पुराणों में कलियुग वर्णन बिल्कुल
सत्य!!!
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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यह
लेख पढने के पूर्व मैं आपको सलाह दूंगा कि आप महृषि अमर पर लिखी गई महऋषि
कृष्नानन्द द्वारा लिखी गई मात्र 125 रुपये की पुस्तक “ऊजाले की ओर” जरूर पढे। यह
पुस्तक मानसी फाउंडेशन बंगलोर द्वारा प्रकाशित हुई है। इस अनूठी पुस्तक में महृषि अमर द्वारा सप्तऋषियों के सम्पर्क में
रहने की कथा लिखी गई है। उनके अनुभव पढने के बाद यदि यह लेख पढा जाये तो ज्ञात हो
जायेगा कि भागवत पुराण कितना सत्य है।
हिन्दू
धार्मिक दस्तावेजों के अनुसार युगों को चार भागों में बांटा
गया है। सतयुग, जब इंसान के दिमाग में किसी प्रकार का लालच,
ईर्ष्या या विकृति नहीं थी,
त्रेतायुग जब बुराई ने समाज में अपनी
जड़ें जमानी शुरू कर दी थी, द्वापरयुग
जब आधे से ज्यादा मनुष्य नकारात्मकता
को ग्रहण कर चुके थे और कलियुग जब पाप
और अनाचार का बोलबाला हो जाता है।
कलियुग को विनाश का
दौर कहा गया है, जो भौतिक के साथ-साथ व्यक्ति की अंतरात्मा और उसके चरित्र
के साथ भी जुड़ा है। यह वो समय है जब शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जो पूरी
तरह पाप मुक्त हो।
हमारे
शास्त्रों में यह वर्णन मिलता है की
अनिश्चित भविष्य के साथ ही एक निश्चित
अथवा तय भविष्य रेखा भी साथ चलती रहती
है । यानि की भविष्य में कुछ घटनाओं के संबंध में तो कुछ कहा नहीं जा सकता परन्तु कुछ
घटनाएं ऐसी है जिनका भविष्य में घटना निश्चित है ।
भविष्य
का निर्माण केवल किसी व्यक्ति, समूह या संगठन पर ही निर्भय नहीं होता बल्कि प्रकृति
के तत्व भी इसमें अपना योगदान करते है । भविष्य की सम्भावनाएं तो अनन्त होती
है परन्तु कुछ सम्भावनाएं के बारे में पुख्ता तोर पर बताया जा सकता
है।
इसी
प्रकार से भविष्यवक्ता कही उच्चे स्थान
पर और हम नीचे हो…. सम्भावनाएं अनन्त है परन्तु जो सम्भवना निश्चित है उन्ही के आधार
पर भविष्यवाणी की जाती है ।
भागवत
पुराण के अनुसार कलयुग में विवाह बस एक
समझौता होगा दो लोगों के बीच । इस युग में पुरुष और स्त्री साथ-साथ रहेंगे और व्यापार
में सफलता छल पर निर्भर रहेगी. शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ही
महिला-पुरुष एक-दूसरे के साथ रहेंगे ।
शारीरिक
इच्छाओं की पूर्ति के लिए ही महिला-पुरुष एक-दूसरे के साथ
रहेंगे। पुरुषत्व का अर्थ सिर्फ पुरुष की संभोग शक्ति से जोड़कर ही देखा जाएगा।
महिलाएं
बेहद कड़वा बोलने लगेंगी और उनके चरित्र में
नकारात्मकता घर चुकी होगी । उनके ऊपर न
तो पिता का और न ही पति का जोर होगा ।
भागवत पुराण में कलियुग
के हालातों का वर्णन बहुत पहले ही कर दिया था। भागवत पुराण की सबसे पहले
भविष्यवाणी थी कि इस दौर में व्यक्ति के अच्छे कुल की पहचान सिर्फ धन के
आधार पर ही होगी। धन के लिए वे अपने रिश्तेदारों और दोस्तों का रक्त बहाने
में भी हिचक नहीं महसूस करेंगे। श्रीमद् भागवत पुराण में किए गए कलयुग के वर्णन में कहा गया है कि इस युग में जिस व्यक्ति
के पास धन नहीं होगा वो अधर्मी, अपवित्र और बेकार माना जाएगा और जिस
व्यक्ति के पास जितना धन होगा वो उतना गुणी माना जाएगा और कानून, न्याय केवल
एक शक्ति के आधार पर लागू किया जाएगा ।
भागवत
पुराण के अनुसार कलियुग की समाप्ति से
पहले लोग सिर्फ और सिर्फ मछली खाकर और बकरी का दूध पीकर ही जीवन व्यतीत करेंगे,
क्योकि धरती पर एक भी गाय नहीं
बचेगी.
