Search This Blog

Wednesday, July 25, 2018

भाग – 18 ईसाइयत का सत्य : धर्म ग्रंथ और संतो की वैज्ञानिक कसौटी



भाग – 18 ईसाइयत का सत्य : धर्म ग्रंथ और संतो की वैज्ञानिक कसौटी
संकलनकर्ता : सनातन पुत्र देवीदास विपुल “खोजी”


विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi


पिछले दिनो कुछ समाचार पत्रों ने इसाइत से सम्बंधित कुछ समाचार प्रकाशित किये। जो वास्तव में क्या ईसाइत का भौंडा रूप थे या सत्य थे। यह जानने के पूर्व कुछ समाचार देना चाहता हूं। 

1.        आजतक न्यूज के अनुसार (लिंक: https://aajtak.intoday.in/crime/gallery/mother-teresa-missionaries-of-charity-staff-arrested-for-selling-babies-tst-1-23588.html): रांची में मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी की संस्था पर नवजात की बिक्री का आरोप लगा है. इस मामले में मिशनरीज ऑफ चैरिटी होम की एक कर्मचारी  को कोतवाली पुलिस ने गिरफ्तार किया है. चाइल्ड वेलफेयर कमेटी  यानी CWC की जांच में इस तथ्य का खुलासा हुआ है कि एक बच्चा के एवज में 1.20 लाख रुपये तक लिये गये थे. चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की सदस्य सीमा देवी ने बताया कि होम की कर्मचारी अनिमा इंदवार शक के घेरे में है. पुलिस का भी कहना है कि खुद अणिमा ने स्वीकार किया कि अब तक आधा दर्जन नवजात को चैरिटी होम की संचालिका सिस्टर कोनसीलिया के साथ मिलकर बेच चुकी है. मानव तस्करी और अवैध रूप से बच्चा बेचने का सनसनीखेज मामला सामने आने के बाद पुलिस जांच तेज़ कर दी है. इस आरोप के बाद पुलिस ने जांच का दायरा बढ़ा दिया है. वहीं सिस्टर कनसिलिया और सिस्टर मेरी को भी हिरासत में लेकर पुलिस पूछताछ कर रही है. पुलिस के मुताबिक इस दौरान आरोपियों ने पुलिस के समक्ष बच्चा बेचने की बात कबूली है. पूछताछ के क्रम में पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि अबतक संस्था की ओर से रांची के कांटाटोली, मोरहाबादी, सिमडेगा और यूपी में बच्चे को बेचा जा चुका है. जांच में यह भी सामने आया कि एक अविवाहित मां मिशनरी ऑफ चैरिटी संस्था के संरक्षण में रहती थी. उसके डेढ़ माह के बच्चे को संस्था द्वारा यूपी के निवासी सौरभ कुमार अग्रवाल और उसकी पत्नी प्रीति को दे दिया. इसके बदले दोनों से अस्पताल खर्च के नाम पर एक लाख 20 हजार रुपये भी लिए गए. यह राशि संस्था की अनिमा इंदवार, सिस्टर कनसिलिया और गार्ड के बीच बांटी गई थी. लेकिन पैसा लेने के बाद भी उन्हें बच्चा नहीं मिला जिसकी शिकायत उन्होंने CWC से की. फिलहाल इस मामले की जांच जारी है. पुलिस का कहना है कि इस मामले में कुछ और लोगों की गिरफ्तारी हो सकती है.

