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Wednesday, September 9, 2020

उलट पलट और ओशो चर्चा


 

       उलट पलट और ओशो चर्चा 


विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/

मृत्यु कब और कैसे होगी यह कोई नहीं जानता है लेकिन मृत्यु होगी यह सब जानते हैं इसलिये जीवित शरीर को धर्म समझाने की चेष्टा करता है कि तुम शुभ संस्कारों में रहो। मृत्यु के बाद शरीर तुमको मिटना है, जिसे मिटना है उसी को तय करना है कि राह तो दो ही है किस राह को उसे चुनना है। एक ग़लत कर्मों की राह दूसरी सत्कर्मों की राह। ग़लत कर्मो की राह पर सुख-दुख दोनों बराबरी से मिलेंगे सत्कर्मों की राह में कुछ न मिला तो संतोष के साथ आनन्द मिलेगा।
मनुष्य अकेला ऐसा प्राणी है, जिसके भीतर रावण बनने की संभावना है, तो राम बनने का अवसर भी, मनुष्य के अंदर कंश बनने की संभावना है तो कृष्ण बनने का अवसर भी है, शुभ प्रभात।
मनुष्य सदैव करने के पीछे भागता है जिस दिन मनुष्य न करना सीख लेगा समझो उस दिन उसकी साधना परिपक्व हो गई।
वैसे कलयुग में मंत्र जप से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं मंत्र जाप मम् दृढ़ विश्वासा पंचम भक्ति वेद प्रकाशा।
गुरु करना कोई पहचान नहीं जब समय आता है तो गुरु से मिल जाएगा अपने इष्ट के मंत्र जप में लगे रहो सतत निरंतर निर्बाध क्योंकि गुरु की जल्दबाजी में किसी गुरु घंटाल के चक्कर में लोग अक्सर पड़ जाते हैं।
अपने घर पर लाक डाउन के समय का भरपूर उपयोग करो और अधिक कुछ करना है तो सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि करो ना रंग लगे ना हल्दी रंग चोखा।

 
आज आप अपने वास्तविक स्वरूप में हो प्रभु। यही सबसे सुंदर दर्शन है। बाकी सब प्रपंच निरर्थक है
मै 1 घंटे तक गायत्री मंत्र का जाप करू तो इसमें कोई हानि तो नहीं,  रोजाना माला से, हल्का बोलकर, एक जगह बैठकर

 
मंत्र जप की तीन अवस्थाएं होती है पहली होती वैखरी जिसमें आवाज निकलती रहती है मंत्र जप होता है माला के साथ यह जाप अनुष्ठान के लिए आवश्यक होता है और आरंभिक में यही जप हम कर भी पाते हैं।
दूसरी अवस्था होती है मध्यमा जिसमें की होठ हिलते रहते हैं ध्वनी नहीं निकलती यह थोड़ी परीपक्वता होने पर आती है।
तीसरी अवस्था होती है पश्यन्ती। पश्यन्ती में हम जरा सा सोंचते हैं कि वह मंत्र जप हमारे मन में हमारे मस्तिष्क में आरंभ हो जाता है। इसके बाद एक और अवस्था आती है वह होती है परा पश्यन्ती में हम शरीर के किसी भी अंग से मंत्र जप का अनुभव कर सकते हैं या यूं कहिए हम कर सकते हैं।
जो उचित लगे कुछ न करने से अच्छा है सत्यगुणी भाव में जाने का प्रयास करना।
आप क्या सिद्ध करना चाहते हैं क्या आप लाहडी महाराज बनना चाहते हैं या महावतार बाबा।
मंत्र जप यदि किसी अनुष्ठान के लिए किया जाता है तो उसमें बहुत नाटक होते हैं बहुत बंधन होते हैं अब बहुत ही सीमाएं होती हैं लेकिन यदि आप भक्ति के लिए नाम जप कर रहे हैं मंत्र जप कर रहे हैं तो उसमें कोई भी परेशानी नहीं होती मंत्र जप आपका स्वभाव होना चाहिए उठते बैठते खाते-पीते सोते नहाते धोते हर समय होना चाहिए आवश्यक नहीं मुख से बोले पश्यन्ति में होना चाहिए। लेकिन आप का मंत्र सतत निरंतर निर्माण होते ही रहना चाहिए एक अवस्था के बाद यह मंत्र जप हमको गुरु से लेकर ही ब्रह्म तक सिद्धियों से लेकर निर्वाण तक पहुंचा देता है।
बहुत लोग कहते हैं सुबह की शौच क्रिया के समय मंत्र जप नहीं होना चाहिए मैं कहता हूं उस समय तो अवश्य करना चाहिए मान लीजिए आप की मृत्यु आ जाए तो वह तो आपको नहीं देखेगी कि आप किस अवस्था में है हां एक बात सही है उस समय आप मुंह से आवाज न निकाले वैखरी में नहीं बल्कि पश्यन्ती में करें।
देश भक्ति फेसबुक या व्हाट्सएप पर नहीं होती है कोई भी क्रोध पूर्व पोस्ट करने से नहीं होती है देशभक्ति हमें कर्मों में दिखनी चाहिए हम चाइना के सामान का बहिष्कार करने की बात करते हैं लेकिन बिना देखेभाले टिक टाक को बढ़ावा देते रहते हैं जरा चिंतन कीजिए क्या आप देशभक्त हैं।

 

जय श्री कृष्ण, आप सभी को नमन करते हुए मैं यह कहना चाहती हूँ  कि क्या हम सभी, सेनिटाइजेशन तो ठीक है लेकिन हमारी सनातन संस्कृति में हवन की परंपरा है,जिससे हम सभी  अवगत हैं ,क्यों न हम सभी इसका इस दौर में लाभ उठाने की कोशिश करें।

हवन तो ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से कर सकते हैं क्योंकि गाय का गोबर जगह जगह उपलब्ध है शहरों में समस्याएं हो सकती हैं परंतु गांव में हम आसानी से कर सकते हैं।

शहरो हेतु आज तौर पर मुंबई में करने के लिए हम गैस के ऊपर एक स्क्रीनिंग वाली जाली रख दे और उसमें अपनी श्रद्धा अनुसार स्वाहा करते हुए हवन कर सकते हैं लेकिन इसमें जले हुए का गैस के बरनर में फंसने की संभावना होती है।

सर जो अज्ञानी है लेकिन दुनिया में धर्म की दुकान चलाने हेतु ज्ञानी बने हैं वह दया के पात्र हैं मैं तो यही प्रार्थना करूंगा प्रभु उन्हें वास्तविक ज्ञान दे।

जानकारी रटन्त विद्या यह ज्ञान नहीं है ज्ञान वह है जो प्रभु कृपा से अनुभव के साथ अनुभूति के साथ प्रकट होता है।

भगवत गीता समय आने पर स्वयं अपने ज्ञान के साथ हृदय में प्रकट होती है।

यही सनातन की विशेषता है।

जो‌ ऊंच-नीच के चक्कर में पड़ा रहता है वास्तव में वह अपने साथ अन्याय करता है क्योंकि वह अधिक से अधिक सत्यकर्म के कारण कुछ समय के लिए स्वर्ग इत्यादि में जा सकता है लेकिन उसके ऊपर उसकी क्षमता नहीं है।

जब तक में हम मानव मात्र को एक मानव नहीं समझेंगे सभी को समान नहीं समझेंगे तब तक में हम समाज का कल्याण तो कर ही नहीं सकते हैं अपना भी कल्याण नहीं कर सकते हैं चाहे पूरी दुनिया हमारे पैर छुए।

