उत्तर
प्रदेश से पैदा अक्षरधाम। बना गुजरात की शान
सनातन पुत्र देवीदास विपुल
भगवान स्वामीनारायण का जन्म 3 अप्रैल 17 उत्तर प्रदेश,
भारत में हुआ था । उन का असली नाम घनश्याम पांडे था तथा इनके पिता का
नाम श्री हरि प्रसाद राय माता का नाम भक्ति देवी था ।
इनके माता-पिता ने ही इनका नाम घनश्याम रखा
था । बालक के हाथ और पद और पैरों से ब्रज उधर्व रेखा तथा कमल का चिन्ह देखकर
ज्योतिषियों ने यह कह दिया कि यह बालक लाखों लोगों को जीवन की सही दिशा देगा । 5 वर्ष में बालक को
अक्षर ज्ञान दिया गया तथा 8 वर्ष में जनेऊ संस्कार हुआ |
वे केवल 11 वर्ष का थे तब ही इस छोटी अवस्था में उसने अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया
। बचपन में ही माता और पिताजी का देहांत हो गया तथा कुछ समय बाद अपने भाई से किसी
बात पर विवाद होने पर उन्होंने घर छोड़ दिया और अगले 7 साल
तक पूरे देश की परिक्रमा की |
अब लोग उन्हें नीलकंठवर्णी कहने लगे | इस दौरान उन्होंने गोपाल योगी से अष्टांग
योग सिखा व उत्तर में हिमालय, दक्षिण में कांची श्रीरंग पुरम
रामेश्वरम तक गए । इसके बाद पंढरपुर वह नासिक होते हुए गुजरात आ गए ।
एक दिन यह नीलकंठ मांगरोल के पास ‘लोज’ गांव में पहुंचे । उनका
परिचय स्वामी मुक्तानंद से हुआ जो स्वामी रामानंद के शिष्य थे । नीलकंठवर्णी स्वामीनारायण, रामानंद के दर्शन को उत्सुक थे |
उधर रामानंद जी भी प्राय भक्तों से कहते थे कि असली नट तो तब आएगा,
मैं तो उसके आगमन से पूर्व डुगडुगी बजा रहा हूं, भेंट के बाद रामानंद जी ने उन्हें स्वामी मुक्तानंद के साथ ही रहने को कहा
। नीलकंठ वर्णी ने उनका आदेश शिरोधार्य किया |
उन दिनों स्वामी मुक्तानंद कथा करते थे । उसमें स्त्री तथा पुरुष दोनों
हीं आते थे । नीलकंठ वर्णी ने देखा की अनेक श्रोता और साधुओं का ध्यान कथा की ओर
ना होकर महिलाओं की ओर होता है । उन्होंने पुरुष तथा स्त्रियों के लिए अलग कथा की
व्यवस्था की तथा प्रयास पूर्वक महिला कथावाचकों को भी तैयार किया।
उनका मत था कि सन्यासी को उसके लिए बनाए गए सभी नियमों का कठोरता
पूर्वक पालन करना चाहिए | कुछ समय बाद स्वामी रामानंद ने नीलकंठ वर्णी को पीपल आना गांव में शिक्षा
देकर उनका नाम सहजानंद रख दिया ।
एक साल बाद जयपुर में उन्होंने सहजानंद को अपने संप्रदाय का आचार्य
पदवी दे दिया । इसके कुछ समय बाद स्वामी रामानंद जी का स्वर्गवास हो गया, अब स्वामी सहजानंद ने गांव-गांव घूमकर
कथा-प्रचार किया | उन्होंने निर्धन सेवा का लक्ष्य बनाकर सब
वर्गों को अपने साथ जोड़ा इससे उनकी ख्याति सब और फैल गई |
वह अपने शिष्यों को 5 व्रत लेने को कहते थे, इनसे मांस, मदिरा, चोरी,
व्याभिचार का त्याग तथा सर्व धर्म को पालन की बात होती थी । भगवान स्वामीनारायण
ने अजय नियम बनाए तथा सभी उनका कठोरता से पालन करते थे ।
उन्होंने यज्ञ में हिंसा, बली प्रथा, सती प्रथा,
कन्या हत्या, भूतबाधा जैसी कृतियों को बंद
कराया । उनका कार्यक्षेत्र मुख्यता गुजरात रहा ।प्राकृतिक आपदा आने पर वह बिना
भेदभाव के सब की सहायता करते थे । इस सेवाभाव को देखकर लोग उन्हें भगवान के अवतारी
मानने लगे |
भगवान स्वामीनारायण जी ने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया तथा इनके निर्माण
के समय में स्वयं सबके साथ श्रमदान करते थे । भगवान स्वामीनारायण अपने कार्यकाल
में अहमदाबाद मूली भुज जेतलपुर धोलका वडताल बड़ा धोलेरा तथा जूनागढ़ में भव्य
मंदिर का निर्माण किया, जो मंदिरों की स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है ।
धर्म के प्रति इस प्रकार श्रद्धा भाव जगाते हुए भगवान स्वामीनारायण
1 जून 1831
में अपने देह छोड़ दी आज उनके अनुयायी विश्व भर में फैले हैं वह मंदिरों
को सेवा विज्ञान का केंद्र बना कर काम करते हैं ।
उत्तर प्रदेश में छप्पैया के घनश्याम पांडे ने स्वामीनारायण संप्रदाय
की ऐसी दुनिया रची कि साल 2000 तक केवल अमरीका में स्वामीनारायण के 30 मंदिर हो गए. अमरीका के साथ दक्षिण अफ़्रीका, पूर्वी
अफ़्रीका और ब्रिटेन में भी स्वामीनारायण के बहुत से मंदिर हैं.
