्यशाली है कि आपको 1 दिन में अनुभव हो गया।

देखिए आप बिल्कुल डरिए नहीं मैं आपसे कह रहा हूं।

शक्तिपात की साधना हम लोग एकांत में करते हैं क्योंकि दुनिया जो है इसको पागलपन समझती है।

मैं आपसे मिला भी नहीं मैंने आपको देखा भी नहीं मात्र व्हाट्सएप के माध्यम से आपकी शक्ति जागृत हो गई।

फेस बुकपर 99 पॉइंट 99% लोग नकली झूटे हैं।

बस केवल पैसे के लिए पद के लिए प्रचार के लिए इधर उधर से पढ़ कर के लोगों को बहकाते हैं।

Gs Bhakt Yogendra Rajput Noida: Hello Madam, please suggest when can we talk?

Fb Yashodhara Sharma: बताइये

मैं ऑनलाइन हूँ

Gs Bhakt Yogendra Rajput Noida: I will call you in sometime

Yogendra.

Pl talk in public so that other can get attraction to sanatan power.

Gs Bhakt Yogendra Rajput Noida: Ok

Gs Bhakt Yogendra Rajput Noida: You don't have to be worry about it, it's a process to clear all your prior birthday karma

Pl also tell how you were cheated by earlier guru.

Then you came in my contact through this group and you Got shaktipat dixa recently.

ओके

Fb Yashodhara Sharma: क्या दीक्षा के कुछ नियम भी होते है ।माने दीक्षा लेने के बाद का लाइफ स्टाइल

मुझे स्वयं अंदाज नहीं था इतनी जल्दी प्रभाव उत्पन्न हो जायेगा

Gs Bhakt Yogendra Rajput Noida: So let me tell you about me a little bit. I have been in the spritual journey for last 17 years, I have been cheated by many people in the name of Guru I have spent my harden money however not got the desired results, then one fine day I decided to do the Sadhana by myself without any guru

I have many Sadhan and had many good experience also, now even I know that I have spent my last birth good amount of time with Maharashtra Babaji, I remember many events which I spent with him

 As you all now spiritual journey without Guru is like train without driver, I have been doing some sadhana like Baglamukhi, Apsara, etc

Also I was in great need of a Guru Who can fullfill my spiritual desire and I had invoked a mantra from one of the old Vedas to call the Guru, and during that course of action I meet Vipul ji on Facebook and speak with him and share my desire for the Guru

Fb Yashodhara Sharma: आप वाममार्गी तो नहीं है। मैं तंत्र में जाना नहीं चाहती हूँ।

Gs Bhakt Yogendra Rajput Noida: He understood my pain and then he refer me to Guru Mata and the grace of God and Guru Maa and Babaji I have initiated in the Shaktipath Deeksha last month, I had great experience which I can't revel in the group but I am enjoying the spritual journey after the Shaktipath Deeksha

I am doing my sadhana as per given by Guru maa

Fb Yashodhara Sharma: Thanks for sharing your experiences and also to motivate me🙏

Gs Bhakt Yogendra Rajput Noida: Shaktipath is not Vaam margi sadhana

Fb Yashodhara Sharma: Any change in your life style after shaktipat Deeksha

Means if there any rules and regulations for following it our lives

In our lives

Mam

You are not only one.

At least 200 people did it. I have list of many of them.

Beauty is that I never met them but they all came in my contact did mmstm and got Dev darshan too.

After some time i send them to shaktipat gurus.

List includes engineer industrialist doctors and reiki experts even.

Bhakt Gautam Swami R Y Rajput Noida: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4393117610730077&id=430486686993209&sfnsn=wiwspmo&extid=ZH3WBRAUpEFk0Uli

If you want i can tell them to console you.

Gs Bhakt Yogendra Rajput Noida: No rules and regulations only just do u sadhana and chant ur guru Mantra rest will happen automatically

My only intention is that your puja and dhyan has given you fruits.

Which are valuable in spritual path.

Gs Bhakt Yogendra Rajput Noida: Also I am running an IT company in delhi

Boss. She is new and did mmstm only one day and got kriya.

I will decide her in few days where to send for dixa.

Gs Bhakt Yogendra Rajput Noida: Wow it's a wonderful news

Ok

Mam where did you stay and what is your job.

I can arrange your dixa During navratri.

Have you read article on shaktipat.

Fb Yashodhara Sharma: I am principal in a degree college at varanasi

Yes

Good. Then you must had seen it.

Oh great city of tailang swami and lahri maharaj with Ramkrishna and kinaram.

🙇🏻♀️🙇🏻♂️

Fb Yashodhara Sharma: Yes

Tailang swami guided my param guru.

Fb Yashodhara Sharma: Great

The great saint of kashmir lal was from my tradition.

Aadi guru shankaracharya came to my guru and requested him 7 times to get shree vidya but my guru did not accept it. But finally he accepted.

Very rare people knows shree mantra actual.

I know it but i don't to.

What will i do with luxury or wordly happiness.

Fb Yashodhara Sharma: Great

Aap vam margi hai?

http://freedhyan.blogspot.com/2020/09/blog-post_20.html?m=0

We are father of any Marg.

Our tradition is highest presently.

Known as shaktipat, stated by lord Shiva.

Vasistha gave shaktipat to ram.

Ashtavrak gave shaktipat to raja janak.

We are presently from seven rishis like vishvamitra and jamadagni maharishi.

Who drives this world.

I know it is difficult to believe.

Our tradition gives direct realization of God.

This is very very rare tradition. Came in lime light because of we people.

Don't worry we are pure satvik and satya guni upasak.

No garlic onion or any thing.

Gs Bhakt Yogendra Rajput Noida: Just to give you confidence, I have 2 daughters one is 7 and another is 5 both is doing Sachal man and my elder one even speak to Krishana ji

So you don't have to worry just live this amazing movements

Vashi Bhupesh Singh: 🙏 : Amazing

Fb Yashodhara Sharma: 🙏

 क्या आदमी की मृत्यु होने के तुरंत बाद आत्मा नया शरीर धारण कर लेती है?

*दानं होमं दैवतं मङ्गलानि प्रायश्चित्तान् विविधान् लोकवादान्।*

*एतानि यः कुरुत नैत्यकानि तस्योत्थानं देवता राधयन्ति॥*

*जो व्यक्ति दान, यज्ञ, देव -स्तुति, मांगलिक कर्म, प्रायश्चित तथा अन्य सांसरिक कार्यों को यथाशक्ति नियमपूर्वक करता है ,देवी-देवता स्वयं उसकी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं ।*

The person who donates charity, sacrifice, devotion, Manglik karmas, atonement and other cultural activities, according to the rules, Goddess himself paves the way for his advancement.

*शुभोदयम -लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*


आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 36 (निशुल्क प्रशासनिक कोचिंग)

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विशेष सूचना:

मित्रों मेरे ब्लॉग पर 412 लेख है जो प्रभु कृपा से बढ़ते जाएंगे।

इनके अवलोकन की संख्या 87 हजार तक पहुंच गई है।

अतः मैंने अपने ग्रुप के सदस्यों द्वारा की गई चर्चा को यथावत स्थान देकर कुछ भागों में बांटा है और लेख का रूप दिया है।

जिन सदस्यों ने चर्चा में समय-समय पर भाग लिया है अब उनका नाम इस ब्लॉग में दर्ज हो गया है कृपया उनको देखकर अपनी टिप्पणी से अवगत कराने का कष्ट करें।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

 http://freedhyan.blogspot.com/2020/09/blog-post_40.html?m=0

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शात्रं तस्य करोति किम् |

लोचनाभ्याम् विहीनस्य दर्पण: किं करिष्यसि ||

जिस मनुष्य में स्वयं का विवेक, चेतना एवं बोध नहीं है, उसके लिये शास्त्र क्या कर सकता है । ऑंखों से हीन अर्थात अन्धे मनुष्य के लिये दर्पण क्या कर सकता है |

What is use of knowledge to a person who does not have intellectual capacity? what is use of mirror to a person who is blind? Here, the Subhashkar has given an excellent analogy. He says that, knowledge is like a mirror, which reflects world in it. Indeed knowledge is something through which we perceive the world.