2.        इस लिंक पर दूसरे धर्मों पर अत्याचार की कहानी ।


प्रणब मुखर्जी ने खोला शंकराचार्य पर अत्याचार का सच :  

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब ने देश के आगे एक बड़े सवाल को फिर से खड़ा कर दिया है। सवाल ये कि कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती की गिरफ्तारी और उन पर लगाए गए बेहूदे आरोपों के पीछे कौन था?  नवंबर 2004 में कांग्रेस के सत्ता में आने के कुछ महीनों के अंदर ही दिवाली के मौके पर शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को हत्या के एक केस में गिरफ्तार करवाया गया था। जिस वक्त गिरफ्तारी की गई थी, तब वो 2500 साल से चली आ रही त्रिकाल पूजा की तैयारी कर रहे थे। गिरफ्तारी के बाद उन पर अश्लील सीडी देखने और छेड़खानी जैसे घिनौने आरोप भी लगाए गए थे। दरअसल प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब ‘द कोएलिशन इयर्स 1996-2012’ में इस घटना का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि “मैं इस गिरफ्तारी से बहुत नाराज था और कैबिनेट की बैठक में मैंने इस मसले को उठाया भी था। मैंने सवाल पूछा कि क्या देश में धर्मनिरपेक्षता का पैमाना सिर्फ हिंदू संत-महात्माओं तक ही सीमित है? क्या किसी राज्य की पुलिस किसी मुस्लिम मौलवी को ईद के मौके पर गिरफ्तार करने की हिम्मत दिखा सकती है?”

सोनिया गांधी पर गंभीर सवाल :  

अब तक मोटे तौर पर यह माना जाता रहा है कि कांची पीठ के शंकराचार्य को झूठे मामले में फंसाकर गिरफ्तार करवाने की पूरी साजिश उस वक्त मुख्यमंत्री रहीं जयललिता ने अपनी सहेली शशिकला के इशारे पर रची थी। उस वक्त इस सारी घटना के पीछे किसी जमीन सौदे को लेकर हुआ विवाद बताया गया था। लेकिन प्रणब मुखर्जी ने इस मामले को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रणब मुखर्जी ने किताब में लिखा है कि उन्होंने केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में गिरफ्तारी को लेकर कड़ा विरोध जताया। हालांकि उन्होंने यह नहीं लिखा कि इस पर उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह या कैबिनेट के दूसरे सदस्यों ने क्या प्रतिक्रिया दी। यह भी नहीं बताया कि सोनिया गांधी इस पर क्या सोचती थीं। लेकिन यह स्पष्ट है कि वरिष्ठ मंत्री के तौर पर जिस तरह से उन्होंने विरोध दर्ज कराया, उन्हें इस बात की जानकारी रही होगी कि गिरफ्तारी के पीछे केंद्र सरकार की सहमति ली गई है। विश्व हिंदू परिषद हमेशा से कहती रही है कि यह गिरफ्तारी सिर्फ जयललिता की मर्जी से नहीं, बल्कि सोनिया गांधी के इशारे पर हुई थी। ये वो दौर था जब सोनिया और जयललिता के बीच काफी करीबियां थीं।

ईसाई मिशनरियों के लिए रोड़ा : 

यह बात भी सामने आती रही है कि दक्षिण भारत में ईसाई धर्म को बेरोक-टोक फैलाने के लिए कांची के शंकराचार्य को जानबूझकर फंसाया गया था। जिस समय मीनाक्षीपुरम में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण की घटनाओं से पूरा हिंदू समाज सकते में था, तब कांची मठ ने सचल मंदिर बनाकर उन्हें दलित बस्तियों में भेजा और कहा कि अगर वो मंदिर तक नहीं आ सकते तो मंदिर उन तक पहुंचेगा। सामाजिक बराबरी के लिए जितनी कोशिश कांची मठ ने की उतनी शायद और किसी हिंदू संस्थान ने नहीं की होगी। यही कारण था कि वो ईसाई मिशनरियों को खटक रहे थे। उनकी गिरफ्तारी आंध्र प्रदेश से की गई थी, जहां पर कांग्रेस की सरकार थी। गिरफ्तारी के बाद उन्हें तमिलनाडु की वेल्लोर जेल में रखा गया। जहां उनके साथ टॉर्चर भी किया गया। इस बात की पुष्टि उस वक्त जेल से जुड़े लोगों ने भी की है। शायद ये प्रणब मुखर्जी के दबाव का ही नतीजा था कि बाद में मनमोहन सिंह ने इस मामले में जयललिता को चिट्ठी लिखकर चिंता जताई थी, लेकिन तब की सुप्रीम नेता सोनिया गांधी इस मसले पर चुप्पी साधे रहीं।