ब्राह्मण वह है जिसने ब्रह्म का वरण किया हो जिसको योग की अनुभूति हो जिसको वेद महावाक्य का अनुभव हुआ हो। एक तोते को वेद रटा देने से वह ज्ञानी नहीं हो जाता। पढ़ लेने से जानकारी मिल जाती है ज्ञान नहीं मिलता। ज्ञान वह है जो स्वयं हमारे अंदर हमारे हृदय में प्रभु कृपा से प्रकट होता है।

चाइनीज चीजे हर घर में उपलब्ध होगी कोई ना कोई जरूर अनजाने में ही।

धीरे-धीरे बहिष्कार करो मैं आंख बंद करके सारे प्रोडक्ट पतंजलि के लेता हूं क्योंकि वह शुद्ध भारतीय है और अपना सारा पैसा उन्हें देश में लगा देती है।

अब असली है नकली है मुझे नहीं पता क्योंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियां तो जहर मिलाकर टूथपेस्ट में हड्डियों का चूरा मिलाकर घी आदी में चर्बी मिलाकर बेचती है जो हम बचपन से खा रहे हैं और हमारा पैसा भी विदेश जा रहा है पतंजलि में कम से कम हमारा पैसा देश में तो रहेगा।

अपने प्रशन्ं पर मै माफ़ी चहता हू। लेकिन मै ये जानना चहता हू की क्या इस तरह मन्त्र जाप से हमरे कुछ पाप घट सकते हँ। भगवान की असली भक्ति ह्रदय मे बस सकती है ।

पहली बात यह ग्रुप चर्चा के लिए है जिज्ञासा शांति के लिए है माफी इत्यादि का यहां पर कोई भी आवश्यकता नहीं।

देखिए कर्मफल बिल्कुल नहीं कटते हैं कर्म फल प्रारब्ध तो हम को भोगना ही पड़ता है किंतु ईश्वर की कृपा से हमें प्रारब्ध के कष्ट भोगने की शक्ति आ जाती है या कर्म फल का प्रभाव कम हो जाता है।

क्योंकि हर दिन ध्यान ओर इश्वर की तरफ मुझे कुछ खिचाव सा महसूस हो रहा है।

Kya mmstm vidhi ham raat ke badle subah me kar sakte hai???

मैं कम से कम 25 बार गिरा हूं स्कूटर से वाहन से चलते फिरते लेकिन मुझे कभी चोट नहीं लगी लेकिन विगत वर्ष सितंबर माह में पैर फिसलने के कारण गिर गया और मुझे 3 महीने की बिस्तर पर पीड़ा झेलनी पड़ी क्योंकि मेरी तीन हड्डियां टूट गई थी एक हड्डी क्रेक होकर डिसलोकेट हो गई थी पैर में राड प्लेट स्क्रू तार सभी कुछ डाले गए जो किसी साइकिल की पंचर की दुकान पर होते हैं।

किंतु मेरा मन प्रभु को दोष नहीं दे सका क्योंकि मैं इसको अपने कर्म फल प्रारब्ध का भोग मानकर काटता रहा।

ईश कृपा से गुरु कृपा से उसको सहने की क्षमता आ गई और वह कष्ट समाप्त भी हो गए।

सुबह भी कर सकते हैं लेकिन सूरज निकलने के पहले।

कारण यह है की देर रात में और सूरज की किरने निकलने के पहले ब्रह्मांड की सात्विक शक्तियां अधिक रहती हैं आम आदमी सोता रहता है।

वैसे कभी भी दिन में यदि एकांत हो मतलब अकेलापन हो तो कर सकते हैं। लेकिन दिन में इसकी तीव्रता कुछ कम हो जाती है।

प्रभु कृपा से उसकी लीला से आप मैं समझता हूं बिल्कुल सही समय पर इस ग्रुप में स्थान पा गए।

इस ग्रुप में सदस्य बनना भी भाग्य की बात है। यह आप आगे जाकर स्वयं महसूस करेंगे।

मुझे बहुत अच्छा लगा इस ग्रुप मे आकर। वर्ना पता नही इधर उधर भटकता रह्ता। असली ज्ञान मिलना असान नही होता। मै अपको धन्यवाद करता हूँ ।

इसमें मेरी कोई महानता नहीं यह सब प्रभु कृपा से होता है उसी की लीला है कि मुझसे पूरे देश भर के लोग इधर-उधर खोपड़ी पीटने के बाद आकर टकरा जाते हैं और स्थिर हो जाते हैं।

हां याद आया तुम भी एक हो।

लेकिन मै अभी स्थिर नहीं हुआ महाशय जी... मै 2 बार ग्रुप से निकला हूं... अभी भी मेरा भटकाव जारी है... अभी मेरी यात्रा शुरू नहीं हुई है... मेरा अहंकार ही अड़चन है ओर मेरी बेवकूफी और लापरवाही.. मै खुद नहीं जानता क्या हो रहा है मेरे साथ, पिछले जन्म का जरूर कुछ प्रारब्ध है

कभी एक भजन लिखा था कुछ पंक्तियां है।

मैं भटक भटक कर भटक गया।

भटकन में जीवन भटक गया।।

भटकन मेरी अब बंद हुई।

शरणागत तेरे चरणों में।

जीवन यह समर्पित करता हूं।

गुरुदेव आपके चरणो में।

मुझ पापी का उद्धार करो।

हूं पड़ा आपके चरणों में।।

Bhakt Mohit Fb: 20 गुरुओं से दीक्षा लेना फिर भी एक कुत्ते की तरह भटकना, मेरा *मन* कोई बच्चा नहीं... पागल कहना उचित है

नहीं तुम पागल नहीं हो तुम एक इंटेलीजेंट और उत्सुक व्यक्ति हो भटकाव हो तो तुम्हारा प्रारब्ध है। उस को दोष देना उचित नहीं। कुछ लोगों को जब तक कई जगह और उनका ज्ञान नहीं मिलता वह संतुष्ट नहीं होते। यदि हम एक कथा पड़ेंगे तो हम उसके बारे में अच्छा बुरा नहीं कह सकते यदि हम 100 अन्य कथाएं पढ़ेगे तो हम उसकी तुलना अवश्य कर सकते हैं।

तुम कुछ इसी तरीके की बुद्धि लेकर धरती पर आए हो।

मेरे एक मित्र हैं उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के सलाहकार थे अलीगढ़ के जिला न्यायाधीश थे वह संस्कृत के बहुत बड़े विद्वान हैं लेकिन किसी को गुरु नहीं मान पाए उनसे मेरी अक्सर चर्चा होती रहती है मजे की बात यह है उनके मन में कोई जिज्ञासा और संदेह भी नहीं है वह एकमात्र ईश्वर को अपना गुरु मानते हैं। इसमें कोई बुराई नहीं क्योंकि वह भटकते नहीं है कोई जिज्ञासा प्रकट नहीं करते हैं इसीलिए मैं उनका सम्मान करता हूं।

यह कहना है यदि मुझे मेरे प्रश्नों के उत्तर कोई दे देगा मुझे संतुष्ट कर देगा मैं उसे गुरु मान लूंगा वह भी 61 साल के हो गए हैं। फिलहाल अल तकिया पर किताब लिख रहे हैं उनकी लिखी हुई कई किताबें कानून में पढ़ाई जाती है।

सही बताऊं वर्ष 1993 के पहले तक मैं भी गुरु नहीं मानता था लेकिन जब मैं मरने की अवस्था में आ गया तब मुझे मजबूरी में गुरु की शरण में जाना पड़ा और वह भी ईश्वर की कृपा से स्वप्न और ध्यान के माध्यम से गया और जिस परंपरा में गया वह इस धरती की जहां तक मेरा ज्ञान है सर्वश्रेष्ठ परंपरा है।

