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Tuesday, February 19, 2019

होली के रंग कितने बदरंग हो सकते हैं





 होली के रंग कितने बदरंग हो सकते हैं

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक:मासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
  

होली का त्यौहार नजदीक होने के साथ बाजारों में रंगों की फुहार दिखना शुरू हो गई है। दुकानदारों ने आकर्षक व रंग-बिरंगे रंगों से दुकानों को सजा रखा है। रंगों और खुशियों का त्योहार होली अक्सर कई परिवारों के लिए बेरंगा और दुखदायी हो जाता है। वजह है खतरनाक रासायनिक रंगों का दुष्प्रभाव। जहां लोगों में इस त्योहार को लेकर उत्साह है वहीं एक चिंता का विषय  यह भी है कि कहीं खतरनाक रंग इस त्योहार की खुशियों के रंग में भंग ना डाल दें। जहां पुराने समय में होली और रंगों का संबंध सीधे प्रकृति से था। जिसके साथ सादगी और प्राकृतिक समन्वय था। वहीं आज इस त्योहार में अक्सर रंग में भंग होता देखा जा सकता है। इसके कारण अनेक हैं लेकिन रासायनिक घातक रंगों के दुष्प्रभावों के चलते स्वास्थ्य को विपरीत प्रभाव का भी डर है।

शोध के अनुसार बताया कि रासायनिक रंग हमारे शरीर पर त्वचा रोग, एलर्जी पैदा करते हैं। वहीं दूसरी तरफ आंखों में अंधत्व, जलन , आंखों में लालपन शरीर में खुजली के अलावा कई दर्दनाक परिणाम देते हैं। मुख के द्वारा पाचन तंत्र में रसायनों से तैयार रंग किडनी को प्रभावित करता है, वहीं हरा रंग आंखों में एलर्जी और कई बार नेत्रहीनता तक ले आता है, प्यारा बैंगनी रासायनिक रंग अस्थमा और एलर्जी को जन्म देता है। सिल्वर रंग कैंसरकारक है तो लाल भी त्वचा पर कैंसर जैसे भयावह रोगों को जन्म देता है।
चलिये देखें इन रासायनिक रंग का निर्माण कैसे होता है।

सूखे गुलाल में एस्बेस्टस या सिलिका जो बालू से प्राप्त होती है। मिलाई जाती है जिससे त्वचा में सक्रंमण, अस्थमा सहित और आंखों में जलन की शिकायत हो सकती है। गीले रंगों में आम तौर पर जेनशियन वायोलेट मिलाया जाता है जिससे त्वचा का रंग प्रभावित हो सकता है और डर्मेटाइटिस की शिकायत हो सकती है। इनके अलावा मिलावटी व रासायनिक घटिया रंगों में डीजल या इंजन ऑयल, नुकसान दायक क्रोमियम, सीसे का पाउडर के साथ आयोडिन भी हो सकता है जिनसे सेहत को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। इससे लोगों को चक्कर आता है। सिरदर्द और सांस की तकलीफ होने लगती है। जानकारी या जागरूकता के अभाव में ख़ास कर छोटे दुकानदार इस बारे में ध्यान नहीं देते कि रंगों की गुणवत्ता कैसी है। कभी तो ये रंग उन डिब्बों में आते हैं जिन पर लिखा होता है केवल औद्योगिक उपयोग के लिए। ज़ाहिर है कि ख़तरा इसमें भी है। होली के रंग लघु उद्योग के तहत आते हैं और लघु उद्योग के लिए निर्धारित रैग्युलेशन और क्वालिटी चेक नहीं है।

रेड यानि लाल रंग  केमिकल- मरकरी सल्फाइट से बनता है जो  त्वचा कैंसर के साथ लकवा भी दे सकता है।
रेड लेड और पाउडर से बना रंग अथवा सिंदूर कैंसर को जन्म दे सकता है।
लाल रंग की रोडमिन बी डाई से बने रंग या सिंदूर से डीएनए प्रभावित होता है।
मरकरी सल्फाइड से बनने वाले रंग या सदूर से बाल झड़ना और स्किन कैंसर का खतरा होता है।
लाल रंग और सिंदूर बनाने के पारंपरिक तरीके में हल्दी और नीबू मिलाकर। फिटकरी, आयोडीन और कपूर मिलाकर। चंदन और मस्करा मिलकार। पिसा केसर साथ कुसुम का फूल मिलाकर। शंख का पाउडर साथ चंदन व केसर मिलकार। रंग बन सकता है।

