मंत्र जप में
माला का महत्व
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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मेरे व्हाटसअप ग्रुप “आत्म अवलोकन और योग” में प्राय: लोग मंत्र जप कैसे
करें। इस विषय पर पूछते रहते हैं। मैं अपना जाप ऊंगलियो पर ही कर लेता हूं। माला
का कोई चक्कर नहीं। भाई दोनों हाथो में चार उंगली। अगूंठा छोडकर। यानी 12 कोर। तो
हो गया 12 नवैय्या 108। पर इसका मतलब यह कदापि नहीं कि माला बेकार है। अक्षमाला का
अपना अलग महत्व है।
चलिये कुछ चर्चा करते हैं। वैसे गूगल गुरू पर बहुत जानकारियां मिल जाती हैं।
पर अलग अलग। मैं तो इसको आधुनिक युग का भौतिक नारद मुनि ही कहूंगा।
माला मह्त्वहीन है यदि आप भक्तिभाव से मंत्र
जप कर रहे है। ध्यान कर रहें हैं। पर जब आप निश्चित संख्या में जप चाहते हैं अथवा अनुष्ठानिक
जप कर रहें हैं तो यह आवश्यक हो जाती है।
किसी देवी-देवता के मंत्र
का जप करने के लिए एक निश्चित संख्या होती है।
इन सभी संख्यों का निर्धारण
बिना माला के संभव नहीं।
पहले यह जाने देव अनुष्ठान के लिये कौन सी माला का प्रयोग करें।
गणेशजी
की साधना : हाथी दांत की माला
देवी जी
की साधना : लाल चंदन की माला देवी
साधना व गणेशजी
विष्णु
अवतार साधना : तुलसी की माला
लक्ष्मी साधना : मूंगे की माला। पुष्टि कर्म के लिए भी मूंगे की माला
श्रेष्ठ होती है।
वशीकरण
: मोती की माला वशीकरण के
लिए श्रेष्ठ मानी गई है।
संतान
प्राप्ति : पुत्र जीवा की माला
अभिचार
कर्म : कमल गट्टे की माला
पाप-नाश
व दोष-मुक्ति : कुश-मूल की माला का प्रयोग के लिये होता है।
बगलामुखी
की साधना : हल्दी की माला
शान्ति
कर्म और ज्ञान प्राप्ति, माँ सरस्वती व भैरवी की साधना : स्फटिक की माला
राजसिक
प्रयोजन तथा आपदा से मुक्ति : चाँदी की माला
सिद्दी प्राप्ति और विशेष देव
साधना के अतिरिक्त यह स्तुति माला भी कर लें।
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणी।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे।
जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये॥
पहली बार अनुष्ठानिक मंत्र जप के पूर्व “ॐ अक्षमालिके
नम:” मंत्र से 11 माला कर लें। इससे माला सिद्द होती है।
रूद्राक्ष की माला और ॐ का जाप तथा सम्पूर्ण
गेरूआ वस्त्र गृहस्थ को नहीं पहनाना चाहिये। क्योंकि इनसे तीक्ष्ण वैराग्य उत्पन्न
होता है जो गृहस्थ्य जीवन में कठिनाई पैदा करता है। इसके अतिरिक्त मात्र क्लीं का जाप
नहीं करना चाहिये यह सिद्द तो बहुत जल्दी होता है पर साधक को अकेला कर देता है। निकट
सम्बंधियों की अचानक मृत्यु होने लगती है।
विभिन्न
धर्मों में 27, 54, 108 मनके
वाली माला का विधान है। जानकारों के अनुसार इस माला के उपयोग का विज्ञान है। खगोल विद्या के अनुसार एक वर्ष में 27 नक्षत्र होते
हैं। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण हैं, इस प्रकार 108
चरण हुए। यह संख्या शुभ मानी जाती है, क्योंकि
इससे तन मन और अंतर्जगत का परिष्कार होता है। शांडिल्य विद्यानुसार यज्ञ वेदी में 10 हजार 800 ईंटों की आवश्यकता मानी गई है। 2 शून्य कम कर यही संख्या शेष रहती है।
योग
शास्त्रों के अनुसार शरीर में 108 तरह की विशिष्ट ग्रथियां होती
हैं, उनका परिष्कार
हो सके तो अध्यात्म पथ पर आसानी से बढ़ा जा सकता है। कहते हैं कि माला के 108
मनकों का उन ग्रंथियों से गहरा संबंध होता है। ऋग्वेद में ऋचाओं की संख्या 10 हजार 800 है। 2 शून्य हटाने पर 108 होती है।
जैन
मत में भी 108 मनकों की माला को इसलिए पवित्र मानते हैं कि इससे
मन, वचन और कर्म से जो हिंसा आदि पापों का निराकरण होता है। अर्हन्त के 12, सिद्ध के 8, आचार्य के 36, उपाध्याय
के 25 व साधु के 27 इस प्रकार पंच
परमिष्ठ के कुल 108 गुण होते हैं। बौद्ध
मत में भी यह संख्या शुभ मानी गई है।
बुद्ध के जन्म
के समय 108 ज्योतिषियों के उपस्थित रहने की बात कही जाती है।
बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले देश जापान में श्राद्ध के अवसर पर 108 दीपक जलाने की प्रथा है।
एक मान्यता के अनुसार
माला के 108 मनके और सूर्य की कलाओं का गहरा संबंध है। एक
वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है और वर्ष में दो बार
अपनी स्थिति भी बदलता है। छह माह उत्तरायण रहता है और
छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है। इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकर माला के 108 मुनके निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक मुनका सूर्य
की एक-एक कला का प्रतीक है।
सामान्यत: 24 घंटे में एक
व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो
जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति सांस लेता है
10800 बार। इसी समय में देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार
व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में
10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए, लेकिन
यह संभव नहीं हो पाता है। इसीलिए 10800 बार सांस लेने की
संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या
निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 मोती होते हैं।
ज्योतिष के अनुसार
ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम
मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों
में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल,
बुध, गुरु, शुक्र,
शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों
की संख्या 9 का गुणा किया जाए राशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है। माला के
मोतियों की संख्या 108 संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व
करती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार ऋषियों ने में माला में 108 मोती रखने के पीछे ज्योतिषी कारण बताया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल
27 नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के 4 चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108
ही होते हैं। माला का एक-एक मोती नक्षत्र के एक-एक चरण का
प्रतिनिधित्व करता है।
अंगिरा
ऋषि के अनुसार
“असंख्या तु यज्ज्प्तं, तत्सर्वं निष्फलं भवेत।” यानी बिना
माला के संख्याहीन जप का कोई फल नहीं मिलता है।
कहा जाता है जप करते समय माला गोमुखी या किसी वस्त्र से ढकी होनी चाहिए अन्यथा जप का फल चोरी हो जाता है। जप के बाद जप-स्थान की मिट्टी मस्तक पर लगा लेनी चाहिए अन्यथा जप का फल इन्द्र को चला जाता है।
प्रातःकाल जप के समय माला नाभी के समीप होनी चाहिए, दोपहर में हृदय और शाम को मस्तक के सामने।जप में तर्जनी अंगुली का स्पर्श माला से नहीं होना चाहिए। इसलिए गोमुखी के बड़े छेद से हाथ अन्दर डाल कर छोटे छेद से तर्जनी को बाहर निकलकर जप करना चाहिए। अभिचार कर्म में तर्जनी का प्रयोग होता है।
जप में नाखून का स्पर्श माला से नहीं होना चाहिए। सुमेरु के अगले दाने से जप आरम्भ करे, माला को मध्यमा अंगुली के मघ्य पोर पर रख कर दानों को अंगूठे की सहायता से अपनी ओर गिराए। सुमेरु को नहीं लांघना चाहिए। यदि एक माला से अधिक जप करना हो तो, सुमेरु तक पहुंच कर अंतिम दाने को पकड़ कर, माला पलटी कर के, माला की उल्टी दिशा में, लेकिन पहले की तरह ही जप करना चाहिए। जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से यह माना जाता है कि अंगूठे और उंगली पर माला का दबाव पड़ने से एक विद्युत तरंग उत्पन्न होती है। यह धमनी के रास्ते हृदय चक्र को प्रभावित करता है जिससे मन एकाग्र और शुद्घ होता है। तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है।
माना जाता है कि मध्यमा उंगली का हृदय से सीधा संबंध होता है। हृदय में आत्मा का वास है इसलिए मध्यमा उंगली और उंगूठे से जप किया जाता है।
वैसे मेरा मानना है यदि माला सिद्द हो जाये तो यह एक शक्ति का हथियार और बचाव
हेतु कवच भी बन जाती है। वहीं ईश भक्त को कामना से क्या अत: मंत्र जप बिना माला सतत
निरंतर सघन करते रहो। यह तुमको गुरू से लेकर ज्ञान तक स्वत: पहुंचा देगा।
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई
चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस
पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको
प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता
है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के
लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
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