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Thursday, May 3, 2018

क्या होते हैं बीज मंत्र



क्या होते हैं बीज मंत्र


विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/


परमपिता परमेश्वर की कृपा से इस संसार में हर जीव की उत्पत्ति बीज के द्वारा ही होती है चाहे वह पेड़-पौधे हो, कीडे – मकोडे, जानवर या फिर मनुष्य योनी | चित्त में भी कर्मफल बीज के रूप संचित होते हैं। यानी बीज को जीवन की उत्पत्ति का कारक माना गया है | बीज मंत्र भी कुछ इस तरह ही कार्य करते है | हिन्दू धरम में सभी देवी-देवताओं के सम्पूर्ण मन्त्रों के प्रतिनिधित्व करने वाले शब्द को बीज मंत्र कहा गया है |

 वस्तुतः बीजमंत्रों के अक्षर उनकी गूढ़ शक्तियों के संकेत होते हैं। इनमें से प्रत्येक की स्वतंत्र एवं दिव्य शक्ति होती है। और यह समग्र शक्ति मिलकर समवेत रूप में किसी एक देवता के स्वरूप का संकेत देती है। जैसे बरगद के बीज को बोने और सींचने के बाद वह वट वृक्ष के रूप में प्रकट हो जाता है, उसी प्रकार बीजमंत्र भी जप एवं अनुष्ठान के बाद अपने देवता का साक्षात्कार करा देता है।



योग शास्त्र के अनुसार मनुष्य के शरीर में उपस्थित षट चक्रों की पंखुडियों पर भी बीज मंत्र ही अनाहत होते हैं। सभी वैदिक मंत्रो का सार बीज मंत्रो को माना गया है | बीज मंत्रों को सभी मन्त्रों के प्राण के रूप में जाना जा सकता है जिनके प्रयोग से मन्त्रों में प्रबलता और अधिक हो जाती है |



विकास की दृष्टि से "संस्कृत" का अर्थ है - संस् (सांस् या श्वासों) से बनी (कृत्)। आध्यात्म एवं सम्प्रक-विकास की दृष्टि से "संस्कृत" का अर्थ है - स्वयं से कृत् या जो आरम्भिक लोगों को स्वयं ध्यान लगाने एवं परसपर सम्प्रक से आ गई। कुछ लोग संस्कृत को एक संस्कार (सांसों का कार्य) भी मानते हैं।



किंवदंती के अनुसार संस्कृत भाषा पहले अव्याकृत थी, अर्थात उसकी प्रकृति एवं प्रत्ययादि का विश्लिष्ट विवेचन नहीं हुआ था। देवों द्वारा प्रार्थना करने पर देवराज इंद्र ने प्रकृति, प्रत्यय आदि के विश्लेषण विवेचन का उपायात्मक विधान प्रस्तुत किया। इसी "संस्कार" विधान के कारण भारत की प्राचीनतम आर्यभाषा का नाम "संस्कृत" पड़ा। ऋक्संहिताकालीन "साधुभाषा" तथा 'ब्राह्मण', 'आरण्यक' और 'दशोपनिषद्' नामक ग्रंथों की साहित्यिक "वैदिक भाषा" का अनंतर विकसित स्वरूप ही "लौकिक संस्कृत" या "पाणिनीय संस्कृत" कहलाया। इसी भाषा को "संस्कृत","संस्कृत भाषा" या "साहित्यिक संस्कृत" नामों से जाना जाता है।



संस्कृत भाषा को देवभाषा भाषा भी कहा जाता है और इसकी लिपि को देवनागरी। भारतीय दर्शन और शास्त्रों के अनुसार संस्कृत का जन्म देवों के मुख से हुआ है जो वास्तव में एक प्रतीक ही है और बताता है  कि इसका जन्म वाहिक नही अपितु आंतरिक ज्ञान से हुआ है। जब हमारे मनीषियों ने शरीर के विभिन्न ऊर्जा केंद्रो अथवा चक्रों पर ध्यान लगाया तो उनको जो ध्वनियां सुनाई दी उसे लिपिबद्ध्य किया गया। जिससे संस्कृत भाषा का जन्म हुआ अत: आधुनिक विज्ञान कहता है कि कम्प्यूटर प्रोगामिंग के लिये संस्कृत सम्पूर्ण भाषा है। यानि यह एक शुद्द गणात्मक और गणितिय व्याकरण से परिपूर्ण भाषा है।



मूलाधार चक्र :  अनाहत ध्वनि: वं, शं; षं; सं; लं वर्णों की अनाहत ध्वनि गूंजायमान रहती है। लं बीच में होता है। अत: ॐ लं लम्बोदराय नम:  जाप कर इसको उद्देलित किया जा सकता है। जहां मां काली का वास है जो मां दुर्गा का रूप है और कुंडलनी शक्ति है। देखें दुर्गा सप्तशती की आरती (मूलाधार निवासनी यह पर सिद्दी प्रदे) और सिद्धी कुंजिका स्रोत्र जहां विभिन्न बीज मंत्र दिय हैं।