मेरी अक्सर कई सन्यासियों से चर्चा होती है जिनमें मैं कोई आध्यात्मिक स्तर महसूस नहीं कर पाता किंतु मैं भगवा वस्त्रों का सम्मान करता हूं अतः उनको दंडवत करता हूं प्रणाम करता हूं।

क्योंकि उन्होंने अपना जीवन ईश्वर को समर्पित करके उसके प्रति चलने हेतु प्रतिज्ञा की है।

यह भी बहुत बड़ी बात है भौतिक रूप के बंधन स्वीकार किये है क्योंकि सन्यास में बहुत मर्यादाएं और नियमों का पालन करना पड़ता है जो किसी गृहस्थ को नहीं होती।

इसीलिए मैं बार बार कहता हूं की सन्यासी होना और कुछ हद तक गुरु होना एक सत्वगुणी दंड है।

Bhakt Mohit Fb: मै एक ओशो सन्यासी भी हूं, ओशो ने संन्यास की परिभाषा ही बदल दी, ओर बहुत को संन्यासी बनाया, कोई नियम नहीं ओर कोई मर्यादा नहीं 😃 इसमें बहुत कम लोग उन्नति कर पा रहे है

मेरे ग्रुप में काफी पहले एक ओशो के संयासी आए थे और उनका यह कहना था कि मैं 16 साल से ओशो का सन्यासी हूं मुझे कोई अनुभव नहीं।

मैं ओशो को सनातन की सत्यानाशी करने वाला गीता की बर्बादी करने वाला 1 अज्ञानी ज्ञानी मानता हूं।

किसने भारतीय परंपराओं की ऐसी की तैसी कर दी।

मोहित को ग्रुप से न निकाला जाए ऐसी एडमिन महोदय से प्रार्थना है और मोहित से भी प्रार्थना है कि वो जो है वो प्रदर्शित करे जो नही है उसे प्रदर्शित कदापि न करें।


आप जिज्ञासाएं रखिये, कुछ भी पूछिये, पर ऐसा आचरण कदापि न करे जिससे दुसरो को गलत सन्देश जाय। अब बहुत भटक चुके हो, जो तुम हो उसे प्रस्तुत कर लो। समय दो अपना, चंचलता नहीं। निश्चित ही आपको राह मिल जाएगी। यदि आप पूर्णतः समर्पित भाव रखेगे। किसी के बहकावे वाला भाव न रखेगे

अभी तक मोहित ने कोई फाउल नहीं किया है। थोड़ा यह छुट्टा सांड़ है।

😀😀😀

ओशो पर चर्चा।

No doubt Osho had some quality. Some of his teachings are marvellous. We should not outright neglect a person

Not only you but even a mega film star like Amitabh Bachchan has confessed in Kaun Banega Karorepati show that he is still stranded (Mai Aaj tak bhatak raha hun)

सोना बहुमूल्य होता है लेकिन क्या वह हमारा पेट भर सकता है क्या वह अनाज की तुलना कर सकता है क्या वह हमको जीवन दे सकता है।

हमें यह देखना चाहिए कि किसी भी संत का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा और उसने भारतीयता के विरुद्ध बात की सनातन के विरुद्ध बात की या हिंदुत्व के विरुद्ध बात की। सवाल दर्शन का नहीं अपनी बात से दूसरों को मनाने का नहीं उसने जो विनाश किया है वह शायद ही अभी किसी ने आज तक किया हो।

वह ज्ञानी था मैं मानता हूं वह सिद्ध भी था मैं मानता हूं लेकिन उसकी जो परिक्षण स्थली थी उसमें उसने बहुत गलतियां की।

जिस प्रकार से मनुष्य जब सूक्ष्म शरीर में जाता है तो उसको धरती में मात्र मानव दिखाई देता है और वह हिंदू मुस्लिम झगड़ों पर केवल हंसता है बचपना लगता है। इसी कारण कारण शरीर के कई संत जो ध्यान में लीन है वह धरा पर आना ही नहीं चाहते क्योंकि यहां पर आकर खोपड़ी खपानी पड़ती है।

यही गलती ओशो ने की।

सबसे पहली बात पाप और पुण्य की परिभाषा भगवत गीता से ही निकलती है जब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा हे अर्जुन जो कर्म समाज के प्रतिकूल होगा वह तेरे अनुकूल कैसे होगा। यानी जो समाज के प्रतिकूल है वह पाप है समाज के अनुकूल कार्य पुण्य है। यहां तक पतंजलि ने भी अष्टांग योग में पहले यम रखा है फिर नियम रखा है यम यानी समाज के प्रति हमारा व्यवहार नियम हमारे स्वयं के प्रति हमारे कार्य। यहां भी समाज पहले हैं फिर हम हैं।

भारतीय संस्कृति में कई ऐसे कार्य जो अनैतिक माने जाते हैं किंतु विदेशों में नैतिक माने जाते है यानी भारत में वह पाप है विदेशों में वह पाप नहीं है उस तरह की भावना को इसने बढ़ावा दिया यानी भारतीय सनातन के प्रति अपराध किया।

खुलकर नहीं बोल सकता लेकिन मेरा इंडिकेशन खुले सेक्स की ओर ही है।

दूसरा गेरुआ वस्त्र सनातन में मात्र सन्यासी को ही धारण करने की अनुमति है इसने गृहस्थ

लोगों को सन्यासी बोलकर उनको भगवा से मिलते जुलते वस्त्र पहनाकर और उन वस्त्रों में अनाचार करने को बढ़ावा दिया।

इसने बोला मैं बुद्ध पैदा करूंगा बुद्ध मतलब ज्ञानी लेकिन इतने महात्मा बुद्ध की बहुत बात की। महात्मा बुद्ध ने अपने अष्टमन सिद्धांत में जो लिखा है उसमें स्त्रियों से दूर रहने की बात की जो गलत हो सकती है लेकिन फिर तुम अपने को महात्मा बुद्ध की भांति कैसे ज्ञानी बता सकते हो।

इसने अपने को ओशो टाइटिल खुद दिया जिसके अर्थ होते हैं जापानी भाषा में भगवान।

कोई भी मनुष्य चाहे वह वेद महावाक्यों के कितने भी अनुभव कर ले। मैं ब्रह्म हूं इसके अनुभव कर ले लेकिन वह ब्रह्म नहीं हो सकता। वह भगवान नहीं हो सकता। क्योंकि ब्रह्म वह है किसके अधीन माया है और मानव वह है जो माया के अधीन है।

इनको जहर देकर मारा गया अपने को बचा नहीं पाए कृष्ण सदैव अपने को बचा लिये। तुम कहां के भगवान हो।

वेदमहावाक्यों के अनुभव को मैं मात्र एक उच्च कोटि की क्रिया ही समझता हूं और कहता हूं।


🙏 दुर्गा सप्तशती के विषय में भी ज्ञान वर्धन करे इस विषय के प्रति भी में बहुत जिज्ञासु रहता है। 🙏

दुर्गा सप्तशती एक महाशक्तिशाली मंत्र तंत्र की पुस्तक है महर्षि मार्कंडेय ने मानव जाति पर बहुत ही अधिक एहसान किया कि उन्होंने दुर्गा सप्तशती को प्रकाशित किया। पढ़ने में तो यह कहानी ऐसी है और आप इसको कहानी जैसा ही पढ़िए लेकिन यह सिद्ध पुस्तक है अतः इसका पाठ मानव जाति का कल्याण करता है और करता रहेगा।

लेकिन इसका पूरा पाठ करना चाहिए तभी कुछ हो सकता है।

महर्षि मार्कंडेय ने महामृत्युंजय मंत्र भी धरा पर लाया वह भी परम कल्याणकारी मंत्र है।

Dada aaj kal ek chaman ki durga saptashati market mein jyada bik rahi hai .ye hindi mein hai kya iska paath bhi utna phal deta hai

Kyonki mera mat hai ki sanskrit ke mantro ko hindi anuwaad phaldayi nahi hoga.yesirf dil behalne ke liye ki saptashati padhi hai  hona chahiye .kripya bataye

एक चर्चा फेसबुक पर।

ब्राह्मणों ने शूद्रों को पढ़ने नही दिया तो एक शूद्र बाल्मीकि ने रामायण कैसे लिख दी??

