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Wednesday, October 21, 2020

   क्या तैयारी करें छठवें दिन की। मां कात्यायनी

 

   क्या तैयारी करें छठवें दिन की। मां कात्यायनी


आशा है आप सब ने आज  सचल  मन वैज्ञानिक ध्यान विधि को मां स्कन्दमाता मंत्र के साथ संपन्न किया होगा और दिन भर मां  का मंत्र पढ़कर शाम को आरती और हवन किया होगा।


आपको छठवें दिन मां स्कंदमाता की पूजन करनी है। रात्रि में शयन के पूर्व मां स्कंदमाता को नमन करने के पश्चात मां कात्यायनी का मंत्र जप करते हुए शयन करें।


कल प्रातः सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि के साथ लिंक में दिए हुए मंत्र के साथ दिनभर जाप करें।
रात्रि में पुनः आरती और हवन करें।


मैंने आरतियों का संकलन किया था लेकिन प्रथम दिवस और द्वितीय दिवस की आरती में मात्रिक दोष  मिले जिसके कारण गेयता में बहुत ही परेशानी हुई।


इस कारण मां की कृपा से मैंने अब सभी देवी आंखों की आरती लिख लिया है और आज मां सरस्वती की कृपा से माताओं की नई आरती लिख दी है पोस्ट भी कर दी है।

‌मां कात्यायनी की आरती को वीडियो पर देखने हेतु अथवा पढ़ने हेतु नीचे का लिंक दबाएं👇👇


मां के विषय में अन्य जानकारी हेतु👇👇


इसके बाद मां स्कंदमाता की गायत्री पढ़ना न  भूले।

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जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥
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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 

Tuesday, October 20, 2020

 

   क्या तैयारी करें पांचवें दिन की। मां स्कंदमाता

सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

आशा है आप सब ने आज  सचल  मन वैज्ञानिक ध्यान विधि को मां कुष्मांडा मंत्र के साथ संपन्न किया होगा और दिन भर मां कुष्मांडा  का मंत्र पढ़कर शाम को आरती और हवन किया होगा।



आपको पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजन करनी है। रात्रि में शयन के पूर्व मां कुष्मांडा को नमन करने के पश्चात मां स्कंदमाता का मंत्र जप करते हुए शयन करें।


कल प्रातः सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि के साथ लिंक में दिए हुए मंत्र के साथ दिनभर जाप करें।
रात्रि में पुनः आरती और हवन करें।


मैंने आरतियों का संकलन किया था लेकिन प्रथम दिवस और द्वितीय दिवस की आरती में मात्रिक दोष  मिले जिसके कारण गेयता में बहुत ही परेशानी हुई।



इस कारण मां की कृपा से मैंने अब सभी देवी आंखों की आरती लिख लिया है और आज मां सरस्वती की कृपा से मां स्कंदमाता की और अन्य माताओं की नई आरती लिख दी है पोस्ट भी कर दी है।

‌ मां स्कंदमाता की आरती को वीडियो पर देखने हेतु अथवा पढ़ने हेतु नीचे का लिंक दबाएं👇👇


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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 

Monday, October 19, 2020

महिषासुरमर्दिनी रूप की एकमात्र आरती


 वीडियो देखने हेतु नीचे लिंक दबाएं

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स्तुतिकार मां चरण वंदनकार: सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"  

जय महिषासुरमर्दिनी, जय महिषासुरमर्दिनी॥
सकल विश्व रूप मनोहर, कालरूप भक्षिणी॥
                               जय महिषासुरमर्दिनी॥

सगुण रूप सब हैं तेरे, निर्गुण रूप धरे।
द्वैताद्वैत विकारहीन, सृष्टि और यक्षिणी॥
                  जय महिषासुरमर्दिनी॥

सब सृष्टि का तेज तुम्ही, अन्य न तेज धरे।
जन्मा अजन्मा सभी तेरा, मनवांक्षित करणी।
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥

तुम ही शिव काली बनकर, दुष्ट विनाश करे।
मां शारदे ज्ञानदायिनी, बुद्धि शुद्धि करणी।
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥

दैत्य अनेकों मारे तुमने, देवन लाज धरे।
भक्तों की रक्षा हेतु रूपधर, नाम भक्तरक्षणी।
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥

आदि सृष्टि और अंत तू ही, शून्य अनंत तू ही।
नंत अनंत संत प्रनंत,  कल मल सब हरिणी॥
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥

तुम राजों को देती रहती, दु:ख दरिद्र करे।
दश विद्या सब तुझ से, पाप नाश करिणी॥
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥

अरि मर्दन को आतुर क्रोध का भाव भरे।
पर भक्तों की रक्षा करती, कृपा दृष्टि वरणी॥
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥

तेरा उपासक निर्भय होकर सिंह समान चरे।
तेरा आश्रय महा निराला, सर्व अनिष्ट हरणी॥
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥

शिव विष्णु ब्रह्मा से पूजित, देवन मुकुट घिसे।
तुम ही सर्व वंदित हो माता,  वंदन वृंद करणी॥
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥

तेरी महिमा कोई न जाने, तू जाने सबको।
विश्व सुंदरी तू जगमाता, रूप सकल धरिणी॥
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥

मातृ रूप बनकर माता,  जग को तू जनमें।
भार्या पत्नि रूप को धारा,  सेवा सभी करणी॥
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥

पुत्री रूप जग में लेती, तब ही सृष्टि चले।
कर संहार क्षुधा तू बनकर, मोहित जग करिणी॥
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥

ऋषि मार्कंडेय लीला जानी, स्तुति तब कीन्ही।
आदि शंकर न तुझे माने, शक्तिहीन  करिणी॥
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥

सकल जगत चरणों में तेरे, शीश झुकाय खड़ा ।
अब करो रक्षा भक्तिभाव जो, द्वार पड़े   शरणी॥
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥

महिषासुरमर्दिनी आरती जो जन भी गावै।
दास विपुल ये लिखता, पूर्ण मनोरथ करिणी॥  
                        जय महिषासुरमर्दिनी॥


जय गुरूदेव जय महाकाली।

🙇🙏🙏🙇

माता कुष्मांडा आरती देखें और सुनें

 माता कूष्मांडा की आरती सुनने हेतु नीचे लिंक दबाएं।👇👇

नव दुर्गा के चतुर्थ रूप माता कुष्मांडा की आरती👈👈

आरती पढ़ने हेतु नीचे लिंक पर जाएं 👇👇



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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

🙏


मां महागौरी की आरती

मां महागौरी की आरती

स्तुतिकार: सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी" 

मात महागौरी रानी, शिव की शक्ती पटरानी।।
सिंह वाहन तुझे प्यारा, दीखे जो सबसे न्यारा।
तेरी जय हो मैय्या तेरी जय।।

याचक ने तुझको घेरा, सन्तन ने डाला डेरा।
भीमा विमला रूप धारा, शिव ने शक्ति है वारा।।
तेरी जय हो मैय्या तेरी जय।।

हिमांचल पुत्री बन आईं, शिव को तप से हैं ब्याहीं।
शिव भी तुमको है ध्याते, लीला वह तुमसे पाते।।
तेरी जय हो मैय्या तेरी जय।।

दम्भी दक्ष ने यज्ञ कराया, शिव को नहीं था बुलाया।
शिव का अपमान न सहती, मृत्यु कुंड में धर लेती।
तेरी जय हो मैय्या तेरी जय।।

तेरो दर्शन दुर्लभ जानी, सब जन संत सहित बखानी।
मैय्या सब सुख की हो दाता, तेरा भेद न कोई पाता।।
तेरी जय मैय्या तेरी जय हो।।

तेरा ऊंचा शिखर निवासा, तुम हो सहस्त्रसार की वासा।
तेरो नाम सदा जो जापे, शत्रु नाम से तेरे कांपे।।
तेरी जय मैय्या तेरी जय हो।।

प्रभु तीर्थ शिवोम् ने ध्याया, आरत दास विपुल ने पाया।
जो जन आरत तेरी गावे, निश्चय उच्च परम पद पावै।।
तेरी जय मैय्या तेरी जय हो।।

मैय्या एक दया कर देना, अपने भक्तन की सुध लेना।
जो कोई नवदुर्गा को ध्वावे, पूरित मनोकामना पावे।।
तेरी जय मैय्या तेरी जय हो।।


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Sunday, October 18, 2020

मां कालरात्रि की आरती

 मां कालरात्रि की आरती

वंदनकार: सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

कालरात्रि मां आरती गाऊं।  तुझको कभी न मैं बिसराऊं।।

कालरात्रि मां बन कर काली। मृत्युकाल भय रक्षणी वाली॥
मात शीतला रूप बनाया। भय स्वरूप भय शीश नवाऊं।।

कालरात्रि मां आरती गाऊं।  तुझको कभी न मैं बिसराऊं।।

निराकार को तुम समझाती।  शक्तिभक्ति मुक्ति की प्रदाती।
नवदुरगा में रूप भयानक। रूप मनोहर दरशन पाऊं।।


कालरात्रि मां आरती गाऊं। तुझको कभी न मैं बिसराऊं।।


तीनों लोक विस्तार तुम्हारा। दुष्ट को दंड असुर संहारा।।
जग की पूजा तेरी पूजा। गुड़ मेवे का भोग लगाऊं।।


कालरात्रि मां आरती गाऊं। तुझको कभी न मैं बिसराऊं।।


दास विपुल शीतला मां ध्याया। तेरी परिक्रमा न बिसराआ।।
गुरू रूप तू काली बनती। प्रकटो मां यही गुहराऊं।।

कालरात्रि मां आरती गाऊं। तुझको कभी न मैं बिसराऊं।।


जो जन तेरी आरती गाते। सब सुख भोग परमपद पाते।।
सभी कामना पूरी कर दो। सत्तगुणों में मैं बस जाऊं।।


कालरात्रि मां आरती गाऊं।  तुझको कभी न मैं बिसराऊं।।


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जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥



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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
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मां ​कूष्मांडा की आरती ...

  मां ​कूष्मांडा की आरती 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल  " खोजी "

मां कूष्मांडा जग निरमाता। मुझ पर दया करो सुखदाता॥ 
तुम ही हो पिंगलाज भवानी। ज्वालामुखी का रूप बखानी।। 
मैया तेरी आरती गाऊं। मैया तेरी आरती गाऊं।


मैय्या शाकाम्बरी निराली। तू माता है भोली भाली॥ 
कितने रूप धरे हैं तूने। जग में तेरे आगे बौने।। 

मैया तेरी आरती गाऊं। मैया तेरी आरती गाऊं।



तेरे जगत निराले डेरे। सुर नर मुनि सब तुझको घेरे।। 
भीमा पर्वत भीमा रूपा। तेरो तत्व सदा सुरभूपा।। 

मैया तेरी आरती गाऊं। मैया तेरी आरती गाऊं।



तुने अष्टभुजा रूप धारा। सृष्टि रूप दिया जग सारा।। 
तेरे दर्शन का जग प्यासा। पूरन कर दो मैय्या आसा॥ 

मैया तेरी आरती गाऊं। मैया तेरी आरती गाऊं।



पापी खोजी विपुल  गुहारे। माता आरत भाव पुकारें।। 
माता कूष्मांडा जो ध्याता। जग में श्रेष्ठ परम पद पाता।। 

मैया तेरी आरती गाऊं। मैया तेरी आरती गाऊं।



मेरी मैया जगत कल्याणी। सुर मुनि तेरो रूप बखानी।। 
माता लाज भगत की रखना। सारी इच्छा पूरी करना।। 

मैया तेरी आरती गाऊं। मैया तेरी आरती गाऊं।

मां की आरती का लिंक


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जय गुरुदेव जय महाकाली।

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  क्या तैयारी करें तीसरे दिन की। मां चन्द्रघंटा

  क्या तैयारी करें तीसरे दिन की। मां चन्द्रघंटा

सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

आशा है आप सब ने आज  सचल  मन वैज्ञानिक ध्यान विधि को मां ब्रह्मचारिणी मंत्र के साथ संपन्न किया होगा और दिन भर मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र पढ़कर शाम को आरती और हवन किया होगा।
आपको तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजन करनी है। रात्रि में शयन के पूर्व मां ब्रह्मचारिणी को नमन करने के पश्चात मां चंद्रघंटा का मंत्र जप करते हुए शयन करें।
कल प्रातः सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि के साथ लिंक में दिए हुए मंत्र के साथ दिनभर जाप करें।
रात्रि में पुनः आरती और हवन करें।

मैंने आरतियों का संकलन किया था लेकिन प्रथम दिवस और द्वितीय दिवस की आरती में मात्रिक दोष   मिले जिसके कारण गेयता में बहुत ही परेशानी हुई।



इस कारण मां की कृपा से मैंने अब सभी देवी आंखों की आरती लिखने का संकल्प लिया है और आज मां सरस्वती की कृपा से चंद्रघंटा मां की और कुष्मांडा माता की नई आरती लिख दी है पोस्ट भी कर दी है।क


आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब कर दे जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे।
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ध्यान और मंत्र जप में गहराई कैसे लाएं

 ध्यान और मंत्र जप में गहराई कैसे लाएं

सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

अक्सर लोगों को शिकायत रहती है कि ध्यान नहीं लग पाता है और मंत्र जप में गहराई नहीं आ पाती है।



इसके लिए आपको कुछ साधारण प्रयास तो करने हीं पड़ेगे। ले



ध्यान में यदि आप अपने अंगूठे का ऊपरी हिस्सा और तर्जनी का ऊपरी हिस्सा आपस में मिलाकर आंख बंद करते हैं तो आप देखेंगे आपको कंपन महसूस होगा और ऐसा लगेगा की कोई ऊर्जा उंगलियों के माध्यम से घूम रही है।
आप देखेंगे आपके ध्यान में गहराई शीघ्र आ जाएगी।



दूसरी बात भोजन में और ध्यान में कम से कम 3 से 4 घंटे का अंतर रखें।



इसके अतिरिक्त ध्यान में अथवा मंत्र जप में बैठने के लिए कुछ आरंभिक कार्य कर लें।
पहला तो यह आपका आसन किसी गर्म कपड़े का होना चाहिए जिससे कि आपके शरीर की ऊर्जा धरती में न जा पाए।



इसके अतिरिक्त आप आसन पर बैठने के पश्चात मंत्र जप या ध्यान के पहले अपने शरीर के पांचों तत्वों को शांत करें।
सबसे पहले आप अपने मंत्र को बोलकर आगे पृ्थ्वी शांति बोलें। यह पांच बार करें।
जैसे अपना मंत्र बोला फिर उसी की आगे क्रम में पृथ्वी शांति।
पांच बात अपना मंत्र बोलकर पृथ्वी शांति करें।
इसी प्रकार 5 बार अपना मंत्र बोलकर जल शांति करें।
इसी प्रकार 5 बार अपना मंत्र बोलकर वायु शांति करें।
इसी प्रकार 5 बार अपना मंत्र बोलकर अग्नि शांति करें।
इसी प्रकार 5 बार अपना मंत्र बोलकर अंतरिक्ष शांति करें।



इसके बाद सर्वप्रथम गणेश को प्रणाम करें।
फिर अपने गुरु को प्रणाम करें।
फिर अपने इष्ट को प्रणाम करें।



इसके बाद अपना मंत्र जप या ध्यान आरंभ करें आप देखेंगे यह कितना सुखद परिणाम देता है।



जय गुरुदेव जय माता दी।


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जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥



मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।


 
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

🙏

Saturday, October 17, 2020

क्यों लगाए ओम् नवार्ण मंत्र के आगे (पहली बार कारण पढ़ें, आपको किसी ने नहीं बताया होगा)

 क्यों लगाए  ओम् नवार्ण मंत्र के आगे

सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

मित्रों बहुत से लोग यह मानते हैं कि क्योंकि नवार्ण मंत्र 9 वर्णों का है अतः इसके आगे ओम नहीं लगाना चाहिए क्योंकि तब यही दशाक्षरी हो जाएगा।



लेकिन मेरा यह मानना है और यह अनुभव भी है ओम तो लगाना ही चाहिए क्योंकि किसी मंत्र के आगे ओम लगाने से यह ओम गणेश को समर्पित हो जाता है।



गणेश हमारे गणों के ईश मतलब जो हमारे अंदर की शक्ति नव दुर्गा के रूप में रहती है और बाहर सृष्टि की शक्ति काली के 10 रूपों में रहती है उनके बीच में हमारे गणों का एक पर्दा पड़ा होता है इसलिए ओम बोलने से गणपति सहायक हो जाते हैं।



वैसे भी आपने पुराण में पड़ा होगा कि प्रथम पूजनीय गणपति इसलिए बने थे कि उन्होंने अपने माता-पिता की परिक्रमा की थी और माता-पिता ही मिलकर आपके इस शरीर को बनाते हैं यानी आपके शरीर के चारों ओर जो आवरण है जिन पर गणों का वास है। वह गणेश जी द्वारा संचालित होते हैं। 



यह बात सही है कि जब मात्र ओम का उच्चारण करते हैं तो वह निराकार को चला जाता है उस ब्रह्म को चला जाता है जिसने सृष्टि की उत्पत्ति की थी और पहला साकार रूप मां काली बनी जिन्होंने 10 रूपों में 10 विमाओं में इस सृष्टि का निर्माण किया।बाद  में जब मानव का निर्माण हुआ तब नव दुर्गा की शक्ति मनुष्य के अंदर चक्रों के रूप में स्थापित हुई और मनुष्य को ज्ञान देने के लिए उस काली ने गायत्री का रूप धारण किया जिसने कि मनुष्य को कल्याण के लिए वेदों का ज्ञान दिया।
इसलिए आप मंत्र में ओम् को अवश्य लगाएं।



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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
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नवदुर्गा और नवग्रह का सम्बन्ध जानें

 नवदुर्गा और नवग्रह का सम्बन्ध

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"


नवरात्रि में शक्ति का रूप मानी जानी वाली मां दुर्गा के नौ रूपों की साधना की जाती है। इनमें पहले नवरात्रि पर मां शैलपुत्री तो दूसरे नवरात्रि में मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे में माता चंद्रघंटा तो चौथे नवरात्र पर मां कुष्मांडा, पांचवें नवरात्रिमें स्कंदमाता तो छठे नवरात्रि पर कात्यायनी माता की पूजा की जाती है। सातवें, आठवें और नवें नवरात्रि में क्रमश मां कालरात्रि, मां महागौरी एवं माता सिद्धिदात्रि का पूजन किया जाता है। जब नवग्रह शांति के लिये पूजन किया जाता है तो इस क्रम में बदलाव हो जाता है। प्रत्येक ग्रह की माता अलग होती है। 


किस नवरात्रि को होती है किस ग्रह की पूजा


व दुर्गा शक्ति के नौ रूपों का ही नाम है। इनकी साधना से ग्रह पीड़ा से भी निजात मिलती है लेकिन इसके लिये यह अवश्य ज्ञात होना चाहिये कि किस दिन कौनसे ग्रह की शांति के लिये पूजा होनी चाहिये। 
दुर्गा पूजा शक्ति उपासना का पर्व है। शारदीय नवरात्र में मनाने का कारण यह है कि इस अवधि में ब्रह्मांड के सारे ग्रह एकत्रित होकर सक्रिय हो जाते हैं, जिसका दुष्प्रभाव प्राणियों पर पड़ता है। ग्रहों के इसी दुष्प्रभाव से बचने के लिए नवरात्रि में दुर्गा की पूजा की जाती है।


दुर्गा दुखों का नाश करने वाली देवी है। इसलिए नवरात्रि में जब उनकी पूजा आस्था, श्रद्धा से की जाती है तो उनकी नवों शक्तियाँ जागृत होकर नवों ग्रहों को नियंत्रित कर देती हैं। फलस्वरूप प्राणियों का कोई अनिष्ट नहीं हो पाता।


दुर्गा की इन नवों शक्तियों को जागृत करने के लिए दुर्गा के 'नवार्ण मंत्र' का जाप किया जाता है। नव का अर्थ नौ तथा अर्ण का अर्थ अक्षर होता है। अतः नवार्ण नवों अक्षरों वाला वह मंत्र है, नवार्ण मंत्र 'ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे' है। नौ अक्षरों वाले इस नवार्ण मंत्र के एक-एक अक्षर का संबंध दुर्गा की एक-एक शक्ति से है और उस एक-एक शक्ति का संबंध एक-एक ग्रह से है।


नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में पहला अक्षर ऐं है, जो सूर्य ग्रह को नियंत्रित करता है। ऐं का संबंध दुर्गा की पहली शक्ति शैल पुत्री से है, जिसकी उपासना 'प्रथम नवरात्र' को की जाती है। 


दूसरा अक्षर ह्रीं है, जो चंद्रमा ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी से है, जिसकी पूजा दूसरे नवरात्रि को होती है।
इसी प्रकार तीसरा अक्षर क्लीं है, चौथा अक्षर चा, पाँचवाँ अक्षर मुं, छठा अक्षर डा, सातवाँ अक्षर यै, आठवाँ अक्षर वि तथा नौवा अक्षर चै है। जो क्रमशः मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु ग्रहों को नियंत्रित करता है।



इन अक्षरों से संबंधित दुर्गा की शक्तियाँ क्रमशः चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री हैं, जिनकी आराधना क्रमश : तीसरे, चौथे, पाँचवें, छठे, सातवें, आठवें तथा नौवें नवरात्रि को की जाती है। 



इस नवार्ण मंत्र के तीन देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं तथा इसकी तीन देवियाँ महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती हैं। 



दुर्गा की ये नवो शक्तियाँ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की प्राप्ति में भी सहायक होती हैं।



जय गुरुदेव जय महाकाली।

🙏🙏🙇🙇🙇🙇


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नवरात्रि के 9 दिन, मां के भोग अलग होते हैं

 नवरात्रि के 9 दिन, मां के भोग अलग  होते हैं 

सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

प्रथम दिवस नवरात्र के ,गौ घृत खीर ।
शैलपुत्री पूजन। 



तिथि द्वितीय को ब्रह्मचारणी रूप।
मिश्री चीनी भोग।



तिथि तृतीया चन्द्रघंटा।
दुग्ध मलाई।



 चतुर्थी माँ कुष्मांडा।
 मालपुए 



तिथि पंचम स्कन्दमाता।
केला भोग।



षष्ठी तिथि कात्यायनी।
शहद भोग।।



सप्तम कालरात्री 
गुड़ मेवे का भोग हो।



अटम  महागौरीभोग
 नारियल पान।
कन्या भोज सम्मान।



नवम दिवस  माँ सिद्धिधात्री।
 तिल अन्न।




आप सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं ।।

जय गुरुदेव जय महाकाली


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जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥



मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।


 
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

🌹🌹🙏🙏


अवश्य पढ़ें नवरात्रि में नवरूप गायत्री व गुरू गणेश गायत्री। नवरूप गायत्री आपको कहीं नहीं मिलेगी।

अवश्य पढ़े नवरात्रि में नवरूप गायत्री व गुरू गणेश गायत्री

सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"


मित्रों मंत्रों में गायत्री रूप ज्ञान का रूप होता है अतः नवरात्रि पूजन में भी मां दुर्गा के विभिन्न रूपों के ज्ञान रूप है तू गायत्री मंत्र को पढ़ना उचित रहता है लेकिन कहीं पर भी नवरात्रि के गायत्री का उल्लेख नहीं है जिस कारण इन गायत्री मंत्रों को निर्मित करना पड़ा।


क्रमश: यह गायत्री पढ़ें


 गणेश गायत्री मंत्र
ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे वक्र तुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ति प्रचोदयात्।

 
गुरु गायत्री मंत्र
ऊँ गुरु देवाय विद्महे पर ब्रह्माय धीमहि, तन्नो गुरु: प्रचोदयात्।


नवदुर्गा की नवरूप गायत्री  
ऊँ शैलपुत्रायै च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो शैलपुत्री प्रचोदयात्।  
ऊँ ब्रह्मचारिणी च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो ब्रह्मचारिणी प्रचोदयात्।  
ऊँ चंद्रघंटाय च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो चंद्रघंटा प्रचोदयात्।  
ऊँ कूष्मांडाय च विद्महे सर्वदेवाय धीमहि, तन्नो कूष्मांडा प्रचोदयात्।  
ऊँ स्कन्दमाताय च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो स्कन्दमाता प्रचोदयात्।  
ऊँ कात्यायनी च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो कात्यायनी प्रचोदयात्।  
ऊँ कालरात्रिर् च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो कालरात्रि प्रचोदयात्।  
ऊँ महागौराय  च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो महागौरी प्रचोदयात्।   
ऊँ सिद्धिदात्रै विद्महे सर्वदेवाय धीमहि, तन्नो सिद्धधात्री प्रचोदयात्। 



 सर्व देव गायत्री मंत्र (56 गायत्री मंत्र) भी देखें।


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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

क्या तैयारी करें दूसरे दिन की। मां ब्रह्मचारिणी।

 क्या तैयारी करें दूसरे दिन की। मां ब्रह्मचारिणी
सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजीm=0

आशा है आप सब ने आज  सचल  मन वैज्ञानिक ध्यान विधि को मां शैलपुत्री के मंत्र के साथ संपन्न किया होगा और दिन भर मां शैलपुत्री का मंत्र पढ़कर शाम को आरती और हवन किया होगा।
आपको दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजन करनी है। रात्रि में शयन के पूर्व मां शैलपुत्री को नमन करने के पश्चात मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र जप करते हुए शयन करें।
कल प्रातः सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि के साथ लिंक में दिए हुए मंत्र के साथ दिनभर जाप करें।
रात्रि में पुनः आरती और हवन करें।

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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 

यज्ञ हेतु अग्नि का गूढ़ मंत्र जो आपको कोई नहीं बताएगा।

 यज्ञ हेतु अग्नि का गूढ़ मंत्र जो आपको कोई नहीं बताएगा।

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"


मित्रों सनातन में हवन या यज्ञ की बहुत महिमा है लेकिन कभी-कभी हवन या यज्ञ ऐसा बिगड़ जाता है की अग्नि प्रज्वलित नहीं होती है और अगर होती है तो भयंकर धुआं पैदा होता है लपटें पैदा नहीं होती है जिसके कारण मन में शंका बन जाती है कि हमारा हवन सही नहीं हुआ।



इस कारण मैं आपको एक मंत्र अग्निमंत्र बता रहा हूं जिसको आप अग्नि प्रज्वलित करने के पहले और अग्नि प्रज्वलित करते समय जाप कर ले और फिर अग्नि प्रज्वलित करें।
आप देखेंगे आपकी अग्नि की ज्वालाएं  हैं वह इतनी सुंदर निकलेंगी कि आपका दिल प्रसन्न हो जाएगा और आप का यज्ञ सफल हो जाएगा।



 इस मंत्र पर मैंने प्रयोग किए हैं और सफल हुए हैं आप लोग भी अपना फीडबैक देने का कष्ट करें।


ओम रं वहिर्चैतन्याय नमः।


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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

Friday, October 16, 2020

दश विद्या के वैज्ञानिक अर्थ और व्याख्या

 दश विद्या के वैज्ञानिक अर्थ और व्याख्या

व्याख्याकार सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

वास्तव में हम जितना अधिक विज्ञान में खोज करते जायेंगे हम उतना अधिक सनातन को समझ पायेंगे और यह सोंचने पर विवश हो जायेंगे कि आज का विज्ञान कितना बौना है जो सनातन के रहस्यों पर प्रकाश नहीं डाल पाता और बिना जाने निंदा करता है। सनातन की ऊंचाई गहन अध्ययन चिंतन और ईश कृपा के बिना नहीं पाई जा सकती है। वास्तव में सनातन में सृष्टि में होनेवाले सभी अविष्कारों  को गूढ रूप में समझाया गया है। जो हम समझ नहीं सकते और पूर्वाग्रह के कारण सिर्फ बकवास ही करते हैं। इसमें सुपर भौतिकी मेटा भौतिकी सहित विज्ञान के हर आयाम को बताया गया है।


चूंकि इस जन्म में मैं इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएट के साथ परमाणु वैज्ञानिक और 38 साल का अनुभवी हूं अत: मैं कह सकता हूं कि वैज्ञानिक कौम सबसे बडी मूर्ख और पूर्वाग्रहित कौम है जो किसी उपकरण की सूचना को सही मानेगा पर जिसने उपकरण बनाया उस पर यकीन नहीं  करेगा। साथ ही किसी घटना के घटने के लिये 50 साल प्रतीक्षा करेगा पर उसको बोलो मुझे मात्र कुछ दिन कुछ समय दो। तुमको पराशक्ति के सनातन अनुभव होंगे तो वह कन्नी काटेगा।


मैं समझता हूं सनातन के ऊपर शोध हेतु कोई शिक्षा प्रणाली और संस्थान होनें चाहिये।


प्रयोग करें एक टंकी के अंदर पानी भर दे गुब्बारों के अंदर पानी भरकर टंकी में छोड़ दें आप देखेंगे गुब्बारे के अंदर भी पानी है गुब्बारे के, बाहर भी पानी है। लेकिन उन दोनों पानी का कोई आपस में जोड़ नहीं मेल नहीं। बस यही अंतर है 10 विद्या में और नवरात्रि में।

साकार ब्रह्म की मूर्ती के अंदर भी जल है बाहर भी है। वैसे ब्रह्म सर्वव्यापी है निराकार रूप में लेकिन साकार रूप में भी वह मौजूद है यानी गुब्बारों के आकार के अंदर भी वही है और बाहर भी वही है। बीच में इस शरीर का बंधन है।

वह गुब्बारा कौन है हम हैं जो साकार है वह जो पदार्थ है जो हमें दिखते हैं जिसको कि भगवान श्री कृष्ण ने भागवत में कहा की विज्ञान वह है जिसमें मनुष्य हमारे साकार सगुण रूप के विषय में शोध करता है और उस विषय में चिंतन करता रहता है जानने का प्रयास करता रहता है। ज्ञान क्या है जो निराकार सगुण स्वरूप को जानता है जानने का प्रयास करता है वह ज्ञानी है और वह ज्ञान है।

 

10 विद्या जो गुब्बारों के बाहर व्याप्त है यानी जो हमारे शरीर के बाहर ऊर्जा है जो रूप है वह विद्याएं हैं क्योंकि विद्या के द्वारा हम बाहर कुछ करते हैं। इस पर भी अलग लेख लिखूंगा।

 

मैं यह कहना चाहूंगा पहले 10 विद्या का प्रादुर्भाव हुआ फिर दुर्गा का प्रादुर्भाव हुआ और जिसने की नव दुर्गा के रूप धरे। इसी के साथ गायत्री का प्रादुर्भाव हुआ।


यानी पहले वाहिक जो 10 विद्या थी उर्न्होने सृष्टि उत्पन्न की और फिर उस सृष्टि ने मनुष्य की उत्पत्ति की और फिर नवदुर्गा उत्पन्न हुई। फिर मनुष्य को ज्ञान हेतु वेदों को उत्पन्न करने हेतु मां गायत्री का रूप।


अब मैं योग की एक नई परिभाषा देता हूं। “ जब तुम्हारे अंदर की दुर्गा का काली से मिलन होगा तब योग होगा”।


मेरे ब्लाग का पहला लेख जो “वैज्ञानिक” पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। उसको पढें और कुछ समझें कि मां काली क्या है।

 ब्रह्मांड की उत्पत्ति 

 

कुछ यूं समझना चाहिए इस सबसे पहले सिर्फ निराकार ऊर्जा फिर उस निराकार ऊर्जा में ध्वनि से सृष्टि का निर्माण और उस उर्जा में जब हल-चल आरंभ हुई वह बनी काली। E = MC 2 के अनुसार सृष्टि का निर्माण आरम्भ हुआ। 

 

फिर जब और आगे बढ़े तो जैसे धरा और आकाश होता है आकाश नीले रंग का माना जाता है उसने निर्माण किया तारा का वह एक शक्ति बनी फिर वह शक्ति ज्योति उसने पूरे विश्व को व्याप्त किया तो वही त्रिपुर सुंदरी जो महा माया बनी।  फिर यही शक्ति ने फिर पूरे विश्व को व्याप्त कर उसकी मालकिन बन गई और कहलाई भुवनेश्वरी लेकिन भुवनेश्वरी के साथ में कोई नहीं तो क्या करेंगे तो उसके लिए फिर बनी छिन्नमस्ता यानी भुवनेश्वरी ने ही अपने अंगों को काटकर एक तरीके से ऊर्जा को अलग कर विभिन्न सृष्टि के निर्माण की ओर एक कदम बढ़ाया लेकिन पालन पोषण हेतु बनी छिन्नमस्ता मतलब पूरी सृष्टि को इसी के द्वारा संचालित होना है यही पालनकर्ता का काली रू है। इसके पश्चात आई त्रिपुर भैरवी त्रिपुर भैरवी भैरवी यानी वहां पर कुछ नहीं तो एक यह भावना की यहां और कुछ नहीं है यदि कोई अकेला होता है तो उसे भय लगता ही है इसीलिए इसे भैरवी भी कहा गया इसके बाद आई धूमावती क्योंकि अभी भी सृष्टि निर्माण आरंभ हुआ था के प्रलय आ गई क्योकि धूमावती सब नष्ट करती है। अत: विनाश प्रलय की देवी यानि शक्ति कहलाईं। चारों और धुंध ही था फिर आई बगलामुखी।  बगलामुखी ने धूमावती के जो प्रलय के अंदाज़ को रोका और रोक करके वह बनी बगलामुखी और यह कथा में भी उनके हैं कि उन्होंने प्रलय को रोका था क्योंकि धूमावती एक तरह से पहले का प्रतीक अब इसके बाद जब सृष्टि की में विनाश होता है तो चारों और आपको इस तरह से गंदगी ही गंदगी दिखेगी चारों ओर सब चीज व्यस्त दिखेगी तो फिर निर्माण हुआ मातंगी।  मातंगी यानी सफाई हेतु वह शक्ति जो कि मनुष्य को सफाई करती है मनुष्य के ह्रदय से गंदी बातें निकालती है और इसके बाद आई कमला।  कमला यानी वैभव की देवी जो कि मनुष्य को रहने के लिए सारी सुविधाएं देती है इस तरीके से यह 10 विद्या का व्याख्यान हुआ।

 


सही बात तो यह है कि हमारा जो सनातन साहित्य है बहुत ही गूढ़ है और उसको लोगों ने केवल भौतिक रूप में देखा उसके अंदर जाने का प्रयास नहीं किया भौतिक रूप में उन शक्तियों की आराधना करें और सुख दुख प्राप्त किया अधिक से अधिक मोक्ष प्राप्त किया या स्वर्ग प्राप्त किया लेकिन वह शक्ति का नाम वह क्यों रखा गया उस शक्ति का काम क्या था इसके ऊपर किसी ने चिंतन नहीं किया इसलिए यह व्याख्यान किसी भी गूगल में नहीं दिया है किसी दवाब पुस्तकों में नहीं दिया है यहां तक कि कि संतों ने भी इस पर प्रकाश नहीं डाला है शायद पहुंचाना हो या समझ ना पाए हो।

 


अब यह स्पष्ट हो गया की काली ने इस ब्रह्मांड की सृष्टि का निर्माण आरंभ किया 10 विद्याओं के माध्यम से इसके पश्चात जब मनुष्य का निर्माण हुआ तब सभी देवों की शक्ति से दुर्गा का निर्माण होने के पश्चात उनके नौ रूप 9 चक्रों में स्थापित होकर मनुष्य के अंदर की शक्ति को संचालित करने लगी यानी 10 विद्या शरीर के बाहर की ऊर्जा की पूजा और नवरात्रि की पूजा यानी शरीर के अंदर की जो ऊर्जा है उसकी पूजा अब बात आती है गायत्री की जब मनुष्य का निर्माण हो गया तो उसका उद्देश्य क्या होना चाहिए क्योंकि वह तो ब्रह्म का ही अंश है नर नारायण बराबर तो इसके लिए एक शक्ति ने जन्म लिया जिसको हम कहते हैं गायत्री गायत्री यानी इसने अपने मुख से तीन वेदों को जन्म दिया बाद में यह वेद चार बने बहुत सी जगह लिखा है कि गायत्री ने चारों मुख से चार वेद बोले वह गलत है मैं उसे बिल्कुल सहमत नहीं हूं क्योंकि तमाम साहित्य में यही लिखा हुआ है कि पहले तीन ही वे थे इसलिए त्रयपथी बोलते हैं वेद पहले तीन ही वे थे फिर बाद में वह चार हो गए कहने का मतलब यह है कि जो शक्ति का निर्माण का करम है सबसे पहले काली विद्या उसके बाद मानव के निर्माण के साथ गायत्री का निर्माण और दुर्गा का निर्माण जो मनुष्य के अंदर की बात है और 10 विद्या मनुष्य के बाहर की बात है।

 

गायत्री का प्रादुर्भाव कब हुआ विष्णु के क्षीरसागर के रूप का क्या अर्थ है विज्ञान में इनको कैसे व्याख्या कर सकते हैं यह सब मेरे ध्यान में है।

एक बहुत आनंददायक बात अभी हुई वह योग के संबंध में यह परिभाषा आपको बहुत अद्भुत लगेगी और मेरी कई बातें तो गूगल में मिलेगी नहीं किताबों में मिलेगी नहीं आपको।

 

मैं योग को यू परिभाषित करना चाहता हूं कि जब तुम्हारी दुर्गा शक्ति का काली मां की शक्ति से मिलन होता है तब योग घटित होता है।

क्योंकि योग की अनुभूति में क्या है इस पर कहीं कोई साहित्य नहीं है लेकिन योग का अनुभव साकार भी हो सकता है निराकार भी हो सकता है यह तो मेरी अनुभूति में है ही।

यह परिभाषा साकार योग के लिए है।

 

कुछ प्रतीक्षा करें इन विषयों पर लेखों की। आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब कर दे जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे।

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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 

 

जय गुरुदेव जय महाकाली।


मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या)

 मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या में भेद 

(पहलीबार व्याख्या)

व्याख्याकार सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"


मित्रों कुछ दिन पूर्व मैनें 10 विद्या पर लेख लिखे थे तो 10 विद्या का कुछ अर्थ का प्रादुर्भाव हुआ था। इसके बाद मां दुर्गा के नव रूपं पर भी लेख लिखे थे। तब यह प्रश्न उठा। जिस पर मां सरस्वती और गुरूदेव की कृपा हुई और मैं वह कुछ खोज पाया जो आपको कहीं नहीं मिलेगा। बल्कि आपने सुना तक न होगा। 
 
कुछ प्रतीक्षा करें इन विषयों पर लेखों की। आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब कर दे जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे। 
 


वास्तव में हम जितना अधिक विज्ञान में खोज करते जायेंगे हम उतना अधिक सनातन को समझ पायेंगे और यह सोंचने पर विवश हो जायेंगे कि आज का विज्ञान कितना बौना है जो सनातन के रहस्यों पर प्रकाश नहीं डाल पाता और बिना जाने निंदा करता है। सनातन की ऊंचाई गहन अध्ययन चिंतन और ईश कृपा के बिना नहीं पाई जा सकती है। वास्तव में सनातन में सृष्टि में होनेवाले सभी अविष्कारों  को गूढ रूप में समझाया गया है। जो हम समझ नहीं सकते और पूर्वाग्रह के कारण सिर्फ बकवास ही करते हैं। इसमें सुपर भौतिकी मेटा भौतिकी सहित विज्ञान के हर आयाम को बताया गया है।

 

चूंकि इस जन्म में मैं इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएट के साथ परमाणु वैज्ञानिक और 38 साल का अनुभवी हूं अत: मैं कह सकता हूं कि वैज्ञानिक कौम सबसे बडी मूर्ख और पूर्वाग्रहित कौम है जो किसी उपकरण की सूचना को सही मानेगा पर जिसने उपकरण बनाया उस पर यकीन नहीं  करेगा। साथ ही किसी घटना के घटने के लिये 50 साल प्रतीक्षा करेगा पर उसको बोलो मुझे मात्र कुछ दिन कुछ समय दो। तुमको पराशक्ति के सनातन अनुभव होंगे तो वह कन्नी काटेगा। 

 

मैं समझता हूं सनातन के ऊपर शोध हेतु कोई शिक्षा प्रणाली और संस्थान होनें चाहिये।

अभी नवरात्रि हेतु नवदुर्गा के नव रूपों पर लेख लिख रहा था तब नवरात्रि का अर्थ समझ में आया और अनायास ही मां सरस्वती की कृपा से अपने प्रथम गुरु मां काली की दया से व भौतिक गुरू की लीला से अचानक स्पष्ट हुआ नवरात्रि और 10 विद्या में यानी मां दुर्गा के नौ रूपों में और 10 विद्या के 10 रूपों में बहुत ही अंतर है।

 

इसको मैंने इंटरनेट पर गूगल गुरु की शरण में जाकर देखा वहां कुछ नहीं मिला न ही किसी किताब में कुछ मिला न ही किसी संत ने इस पर व्याख्या की। मैंने व्यक्तिगत रूप में उनको निवेदन किया कुछ तांत्रिकों से भी पूछ पर कोई बता न सका। कुछ ने मां दुर्गा के नव रूपों पर प्रकाश डाला। अत: यह हो सकता है यह व्याख्या आपको इस लेख के अलावा कहीं और न मिले। हो सकता है यह व्याख्या हमारे मन का भ्रम हो यानी गलत हो। लेकिन यह बात तो सही है अभी तक के हमारे अनुभव अनुभूति व आत्मगुरू की व्याख्या मां जगदंबे की कृपा से सही ही रही। वह सब के सब वेद से उपनिषद से भगवत गीता से अंत में मेल खा जाते और कहीं न कहीं उस अनुभूति का जिक्र मिल जाता है। 

 

यद्यपि यह बात सही है कि ब्रह्म निराकार है और उसने समय-समय पर साकार रूप धारण किए तो यह कह देना कि सब एक ही है यह बहुत ही उच्च स्तर की बात होगी जब आप उस ब्रह्म के स्तर पर बैठे हो।

यह तो बिल्कुल वही बात हो गई आप बोलो सब आलू या बटाटा या पोटैटो है लेकिन आलू की चाट बनती है सब्जी बनती है उबाल के बनता है चिप्स बनते हैं नमकीन बनती है भुजिया बनती है सब में अंतर है कि नहीं उसी भांति इन नौ रूपों में और 10 विद्या में अंतर है। इन सबको आप एक तब ही कह सकते हैं जब यह मूल रूप में हो। कुछ ऐसे ही ब्रह्म समझें। जब कुछ समझ में न आये तो बोल देना सब एक ही है। 

 

कुछ इसी भांति मां गायत्री के विषय में कुछ असत्य बातें दीं हुई हैं जो तर्कों पर खरी नहीं उतरती हैं। इस पर भी लिखना है। विष्णु का क्षीरसागर रूप भौतिकी से समझा जा सकता है।  इसलिए मैं विज्ञान की दृष्टि से और तर्क के साथ आपके समक्ष इस विषय पर चिंतन करना चाहूंगा। आपका सुझाव आपके प्रश्न का हमेशा की भांति स्वागत रहेगा।

प्रयोग करें एक टंकी के अंदर पानी भर दे गुब्बारों के अंदर पानी भरकर टंकी में छोड़ दें आप देखेंगे गुब्बारे के अंदर भी पानी है गुब्बारे के, बाहर भी पानी है। लेकिन उन दोनों पानी का कोई आपस में जोड़ नहीं मेल नहीं। बस यही अंतर है 10 विद्या में और नवरात्रि में।

 

साकार ब्रह्म की मूर्ती के अंदर भी जल है बाहर भी है। वैसे ब्रह्म सर्वव्यापी है निराकार रूप में लेकिन साकार रूप में भी वह मौजूद है यानी गुब्बारों के आकार के अंदर भी वही है और बाहर भी वही है। बीच में इस शरीर का बंधन है।

वह गुब्बारा कौन है हम हैं जो साकार है वह जो पदार्थ है जो हमें दिखते हैं जिसको कि भगवान श्री कृष्ण ने भागवत में कहा की विज्ञान वह है जिसमें मनुष्य हमारे साकार सगुण रूप के विषय में शोध करता है और उस विषय में चिंतन करता रहता है जानने का प्रयास करता रहता है। ज्ञान क्या है जो निराकार सगुण स्वरूप को जानता है जानने का प्रयास करता है वह ज्ञानी है और वह ज्ञान है।

 

10 विद्या जो गुब्बारों के बाहर व्याप्त है यानी जो हमारे शरीर के बाहर ऊर्जा है जो रूप है वह विद्याएं हैं क्योंकि विद्या के द्वारा हम बाहर कुछ करते हैं। इस पर भी अलग लेख लिखूंगा।

मैं यह कहना चाहूंगा पहले 10 विद्या का प्रादुर्भाव हुआ फिर दुर्गा का प्रादुर्भाव हुआ और जिसने की नव दुर्गा के रूप धरे। इसी के साथ गायत्री का प्रादुर्भाव हुआ।

 

यानी पहले वाहिक जो 10 विद्या थी उर्न्होने सृष्टि उत्पन्न की और फिर उस सृष्टि ने मनुष्य की उत्पत्ति की और फिर नवदुर्गा उत्पन्न हुई। फिर मनुष्य को ज्ञान हेतु वेदों को उत्पन्न करने हेतु मां गायत्री का रूप। 

 

अब मैं योग की एक नई परिभाषा देता हूं। “ जब तुम्हारे अंदर की दुर्गा का काली से मिलन होगा तब योग होगा”। 

 

सोचने की बात यह है कि शब्द नवरात्रि क्यों है नव दिन क्यों नहीं है नव दिवस क्यों नहीं है नौ रूपों के लिए नवरात्रि ही क्यों कहा जाता है?????

वहीं 10 रूपों को विद्या कहा जाता है और कुछ नहीं। बस आरंभ यहीं से होता है।

 

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 दश विद्या के वैज्ञानिक अर्थ और व्याख्या 

 

मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।

 

जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥

 

Tuesday, September 29, 2020

मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य

 मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य

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👇👇शक्तिशाली महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत काव्य‌ रूप 👇👇
 
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नव - आरती : मां महिषासुरमर्दिनी     🙏🙏    मां काली की गुरू लीला

आरती का पूजा में महत्व     🙏🙏     यज्ञ या हवन: प्रकार और विधि

 दश विद्या 
 
 🙏🙏  दसवीं विद्या: कमला   🙏🙏      
🙏🙏  

 रावण कृत शिव तांडव स्त्रोत का हिंदी काव्य रूपान्तर

साकार से ही ध्यान सर्वोत्तम है। जानिये क्यों ???     🙏🙏      वसंत पंचमी पर विशेष: माता शारदे

 भजन:



  जय महाकाली जय गुरूदेव 

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

 
 

 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...