अहमदाबाद के वरिष्ठ गांधीवादी राजनीतिक
विश्लेषक प्रकाश शाह कटाक्ष करते हुए कहते हैं, ''6 दिसंबर 1992
के पहले भी गुजरात का अयोध्या कनेक्शन था और इसके लिए हमें घनश्याम
पांडे का शुक्रगुज़ार होना चाहिए. घनश्याम पांडे द्वारका आए थे. यहां आने के बाद सहजानंद
स्वामी बने और आगे चलकर स्वामीनारायण बन गए. उन्हें श्री जी महाराज भी कहते थे.''
घनश्याम पांडे जवानी
के दिनों में अयोध्या के छप्पैया से सौराष्ट्र में द्वारका पहुंचे थे. द्वारका के
बाद वो अहमदाबाद पहुंचे. लोगों का कहना है कि पांडे जी ने अपने करिश्माई
व्यक्तित्व की ऐसी छाप छोड़ी कि वो जल्द ही घनश्याम से सहजानंद स्वामी बन गए.
प्रकाश शाह कहते हैं
कि जब 200 साल पहले घनश्याम पांडे ने स्वामीनारायण संप्रदाय
की नींव रखी तो कुछ अच्छी चीज़ें भी हुईं.
उन्होंने ग़ैर-ब्राह्मण और ग़ैर-बनिया जातियों को मुख्यधारा में
लाने की कोशिश की. प्रकाश शाह मानते हैं कि ''हर संगठन ख़ुद को स्थापित करने के लिए पहले कुछ
ऐसा करता है ताकि उसके साथ ज़्यादा से ज़्यादा लोग जुड़ सकें लेकिन, जैसे ही चीज़ें संगठित हो जाती हैं तो असली चेहरा सामने आता है.''
गौरांग जानी कहते हैं कि सहजानंद स्वामी ने जीते जी अपना मंदिर बनवाया
था.
सेंटर फोर सोशल नॉलेज एंड एक्शन अहमदाबाद के अच्युत याग्निक बताते हैं
कि 19वीं सदी में ही
स्वामीनारायण ने अपने दो भतीजों को यूपी से बुलाया. एक को कालूपुर मंदिर की गद्दी
दी और दूसरे भतीजे को वडताल मंदिर की.
लेकिन उनका दोनों भतीजों को गद्दी देना लोगों को रास नहीं आया. इसे
लेकर विरोध शुरू हुआ. विरोध के बाद स्वामीनारयण संप्रदाय दो खेमों में बंट गया. घनश्याम
पांडे के खेमे ने वंश परंपरा को स्वीकार किया और दूसरे खेमे ने साधु परंपरा को
अपनाया.
20वीं शताब्दी में साधु परंपरा के शास्त्री महाराज ने नई गद्दी चलाई. इस गद्दी
को नाम दिया गया बोचासनवासी अक्षय पुरुषोत्तम संप्रदाय. यह संप्रदाय आधुनिक समय
में बाप्स नाम से लोकप्रिय है. बाप्स परंपरा के लोगों को ही साधु परंपरा वाला कहा
जाता है.
स्वामीनारायण संप्रदाय वैष्णव परंपरा का हिस्सा है और कहा जाता है कि
यह ब्राह्मणों और जैनों के प्रभुत्व को चुनौती देते हुए सामने आया. इसने
वल्लभाचार्य परंपरा को भी कटघरे में खड़ा किया.
अच्युत याग्निक बताते हैं कि बाप्स परंपरा वालों में पाटीदारों का
प्रभुत्व रहा है. बाप्स परंपरा के सामने वंश परंपरा वाले स्वामीनारायण संप्रदाय की
ताक़त कमतर होती गई. अक्षर पुरुषोत्तम पाटीदार थे.
याग्निक कहते हैं, ''19वीं शताब्दी के आख़िर में पाटीदारों की आर्थिक
हैसियत काफ़ी मजबूत हुई. इसी दौरान पाटीदार समुदाय से ही ताल्लुक रखने वाले
वल्लभभाई पटेल का भी दायरा बढ़ रहा था.''
दरअसल, 19वीं सदी के
अंत और बीसवीं सदी के आख़िर में यहां अकाल पड़ा था. याग्निक कहते हैं कि ''अकाल से बचने के लिए पाटीदार बड़ी संख्या में पूर्वी अफ़्रीका और इंग्लैंड
गए. इसके साथ ही वल्लभभाई पटेल के कारण बड़ी संख्या में लोगो कांग्रेस में भी
शामिल हुए. पाटीदारों ने छोटे, मझोले उद्योग-धंधों में भी पांव
पसारना शुरू कर दिया था.