जैसे
जैसे कलयुग अपना प्रभाव दिखाने लगेगा
मनुष्य की आयु भी घट के बहुत काम हो
जायेगी,
मनुष्य अधिकतम 50
वर्षो तक ही जीवित रह पायेगा । भविष्य
में एक समान्य व्यक्ति की आयु 16
वर्ष होगी तथा 7
– 8 वर्ष की लड़कियां गर्भ धारण
करने लगेंगी.
कहीं
भी धार्मिक स्थल का नामो निशान नहीं होगा व तारो की
चमक कम होने लगेगी। ऐसे में भगवान
विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि का जन्म
होगा ।
जब
कलयुग अपने पूर्ण अस्तित्व में आयेगा तो इसका मौसम में भी
प्रभाव पड़ेगा. सभी जगह आकाल पड़ जाएगा लोग अपनी भूख शांत करने के लिए मिटटी, पत्ते, जड़, जानवर, घास आदि खाने को मजबूर हो जाएंगे तथा इतने हिंसक हो
जाएंगे की अपने ही परिवार वालो को मारने लगेंगे ।
ठण्ड,
हवा,
गर्मी,
वर्षा ये सभी चीज़े उन्हें
परेशान करने लगेगी. महाभारत में कलयुग
के अंत में प्रलय होने का जिक्र है, लेकिन यह किसी जलप्रलय से नहीं होगा बल्कि लगातार बढ़
रही गर्मी के कारण होगा । महाभारत के वन पर्व में यह उल्लेख मिलता है की
सूर्य का प्रकाश इतना प्रचण्ड होगा की सातो समुद्र व सातो नदियाँ सुख
जाएंगी । मौसम के हालात पूरी तरह नियंत्रण से बाहर होंगे। अत्याधिक ठंड,
गर्मी और बर्फ की वजह से
तापमान बिगड़ता जाएगा। इसकी वजह से
इंसानी जीवन प्यास, भूख और बीमारियों से
पीड़ित हो जाएगा।
संवर्तक नाम की अग्नि धरती को पाताल तक भस्म कर देगी. वर्षा
पूरी तरह से बंद हो जायेगी तथा सब कुछ जल जाएगा । इसके बाद फिर लगातार 12
वर्षो तक बारिश होगी जिससे सारी धरती जल मग्न हो जायेगी ।
कलयुग में धर्म, सत्यवादिता, स्वच्छता, सहिष्णुता, दया, जीवन की अवधि, शारीरिक शक्ति और स्मृति सभी दिन-ब-दिन घटती जाएगी. लोग बस
स्नान करके समझेंगे कि वे अंतरात्मा से भी साफ-सुथरे हो गए हैं ।
धरती पर रहने वाला कोई व्यक्ति
किसी भी तरह से वैदिक और धार्मिक कार्यों में रुचि नहीं लेगा, वह एक
स्वच्छंद जीवन व्यतीत करेगा । कलयुग में वे लोग सिर्फ एक धागा पहनकर अपने
को ब्राह्मण होने का दावा करेंगे ।
कहते है की कलयुग के समीप आने पर
गंगा नदी, केदारनाथ, बद्रीनाथ सहित आदि अनेक पवित्र तीर्थ विलुप्त हो जाएंगे. तथा सिर्फ एक तीर्थ
स्थल ही होगा जिसका नाम होगा भविष्यबद्री ।
धर्म
की महत्ता, धैर्य, प्रेम और सहयोग की भावना व्यक्ति के जीवन से बिल्कुल
समाप्त हो जाएगी।
धरती
भ्रष्ट लोगों से भर जाएगी और इन्हीं भ्रष्ट लोगों में से जो सबसे अधिक ताकतवर होगा
वही सत्ता को हथिया लेगा।
सदियों
पहले लिखे गए भागवत पुराण में कलियुग के हालातों का तो वर्णन किया
गया है और साथ ही यह भी उल्लिखित किया गया है कि जब कलयुग में भगवान
विष्णु “कल्कि” के रूप में अपना दसवां अवतार लेंगे तब कल्कि के हाथ से ही
कलियुग का अंत होगा।
जहां
तक कलियुग की शुरुआती पहचान की बात है तो भगवान विष्णु के अनुसार
