सहस्त्रसार चक्र क्या है
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
वेब चैनल: vipkavi
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नोट : मैं कोई महायोगी होने का। गुरु होने का । महाज्ञानी
होने का अथवा महान आत्मा होने
का दावा नही करता हूँ। मै एक खोजक हूँ और प्रभु कृपा का याचक हूँ जो भारतीय सनातन के रहस्यों को समझना चाहता हूँ
और जन मानस तक पहुचाने का प्रयास
करता हूँ। अतः आप मेरी बात को कोरी कल्पना और गप्प मानने के लिए स्वतंत्र है। किंतु यदि कोई मुझे भारतीय भारतीय ग्रंथों में से कुछ वर्णन लाकर देगा। मैं उसका आभार मानूँगा।
सहस्त्रसार चक्र के बारे में गूगल गुरु मुझे कुछ विशेष न बता सके।
अतः मैने अपने ध्यान से इस चक्र को देखना चाहा और जो देखा वह गलत
सही बताने का प्रयास करता हूँ।
पर जैसा कि सुना यहाँ पर जाने से शरीर चमकता है जमीन से कुछ इंच उठ जाते है। ऐसा मेरे साथ कुछ नही है। मैं योग यानी
कुण्डलनी के साथ वहाँ नही गया बस धारणा और ध्यान से पहुंचा था या यू कहो पातंजली महाराज जिंदाबाद।
कारण यह होता है हठयोग में जब हमारी कुण्डलनी शक्ति मूलाधार से उठकर सहस्त्रसार में पहुंचती है तो समाधि लगती है। जिसमें देहभान और सभी कुछ पीछे छूट जाता है। अब जब भान नहीं मन बुद्धि अहंकार ही नहीं। श्वास भी बेहद धीरे तो कुछ याद रह ही नहीं सकता। क्या हुआ क्या नहीं हुआ य्ह मालूम नहीं पड सकता। अत: मैंनें कृष्ण की प्रार्थना के साथ धारणा का सहारा लिया और ध्यान के सहारे वाहिक रूप से एक दर्शक बन कर वहां पर गया।
मैने एक चन्द्रमा के तरह कुछ धीमा नीला प्रकाश वाला एक नशीला मादक बड़ा सा मैदान देखा।
जिसके बीचो बीच एक फव्वारानुमा लगा था। जिसमे से कुछ
धारायें चारो ओर निकल रही थी। उसमें जल जैसा कुछ रस था। मैं छू न पाया क्योकि मैं दूर था।
उस मैदान के ऊपर एक उल्टी कढाई नुमा पर्दा पड़ा था। उस मैदान के बीचो बीच
चार फलकनुमा आयताकार कन्दीलनुमा
कुछ पीले प्रकाश को लिए घूमता था। वास्तव में यह मुझे उदाहरण देकर समझाया था कि यह ब्रह्मा के चार सिर है जो
लगातार मध्य में घूमते रहते है। इनके हाथो में वेद यानी ज्ञान भरा है। ब्रह्मा फव्वारे के मध्य निकले
एक डंढल ऊपर कमल फूल के मध्य बैठे थे। फव्वारे के नीचे चारो ओर पुष्प पराग का बडा
मैदान जहां मैं खडा हो गया। मैदान के चारो कुछ कुछ सुरजमुखी के फूल जैसी पंखुडियां
जिसमें पीले पीले पर छोटे छोटे अनगिनत पखुडियां जो हजारों में हो सकती है।
अब वह
कितनी परतें थी मैं जान न सका। तब किसी ने बताया यह तुम्हारी अनगिनत नाडियां है।
(ओह जैसा कि कहते हैं कि मानव के शरीर में 72000 सूछ्म नाडिया है जो मां की नाभि
से बच्चे को जाती हैं) पर ब्रह्मा जी के चारो तरफ नीचे 1062 पंखुड़ी का कमलनुमा फूल है। जिसके मध्य में
ब्रह्मा विराजे है। उनके चारो ओर क्रमशः 3,7,15,31,63,127,255, 561 पुष्पदल घेरकर कमल का निर्माण करते है। जो कुल 8 आवरण या लेयर है समाधि की।
ब्रह्म के कुछ ऊपर माँ
सरस्वती 7 तारो की वीणा बजाती है। जिनसे क्रमशः सं रें गं मं पं धं नीं
निकलता है जो संगीत को जन्म देता है। लय की तरंगें छोड़ता है। यह संगीत और भाषा का ज्ञान देती है।
फिर चारो ओर पर्दा रहता है जो महामाया का पर्दा है जब वह हटता है तो बाहर बैठे
हुये शिव पार्वती को कुछ बताते हुए प्रतीत
होते है। इनमें से किसी ने मुझको न देखा पर मैंनें उनको देखा। यह बीच वाला यानी ब्रह्मा