*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*

http://freedhyan.blogspot.com/2020/09/1.html?m=0

यक्ष विपुल बात:

गलतियां करना मानव का स्वभाव लेकिन जो समझदार होता है वह गलतियों से सीख जाता है और अगली बार वह गलती ना होने का प्रयास करता है लेकिन जो नासमझ होता है वह बार-बार वही गलती करता है और कुछ सीख नहीं पाता।

यह अति आवश्यक नहीं कि हम जो सोचते हैं वही सही है और सामने वाला भी हमारे ही सही को सही मानकर सही काम करने लगेगा।

आए दिन मारपीट दंगे फसाद होते रहते हैं क्यों होते रहते हैं क्योंकि लोगों की विचारधाराएं आपस में टकराती है कोई राज करना चाहता है कोई मनमानी करना चाहता है जिस दिन इस मानव को यह समझ में आ जाएगा कि यह जगह सभी माटी के पुतलों से बना हुआ है जो कुछ क्षणों के लिए प्रकट हुआ है बाद में इसको नष्ट होना है उस दिन शायद वह प्रेम से रहना सीख ले।

इसीलिए महात्मा बुद्ध ने सम्यक की बात करी है और भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्थिर बुद्धि और स्थितप्रज्ञ की बात करी है।

Swami Toofangiri Bhairav Akhada: संसार भर में  रह रहे सभी सनातनी बच्चों को बहुत-बहुत आशीर्वाद एवं शुभकामनाएं आप लोगों के लिए एक विशेष जानकारी देना चाहता हूं कल 13 sep 2020  दिन रविवार को 12 की 12 राशियां कुंडली के हिसाब से जो भी ग्रहों के अपने पक्के घर हैं वह अपने अपने घर में विराजमान हो रहे हैं जोकि इस तरह का योग आज से पहले 1825 में बना था कल फिर वही योग दोबारा बन रहा है और जो हर राशि के लिए बहुत ही शुभ है

एक विशेष उपाय

सबसे पहले आप नहा धोकर  शुद्ध होकर  शुद्ध वस्त्र पहन कर स्वच्छ  आसन  ग्रहण कर  पूर्व दिशा की तरफ मुख कर के आप लोग थोड़ी सी गेहूं की ढ़ेरी लेकर उसके ऊपर देसी घी का दीपक जलाएंगे और आप जिसकी भी पूजा करते हैं यानी अपने इष्ट का ध्यान करते हुए 2 घंटे तक लगातार जाप करेंगे जिसका समय सुबह 11:00 बजे से लेकर दोपहर 1:00 बजे तक रहेगा आप जो भी मनोकामना लेकर  पूर्ण समर्पण के साथ पाठ करेंगे वह आपके इष्ट आपके देवता आप की पुकार जरूर सुनेंगे और आपकी जिंदगी से हर मुश्किल का समाधान होगा

जय मां बगलामुखी जय मां पितांबरा

डॉक्टर नीलेंद्र गौतम { संस्थापक मां बगलामुखी तपोस्थली गढ़मुक्तेश्वर उत्तर प्रदेश }

स्वामी तूफान गिरी जी  महाराज { मां बगलामुखी उपासक एवं सनातन धर्म रक्षक } श्री पंच दशनाम भैरव जूना अखाड़ा सिद्ध शक्तिपीठ ज्वालामुखी हिमाचल प्रदेश

Jb Ashutosh C: If you wait for happiness you will wait forever.But if you start believing that you are Happy you will be Happy forever.

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*हिन्दू धर्म की महानता समझानेवाले और भक्तिभाव बढानेवाले ऑनलाइन सत्संग*

🌸 भावसत्संग : *भोले भाव मिले रघुराई*

🔅 *नारायणबलि, नागबलि एवं त्रिपिंडी श्राद्ध क्‍यों, कहां और कैसे करते हैं ?*

 Youtube.com/HinduJagruti

Fb.com/HinduAdhiveshan

Fb Yashodhara Sharma: मैं जानना चाहती हूँ कि क्या प्रक्रिया करने से ये रौशनी ठहरेगी। में कुछ करती नहीं  हूँ। सामान्य पूजा करती  हूँ। न प्राणायाम न योग

देखिए यह ध्यान की परपक्वता में मध्यम श्रेणी की प्रगति है।

सफेद रंग का प्रकाश दिखाई देना और उसका पीछा करना तो एक गुफा की तरीके से उसके अंदर चले जाना और बाद में उसका लुप्त हो जाना उसका आना-जाना यह सब होता है।

आध्यात्मकी दृष्टि से यह कोई बहुत बड़ी उपलब्धि तो नहीं है जब तक में आपको सूर्य की भांति किसी ज्योति के अनुभूति नहीं होती है।

साकार आराधना करने वाली जब किसी ईस्ट का मंत्र जप करते हैं तो वह इष्ट भी आकर खड़ा हो सकता है।

मैंने आपसे इसलिए पूछा था कि मैं आपको आगे की प्रक्रिया के बारे में बता सकूं।

आपका इष्ट देव कौन है।

मतलब आपका क्या कोई कुलदेव है या जिस देव को आज संकट में याद करती हो या जिसका मंत्र करती हो या जिसकी पूजा करती हो।

Fb Yashodhara Sharma: इष्ट ने तो स्वयं मुझे प्रेरित किया है स्वप्न में दर्शन देकर और फिर में पूजा करने लगी

भगवान शंकर मेरे इष्ट देव है🙏

हर हर महादेव

Fb Yashodhara Sharma: मैं एक बार इच्छा पूर्ति के लिए एक मज़ार पे चादर चढ़ाने चली गयी थी।जाते समय भी मेरा मन अशांत था मुझे रोना भी आ रहा था की ब्राह्मण होकर ऐसे प्रार्थना करनी पड़ी

आप पूजा में क्या करती है।

मतलब क्या है शिव का मंत्र जपती है।

Fb Yashodhara Sharma: लौटी तो वो खुशबु मेटे साथ चली आई

मैं डरने लगी

तो एक दिन भगवन ने स्वप्न दर्शन दिए

किसी ने कहा य ेधूत पापेश्वर है

यह वास्तव में बहुत ही दुखद है कि हमारे सनातन में इतने शक्तिशाली देव है शक्तिशाली मन्त्र है यह सब होकर हम कब्रों की पूजा करते हैं।

जो आपने किया उसको भूल जाइए।

अब मैं आपसे जो निवेदन करता हूं उसको आप आगे करिए

Fb Yashodhara Sharma: और फिर मैंने बनारस जाकर शिव मंदिर में अभिषेक किया

यह सुंदर बात है कि आपके इष्ट शिव हैं।

क्या आप रात्रि को 40 मिनट अपने घर पर ध्यान दे दे सकती है।

रात्रि में लगभग 10:00 बजे के बाद जब पूरा वातावरण शांत हो चुका हो।

Fb Yashodhara Sharma: हा कर सकती हूँ

आज ही करना है क्या

में ॐ नमः शिवाय का जप करती ज्यादा नहीं बस 11 माला

ठीक है आप सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि आज से आरंभ कर सकती है।

