चीनी
सामान का वहिष्कार ही आतंकवाद समस्या का हल है
14 फरवरी, 2019 को दोपहर सवा तीन बजे जम्मू-कश्मीर के पुलवामा
में कायराना आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 37 जवान शहीद हो गए हैं। इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद
नाम के आतंकी संगठन ने ली है।
- 31 दिसंबर, 1999 को मसूद अजहर भारत की कैद से रिहा हुआ
- 31 जनवरी, 2000 को आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की नींव रखी
- अक्टूबर 2001 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमले के बाद खबरों में आया
- साल 2015 से फिर से सक्रिय हुआ और पठानकोट समेत कई हमलों में हाथ
दिसंबर 1979। अफगानिस्तान की कम्यूनिस्ट सरकार के खिलाफ मुजाहिदीन हथियार उठाते हैं। अफगानिस्तान की कम्यूनिस्ट सरकार को रूस का समर्थन हासिल होता है। यही चीज अमेरिका की अफगान युद्ध में दिलचस्पी का कारण बनती है। अमेरिका, पाकिस्तान और सऊदी अरब मुजाहिदीन यानी भाड़े के लड़ाकों को छिपे तौर पर पूरा समर्थन देते हैं। अफगान सरकार का तख्ता पलटने के बाद बहुत से मुजाहिदीन लड़ाके बेरोजगार होते हैं। यहीं से शुरू होता है कश्मीर में आतंक के नए अध्याय का। पाकिस्तान इन लड़ाकों की मदद से कश्मीर में हमलों के लिए लश्कर-ए-तैयबा और हरकत-उल-अंसार नाम के आतंकी संगठनों की नींव रखता है। बाद में हरकत-उल-अंसार नाम बदलकर हरकत-उल-मुजाहिदीन (Hum-हम) के नाम से काम करता है। आईएसआई ने हम का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में शुरू कर दिया। हम का एक सदस्य था मौलाना मसूद अजहर। 1994 में मसूद अजहर को भारत गिरफ्तार कर लेता है। अजहर को भारत की कैद से छुड़ाने के लिए आतंकी भारत के एक विमान का अपहरण कर लेते हैं। विमान को कंधार ले जाते हैं और अजहर समेत कुछ आतंकियों को रिहा करने की मांग करते हैं। इस तरह से 31 दिसंबर, 1999 को अजहर रिहा हो जाता है। रिहा होने के बाद अजहर 31 जनवरी, 2000 को आतंक की एक नई फसल लगाता है, जिसका नाम जैश-ए-मोहम्मद रखता है। वैसे जैश-ए-मोहम्मद का मतलब होता है मोहम्मद यानी पैगंबर मोहम्मद की फौज।
अपने भाषण में गैर मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगलना और अफगान युद्ध में सक्रिय रूप से हिस्सा लेना। ये दो चीजें मसूद अजहर को पाकिस्तान का चर्चित चेहरा बना देती है। उसको आईएसआई, अफगानिस्तान की नई-नवेली तालिबान सरकार और वहां शरण लिए हुए अल कायदा के आकाओं से मदद मिली। पैसे, हथियार और साजोसामान सब मुहैया कराए गए। या यूं कह सकते हैं कि जैश-ए-मोहम्मद को खाद-पानी देने का काम आईएसआई ने किया। आईएसआई ने ही हरकत-उल-मुजाहिदीन के कई आतंकियों को जैश-ए-मोहम्मद के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया। थोड़े ही समय के अंदर जैश-ए-मोहम्मद आतंक की नई पाठशाला बन गई। इसकी विचारधारा पूरी तरह से अल कायदा और तालिबान की विचारधारा पर आधारित थी। अकसर अजहर अपने भाषणों में दोनों का नाम लेता है।
जैश-ए-मोहम्मद जम्मू-कश्मीर में अपने हमलों को लेकर कुख्यात होता रहा। यह खबरों में आया 19 अप्रैल, 2000 को। बादामी बाग, श्रीनगर स्थित भारतीय सेना के 15 कोर मुख्यालय पर हमला करके। इसके साथ ही जैश अंतरराष्ट्रीय जिहाद लीग का एक सदस्य बन गया। इन घातक हमलों और आतंकी क्षमता की वजह से आईएसआई के लिए लश्कर-ए-तैयबा की तरह ही जैश भी एक कीमती संपत्ति बन गई। अक्टूबर 2001 में इसने जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला किया। 13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले में भी इसका हाथ था। 18 सितंबर, 2016 को उरी हमले में भी जैश-ए-मोहम्मद शामिल था।