अपनी किताब में प्रणब मुखर्जी इस मसले को छूकर निकल गए हैं, लेकिन इसने एक नई बहस को जन्म दे दिया है।

3.        इस समाचार में किस प्रकार भारत में गरीब आदिवासियों के साथ धर्मांतरण का खेल खेला जा रहा है। 

दलितों को बहला-फुसलाकर धर्मांतरण करा रही ईसाई मिशनरी उनके साथ बेहद बुरा सलूक कर रही हैं। ईसाई बन चुके दलितों के एक संगठन ने संयुक्त राष्ट्र को चिट्ठी लिखकर अपने साथ भेदभाव की शिकायत की है। उनकी ये शिकायत वेटिकन के खिलाफ भी है। इन लोगों की शिकायत है कि सामाजिक भेदभाव से छुटकारा दिलाने के नाम पर मिशनरियों ने उन्हें ईसाई तो बना लिया, लेकिन यहां भी उनके साथ अछूतों जैसा बर्ताव हो रहा है। कई चर्च में दलित ईसाइयों के घुसने पर भी एक तरह से पाबंदी लगी हुई है। नाराजगी इस बात से है कि ईसाइयों की सर्वोच्च संस्था वेटिकन इस भेदभाव को खत्म करने के लिए कुछ नहीं कर रही। दिल्ली में यूएन के दफ्तर के जरिए ये शिकायत कुछ वक्त पहले भेजी गई है। कुछ वक्त पहले न्यूज़लूज़  पर हमने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज की खबर बताई थी, जहां प्रिंसिपल की भर्ती के लिए निकले विज्ञापन में साफ कहा गया था कि कैंडिडेट मारथोमा सीरियन चर्च का होना चाहिए। ईसाई प्रिंसिपल चाहिए, लेकिन धर्मांतरण वाला नहीं

ईसाई धर्म में ज्यादा भेदभाव: दलित क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट (डीसीएलएम) और मानवाधिकार संस्था विदुथलाई तमिल पुलिगल काची ने कहा है कि “वेटिकन और इंडियन कैथोलिक चर्च भारतीय दलित ईसाइयों को तुच्छ नज़र से देखते हैं। हर जगह उन ईसाइयों को प्राथमिकता दी जाती है जो उनकी नजर में उच्च वर्ग के हैं। यह भेदभाव धार्मिक, शैक्षिक और प्रशासनिक सभी क्षेत्रों में हो रहा है।” दलित ईसाइयों के संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र से फरियाद की है कि वो वेटिकन पर इस बात का दबाव डालें ताकि वो भारतीय दलितों के साथ दोहरा रवैया छोड़ें। पिछले कुछ दशकों में लाखों की संख्या में दलितों ने ईसाई धर्म अपना लिया है, लेकिन इनमें से ज्यादातर खुद को ठगा महसूस करते हैं क्योंकि अब उनकी सामाजिक स्थिति पहले से बदतर है। ऐसी घटनाएं मीडिया में भी नहीं आने पातीं। इसके उलट हिंदू धर्म में हो रहे सुधारों के कारण जाति-पाति के आधार पर भेदभाव काफी हद तक कम हुआ है। यह भी पढ़ें: धर्मांतरण कराने वाली सबसे बड़ी एजेंसी देश छोड़कर भागी