 मैं आपको लिंक देता हूं जिसको आप पढ़ कर अपने घर पर शिव मंत्र के साथ आरंभ करें।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/04/blog-post_45.html

Fb Yashodhara Sharma: जी बहुत बहुत धन्यवाद🙏

🙏🙏🙏

Jb Lokesh Sharma: 🙏🙏

Vashi Bhupesh Singh: 🙏

http://freedhyan.blogspot.com/2018/07/16.html?m=1

http://freedhyan.blogspot.com/2018/03/blog-post_28.html?m=0

Bhakt Gautam Swami R Y Rajput Noida: https://twitter.com/AadiyogiTrust/status/1304766504345321472?s=08

http://freedhyan.blogspot.com/2018/03/blog-post.html?m=0

Printer Raman Mishra: *स्वामी दयानन्द के योगदान के बारे में महापुरुषों के विचार*    

डॉ॰ भगवान दास ने कहा था कि स्वामी दयानन्द हिन्दू पुनर्जागरण के मुख्य निर्माता थे।

श्रीमती एनी बेसेन्ट का कहना था कि स्वामी दयानन्द पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 'आर्यावर्त (भारत) आर्यावर्तियों (भारतीयों) के लिए' की घोषणा की।

सरदार पटेल के अनुसार भारत की स्वतन्त्रता की नींव वास्तव में स्वामी दयानन्द ने डाली थी।

पट्टाभि सीतारमैया का विचार था कि गाँधी जी राष्ट्रपिता हैं, पर स्वामी दयानन्द राष्ट्र–पितामह हैं।

फ्रेंच लेखक रोमां रोलां के अनुसार स्वामी दयानन्द राष्ट्रीय भावना और जन-जागृति को क्रियात्मक रूप देने में प्रयत्नशील थे।

फ्रेंच लेखक रिचर्ड का कहना था कि ऋषि दयानन्द का प्रादुर्भाव लोगों को कारागार से मुक्त कराने और जाति बन्धन तोड़ने के लिए हुआ था। उनका आदर्श है- आर्यावर्त ! उठ, जाग, आगे बढ़। समय आ गया है, नये युग में प्रवेश कर।

स्वामी जी को लोकमान्य तिलक ने "स्वराज्य और स्वदेशी का सर्वप्रथम मन्त्र प्रदान करने वाले जाज्व्लयमान नक्षत्र थे दयानन्द "

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने "आधुनिक भारत का आद्यनिर्माता" माना।

अमरीका की मदाम ब्लेवेट्स्की ने "आदि शंकराचार्य के बाद "बुराई पर सबसे निर्भीक प्रहारक" माना।

सैयद अहमद खां के शब्दों में "स्वामी जी ऐसे विद्वान और श्रेष्ठ व्यक्ति थे, जिनका अन्य मतावलम्बी भी सम्मान करते थे।"

लाला लाजपत राय ने कहा - स्वामी दयानन्द ने हमे स्वतंत्र विचारना, बोलना और कर्त्तव्यपालन करना सिखाया।

भारत में खड़ी बोली हिंदी के सूत्रधार स्वामी दयानंद सरस्वती जी थे। 1973 में कवि केशव सेन की सलाह पर उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश को बंगला में ना लिखकर हिंदुस्तानी हिंदी में लिखा।

जो हिंदी का हिंदुस्तानी हिंदी का पहला पुस्तक है।

बाद में चंद्रकांता संतति यह पहला उपन्यास कह लाया।

18 सौ 70 से लेकर स्वतंत्रता तक जो भारतीय इतिहास है वह आर्य समाज के बिना अधूरा है।

यहां तक की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना स्वामी श्रद्धानंद की हत्या के बाद हुई थी उनकी हत्या और महात्मा गांधी द्वारा हत्यारों का पक्ष लेना परम पूजनीय बलिराम हेडगेवार के मन को कचोट गई और उन्होंने 5 स्वयंसेवकों को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।

कुल मिलाकर हिंदुत्व जागरण का कार्य आर्य समाज में बहुत जोर शोर से किया राजा राममोहन राय तो अंग्रेजों के चमचे थे लेकिन स्वामी दयानंद सरस्वती अंग्रेजों के दुश्मन थे।

Jb Ashutosh C: ''Who is Helping you,don't Forget them.''

''Who is Loving you,don't Hate them.''

''Who is Believing you,don't Cheat them.''

https://twitter.com/vibhor_anand/status/1257246031709974528?s=09

This entire analysis was sent to me by a 50 year old First Year Law Student, For his safety I decided not to disclose his identity.

The Crux is next time you hear Azaan, Just go to the Police Station and register FIR under sections 153/153A/295A of IPC.

Maximum people in India should do it

http://freedhyan.blogspot.com/2020/09/2.html?m=0

आसन की महत्ता पर चर्चा।

Bhakt Balwant Sharam Kurukhsetra: 🕉️🙏जब ध्यान पक जाता है,फिर किसी आसन की जरूरत नहीं होती,कैसी भी अवस्था मे हम हैं ध्यान लग जाता है,कहा है-- उठत,बैठत,सोवत,जागत भज नाम।सधे तेरे सब काम।आज कुछ सत्संग चर्चा का मन कर रहा है--बाणी गुरू अर्जुन देव जी की है-"हरि का सेवक सो हरि जेहा।भेद न जाणहु मानस देहा।।जिउ जल तरंग उठहि बहु भाती फिरी सललै सलल समाइदा"जब साधक इस अवस्था मे आ जाता है,तब उसे किसी मानस से न बैर रहता है न अधिक प्रेम,वह सब मे उस मालिक को देखने लग जाता है,होता ये तब है जब हमे पिछले प्रालब्द से कोई संत महात्मा मिल जाए व उस मालिक का समस्त भेद अपने सत्संग के जरिए हमें बता,नामदान की बख्सीस करे।तब साधक तत्व से उस परम शक्ति को तत् से जान,कण कण मे उसे ही देखने लगता है,हरि का सेवक फिर हरि जैसा ही हो जाता है,जैसे सागर की ऊँची ऊँची लहरे उठती हुई फिर सागर मे समा जाती हैं ऐसे ही एक भक्त अपने मालिक मे समा जाता है,हम ग्रुप मे जितनी चर्चा करते हैं उतना अमल नहीं,चर्चा ,सत्संग ये शुरूआत की सीढी है,सबसे महत्वपूर्ण भजन सिमरन है,गुरू के साए मे नीत भजन करने से सब सवालों के जवाब मिल जाएँगें,ज्यादा भटकने की जरूरत नहीं होती।ये वार्ता सत्संग नए साध के लिए जरूरी है।

आसन की आवश्यकता वहां पर नहीं है जहां आप यात्रा में हैं या नहीं कर सकते।

आसन की अपनी एक विशेष महत्ता होती है क्योंकि आसन गुरु प्रदत्त होता है तो उसमें हम सुरक्षित रहते हैं जिस प्रकार से माला एक अस्त्र होता है उसी प्रकार से आसन हमारे लिए सुरक्षा कवच है।

दूसरी बात आसन पर बैठना हमें गुरु के प्रति समर्पण सिखाता है।

इसलिए आसन की महत्ता कभी समाप्त नहीं हो सकती।

इसके विषय में प्रभु योगेंद्र विज्ञानी महाराज ने महा योग विज्ञान पुस्तक में बहुत विस्तार से लिखा है क्योंकि विभिन्न आसन का अपना अलग ही महत्व है।

जब तक हम योग की परिपक्वता तक नहीं पहुंचेंगे तब तक हमें आसन की आवश्यकता पड़ती रहेगी।

जय गुरुदेव जय महाकाली।

+91 96374 62211: 👉 _अवश्य देखें !_

🌸 बालसंस्कार वर्ग :  *क्रांतिकारी जतींद्रनाथ दास !*

🌸 भावसत्संग : *प्रभु शरण में कटें भवबंधन*

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*प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।*

*तस्मात्तदेव वक्तव्यं , वचने किं दरिद्रता।।*

मीठी वाणी बोलने से सभी व्यक्ति प्रसन्न और संतुष्ट होते हैं इसलिए सदैव मधुर वचन ही बोलना चाहिए। वाणी हमारे अधीन है और इसका कोई मूल्य भी नहीं देना पड़ता तो मीठे वचन बोलने में दरिद्रता कैसी?

