क्या होता है रुद्राक्ष
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
ई - मेल: vipkavi@gmail.com वेब: vipkavi.info वेब चैनल: vipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,
रूद्राक्षजाबालो
उपनिषद रूद्राक्ष से संबंधित उपनिषद है यह उपनिषद
सामवेदीय शाखा के अंतर्गत आता
है जिसमें
भगवान शिव के 'रुद्राक्ष' की महत्ता को व्यक्त किया गया है. इस
उपनिषद
में रूद्राक्ष से संबंधित अनेक
प्रश्नों का उत्तर प्राप्त होता है
जिसमें
रूद्राक्ष की उत्पत्ति उसका
आकार,
उसे धारण करने का तरीका उससे
प्राप्त
फल होने वाले फलों का विस्तृत
विवेचन प्रस्तुत किया गया है. इस
उपनिषद
में भुसुण्ड और 'कालाग्निरुद्र' के मध्य होने वाले संवादों के
द्वारा इसे
कथा का रूप प्राप्त होता है.
एक बार संतकुमार जी कालाग्निरूद्र से पूछते हैं कि "हे भगवान! मुझे रूद्राक्ष पहनने के लिए नियमों को बताएँ. और उसी समय निदाघ , दत्तात्रेय, कात्यायन, भारद्वाज, कपिला, वशिष्ठ और पिप्प्लाद ऋषि वहां पहुंचते हैं और वह भी कालाग्निरूद्र से रूद्राक्ष को धारण करने के नियम को जानने की इच्छा प्रकट करते हैं.
तब कालाग्निरूद्र उनसे कहते हैं कि, रुद्र की अक्षि (आँखें) से उत्पन्न होने के कारण इसे रूद्राक्ष कहा गया
इस रूद्राको छूने मात्र से ही कई पाप क्षय हो जाते हैं और इस रूद्राक्ष को धारण करने पर इसका फल करोंडों गुना बढ़ जाता है.रूद्राक्षजाबालो उपनिषद के प्रारंभ में भुसुण्ड, कालाग्निरूद्र से प्रश्न करते हैं कि कृपा कर आप मुझे रुद्राक्ष के विषय में बताएं यह क्या है व कहां से आया इसके क्या लाभ हैं इन सभी तथ्यों को आप मेरे समक्ष प्रस्तुत करें. इस पर प्रभु कालाग्निरूद्र उनसे कहते हैं रूद्राक्ष की उत्पत्ति मेरे द्वारा ही हुई है एक बार जब त्रिपुरासुर का वध करते हुए मेरे नेत्रों में से जल की कुछ बूंदे आँसू के रूप में पृथ्वी पर जा गिरी और वह बूंदे रुद्राक्ष के रूप में परिवर्तित हो गईं जिस प्रकार रूद्राक्ष की उत्पत्ति हुई.
रूद्राक्ष नाम का उच्चारण मात्र ही सभी फलों को प्रदान करने वाला है इसके नाम को जपने से दान में दस गायों को देने जितना लाभ प्राप्त होता है. जब मैने अपनी आँखें एक हजा़र वर्षों तक बंद रखीं तब मेरी पलकों से, पानी की कुछ बूंदें नीचे गिरी तो वह रूद्राक्ष बनीं.
यह रूद्राक्ष भक्तों के समस्त पापों नष्ट कर देता है. इसे पहनकर सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. रूद्राक्ष को देखने भर से ही लाखों कष्ट दूर हो जाते हैं और इसे धारण करने पर करोडों लाभ प्राप्त होते हैं तथा इसे पहनकर मंत्र जाप करने से यह और भी ज्यादा प्रभावशाली होता है.
जो रूद्राक्ष आंवले के आकार जितना बड़ा होता है वह रूद्राक्ष अच्छा होता है,
जो
रूद्राक्ष एक बदारी फल (भारतीय बेरी) के रूप में होता है वह
मध्यम
प्रकार का माना जाता है.
जो
रूद्राक्ष चने के जैसा छोटा होता है वह
सबसे
बुरा माना जाता है.
यह
रूद्राक्ष माला के आकार के बारे में मेरा
विचार
है.
इसके बाद वह कहते हैं कि ब्राह्मण सफेद रूद्राक्ष है.
लाल
एक क्षत्रिय है. पीला एक वैश्य है
और
काले रंग का रूद्राक्ष एक शूद्र है.इसलिए,
एक ब्राह्मण को सफेद रूद्राक्ष ,
एक क्षत्रिय को लाल,
एक
वैश्य को पीला और
एक शूद्र को काला रूद्राक्ष धारण करना चाहिए.