ब्लैक यानि काला रंग केमिकल- लेड ऑक्साइड के द्वारा बनता है।  यह रेयन फेलियर के अलावा त्वचा में जलन पैदा करता है। लेड एक भारी धातु है अत: इसके कण शरीर के अंदर जाकर लेड एक भारी धातु है अत: इसके कण शरीर के अंदर जाकर किडनी को तो खराब करते ही हैं साथ में अमाशय इत्यादि का कैन्सर भी पैदा करते हैं। 



ब्लू यानि नीला रंग केमिकल- प्रशियन स्र बनता है। जो  त्वचा में जलन और सूजन पैदा करता है।  परिशियन ब्लू को पोटेशियम फेरोसायनाइड घोल में फेरिक क्लोराइड की प्रतिक्रिया द्वारा तैयार किया जाता  है। परिणामी अवक्षेपण को फिर से छानकर , सूखे और एक मोर्टार में समरूप किया जाता है। जिससे रंग बनता है। अब आप सोंचे इसमें साइनाइड का मूलक होता है। अधिक मात्रा में यह मौत या लकवे का भी कारण बन सकता है। किडनी और लीवर तो खराब होते ही हैं।

ग्रीन यानि हरा रंग  केमिकल- कॉपर सल्फेट और मैलाचाइट द्वारा बनता है। जो आंखों से पानी निकलना, एलर्जी सहित अंधापन, आंख लाल होना दे देता है। कॉपर सल्फेट जी मतलाना, उल्टी या दर्द के साथ खांसी या गले की ख़राश। धुंधलापन, पेट दर्द या जलन का महसूस होना, दस्त, पेचिश सदम भी पैदा करता है। मैलाचाइट अंग की क्षति, म्यूटॅजेनिक, कैंसरकारी और विकास संबंधी असामान्यताएं पैदा कर सकता है।

बैंगनी या इंडिगो रंग़ केमिकल- क्रोमियम आयोडाइड द्वारा बनता है जो  अस्थमा अथवा एलर्जी पैदा करता है। क्रोमियम एक भारी धातु है अत: इसके कण शरीर के अंदर जाकर किडनी को तो खराब करते ही हैं साथ में अमाशय इत्यादि का कैन्सर भी पैदा करते हैं।

सिल्वर कलर यानि चांदी रंग  केमिकल- एल्यूमिनियम ब्रोमाइड से बनता है। जो कैंसर  पैदा कर सकता है। एल्यूमिनियम ब्रोमाइड मस्तिष्क पर प्रभाव डाल सकता है।

रंगों में पाए जाने वाले अन्य हानिकारक पदार्थ और उनके नुकसान
क्रोमियम: ब्रोन्कियल अस्थमा, एलर्जी का कारण हो सकता है।

निकेल: निमोनिया 
कैडमियम: हड्डियां कमजोर और भंगुर हो सकती हैं।
जिंक: बुखार
आयरन: त्वचा हल्की संवेदनशीलता हो सकती है

अक्सर लोग देर से छूटने वाले पक्के रंगों को इस्तेमाल करते हैं. बच्चे एक-दूसरे को रंग लगाने के लिए ऐसा ज्यादा करते हैं. लेकिन ऐसे रंगों में इस्तेमाल किया गया खतरनाक केमिकल आपके आंखों को काफी नुकसान पहुंचाता है।  ये आंख ही नहीं तंत्रिका तंत्र, लीवर, यकृत, फेफड़े और त्वचा और तक को प्रभावित करते हैं. इनका वातावरण भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

