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Tuesday, October 13, 2020

नव रात्रि में सरल और सुगम आराधना कैसे करें।

 नव रात्रि में सरल और सुगम आराधना कैसे करें।

सनातनपुत्र देवीदास विपुल “खोजी”


बहुत चिंतन के बाद मुझे महसूस हुआ कि सभी देव भक्तों और हिंदुओं को यह आराधना अवश्य ही करनी चाहिये। क्योंकि यह शक्ति पूजन है। एक बात याद रखें जिस कार्य में मन न लगे अथवा खीझ पैदा हो। उसको कतई न करें। क्योंकि प्रभु मात्र भाव के ही भूखें होते हैं। बाकी वाहिक ताम झाम तो हम अपने मन और माहौल के लिये ही करते हैं। अत: मैं न्यूनतम आराधना विधि को ही बताना चाहूंगा। 

 

एक बात और यदि आप मातृ कृपा और भक्ति हेतु पूजन करते हैं तो सारी गलती माफ़ लेकिन यदि अनुष्ठानिक पूजन करते हैं तो बेहद सावधानी के साथ पूजन करना होता है। अत: यह विधि मातृ कृपा और सामान्य भक्ति आराधना हेतु ही दी गई है। 

 

1.    सबसे पहले आप मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले। जिससे आपको स्पष्टता आ जाये कि आप क्या करने जा रहें हैं। 

 

👉👉लिंक को दबायें: मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य 

  और

मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या)

भक्तों को कष्ट न हो इस कारण मैंनें कई ब्लाग लिखे हैं जिनके लिंक इस ब्लाग पर जाकर समझे जा सकते हैं। आप इतना अवश्य समझ लें कि नवरात्रि पूजन नौ रूपों हेतु पूजन है जो दस रूपों की दस विद्यायों से अलग है। इस पर मुझे लिखना है कुछ प्रतीक्षा करें। 

 

2.    बेहतर होगा कि आप दिनों के रूप के मंत्र के साथ सचल मन वैज्ञानिक विधि के अनुसार पूजन करें। दिन भर उस रूप के मंत्र का जाप करें। 

 

 👉👉लिंक को दबायें: सचल मन वैज्ञानिक विधि

 

3.    रात्रि में आरती के बाद शयन के समय से अगले दिन के रूप और मंत्र का ध्यान और जाप कर सोंयें। 

 

4.    प्रतिदिन सुबह और शाम क्षमा प्रार्थना व सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ अवश्य करें। 

 

5.    प्रयास यह करें कि आप दिनभर कोई भी काम करते समय मंत्र जप अवश्य करते रहें। 

 

6.    सम्भव हो तो मुझे अपने अनुभव व्हाट्सअप द्वारा 99690680093 पर बताते रहें। जिससे मेरी खोज को बल मिलेगा। 

 

7.    यदि सम्भव हो तो गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित दुर्गा सप्तशती का पूरा पाठ करें। यदि संस्कृत न पढे तो हिंदी अनुवाद ही पढ लें। सम्भव हो तो आराधनायें संस्कृत में पढें।

सम्भव हो तो दुर्गा सप्तशती का पूरा पाठ करें। 

 

8.    एक बात समझ लें जो घी तेल आप खाते हैं उसी का दीपक जलायें। पूजा वाला तेल के नाम पर मिलावटी और चर्बी से बना घी तेल बिकता है जो खाने को मना करते हैं। वह कदापि प्रयोग न करें। तनिक सोंचे जो आप नहीं खा सकते उसे प्रभु को अर्पित करना कितना गलत है। 

 

9.    सम्भव हो तो देवी के नव रूपों और दश विद्या को याद करें। 

 
 

हालांकि पूजन विधि में हर रूप के अलग आसन इत्यादि दिये हैं लेकिन आप परेशान न हों। जितना हो सके उतना करें। 

 

यदि मां दुर्गा की फोटो हो तो अच्छा है यदि नहीं है तो परेशान न हों। किसी भी देव की फोटो रख लें नहीं तो एक साफ कागज पर मां जग्दम्बे लिखकर सामने रख लें। 

 

कुल मिलाकर तनावरहित और भक्ति भाव से ही पूजन करें। 

 

किसी तांत्रिक या अन्य के बहकावे में न आयें। ईश्वर सरलता और सज्जनता का दूसरा रूप है। वह कभी अपनी संतानों का बुरा नहीं कर सकता। 

 

हमारे पाप कर्म ही दंड के रूप में सामने आते हैं। प्रभु कृपा से हमें कष्ट सहने में कोई कठिनाई नहीं आती है।

अत: अपने प्रभु पर अपने पर विश्वास रखें।

ईश्वर के नाम पर दुकानदारी करनेवालों से सदैव दूर रहें।

चमत्कारों पर विश्वास न करें। यह ठग भी हो सकते हैं। 

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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 

 

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अजीब किस्म की गरीब दुनिया

 