अक्टूबर 2001 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमले के बाद भारत ने अपने राजनयिक प्रयास तेज कर दिए। साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी अपील की। इसका असर हुआ कि 17 अक्टूबर, 2001 को संयुक्त राष्ट्र ने जैश-ए-मोहम्मद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन घोषित कर दिया। भारतीय संसद पर हमले के बाद भारत ने अपने प्रयास और तेज कर दिए। सीमा पार से पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ तेज कूटनीतिक अभियान चलाया गया। मुहिम रंग लाई और 26 दिसंबर, 2001 को अमेरिका ने भी इसे विदेशी आतंकी संगठन घोषित कर दिया।
जब पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा तो जनवरी 2002 में जैश पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन यह प्रतिबंध महज एक दिखावा था। जैश के आकाओं ने इसे नाम बदलकर अपना काम जारी रखने दिया। इसने नया नाम रख लिया खुद्दाम-उल-इस्लाम। उस पर भी पाकिस्तान सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। चूंकि 2002 में इसे गैरकानूनी संगठन करार दे दिया गया था तो जैश ने अल-रहमत ट्रास्ट नाम के चैरिटेबल ट्रस्ट की आड़ में अपना काम शुरू कर दिया। उसी समय जैश की अंदरुनी कलह की वजह से एक नया संगठन अस्तित्व में आया। उसका नाम था जमात-उल-फुरकान। अब्दुल जब्बार, उमर फारूक और अब्दुल्ला शाह मजहर ने इसकी नींव रखी। मसूद खुद्दाम-उल-इस्लाम की आड़ में जैश का संचालन करता रहा।
9/11 के बाद आतंक के खिलाफ युद्ध में पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ के शामिल होने के फैसले से जैश बौखला गया। अजहर ने मुशर्रफ के इस्तीफे की मांग की। इसके अलावा इस्लामाबाद, मरी, तक्षशिला और बहावलपुर में हमले कराए। नवंबर 2003 में पाकिस्तान ने हमलों के बाद खुद्दाम-उल-इस्लाम पर रोक लगा दी। इससे मसूद अजहर बौखला गया और मुशर्रफ के काफिले पर दो बार 14 दिसंबर और 25 दिसंबर, 2003 को हमला कराया। इसके बाद पाकिस्तान ने जैश पर सख्ती शुरू कर दी। हमले के आरोपियों को मुशर्रफ के दौर में ही फांसी दे दी गई। मसूद अजहर पर सख्ती की गई और उसे नजरबंद कर दिया।
भले ही यूएन और यूएस ने जैश चीफ अजहर की गतिविधियों को गैरकानूनी घोषित कर दिया लेकिन उसे पाकिस्तानी मशीनरी का साथ मिलता रहा। अजहर दक्षिणी पंजाब के अपने गृह नगर बहावलपुर में खुलकर काम करता रहा। कुछ रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में नवाज शरीफ की वापसी के बाद जैश का फिर से खुलकर उभार हुआ। 2014 के बाद से मसूद फिर से पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य पर उभरा। भारत और अमेरिका के खिलाफ जहर उगला। साल 2014 में ही मुजफ्फराबाद में एक बड़े कार्यक्रम में अजहर ने हिस्सा लिया। मुजफ्फराबाद पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में है। यह मौका था आतंकी अफजल गुरु की किताब के विमोचन का। इसके बाद ही जम्मू-कश्मीर में फिर से जैश के सक्रिय होने के सबूत मिले। जुलाई 2015 में तंगधार इलाके में सीआरपीएफ कैंप पर हमला। नवंबर 2015 में आर्मी कैंप पर हमला। 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट आथंकी हमला। अक्टूबर 2017 में बीएसएफ कैंप श्रीनगर पर हमला। ये सब जैश के फिर से जिंदा होने के सबूत देते हैं।
चीन
की वजह से बच जाता है अजहर : 1968