सावधानियां बरते:  
आंखों को सुरक्षित रखने के लिए कृत्रिम और केमिकल्स वाले रंगों से बचना चाहिये, कोई गुब्बारा या तेज धार का पानी आंखों में पड़ जाए तो सबसे पहले तुरंत किसी नजदीकी डॉक्टर को दिखाएं, एलर्जी वाले रंग आंखों में डल जाए तो सबसे पहले साफ पानी से आंख साफ करें उन्हें बिल्कुल रगड़ें नहीं और तुरंत डॉक्टर से संपर्क दिखाएं. इसके साथ ही ये सावधानी रखें कि होली नेचुरल रंगों से होली खेलें  नेचुरल रंगों से खेलें। गुब्बारे न फेकें। वाटर गन्स को चेहरे पर न चलाएं और कांटेक्ट लेंस नही पहने। दानेदार हरे रंग के प्रयोग से बचे। पेंट या बार्निश या कीचड़ और डीजल आदि के प्रयोग से बचें। शराब का प्रयोग विशेषकर देशी शराब का इस्तेमाल न करें,  यदि रंग खेलने में आंखों में जलन और दर्द या लाली आ जाती है तो बार-बार ठंडे पानी से बिना रगड़े आंखों को धोएं। 
होली के दौरान यदि आप हर्बल रंगों का इस्तेमाल करेंगे तो आसानी से आंखों में जाने वाले रंगों को धो सकते हैं या फिर चश्मा लगाएं। इससे आप आंखों में रंग जाने से बचा सकते हैं

ज्यादा देर तक गीला रहना नुकसानदायक है क्योंकि इस मौसम में शरीर का कफ ढीला होना शुरु हो जाता है और संक्रमण होने की संभावनाएं ज्यादा होती है। कोशिश करें हर्बल पाउडर से गुलाल तैयार करके सूखी होली खेलने की सलाह बच्चों को दें।

होली के लिए ऑर्गेनिक तत्वों से बनने वाले प्राकृतिक यानि नेचुरल कलर्स को सुरक्षित माना जाता है। लेकिन बाजार में मिलने वाले कलर्स में केमिकल्स की मात्रा अधिक होती है और कुछ कलर्स ऐसे होते हैं जिनमें हैवी मेटल्स होते हैं। जो आपके और आपके बच्चे के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इतना ही नहीं कुछ कलर ऐसे होते हैं जिनके इस्तेमाल से गर्भवती महिलाएं भी प्रभावित हो सकती हैं। जाहिर है प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं का इम्यून सिस्टम मजबूत नहीं होता है और उनकी स्किन भी ज्यादा सेंसिटिव होती है। छोटे बच्चों की त्वचा भी काफी नाजुक होती है। इसलिए आपको बच्चों को कलर से बचाना चाहिए। खासकर छह महीने की उम्र के बच्चों को रंग से पूरी तरह बचाना चाहिए। चलिए जानते हैं किस कलर में क्या केमिकल होते हैं और उससे आपको क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं। कुछ विक्रेता केमिकल्स वाले कलर्स को ऑर्गेनिक बताकर बेचते हैं। इसलिए आपको सिर्फ ब्रांड वाले कलर्स ही खरीदने चाहिए। नेचुरल मेहंदी सुरक्षित होती है लेकिन काली मेहंदी में (पीपीडी) पैराफेनिलेंडियमिन केमिकल होता है। जिससे एलर्जिक रिएक्शन हो सकता है। होली खेलने से पहले तेल या पेट्रोलियम जेली या मॉइस्चराइज़र लगाने से कुछ हद तक रंग से बचने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा अपने बालों पर भी लगाएं। होली के बाद, डिटर्जेंट, केरोसीन, स्प्रिट नेल पॉलिश, अल्कोहल या एसीटोन का प्रयोग न करें। इससे त्वचा खराब हो सकती है। 


हर्बल गुलाल बनाने के लिए आपको 200 ग्राम अरारोट पाउडर, 100 ग्राम हल्दी, 50 ग्राम गेंदा फूल, 20 ग्राम संतरे के छिलके का पाउडर और 20 बूंद नींबू या चंदन का तेल चाहिए। सभी चीजों को एक बड़े प्लास्टिक टब में डालकर हाथ से अच्छी तरह मिक्स कर लें। इससे आपको एक सुंदर पीला रंग मिल जाएगा। यह पूरी तरह सेफ और नेचुरल है। 