अजीब किस्म की गरीब दुनिया

विपुल लखनवी


फेंको फेंको कुछ भी फेंको। सब चलता है इस दुनिया में॥

गली गली ज्ञानी बैठें हैं। पर न ज्ञानी मिले दुनिया में॥

सब खोलें हैं अपनी दुकान। राम नाम महिमा नहीं जान॥

बन चेला हूं गुरु मैं तेरा। मुझको अपना गुरू तू मान॥

विपुल खड़ा अचरज में देखे। उलटी वाणी सबकी देखे॥

दूजे को उपदेश बताते।  खुद नहीं रत्ती भर हैं सीखे॥

अजीब खेल है यह संसारी। लालच से जगती है हारी॥  

सभी दिखें मन जो है निर्धन।  कैसे हडपे दूजे का धन॥  



एक लम्बा पद : साधो! ले लो राम का साथ।

 एक लम्बा पद : साधो! ले लो राम का साथ।

विपुल लखनवी

 मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य

                          साधो! ले लो राम का साथ।

जिसके मन में राम नहीं वह,  जग में रहता अनाथ।  

सियाराम ही शक्ति स्वरूपा, शिव भी जपे दिन रात॥

राम नाम को जपते जपते, तू हो अपने साथ।

राम नाम तेरी श्वास बसे, कर मुझपर विशवास॥

कितने पापी तार दिये है, राम नाम जिन्हें पास।   

रोम रोम में वो बसता है, पकड़े बढाकर हाथ॥          

रासी रगड़ रगड़ से घिसकर, पत्थर भी घिसै जात।

मन को रगड़े राम नाम से, राम नाम सौगात॥            

बाल्मीकी ने कथा सुनाई, तुलसी लिखी गाथ।

केवट शबरी को भी तारा, पूछे न कोई जात॥  

अपने भीतर उसे पकड़ ले, कभी बाहर न आये।

दास विपुल उसे पकड़े छोड़े, जगत परिपंच दे मात॥

नित्यबोधानंद गुरूवर, कृपा शिवोम् मिल जाये।
दास विपुल का जीवन तर दे, विनती करूं दिन रात॥ 



Monday, October 12, 2020

एक पद : राम नाम सुखदाई साधु

 एक पद : राम नाम सुखदाई साधु

विपुल लखनवी 

 

मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य

                                राम नाम सुखदाई रे साधु।

 रामनाम इक सत्य भया जग,  शेष जगत दुखदाई।

कहत सदा से सुरमुनि जग में, राम नाम अधिकाई॥

साधु रामदास अस धारा, बांकुर शिवा बनाई।

राम नाम को जपते तुलसी, रामचरित जग गाई।।

राम नाम ही जपत कबीरा,  महायोगी बन जाई।

राम नाम की महिमा गाकर, गुरु नानक गुरुआई।।

कितने पापी तर के जाएं,  राम नाम को गाकर।

विठ्ठल विठ्ठल तुका जपे जब,  हरि के दरशन पाई।।

राम कहो चाहे कृष्ण कहो,  राम नाम जप जाई।

नाम किसी भी देव का ले लो,  राम नाम भरपाई।।

देवीदास विपुल ही पापी, राम विमुख जगजाई।

हैं हनुमत सदा ही सहायक,  महिमा राम जताई।।


चेन से चैन नहीं

 

चेन से चैन नहीं 

विपुल लखनवी 

चेंन चैन नहीं दे सके, पहनो यह दिन रात।

राम नाम के बैन से, शान्ति मिलती आप।।

चेंन एक जंजीर है, स्वर्ण रजत या लौह।

यह बंधन है ग्रीव में, मुक्त नहीं है वोह।।

प्रभु नाम ही काटता, जगती के जंजाल।

चैन तभी पा पायेगा, मूरख मन में पाल।।

काल कोरोना मिल गया, कर इसका सदुपयोग।

दास विपुल की मान लें, कर ले तू परयोग।

मौन में वो कौन

 

मौन में वो कौन

विपुल लखनवी

मौन में वो कौन है जो गूंजता उर में मेरे।

इस हृदय में कौन रहता पास रहता जो मेरे॥

इक कहानी बन चली है मौन से चुपचाप उठकर।

है नहीं नायक कहीं भी प्रश्न यही मुझको घेरे॥

वाणी मेरी मौन है और शब्दों में परिहास है।  

मूक रहकर कौन गाता गीत जो ठहरे सुनहरे॥

नहीं उसे मैं जान पाऊं जीवन मांझी कौन है।

क्या सफल होगा विपुल हैं कौन से चेहरे मेरे॥



विपुल लखनवी का उलट पद

 विपुल लखनवी का उलट पद

मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य

                             साधो हरिनाम दुखदाई।  

हरिनाम सुन नेत्र सजल भये,  हिरदय टीस उठाई।।

हरिनाम की बाजे बांसुरी , जग में मैं बौराई।

मैं बिरहन एक हरिनाम की, उर हरिनाम लगाई।

नेह नाते टूटे जगत के, जग में होत हंसाई।।

जित देखू तित हरि ही दीखे, चहुंदिश श्याम दिखाई।

मैं बावरिया रहूं सुलगती, श्वांस कबहुं रुक जाई।

हर धडकन में हरि डोलत है, हरित हरी हरियाई ।

वह निष्ठुर निरमोही ऐसा, नहीं करें कुड़माई॥

अब पछताऊं हिरदय देकर, जीवन उत दे आई।

मत करियो तुम प्रेम हरि संग, वह निष्ठुर हरजाई॥

यह‌ कैसी है लीला हरि की, प्रेम करो तो भागे।

दास विपुल हरिनाम लुटा है,  हरिनाम मिटी जाई॥


 


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