उन रूद्राक्ष-मोती को उपयोग में लाना चाहिए जो सुन्दर, मजबूत, बड़ा, तथा कांटेदार हो
और
उन रूद्राक्ष को नहीं लेना चहिए जो कहीं से टूटा हो या
उस
पर कीडा लगा है या कांटे बिना
हो उचित नहीं होता,
जिस
रूद्राक्ष में
प्रकृतिक रूप से छिद्र बना होता है
वह उत्तम होता है
और
जिसमें खुद छेद
किया जाए वह अच्छा नहीं होता,
भगवान
शिव के भक्त को
रूद्राक्ष अवश्य धारण
करना चाहिए.
रूद्राक्ष के एक हजार मोती पहनना लाभदायक भक्त,
जब
सिर पर रूद्राक्ष को धारण करे तो
उसे इष्ठ मंत्र जपना
चाहिए ,
जब
रूद्राक्ष को गले में पहने तो तात्पुरषा
मंत्र जपना चाहिए और
जब
इसे वक्ष और हाथ पर धारण करें तो अघोर मंत्र को
जपना चाहिए यह
कल्याणकारी होता है.
भुसुण्ड, फिर से 'कालाग्निरुद्र' से पूछते हैं कि रूद्राक्ष माला के रूप एवं प्रभाव क्या होते हैं आप मुझे इसके सभी रहस्यों का ज्ञान प्रदान करें.
भुसुण्ड, फिर से 'कालाग्निरुद्र' से पूछते हैं कि रूद्राक्ष माला के रूप एवं प्रभाव क्या होते हैं आप मुझे इसके सभी रहस्यों का ज्ञान प्रदान करें.
‘कालाग्निरुद्र' उनसे कहते हैं
एकमुखी
रुद्राक्ष परमतत्त्व का रूप होता है.
दोमुखी
रुद्राक्ष को अर्धनारीश्वर कहते हैं इसे धारण करने से
शक्ति
एवं
शिव दोनो की प्राप्ति होती है,
तीनमुखी रुद्राक्ष अग्नित्रय है
इससे
अग्नि
का आशीर्वाद प्राप्त होता है,
चारमुखी
रुद्राक्ष ब्रह्मा का रूप है,
पंचमुखी रुद्राक्ष पांच मुख वाले शिव का रूप है जो हत्या जैसे पाप को भी नष्ट कर देता है
छहमुखी रुद्राक्ष कार्तिकेय एवं गणेश
का रूप है इसे धारण करके भक्त धन, स्वास्थ्य, बुद्धि व ज्ञान पाता है, सप्तमुखी रुद्राक्ष सात लोकों, सात मातृशक्ति का रूप है इसे पहनकर भक्त धन, स्वास्थ्य और मन की पवित्रता को पाता है,
अष्टमुखी रुद्राक्ष आठ गुणों का, प्रकृति का रूप है इसे पहन के भक्त इन देवों की कृपा प्राप्त करता है, नौमुखी रुद्राक्ष नौ शक्तियों का रूप है इसे धारण करके भक्त को नौ शक्तियों का अनुग्रह उपलब्ध हो जाता है,
दसमुखी रुद्राक्ष यम देवता का,
ग्यारहमुखी रुद्राक्ष एकादश रुद्र का रूप माना गया है इसे धारण करके धन में वृद्धि की कृपा प्राप्त होती है,
बारहमुखी रुद्राक्ष महाविष्णु एवं बारह
आदित्यों का प्रतीक माना गया है इसे उपयोग करने से मोक्ष की प्राप्ति होती
है,
तेरहमुखी रुद्राक्ष कामदेव
का रूप माना गया है इसे धारण करने से समस्त मानोकामनाएं
पूर्ण होती हैं तथा चौदहमुखी रुद्राक्ष की उत्पत्ति रूद्र भगवान
के नेत्रों से हुई मानी जाती है इसे धारण करने से रोगों
का नाश होता है.
रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को तामसिक पदार्थों से दूर रहना चाहिए उसे मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि का त्याग करना चाहिए कर देना चाहिए. रूद्राक्ष को पूर्णिमा जैसे शुभ दिनों में धारण करने पर व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. रूद्राक्ष का आधार ब्रह्मा जी हैं उसकी नाभि विष्णु हैं , उसके चेहरे रुद्र है और उसके छिद्र देवताओं के होते हैं.
रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को तामसिक पदार्थों से दूर रहना चाहिए उसे मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि का त्याग करना चाहिए कर देना चाहिए. रूद्राक्ष को पूर्णिमा जैसे शुभ दिनों में धारण करने पर व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. रूद्राक्ष का आधार ब्रह्मा जी हैं उसकी नाभि विष्णु हैं , उसके चेहरे रुद्र है और उसके छिद्र देवताओं के होते हैं.
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