स्वाधिष्ठान चक्र : यह चक्र नाभि के नीचे योनी के कुछ ऊपर होता है। त्रिक चक्र (अंडाशय/पुरःस्थ ग्रंथि), जल तत्व की प्रधानता। बं, भं, मं, थं, रं, लं, वं वर्णों की अनाहत ध्वनि गूंजायमान रहती है। यहां बम बम महादेव बोला जा सकता  है। क्योकि बं बीच में होता है। इस मंत्र को सिद्ध  करने  से  आप  जल  पर नियंत्रण  कर सकते  हैं।



मणिपूर, सौर स्नायुजाल चक्र (नाभि क्षेत्र)। जहां डं, ढं, णं, तं, दं, धं, नं, पं, यं, फं, रं वर्णों की अनाहत ध्वनि गूंजायमान रहती है। यहां अग्नि तत्व रं माध्य में है। अत: ॐ रं रामाय नम: या रं रमाय नम: जाप किया जा सकता है।



अनाहत यानी ह्रदय चक्र (ह्रदय क्षेत्र)। अन आहत यानी बिना चोट की आवाज। वायु तत्व जहां कं, खं, , घं, ड़ं, चं, छं, जं, झं, त्रं, टं, ठं, यं वर्णों की अनाहत ध्वनि गूंजायमान रहती है। यहां यम है। अतं इसका मंत्र ॐ यं यामाय नम: हो सकता है। इसको सिद्ध करने पर आप निराहार जी सकते हैं।



विशुद् / कंठ चक्र (कंठ और गर्दन क्षेत्र)। यहां हं है यानि आकाश तत्व अब यहां तक हमारे शरीर के पांचो तत्व पूरे हो गये। क्योकि इसके आगे की यात्रा शरीर के बाह्र और भीतर दोनो तर है। जहां अ, , , , , , , ज्ञ, लृ; , , , अं; अः ह वर्णों की अनाहत ध्वनि गूंजायमान रहती है।यहां पर ॐ हं हनुमंतये नम: मंत्र जप किया जा सकता है। यह  आपको  आकाशिय  शक्तियां  देता  है।



आज्ञा, ललाट या ध्यान या तृतीय नेत्र । जहां स्त्रियां बिन्दी लगाती हैं। जहां हं, क्षं, ॐ वर्णों की अनाहत ध्वनि गूंजायमान रहती है। यहां ॐ बीच में हैं। अत: ॐ का जाप लाभकारी होता है।



सहस्रार, शीर्ष चक्र (सिर का शिखर; एक नवजात शिशु के सिर का 'मुलायम स्थान (तालू)। जहां दल के वर्णों की अनाहत ध्वनि गूंजायमान रहती है।


           अब सीधी सी बात आप समझ गये होंगे यदि आप बीज मंत्र का जाप करते हैं तो सीधे सीधे चक्रों की पंखुडियों को उद्देलित कर रहे हैं। और यहीं से सिद्दियों का जन्म होता है। 


          बीज मंत्र कुछ इस प्रकार होते है जो अलग-अलग देवी-देवताओं के प्रतिनिधत्व करते है

 , क्रीं, श्रीं, ह्रौं, ह्रीं, ऐं, गं, फ्रौं, दं, भ्रं, धूं, ह्लीं, त्रीं, क्ष्रौं, धं, हं, रां, यं, क्षं, तं , 
ये दिखने में छोटे से बीज मंत्र अपने अन्दर बहुत से शब्दों को समाये हुए है | उपरोक्त सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी है | इन्ही के साथ कुछ और बीज ध्वनियों की खोज विज्ञानी ऋषि मार्कण्डेय ने की जो श्रीमददुर्गा सप्तशती में देखी जा सकती हैं। अं कं चं टं तं पं यं वं शं हं, ठां, ठी ठूं,  इत्यादि। 

           बीज मंत्र हमें हर प्रकार की बीमारी, किसी भी प्रकार के भय, किसी भी प्रकार की चिंता और हर तरह की मोह-माया से मुक्त करता हैं। अगर हम किसी प्रकार की बाधा हेतु, बाधा शांति हेतु, विपत्ति विनाश हेतु, भय या पाप से मुक्त होना चाहते है तो बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। 
ह्रीं (मायाबीज) इस मायाबीज में ह् = शिव, र् = प्रकृति, नाद = विश्वमाता एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस मायाबीज का अर्थ है ‘शिवयुक्त जननी आद्याशक्ति, मेरे दुखों को दूर करे।’