कलियुग की शुरुआत तब हो जाएगी जब महिलाएं अपने बाल काटना शुरू कर देंगी।
जब महिलाएं अपने बालों, जो उनकी लाज और उनका गहना हैं,
के साथ छेड़छाड़ शुरू कर देंगी तब यह मान
लेना चाहिए कि अब कलियुग की शुरुआत हो
गई है।
बालों
को काटने के अलावा जब महिलाएं अपने बालों के प्राकृतिक रंग के साथ
छेड़छाड़ शुरू कर देंगी तो भी यह इस बात का परिचायक होगा कि अब कलियुग
ने दस्तक दे दी है।
ऐसे
हालातों में जन्म लेगा विष्णु का अगला और आखिरी अवतार ‘कल्कि’।
पौराणिक दस्तावेजों के आधार पर कहा जाता है कि कल्कि का जन्म मुरादाबाद,
उत्तर प्रदेश के संभल
जिले में होगा। वह अपने अभिभावकों की
पांचवीं संतान होगा और उसके पिता का नाम विष्णुयश अथवा माता का नाम सुमति होगा।
कल्कि
के भीतर दैवीय शक्तियां होंगी। सामान्यतौर पर वह बेहद खूबसूरत और श्वेत होगा लेकिन
उसका क्रोध रूप बेहद डरावना हो जाएगा।
कल्कि
बेहद बुद्धिमान और साहसी युवक होगा जिसके सोचने भर से ही
अस्त्र-शस्त्र और वाहन उसके समक्ष उपस्थित होंगे। कल्कि सभी बुराइयों और
बुरे व्यक्तियों का नाश कर पुन: सतयुग की स्थापना करेगा।
पुराणों
का अध्ययन करने के बाद पता चलता है कि उनमें कुछ भविष्य की बातों
का भी उल्लेख है। पुराणों में कलियुग
का जो चित्रण किया गया है वर्तमान में
हूबहू वैसा ही हो रहा है। पुराणों में
लिखा है कि जो व्यक्ति, संगठन या
समाज वेद विरुद्ध आचरण कर भारत की
धार्मिक और सांस्कृतिक एकता को खंडित
करेगा उसका आने वाले समय में समूल नाश
हो जाएगा। यहां प्रस्तुत है पुराणों की वह भविष्य वाणी जिसमें उन लोगों के बारे में बताया
गया है जो वेद सम्मत आचरण को छोड़ चुके हैं...तब अंत में होगी प्रलय।
बचेगा वही जो ब्रह्म परायण होगा।
पुराणों
में भारत में आज तक होने वाले सभी शासकों की वंशावली का उल्लेख मिलता है। पुराणकार पुराणों की भविष्यवाणियों का
अलग-अलग अर्थ निकालते हैं।
भागवत और भविष्य पुराण में दर्ज भविष्यवाणी के अंश।
भागवत और भविष्य पुराण में दर्ज भविष्यवाणी के अंश।
''ज्यों-ज्यों घोर
कलयुग आता जाएगा त्यों-त्यों सौराष्ट्र,
अवंति,
अधीर,
शूर,
अर्बुद और मालव देश के
ब्राह्मणगण संस्कारशून्य हो जाएंगे तथा
राजा लोग भी शूद्रतुल्य हो जाएंगे।''....'अपनी तुच्छ बुद्धि को ही शाश्वत समझकर कुछ मूर्ख
ईश्वर की तथा धर्मग्रंथों की प्रामाणिकता मांगने का दुस्साहस
करेंगे इसका अर्थ है कि उनके पाप जोर मार रहे हैं।'
यहां
शूद्र का मतलब उस आचरण से है, जो वेद विरुद्ध है। मांस,
मदिरा और
संभोगादि प्रवृत्ति में ही सदा रत रहने
वाले राक्षसधर्मी को शूद्र कहा गया है। जो ब्रह्म को मानने वाले हैं जिन्होने ब्रह्म का वरण
किया है। जो ब्रह्म चारी यानि ब्रह्म में विचरण करने वाले हैं। वही
ब्राह्मण है। आज की जनता ब्रह्म को छोड़कर सभी को पूजने लगी
