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Monday, July 23, 2018

भाग – 14 बौद्ध धर्म \ धर्म ग्रंथ और संतो की वैज्ञानिक कसौटी



भाग – 14   
बौद्ध धर्म \ धर्म ग्रंथ और संतो की वैज्ञानिक कसौटी
संकलनकर्ता : सनातन पुत्र देवीदास विपुल “खोजी”


विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/




आपने भाग 1 से 13 में अब तक पढा कि किस प्रकार जीवन के चार सनातन सिद्दांतों अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष हेतु चार वेदों की रचना हुई। जिसे समझाने हेतु उपनिषद और उप वेदों की रचना हुई। जो मनुष्य को अपनी सोंच और भावनाओं को विकसित होने का पूर्ण अवसर देते हैं। किस प्रकार विदेशी आक्रांताओं ने वेदो को नष्ट करने का प्रयास किया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने वेदों की वैज्ञानिकता को समाज में बताने की चेष्टा की।। यहां तक सोहलवीं सदी में एक उपनिषद और जोडकर मुस्लिम धर्म के प्रचार प्रसार हेतु ताना बाना बुना गया और अल्लोहोपनिषद बन डाला गया। लगभग सभी उपनिषद विभिन्न ऋषियों द्वारा अपने अनुभव के आधार पर ईश की परम सत्ता की व्याख्या करते हैं। आपने सारे उपनिषद को संक्षेप में पड लिया होगा। भारत के दस महान वैज्ञानिक ऋषियों ने किस प्रकार विज्ञान को योगदान दिया। अगस्त ऋषि ने तो 2500 साल पहले ही बिजली का अविष्कार कर लिया था। सात महान ऋषियों ने आंतरिक विज्ञान पर अपना योगदान देकर सप्त ऋषि बन गये। जैन धर्म भारत का प्राचीनतम धर्म कहा जा सकता है। गुरू परम्परा की पराकाष्ठा रखनेवाला यह धर्म विलक्षण है। आपने अब तक जैन धर्म के इतिहास को मुनियों को जाना। कालांतर में जैन धर्म दिगम्बर और श्वेताम्बर में बंट गये। जिसकी कल्पना भी महावीर सवामी ने न की होगी। महाराष्ट्र की भूमि में संतो को जन्म दिया।  हाल ही में घटी थाईलैड की सुरंग घटना में बौद्ध साधना द्वारा बचे बच्चों ने भारत को पुन: विश्व गुरू बना दिया है। चलिये कुछ बौद्ध धर्म के बारे में जानें।

भारत की पवित्र भूमि में जन्म लेकर तमाम ऋषियों ने ईशवरीय ज्ञान को पूरी दुनिया में फैलाया और जिसके कारण भारत विश्व गुरू कहलाता था। आज भी अष्टांग योग के मात्र दो अंग आसन और प्रणायाम की बदौलत विश्व के सभी देशों में यह चर्चा का विषय बन चुका है। और लगता है कि दुनिया पुन: भारत को विश्व गुरू का स्थान दे चुकी है। 

आइये  सनातन की संतान एक बार इस दिशा में प्रयास कर अपना योगदान दे। 

अब आगे .......................................



त्रिपिटक (तिपिटक) बुद्ध धर्म का मुख्य ग्रन्थ है। यह पालिभाषा में लिखा गया है। यह ग्रन्थ बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात बुद्ध के द्वारा दिया गया उपदेशौं को सूत्रबद्ध करने का सबसे वृहद प्रयास है। बुद्ध के उपदेश को इस ग्रन्थ मे सूत्र (सुत्त) के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सुत्रौं को वर्ग (वग्ग) में बांधा गया है। वग्ग को निकाय (सुत्तपिटक) में वा खण्ड में समाहित किया गया है। निकायौं को पिटक (अर्थ: टोकरी) में एकिकृत किया गया है। इस प्रकार से तीन पिटक निर्मित है जिन के संयोजन को त्रि-पिटक कहा जाता है।
पालिभाषा का त्रिपिटक थेरवादी (और नवयान) बुद्ध परम्परा में श्रीलंका, थाइलैंड, बर्मा, लाओस, कैम्बोडिया, भारत आदि राष्ट्र के बौद्ध धर्म अनुयायी पालना करते है। पालि के तिपिटक को संस्कृत में भी भाषान्तरण किया गया है, जिस को त्रिपिटक कहते है। संस्कृत का पूर्ण त्रिपिटक अभी अनुपलब्ध है। वर्तमान में संस्कृत त्रिपिटक प्रयोजन का जीवित परम्परा सिर्फ नेपाल के नेवार जाति में उपलब्ध है। इस के अलावा तिब्बत, चीन, मंगोलिया, जापान, कोरिया, वियतनाम, मलेशिया, रुस आदि देश में संस्कृत मूल मन्त्र के साथ में स्थानीय भाषा में बौद्ध साहित्य परम्परा पालना करते है।

