क्या मोदी एक महायोगी हैं। एक विवेचना
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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देश के सर्वोच्च अधिकारी जो अपने को प्रधान सेवक कहते
हैं, यानि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कुम्भ मेले में पांच सफाई कर्मियों को सम्मानस्वरूप पांव धोकर सम्मान किया।
यध्यपि कोई भी कार्य छोटा बडा नही होता। किंतु समाज में जिस कार्य को सबसे निकृष्ट
कार्य मानते हैं। उनके पांव धोना एक नये
तरीके का सम्मान है। जिसे लोग राजनीति भी कह रहे हैं। इस पर चर्चा का बाजार बहुत
गर्म है। चलिये इस कार्य का आध्यात्मिक विश्लेषण
किया जाये।
भारत एक सनातन मूल्यों का देश हैं। जहां
अनादिकाल से वेदों, उपनिषद और शास्त्रों द्वारा मानव एक है, कोई छोटा बडा नहीं।
मनुष्य कर्म से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य या शूद्र बनता है जन्म से नहीं। यह वर्ण
व्यवस्था समाज को चलाने हेतु बनाई गई थी। वह बात अलग है कि मध्यकाल में अज्ञानतावश
कुछ अब्राह्मण ब्राह्म्ण अपनी दुकान चलाने और सत्ता हेतु जन्म से यह सब होता है,
प्रचारित करने लगे।
मित्रो।
पहले मैं अपना संक्षिप्त आध्यात्मिक परिचय देता हूं। मैं विपुल सेन उर्फ विपुल
लखनवी डिग़्री से पोस्ट ग्रेडुएट इंजीनियर यह
घोषणा करता हूं कि मुझे ईश की असीम कृपा है, उस सीमा तक कि कोई बिरला
ही सोंच पायेगा। साथ ही दो वेद महावाक्यों
का अनुभव अनुभुति भी हो चुकी हैं। मैं कोई राजनीतिक व्यक्ति भी नही और न ही बी जे पी का सदस्य हूँ। मैंने कभी बी जे पी को वोट नही दिया था। 2014
में भी नही।
अत: मैं मोदी जी का आध्यात्मिक मूल्याकंन कर सकता हूं। मार्च 2018 से अब तक
मेरे ब्लाग पर अनेकों लेख पोस्ट कर चुका हूं। फिलहाल बाद्रायण के ब्रह्म सूत्रों पर
शोध कर लिख रहा हूं। इस ब्लाग पर आपको वह उत्तर मिलेगें जो आपने शायद सोंचे भी न
होगें। गूगल गुरू तो दूर की बात है।
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मित्रों मोदी जी ने सफाईकर्मियों के पांव धोकर यह सिद्ध कर दिया कि मोदी जी योगी
ही नही महायोगी हैं। इनके टक्कर के शायद बड़े बड़े शंकराचार्य भी न होंगे। अहंकार
की गठरी लेकर चलनेवाले जगतगुरू की पदवी लगाकर धर्म की दुकानवालो से कही ऊपर है
मोदी। किसी को जरा सा योग की अनुभूति होते ही अहंकार भी कई गुना बढ़ जाता है। लेकिन
दूसरे के पैर वही धो सकता है। जिसमे लेशमात्र अहंकार न हो। मैं आपके अवलोकन हेतु लेख लिखता हूँ। योगी के लक्षण
और कार्य कैसे होते है। आप मोदी की दिनचर्या देखे। सूक्ष्म निरीक्षण करे।
एक शंका थी वह भी दूर हो गई। हर जगह राजनीति न देखो।
तुमने बड़े बड़े मठाधीशों को अहंकार में गोते
लगाते देखा होगा।
मैंने
वेद महावाक्यों के अनुभव किये। देवी कृपा मिली वो भी परम मिली। किंतु इस तरह किसी के पैर न धो सकूंगा। क्योकि मैं महसूस
करता हूँ। हालांकि मेरे अंदर कुछ सीमा तक समत्व की भावना है। बाकी स्थिर
बुद्धि स्थित प्रज्ञ की भी कुछ सीमा आ चुकी है। किंतु अहंकार है। वह क्षणिक
आता है किंतु आता तो है। पर मोदी ने कितनी सहज भाव से शूद्रों के पैरों को
धोया वह आश्चर्य चकित करनेवाला है। यह कर्म वही कर सकता है। जिसमे अंहकार न हो। यानी जो
योगी नही महायोगी। जिसको योग सिद्ध हो चुका हो।
क्या तुम कर
सकते हो। जिसके आगे पीछे कोई नही सिर्फ हिंदुस्तान। राजनीति में भी कोई कर के
दिखाए।
क्योकि अहंकार
है। जिसका अहं मर चुका हूँ। जो समत्व भाव रखता हो। वो ही कर सकता है । हमारे तुम्हारे भीतर कुछ
होने का अहंकार है।
यह ही योगी की
पहिचान है
यही बात है।
क्योकि हम प्रत्येक मानव में ब्रह्म नही देखते।
जब ब्रह्म सबमे
है तो सब बराबर। इज्जत या बेइज्जत क्या।