अगर आपको पानी से होली खेलना पसंद है, तो आप 100 ग्राम टेसू के फूलों को एक बाल्टी पानी में डाल दें और रातभर के लिए छोड़ दें। इससे पानी का कलर केसर के रंग का हो जाएगा।

अगर आपको गुलाबी और मैजेंटा कलर चाहिए तो चुकंदर आपके लिए बेहतर चीज है। चुकंदर के कुछ टुकड़ों को एक कप पानी में उबाल लें। इससे आपको डार्क मैजेंटा कलर मिल जाएगा। या आप कुछ टुकड़ों को पानी में डालकर कुछ घंटों के लिए छोड़ दें। सूखे पाउडर के लिए चुकंदर को पीसकर पेस्ट बना लें और धूप में सुखा लें। इसे बेसन और आटे के साथ मिलाकर इस्तेमाल करें। 




चावल का आटा लें और उसमें फूड कलर और दो चम्मच पानी डालकर मिक्स करें और पेस्ट बना लें। इसे सूखने दें। इसके बाद एक ग्राइंडर में ब्लेंड कर लें और पाउडर बना लें। 


पिसा हुआ रक्तचंदन या लाल चंदन भी कहा जाता है। ख़ूबसूरत लाल रंग का स्रोत है। साथ ही यह त्वचा के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद होता है और आमतौर पर फेस पैक आदि में भी इस्तेमाल किया जाता है। यह सूखा रंग गुलाल की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है तथा इनमें सूखे लाल गुड़हल के फूल को पीस कर मिला सकते हैं। इसके अलावा गीला लाल रंग बनाने के लिये चार चम्मच लाल चंदन पाउडर को पांच लीटर पानी में डालकर उबालें। इसे 20 लीटर पानी में मिलाकर तैयार किया जा सकता है।  इसके अलावा लाल गुलाब को सुखाकर पाउडर बना लें। इसकी मात्रा बढ़ाने के लिए आटा मिलाकर गुलाल के रूप में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।

छाया में सुखाए गए गुड़हल या जवाकुसुम के फूलों के पाउडर से लाल रंग तैयार किया जा सकता है।  सिंदूरिया के ईंट से लाल बीजों को भी बतौर रंग या गुलाल इस्तेमाल किया जा सकता है।  लाल अनार के छिलकों / दानों को पानी में उबाल कर भी सुर्ख लाल रंग बनाया जा सकता है। आधे कप पानी में दो चम्मच हल्दी पाउडर के साथ चुटकी भर चूना मिलाइए। फिर 10 लीटर पानी के घोल में इसे अच्छी तरह मिलाइए और आपका होली का रंग तैयार।  टमाटर और गाजर के रस को भी पानी में मिला कर रंग तैयार किया जा सकता है।

नेचुरल ग्रीन कलर बनाने के लिए आप विभिन्न हरी पत्तेदार सब्जियों का इस्तेमाल कर सकते हैं। पालक इसके लिए सबसे बेहतर है। इसके लिए पालक और धनिया पत्तों को का पेस्ट बना लें और पानी में मिक्स कर लें।  या हरा सूखा रंग बनाने के लिए मेहँदी या हिना पाउडर, बिना आंवला व रीठा मिलाए, प्रयोग कर सकते हैं तथा इसमें बेसन या आटा भी मिला सकते हैं। सूखी मेहंदी चेहरे पर रंग नहीं छोड़ती है और इसे ब्रश से आसानी से झाड़ कर साफ़ किया जा सकता है। अगर मेहंदी पाउडर लगाने के बाद चेहरा गीला भी हो जाए, तो भी बहुत हल्का रंग चढ़ेगा। गीला हरा रंग बनाने के लिए दो लीटर पानी में दो चम्मच मेहंदी पाउडर डालकर अच्छी तरह से घोल लें, इसमें धनिया, पालक, पुदीना आदि की पत्तियों का पाउडर मिलाकर हरा रंग तैयार कर सकते हैं, पर इस रंग के दाग़ आसानी से नहीं छुटते। यह दीगर बात है कि यह रंग बालों के लिए बहुत लाभदायक (हर्बल कंडिशनर का काम) होता है। गुलमोहर के पत्तियों को अच्छी तरह सुखा कर पीस लें और चमकदार प्राकृतिक हरा गुलाल तैयार किया जा सकता है। गेहूँ की हरी बालियों को अच्छी तरह पीसकर गुलाल तैयार करें।  पालक, धनिया या पुदीने के पत्तियों को सुखाकर पीस लें और हरे गुलाल की तरह इस्तेमाल सकते हैं तथा पानी में मिलाकर गीला रंग तैयार किया जा सकता है।

