प्रेम से उपजा जहाँ यह
सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक”
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प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।
प्रेम से सब सृष्टि निर्मित। प्रेम पग पग पर मिले।।
प्रेम की परिभाषा इतनी। न तनिक मुझको मिले।।
प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।
प्रेम न हो गर जहाँ में। सृष्टि यह मिट जाएगी।।
दानवी असुरों के संग। यह धरा मिट जाएगी।।
आंख खोलो और देखो। प्रेम से ही सब मिले।।
प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।
प्रेम बिन गर सोंचते हो। तुम ख़ुदा पा जाओगे।।
मिट जाओगे इस जहाँ से। पर नही कुछ पाओगे।।
प्रेम कर लो सृष्टि से तुम। प्रेम से अल्लाह
मिले।।
प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।
चाहे कितनी पूजा कर लो। अता कर कितनी नमाज़ें।।
चाहे कितनी ऊंची कर लो। बाग की अपनी आजाने।।
पर तुझे न मिल सकेगा। चाहे कुछ भी कर ढले।।
प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।
चाहे कोई मानव हो या।जीव हो गर भी पराया।।
एक प्रभु सबमें छुपा है। नही कोई है जीव जाया।।
प्रेम करना सीख पगले। प्रेम से खुद को मिले।।
प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।
प्रेम करना श्रेष्ठ सबसे। कह रहा कविवर विपुल।।
प्रेम से कुछ भी न ऊंचा। प्रेम चलकर बनता कुल।।
प्रेम की वाणी लिखी है। प्रेम से वाणी खिले।।
प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।
विपुल लखनवी। नवी मुंबई।