दलितों के लिए अलग कब्रिस्तान: दलित ईसाई संगठनों की कई शिकायतें हैं, लेकिन इनमें सबसे गंभीर हैं वो सामाजिक भेदभाव जिनके नाम पर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए उकसाया गया था। दलित ईसाई संगठनों के मुताबिक ज्यादातर जगहों पर कैथोलिक ईसाई पसंद नहीं करते कि उनके सेमेंटरीज़ (यानी कब्रिस्तानों) में दलित ईसाइयों को दफनाया जाए। वो उन्हें कमतर मानते हैं लिहाजा उनकी जगह कोई सुनसान कोना या अलग जगह होती है।यहां तक कि कई चर्च में भी दलित जाति के ईसाइयों के बैठने की जगह अलग और पीछे होती है।  क्रिसमस पर निकलने वाली शोभा यात्राएं दलित ईसाइयों के मोहल्लों में नहीं जातीं। दलित ईसाइयों को पढ़ा-लिखा होने के बावजूद ज्यादातर सहायक, ड्राइवर या इससे भी निचले दर्जे की नौकरियां दी जाती हैं। इसकी शिकायत कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया से भी की जा चुकी है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।  क्योंकि इस पर खुद को प्योर ब्लड का बताने वाले ईसाइयों का कब्जा है। इस भेदभाव का नतीजा है कि एक पीढ़ी पहले धर्मांतरण करने वाले कई दलित परिवार वापस सनातन धर्म अपनाने की सोच रहे हैं। अकेले केरल में पिछले एक दशक में 100 के करीब परिवार वापस हिंदू धर्म अपना चुके हैं। यह भी पढ़ें: देश में धर्मांतरण रोकने के लिए कानून क्यों जरूरी है

दलित ईसाइयों पर कुछ तथ्य:

  • देश में कुल कैथोलिक ईसाई आबादी का 70 फीसदी दलित जातियों से धर्मांतरण करने वाले लोग हैं। लेकिन चर्च में उनका प्रतिनिधित्व सिर्फ 4 से 5 फीसदी है।

  • पादरी और बिशप जैसे पदों के लिए दलित ईसाइयों का चुना जाना लगभग नामुमकिन है। अगर कोई बनता भी है तो उन इलाकों के लिए जहां उच्च वर्ग के पादरी जाना पसंद नहीं करते।

  • देश भर में 200 से ज्यादा सक्रिय बिशप में से सिर्फ 9 दलित समुदाय से आते हैं।

  • ज्यादातर दलित ईसाई परिवार पहले की तरह आपस में ही शादी-ब्याह करते हैं, क्योंकि कोई भी कुलीन ईसाई परिवार उनसे पारिवारिक रिश्ता नहीं रखता।

यह सब पढने के बाद आप सनातन की सत्यता और विशालता समझ ही चुके होंगे। चलिये कुछ इसाइत के बारे जाना जाये। 

ईसाई धर्म (अन्य प्रचलित नाम:मसीही धर्मक्रिश्चियन धर्म) एक इब्राहीमी एकेश्वरवादी धर्म है, जिसके अनुयायी ईसाई कहलाते हैं। ईसाई धर्म के अनुयायी ईसा मसीह की शिक्षा पर चलते हैं। ईसाइयों में बहुत से समुदाय हैं जैसे कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट, आर्थोडोक्स, एवानजिलक आदि। ईसाई धर्म के अनुसार जीव हत्या, अनावश्यक हरे पेड़ों की कटाई ,किसी को व्यर्थ आघात पहुँचाना, व्यर्थ जल बहाना, आदि पाप है। बाईबल ईसाई धर्म का धर्मग्रंथ है। 

ईसाई धर्म के महत्वपूर्ण तथ्य: 