एक किलो ग्राम चुकंदर को कद्दूकस करके एक लीटर पानी में डालकर रात भर छोड़ दें। इससे गाढ़ा जामुनी रंग तैयार हो जाएगा। फिर रंगीन पानी बनाने के लिए इस घोल में पानी मिलाकर होली का लुत्फ़ उठाइए।

पीला सूखा रंग बनाने के लिये दो चम्मच हल्दी पाउडर को पांच चम्मच बेसन में मिलाएं। हल्दी और बेसन वैसे भी त्वचा के लिए काफ़ी गुणकारी होता है और आमतौर पर नहाने से पहले इसे उबटन की तरह इस्तेमाल किया जाता है।  इसके अलावा गेंदे के फूल को सुखाकर उसके पाउडर से भी पीला रंग तैयार कर सकते हैं। इसके अलावा, एक चम्मच हल्दी पाउडर को दो लीटर पानी में मिलाकर थोड़ी देर उबालें या पचास गेंदे के फूल दो लीटर पानी में मसलकर उबाल लें और रात भर छोड़ दें। संतरी रंग तैयार हो जाएगा।

पारंपरिक तौर पर भारत में यह चटक केसरिया गुलाल टेसू के फूलों से बनता है, जिसे पलाश भी कहा जाता है, होली के ख़ूबसूरत रंगों के परंपरागत स्रोत हैं। टेसू के फूलों को पानी में उबालकर रात भर के लिए पानी में भीगने के लिए छोड़ दीजिए, इससे संतरी रंग तैयार हो जाएगा और सुबह रंग का आनंद उठाइए। इस पानी में औषधिय गुण होते हैं। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण भी गोपियों के साथ टेसू के फूल से होली खेलते थे और इसका इस्तेमाल कई औषधियां बनाने में भी होता है।

चुटकी भर चंदन पाउडर 1 लीटर पानी में मिलाने पर 'केसरिया रंग' तैयार हो जाता है।  केसर की पत्तियों को कुछ समय के लिए 2 चम्मच पानी में भीगने के लिए छोड़ दें। फिर उन्हें पीस लें। अपने इच्छानुसार गाढ़ा रंग पाने के लिए धीरे-धीरे पानी मिलाएँ, ताकि ज़्यादा पानी से रंग फीका या हल्का न हो जाए। यह त्वचा के लिए अच्छा तो होता ही है साथ ही साथ बहुत महँगा भी होता है।

नीले रंग का गुलाल तैयार करने के लिए 'जकरांदा के फूल' को सुखाकर पाउडर बना लें।
काले अंगूर के जूस को पानी में मिलाएं या हल्दी पाउडर को थोड़े से बेकिंग सोडा के साथ मिलाकर कत्थई रंग तैयार किया जा सकता है।

पर्यावरण के प्रति संवेदनशील कुछ संस्थाओं ने प्राकृतिक रंगों को पैकेटबंद कर के भी बेचना शुरू कर दिया है।