मतलब ये शूद्र वाली थ्योरी fake है

दो वाल्मीकि हुए हैं जिन्होंने ने रामायण लिखी वह  ब्राह्मण थे

Sapt Rishi Bapu Ji  वाल्मीकि एक ही हैं।

महर्षि बाल्मीकि जिन्होंने रामायण लिखिए  थी वह ब्राह्मण थे आपके पास बाल्मीकि रामायण हो तो उसमें पढ़ लेना उन्होंने स्वयं बताया भगवान राम को उत्तरकांड सर्ग  16 श्लोक में कहां मैं ब्राह्मण हूं मेरे बाबा ब्रह्मा उनके पुत्र प्रचेता प्रचेता का में दसवां पुत्र हूं मनुस्मृति में भी यही वर्णन आया जिन्होंने रामायण लिखी वह ब्राह्मण थे

शास्त्रों का अध्ययन करें उसके बाद में टिप्पणी करें अन्यथा व्यर्थ की टिप्पणी ना करें जय सियाराम

पहले आप यह समझे जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता कर्म से होता है और भारत में ज्ञान की पूजा होती है वेदों में गीता में उपनिषद में कहीं पर भी यहां तक कि पुराणों में कहीं पर जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता।

अपने को श्रेष्ठ समझना यही भारत के पतन का कारण रहा है। मनु महाराज ने समाज की व्यवस्था को चलाने हेतु वर्ण व्यवस्था बनाई थी लेकिन लोगों ने अर्थ के अनर्थ करके उन को बदनाम कर दिया।अपने को श्रेष्ठ समझना यही भारत के पतन का कारण रहा है। मनु महाराज ने समाज की व्यवस्था को चलाने हेतु वर्ण व्यवस्था बनाई थी लेकिन लोगों ने अर्थ के अनर्थ करके उन को बदनाम कर दिया।

गीता पड़ी आप ने उस मे भगवान श्री कृष्ण ने क्या कहा कर्म के अनुसार जीव का उच नीच जाति मे जन्म होता आप कहने से कुछ नहीं होता है पहले किसी संत का सानिध्य प्राप्त करो तब ज्ञान प्राप्त होता है वेदो मे भी कहा  ब्रह्माण्ड मुख से ,क्षत्रिय भुजाओं से वेश्य,   जंघाओ से शुद्र चरणों से उत्पन्न हुए हैं

आपको बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है गीता का अनर्थ कर रहे हैं आप।

मिट्टी के शरीर को आप ज्ञानी मान रहे आपसे ज्यादा अज्ञानी कौन है। जन्म से सभी शूद्र होते हैं यह पढ़ा है।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/07/16.html?m=0

मनु स्मृति में समाज के चार वर्ण हैं और आज सारे संसार में वो ही हैं।

ब्राह्मण ..... Intellectuals

क्षत्रिय ...... Rulers, arm forces etc.

वैश्य ....... Traders.

शुद्र ........ Workers..

उसमें यह लिखा है कि कर्म से वर्ण किसी भी श्रेणी में जा सकता है। न कि जन्म से। कालांतर में इसका विकृत रूप सामने आया जो आज भी चल रहा है। इसको हवा दी अंग्रेजों ने और कांग्रेस ने। और तथाकथित धर्म गुरुओं और मंदिर के पुजारियों ने।


आप आइये हमारे पास फिर कोन ज्ञानी है कोन अज्ञानी है पता चल जायेगा।हमारा यही काम है तुम जैसे लोगो की बुद्ध अग्यंता से दूर करने का हैं।

Sapt Rishi Bapu Ji जिसको खुद ज्ञान नहीं है वह दूसरों को क्या बताएगा यह तो आपको पता है किसी भी विवाद की स्थिति में श्रुति का कथन ही अंतिम और सत्य होता है।

आप वेदों के विपरीत बात करेंगे तो आपको कौन ज्ञानी समझेगा आपको मात्र अहंकार है और कुछ नहीं है आपको कोई ज्ञान नहीं है यह मैं समझ चुका हूं।

इसी झूठे अहंकार ने भारत को गुलाम बनाया और संत ज्ञानेश्वर को उनके मां-बाप को दंडित किया।गीता को यदि ढंग से पढ़ा होता तो समझे होते समत्व क्या है।

गीता के भी एक शब्द का मात्र अनुवाद कर लिया और ज्ञानी हो गए।ऊपर मैंने जो लेख लिखा है उसका लिंक दिया है उसमें वेदों का उपनिषद का और तमाम ग्रंथों का हवाला दिया है और समझाया है कि वह महामूर्ख होते हैं अज्ञानी होते हैं जो कर्म से वर्ण को नहीं समझते हैं।

जिस दिन आपको ज्ञान हो जाएगा वेद महावाक्य का ज्ञान हो जाएगा योग अनुभव हो जाएगा आपकी बुद्धि पलट जाएगी बदल जाएगी। प्रभु से प्रार्थना करो कि वह तुमको योग का अनुभव कराए वह तुमको ज्ञान दे।

देखये व्यर्थ की बाते मत करो हमसे अधिक जानकारी आपको नही होंगी।

ये गलत पोस्ट को तत्काल डिलीट करे।

प्रश्न यह है कि कोई यदि पोस्ट डाल कर दलितों और हिंदुओं को एक करना चाहता है तो आप तरह से जातिवाद की ओर और वह भी गलत तरीके से बड़ने लगते हैं। अपने को श्रेष्ठ मानकर दूसरों को मूर्ख बताने लगते हैं।

क्या दुनिया में एक आप ही ज्ञानी पैदा हुए हैं। क्या भारत संत महात्मा और योगी और ज्ञानियों से खाली हो गया है।

अपना अहंकार त्यागीये और कभी एकांत में बैठकर सत्य शोधन कीजिए स्वाध्याय कीजिए तो आपको मालूम पड़ेगा मानव सब एक हैं न कोई छोटा न कोई बड़ा।

ऐसे माहौल में जब सनातन की रक्षा के लिए सभी को एक होना होगा चाहे वह दलित हो चाहे पिछड़ा हो और चाहे सवर्ण हो कोई भी हो। उस माहौल में आप पुनः बांटने का प्रयास कर रहे हैं।

क्या यह ज्ञानियों के लक्षण है।

और यदि आपके पास ईश्वर शक्ति है और आप ध्यान कर सकते हैं तो जाइएगा और मेरे बारे में पता कीजिए और ईश्वर से ही पूछियेगा। मैं कितना गलत हूं और सही हूं।