All the people are happy and satisfied by soft and sweet words, therefore always speak sweet words. We have control over our words and have not to pay any price for soft words, then why to be miser in saying sweet words?

*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*

Fb Yashodhara Sharma: प्रणाम सर कल रात 10 बजे मैंने इसी विधि से जप किया था । क्या इस ग्रुप पे अपने अनुभव शेयर  कर सकती हूँ।🙏

बिल्कुल शेयर करें ताकि और लोगों को भी मालूम पड़े और विश्वास हो मेरी कोई भी पोस्ट छुपी नहीं रहती है मैं सार्वजनिक बात करना पसंद करता हूं।

Fb Yashodhara Sharma: मैने विधि अनुसार मंत्र लिखके रखके जप शुरू किया तो कुछ देर सब सामान्य था फिर मेरे निचले शारीर में कम्पन होने लगा मैंने  सोचा की मुझे जमीन पे बैठकर पूजा करने की आदत नहीं है मई स्टूल पे बैठकर करती हूँ।तो पाँव सो गया लगता है कई बार पहलू बदले फिर ठीक हो गया 10.30 के बाद मुझे लगा मै घूम रही हु बैठे बैठे गोल गोल मैंने इसे रोकना चाहा मुझे लगा कुछ हो रहा है ।मुझे याद आया की देवी मंदिर मई बचपन मैं लोगो को खेलते देखा था कही ऐसा तो नहीं होने जा रहा है ।एक क्षण रुका भी फिर वैसे ही होने लगा।बहुत जोर से नहीं था थोड़ा थोडा ही था।फिर मैंने माला छोड़ दी। हाथ जोड़ कर मंत्र जप करने लगी ऐसा लग रहा था जैसे कोई एनर्जी है मेरे सर के ऊपर माथे के बीच कुछ भी दिखाई नहीं दिया।🙏

बहुत सुन्दर।

आप जमीन पर बैठ कर यह करें।

डरें नहीं जो होता‌है होने दें।

कुछ दिन पूरी प्रतिक्रिया करें।

अपना अनुभव बताती रहें।

जय गुरूदेव जय महाकाली।

आपने यह लेख पढ़ा था।

दोबारा ध्यान से पढ़ें।

माला गले में डाल लिया करें।

यह शक्ति का खेल है। जो प्रत्यक्ष अनुभव देता है।

मां शक्ति की लीला निराली है।

अब आप से निवेदन है आप औरों को भी आकर्षित करें ताकि सनातन के प्रचार कि आप सिपाही बनें।

क्योंकि इससे यह सिद्ध हो जाता है ईश्वर सत्य है है है।

बिना अनुभूति के किसी को यकीन नहीं होता क्योंकि यह कलयुग है।

http://freedhyan.blogspot.com/2020/09/3.html?m=0

*मन्दोऽप्यमन्दतामेति संसर्गेण विपश्चितः।*

*पङ्कच्छिदः फलस्येव निकषेणाविलं पयः॥*

बुद्धिमानों के साथ से मंद व्यक्ति भी बुद्धि प्राप्त कर लेते हैं जैसे रीठे के फल से उपचारित गन्दा पानी भी स्वच्छ हो जाता है।

Even a dull person becomes sharp by keeping company with the wise, as turbid water becomes clear when treated with the dust-removing fruit of 'Reetha'.

*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*

Swami Toofangiri Bhairav Akhada: ⛳ *सुप्रभात🌞वन्दे मातरम्*⛳

*जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है तथा जिसने अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातों को सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूर्ण रूप से समझ नहीं सकता, एवं उसके लिये धर्म की बातें ही व्यर्थ है।*

दिन मंगलमय हो🐌

+91 96374 62211: *हिन्दू धर्म की महानता समझानेवाले और भक्तिभाव बढानेवाले ऑनलाइन सत्संग*

🌸 भावसत्संग : *प्रायश्चित एक तपश्चर्या*

🌸 बालसंस्कार वर्ग : *राष्ट्रभाषा हिन्दी पर गर्व करें (हिन्दी राजभाषा दिन !)*

▫️ Youtube.com/HinduJagruti

▫️ Fb.com/HinduAdhiveshan

 K lko dr kailash nigam: हिन्दी  पर मेरा यह छंद पढि़ए और हिन्दी अपनाइये ।

K lko dr kailash nigam: जय हिंद जय हिन्दी जय हिंदुस्तान । आपका- कैलाश  निगम

+91 96374 62211: हमारी जीवनशैली हमें आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रभावित करती है और यह भी सत्य है कि हमारी आध्यात्मिक प्रकृति हमारे द्वारा बनाई गई जीवन शैली के विकल्पों को निर्धारित करती है । हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण कारक वे लोग हैं जिनकी संगति में हम रहते हैं । प्रायः, हम उन लोगों से अत्यधिक प्रभावित होते हैं जिनके साथ हम सबसे अधिक समय व्यतीत करते हैं । और समय के साथ, हम उन लोगों के जैसे हो जाते हैं, जिनसे हम जुडे होते हैं । इस कारण जितना संभव हो, हमें उस संगति के प्रति सचेत रहना चाहिए।

इस SSRF लेख में हमारी जीवन शैली के उन पहलुओं पर चर्चा की गई है, जो हमारे मूल आध्यात्मिक प्रकृति से प्रभावित होता है । इसमें वे लोग सम्मिलित हैं, जिनसे हम जुडे होते हैं, हम जो भोजन करते हैं तथा हम जो वस्त्र पहनते हैं : http://bit.ly/सत्व-रज-तम

इसी प्रकार, साधना के माध्यम से अपने स्वभाव में सुधार करके, हम अपने आस-पास के सभी लोगों पर एक सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। साधना के माध्यम से स्वयं में सुधार लाने के बारे में अधिक जानकारी के लिए, SSRF की स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया के बारे में यहाँ पढ़ें : http://bit.ly/स्वभावदोष-निर्मूलन-साधना

K shardendu shukla: https://youtu.be/6NyFNldjlYU

Vs Prakash Kashyap: हिंदी हमारे राष्ट्र की अभिव्यक्ति का सरलतम स्रोत है।

                     (सुमित्रानंदन पंत)

Swami Prkashanand Shivohm Ashram Mathura: https://www.facebook.com/100029909290698/posts/363831561290484/?sfnsn=scwshmo&extid=4TkWD9DrCYOjg93a

Jb Lokesh Sharma: Isme judiciary mein badlav Aavashyak hai, supreme court should start hearing cases in Hindi

Should give English an option for south states

Goa etc.

+91 83186 16962: Hindi or regional language but problem is for non language personal, I my self is facing same issue, I own a flat in Bengaluru and in Karnataka , every office is following Kannad language, all the forms and certificates will be in local language even my sale deed is not in English, so it's difficult to understand, what have I signed...

