विश्व शांति मात्र सनातन से ही सम्भव : एक
चुनौती
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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“bullet"
यह
शीर्षक कुछ लोगों को अज्ञानवश अटपटा ही लगेगा। साथ ही मैं दावा करूं कि विश्व
शांति न इसाइयत से सम्भव और न मुस्लिम धर्म से। हां यह अशांति का ही मार्ग बडी
आसानी से दे सकते है। चलिये इसी बात पर कुछ चर्चा कि जाये कि मैंने
ऐसा क्यों कहा। मैं पहला व्यक्ति नहीं हूं जो यह बोल रहा हूं। बल्कि मैंनें सभी
धर्म ग्रंथों को पढा और समझा। इस आधार पर ही कह रहा हूं।
कुरान
कहती है। अल्लह से डरो, वह तुम्हारी खतायें भी माफ कर सकता है। तुमको जन्नत बक्श
सकता है।
बाइबिल
कहती है यहोबा
से, जीसस से प्रेम करो वह तुमको धरा के सुख के साथ स्वर्ग के सुख दे देगा।
सनातन
कहता है। सभी प्राणियों से प्रेम करो। सबमें ईश देखो। ईश मे सब देखो। तुम सभी विश्व
को अपना बंधु मानो। तुम प्रेम से ईश को प्राप्त कर सकते हो। स्वर्ग इत्यादि तो तुम्हारे
चरणों की धूल बन जायेगें। तुम मोक्ष परमपद के अधिकारी भी बन सकते हो।
अब
आप निर्णय दें। विश्व शांति कौन ला सकता है। क्या वह जो डर से पैदा हो। या वह जो स्वर्ग
के लालच में प्रेम करे या वह जो मानव जाति को भाई मानकर सब प्राणियों से प्रेम करे।
इन बातों को जो गहराई से समझ लेता है वो विदेशी
भी कामिल बुल्के
जैसा भक्त बन जाता है। रसखान या रबिया बन बन कर सनातन के गुण गाता है।
भारत में अंतर्राष्ट्रीय थियोसॉफिकल सोसाइटी का मुख्यालय स्थापित
करके हम
भारतीयों को गौरवान्वित
करने वाली मैडम ब्लावाट्स्की विश्व भ्रमण के दौरान 1852 में वे पहली बार भारत आई थीं और यहां थोड़े दिन रुक कर इसकी ऋषि परंपरा वाले
ब्रह्मज्ञान की संपन्नता से अवगत हो कर लौट गई थीं।
ISKCON का पूरा नाम International Society for Krishna Consciousness है जिसे हिंदी में अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कान कहते हैं।इस्कान मंदिर में 4 नियम हैं, जिनका पालन सभी को करना होता है। इसमें पहला नियम है: उन्हें तामसिक भोजन त्यागना होगा (तामसिक
भोजन के तहत उन्हें प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि से दूर रहना होगा)। फिर भी इस संस्था के करोडों विदेशी भक्त
हैं। इन सबका एक ही कारण है कि इन्होने सनातन के एक छोटे से भक्ति मार्ग को समझा और शांति पाई। वही कुरान और बाइबिल पढकर फायरिंग कर या मूर्खताभरा आत्मघाती हमला क्र निर्दोषॉ को मारने की घटनायें आम हैं।
आखिर क्यो???
क्यों नासा जैसी यूरोप के 18 देशों की ईसाईत बाहुल्य संस्थायें सनातन
के वेद शास्त्रो उपनिषद पर शोध कर रहीं है। क्यों नही यह कुरान या बाइबिल पर शोध कर
रहीं हैं। कारण जहां मानव कल्याण का कुछ दिखेगा वहीं शोध की जायेगी।
क्यो भारत के पास वेद के मात्र 4 पन्ने और जर्मनी के पास 118 पेज पडे हैं।
कारण स्वतंन्त्रा के बाद की सरकारें राजनीति के कारण सनातन को और संस्कृत को नष्ट करने
पर तुल गई। इसी सनातन विरोधी भावना का फायदा लेकर विदेशी सारा ज्ञान ले उडे। यदि अपने
को सनातनप्रेमी बोलो हिंदू बोलो तो साम्प्रदायिकता का ठप्पा लगा दिया। उत्तर प्रदेश
में संस्कृत को हटाकर उर्दू थोपी। केंद्र में संस्कृत हटाकर अंग्रेजी थोपी।
बस इन्ही कारणों से विश्व अशांति बढती गई और यदि सनातन को न माना तो
बढती जायेगी।
'सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि
पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत॥।' अर्थात विश्व में सब सुखी रहें, सब नीरोग या स्वस्थ रहें, सब भद्र देखें और विश्व में
कोई दुःखी न हो। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' एक व्यापक मानव-मूल्य है।
व्यक्ति से लेकर विश्व तक इसकी
व्याप्ति है-व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र, अर्न्राष्ट्र। गरज यह कि
संपूर्ण विश्व इसकी परिधि में समाहित है।
यह वैयक्तिक मूल्य भी है और सामाजिक मूल्य भी, राष्ट्रीय मूल्य भी है और अंतरराष्ट्रीय मूल्य भी, राजनीतिक मूल्य भी है और नैतिक मूल्य भी, धार्मिक है और प्रगतिशील मूल्य भी। और यदि इन सबका एक शब्द में समाहार करना चाहें तो हम कह सकते हैं कि यह मानवीय मूल्य है। यह प्रार्थना सनातन का मूल मंत्र है। जिससे कुरान और बाइबिल कोसों दूर हैं।
यह वैयक्तिक मूल्य भी है और सामाजिक मूल्य भी, राष्ट्रीय मूल्य भी है और अंतरराष्ट्रीय मूल्य भी, राजनीतिक मूल्य भी है और नैतिक मूल्य भी, धार्मिक है और प्रगतिशील मूल्य भी। और यदि इन सबका एक शब्द में समाहार करना चाहें तो हम कह सकते हैं कि यह मानवीय मूल्य है। यह प्रार्थना सनातन का मूल मंत्र है। जिससे कुरान और बाइबिल कोसों दूर हैं।
उपनिषद
वाक्य है
'संगच्छघ्वं संवदध्वं संवो मनांसि जानताम्।'
अर्थात्
इकट्ठे चलें,
एक जैस बोलें और हम सबके मन एक जैसे हो
जावें- यह भावना प्राचीन काल से ही चली आ रही है। इसलिए यहां राजा और
रंक, धनवान और संत सब
एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यहां के
तत्व चिन्तकों ने बिना किसी भेदभाव के
मानव मात्र अथ च प्राणिमात्र के कल्याण
की कामना की है।
'वसुधैव कुटुम्बकम्' की अवधारणा शाश्वत तो है ही, यह व्यापक एवं उदार नैतिक-मानवीय मूल्यों पर आधृत भी है। इसमें किसी प्रकार की संकीर्णता के लिए कोई
अवकाश नहीं है। सहिष्णुता
इसकी अनिवार्य शर्त है।
अत: यदि आप अपनी आनेवाली पीढीयों को एक सुखद और शांतिमय जीवन देना चाहते
हैं तो आपको संकीर्णता से निकल कर सनातन सार का अर्थ दुनिया को समझाना ही होगा। नहीं
तो यूं ही अशांति के वातावरण को शांत होकर और निजी स्वार्थों के कारण बढावा देते रहो।
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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