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Friday, February 22, 2019

आप जिम्मेदार हैं पर्यावरण प्रदूषण के



आप जिम्मेदार हैं पर्यावरण प्रदूषण के

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,

क्या आप अंजानें में पर्यावरण का विनाश कर  प्रदूषण को तो नहीं फैला रहे है। मेरा मतलब  जितना अधिक मोबाइल इस्तेमाल उतना धिक पर्यावरण का विनाश। जी सही है। आप पर्यावरण नष्ट कर रहे हैं।

आप चौंके नहीं। आगे पढें।


पहली बात नेट यानि आपका मोबाइल से सर्वर सब बिजली से चलते है। बिजली पर्यावरण को नष्ट कर पैदा होती है। अतः अधिक बिट्स की पोस्ट यानी अधिक प्रदूषण।
फोटो कई जी बी तक की होती है।
फोटो के साथ अक्सर वायरस आते है।
भारत मे 80 प्रतिशत प्रात सन्देश मूर्खतापूर्ण गुड़ मानिग जैसे पोस्ट होते है।
विश्व मे भारतीय सबसे बेवकूफी के ऐसे ही सन्देश देते है।
3 विश्व मे पर्यावरण प्रदूषण सबसे अधिक नेट के कारण होता है।
बिजली कोयले से पानी से बनती है यानी पर्यावरण असंतुलन पैदा कर के बनती है।
अतः ऊर्जा की बचत। ऊर्जा की उपज।


इंजीनियर जानते है स्टीम इंजन कारनाट साइकिल है जिसकी क्षमता 30 प्रतिशत अधिकतम होती है।
यानी 100 किलो शुध्द कोयला जलकर मात्र 30 किलो कोयले के बराबर ऊर्जा पैदा करेगा।
अशुध्द कोयला कितना जलेगा। सोंचे।
यानी कितनी जमीन खोदी। पर्यावरण विनाश।
फिर यह ऊर्जा टरबाइन चलाएगी उसकी क्षमता।
फिर ट्रांसमिशन में 35 प्रतिशत तक नुकसान।
फिर आपके घर के यंत्र की क्षमता।
यानी यदि आप घर पर 1 यूनिट बिजली बचाते है तो 10 यूनिट के बराबर पर्यावरण बचाते है।


अब आप सोंचे आप इस बेकार की पोस्टो से कितना पर्यावरण प्रदूषण कर रहे है।

Thursday, February 21, 2019

लहू की होली । काव्य



लहू की होली 
 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी

क्षमा दया अब छोड़ो भइया। होली लहू की खेलो भइया।।
जो दुश्मन गद्दार देश के। न उनको अब झेलो भइया।

बहुत हुई ममता की बातें। बहुत निभी समता की बातें।।
ये दुष्ट पागल कुत्ते है। समझे भाषा जो है लातें।।
अब तकदीर न तोलो भइया। होली लहू की खेलो भइया।।

पहले देश के गद्दारों को। गोली से समझाना होगा।।
पूरे विश्व की बात कही तो। बोली से समझाना होगा।।
अब न चूको वहशी बनो। संगीनों को पेलो भइया।।

मरने दो अब उन कुत्तों को। टुकड़े पर अपने जो पलते।।
मौका आये तब ये दोगले। बन सपोले हमको डसते।।
फन को कुचलो जूते से अब। बोली गोली की बोलो भइया।।

व्यर्थ न जाये लहू रक्त बहा। जो देश की सेवा करने में।
कायर काफ़िर हत्यारे जो। लगे देश को डसने में।।
विपुल शपथ है भारत माँ की। एक एक बदला अपना लेलो।।

पूरा देश तुम्हारे संग है। ये सन्देश वाणी अभंग है।।
नही सहा जाता अब कुछ भी। नही कहा जाता क्या कुछ भी।।
उठ जाओ अब माँ के सपूतों। काल विकराल रूप अब लेलो।

पुलवामा पर दुखी मन के उदगार। काव्य



       पुलवामा पर दुखी मन के उदगार।काव्य
 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,

कैसे प्रेयसी तेरे आंगन आ प्रेम इजहार करूँ।
कैसे तेरी मांग भरूं औ फूलों का श्रंगार करूँ।।

आज देश पर मिटनेवाले कुछ हमसे अब कहते है।
पी मृत्यु के प्याले लेटे कष्ट सभी जो सहते है।।
उनकी व्यथा व्यथित ह्रदय कैसे प्रेम हजार करूँ।
कैसे तेरी मांग भरूं औ फूलों का श्रंगार करूँ।।

दिल रोता है मन मे पीरा अमर हुए जो वे थे हीरा।
हमको सुख देने की खातिर गले लगाया तन को चीरा।।
उनकी यादें जेहन में जब कैसे प्रणय की रार करूँ।।
कैसे तेरी मांग भरूं औ फूलों का श्रंगार करूँ।।

जब देश मे घना अंधेरा गद्दारों का कुनबा डेरा।
छिप आस्तीन हमे डसते गद्दारों की बस्ती डेरा।।
तब कैसे द्वारे तेरे आऊं वर माला द्वारचार करूँ।।
कैसे तेरी मांग भरूं औ फूलों का श्रंगार करूँ।।

विपुल व्यथित दिन है कैसा रात दिखे न सूरज वैसा।
कलम मार क्या कर सकती शत्रु भेदन कर न सकती।।
अब प्रेम के गीत क्या गाऊँ चुका ऋण उद्धार करूँ।
कैसे तेरी मांग भरूं औ फूलों का श्रंगार करूँ।।





 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...