बहुराष्ट्रीय कंपनी आर्गेनिक इंडिया ने हर्बल गुलाल से एक क़दम आगे बढ़ते हुए बाज़ार में इस जैविक गुलाल को उतारा है। यह गुलाल तुलसी और हल्दी के वृक्षों से बनाया गया है। आदिकाल से भारत में तुलसी और हल्दी का औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। होली पर बाज़ार में रासायनिक रंगों की भरमार रहती है। ये रंग हमारी त्वचा के लिए हानिकारक होते हैं। ऐसे में जैविक गुलाल रासायनिक रंगों से बचने के बेहतर विकल्प हैं। जैविक गुलाल बनाने के लिए जिन औषधीय पौधों का इस्तेमाल किया गया है, उन्हें जैविक उर्वरकों के जरिए उगाया गया है। इस वजह से त्वचा पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। आर्गेनिक इंडिया के एक विशेषज्ञ ने बताया कि जैविक गुलाल हरे और पीले, दो रंगों में बनाए गए हैं। हरा गुलाल तुलसी की पत्तियों से और पीला गुलाल हल्दी से बनाया बनाया गया है। जैविक गुलाल न सिर्फ़ त्वचा के लिए कंडीशनर का काम करता है, बल्कि इसके प्रयोग से त्वचा पर दाने भी नहीं निकलते।


(तथ्य व कथन गूगल से साभार)


MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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Friday, February 15, 2019

चीनी सामान का वहिष्कार ही आतंकवाद समस्या का हल है



चीनी सामान का वहिष्कार ही आतंकवाद समस्या का हल है

14 फरवरी, 2019  को दोपहर सवा तीन बजे जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में कायराना आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 37 जवान शहीद हो गए हैं। इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद नाम के आतंकी संगठन ने ली है।
  • 31 दिसंबर, 1999 को मसूद अजहर भारत की कैद से रिहा हुआ
  • 31 जनवरी, 2000 को आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की नींव रखी
  • अक्टूबर 2001 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमले के बाद खबरों में आया
  • साल 2015 से फिर से सक्रिय हुआ और पठानकोट समेत कई हमलों में हाथ

दिसंबर 1979। अफगानिस्तान की कम्यूनिस्ट सरकार के खिलाफ मुजाहिदीन हथियार उठाते हैं। अफगानिस्तान की कम्यूनिस्ट सरकार को रूस का समर्थन हासिल होता है। यही चीज अमेरिका की अफगान युद्ध में दिलचस्पी का कारण बनती है। अमेरिका, पाकिस्तान और सऊदी अरब मुजाहिदीन यानी भाड़े के लड़ाकों को छिपे तौर पर पूरा समर्थन देते हैं। अफगान सरकार का तख्ता पलटने के बाद बहुत से मुजाहिदीन लड़ाके बेरोजगार होते हैं। यहीं से शुरू होता है कश्मीर में आतंक के नए अध्याय का। पाकिस्तान इन लड़ाकों की मदद से कश्मीर में हमलों के लिए लश्कर-ए-तैयबा और हरकत-उल-अंसार नाम के आतंकी संगठनों की नींव रखता है। बाद में हरकत-उल-अंसार नाम बदलकर हरकत-उल-मुजाहिदीन (Hum-हम) के नाम से काम करता है। आईएसआई ने हम का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में शुरू कर दिया। हम का एक सदस्य था मौलाना मसूद अजहर। 1994 में मसूद अजहर को भारत गिरफ्तार कर लेता है। अजहर को भारत की कैद से छुड़ाने के लिए आतंकी भारत के एक विमान का अपहरण कर लेते हैं। विमान को कंधार ले जाते हैं और अजहर समेत कुछ आतंकियों को रिहा करने की मांग करते हैं। इस तरह से 31 दिसंबर, 1999 को अजहर रिहा हो जाता है। रिहा होने के बाद अजहर 31 जनवरी, 2000 को आतंक की एक नई फसल लगाता है, जिसका नाम जैश-ए-मोहम्मद रखता है। वैसे जैश-ए-मोहम्मद का मतलब होता है मोहम्मद यानी पैगंबर मोहम्मद की फौज।