है। मनुसमृति और शास्त्रों के अनुसार जन्म से सभी शूद्र होते हैं। मतलब
मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से ही शूद्र या ब्राह्मण बनता है।
जब
सभी वेदों को छोड़कर संस्कारशून्य हो जाएंगे तब....''सिंधुतट, चंद्रभाग का तटवर्ती प्रदेश, कौन्तीपुरी और कश्मीर मंडल पर प्राय: शूद्रों का संस्कार ब्रह्मतेज से हीन नाममात्र के द्विजों का और
म्लेच्छों का राज होगा। सबके सब राजा (राजनेता) आचार-विचार में
म्लेच्छप्राय होंगे। वे सब एक ही समय में भिन्न-भिन्न प्रांतों में राज करेंगे।''
कृष्ण के
अनुसार ऐसा होगा कलियुग
आप
जानते हैं कि सिंधु के ज्यादातर तटवर्ती इलाके अब पाकिस्तान का हिस्सा
बन गए हैं। कुछ कश्मीर में हैं,
जहां नाममात्र के द्विज अर्थात
ब्राह्मण हैं। इन सभी (म्लेच्छों) के बारे में पुराणों में
लिखा है कि... ''ये सबके
सब परले सिरे के झूठे,
अधार्मिक और स्वल्प दान करने वाले
होंगे। छोटी बातों को लेकर ही ये क्रोध के मारे आग-बबूला हो जाएंगे।''
प्राचीनकाल में 'म्लेच्छ' उसे
कहते थे, जो हिन्दुकुश पर्वत के उस पार रहता था
और जिसने घुसपैठ करके अफगानिस्तान के बहुत बड़े इलाके को अपने अधीन कर लिया
था। आजकल लोग म्लेच्छ का अर्थ गलत निकालते हैं। इन लोगों का
धर्म कुछ हो लेकिन ये जाति से सभी म्लेच्छ हैं।
अब
आगे पढ़िए कश्मीर में पंडितों के साथ जो हुआ, वह लिखा
हुआ है। ''ये दुष्ट लोग
स्त्री,
बच्चों,
गौओं और ब्राह्मणों को मारने में भी
नहीं हिचकेंगे। दूसरे की स्त्री और धन हथिया लेने में ये सदा उत्सुक
रहेंगे। न तो इन्हें बढ़ते देर लगेगी और न घटते। इनकी शक्ति और आयु थोड़ी होगी।
राजा के वेश में ये म्लेच्छ ही होंगे।''
पूरे
देश की यही हालत है। भारतीय धर्म के विरोधियों की सत्ता में ताकत बढ़ गई है। ऐसी स्थिति में,
''वे लूट-खसोटकर अपनी प्रजा का खून चूसेंगे।
जब ऐसा शासन होगा तो देश की प्रजा में भी वैसा ही स्वभाव, आचरण, भाषण की वृद्धि हो जाएगी। राजा लोग तो उनका शोषण करेंगे ही, आपस में वे भी एक-दूसरे को उत्पीड़ित करेंगे और अंतत: सबके सब नष्ट हो
जाएंगे।'' -भागवत पुराण (अध्याय 'कलयुग की वंशावली' से अंश)
पुराणकार मानते हैं कि जैसे-जैसे कलयुग
आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे भारत की गद्दी पर वेद विरोधी लोगों का शासन होने लगेगा। ये ऐसे लोग होंगे, जो
जनता से झूठ बोलेंगे और अपने कुतर्कों द्वारा एक-दूसरे की आलोचना करेंगे और जिनका
कोई धर्म नहीं होगा। ये सभी विधर्मी होंगे। ये सभी मिलकर भारत को तोड़ेंगे
और अंतत: भारत को एक अराजक भूमि बनाकर छोड़ देंगे।
माना
जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे,
बद्रीनाथ
का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा।
भविष्य में गंगा नदी पुन: स्वर्ग चली
