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Tuesday, August 14, 2018

प्रेम से उपजा जहाँ यह



              प्रेम से उपजा जहाँ यह 


सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी" 


 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक
 वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi


प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।
प्रेम से सब सृष्टि निर्मित। प्रेम पग पग पर मिले।।
प्रेम की परिभाषा इतनी। न तनिक मुझको मिले।।
प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।

प्रेम न हो गर जहाँ में। सृष्टि यह मिट जाएगी।।
दानवी असुरों के संग। यह धरा मिट जाएगी।।
आंख खोलो और देखो। प्रेम से ही सब मिले।।
प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।

प्रेम बिन गर सोंचते हो। तुम ख़ुदा पा जाओगे।।
मिट जाओगे इस जहाँ से। पर नही कुछ पाओगे।।
प्रेम कर लो सृष्टि से तुम। प्रेम से अल्लाह मिले।।
प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।

चाहे कितनी पूजा कर लो। अता कर कितनी नमाज़ें।।
चाहे कितनी ऊंची कर लो। बाग की अपनी आजाने।।
पर तुझे न मिल सकेगा। चाहे कुछ भी कर ढले।।
प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।

चाहे कोई मानव हो या।जीव हो गर भी पराया।।
एक प्रभु सबमें छुपा है। नही कोई है जीव जाया।।
प्रेम करना सीख पगले। प्रेम से खुद को मिले।।
प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।

प्रेम करना श्रेष्ठ सबसे। कह रहा कविवर विपुल।।
प्रेम से कुछ भी न ऊंचा। प्रेम चलकर बनता कुल।।
प्रेम की वाणी लिखी है। प्रेम से वाणी खिले।।
प्रेम से उपजा जहाँ यह। प्रेम से ही यह चले।।

           विपुल लखनवी। नवी मुंबई।

Monday, August 13, 2018

सेवा निवृत्ति कर्म से या मर्म से



सेवा निवृत्ति कर्म से या मर्म से 
          
विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी”,
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
 मो.  09969680093
- मेल:   vipkavi@gmail.com  वेब: vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  




आज मेरे सेवा निवृत्त, होने का दिन आ गया।।
क्या था पाया क्या गंवाया, धीरे से समझा गया॥

उमंग भर  आशायें लेकर, मैं हुआ दाखिल यहां।
सपने कुछ  रंगीले  लेकर संग हुआ गाफिल जहाँ।।
अब समय की चाल पीड़ा, सहने का दिन आ गया।।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने का दिन आ गया।।

मैं अहम में चूर होकर, सोंचा सभी अपना यहां।
ऊंची पदवी मिलती जाती, फूल कर ऐंठा जहाँ।।
लोग डरते मुझसे कितना, दिल मेरा भरमा गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने का दिन आ गया।।

यही मेरा सम्मान हक है, जिस पर मैं काबिज हुआ।
कितने सिर नीचे झुके हैं, कमरे  में दाखिल हुआ।।
न मैं सुनता कुछ किसी की वो करूं मन भा गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने का दिन आ गया।।

बात क्या बोलूँ अभी मैं, अभिमान मुझमें शेष है।
मान पैसे का मेरे में, दर्प अनगिन अशेष है।।
कितनी इज्जत मुझको मिलती, मैंही केवल छा गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने का दिन आ गया।।

पर कदाचित हुआ न ऐसा, जैसा सपना मेरा था।
अरे ये तो निकला धोखा, कोकिलों ने घेरा था।
अब समझ आया मुझेनेत्रों में कोहरा छा गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने का दिन आ गया।


सुनो जगतवालो मुझे अभी कोई क्यों न जानते।
भूले क्या मुझको कभी तुम ईश सम ही मानते॥
अब मुझे अनुभव है कड़वा, आईना दिखला गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने का दिन आ गया।

काश मैंने काम को सम्मान देना सीखा होता।
और जन की पीडा क्या भान करना सीखा होता।।
काश पढ पाता सम्वेदना, कोई मन मे गा गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने का दिन आ गया।

काश मैंने आत्मा की, बात सुनना सीखी होती।
यह जगत मिथ्या कहानी, सीख बुनना सीखी होती।।
पर मेरी अब आयु बीती, यौवन को तरसा गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने का दिन आ गया।

ऐ विपुल क्या सीखना सीखे समय जो अब पास है।
कर्म के मायने समझ तू, भक्ति प्रभू जग आस है।।
आत्मा को जाना जब खोया समय रोना आ गया।
आज मेरे सेवा निवृत्त, होने का दिन आ गया।





"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/

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