में पाकिस्तान के बहावलपुर में जन्मे
मसूद अजहर की आतंकी गतिविधियों की लम्बी लिस्ट है। अफगान युद्ध के समय वह
मुजाहिदीनों से जुड़ा और बाद में भारत
विरोधी गतिविधियों में शामिल रहा। भारत
ने कई बार यूनाइटेड नेशंस सिक्यॉरिटी काउंसिल (यूएनएससी) में
अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने की कोशिश की। हर बार चीन अड़ंगा लगा देता
है। भारत ने मुंबई में 26/11 आतंकी हमले के बाद ही अजहर के खिलाफ अभियान शुरू कर
दिया था। लेकिन हर बार चीन की वजह से अजहर बच जाता है।
यदि भारतीय होने के नाते आप आतंकवादियों को पस्त करना चाहते हैं तो आपको चीन के बाजार पर एक जुट होकर प्रहार करना होगा। यानि चीनी वस्तुओ का वहिष्कार। मेरे विचार से चीन तीन कारणों से पाकिस्तान को समर्थन दे रहा है।
1. चीन को मुस्लिम आतंकवादियों उईगीर से धार्मिक उन्माद का खतरा है। अत: वह उनको बदलने हेतु साम दाम दण्ड भेद अपनाकर अत्याचार कर सीधा करना चाहता है। ऐसे में आतंकवादियों की फैकट्री पाकिस्तान के मुस्लिम उनको समर्थन देकर मुसीबत खडी कर सकते हैं।
2. पाकिस्तान के भूभाग को हडपकर वह अपनी आबादी को फौज और कल्याण के बहाने बसाना चाहता है। धीरे धीरे पाकिस्तान को कर्ज के बोझ में दबाकर गुलाम ही बना लेगा।
3, पाकिसतान की आड में एशिया पर प्रभुत्व और भारत को परेशान करने की नीति।
लेकिन दुखद यह है कि भारत राजनीतिक और सामाजिक गद्दारों से भरा पडा है। जिनसे लडना बडा मुश्किल है। क्योकि भारत के बहुसंख्यक हिंदू अंधे और आपस में लडने मरने में विश्वास करते हैं। फिर उनको किसी कुत्ते की भांति विदेशियों के तलवे चाटने की आदत है। साथ ही यहां देश द्रोहियों की मजार पर मत्था टेकनेवाले, लादेन जी बोलने वाले इनके समर्थक नेता हैं। पत्थरबाजी का समर्थन वोट के लिये करते हों। उनको लाखों रुपये की मदद करते हों। वहां यह काम एक टेढी खीर है। क्योकिं यह दुष्ट हमारी फूट का फायदा लेकर हम पर राज्य करते आये हैं और करते रहेगें।
यदि भारतीय होने के नाते आप आतंकवादियों को पस्त करना चाहते हैं तो आपको चीन के बाजार पर एक जुट होकर प्रहार करना होगा। यानि चीनी वस्तुओ का वहिष्कार। मेरे विचार से चीन तीन कारणों से पाकिस्तान को समर्थन दे रहा है।
1. चीन को मुस्लिम आतंकवादियों उईगीर से धार्मिक उन्माद का खतरा है। अत: वह उनको बदलने हेतु साम दाम दण्ड भेद अपनाकर अत्याचार कर सीधा करना चाहता है। ऐसे में आतंकवादियों की फैकट्री पाकिस्तान के मुस्लिम उनको समर्थन देकर मुसीबत खडी कर सकते हैं।
2. पाकिस्तान के भूभाग को हडपकर वह अपनी आबादी को फौज और कल्याण के बहाने बसाना चाहता है। धीरे धीरे पाकिस्तान को कर्ज के बोझ में दबाकर गुलाम ही बना लेगा।
3, पाकिसतान की आड में एशिया पर प्रभुत्व और भारत को परेशान करने की नीति।
लेकिन दुखद यह है कि भारत राजनीतिक और सामाजिक गद्दारों से भरा पडा है। जिनसे लडना बडा मुश्किल है। क्योकि भारत के बहुसंख्यक हिंदू अंधे और आपस में लडने मरने में विश्वास करते हैं। फिर उनको किसी कुत्ते की भांति विदेशियों के तलवे चाटने की आदत है। साथ ही यहां देश द्रोहियों की मजार पर मत्था टेकनेवाले, लादेन जी बोलने वाले इनके समर्थक नेता हैं। पत्थरबाजी का समर्थन वोट के लिये करते हों। उनको लाखों रुपये की मदद करते हों। वहां यह काम एक टेढी खीर है। क्योकिं यह दुष्ट हमारी फूट का फायदा लेकर हम पर राज्य करते आये हैं और करते रहेगें।
(तथ्य, लेखन इत्यादि,
नवभारत टाइम्स गूगल से साभार)
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