जाएगी फिर गंगा किनारे बसे तीर्थस्थलों
का कोई महत्व नहीं रहेगा। वे नाममात्र के तीर्थस्थल होंगे तब देश में बहुत बुरे
हालात होंगे।
केदार
घाटी में दो पहाड़ हैं- नर और नारायण पर्वत। पुराणों के अनुसार गंगा
स्वर्ग की नदी है और इस नदी को किसी भी
प्रकार से प्रदूषित करने और इसके स्वाभाविक रूप से छेड़खानी करने का परिणाम होगा
संपूर्ण जंबू खंड का विनाश और गंगा का पुन: स्वर्ग में चले जाना।
पुराणों
में बद्री-केदारनाथ के रूठने का जिक्र मिलता है। पुराणों के अनुसार कलियुग के 5 हजार वर्ष बीत जाने के बाद पृथ्वी पर पाप का
साम्राज्य होगा। कलियुग अपने चरम पर होगा, तब लोगों की आस्था लोभ, लालच और काम पर आधारित होगी। सच्चे भक्तों की कमी हो जाएगी। ढोंगी और
पाखंडी भक्तों और साधुओं का बोलबाला होगा। ढोंगी संतजन धर्म की गलत
व्याख्या कर समाज को दिशाहीन कर देंगे, तब इसका परिणाम यह होगा कि धरती पर मनुष्यों के पाप
को धोने वाली गंगा स्वर्ग लौट जाएगी।
वेदों
में कहा गया है कि नदी के किनारे लगे वृक्ष को जिस तरह सभी तरह के
पोषक तत्व मिलते रहते हैं उसी तरह सुख
और दुख सभी अवस्था में जो व्यक्ति परमेश्वर (ब्रह्म) को पकड़कर रखता है वह कभी मुर्झाता
नहीं है। लोगों को तथाकथित साधु, ज्योतिष या भ्रमित करने वाली पुस्तकें अनेकों मंत्र,
देवता
आदि के बारे में बताते और डराते रहते
हैं किंतु यह सभी भटकाव के रास्ते हैं।
भ्रम-द्वंद्व,
डर में जीने वाला या भटका हुआ व्यक्ति
कभी भी कहीं भी नहीं पहुंच पाता। वह कभी किसी मंत्र या देवता का सहारा
लेता है तो कभी किसी दूसरे मंत्र या देवता का। ऐसा व्यक्ति किनारे से दूर
होता जाता है और हमेशा द्वंद्व और दुविधा में रहकर जीवन नष्ट कर लेता है।
भविष्योत्तर पुराण अनुसार ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! भयंकर कलियुग के आने पर मनुष्य का आचरण दुष्ट हो
जाएगा और योगी भी दुष्ट चित्त वाले होंगे। संसार में
परस्पर विरोध फैल जाएगा। द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) दुष्ट कर्म करने वाले
होंगे और विशेषकर राजाओं में चरित्रहीनता आ जाएगी। देश-देश
और गांव-गांव में कष्ट बढ़ जाएंगे। संतजन दुःखी होंगे। अपने धर्म को छोड़कर लोग दूसरे धर्म का
आश्रय लेंगे। देवताओं का देवत्व भी नष्ट हो जाएगा
और उनका आशीर्वाद भी नहीं रहेगा। मनुष्यों की बुद्धि धर्म से विपरीत हो जाएगी और पृथ्वी पर
म्लेच्छों के राज्य का विस्तार हो जाएगा।
ब्रह्मवैवर्त
पुराण में श्रीकृष्ण गंगा को बताते हैं कि कलियुग में एक
स्वर्ण युग होगा। जिसकी शुरुआत कलियुग
के 5 हजार वर्ष बाद होगी और यह
सुनहरा युग अगले 10
हजार वर्ष तक चलेगा। यह भविष्यवाणी
भारत के संदर्भ में नहीं, बल्कि संपूर्ण धरती के संदर्भ में है। कलयुग के 5
हजार वर्ष बीत चुके
हैं और अब सभी ओर राजनीतिक शुद्धता और