श्रीं (श्रीबीज या लक्ष्मीबीज) इस लक्ष्मीबीज में श् = महालक्ष्मी, र् = धन संपत्ति , ई = महामाया, नाद = विश्वमाता एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस श्रीबीज का अर्थ है धनसंपत्ति की अधिष्ठात्री जगज्जननी मां लक्ष्मी मेरे दुख दूर करें।’ 
                

ऐं (वागभवबीज या सारस्वत बीज) इस वाग्भवबीज में- ऐं = सरस्वती, नाद = जगन्माता और बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है- ‘जगन्माता सरस्वती मेरे दुख दूर करें।’ 
                  

क्लीं (कामबीज या कृष्णबीज) इस कामबीज में क = योगस्त या श्रीकृष्ण, ल = दिव्यतेज, ई = योगीश्वरी या योगेश्वर एवं बिंदु = दुखहरण। इस प्रकार इस कामबीज का अर्थ है- ‘राजराजेश्वरी योगमाया मेरे दुख दूर करें।’ और इसी कृष्णबीज का अर्थ है योगेश्वर श्रीकृष्ण मेरे दुख दूर करें।
                            

क्रीं (कालीबीज या कर्पूरबीज) इस बीज में- क् = काली, र् = प्रकृति, ई = महामाया, नाद = विश्वमाता एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है ‘जगन्माता महाकाली मेरे दुख दूर करें।’ 
                
दुं (दुर्गाबीज) इस दुर्गाबीज में द् = दुर्गतिनाशिनी दुर्गा, ¬ = सुरक्षा एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इसका अर्थ 1. है ‘दुर्गतिनाशिनी दुर्गा मेरी रक्षा करें और मेरे दुख दूर करें।’ 
                         

स्त्रीं (वधूबीज या ताराबीज) इस वधूबीज में स् = दुर्गा, त् = तारा, र् = प्रकृति, ई = महामाया, नाद = विश्वमाता एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है ‘जगन्माता महामाया तारा मेरे दुख दूर करें।’ 
हौं (प्रासादबीज या शिवबीज) इस प्रासादबीज में ह् = शिव, औ = सदाशिव एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है ‘भगवान् शिव एवं सदाशिव मेरे दुखों को दूर करें।’ 
                              

हूं (वर्मबीज या कूर्चबीज) इस बीज में ह् = शिव, ¬ = भैरव, नाद = सर्वोत्कृष्ट एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है ‘असुर भयंकर एवं सर्वश्रेष्ठ भगवान शिव मेरे दुख दूर करें।’ 
                                                      
हं (हनुमद्बीज) इस बीज में ह् = अनुमान, अ् = संकटमोचन एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ हैसंकटमोचन हनुमान मेरे दुख दूर करें।’ 
                     

गं (गणपति बीज) इस बीज में ग् = गणेश, अ् = विघ्ननाशक एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है ‘‘विघ्ननाशक श्रीगणेश मेरे दुख दूर करें।’’ 
                           

क्ष्रौं (नृसिंहबीज) इस बीज में क्ष् = नृसिंह, र् = ब्रह्म, औ = दिव्यतेजस्वी, एवं बिंदु = दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है ‘दिव्यतेजस्वी ब्रह्म स्वरूप श्री नृसिंह मेरे दुख दूर करें।’ 
                       



इसी प्रकार नव ग्रहों के बीज मंत्र जैसे

सूर्यॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नमः
चंद्रमाॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्राय नमः
मंगलॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नमः
बुधॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नमः
बृहस्पतिॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नमः
शुक्रॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नमः
शनिॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नमः
राहुॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नमः
केतुॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नमः




"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल



7 comments:

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    टिप्पणी का स्वागत है। टिप्पणी हेतु धन्यवाद। कृपया लेख अन्य को भी शेयर करें।

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  2. अति सुन्दर सर्वज्ञान जय सनातन संस्कृति आपका धन्यवाद महाराज जी

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आप अन्य लेख भी पढ़े और अपनी टिप्पणी अवश्य दें।

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  3. आपने बीज मंत्र द्वारा लोगो को पुनः ऊर्जावान और स्फूर्तिवान बनाने की राह दिखाई है। इसके लिए आपकी जितनी प्रशंशा की जाय कम है। धन्यवाद इस आध्यात्मिक दृष्टि ज्ञान देने के लिए।

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  4. आपने बीज मन्त्रों का उल्लेख अति सरल व सहज़ ढंग से किया है जिसके लिए आप साधुवाद के पात्र है l
    आपको बहुत बहुत धन्यवाद l💐💐

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आप अन्य लेख भी पढ़े और अपनी टिप्पणी अवश्य दें।

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