अक्षर पुरुषोत्तम के बाद योगी महाराज को गद्दी मिली और इनके बाद
प्रमुख स्वामी आए. प्रमुख स्वामी भी पाटीदार ही थे. दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में प्रमुख
स्वामी की ही मूर्ति है.
याग्निक बताते हैं कि गुजरात में दो तरह के बनिया होते हैं- एक
वैष्णव बनिया और दूसरे जैन बनिया. इन दोनों की ताक़त को पाटीदारों ने ही चुनौती
दी. गुजरात यूनिवर्सिटी में सोशल साइंस के प्रोफ़ेसर गौरांग जानी बताते हैं कि
गुजरात में पाटीदारों का उभार ही स्वामीनारायण का उभार है.
स्वामीनारायण संप्रदाय की ताक़त का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि 1987 में गुजरात के जाने-माने इतिहासकार
मकरंद मेहता ने स्वामीनारायण के ख़िलाफ़ एक लेख लिखा तो मुक़दमा कर दिया गया. वो मुक़़दमा
आज भी चल रहा है. तब कांग्रेस की सरकार थी और अमर सिंह चौधरी मुख्यमंत्री थे.
याग्निक कहते हैं वल्लभाचार्य और
विट्ठलाचार्य के महिलाओं को लेकर स्कैंडल के कारण स्वामीनारयण को और बल मिला. इसी
स्कैंडल को ध्यान रखते हुए यह नियम बनाया गया कि स्वामीनारायण संप्रदाय के साधु महिलाओं
को देख भी नहीं सकते. यह नियम आज भी उतना ही सख्त है.
गौरांग जानी ने बताया, ''वल्लभभाई
पटेल के पिताजी स्वामीनारायण मंदिर में ही बैठे रहते थे. राजमोहन गांधी ने पटेल पर
लिखी अपनी किताब में एक दिलचस्प वाक़ये का ज़िक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि
स्वामीनारायण का एक साधु एक मुक़दमे में फंस गया तो वल्लभभाई पटेल के पिता ने अपने
बेटे से उस साधु को बचाने के लिए कहा था. इस पर सरदार पटेल ने अपने पिता को कहा था
कि उसने जो किया उसे वो ख़ुद भुगतेगा.''
प्रकाश शाह के अनुसार, ''स्वामीनारायण
संप्रदाय और ब्रिटिश शासकों के बीच समझौता था. ये एक दूसरे की मदद करते थे. गांधी
जी को लगता था कि यह संप्रदाय धर्म के नाम पर पागलपन को बढ़ावा दे रहा है.''
आख़िर मकरंद मेहता के उस लेख में क्या था कि उन पर मुक़दमा किया गया?
प्रकाश शाह कहते हैं कि मकरंद मेहता ने जो लिखा उसका ठोस आधार था.
उन्होंने लिखा था कि सहजनानंद स्वामी ने अपने शिष्यों से कहा कि ''आप मेरी इतनी प्रशंसा कीजिए कि मेरी
महिमा हर जगह हो.'' उन्होंने चमत्कारों के बारे में लोगों से
बताने के लिए कहा था.
प्रकाश शाह बताते हैं कि पिछले 25 सालों में स्वामीनारायण संप्रदाय का राजनीति
से संपर्क गहरा हुआ है. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी से इनके संबंध काफ़ी
अच्छे रहे हैं.
शाह कहते हैं, ''जैसे बीजेपी के हिन्दू धर्म के अन्य संप्रदायों
और शक्ति के केंद्रों से अच्छे संबंध हैं वैसे ही यहां स्वामीनारायण से भी है.
चाहे बाबा रामदेश हों या श्री श्री रविशंकर. सबसे बीजेपी के अच्छे संबंध हैं.
बीजेपी का स्वामीनारायण के साथ रिश्ता काफ़ी अहम है. स्वामीनारायण का ही एक संगठन
है अनुपम मिशन जो यूनिवर्सिटी में वीसी की नियुक्ति करता है.''
प्रकाश शाह कहते हैं स्वामीनारायण मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए
कांग्रेस ने गुजरात में सत्याग्रह शुरू किया था. मंदिरों में पहले दलितों को
प्रवेश नहीं था. शाह कहते हैं कि स्वामीनारायण में मंदिर में भी साधुओं के बीच
जाति को लेकर भेदभाव है. उन्होंने कहा कि भगवा ऊंची जाति वाले पहनते हैं और सफ़ेद
नीची जाति वाले.
गौरांग जानी कहते हैं, ''बीजेपी के लिए स्वामीनारायण संप्रदाय ऊर्वर ज़मीन
की तरह रहा है. बीजेपी ने गांधी को पीछे रख दिया और स्वामीनारायण को आत्मसात कर
लिया''۔
अहमदाबाद के वरिष्ठ पत्रकार दर्शन देसाई के मुताबिक स्वामीनारायण
मंदिर से राजनीतिक पार्टियों को चंदा भी मिलता है.