तकनीकी का युग शुरू हो चुका है। हर देश में क्रांति और आंदोलन हो रहे हैं। अब झूठ और
फरेब ज्यादा दिन तक नहीं चलेगा। ईसा मसीह के 3114
वर्ष पूर्व कलियुग की शुरुआत हुई थी।
आज इसके 5127 वर्ष बीत चुके हैं।
कलिकाल का वर्णन :
कलिमल
ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ। दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥
रामचरित
मानस उत्तरकांड 97 (क)॥
कलियुग
के पापों ने सब धर्मों को ग्रस लिया, सद्ग्रंथ लुप्त हो
गए,
दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना
कर-करके बहुत से पंथ प्रकट कर दिए॥ गोस्वामी तुलसीदासजी श्रीमद्भागवद और
रामायण के अनुसार ही रामचरित के उत्तर
कांड में काकभुशुण्डि का अपनी पूर्व जन्म कथा और कलि महिमा का वर्णन करने का उल्लेख करते
हैं।
कई हजार वर्ष पूर्व भागवत में शुकदेवजी ने
जिस बारीकी से और विस्तार के साथ कलयुग का वर्णन किया है वह हमारी आंखें खोलने के लिए काफी है। आज उसी वर्णन
अनुसार ही घटनाएं घट रही है और आगे भी जो लिखा है वैसा ही घटेगा। कलियुग
यानी काला युग, कलह-क्लेश का युग, जिस युग में सभी के मन में असंतोष हो, सभी
मानसिक रूप से दुखी हों, वह युग ही कलियुग है। इस युग में धर्म का सिर्फ
एक चैथाई अंश ही रह जाता है। महर्षि व्यासजी के अनुसार कलयुग में मनुष्यों
में वर्ण और आश्रम संबंधी प्रवृति नहीं होगी। वेदों का पालन कोई नहीं
करेगा। कलयुग में विवाह को धर्म नहीं माना जाएगा। शिष्य गुरु के अधीन नहीं
रहेंगे। पुत्र भी अपने धर्म का पालन नहीं करेंगे। कोई किसी कुल में पैदा
ही क्यूं न हुआ जो बलवान होगा वही कलयुग में सबका स्वामी होगा। सभी वर्णों
के लोग कन्या बेचकर निर्वाह करेंगे। कलयुग में जो भी किसी का वचन होगा
वही शास्त्र माना जाएगा।
कलयुग में थोड़े से धन से मनुष्यों में बड़ा घमंड होगा।
स्त्रियों को अपने केशों पर ही रूपवती होने का
गर्व होगा। कलयुग में स्त्रियां धनहीन पति को त्याग देंगी उस समय धनवान पुरुष ही स्त्रियों का
स्वामी होगा। जो अधिक देगा उसे ही मनुष्य अपना स्वामी
मानेंगे। उस समय लोग प्रभुता के ही कारण सम्बन्ध रखेंगे। द्रव्यराशी घर बनाने में ही समाप्त
हो जाएगी इससे दान-पुण्य के काम नहीं होंगे
और बुद्धि धन के संग्रह में ही लगी रहेगी। सारा धन उपभोग में ही समाप्त हो जाएगा। कलयुग की
स्त्रियां अपनी इच्छा के अनुसार आचरण करेंगी हाव-भाव
विलास में ही उनका मन लगा रहेगा। अन्याय से धन पैदा करने वाले पुरुषो में उनकी आसक्ति होगी। कलयुग
में सब लोग सदा सबके लिए समानता का दावा करेंगे।
कलयुग
की प्रजा बाड़ और सूखे के भय से व्याकुल रहेगी। सबके नेत्र आकाश की
ओर लगे रहेंगे। वर्षा न होने से मनुष्य
तपस्वी लोगो की तरह फल मूल व् पत्ते खाकर और कितने ही आत्मघात कर लेंगे। कलयुग में सदा