Even college forms are in Kannada...

There is a problem, connecting language is either Hindi or English..

मित्रों कुछ लोगों की शिकायत है कि वह मेरे ब्लाग की और लेख नहीं देख पाते हैं तो उनको मैं बताना चाहता हूं आप अपने मोबाइल पर जब साइट खोलते हैं तो सबसे नीचे जहां होम लिखा है उसके भी नीचे लिखा हुआ है वेब वर्जन web version.

जब आप इसे क्लिक खोलेंगे तो दाहिने तरफ वर्ष और माह के पूरी सूची दी हुई है।

जिस पर क्लिक कर आप मनचाहा लेख प्राप्त कर सकते हैं।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

http://freedhyan.blogspot.com/2020/09/4-bhakt-parv-mittal-hariyana.html?m=0

Jb Lokesh Sharma: Wait sometime Hindi will cover all India, I visited Assam and Bengal typical rural areas but they understand & speak Hindi well, next will be Administration issue of applying in Schools so this will take 10-15 years

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 37 (वेद महावाक्य)

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 35 (काहे का रोना / हिंदू बनो )

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 35 (काहे का रोना / हिंदू बनो )


+91 96374 62211: *अवश्य देखें ...*

🌸 बालसंस्कार वर्ग : *स्मरण भक्ति का पहलू : नामजप करना !*

🔸बोधकथा : अक्कलकोट के श्री स्वामी समर्थ

🔸अर्जुन एवं संत जनाबाई की स्मरण भक्ति

*Youtube Link :*

🔅https://youtu.be/A4_LoG4utWE

🔅https://youtu.be/-L_l0QL_l-I


*Facebook Link :*

🔅https://www.facebook.com/HinduAdhiveshan/videos/374190300257674/

काहे का रोना (कविता)

कविता: विपुल लखनवी

हमको जाना तुमको जाना फिर काहे का रोना है।

यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।

कभी-कभी यह बन जाता है कभी-कभी ये टूटे।

सपने नही किसी के पूरे जीवन से ही रुठे।।

जीवन को मथ कर तू जाने दूध से माखन बिलोना है।

यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।

कभी तो रुक कर के यह सोचे धरती पर क्यों आया।

क्यों मन को भटकाया करता तेरे मन जो भाया।

राम नाम को धारण कर ले आत्म रूप का सिलौना है।

यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।

दास विपुल ने मरम है समझा राम नाम रस पाया।

गुरु मिले जो शिव स्वरूप है उनके द्वारे जाया।।

अब जीवन उन्मुक्त हुआ है द्वारे प्रभु के सोना है।

यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।


हिंदू एकता  कविता

कवि : अज्ञात

हिंदू होकर हिंदू का  

               आप सभी सम्मान करो

सभी हिंदू एक हमारे

          मत उसका नुकसान करो

चाहे हिंदू कोई भी हो

            मत उसका अपमान करो

जो ग़रीब हो अपना हिंदू भाई

          धन देकर  धनवान करो

हो गरीब हिंदू की बेटी

          मिलकर कन्या दान करो

अगर हिंदू लड़े चुनाव

        शत प्रतिशत मतदान करो

हो बीमार कोई भी हिंदू

         उसे रक्त का दान करो

बिन घर के कोई मिले हिंदू

         उसका खड़ा  मकान करो

मामला अदालत में गर उसका

        बिना फीस के काम करो

अगर हिंदू दिखता भूखा

        भोजन का इंतजाम करो

अगर हिंदू की हो फाईल

         शीघ्र काम श्री मान करो

 यदि हिंदू की लटकी हो राशि

        शीघ्र आप भुगतान करो

हिंदू को गर कोई सताये

       उसकी आप पहचान करो

अगर जरूरत हो हिंदू को

        घर जाकर श्रमदान करो

अगर मुसीबत में हो हिंदू तो

          फौरन मदद का काम करो

अगर हिंदू दिखे वस्त्र बिन

            उसे अंग वस्त्र का दान करो

अगर हिंदू दिखे उदासा

            खुश करने का काम करो

अगर हिंदू घर पर आये

          जय महादेव बोल सम्मान करो

अगर फोन पर बाते करते

         पहले जय श्री राम कहा करो

अपने से हो बड़ा हिंदू

         उसका पैर छूकर प्रणाम करो

हो गरीब हिंदू का बेटा

         उसकी मदद तमाम करो

बेटा हो गरीब हिंदू का पढ़ता

          कापी पुस्तक दान करो

ईश्वर ने तुम्हें दिया हिंदू कुल

           आप खुद पर अभिमान करो।


Printer Raman Mishra: *_#हमारी महान धार्मिक विरासत:हमारे महान शिक्षक_*

*यदि हमें धर्म के माध्यम से जीवन और जगत के अस्तित्व को समझना हो तो हमें आदि शंकर से  शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। लेकिन हम हिंदू हिंदू का रट लगाना सीख तो गए हैं लेकिन उपनिषदों के सत्य को आत्मसात नहीं कर पाए हैं। इसलिए अनपढ़, अशिक्षित और निरक्षर कथित राजनीतिज्ञ हमारी भावनाओं का दोहन कर रहे हैं। हमारे समक्ष इस पराधीनता की बेड़ी को  ज्ञान और विवेक से तोड़ने की कड़ी और बड़ी चुनौती है।*

📖✒📖✒📖✒📖.

*जगद्गुरु शंकराचार्य विरचितं निर्वाण-षटकम के निम्न दो स्तोत्र को यदि हृदय से आत्मसात करें तो किसी भी प्रकार के सांप्रदायिक  एवं जातीय भेदभाव के विचारों को लोप हो जाएगा। भारत के महान परम्परा को समझने का यही प्रस्थान बिंदु है। यदि इन दो स्रोत्रों का चिंतन/मनन नियमित करें तो जाति और धर्म के नाम पर वोटों की राजनीति करने वाले एवं  पारम्परिक सामाजिक संरचना को विखंडित करने वाले कभी हमें बरगला नहीं सकेंगे।* 🙏

न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ

मदों नैव मे नैव मात्सर्यभावः |

न धर्मो नचार्थो न कामो न मोक्षः

चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||3||

न मुझमें राग और द्वेष हैं, न ही लोभ और मोह, न ही मुझमें मद है न ही ईर्ष्या की भावना, न मुझमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ही हैं, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ…

I have no hatred or dislike, nor affiliation or liking, nor greed, nor delusion, nor pride or

haughtiness, nor feelings of envy or jealousy.

I have no duty (dharma), nor any money, nor any desire (kama), nor even liberation

(moksha).

I am indeed, That eternal knowing and bliss, the auspicious (Shivam), love and

pure consciousness.

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेद:

पिता नैव मे नैव माता न जन्म |

न बंधू: न मित्रं गुरु: नैव शिष्यं

चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||5||

 न मुझे मृत्यु का भय है, न मुझमें जाति का कोई भेद है, न मेरा कोई पिता ही है, न कोई माता ही है, न मेरा जन्म हुआ है, न मेरा कोई भाई है, न कोई मित्र, न कोई गुरु ही है और न ही कोई शिष्य, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ…]

I do not have fear of death, as I do not have death.

I have no separation from my true self, no doubt about my existence, nor have I

discrimination on the basis of birth.

I have no father or mother, nor did I have a birth.

I am not the relative, nor the friend, nor the guru, nor the disciple.

I am indeed, That eternal

knowing and bliss, the auspicious (Shivam), love and pure consciousness.