मोदी सिर्फ
मानव देखते है। सबमे ब्रह्म देखते है। क्यो वे महायोगी है।
स्वामी विष्णु
तीर्थ जी महाराज तो स्त्री पुरुष का भेद भी भूल के कहते है मेरे अंदर स्त्री पुरुष का भी भेद
नही। सिर्फ आत्मा जो ब्रह्म का रूप है।
गजानन महाराज
कुत्ते के साथ खाना खा लेते थे। क्योकि वे ब्रह्म ही देखते थे सबमे।
किंतु अब भक्त हूँ
मोदी महान का। क्योकि वे एक युग पुरुष सिद्ध हो रहे है। एक संत के रूप में उनकी
फोटो को भी पूजा के स्थान पर लगाया जा सकता है।
महायोगी और वो
भी राजनेता पैदा होते ही नही। किंतु मोदी ने सिद्ध कर दिया यह भी हो सकता है।
मुझे
सनातन की जानकारी है। भगवद्गीता के अनुसार जिस व्यक्ति में समत्व हो। हो
स्थितप्रज्ञ और स्थिरबुद्धि हो वह योगी है। मोदी में यह सब गुण
दिखते है।
हे
प्रभु हम सबकी दुआएं इस महायोगी को मिले। धन्य है भारत देश जिसने
मोदी को पाला। धन्य है वह मां जिसका लाल है मोदी। मोदी तुमको सनातन पुत्र
देवीदास विपुल "खोजी" के कोटिशः नमन। प्रभु तुम्हे दीर्घायु दे। तुम
भारत की सेवा करते हो।
चलिये वेद दर्शन के योगसूत्र के रचयेता पातांजलि महाराज के अष्टांग योग से
भी मूल्याकंन करते हैं। जो कहते हैं कि योग को आठ अंगो द्वारा
अनुभव किया जा सकता है। जिनमें पांच 1. यम,
2. नियम, 3. आसन, 4. प्राणायाम, 5. प्रत्याहार। ये वाहिक अंग है जिनको
दुनिया देख सकती है। धारणा, ध्यान और समाधि ये तीन आंतरिक हैं।
पहला है यम: इसके पांच उप अंग है।
अहिंसा : ये मोदी में है।
उनका भोजन और सात्विकता जग जाहिर है।
सत्य : विचारों में सत्यता, परम-सत्य में स्थित रहना, जैसा विचार मन में है वैसा ही
प्रामाणिक बातें वाणी से बोलना। जो चीज़ जैसी है उसे वैसा ही जानना व मानना सत्य
कहलाता है। सत्य सांसारिक और ईश के प्रति दो प्रकार का होता है। सांसारिक सत्य
राजनीति के कारण हो सकता है कुछ छुपाना पड सकता हो पर मोदी सत्य ही बोलते हैं और
आचरण भी करते हैं। ईश के प्रति वे निष्ठावान हैं।
अस्तेय: यानि चोर-प्रवृति का न होना। मोदी
अपना सब कुछ दान करते रहते हैं। अपने सगे सम्बंधियों के लिये भी कुछ पक्ष नहीं
लेते।
ब्रह्मचर्य - दो अर्थ हैं: पहला चेतना को
ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना और दूसरा सभी इन्द्रिय-जनित सुखों में संयम बरतना।
शरीर के सर्वविध सामर्थ्यों की संयम पूर्वक रक्षा करने को ब्रह्मचर्य कहते हैं।
अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना
और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना। मोदी तो अपना कुछ जो भी मिलता है दान ही
कर देते हैं। अभी दक्षिणी कोरिया में जो सम्मान राशि मिली। सब नमामि गंगे को दान
कर दी।
अष्टांग योग का दूसरा
अंग है नियम। जिसके भी पांच उप अंग हैं।
शौच - शरीर और मन की शुद्धि। शरीर व मन की
शुद्धि को शौच कहा जाता है। स्नान, वस्त्र, खान-पान आदि से शरीर को स्वच्छ रखा
जाता है। ये मोदी में साफ दिखता है।
संतोष - संतुष्ट और प्रसन्न रहना। मोदी
हर हाल में संतुष्ट रहते हैं। जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो केंद्र दिल्ली
सरकार ने उनको हर तरह से परेशान किया। लेकिन मोदी ने कोई प्रतिकार न करते हुये कानून
का पालन किया। जबकि आज विपक्ष की प्रदेश सरकारें केंद्र दिल्ली सरकार के कानून तक
नहीं मानते।
तप - स्वयं से अनुशासित रहना। मोदी ने
कभी कानून नहीं तोडा। आध्यात्मिक तप तो करते ही हैं।
स्वाध्याय - आत्मचिंतन करना। भौतिक-विद्या व
आध्यात्मिक-विद्या दोनों का अध्ययन करना स्वाध्याय कहलाता है। मोदी हर पूजा स्थान
को महत्व देकर सम्मान करते हैं। नमाज के समय भी भाषण रोक देते हैं।
ईश्वर-प्रणिधान – ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा। आप यह तो हर