अकाल ही पड़ता रहेगा। सब लोग हमेशा किसी न किसी कलेशो से घिरे रहेंगे। किसी-किसी
तो थोड़ा सुख भी मिल जाएगा। सब लोग बिना स्नान करे ही भोजन करेंगे।
देव पूजा अतिथि-सत्कार श्राद्ध और तर्पण की क्रिया कोई नहीं करेगा। कलयुग की
स्त्रियां लोभी, नाटी, अधिक खानेवाली और मंद भाग्य वाली होंगी। गुरुजनों और
पति की आज्ञा का पालन नहीं करेंगी तथा परदे के भीतर भी नहीं रहेंगी।
अपना ही पेट पालेंगी, क्रोध में भरी रहेंगी। देह शुधि की ओर ध्यान नहीं
देंगी तथा असत्य और कटु वचन बोलेंगी। इतना ही नहीं,
वे दुराचारी पुरुषों से मिलने की
अभिलाषा करेंगी।
ब्रह्मचारी लोग वेदों में कहे गए व्रत का पालन किए
बिना ही वेदाध्यापन करेंगे। गृहस्थ पुरुष न तो
हवन करेंगे न ही सत्पात्र को उचित दान देंगे। वनों में रहने वाले वन के कंद-मूल आदि से निर्वाह न
करके ग्रामीण आहार का संग्रह करेंगे और सन्यासी भी
मित्र आदि के स्नेह बंधन में बंधे रहेंगे। कलयुग आने पर राजा प्रजा की रक्षा न करके बल्कि कर के
बहाने प्रजा के ही धन का अपहरण करेंगे। अधम मनुष्य
संस्कारहीन होते हुए भी पाखंड का सहारा लेकर लोगों ठगने का काम करेंगे । उस समय पाखंड की अधिकता
और अधर्म की वृद्धि होने से लोगो की आयु कम होती
चली जाएगी। उस समय पांच, छह अथवा सात वर्ष की स्त्री और आठ, नौ, या दस वर्ष के पुरुषों से ही
संतान होने लगेंगी। घोर कलयुग आने पर मनुष्य बीस वर्ष
तक भी जीवित नहीं रहेंगे। उस समत लोग मंदबुद्धि, व्यर्थ के चिन्ह धारण करने
वाले बुरी सोच वाले होंगे।
लोग
ऋण चुकाए बिना ही हड़प लेंगे तथा जिसका शास्त्र में कहीं विधान नहीं है
ऐसे यज्ञों का अनुष्ठान होगा। मनुष्य
अपने को ही पंडित समझेंगे और बिना प्रमाण के ही सब कार्य करेंगे। तारों की ज्योति फीकी
पड़ जाएगी, दसों दिशाएं
विपरीत होंगी। पुत्र पिता को तथा बहुएं
सास को काम करने भेजेंगी। कलयुग में समय के साथ-साथ मनुष्य वर्तमान पर विश्वास करने
वाले, शास्त्रज्ञान से
रहित,
दंभी और अज्ञानी होंगे। जब जगत के लोह
सर्वभक्षी हो जाएं, स्वंय ही
आत्मरक्षा के लिए विवश हो तथा राजा
उनकी रक्षा करने में असमर्थ हो जाएंगे
तब मनुष्यों में क्रोध-लोभ की अधिकता
हो जाएगी।
कलयुग
के अंत के समय बड़े-बड़े भयंकर युद्ध होंगे, भारी वर्षा, प्रचंड आंधी
और जोरों की गर्मी पड़ेगी। लोग खेती काट
लेंगे, कपड़े चुरा लेंगे,
पानी पिने
का सामान और पेटियां भी चुरा ले
जाएंगे। चोर अपने ही जैसे चोरों की संपत्ति चुराने लगेंगे। हत्यारों की भी हत्या होने
लगेगी, चोरों से चोरों
का नाश हो जाने के कारण जनता का कल्याण
होगा। युगान्त्काल में मनुष्यों की आयु अधिक से अधिक तीस वर्ष की होगी। लोग दुर्बल,
क्रोध-लोभ,
तथा बुड़ापे और
शोक से ग्रस्त होंगे। उस समय रोगों के
कारण इन्द्रियां क्षीण हो जाएंगी। फिर धीरे-धीरे लोग साधु पुरुषों की सेवा,