वाला पूरा तन्त्र घूमता रहता है। जैसे आपने गोलाकार पर्दे जो सर्कस में होते थे। कुछ वैसे ही वह ढांककर ऊपर बंधे रहते है। परंतु शिव पार्वती स्थिर थे इसी भान्ति
शिव के चारो जो पर्दा है वह महाकाली का है और उसके अंदर शिव किंतु बाहरी सतह पर रुद्र विराजमान है।
और रुद्र के चारो ओर निराकार
शक्ति यानी दुर्गा का आवरण रूपी धुंध है। फिर अपनी खोपड़ी की हड्डी की गोल दीवार पर सामने मत्था।
वास्तव में जब मनुष्य जन्म लेता है तो मानव शरीर उसकी नाभि से माँ को जुड़ी रहती है जिसमे 72 हजार नाड़ी रहती है। अर्थात विष्णु की यानी जननी की नाभि के मध्य निकला सहस्त्रसार कमल दल जिस पर ब्रह्मा विराजमान। वो
ही जुड़ाव है यहाँ का। यहाँ पर
फ़व्वरो से रस निकलता है। जो पूरे मैदान को सींच रहा था। पर कमलदल को नहीं भिगो रहा
था। और यदि कोई इन पर्दो को हटाकर यह रस पान करता रहे तो वह शायद महायोगी बन जायेगा।
वैसे मैं यह समझता हूं कि ध्यान चक्र से चार अंगुल
दूरी पर और फिर दो अंगुल दूरी पर कोई चक्र होने चाहिये। यानी आज्ञा चक्र और सिर के
मध्य ब्रह्म दार के बीच दो चक्र और होने चाहिये।
यह ज्ञानी जन बतायें क्योकि सप्त
चक्र की गणना समझ में नहीं आती हैं। जब नव दुर्गा यानी नौ प्रकार की शक्तियां जो
अंतिम हैं तो नव चक्र भी होने चाहिये तब ही हमारे शरीर में नव दुर्गा का वास होगा।
दूसरी बात जहां शिव पार्वती सम्वाद चलता है|। उनके चारो ओर चमक दार बिजलियां चमकती रहती हैं। जो 64 हैं। इनको योगिनी बताया गया। वह स्थान कैलाश पर्वत बताया गया जो स्थिर
है। फिर रुद्र और काली का स्थान।
अगर ध्यान चक्र और ब्रह्म संरन्ध्र के बीच दूरी आठ अंगुल हो तो बीचो बीच ब्रह्मा फिर परागकणो का मैदान फिर छोटे पंखुडीवाली सूरजमुखी फूल जैसी परिधि फिर परदा शिव पार्वती फिर परदा और उसके बिल्कुल नजदीक रुद्र और काली फिर मत्था और खोपडी के कवच की हड्डी। तो इसके हिसाब से केंद्र से तीन/चार अंगुल नीचे ध्यान चक्र की सीध जुदाई रेखा में एक चक्र, जिसका बीज मंत्र शं यानी शम्भु हुआ।
तो इसका मतलब इस चक्र या द्वार का बीज मंत्र ॐ शिव शम्भो बनेगा। और उसके लगभग दो / तीन अंगुल नीचे फिर
रुद्र चक्र, जिसका बीज शब्द अगर वीं है तो यह वीरभद्र की ओर इशारा करता है। यानी रुद्र का भी वीरभद्र अवतार ही मृत्यु का निरमाण करता है। तो इस चक्र या द्वार का बीज मंत्र ॐ वीं वीरभद्राय नम: बनेगा।
यह द्वार लगभग तीसरे खडे नेत्र के ऊपर की कोर पर। फिर उसके एक/दो अंगुल नीचे ध्यान चक्र।
इसमें क्या खेल हैं यह तो समय के साथ ही पता चलेगा।
वैसे मुझको लगता है जाने सही या गलत कुंडलनी मानव की
नाभि में जुडती है और उल्टे ॐ का आकार लेती है। और इसकी जो धागा है यानी चक्रो को
जोडनेवाला सिस्टम वह ब्रह्म द्वार से आगे झुक कर ध्यान चक्र तक आता है।
यह सारा सिस्टम हमारी गोल खोपडी के केंद्र से कुछ
सेमी नीचे मैदान के रुप में था। तो इसका मतलब यह हुआ जिसकी खोपडी जितनी गोल उतनी
ही शक्ति का धुंध समायेगा। यानी वह उतना बडा ध्यानी बन सकेगा। ऐसा है क्या मुझे
नहीं पता।
हां उस केंद्र के फव्वारे की रसधार मैदान और फूल की पंखुड़ियों को ताजा रखती है। इन पर जो संगीत है वह
क्रमबद्द है। यदि किसी के मस्तिष्क का संगीत बिगड़ेगा तो वह कई प्रकार के पागलपन रोग को जन्म देगा। पागलपन का कारण एक तो रस सूखना दूसरा संगीत की लय
बिगड़ना हो सकता है।
ॐ हरि ॐ
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल