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Tuesday, July 3, 2018

पा गल बनो पागल नहीं।



पा  गल बनो पागल नहीं।
सनातन पुत्र देवीदास विपुल 

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/

               आज कार्यालय के लिये बस से उतर कर नित्य की तरह शेयरिंग़ आटो की। रास्ते में एक साइकिल सवार व्यक्ति फुटपाथ पर पैर टेकने के चक्कर में देखते देखते गिर गया। फिर खडा हो गया। आटो में कुल तीन यात्री बैठते हैं। एक बोला पैर नहीं टिका। दूसरा बोला टिक गया। तब मैं बोला भाई नाली की गहराई और चौडाई के कारण उसका पैर तो टिका पर गुरुत्वाकर्षण केंद्र बाहर की तरफ चला गया अत: उसका पैर भार के कारण संतुलन न ले सका और वह गिर गया। जिसपर पहलेवाला जो निश्चित रूप से गैर तकनीकि कर्मचारी था। वह बोला बी.ए.आर.सी में सब पागल ही काम करते हैं। मैं बोला बिना पागल बने हम परमाणु शक्ति नहीं बन सकते। अभी हाल में मैंने एक अति सुंदर देशभक्ति और साफ सुथरी फिल्म, जिसे बच्चों को तो जरूर दिखानी चाहिये, “परमाणु” देखी थी। जिसमें अपने संस्थान का नाम लिया गया है और रक्षा वैज्ञानिक को कुछ महान किंतु हडबडियानुमा दिखाया है। मेरे मन में उस फिल्म का खुमार था। वैसे यह मेरे जीवन की शायद दसवीं फिल्म होगी जो हाल में देखी होगी। कारण बचपन में अभाव अत: मन होते हुये यहां तक 3.25 रूपये तक के टिकट की फिल्म न देखकर पैसे बचाते थे। बाद में फिल्म से शौक ही मर गया। यहां पर अभाव था पर आ भाव भी था।

             खैर उस सहयात्री की बात मुझे एक लेख की प्रेरणा दे गई। मैंने पागल की व्याख्या करने का प्रयास किया। क्योकिं मेरी मां मुझे ईश दर्शनाभूति होने के बाद मेरी हालत को सिडी और पागल की ही संज्ञा देती थी। यहां तक एक बार लखनऊ में मेरी बीचवाली मुन्नेमामावाली मामी बोली “विपुल तुम तो बिल्कुल ठीक दिखते हो”। मेरे कारण पूछने पर मामी बोली “जिज्जी कह रही थी विपुल तो पागल हो गया है”। अत: मुझे पागल के बारे में बात करने का मन बन गया।

पागल यानी पा + गल। या पाग + ल। या पा + आग + ल। या प + अग + ल।
प्राय: जगत में पागल का अर्थ होता है जो अनाप शनाप हरकतें करें। चिकित्सा में जिसके मस्तिष्क में कुछ अतिरिक्त रसायन बनने के कारण मस्तिष्क के अन्य भागों को दिये जाने वाले संकेत उलट पलट जाते हैं। जो पागलपन का कारण बन सकते हैं। कुछ जन्मजात अभिशापित होते हैं तो कुछ मानसिक आघात से तो कुछ दवाईयों या नशे के सेवन के कारण दुष्प्रभाव के कारण।

परन्तु आप पागल के अन्य अर्थ भी जान लें। जो शायद आपने सोंचे भी न हो।
पागलपन का अन्य अर्थ होता है दीवानगी, जूनून की अधिकतम सीमा। जैसे यदि आप किसी भी वस्तु को चाहे वह प्रेम हो, धन हो, शोहरत हो या कोई भी इच्छा, कुछ कर गुजरने की तमन्ना नही रखते आप सफल होने की नहीं सोंच सकते। यदि वैज्ञानिक शोध के लिये पागल न हो तो क्या कुछ कर सकता है। तमाम किस्से आप पढ सकते हैं। वैसे ही सैनिक को युद्ध भूमि में देश की रक्षा का राष्ट्रभक्ति का पागलपन न हो तो क्या घायल अवस्था में भी कारगिल युद्ध में दो गोली लगने के बाद भी 8 मीटर ऊपर खडी पहाडी पर और चढकर चौकी पर कब्जा न किया होता।

इसे भी आप पागलपन कह सकते हैं। वे पागल ही थे जो आज इन गद्दार देश द्रोही परिवारवादी नेताओं को अपनी जान की कुरबानी देकर देश लूटने को सौंप गये। वह वास्तव में पागल हैं जो देश की रक्षा में इन सडे बुसे मानसिकता वाले दुष्टों की रक्षा कर रहें हैं। वे पागल ही हैं जो पत्थर खाकर भी इन नमकहरामों को बाढ जैसी आपदा में बचाते हैं। वे पागल ही जो उन नेताओं की रक्षा करते हैं जो उनको ही गाली देते हैं। उनकी ही हत्या का इंतजाम करते हैं।

बस इन पागलो को हम नमन करते हैं। दूसरे पागलों को पागलखाने भेजते हैं। तीसरी प्रकार के पागल जो सत्ता के लिये परिवार के सारे मूल्यों को ताक पर रखकर देश तक बेचने को तैयार रहते हैं। पर सबसे बडे पागल हम सब जो इन सत्ता और परिवार के लिये नीचता की सीमा तक गिरनेवाले नेताओं को समर्थन देते हैं। एक पागल वो भी देश के लिये घर परिवार नाते रिश्ते छोडकर सिर्फ और सिर्फ देश के लिये रात दिन जुटा हुआ है। वो भी करने को तैयार जो उसके दुश्मन पैदा करता है।  
आप देखें इस दुनिया में भौतिक रूप से सब पागल।

अब दूसरा अर्थ: पागल यानी पा + गल। जो पाने के बाद गल गया। जिसका अहं, जगत की सारी तृष्णायें गल गई। नष्ट हो गईं। जैसे मीरा, सूर, तुलसी, कबीर, हमारी परम्परा के कुछ गुरू। जो लिख गये। जहां एक तरफ प्रार्थना होती है “रूपं देहि, बलं देहिवही दूसरी तरफ यह प्रार्थना वोही लिखेगा जो पाने के बाद गल गया हो। 


सहन शक्ति दे मुझे, मेरे प्रभु गुरूदेव जी।
सहता रहूं, सहता रहूं, सहता रहूं गुरूदेव जी॥
सहन मैं इतना करूं, अभिमान चकनाचूर हो।
न रहे मुझ में तनिक भी, कर कृपा गुरूदेव जी।।
सहन मैं इतना करूं, उदिग्न न हो मन मेरा।
कामना मंगल सभी की, मांगता गुरूदेव जी।।
सहन मैं इतना करू, प्रतिकार कुछ भी न करूं।
उफ तक निकालूं मुख से न, आशीष दो गुरूदेव जी।।
सहन करना साधना है, करती निर्मल है शिवोम्।
कृपा तेरी इस लिये, पाता रहूं गुरूदेव जी।।

अर्थात स्वयं शिव बन गया हो। वह पा गल हुआ पागल नहीं। 

तीसरा अर्थ: पागल यानी पाग + ल। 
पाग जो गुड या शक्कर से बना है। यानी पगा हुआ चाशनी को पाग कहते हैं। ल मतलब लकार। ल् में प्रत्याहार के क्रम से ( अ इ उ ऋ ए ओ ) जोड़ दें और क्रमानुसार ( ट् ) जोड़ते जाऐं । फिर बाद में ( ङ् ) जोड़ते जाऐं जब तक कि दश लकार पूरे न हो जाएँ । जैसे लट् लिट् लुट् लृट् लेट् लोट् लङ् लिङ् लुङ् लृङ् ॥ इनमें लेट् लकार केवल वेद में प्रयुक्त होता है । लोक के लिए नौ लकार शेष रहे । अब इन नौ लकारों में लङ् के दो भेद होते हैं :-- आशीर्लिङ् और विधिलिङ् । इस प्रकार लोक में दस के दस लकार हो गए ।

अर्थ निकला जो लेट् लकार से है। वेदों के ज्ञान के पाग में पगा हुआ। अर्थात जो ज्ञानी है। जिसने वेदों का अनुभव किया। अह्म ब्रह्मास्मि की अनुभूति की। वह भी हुआ पागल। मतलब योगी भी एक पा गल होता है पागल नहीं।  

चौथा अर्थ: पा + आग + ल। 

जिसने वेदों की आग में जलकर खुद को पा लिया यानी अंतर्ज्ञानी हो गया। या यूं कहो जिसने जगत की वासना रूपी आग का दरिया पार कर ज्ञान प्राप्त किया वह भी पागल। पाकर ज्ञान की आग खुद को भस्म किया।

पाचंवा अर्थ: प + अग + ल।
प से बननेवाले विभिन्न लकारों के रूप + अग मतलब आगे + लकार । जिसके अर्थ निकलेगें। प से पढकर, अग से आगे बढकर + ल लेट् लकार जिसने वेदों के ज्ञान को जाना। वह पागल।

अब यहां आप हंस सकते हैं विपुल पा गल ने आपको पा गल बनाने के चक्कर में पागल बनाकर पागल की व्याख्या कर दी और एक पागल को भी पा गल का सम्मान दिलाने के पागलपन की सीमा को पागलपन तक पगला दिया। 

 
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/


Monday, July 2, 2018

इंजीनियर्स वैज्ञानिकों को संदेश (सबके लिये भी)



इंजीनियर्स वैज्ञानिकों को संदेश (सबके लिये भी)   
सनातनपुत्र देवीदास विपुल"खोजी"



विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
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               मित्रों मै हर्कोर्टियन हूं (एच.बी.टी.आई, कानपुर का इंजीनियर हर्कोर्टियंस कहलाता है)  पर बेहतर है पूरा परिचय दूं। कारण कल एक बेटे के समान नादान जूनियर ने मेरी पोस्ट पर अपनी बात रखी। मुझे अच्छा लगा परंतु रैगिंग न होने कारण आज के बच्चे बात करना नहीं जानते। मैं अपने सीनियर्स को जो मेरे साथ तक के 12 के हैं (क्योकिं मैं सी.टी. का हूं जो बी.एस.सी. के बाद होता था) मैं उनको सर कहता हूं और मुझे मेरे 83 तक के पास आउट जो वाइस चांसलर तक हैं वे सम्मान करते हैं। बातचीत में सर ही कहते हैं। नाम तक नहीं लेते हैं। यह परम्परा थी एच.बी.टी.आई. की। जो धीरे धीरे मरती गई। कि आज सीनियर्स से बात करना नहीं आता।

               मैं सनातन के गीता के वेदों के प्रचार हेतु निकला हूं। जिसमें एच.बी.टी.आई के ही तमाम मित्रों का सहयोग है और जो अनुभव के साथ मेरे साथ जुडे है। चलो कुछ नाम भी लेता हूं। सर्व श्री तुषार मुखर्जी, 84 या 85, इलेक्ट्रीकल, विदेशों मे नौकरी की। अंशुमन द्विवेदी, 96 या 97, पेंट, कन्साई नेरोलेक का भारत का बिजनेस हेड। अरुण दद्दा 96 या 97 फूड, अपनी इंडस्ट्री, और भी नाम हैं।

पहले मेरा अहंकार रहित इस जीवन का परिचय।
विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी उर्फ़ देवीदास विपुल “खोजी” उर्फ सनातन पुत्र देवीदास विपुल जैसे अनुभव वैसा नाम।

शिक्षा: बी.एस.सी. (भौतिकशास्त्र, रसा.शास्त्र, गणित), 1979,  लखनऊ विश्वविद्यालय                           
      बी.टेक.(रसा. प्रौ.),एम.टेक.(रसा. प्रौ.),1982,  एच. बी. टी. आई, कानपुर
      एम.टेक. भाग 1, 1983  एच. बी. टी. आई, कानपुर
      एम.टेक.भाग 2, 1996   एच. बी. टी. आई, कानपुर

व्यवसाय : वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी, 1986 से,
         भाभा परमाणु अनुसन्धान केंद्र, ट्राम्बे, मुम्बई

गुरु दीक्षा : वर्ष 1993, शक्तिपात दीक्षा,
          स्वामी नित्यबोधानंद तीर्थ जी महाराज / स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज

प्रकाशन : 3 भक्ति, 6 काव्य संग्रह, 500 से अधिक वैज्ञानिक, 
         आध्यात्मिक, लेख कवितायें प्रकाशित

अवैतनिक सम्पादक 6 साल से : 50 वर्षों से प्रकाशित
वैज्ञानिक/तकनीकी हिंदी जर्नल त्रैमासिक “वैज्ञानिक” ISSN 2456 – 4818
सम्पर्क : vipkavi@gmail.com, वेब : vipkavi.info, मो. 9969680093
ब्लाग:  https://freedhyan.blogspot.com

प्रिय मित्रों। जीवन रहस्यमय है और विज्ञान की सीमायें। हम अपनी बाहरी खोजों से नित्य नये नये अनुसंधान करते हैं कि मनुष्य को सुख मिले पर क्या वह सुखी हो पा रहा है। नये क्रूर अपराध क्या सुख दे पा रहें। मोबाइल की खोज मनुष्य को नजदीक लाने के लिये की गई पर क्या हम अपने सम्बंधियों से नजदीक हैं। हम एक आभासी जीवन जीते जा रहें हैं। जो पूर्णतया: असत्य और कष्टकारी है। मतलब क्या बाहर की शोध हमें सुख दे पा रही है। यह ठीक है औसतन आयु बढी पर क्या हम अपने बुजुर्गों के समान मानसिक औए शारिरिक अभावों के बावजूद सुखी हैं। मुझको तो मेरे पिता जी मरते मरते मार गये। क्या हम अपने बच्चों को डांट भी सकते हैं। मुझे जितनी पिटाई हुई कहीं उतनी आज बीस साल के बच्चे को कर दो तो मर जायेगा। तमाम बातें जो तर्कों से तौली जा सकती हैं पर नतीजा कुछ नहीं। वातावरण को समाज को दोष देकर हम बचने का बहाना खोज सकते हैं। पर क्या हम सुखी हैं। समाज तो हम से ही बना है। देश और वातावरण भी हमसे बना है। तो जिम्मेदार कौन? हम ही हुये न।

अत: मैंने अंदर की खोज भी आरम्भ की। बिना पूर्वाग्रहित हुये। इसके लिये संतुलित होना बहुत जरूरी है। क्या हम उन तमाम संतों को ज्ञानियों सिर्फ अपने पूरवाग्रह के कारण मूर्ख या झूठा बोल दें। क्या हम उन तमाम महात्माओं को जो इतना साहित्य बिना किसी सुख सुविधा के लिख गये उसका मजाक बनायें। सनातन में तो चारवाक जिन्होने ईश्वर को नहीं माना उनको भी बराबर सम्मान दिया और ऋषि का स्थान दिया।

यह भी सत्य है। जो सिर्फ अपने को सही कहे वो है महामूर्ख। आजकल दुकानदार भी बहुत हैं। पर ईमानदार भी हैं। अत: यदि हमको शोध करनी है तो सबको सुनकर परन्तु खुद प्रयोग कर अपनी शोध जारी रखनी होगी। सनातन हर तर्क को मानता है और कहता है ईश तक पहुंचने के तमाम रास्ते हैं। बाइबिल कहती है सिर्फ ईशू और ये ही सही बाकी गलत। कुरान तो जो न माने उसको मारने का हुक्म देती है। मुस्लिम देशों में कुरान की बात काटने पर सजाये मौत तक दी जाती है। मतलब साफ सनातन बुद्धि को विस्तारित होने का मौका देकर खुद की गीता लिखने की अनुमति देती है। पर बाइबिल और कुरान अपनी किताब के बाहर सोंचने को अपराध मानती है। अत: मैंने बाइबिल कुरान पढा पर शोध का मार्ग सनातन को ही बनाया। मार्ग बाईबिल और कुरान के सही हैं पर अन्य मार्ग गलत नहीं। अत: दोनो पुस्तक पूर्णतया: मानव व्यवहार और मानव जिज्ञासा विरोधी। जो आंतरिक शोध को रोकती हैं। चाहें उसके लिये हिंसा के साथ झूठ, छल और फरेब ही क्यों न करना पडे, क्योंकि इनको मान्यता दी है।

अत: मैंनें जो ध्यान की आधुनिक वैज्ञानिक विधियां जिसको सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधियां (समवैध्यावि) या Movable Mind Scientific Techniques for  Meditation- MMSTM नाम दिया है।

वह ईसाईयों हेतु जीसस को याद कर उनकी पद्दति  के द्वारा  मुस्लिम हेतु नमाज पढकर उनकी पद्दति के द्वारा, इसी भांति आस्तिक, सगुण, साकार, द्वैत उपासक हेतु, निराकार, प्रकृतिपूजक हेतु, नास्तिक, अनीश्वरवादी हेतु, नास्तिक अहम् वादी हेतु उनके विचार और पद्दति के द्वारा ईश शक्ति को अनुभवित कर सकता है।

मेरा मतलब ईश्वरिय शक्ति जीसस नहीं गाड, मोहम्मद नहीं अल्लह, कोई इंसान नही भगवान सिर्फ एक ही एक ही है। जो वेद कहता है गीता कहती है। उसका अनुभव करो। जिससे तुम्हारी मिथ्या सोंच टूट जाये और तुम मात्र मानव जाति को मानो। पर यह भी सही इसको ईसाई भले ही एक बार देख लें पर मुस्लिम देखेगा यह संदेह है।  

मैं अपने को न गुरू मानता हूं। न बनने की या धन कमाने की इच्छा है। भारत सरकार का दामाद हूं। वो मरने तक सब देखेगी। पर मैं हूं एक खोजी। एक शोध कर्ता। जिसने वाहिक के साथ अंदर की भी शोध की। अपने अनुभव लेखों में स्वकथा में ब्लाग पर लिखे हैं। और अपने व्हाटाअप ग्रुप “ आत्म अवलोकन और योग” के माध्यम से अनुभवित लोगों को मार्गदर्शन दे रहा हूं। किताबी ज्ञानियों को दूर से प्रणाम करता हूं। तर्क से पहले हार मान लेता हूं। नकली गुरूओ से तांत्रिकों से भिडता हूं। बस सिर्फ और सिर्फ अनुभवित लोगों से ही बात करना पसंद करता हूं। ग्रुप में भारत सरकार और अन्य बडे बडे वैज्ञानिक, डाक्टर, इंजीनियर्स, हिंदू, मुसलमान, सिख, गुरू, सन्यासी, भीषण तांत्रिक, घनघोर नास्तिक जो ईश्वर को गाली देकर अनुभव प्राप्त कर चुके हैं। वे सदस्य हैं। मैनें प्रयोग किये हैं तब बात कर रहा हूं। ग्रुप में कुछ जगह खाली है। यदि आप व्यर्थ बात न करें। सिर्फ मूक बनकर पोस्ट देखें तो आपको उनके नम्बर और पते भी मिल जायेंगे।

मैं चाहता हूं हमारे मित्र भी लाभांवित हो। जीवन के वास्तविक उद्देश्य के साथ वे कितने रहस्यों को जान सकते हैं खुद को पहिचान सकते हैं। यदि आप लाभांवित होगें तो मुझे अच्छा लगेगा। मेरा कौन सा स्वार्थ पूरा होगा। आप सोंचे। अत: अनुरोध है। व्यर्थ की किताबी और पूर्वाग्रहित बात न करें। सारगर्भित और विवेकपूर्ण अनुभवित बात रखें। सामान्य ज्ञान हेतु गूगल गुरू की शरण में जायें।

आपका हितैषी मित्र 

"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।
" देवीदास विपुल 
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 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...