अपने भाषण में गैर मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगलना और अफगान युद्ध में सक्रिय रूप से हिस्सा लेना। ये दो चीजें मसूद अजहर को पाकिस्तान का चर्चित चेहरा बना देती है। उसको आईएसआई, अफगानिस्तान की नई-नवेली तालिबान सरकार और वहां शरण लिए हुए अल कायदा के आकाओं से मदद मिली। पैसे, हथियार और साजोसामान सब मुहैया कराए गए। या यूं कह सकते हैं कि जैश-ए-मोहम्मद को खाद-पानी देने का काम आईएसआई ने किया। आईएसआई ने ही हरकत-उल-मुजाहिदीन के कई आतंकियों को जैश-ए-मोहम्मद के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया। थोड़े ही समय के अंदर जैश-ए-मोहम्मद आतंक की नई पाठशाला बन गई। इसकी विचारधारा पूरी तरह से अल कायदा और तालिबान की विचारधारा पर आधारित थी। अकसर अजहर अपने भाषणों में दोनों का नाम लेता है।


जैश-ए-मोहम्मद जम्मू-कश्मीर में अपने हमलों को लेकर कुख्यात होता रहा। यह खबरों में आया 19 अप्रैल, 2000 को। बादामी बाग, श्रीनगर स्थित भारतीय सेना के 15 कोर मुख्यालय पर हमला करके। इसके साथ ही जैश अंतरराष्ट्रीय जिहाद लीग का एक सदस्य बन गया। इन घातक हमलों और आतंकी क्षमता की वजह से आईएसआई के लिए लश्कर-ए-तैयबा की तरह ही जैश भी एक कीमती संपत्ति बन गई। अक्टूबर 2001 में इसने जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला किया। 13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले में भी इसका हाथ था। 18 सितंबर, 2016 को उरी हमले में भी जैश-ए-मोहम्मद शामिल था।

अक्टूबर 2001 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमले के बाद भारत ने अपने राजनयिक प्रयास तेज कर दिए। साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी अपील की। इसका असर हुआ कि 17 अक्टूबर, 2001 को संयुक्त राष्ट्र ने जैश-ए-मोहम्मद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन घोषित कर दिया। भारतीय संसद पर हमले के बाद भारत ने अपने प्रयास और तेज कर दिए। सीमा पार से पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ तेज कूटनीतिक अभियान चलाया गया। मुहिम रंग लाई और 26 दिसंबर, 2001 को अमेरिका ने भी इसे विदेशी आतंकी संगठन घोषित कर दिया।

जब पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा तो जनवरी 2002 में जैश पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन यह प्रतिबंध महज एक दिखावा था। जैश के आकाओं ने इसे नाम बदलकर अपना काम जारी रखने दिया। इसने नया नाम रख लिया खुद्दाम-उल-इस्लाम। उस पर भी पाकिस्तान सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। चूंकि 2002 में इसे गैरकानूनी संगठन करार दे दिया गया था तो जैश ने अल-रहमत ट्रास्ट नाम के चैरिटेबल ट्रस्ट की आड़ में अपना काम शुरू कर दिया। उसी समय जैश की अंदरुनी कलह की वजह से एक नया संगठन अस्तित्व में आया। उसका नाम था जमात-उल-फुरकान। अब्दुल जब्बार, उमर फारूक और अब्दुल्ला शाह मजहर ने इसकी नींव रखी। मसूद खुद्दाम-उल-इस्लाम की आड़ में जैश का संचालन करता रहा।


9/11
के बाद आतंक के खिलाफ युद्ध में पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ के शामिल होने के फैसले से जैश बौखला गया। अजहर ने मुशर्रफ के इस्तीफे की मांग की। इसके अलावा इस्लामाबाद, मरी, तक्षशिला और बहावलपुर में हमले कराए। नवंबर 2003 में पाकिस्तान ने हमलों के बाद खुद्दाम-उल-इस्लाम पर रोक लगा दी। इससे मसूद अजहर बौखला गया और मुशर्रफ के काफिले पर दो बार 14 दिसंबर और 25 दिसंबर, 2003 को हमला कराया। इसके बाद पाकिस्तान ने जैश पर सख्ती शुरू कर दी। हमले के आरोपियों को मुशर्रफ के दौर में ही फांसी दे दी गई। मसूद अजहर पर सख्ती की गई और उसे नजरबंद कर दिया।