मंदिर या मठ यात्रा में देखते हैं।
तीसरा अंग है: प्रत्याहार
रूद्रयामल
में भगवद्पाद में चित्त लगाने को प्रत्याहार कहा गया है। जो
मोदी में साफ दिखता है।
चौथा अंग है आसन :
योगासनों द्वारा शरीरिक नियंत्रण। आज आसन
को योग का पर्याय और आसन का मुख्य उद्देश्य शरीर को रोग मुक्त करना माना जाने लगा
है। आसन करने पर गौण रूप से शारीरिक लाभ भी होते हैं। परन्तु आसन का मुख्य
उद्देश्य प्राणायाम, धारणा, ध्यान और समाधि हैं। जिस शारीरिक
मुद्रा में स्थिरता के साथ लम्बे समय तक सुख पूर्वक बैठा जा सके उसे आसन कहा गया
है। शरीर की स्थिति, अवस्था व साम्थर्य को ध्यान में
रखते हुए भिन्न-भिन्न आसनों की चर्चा की गइ है।
पांचवा है प्रणायाम:
जिसको मोदी ने विश्व के
184 देशों में योग दिवस के रूप में फैला दिया।
बाकी तीन आंतरिक है जिनका दर्शन विश्व
पत्रकार सम्मेलन में असहिष्णुता पर पूछे गये प्रश्न के उनके उत्तर से मिलता है। “
"एकम सत विप्रा बहुधा
वदन्ति, अर्थात , सत्य एक है: बुद्धिमान विभिन्न
नामों से बुलाते हैं। मतलब ईश तो एक ही है उस तक जाने के मार्ग अनेकों है। अलग अलग
लोग अलग अलग रास्ते से उस तक जाते हैं।“ यहां यह तर्क दिखता है जिस धर्म का यह मूल
मंत्र है। वह असहिष्णु कैसे हो सकता है। पत्रकार निरूत्तर
हो गया।
मोदी जी धारणा और ध्यान की गहराई तक तो पहुंच ही चुके हैं।
हो सकता है समाधि का भी अनुभव हो। क्योकिं गीता के अनुसार योगी की पहिचान है। “योग कर्मसु
कौशलम्” अर्थात कुशलतापूर्वक काम
करना ही योग है। कौशल तो योग से ही सब संभव है।
पातांजलि के योग सूत्र का दूसरा श्लोक जिसमें योगी की पहिचान
है। “चित्त वृत्ति निरोध:” यानि चित्त में वृत्ति का निरोध ही योग है।
आपने देखा होगा मोदी के चेहरे पर कभी कोई भाव नहीं रहता। यही योगी की पहिचान है। : हे अर्जुन जो न हर्ष में हर्षित हो। विषाद में दुखी हो। जो सब प्राणियों में मुझको और सबको मुझमें देखता है वह योगी है।
कारण भाव आने से चित्त में वृत्ति उत्पन्न होगी। वृत्ति
से संस्कार और संस्कारों से योग बाधित होता है।
दूसरा जो सब प्राणियों में मुझको और सबको मुझमें देखता
है वह योगी है। इसी सर्वत्र ब्रह्म। सर्वस्य ब्रह्म के कारण ही मोदी पांव धो सके।
फिर आपने देखा होगा कि उनको मां की गाली तक दी गई किंतु
उनके चेहरे पर कहीं शिकन तक न देखी।
योगी के अन्य लक्षण है जो कम खाता हो। योगी मात्र नीबू
पानी में नौ दिन का दोनों नवरात्रि उपवास रख लेते हैं।
जो कम बोलता हो। मोदी सिर्फ सभाओं में और राजनीति हेतु
काम पर बोलते हैं। कभी बकवास का उत्तर नहीं देते हैं।
कुल मिलाकर मैं अपने ब्रह्म ज्ञान से जब श्री नरेद्र दामोदरदास
मोदी का मूल्याकंन करता हूं तो उनको एक महायोगी ही देखता हूं।
मित्रो हमारा सौभाग्य है कि वे हमारे
प्रधान सेवक है।
हे प्रभु हम सबकी दुआएं इस महायोगी को मिले। धन्य है भारत देश
जिसने मोदी को पाला। धन्य है वह मां जिसका लाल है मोदी। मोदी तुमको सनातन
पुत्र देवीदास विपुल "खोजी" के कोटिशः नमन। प्रभु तुम्हे दीर्घायु दे।
तुम भारत की सेवा करते हो।
एक बात मैं अन्य लोगों से मां काली की शपथपूर्वक
कहना चाहूंगा याद रखना। यदि तुमने उनको खो दिया तो भविष्य के साथ तुम्हारी पीढ़ियों
को भी पछताना पड़ेगा।
सनातनपुत्र
देवीदास विपुल " खोजी" नवी मुम्बई। दिनांक 26 फरवरी, 2019
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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(कुछ तथ्य व कथन गूगल से साभार)
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है आपने विपुल जी।
ReplyDeleteअद्भुत विवेचना।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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