बुद्ध की शिक्षाएँ

गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, बौद्ध धर्म के अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परंतु इन सब के बहुत से सिद्धांत मिलते हैं।

तथागत बुद्ध ने अपने अनुयायिओं को चार आर्यसत्य, अष्टांगिक मार्ग, दस पारमिता, पंचशील आदी शिक्षाओं को प्रदान किए हैं।

चार आर्य सत्य

तथागत बुद्ध का पहला धर्मोपदेश, जो उन्होने अपने साथ के कुछ साधुओं को दिया था, इन चार आर्य सत्यों के बारे में था। बुद्ध ने चार आर्य सत्य बताये हैं।

दुःख : इस दुनिया में दुःख है। जन्म में, बूढे होने में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, नापसंद चीज़ों के साथ में, चाहत को न पाने में, सब में दुःख है।

दुःख कारण : तृष्णा, या चाहत, दुःख का कारण है और फ़िर से सशरीर करके संसार को जारी रखती है।

दुःख निरोध : तृष्णा से मुक्ति पाई जा सकती है।

दुःख निरोध का मार्ग : तृष्णा से मुक्ति अष्टांगिक मार्ग के अनुसार जीने से पाई जा सकती है।


बौद्ध धर्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य का आर्य अष्टांग मार्ग है दुःख निरोध पाने का रास्ता। गौतम बुद्ध कहते थे कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए :

1.    सम्यक दृष्टि : चार आर्य सत्य में विश्वास करन।  
2. सम्यक संकल्प : मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना ।
3. सम्यक वाक : हानिकारक बातें और झूट न बोलना ।
4. सम्यक कर्म : हानिकारक कर्मों को न करना ।
5. सम्यक जीविका : कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हानिकारक व्यापार न करना ।
6. सम्यक प्रयास : अपने आप सुधरने की कोशिश करना।  
7. सम्यक स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना ।
8. सम्यक समाधि : निर्वाण पाना और स्वयं का गायब होना।  

कुछ लोग आर्य अष्टांग मार्ग को पथ की तरह समझते है, जिसमें आगे बढ़ने के लिए, पिछले के स्तर को पाना आवश्यक है। और लोगों को लगता है कि इस मार्ग के स्तर सब साथ-साथ पाए जाते है। मार्ग को तीन हिस्सों में वर्गीकृत किया जाता है : प्रज्ञा, शील और समाधि।

पंचशील:

भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायिओं को पांच शीलो का पालन करने की शिक्षा दि हैं।
अहिंसा : पालि में – पाणातिपाता वेरमनी सीक्खापदम् सम्मादीयामी !
अर्थमैं प्राणि-हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
अस्तेय : पाली में – आदिन्नादाना वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामी
अर्थमैं चोरी से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
अपरिग्रह : पाली में – कामेसूमीच्छाचारा वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामी
अर्थमैं व्यभिचार से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
सत्य : पाली नें – मुसावादा वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामी
अर्थमैं झूठ बोलने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
सभी नशा से विरत : पाली में – सुरामेरय मज्जपमादठटाना वेरमणाी सिक्खापदम् समादियामी।
अर्थमैं पक्की शराब (सुरा) कच्ची शराब (मेरय), नशीली चीजों (मज्जपमादठटाना) के सेवन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

बोधि:

गौतम बुद्ध से पाई गई ज्ञानता को बोधि कहलाते है। माना जाता है कि बोधि पाने के बाद ही संसार से छुटकारा पाया जा सकता है। सारी पारमिताओं (पूर्णताओं) की निष्पत्ति, चार आर्य सत्यों की पूरी समझ और कर्म के निरोध से ही बोधि पाई जा सकती है। इस समय, लोभ, दोष, मोह, अविद्या, तृष्णा और आत्मां में विश्वास सब गायब हो जाते है। बोधि के तीन स्तर होते है: श्रावकबोधि, प्रत्येकबोधि और सम्यकसंबोधि। सम्यकसंबोधि बौध धर्म की सबसे उन्नत आदर्श मानी जाती है।


गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, बौद्ध धर्म के अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परंतु इन सब के बहुत से सिद्धांत मिलते हैं। सभी बौद्ध सम्प्रदाय तथागत बुद्ध के मूल सिद्धांत ही मानते हैं।

प्रतीत्यसमुत्पाद : यह सिद्धांत कहता है कि कोई भी घटना केवल दूसरी घटनाओं के कारण ही एक जटिल कारण-परिणाम के जाल में विद्यमान होती है। प्राणियों के लिये, इसका अर्थ है कर्म और विपाक (कर्म के परिणाम) के अनुसार अनंत संसार का चक्र। क्योंकि सब कुछ अनित्य और अनात्मं (बिना आत्मा के) होता है, कुछ भी सच में विद्यमान नहीं है। हर घटना मूलतः शुन्य होती है। परंतु, मानव, जिनके पास ज्ञान की शक्ति है, तृष्णा को, जो दुःख का कारण है, त्यागकर, तृष्णा में नष्ट की हुई शक्ति को ज्ञान और ध्यान में बदलकर, निर्वाण पा सकते हैं।

श्रीमद भग्वदगीता के अनुसार हे अर्जुन प्रत्येक प्राणी अपने अपने कर्मफल को भोगने हेतु ही जन्मता है। यानि हमारे कर्म ही हमको पुन: धरती पर भोग हेतु भेजते हैं। “ हे पार्थ परंतु जो मनुष्य स्थिरबुद्धि, स्तिथप्रज्ञ होकर मुझ एक में स्थिर होता है रमता है मैं उसे मुक्त कर देता हूं” ।

क्षणिकवाद: इस दुनिया में सब कुछ क्षणिक है और नश्वर है। कुछ भी स्थायी नहीं। कुछ लोग कहते है कि यह वैदिक मत के विरूद्ध है तो मैं कहता हूं वे अज्ञानी ही हैं। यही वैदिक मत है। श्रीमद भग्वदगीता के अनुसार यह संसार एक पानी का बुलबुला यानि केवल सत्य ही नही मरता बाकी सब नाशवान है। सत्य वह जो समय के साथ स्थिर रहता है और वह है ब्रह्म।

अनात्मवाद : आत्मा का अर्थ 'मै' होता है। किन्तु, प्राणी शरीर और मन से बने है, जिसमे स्थायित्व नही है। क्षण-क्षण बदलाव होता है। इसलिए, 'मै' अर्थात आत्मा नाम की कोई स्थायी चीज़ नहीं। जिसे लोग आत्मा समझते हैं, वो चेतना का अविच्छिन्न प्रवाह है। आत्मा का स्थान मन ने लिया है।

यहां पर यह विचार वैदिक व्याख्या के विपरीत बोला है। क्योकि इन्होने मन और बुद्धि और आत्मा को परिभाषित नहीं किया। वैसे यदि आत्मा चेतना का अविच्छिन्न प्रवाह है तो यही तो वह शक्ति है जो हमारी कर्मेंद्रियों और ज्ञानेंद्रियों को कुछ करने की शक्ति देती है और वो ही आत्मा है। वेदांत और योग के अनुसार मानव का अस्तित्व पाँच भागों में बंटा है जिन्हें पंचकोश कहते हैं। ये कोश एक साथ विद्यमान अस्तित्व के विभिन्न तल समान होते हैं। विभिन्न कोशों में चेतन, अवचेतन तथा अचेतन मन की अनुभूति होती है। प्रत्येक कोश का एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध होता है। वे एक दूसरे को प्रभावित करती और होती हैं।

ये पाँच कोश हैं -
अन्नमय कोश - अन्न तथा भोजन से निर्मित। शरीर और मस्तिष्क।
प्राणमय कोश - प्राणों से बना।
मनोमय कोश - मन से बना।
विज्ञानमय कोश - अंतर्ज्ञान या सहज ज्ञान से बना। इसे बुद्धिमय कोश भी कहते हैं।
मनीषियों ने इस कोश में पहले 1. बुद्धिमय कोश फिर 2. आत्ममय कोश बताया है।
आनंदमय कोश - आनंदानुभूति से बना।
परंतु बौद्ध दर्शन यहां पर दुखमय कोश मानता है।
(अलग से लेख देखे : https://freedhyan.blogspot.com/)
योग मान्यताओं के अनुसार चेतन और अवचेतन मान का संपर्क प्राणमय कोश के द्वारा होता है।