श्रीमद जगद्गुरु शंकराचार्य विरचितं निर्वाण-षटकम से साभार

Printer Raman Mishra: *हमारी महान धार्मिक विरासत और उसके पवित्र संदेश*

सर्वे भवन्तु सुखिनः

सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।

अर्थ - "सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।"

अथर्ववेद में उल्लिखित शांति पाठ का हिंदी पद्यानुवाद:-

शांति हो पृथ्वी गगन में और जल में स्वर्ग में शांति हो सारी वनस्पति और औषधि वर्ग में शांति हो संसार में सब देव में हो ब्रह्म में शांति का अनुभव करें हम तुष्ट हों अपवर्ग में

May All become Happy,

May All be Healthy (Free from Illness)

May All See what is Auspicious,

May no one Suffer in  any way.

Jb Ashutosh C: Half of the Problem in Life are because we ACT without Thinking......And rest half is because we keep on Thinking without Acting.......!

*अक्रोधेन जयेत् क्रोधमसाधुं साधुना जयेत् |*

*जयेत् कदर्यं दानेन जयेत् सत्येन चानृतम् ||*

क्रोध पर विजय (प्रतिकार स्वरूप )क्रोध न कर के ही ही प्राप्त हो सकती है ,तथा दुष्टता पर विजय सौम्य स्वाभाव तथा सद्व्यवहार द्वारा ही होती है | कंजूसी की प्रवृत्ति पर विजय दान देने से हे सम्भव होती है और झूठ बोलने की प्रवृत्ति पर सत्यवादिता से ही विजय प्राप्त होती हैं |

Anger is won over with calmness (without anger); the immoral are won with morale; a miser is won by giving; lies are won over with truth.

*शुभोदयम् !लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*

+91 96374 62211: 👉 _अवश्य देखे !_

*हिन्दू धर्म की महानता समझानेवाले और भक्तिभाव बढानेवाले ऑनलाइन सत्संग*

भावसत्संग : *भक्त श्री लाखाजी की अद्भुत निष्काम भक्ति*

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Printer Raman Mishra: *वेदांत सीखने की प्रक्रिया में प्राप्त कुछ सीखें*

विद्या दो प्रकार की होती है: 1.अपरा विद्या(Physics) 2. परा विद्या(Meta Physics)

बुद्धि(प्रज्ञा) भी दो प्रकार की होती है: 1. व्यवसायात्मिका बुद्धि 2. निश्चयात्मिका बुद्धि(स्थितप्रज्ञ, ऋतम्भरा प्रज्ञा)

अपरा विद्या(Physics): अपरा विद्या के द्वारा अपरा प्रकृति(Nature) का पूर्ण रहस्यमय ज्ञान प्राप्त होता है। अपरा प्रकृति को ही भौतिक प्रकृति(Material Nature) कहा जाता है। अपरा विद्या के लिये ज्ञान के अनेक ग्रंथ हैं, जैसे चारों वेद, छ: वेदांग, पुराण, दर्शन आदि ॥अपरा विद्या(Physics) के द्वारा भौतिकवाद(Materialism) का पूरा ज्ञान मिलता है।  भौतिकवाद का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किये बिना अध्यात्म(Spirituality) को जानना असम्भव है। अपरा विद्या(Physics) का सम्पूर्ण ज्ञान  प्राप्त किये बिना परा विद्या(अध्यात्म विद्या) (Meta Physics) को जानना असम्भव है॥ प्रकृति(Nature) का सम्पूर्ण रहस्य जाने बिना परा प्रकृति(Superior Nature) और परब्रह्म को जानना असम्भव है। अपरा विद्या(Physics) में अपरा प्रकृति(Nature) का वर्णन, बिन्दु विस्फोट सिद्धांत(Big Bang Theory), कृष्ण विवर सिद्धान्त(Black Hole Theory), गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त(Theory of gravity), सृष्टि तथा प्रलय(Creation and Destruction), प्रकृति के द्वारा सृष्टि वर्णन(Creation from Nature),  प्रकृति के तीन गुण सत्त्व-रज-तम की सृष्टि, काल(समय)-कर्म-स्वभाव की सृष्टि महत्तत्व(cosmic intellect), अहंकार(cosmic ego), मन(cosmic mind), इन्द्रियाँ(senses), पंच तन्मात्रा(five subtle elements), पाँच महाभूत (five gross elements) पृथ्वी-जल-अग्नि-वायु- आकाश की सृष्टि, प्रकृति के सभी तत्त्वों द्वारा विराट ब्रह्माण्ड(Universe) की सृष्टि का विस्तार से वर्णन है॥ अंतरिक्ष, चौदह लोक, ध्रुव तारा(Pole Star), सप्तर्षि मण्डल, शिशुमार चक्र(Spiral galaxy), परमेष्ठी मण्डल आकाश गंगा(Milky Way), सभी नक्षत्र(constelletions),  सूर्यलोक, चन्द्रलोक, सभी ग्रहों(Planets), सौर मण्डल(solar system), खगोल एवं भूगोल, पृथ्वीलोक का विस्तार से वर्णन किया हुआ है॥

परा विद्या(अध्यात्म विद्या) (Meta Physics):

अध्यात्म विद्या विद्यानां वाद: प्रवदतामहम्॥ (गीता)

सा विद्या परमा मुक्तेर्हेतुभूता सनातनी।

संसारबन्धहेतुश्च सैव सर्वेश्वरेश्वरी॥ (दुर्गा सप्तशती)

भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवद् गीता के दशम अध्याय विभूतियोग में श्लोक न .32 में परा विद्या का वर्णन करते हुए कहते हैं ''अध्यात्म विद्या विद्यानाम्'' अर्थात् मै समस्त विद्याओं में अध्यात्म विद्या(परा विद्या) (Meta Physics) हूँ॥ परा विद्या को ही ''अध्यात्म विद्या, ब्रह्मविद्या तथा परा विज्ञान'' कहा गया है॥ परा विद्या के द्वारा मूल प्रकृति एवं परब्रह्म का पूर्ण ज्ञान होता है इसीलिए इसे ''ब्रह्मविद्या'' भी कहा जाता है॥

दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में परा विद्या(Meta Physics) का वर्णन किया गया है। मूल प्रकृति भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुरसुन्दरी ही सनातनी परा विद्या हैं॥ परा विद्या सनातनी ब्रह्मविद्या है। परा विद्या संसार के बन्धन से मुक्ति देने वाली सनातनी अध्यात्म विद्या है॥ परा विद्या संसार-बन्धन और मोक्ष की हेतुभूता सनातनी देवी तथा सम्पूर्ण ईश्वरों की भी अधीश्वरी हैं॥

अध्यात्म विद्या सम्बन्धी ग्रंथ विशेष रूप से ब्रह्मसूत्र(वेदान्त दर्शन) परा विद्या का स्वरूप है॥ ब्रह्ममीमांसा(वेदान्त सूत्र) के द्वारा ही परब्रह्म एवं परा प्रकृति का पूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है॥ वेदान्त में ब्रह्म के बारे में विस्तार से मीमांसा की गयी है इसीलिए वेदान्त को ''ब्रह्मसूत्र या ब्रह्ममीमांसा'' कहा गया है। ब्रह्मसूत्र और श्रीमद भगवद् गीता में सनातन परब्रह्म और परा प्रकृति का विस्तार से वर्णन है, सनातन ब्रह्म को प्राप्त करने तथा मोक्ष (ब्रह्मनिर्वाण) प्राप्त करने के सनातन मार्ग का वर्णन है॥ वेदान्त साधना करते हुए निर्विकल्प समाधि के द्वारा परब्रह्म एवम् परा प्रकृति का एकत्व का अनुभव एवं साक्षात्कार होता है तभी परा विद्या में पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है॥ वेदान्त दर्शन के प्रस्थानत्रयी के अन्तर्गत ब्रह्मसूत्र एवं श्रीमद भगवद् गीता का विशेष महत्व है इसीलिए श्रीमद भगवद् गीता को ''ब्रह्मविद्या योगशास्त्र'' कहा गया है॥ परा विद्या के द्वारा साधक को जीव और ब्रह्म की एकता का अनुभव होता है, सर्वत्र ब्रह्मदृष्टि प्राप्त होती है, परम पुरुष(पुरुषोत्तम) (Supreme Person) और परा प्रकृति(Superior Nature)में कोई भेद नहीं है दोनों एक ही है, अभेद हैं ऐसा सत्य ज्ञान प्राप्त होता है॥ साधक गुणातीत हो जाता है, स्थितप्रज्ञ हो जाता है॥