* ईसाई धर्म की स्थापना ईश्वर पुत्र ‘ईसा मसीह’ ने की।
* ईसाई धर्म का मुख्य ग्रंथ ‘बाइबल’ है, जो दो खंड ‘पूर्वविधान’ व ‘नवविधान’ के रूप में विभाजित है।
* ईसा मसीह का जन्म जेरूसलम के पास बैथलेहम में हुआ था।
* ईसा मसीह की माता का नाम ‘मैरी’ और पिता का नाम ‘जोसेफ’ था।
* ईसा मसीह ने अपने जीवन के 30 साल एक बढ़ई के रूप में बैथलेहम के पास नाजरथ में बिताए।
* ईसाइयों में बहुत से समुदाय हैं मसलन कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट, आर्थोडॉक्स, मॉरोनी, एवनजीलक।
* क्रिसमस, 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्मदिन के उपलक्ष में मनाया जाता है।
* ईसाई धर्म का सबसे पवित्र चिह्न क्रॉस है।
* ईसाई एकेश्वरवाद में विश्वास रखते हैं। लेकिन परमपिता, उनके पुत्र ईसा मसीह और पवित्र आत्मा को भी त्रीक के रूप में मानते हैं। 

जीसस को ज्ञान मिला भारत में: कश्मीर में उनकी समाधि को लेकर हाल ही में बीबीसी पर एक रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट अनुसार श्रीनगर के पुराने शहर की एक इमारत को 'रौजाबल' के नाम से जाना जाता है। यह रौजा एक गली के नुक्कड़ पर है और पत्थर की बनी एक साधारण इमारत है जिसमें एक मकबरा है, जहाँ ईसा मसीह का शव रखा हुआ है। श्रीनगर के खानयार इलाके में एक तंग गली में स्थिति है रौजाबल। आधिकारिक तौर पर यह मजार एक मध्यकालीन मुस्लिम उपदेशक यूजा आसफ का मकबरा है, लेकिन बड़ी संख्या में लोग यह मानते हैं कि यह नजारेथ के यीशु यानी ईसा मसीह का मकबरा या मजार है। लोगों का यह भी मानना है कि सन् 80 ई. में हुए प्रसिद्ध बौद्ध सम्मेलन में ईसा मसीह ने भाग लिया था। श्रीनगर के उत्तर में पहाड़ों पर एक बौद्ध विहार का खंडहर हैं जहाँ यह सम्मेलन हुआ था।

ईसा मसीह ने 13 साल से 29 साल तक क्या किया, यह रहस्य की बात है। बाइबल में उनके इन वर्षों के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं मिलता है। अपनी इस उम्र के बीच ईसा मसीह भारत में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। 30 वर्ष की उम्र में येरुशलम लौटकर उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा ली। दीक्षा के बाद वे लोगों को शिक्षा देने लगे। ज्यादातर विद्वानों के अनुसार सन् 29 ई. को प्रभु ईसा गधे पर चढ़कर येरुशलम पहुँचे। वहीं उनको दंडित करने का षड्यंत्र रचा गया। अंतत: उन्हें विरोधियों ने पकड़कर क्रूस पर लटका दिया। उस वक्त उनकी उम्र थी लगभग 33 वर्ष।

रविवार को यीशु ने येरुशलम में प्रवेश किया था। इस दिन को 'पाम संडे' कहते हैं। शुक्रवार को उन्हें सूली दी गई थी इसलिए इसे 'गुड फ्रायडे' कहते हैं और रविवार के दिन सिर्फ एक स्त्री (मेरी मेग्दलेन) ने उन्हें उनकी कब्र के पास जीवित देखा। जीवित देखे जाने की इस घटना को 'ईस्टर' के रूप में मनाया जाता है। उसके बाद यीशु कभी भी यहूदी राज्य में नजर नहीं आए। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि उसके बाद ईसा मसीह पुन: भारत लौट आए थे। इस दौरान भी उन्होंने भारत भ्रमण कर कश्मीर के बौद्ध और नाथ सम्प्रदाय के मठों में गहन तपस्या की। जिस बौद्ध मठ में उन्होंने 13 से 29 वर्ष की उम्र में शिक्षा ग्रहण की थी उसी मठ में पुन: लौटकर अपना संपूर्ण जीवन वहीं बिताया।

............क्रमश:...............

(तथ्य कथन इंडिया साइट्स, गूगल, बौद्ध, ईसाई  साइट्स, वेब दुनिया इत्यादि से साभार)


"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/




44444444444444444

No comments:

Post a Comment

 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...