भले ही यूएन और यूएस ने जैश चीफ अजहर की गतिविधियों को गैरकानूनी घोषित कर दिया लेकिन उसे पाकिस्तानी मशीनरी का साथ मिलता रहा। अजहर दक्षिणी पंजाब के अपने गृह नगर बहावलपुर में खुलकर काम करता रहा। कुछ रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में नवाज शरीफ की वापसी के बाद जैश का फिर से खुलकर उभार हुआ। 2014 के बाद से मसूद फिर से पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य पर उभरा। भारत और अमेरिका के खिलाफ जहर उगला। साल 2014 में ही मुजफ्फराबाद में एक बड़े कार्यक्रम में अजहर ने हिस्सा लिया। मुजफ्फराबाद पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में है। यह मौका था आतंकी अफजल गुरु की किताब के विमोचन का। इसके बाद ही जम्मू-कश्मीर में फिर से जैश के सक्रिय होने के सबूत मिले। जुलाई 2015 में तंगधार इलाके में सीआरपीएफ कैंप पर हमला। नवंबर 2015 में आर्मी कैंप पर हमला। 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट आथंकी हमला। अक्टूबर 2017 में बीएसएफ कैंप श्रीनगर पर हमला। ये सब जैश के फिर से जिंदा होने के सबूत देते हैं।

चीन की वजह से बच जाता है अजहर : 1968 में पाकिस्तान के बहावलपुर में जन्मे मसूद अजहर की आतंकी गतिविधियों की लम्बी लिस्ट है। अफगान युद्ध के समय वह मुजाहिदीनों से जुड़ा और बाद में भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रहा। भारत ने कई बार यूनाइटेड नेशंस सिक्यॉरिटी काउंसिल (यूएनएससी) में अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने की कोशिश की। हर बार चीन अड़ंगा लगा देता है। भारत ने मुंबई में 26/11 आतंकी हमले के बाद ही अजहर के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया था। लेकिन हर बार चीन की वजह से अजहर बच जाता है।  


यदि भारतीय होने के नाते आप आतंकवादियों को पस्त करना चाहते हैं तो आपको चीन के बाजार पर एक जुट होकर प्रहार करना होगा। यानि चीनी वस्तुओ का वहिष्कार। मेरे विचार से चीन तीन कारणों से पाकिस्तान को समर्थन दे रहा है।

1. चीन को मुस्लिम आतंकवादियों उईगीर से धार्मिक उन्माद का खतरा है। अत: वह उनको बदलने हेतु साम दाम दण्ड भे अपनाकर अत्याचार कर सीधा करना चाहता है। ऐसे में आतंकवादियों की फैकट्री पाकिस्तान के मुस्लिम उनको समर्थन देकर मुसीबत खडी कर सकते हैं। 

2. पाकिस्तान के भूभाग को हडपकर वह अपनी आबादी को फौज और कल्याण के बहाने बसाना चाहता है। धीरे धीरे पाकिस्तान को कर्ज के बोझ में दबाकर गुलाम ही बना लेगा।

3, पाकिसतान की आड में एशिया पर प्रभुत्व और भारत को रेशान करने की नीति। 

लेकिन दुखद यह है कि भारत राजनीतिक और सामाजिक गद्दारों से भरा पडा है। जिसे लडना बडा मुश्किल है। क्योकि भारत के बहुसंख्यक हिंदू अंधे और आपस में लडने मरने में विश्वास करते हैं। फिर उनको किसी कुत्ते की भांति विदेशियों के तलवे चाटने की आदत है। साथ ही हां देश द्रोहियों की मजार पर मत्था टेकनेवाले, लादेन जी बोलने वाले इनके समर्थक नेता हैं। पत्थरबाजी का समर्थ वोट के लिये करते हों। उनको लाखों रुपये की मदद करते हों। वहां यह  काम एक टेढी खीर है। क्योकिं यह दुष्ट हमारी फूट का फायदा लेकर हम पर राज्य करते आये हैं और करते रहेगें।

(तथ्य, लेखन इत्यादि, नवभारत टाइम्स गूगल से साभार)

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