कोई वाटने की बात नही कर रहा उच् नीच मे जन्म कर्म के अनुसार ही प्राप्त होते भगवान श्री कृष्ण गीता मे कहते है उची जाति मे जन्म अच्छे कर्म से मिलते है आज मुझे गर्व है मे ब्रह्मा न हुं।महर्षि बाल्मीकि जिन्होंने रामायण लिखिए  थी वह ब्राह्मण थे आपके पास बाल्मीकि रामायण हो तो उसमें पढ़ लेना उन्होंने स्वयं बताया भगवान राम को उत्तरकांड सर्ग  16 श्लोक में कहां मैं ब्राह्मण हूं मेरे बाबा ब्रह्मा उनके पुत्र प्रचेता प्रचेता का में दसवां पुत्र हूं मनुस्मृति में भी यही वर्णन आया जिन्होंने रामायण लिखी वह ब्राह्मण थे।

मैं स्वयं कहता हूं मैं ब्राह्मण हूं। श्रीमान जी एक बार लिख के लिंक पर जाकर पढ़ने का कष्ट करें यह आपसे निवेदन है और समय स्थिति के अनुकूल हमें क्या करना चाहिए उस पर विचार करें।यह आवश्यक बिल्कुल नहीं कि जो हमारे पास सोच है ज्ञान है विचार है वह उन लोगों पर भी है जो सामान्य जनमानस है।

आदिवासियों को तो यह भी नहीं पता कि हिंदू क्या है आप उनको ब्राह्मण हूं ऊंच नीच कैसे सिखाएंगे। यदि देश में हिंदू जीवित रहेगा सनातन रहेगा तभी आप ब्राह्मण होने का गर्व कर पाएंगे।यह प्रवचन यह कर्म खान यह दुनिया ऐसे ही चलती रहे इसके लिए हमें सनातन की रक्षा करनी होगी और लोगों को हिंदुत्व की सही व्याख्या समझा नहीं होगी और बताना होगा कि दलितों तुम हिंदू ही हो आदिवासियों तुम हिंदू ही हो तो हमसे अलग नहीं हो। तुमने बड़े-बड़े काम किए हैं। तुम ज्ञानी हो तुमने बड़ा बड़े काम की है

महर्षि वेदव्यास मल्लाह के पुत्र थे। ऐसे तमाम उदाहरण हुए हैं कि जो शूद्र में जन्म लेकर भी ब्राह्मण से उच्च पद प्राप्त किए हैं।सवाल सनातन में ज्ञान का होता है रावण ब्रह्मा का वंशज था किंतु उसके कर्म के कारण उसको आज तक जलाया जा रहा है।

हमारी यहां सदैव कर्म प्रधान श्रेष्ठ माना गया है और उसी की पूजा की गई है।

यह आप अच्छी तरीके से जानते हैं कि आज के जो अपने को ब्राह्मण कहते हैं क्या वह जो ब्राह्मण के लिए कर्म बताए गए हैं जैसे कर्म कर रहे हैं।


आप गलत कह रहे हैं वेद ब्यास मल्लाह के लड़का था उनकी मां जानते हो किसकी लड़की थी देवी भागवत में वर्णन आता है एक क्षत्रिय राजा थे जिनका नाम था उपर्चरि उनकी जुड़वा संतान हुई थी एक लड़का एक लड़की लड़का उन्होंने अपने पास में रखा जो लड़की पैदा हुई थी उसके शरीर से मछली जैसी गंध आती थी इसलिए उन्होंने उस लड़की को एक महिला को दे दिया पालन पोषण हुआ उस लड़की का मल्लाह के यहां पर उससे व्यास जी महाराज उत्पन्न हुई जिसका नाम था मत्स्यगंधा।

चलो ठीक है चर्चा को विराम देता हूं यह समय की बर्बादी है और कुछ नहीं है लेकिन आप अपने टिप्पणी पर गंभीरतापूर्वक विचार कीजिएगा धन्यवाद शुभ रात्रि।

सत्य सनातन की जय हो सभी हिंदू एक हो।


सर जो अज्ञानी है लेकिन दुनिया में धर्म की दुकान चलाने हेतु ज्ञानी बने हैं वह दया के पात्र हैं मैं तो यही प्रार्थना करूंगा प्रभु उन्हें वास्तविक ज्ञान दे।

जानकारी रटन्त विद्या यह ज्ञान नहीं है ज्ञान वह है जो प्रभु कृपा से अनुभव के साथ अनुभूति के साथ प्रकट होता है।

भगवत गीता समय आने पर स्वयं अपने ज्ञान के साथ हृदय में प्रकट होती है।

यही सनातन की विशेषता है।

जो‌ ऊंच-नीच के चक्कर में पड़ा रहता है वास्तव में वह अपने साथ अन्याय करता है क्योंकि वह अधिक से अधिक सत्यकर्म के कारण कुछ समय के लिए स्वर्ग इत्यादि में जा सकता है लेकिन उसके ऊपर उसकी क्षमता नहीं है।

जब तक में हम मानव मात्र को एक मानव नहीं समझेंगे सभी को समान नहीं समझेंगे तब तक में हम समाज का कल्याण तो कर ही नहीं सकते हैं अपना भी कल्याण नहीं कर सकते हैं चाहे पूरी दुनिया हमारे पैर छुए।

ब्राह्मण वह है जिसने ब्रह्म का वरण किया हो जिसको योग की अनुभूति हो जिसको वेद महावाक्य का अनुभव हुआ हो। एक तोते को वेद रटा देने से वह ज्ञानी नहीं हो जाता। पढ़ लेने से जानकारी मिल जाती है ज्ञान नहीं मिलता। ज्ञान वह है जो स्वयं हमारे अंदर हमारे हृदय में प्रभु कृपा से प्रकट होता है।

मैं कर रहा हूं ब्राह्मण  जैसा कर्म ऋषि कुल परंपरा से हूं और इसी कुल परंपरा निभाता रहूंगा गर्व से कहता हूं मैं ब्राह्मण हूं


Sapt Rishi Bapu Ji आप तो ब्राह्मण के नाम पर गलत धारणा फैला रहे हो और हिन्दुओं को तोड़ रहे हो।

Sapt Rishi Bapu Ji प्रभु जी इस पंच भूतों का बना हुआ शरीर इसका गर्व करना यह अज्ञान है। इस शरीर पर हमारा बिल्कुल नियंत्रण नहीं। इसको अपना मान कर गर्व करना यह कोई समझदारी नहीं है। सत्व केवल आत्मा है जो ब्रह्म का स्वरूप है और आत्मा सभी भूतों में एक होती है वह न छोटी होती है न बड़ी होती है अत: मिट्टी के चोले पर इस नाशवान थैले पर जो कुछ क्षणों के लिए जगत में आया है उस पर गर्व करना ज्ञान की निशानी नहीं है।

प्रभु जी कभी उन दुष्ट हत्यारों के नाश के लिए भी हवन करें।


🙏 कुछ समय पूर्व में सप्तशती का पाठ हिंदी भाषा में करता था। नवरात्रि के अलावा जब भी समय मिलता था तब करता था। जब आप ने पिछली बार संस्कृत में पाठ करने के लिए कहा था उसके बाद मैंने गीता प्रेस की पुस्तक से प्रयत्न किया परंतु गलत उच्चारण के कारण पुन 1-2 पाठ के पश्चात पुनः हिंदी में करने लगा । यह दुविधा मैंने मेरे गुरु भाई को बतलाई तब उन्होंने मेरे मन में और संशय डाल दिए। और गुरुदेव से आज्ञा लेने के विषय में पूछा। उसके बाद मैंने गुरुदेव के समक्ष अपनी परेशानी रखी और उनसे सप्तशती करने की आज्ञा ली।गुरुदेव ने आज्ञा देने के साथ कहा प्रयत्न करो। उसके पश्चात मैंने दुर्गा सप्तशती के पाठ पुनः प्रारंभ किए इस बार मुझे अद्भुत गीता प्रेस की सरल दुर्गा सप्तशती मिली जिसका मैंने काफी दिनों तक पाठ किया अब मेरा उच्चारण भी काफी ठीक हो चुका है। यह सदगुरुदेव की कृपा और आप जैसे लोगो के मार्ग दर्शन से ऐसा संभव हुआ हैं।🙏

