उद्धार की एक सलाह, नेक
सलाह
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
मित्रो ईश्वर जो करता है। उसमें कल्याण ही छिपा होता है। किसी ने एक ग्रुप में मुझसे वेद पर बहस की। मस्ती में मैंनें हर जबाब काव्य्मय दिया। परिणाम यह हुआ मेरी एक कविता भजन बन गई।
न नाम चाहिए और न दाम
चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
काली कृष्ण नाम जपूँ और
कुछ न। याद बस उसे रखूं और कुछ न॥
गुरू मेरे प्रभु ही हैं
जानता हूं मैं। मुझे गुरूकृपा का सद्ज्ञान चाहिए॥
न नाम चाहिए और न दाम
चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
पुस्तक के ज्ञान से
मुझको है क्या। किसी के अभिमान से मुझको है क्या॥
मन मे मेरे नही कोई
भावना। न कुछ भी शेष रही कोई कामना॥
रासरस पीता रहूं
डूबकर मैं। मुझे नशा राम मिले जाम चाहिए॥
न नाम चाहिए और न
दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
क्या उनको समझाऊं जब
दीमक बने वो। रामरस नशा कभी किये नही जो॥
मैं पियक्कड़ बना रहूं
राम नाम का। बाकी नशा अब मेरे किस काम का॥
साकी खुद राम है प्याला
है गुरू। टूटे वो ही नशा सुबो शाम चाहिए॥
न नाम चाहिए और न दाम
चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
ज्ञान विज्ञान सब
चरणों की धूल। गुरूकृपा मिलती रहे जग को ही भूल॥
ईश की कृपा और
ब्रह्म ज्ञान क्या। मातृ शक्ति स्वयं अब भान है क्या॥
देवीदास पभुदास
चरणों की धूल। गुरूकृपा मिले बस वरदान चाहिए॥
न नाम चाहिए और न
दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
नही मुझे कुछ और
बाकी ज्ञान क्या। पुस्तक व्यर्थ उसका भान अब क्या॥
वेदों के अनुभव को
पी लिया जब। योग भोग रोग सब जी लिया अब॥
रामनाम मेरे मन में
गूजता रहें। अब वेद क्या क्यो न ज्ञान चाहिए॥
न नाम चाहिए और न
दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
मूरख है वे जो वाह्य
ज्ञान खोजते। दीमक बन पुस्तको की थाह थोपते॥
ब्रह्म संग भृमण
करूँ साथ रहूं मैं। जगत के हर कण अब देखूं
मैं॥
है आनंद बस आनंद ही
की बात्। निराकार वो है पर साकार चाहिए॥
न नाम चाहिए और न दाम
चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
मैंने कुछ मांगा नही
जाना नही क्या। बस एक अज्ञानी बन शरण गया॥
पर उस शक्ति ने
ब्रह्मज्ञान दे दिया। ब्रह्म ब्रह्मांड सारा भान दे दिया॥
पल भर में सब घटित
हो गया। मन में न इच्छा हो वरदान चाहिये॥
न नाम चाहिए और न
दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
मेरी कोई इच्छा नही
भाव नहीँ। न कोई जिज्ञासा है अब ताव नहीं।।
बस एक बात जानूं हाथ
मेरे वो। प्रतिक्षण साथ रहे हर पल जो॥
धन्य हुआ जीवन मेरा
प्यार जो मिला। संग रहूं उसके कुछ न काम चाहिये॥
न नाम चाहिए और न
दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
मैं तो रामदास हूँ राम
मेरा दास। जगत कुछ समझे नही कहे उपहास॥
मैं कुछ करता नही राम
करे काम। हर काम वो ही करे न कोई विश्राम॥
मैं तो बेहद आलसी कुछ न
करूं। मैं तो मदमस्त हूं आराम चाहिये॥
न नाम चाहिए और न दाम
चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
जब तक पा गल न बनोगे तुम।
जबतक सब गल मिटो नहीं तुम॥
भूत बन किताबे ये
डराएगी तुम्हे। शब्दों के वन में भटकायेंगी तुम्हे॥
एक छोर गुरू कृपा
प्रभु कृपा जो। तोता ज्ञान छोड सद्ज्ञान चाहिए॥
न नाम चाहिए और न
दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
यही वेद समय पा
रुलायेंगे तुम्हे। रूप अपना जब ये दिखायेगे तुम्हे॥
जीवन वृथा बीत गया पडे
सो रहे। इधर उधर बहस करी उलझे रहे॥
अब यम द्वारे ढाडा अब
क्या करूं। अब गुरू कहां मिले ध्यान चाहिये॥
न नाम चाहिए और न दाम
चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
वेद को ही चाटकर क्यो
ही रो रहे। वेद है अनुभव मात्र ज्ञानी यह कहे॥
तेरी हर बात का काव्य
है जवाब। वेद ज्ञान पाठ नहीं अनुभव का सबाब॥
तोता बन पढ रहे समझ न
तुम्हे। नहीं कुछ बोलूं बस मुस्कान चाहिये॥
न नाम चाहिए और न दाम
चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
फिर भी तू न समझे तू
नादा है जनाब। पता नहीं देखता कैसे कैसे ख्वाब॥
काव्य धारा बहती रहे
हृदय को छू। क्या ये जो मातृ कृपा नही देखे तू।
अपने को ज्ञानी बन
ज्ञान दे रहे। बहस अब कर न गर सम्मान चाहिये॥
न नाम चाहिए और न दाम
चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
मान मेरी बात नेक जतन कर
लो। इष्ट मंत्र अपना जप नमन कर लो॥
ये ही तुझे तारेगा बस
गांठ बांध ले। समय पास तेरे बचा उसे सांठ ले॥
प्रभु कृपा गुरू मिले
गुरू से प्रभु। कर जप भक्ति गर निर्वाण चाहिये॥
न नाम चाहिए और न दाम
चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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