अनीश्वरवाद : बुद्ध ने ब्रह्म-जाल सूत्र में सृष्टि का निर्माण कैसा हुआ, ये बताया है। सृष्टि का निर्माण होना और नष्ट होना बार-बार होता है। ईश्वर या महाब्रह्मा सृष्टि का निर्माण नही करते क्योंकि दुनिया प्रतीत्यसमुत्पाद अर्थात कार्यकरण-भाव के नियम पर चलती है। भगवान बुद्ध के अनुसार, मनुष्यों के दु:ख और सुख के लिए कर्म जिम्मेदार है, ईश्वर या महाब्रह्मा नही। पर अन्य जगह बुद्ध ने सर्वोच्च सत्य को अवर्णनीय कहा है।
वेद में जो शक्ति सृष्टि का निर्माण विनाश करती है जिसे ब्रह्म कहते हैं। निराकार शक्ति कहते हैं।

शून्यतावाद: शून्यता महायान बौद्ध संप्रदाय का प्रधान दर्शन है। वह अपने ही संप्रदाय के लोगों को महत्व देते हैं।

यथार्थवाद: बौद्ध धर्म का मतलब निराशावाद नहीं है। दुख का मतलब निराशावाद नहीं है, लेकिन सापेक्षवाद और यथार्थवाद है। बुद्ध, धम्म और संघ बौद्ध धर्म के तीन त्रिरत्ने हैं। भिक्षु, भिक्षुणी, उपसका और उपसिका संघ के चार अवयव हैं।


दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करने वाला बोधिसत्व कहलाता है। बोधिसत्व जब दस बलों या भूमियों (मुदिता, विमला, दीप्ति, अर्चिष्मती, सुदुर्जया, अभिमुखी, दूरंगमा, अचल, साधुमती, धम्म-मेघा) को प्राप्त कर लेते हैं तब "बुद्ध" कहलाते हैं। बुद्ध बनना ही बोधिसत्व के जीवन की पराकाष्ठा है। इस पहचान को बोधि (ज्ञान) नाम दिया गया है।

कहा जाता है कि बुद्ध शाक्यमुनि केवल एक बुद्ध हैं - उनके पहले बहुत सारे थे और भविष्य में और होंगे। उनका कहना था कि कोई भी बुद्ध बन सकता है अगर वह दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करते हुए बोधिसत्व प्राप्त करे और बोधिसत्व के बाद दस बलों या भूमियों को प्राप्त करे।

बौद्ध धर्म का अन्तिम लक्ष्य है सम्पूर्ण मानव समाज से दुःख का अंत। "मैं केवल एक ही पदार्थ सिखाता हूँ - दुःख है, दुःख का कारण है, दुःख का निरोध है, और दुःख के निरोध का मार्ग है" (बुद्ध)। बौद्ध धर्म के अनुयायी अष्टांगिक मार्ग पर चलकर इन के अनुसार जीकर अज्ञानता और दुःख से मुक्ति और निर्वाण पाने की कोशिश करते हैं।

सम्प्रदाय:

बौद्ध धर्म में संघ का बडा स्थान है। इस धर्म में बुद्ध, धम्म और संघ को 'त्रिरत्न' कहा जाता है। संघ के नियम के बारे में गौतम बुद्ध ने कहा था कि छोटे नियम भिक्षुगण परिवर्तन कर सकते है। उन के महापरिनिर्वाण पश्चात संघ का आकार में व्यापक वृद्धि हुआ। इस वृद्धि के पश्चात विभिन्न क्षेत्र, संस्कृति, सामाजिक अवस्था, दीक्षा, आदि के आधार पर भिन्न लोग बुद्ध धर्म से आबद्ध हुए और संघ का नियम धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगा। साथ ही में अंगुत्तर निकाय के कालाम सुत्त में बुद्ध ने अपने अनुभव के आधार पर धर्म पालन करने की स्वतन्त्रता दी है। अतः, विनय के नियम में परिमार्जन/परिवर्तन, स्थानीय सांस्कृतिक/भाषिक पक्ष, व्यक्तिगत धर्म का स्वतन्त्रता, धर्म के निश्चित पक्ष में ज्यादा वा कम जोड आदि कारण से बुद्ध धर्म में विभिन्न सम्प्रदाय वा संघ में परिमार्जित हुए। वर्तमान में, इन संघ में प्रमुख सम्प्रदाय या पंथ थेरवाद, महायान और वज्रयान है। भारत में बौद्ध धर्म का नवयान संप्रदाय है जो पुर्णत शुद्ध, मानवतावादी और विज्ञानवादी है।