जहां तक प्रयास करें जो ऊपर की आराधनाए हैं वह संस्कृत में पढ़ें और बाकी जो कथानक है वह सब हिंदी में पढ़ने में कोई परेशानी नहीं है मैं भी हिंदी में ही पढ़ता था बल्कि मैं तो पूरी पूरी हिंदी ही पड़ता था क्योंकि वही समझ में आती थी।

अब एक सुंदर कार्य करो इसके प्रत्येक पाठ को पढ़कर अपनी आवाज में रिकॉर्ड करो और फिर उसको ग्रुप में पोस्ट करो।

मतलब हर पाठ अलग अलग।

प्रतिदिन एक पाठ पोस्ट करो।

बाद में सभी पाठों को मर्ज कर एक बढ़िया सा पीडीएफ बना देना।

Amit Singh Parmar : संस्कृत में उच्चारण गलत होता है तो उसके लिए क्या कर सकते है🙏🏻🙏🏻

अज्ञानवश हुई गलती को माफ कर दिया जाता है अपनी ओर से पूरा प्रयास करो गलत हो जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ता एक बात मैं बताऊं जब मैं अपना मंत्र कुछ गलत उच्चारण करता था तब मुझको देव कृपा हो गई और फिर गुरु दीक्षा के बाद उसको शुद्ध रूप से उच्चारण करता हूं उसके बाद उस तरह की दर्शनाभूति नहीं हुई।

😀😀😀

बस अंत में क्षमा प्रार्थना कर लो।

कोशिश तो करता सर पर हो जाती गड़बड़.... शब्द ही इतने लंबे लंबे होते

करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।

Bhakt Pallavi: मैं आपको कुछ बताना चाहती हूँ🙏🏻

मेरे दादा जी के घर में एक पुस्तक है, जिसे वह श्री दुर्गा सप्तशती बताती थीं,

परन्तु उस पुस्तक को पढा नहीं जा सका, क्योंकि वह किसी अज्ञात भाषा में लिखी गई है, वह मेरे ही पूर्वजों के द्वारा रचित है,

वाह अद्भुत जानकारी। क्या उसके कुछ प्रश्नों की फोटो भेज सकती है।

हो सकता है वह तिब्बती भाषा में लिखी हो क्योंकि एक तिब्बतिओं ने भारतीय संस्कृति को उसके साहित्य को काफी सीमा तक संरक्षित कर लिया था लेकिन उनकी भाषा तिब्बती थी और वह ग्रंथ आज भी उनके पास सुरक्षित है

मैं जब लाकडाउन  खत्म होने के बाद घर जाऊँगी तब यह मेरी प्राथमिकता होगी,

बिल्कुल होनी चाहिए।


"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 


Thursday, September 3, 2020

योग की वास्तविकता और गलत धारणायें

                   योग की वास्तविकता और गलत धारणायें

प्रायः लोग योग का अर्थ पेट को पिचकाना या कलाबाजी खाना या सर्कस के नट की तरह छलांगे मारना ही समझते है। इसमें योग की कोई गलती नही है जिनको नही पता उनको यही सब योग के नाम पर बताया जा रहा है इसमें उनकी क्या गलती है। कारण स्पष्ट है जो बोल रहे है उनको खुद नही पता योग क्या है बस सुना है तो कह रहे है और सिखा रहे हैं।

             वास्तव में पहले भारत मे शरीर को मजबूत और स्वस्थ्य करने के लिए विनिन्न आसनों और प्रणायाम के द्वारा उसको इस लायक बनाते थे कि वह शक्ति सहने लायक हो जाये। इसी क्रम में पातञ्जलि महाराज ने योग प्राप्त करने हेतु आठ अंग यानी हिस्से बताये। जिनमे 5 वाहीक और तीन आंतरिक है। 5 वाहीक रूप से सिध्द होने के बाद गुरू देखते थे कि शिष्य का शरीर योग्य हुआ तो उसको शक्तिपात के द्वारा शक्ति प्रवाहित कर कुण्डलनी  जागृत करते थे। जो सामान्य मन्त्र देते देते थे वह भी धारणा और ध्यान में द्वारा समाधि तक पहुँच जाते थे। कुल मिलाकर शिष्य की गुणवत्ता बहुत आवश्यक थी।

               समय बीतता गया उपयुक्त शिष्यों  का अभाव होने लगा। और विद्द्यायो को मरने का खतरा पैदा होने लगा। इसमें एक कारण आक्रांताओं का आक्रमण और भारत मे बढ़ता अज्ञानी ब्रह्माणवाद साथ मे छुआछूत जो स्वर्णिम भारत का एक काला युग बनने लगा। अतः अनुपयुक्त को भी दीक्षाएं मिलने लगी। जरा से बैठने में कमर दर्द । चलेगा भाई लेट कर कर लो। यह मजबूरियां थी। ऐसी ही पतन होता गया और बिना गुरू परम्परा के गुरू होने लगे। इस कारण योग और भृमित हुआ।

               यहाँ तक कि जैसे आप दिल्ली जाने वाली कई ट्रैन में बैठे कि हो गया आप दिल्ली पहुँच गए। कुछ वैसे ही अंतर्मुखी होने की विधियों के नामकरण कर उनके आगे योग लगा दिया। जैसे अष्टांग योग में पाँच न करो सिर्फ तीन करो और आंख से त्राटक करो तो बन गया राजयोग। अब चाहे अनुभव हो या न हो यदि तुम कर रहे हो तो राजयोगी।

कर्ण के द्वारा शब्द तो शब्द योग। नादयोग । मंत्रयोग। तमाम नामकरण हो गए।
जबकि ट्रेन दिल्ली गई नही रास्ते मे है पर दिल्ली पहुंचने का शोर। यही होता है योग में।
किसी ने पेट को चला लिया तो बोला गया अरे तू तो योगी हो गया।
योग को केवल कसरत और स्वास्थ्य से जोड़ दिया।

                यदि योग को क्रमवार समझा जाये। तो सबसे पहले वेदांत ने साधारण रूप में समझाया। जब किसी भी अंतर्मुखी विधि को करते करते " (तुम्हारी) आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव हो" तो समझो योग हुआ। मेरे विचार से जब "द्वैत से अद्वैत का अनुभव हो तो समझो योग"  
 
               अब इसकी अवस्थाये क्या है वह समझे। साकार आराधना वाले को जब दर्शन होते है। तब साकार परिपक्व होता है। और यदि देव आपको स्पर्श कर दे तो आपकी देव दीक्षा हो जाती है। इसी के आगे पीछे आपको अहम ब्रह्मास्मि के अनुभव हो जाते है तो समझो योग हो गया।
 
            यहाँ पर एक बात ध्यान देनेवाली है कि यदि यही अनुभव यानि अहम ब्रह्मास्मि का अनुभव निराकार को होगा तो वह भ्रमित हो जाता है क्योंकि वह किसी को मानता नही। फिर वो ही मूर्तिपूजा साकार का खंडन करने की मूर्खता कर बैठता है
 
       मोहम्मद साहब ने साकार मूर्ति पूजा का खंडन किया। ओशो तो अपने को भगवान समझ महा पाप कर बैठे। वही साकार वाला यह प्रभु की लीला समझकर और अधिक समर्पित ही जाता है। अब आगे यह सब अनुभूति मात्र कुछ मिनट की होती है पर यह ज्ञान और अनुभव जीवन भर चलता है।
 
              इसको आगे पातञ्जलि महाराज ने समझाया। वेदांत घटना घटित होने के बाद योग का अभ्यास और पहिचान क्या है "चित्त में वृत्ति का निरोध" यानी हमारे भीतर संस्कार उदित न हो। हम निष्काम भाव से बिना कर्म में लिप्त हुए। जगत के प्रति आसक्त हुए बिना कर्म करे।  तब संस्कार संचित नही होंगे। यह हो जाएगा कर्म योग।
 
              जिसको श्रीमद्भगवद्गीता में कहा योगी के लक्षण। पहला हर कार्य को कुशलता से करेगा।   सबमे मुझको मुझमे सबको देखेगा। सुख दुख में स्थिर रहेगा। और उसकी बुद्धि सदा मुझमे स्थिर रहेगी। यानी वह स्थिरबुद्दी स्थितप्रज्ञ। जिसकी प्रज्ञा यानी आंतरिक बुद्धि भी ईश में स्थित हो जाती है।
 
              इसी बात को तुलसीदास ने कहा "जा पावे संतोष धन सब धन धूरि समान"। यानी जिसमे संतोष हो हर हाल में खुश वो योगी।
वास्तव में योग केवल तीन ही है। भक्ति कर्म और ज्ञान। और यदि 24 घण्टे ये ही भाव कि हम ब्रह्मास्मि तो सांख्य योग।
बाकी सब नाम है योग नही।
 
              यानि पहले भक्त बनो फिर दर्शन लो फिर अहम ब्रह्मास्मि का अनुभव लो फिर साकार के द्वारा ही निराकार का अनुभव लो तो पूर्ण ज्ञान। और फिर ज्ञान योग पैदा होता है।
 
             मैं समझता हूँ इससे अधिक साफ साफ मेरे लिए तो बता पाना मुश्किल है। अब आप ज्ञानीजन टिप्पणी कर मुझे वास्तविकता का ज्ञान दे।
 
कुछ उत्तर जो “आत्म अवलओकन और योग" में  ग्रुप में दिये: 
जो दूसरे की पद्दति को गलत बोले और बोले वो सही वह अपूर्ण ही है।
बुध्द ने साकार का मूर्ति पूजा का खण्डन किया। अतः अपूर्ण।
ओशो ने अपने को भगवान बोला अतः पॉपी। दण्ड भोगा। जेल में सड़ कर मरे।
दूसरों की उपासना की मजाक बनानेवाला अज्ञानी ही होता है।
तर्क वितर्क समय के साथ परिवर्तित होता है अतः यह व्यर्थ की वस्तु है।
वह अज्ञान था। सनातन ने नही कहा।
बुध्द ने खण्डन अधिक किया।
खण्डन दूसरों को मूर्ख साबित करना है।
ओशो को जहर भी उनके शिष्य ने दिया था।
देखो मित्रो यह व्यर्थ की बहस है। मरते समय ओशो ने स्वीकार किया वह भगवान नही है उसे भरम हुआ था।
मेरा सीधा मानना है जो दूजे के मार्ग को गलत समझे वह महा अज्ञानी। 
जो अपने को भगवान बोले वह महा पापी।
बस सीधा सा सिध्दांत।
मुझे किसी ओशो भक्त ने ही बताया था।
पर मूर्तिपूजा का मजाक बनाया।
दूसरे बुद्द आत्म मय कोष के ऊपर दुःख मय कोष मानते है। जबकि सनातन आनन्दमय कोष मानता है। और मैं भी यही मानता हूँ।
बन्दा बैरागी का सर आधा काट दिया था औरंगजेब ने, पर वह नही झुके।
मित्रो अब यह व्यर्थ का विवाद बन्द करो औरो को पसन्द नही। आप सब सही है अपनी जगह पर चूंकि यह आपका अनुभव है। अतः दूसरे पर अपने विचार थोपने से कुछ लाभ न होगा।
मेरा कहना है। करो और करो। बस व्यर्थ विवाद में मत पड़ो।
मैं जो सोंचता हूँ वह औरो के लिए गलत हो सकता है।
मैं बुध्द जीसस और मोहहमद तीनों को अपूर्ण ही मानता हूँ। मेरे पास तर्क है और कसौटी है पर कोई फायदा नही। मेरी सोंच मेरी आपकी आपकी।
देखो मित्र मैं गुरू नही प्रवचक नही और न ही सन्यासी हूँ। मैं एक खोजी हूँ। जिनको अपने अनुभवों से भय होने कारण साधनाये छोड़ देते है या जिनके भीषण अनुभव होते है उनको सही मार्ग दिखाता हूँ।
जो नकली गुरू दुकानदार है उनको पर्दाफाश करता हूँ।
जो अपने नाम के आगे बड़े बड़े पट्ट लगाते है उनसे पिलता हूँ। 
जिनको सदगुरू की आवश्यकता होती है उनको अनुभव के अनुसार सदगुरूओं तक पहुचाता हूँ।
बिना अनुभव के ज्ञानियों से किताबी बहस शुरू होने के पहले ही हार मान लेता हूँ। बकवास का अंत नही। अनुभव की सीमा नही।
मैं सनातन का सेवक हूँ।
किसी से पूछो तुम कैसे देखते हो वह कहेगा आखों से। यानी आंख फोड़ दे तो नही दिखेगा। पर जब मनुष्य को मर जाना कहते है तो न देख पाता न सुन पाता कुछ कर्म नही कर पाता। इसका क्या अर्थ हुआ। जो शक्ति आपसे कर्म करवा रही थी वह चली गई। शरीर के बाहर। इसी को आत्मा कहते है। विज्ञान वाइटल फोर्स कहता है।
इसी आत्मा को जानना है आत्मबोध। जब हमें यह अनुभव होता है कि कर्ता हम नही वह तो कोई और है तो आत्मबोध होता है।
मनुष्य प्रायः इस भौतिक जगत में इतना लिप्त हो जाता है कि उसे ध्यान नही रहता कि वह कौन है। कौन उसके कार्य करता है। वह सोंचता है मैं ज्ञानी मैं कर्ता मैं भर्ता यही कारण उसकी भटकन बन जाता है। बाद में वह वाहीक जगत में सुख खोजता है।
जो मनुष्य अंतर्मुखी होने का प्रयास करेगा। उसको आज नही तो कल आत्मबोध हो ही जायेगा। mmstm इसी लिए निर्मित हुई है कि आदमी आत्मबोध करे।
सरल सहज मार्ग प्रत्येक मनुष्य के लिए अलग अलग है। इस पर विस्तार से चर्चा लेख अन्तर्मुखी कैसे हो। इस मे समझाई गई है।
वैसे मन्त्र जप सबसे सस्ता सुदर टिकाऊ मार्ग है।
हम अपने को ज्ञानी और दूसरे को मूर्ख समझने की भूल कर बैठते है यही अज्ञानता की जन्मदाता है।
हम सही दूजे गलत यह मूर्खता है।
जब तक हम मूर्ख नही बनेंगे। जगत से कुछ सीख न पाएंगे।
जिसकी कुण्डलनी जागृत हो जाती वह यह सब आरम्भिक प्रश्नों को अनुभव कर ब्रह्मज्ञान की ओर प्रशस्त हो जाता है।
आपके प्रश्नों के साधारण तरीक़े उत्तर।
आप ग्रुप में अपनी धर्म की दुकान जिसे करोड़ो लोगो को मूर्ख बनाकर सनातन की धज्जियां उड़ाकर पूर्वाग्रही लोग चला रहे है। उसके प्रचार हेतु विभिन्न ग्रुप में शामिल होते है। आप इस ग्रुप में किसी को भी प्रभावित नही कर पाएंगे।
आप गुरू मानते नही।
आप कुण्डनलनी मानते नही।
और दूसरो को त्राटक को राजयोग बताकर पागल बनाकर छोड़ देते है। 
काम को आप गलत मानते है  पति पत्नी को भाई बहन बनाते है।
यह सोंचो तुम्हारे जनक ने क्या पाप किया जो तुम आये थे।
सही है आतंकवाद हर धर्म जाती में होती है। कही कम कही ज्यादा। कही धर्म के नाम पर कही भाषा के नाम पर कही गरीबी अमीरी के नाम पर।
नक्सलवाद क्या है जो अपनी तानाशाही चलाने   हेतु आतंक करता है।  हिटलर ने जाति के नाम पर हिंसा की।
मुसोलनी ने गरीबी अमीरी के नाम पर।
आज मुस्लिम आतंकवादी धर्म के नाम पर। 1984 के दंगे सिर्फ कौम के नाम पर। बंगाल में केरल में धर्म के नाप हिंसाएं हो रही है।
दुनिया मे सबसे अधिक हिंसा धर्म के नाम पर और हत्याएं भी धर्म के नाप होती है।
सनातन ही सभी विधियों का जन्म दाता है।
Janak kaviratna: विपुल भाई, आचार्य रजनीश की आत्मा को बुलाने के बारे में मैंने प्रतिष्ठित पत्रिका कादम्बिनी में एक लेख में कुछ पढ़ा था। आज वो पत्रिका मेरे हाथ लग गई।सन 1992 का अंक है। उसका मुखपृष्ठ, और वो लेख, दोनों की स्कैन कॉपी यहाँ दे रहा हूँ।
यार यह बताओ ओशो को इसके मतलब मुक्ति नही मिली।
मेरे हिसाब से वह प्रेत के रूप में भटक रहा है। एक कमरे में बन्द है।
इस बात का कारण यह हो सकता है बढ़ती प्रसिध्दी और धन के साथ माया अपना प्रभाव डालने में सफल हो जाती है। विभिन्न प्रपंचो में उलझे रहने के कारण स्वयं को तप का साधन का समय निकालना कठिन होता जाता है। अतः वह सन्त फिसलने लगता है। माया के अधीन होकर वह मनमाना व्यवहार करने लगता है। कभी कभी कानून में कई बार बचने के बाद भी फंस जाता है।
इसी लिए स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज प्रचार प्रसार और शो बाजी के बिल्कुल खिलाफ थे।
यहाँ तक प्रवचन में सजावट अधिक हो गई तो जाते ही नही थे।
उनका मत था। आश्रम में यदि तेल साबुन बनना चालू करोगे तो यह व्यापार पर अधिक साधन और शिष्य की उन्नति पर ध्यान नही देगा।
महाराज जी कहते थे पहले एक फिर दो और कुछ वर्षों बाद समाधि दुकानदारी हो जाएगी।
मेरा अनुभव है मैं जरा सा ग्रुप सम्भाल नही पा रहा हूँ। मुझे मेरी साधना हेतु समय नही निकल पाता। सोने के समय को काटकर कर पाता हूँ। वह भी बिगड़ गई है। क्योंकि जगत के व्यवहार। तो इन गुरुओ को समय कब मिलता होगा।
वहाँ तो गुरू मो मर्यादा में भी रहना होता है।
भाई इसी लिए मां शक्ति ने शिव कृपा से mmstm बनवाकर आशीष दिया। जाओ सब घर पर करो। कोई गुरु चेला का चक्कर नही। जब समय होगा गुरू मिल जाएगा बसअपने उत्थान पर ध्यान दो।

अपने ज्ञान का गर्व मनुष्य को सीखने का मार्ग अवरूध्द कर देता है। अतः मनुष्य की उन्नति रूक जाती है । अतः मूर्ख बनो तब ही ज्ञान प्राप्त कर पाओगे। ज्ञानी बने तो अज्ञानी कहलाओगे। ........ देवीदास विपुल।


"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 




नवांग वेद

 नवांग वेद

                              सनातन पुत्र देवीदास विपुल “खोजी”

१.वेद सनातन ज्ञान है। जो कभी नष्ट नहीं होता। यह आप यूं समझे जो मनुष्य आत्म साक्षात्कार कर लेता है तो उसकी शिक्षा स्वयं वेद की शिक्षायों से मिलने लगती है। अत: ज्ञानी मनुष्य की पहिचान होती है कि उसकी बात वेदों से मेल खाये।
इनको समझाने हेतु इनकी शिक्षाओं पर शोध कर जो लिखे गये वे उपनिषद कहलाये।
वेदों की शिक्षाओं पर तथ्य द्वारा विभिन्न विषय पर तर्क सहित जो लिखे गये वे षट् दर्शन कहलाये।
इन सभी का निचोड़ श्रीमद्भग्वद्गीता है। जिसको चारित्रिक उदाहरण सहित रामचरित मानस ने जन जन तक पहुंचाया।
हर सृष्टि के आदि में चार ऋषियों को आत्म ज्ञान द्वारा यह स्वयं ईश्वर द्वारा प्रगट किये जाते हैं ।
जो मनुष्य को वास्तविक रूप का ज्ञान बोध करवाते हैं। अत: यह साकार निराकार द्वैत अद्वैत सगुण निर्गुण या यूं कहो हर उस पद्धति को समझाते हैं जिसके द्वारा मनुष्य अंतर्मुखी हो सकता है। 

२.वेद सब सभी मानव जाति के कल्याण लिए हैं। यह सभी प्रकार के ऊंच नीच व अन्धविश्वास पाखंड आदि का समर्थक नहीं है । यह वसुधैवकुटुम्बकम् सहित मानवता का संदेश देता है। यह सभी वर्गो के लिये हैं ।

३.चूंकि संस्कृत देव नागरी है यानि इसका जन्म मानव शरीर से हुआ है। हमारे शरीर के चक्रों पर जो ध्वनियां अनाहत उत्पन्न होतीं है उनको लिपिबद्ध कर संस्कृत का जन्म हुआ है। अत: यह संस्कृत भाषा में हैं जिसे सीखने के लिए सबको एक जैसी मेहनत करनी पडती है।

४. वेद में ईश्वर जीव प्रकृति व सृष्टि का यथार्थ ज्ञान है जो सूत्र रुप में है। अत: उपनिषद षट् दर्शन का निर्माण हुआ जिसकी सहायता के द्वारा इसको समझा जा सके।

५. वेद में सब बातें सृष्टि नियमों के अनुसार हैं । वेद कभी अनियमित बात नहीं करता।

६. वेदों  में कोई इतिहास व किस्से कहानियां नहीं। मात्र मार्गदर्शन है।

७. वेद ईश्वरीय वाणी है- इसका साक्ष्य कई मनुष्यों भी ने किया है। आप भी कर सकते हैं।

८. वेद में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता क्योंकि यह सृष्टि के लयात्मक सिद्धांत हैं।

९. वेद पूरी मानव जाति का संविधान है । 

 
अत: विश्वशांति हेतु वेद या सम्बंधित साहित्य का पढ़ना पढ़ाना सुनना सुनाना आज की आवश्यकता है।   
 


 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...