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*शरद उपाध्याय*

हिंसा और घृणा का प्रसार न करें। यह हमारी महान परंपरा के विरुद्ध है। ज्ञान प्राप्ति के लिए सतत क्रियाशील रहें। जिस क्षेत्र में आप का अध्ययन मनन न हों तो उस क्षेत्र में मौन रहें।  यदि धार्मिक होना चाहते हैं तो उपनिषदों के अध्ययन में विशेष रुचि लें। मध्य युग के संत कवियों(कबीर, तुलसी, सूर, मीरा, रसखान, नामदेव, तुकाराम, स ह जो बा ई, रैदास, रहीम, रसखान, नानक आदि )  स्वामी विवेकानंद और अरविंदो घोष जैसे महान विभूतियों के साहित्य की नियमित संगत करें। कूप - मंडूपों, पोंगा पंडितों और रूढ़िवादी कट्टरपंथियों से दूर रहें।🙏

Printer Raman Mishra: भारतीय विद्वान शब्द को ब्रह्म अर्थात् ईश्वर का रूप कहते हैं। शब्दाद्वैतवाद के अनुसार शब्द ही ब्रह्म है। उसकी ही सत्ता है। ... अर्थात् शब्द रूपी ब्रह्म अनादि, विनाश रहित और अक्षर (नष्ट न होने वाला) है तथा उसकी विवर्त प्रक्रिया से ही यह जगत भासित होता है।

अब महत्वपूर्ण यह है कि इन पवित्र शब्दों का प्रयोग आप किस प्रयोजन से करते हैं और किसकी प्रेरणा से करते हैं। यदि करते हैं तो सत्य के प्रति कितने सजग हैं। यूं बैठे ठा ले इस शब्द ब्रम्ह से बिना किसी उचित या प्रामाणिक स्रोत के किसी महापुरुष के चरित्र का हनन अनैतिक कार्य है। हमारे इस सामंती समाज में ऐसे बहुत से लंपट और कायर मिलेंगे जो किसी की मां, बहन या परिवार के प्रति अपशब्दों का प्रयोग कर अपनी भड़ास को शांत करते हैं। क्या यह उचित और नैतिक है? यदि हम सचमुच किसी धर्म, दर्शन या अध्यात्म की महान परंपरा से सम्बद्ध हैं तो शब्दों का प्रयोग पवित्र मनोभाव से सजग हो कर करना चाहिए। आलोचना और चरित्र हनन के अंतर को समझना आवश्यक है। जब आलोचना के लिए हमारे पास तर्क समाप्त हो जाते हैं, तब हम मां, बहन, पिता, आदि सम्बन्धों के माध्यम से अपनी घृणा को अभिव्यक्ति देने लगते है। भारतीय धर्म और अध्यात्म परंपरा में इसी कुत्सित घृणा को वर्जित माना गया है। अत: मित्रों, शब्द ब्रम्ह का प्रयोग करते हुए हमें भारतीय धर्म और अध्यात्म परंपरा को नजरंदाज नहीं करना चाहिए।🙏

+91 96374 62211: *अवश्य देखें ...*

🌸 बालसंस्कार वर्ग : *भगवान को प्रिय, स्मरण करनेवाला भक्त !*

🔸 बोधकथा : संत ज्ञानेश्वरजी का योग सामर्थ्य

🔸 स्मरण भक्ति कैसी करनी चाहिए ?

🔅https://youtu.be/REYDn2AMe-E

🔅https://youtu.be/70Jb6rcDKkA

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Bhakt Gautam Swami R Y Rajput Noida: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4363658097009362&id=430486686993209&sfnsn=wiwspmo&extid=bawioogxfkq4ViPD

http://freedhyan.blogspot.com/2019/09/diffrent-method.html?m=0

Jb Ashutosh C: 'Easily achieved things do not stay Longer.......Things which stay Longer are not Easily Achieved....!

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🌸 नामजप सत्संग : *अविधवा नवमी का शास्त्राधार*

🌸 भावसत्संग : *भक्त खड्गसेनजी की अविचल संतनिष्ठा*

🔸 श्रीकृष्ण जी को क्यों प्रिय है बांसुरी

🔅https://youtu.be/EYLneG3Tz5Q

🔅https://youtu.be/fsiHw7FtCHQ

🔅https://www.facebook.com/HinduAdhiveshan/videos/1317343425126811/

Vs P Mishra: *🌷🌷🌷ओउम्🌷🌷🌷🌺समुद्र के किनारे एक लहर आई। वो एक बच्चे की चप्पल अपने साथ बहा ले गई। बच्चा ने रेत पर अंगुली से लिखा-🌴समुद्र चोर है।🌴

🌞उसी समुद्र के दूसरे किनारे पर कुछ मछुआरों ने बहुत सारी मछली पकड़ी। एक मछुआरे ने रेत पर लिखा-🌴समुद्र मेरा पालनहार है।🌴

🌸 एक युवक समुद्र में डूब कर मर गया। उसकी मां ने रेत पर लिखा-🌴समुद्र हत्यारा है।🌴

💥दूसरे किनारे पर एक ग़रीब बूढ़ा, टेढ़ी कमर लिए रेत पर टहल रहा था। उसे एक बड़ी सीप में अनमोल मोती मिला। उसने रेत पर लिखा-🌴समुद्र दानी है।🌴

🍄अचानक एक बड़ी लहर आई और सारे लिखे को मिटा कर चली गई।

🔥लोग समुद्र के बारे में जो भी कहें, लेकिन विशाल समुद्र अपनी लहरों में मस्त रहता है। अपना उफान और शांति वह अपने हिसाब से तय करता है।

💧अगर विशाल समुद्र बनना है तो किसी के निर्णय पर अपना ध्यान ना दें। जो करना है अपने हिसाब से करें। जो गुज़र गया उसकी चिंता में ना रहें। हार-जीत, खोना-पाना, सुख-दुख इन सबके चलते मन विचलित ना करें। अगर जिंदगी सुख शांति से ही भरी होती तो आदमी जन्म लेते समय रोता नहीं। जन्म के समय रोना और मरकर रुलाना इसी के बीच के संघर्ष भरे समय को ज़िंदगी कहते हैं ।


🌹‘कुछ ज़रूरतें पूरी, तो कुछ ख़्वाहिशें अधूरी।

🌹इन्ही सवालों का संतुलित जवाब है।

🔥ज़िंदगी🔥

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_16.html?m=1

Fb Yashodhara Sharma: धन्यवाद सर🙏

सभी विद्व जनो को प्रणाम मेरा प्रश्न है कि मैं जब ध्यान करती हूँ तो माथे के बीच में एक  सफ़ेद रौशनी दिखती है फिर वो ठहरती नहीं ज्यादा देर विलुप्त हो जाती है कभी नीली हो जाती है।मुझे ध्यान में क्या करना चाहिए जिससे ये रौशनी विलुप्त न हो।

मैं बार बार आँख बंद करती हूँ कोशिश करना चाहती हूँ की वो रौशनी फिर दिखे मगर एक बार विलुप्त हो जाने पे उस दिन तो दोबारा नहीं ही दिखती। ऐसा  सुबह की सामान्य पूजा के समय होता है।

मेरा मार्गदर्शन करें सर।🙏

आपको इसमें घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है यह आपका ध्यान परिपक्वता की ओर बढ़ता जा रहा है।

आप क्या कोई मंत्र जप करती हैं हैं।

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*क्योंकि आपके एक सब्सक्राइब से आपका कुछ नही जाएगा लेकिन आदरणीय सुरेश जी का हौसला बढ़ेगा*

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*हर हर महादेव*

*यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति |*

*काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् ||*

जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता ?

अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।

If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Even the crow fill it's own stomach by it's beak. There is nothing great in working for our own survival.

*शुभोदयम्! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*

Swami Toofangiri Bhairav Akhada: *"जैसे सूर्य के उदय से अंधकार मिट जाता है, ठीक उसी प्रकार सही ज्ञान की प्राप्ति से अज्ञान का नाश हो जाता है और सभी वस्तुएं अपने वास्तविक स्वरूप में दिखने लगती हैं।"*   "श्रीमद्भागवत गीता"                        

                             । सुप्रभात जी ।

Jb Ashutosh C: Confidence comes naturally with Success.But,Success comes only to those who are Confident...!!

 😀😀: http://freedhyan.blogspot.com/2020/09/1-kya-mmstm-vidhi-ham-raat-ke-badle.html?m=1

जी सर ॐ नमः शिवाय का जप करती हूँ

Vs P Mishra: मिलन से विरह सर्वश्रेष्ठ है ।

मिलन में प्रियतम के खोने का डर लगा रहता है , उससे बिछुड़ने का भय रहता है , परंतु विरह में नित प्रति पाने की आशा लगी रहती है , अपने प्रियतम से मिलने की आशा बनी रहती है ।

इसलिए विरह का आनंद सर्वश्रेष्ठ है ।

मुझे भगवान को पाने की इच्छा है परंतु मैं नहीं चाहता मैं उनसे मिलूँ बल्कि यह चाहता हूँ कि उनसे मिलने की इच्छा दिन प्रति दिन क्षण दर क्षण  बलवती हो जाये और विरह की पीड़ा का आनंद मिलता रहे ।

उनसे मिलने को तड़पता भी रहूँ पर वह मिले भी नहीं ।

रोता रहूँ तव दर्शन हित राधे ।

बस यही जो आनंद है न वही आनंद सभी आनंद पर भारी है ।

रोने में जो रस वह नहीं मोक्ष धामा ।

उनके प्रेम में जो तड़प है , एकमात्र वही आनंद है ।

जग को लगता है यह पीड़ा वाले अश्रु हैं , पर वह तो परमानंद के अश्रु , तड़प और पीड़ा है ।

आम लोग क्या जानें की पीड़ा का आनंद क्या होता है ।

यह विरह का आनंद मिलन के आनंद से कई गुना आनंददायक होता है ।

इसी विरह में मीरा , तुलसीदास , सूरदास इत्यादि आनंदमग्न रहा करते थे ।

इसी विरह की पीड़ा के आनंद की अधिष्ठात्री बृज की गोपियाँ एवं मदनाख़्य प्रेम की अधिष्ठात्री राधा रानी भगवान कृष्ण की पत्नी रुक्मणि लक्ष्मी आदि से भी अनंत गुना ऊपर हो गईं ।

बस विरह , प्रेम को पाने की व्याकुलता , तड़प , पीड़ा के आनंद को बढ़ाते जाना है और उस आनंद को भी आनंद प्रदान करने वाला विरहानंद का आनंद लेना है ।

न गरज किसी से वास्ता , मुझे काम अपने ही काम से !

तेरे दीद से, तेरे फिक्र से, तेरे शौक से , तेरे नाम से !!

तेरी बेरुखी के सदके , तेरी सादगी को सिजदा !

तेरा गम है मौज ए दरिया , हर रजा में तेरी राजी !!

तड़पाते हैं खुद जिसे उस लुत्फ़ ए तड़प को क्या कहिये!

अजी शुक्रिया कहिये, चुप रहि

सुप्रभातये या अंदाज ए वफ़ा कहिये !

 

 

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 36 (निशुल्क प्रशासनिक कोचिंग)  

हिंदू एकता (कविता)

 हिंदू एकता  (कविता) 


कवि : अज्ञात 


हिंदू होकर हिंदू का  

               आप सभी सम्मान करो

सभी हिंदू एक हमारे

          मत उसका नुकसान करो

चाहे हिंदू कोई भी हो

            मत उसका अपमान करो

जो ग़रीब हो अपना हिंदू भाई

          धन देकर  धनवान करो

हो गरीब हिंदू की बेटी

          मिलकर कन्या दान करो

अगर हिंदू लड़े चुनाव

        शत प्रतिशत मतदान करो

हो बीमार कोई भी हिंदू

         उसे रक्त का दान करो

बिन घर के कोई मिले हिंदू

         उसका खड़ा  मकान करो

मामला अदालत में गर उसका

        बिना फीस के काम करो

अगर हिंदू दिखता भूखा

        भोजन का इंतजाम करो

अगर हिंदू की हो फाईल

         शीघ्र काम श्री मान करो

 यदि हिंदू की लटकी हो राशि

        शीघ्र आप भुगतान करो

हिंदू को गर कोई सताये

       उसकी आप पहचान करो

अगर जरूरत हो हिंदू को

        घर जाकर श्रमदान करो

अगर मुसीबत में हो हिंदू तो

          फौरन मदद का काम करो

अगर हिंदू दिखे वस्त्र बिन

            उसे अंग वस्त्र का दान करो

अगर हिंदू दिखे उदासा

            खुश करने का काम करो

अगर हिंदू घर पर आये

          जय महादेव बोल सम्मान करो

अगर फोन पर बाते करते

         पहले जय श्री राम कहा करो

अपने से हो बड़ा हिंदू

         उसका पैर छूकर प्रणाम करो

हो गरीब हिंदू का बेटा

         उसकी मदद तमाम करो

बेटा हो गरीब हिंदू का पढ़ता

          कापी पुस्तक दान करो

ईश्वर ने तुम्हें दिया हिंदू कुल

           आप खुद पर अभिमान करो।



काहे का रोना (कविता)

काहे का रोना (कविता) 


विपुल लखनवी 


हमको जाना तुमको जाना फिर काहे का रोना है।

यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।

 

कभी-कभी यह बन जाता है कभी-कभी ये टूटे।

सपने नही किसी के पूरे जीवन से ही रुठे।।

जीवन को मथ कर तू जाने दूध से माखन बिलोना है।

यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।

कभी तो रुक कर के यह सोचे धरती पर क्यों आया।

क्यों मन को भटकाया करता तेरे मन जो भाया।

राम नाम को धारण कर ले आत्म रूप का सिलौना है।

यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।

दास विपुल ने मरम है समझा राम नाम रस पाया।

गुरु मिले जो शिव स्वरूप है उनके द्वारे जाया।।

अब जीवन उन्मुक्त हुआ है द्वारे प्रभु के सोना है।

यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।



 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...