थेरवाद:

श्रावकयान \ प्रत्येकबुद्धयान \ थेरवाद बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है \  श्रीलंका, थाईलैंड, म्यान्मार, कम्बोडिया, लाओस, बांग्लादेश, नेपाल आदी देशों में थेरवाद बौद्ध धर्म का प्रभाव हैं।

महायान:

बोधिसत्त्वयान \ बोधिसत्त्वसुत्रयान \  बोधिसत्त्वतन्त्रयान / वज्रयान \ महायान में बुद्ध की पूजा करता है। चीन, जापान, उत्तर कोरिया, वियतनाम, दक्षिण कोरिया आदि देशों में प्रभाव हैं।

वज्रयान :

वज्रयान को तांत्रिक बौद्ध धर्म भी कहां जाता हैं। भूटान में राष्ट्रधर्म भूटान, तिब्बत और मंगोलिया में प्रभाव

नवयान:

बुद्ध के मूल सिद्धांतों का अनुसरण: महायान, वज्रयान, थेरवाद के कई शुद्ध सिद्धांत । अंधविश्वास नहीं हैं। विज्ञानवाद पर विश्वास । भारत में (मुख्यत महाराष्ट्र में) प्रभाव ।


भगवान बुद्ध के अनुयायिओं के लिए विश्व भर में पांच मुख्य तीर्थ मुख्य माने जाते हैं :

चार मुख्य स्थल : लुम्बिनी · बोध गया सारनाथ · कुशीनगर




(1) लुम्बिनीजहां भगवान बुद्ध का जन्म हुआ।
(2) बोधगयाजहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त हुआ।
(3) सारनाथजहां से बुद्ध ने दिव्यज्ञान देना प्रारंभ किया।
(4) कुशीनगरजहां बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ।

संपूर्ण विश्व में लगभग 1.8 अरब (180 करोड़) बौद्ध हैं। इनमें से लगभग 70% से 75% महायानी बौद्ध और शेष 25% से 30% थेरावादी, नवयानी (भारतीय) और वज्रयानी बौद्ध है। महायान और थेरवाद (हीनयान), नवयान, वज्रयान के अतिरिक्त बौद्ध धर्म में इनके अन्य कई उपसंप्रदाय या उपवर्ग भी हैं परन्तु इन का प्रभाव बहुत कम है। सबसे अधिक बौद्ध पूर्वी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के सभी देशों बहूसंख्यक के रूप में रहते हैं। दक्षिण एशिया के दो या तीन देशों में भी बौद्ध धर्म बहुसंख्यक है। एशिया महाद्वीप की लगभग आधी से ज्यादा आबादी पर बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ़्रीका और यूरोप जैसे महाद्वीपों में भी करोडों बौद्ध रहते हैं। विश्व में लगभग 18 से अधिक देश ऐसे हैं जहां बौद्ध बहुसंख्यक या बहुमत में हैं। विश्व में कई देश ऐसे भी हैं जहां की बौद्ध जनसंख्या के बारे में कोई विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध नहीं है।

बहुसंख्यक बौद्ध देश

आज विश्व में 20 से अधिक देशों (गणतंत्र राज्य भी) में बौद्ध धर्म बहुसंख्यक या प्रमुख धर्म के रूप में हैं।

अधिकृत बौद्ध देश

विश्व में लाओस, कम्बोडिया, भूटान, थाईलैण्ड, म्यानमार और श्रीलंका यह छह देश "अधिकृत" 'बौद्ध देश' है, क्योंकी इन देशों के संविधानों में बौद्ध धर्म को ‘राजधर्म’ या ‘राष्ट्रधर्म’ का दर्जा प्राप्त है।

............क्रमश:...............

(तथ्य कथन गूगल, जैन साइट्स इत्यादि से साभार)


"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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