दान,
सत्य एवं प्राणियों की रक्षा
में तत्पर होंगे। इससे धर्म के एक चरण
की स्थापना होगी। उस धर्म से लोगों को कल्याण की प्राप्ति होगी। लोगों के गुणों में
परिवर्तन होगा और धर्म से लाभ होने का अनुमान होने लगेगा। फिर श्रेष्ठ क्या है,
इस बात पर विचार करने
से धर्म ही श्रेष्ठ दिखाई देगा। जिस
प्रकार क्रमशः धर्म की हानि हुई थी, उसी प्रकार धीरे-धीरे प्रजा धर्म की वृद्धि को
प्राप्त होगी। इस प्रकार धर्म को पूर्णरूप से अपना लेने पर सब लोग सत्ययुग
देखेंगे।
मनुष्य
की औसत आयु 20 वर्ष ही रह जाएगी : पांच वर्ष की उम्र में स्त्री गर्भवती हो जाया करेगी। 16
वर्ष में लोग वृद्ध हो जाएंगे और 20 वर्ष में मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे। इंसान का
शरीर घटकर बोना हो जाएगा। ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि
कलियुग में ऐसा समय भी आएगा जब इंसान की उम्र बहुत कम रह जाएगी, युवावस्था समाप्त हो जाएगी। कलि के प्रभाव से प्राणियों के शरीर छोटे-छोटे, क्षीण और रोगग्रस्त होने लगेंगे।
श्रीमद्भागवत
के द्वादश स्कंध में कलयुग के धर्म के अंतर्गत श्रीशुकदेवजी
परीक्षितजी से कहते हैं,
ज्यों-ज्यों घोर कलयुग आता जाएगा,
त्यों-त्यों
उत्तरोत्तर धर्म,
सत्य,
पवित्रता,
क्षमा,
दया,
आयु,
बल और स्मरणशक्ति का
लोप होता जाएगा।...अर्थात लोगों की आयु
भी कम होती जाएगी जब कलिकाल बढ़ता चला जाएगा।...कलयुग के अंत में...जिस समय कल्कि अवतार
अवतरित होंगे उस समय मनुष्य की परम आयु केवल 20
या 30
वर्ष होगी। जिस समय कल्कि अवतार आएंगे।
चारों वर्णों के लोग क्षुद्रों (बोने)
के समान हो जाएंगे। गौएं भी बकरियों की तरह छोटी छोटी और कम दूध देने वाली हो जाएगी।
पुत्रः
पितृवधं कृत्वा पिता पुत्रवधं तथा। निरुद्वेगो वृहद्वादी न निन्दामुपलप्स्यते।।
म्लेच्छीभूतं
जगत सर्व भविष्यति न संशयः। हस्तो हस्तं परिमुषेद् युगान्ते समुपस्थिते।।
पुत्र,
पिता का और पिता पुत्र का वध करके भी
उद्विग्न नहीं होंगे। अपनी प्रशंसा के लिए लोग बड़ी-बड़ी बातें बनायेंगे किन्तु
समाज में उनकी निन्दा नहीं होगी। उस समय सारा जगत् म्लेच्छ हो जाएगा- इसमें
संशयम नहीं। एक हाथ दूसरे हाथ को लूटेगा।
कलियुग
में लोग शास्त्रों से विमुख हो जाएंगे। अनैतिक साहित्य ही लोगों की
पसंद हो जाएगा। बुरी बातें और बुरे
शब्दों का ही व्यवहार किया जाएगा। स्त्री और पुरुष,
दोनों ही अधर्मी हो जाएंगी। स्त्रियां
पतिव्रत धर्म का पालन करना बंद कर देगी और पुरुष भी ऐसा ही करेंगे।
स्त्री और पुरुषों से संबंधित सभी वैदिक नियम विलुप्त हो जाएंगे।
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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(तथ्य एवं कथा गूगल से साभार)
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